सामान्य ज्ञान
वैज्ञानिकों ने एक नया ग्रह खोजा है जो पृथ्वी जैसा है. इस ग्रह को देखकर वैज्ञानिक पृथ्वी के भविष्य का अंदाजा लगा रहे हैं.
पहली बार एक चट्टानी ग्रह को एक बुझे हुए तारे, व्हाइट ड्वॉर्फ की परिक्रमा करते हुए देखा गया है. वैज्ञानिक कहते हैं कि यह खोज यह दिखाती है कि अरबों साल बाद पृथ्वी का क्या भविष्य हो सकता है. यह ग्रह दिखाता है कि सूरज की मौत के बाद भी शायद हमारा ग्रह बच सकता है, भले ही वह एक ठंडी और सुनसान दुनिया बन जाए.
अमेरिका के हवाई में स्थित दूरबीनों से जुटाए गए आंकड़ों के मुताबिक खोजे गए ग्रह का भार पृथ्वी से लगभग 1.9 गुना है, और यह हमारे सौर मंडल से लगभग 4,200 प्रकाश-वर्ष दूर, मिल्की वे आकाशगंगा के केंद्र के पास स्थित है.
यह व्हाइट ड्वॉर्फ तारा पहले एक साधारण तारा था, जिसका भार सूरज से संभवतया एक या दो गुना था. अब इसका भार सूरज का लगभग आधा है. जो तारे सूरज के भार से आठ गुना कम होते हैं, वे अपने जीवन का अंत सफेद बौने तारे यानी व्हाइट ड्वॉर्फ के रूप में करते हैं. किसी भी तारे का यह सबसे सामान्य अंतिम रूप होता है. साढ़े चार अरब साल का हो चुका हमारा सूरज भी एक दिन व्हाइट ड्वॉर्फ में बदल जाएगा.
नया खोजा गया ग्रह अपने मेजबान तारे की मृत्यु से पहले शायद उस दूरी पर परिक्रमा करता था जिसे "निवास योग्य क्षेत्र" कहा जाता है, यानी ना बहुत गर्म, ना बहुत ठंडा. इस दूरी पर तरल पानी की मौजूदगी संभव होती है और शायद इसका वातावरण जीवन के लिए भी अनुकूल हो. यह ग्रह मूल रूप से लगभग उसी दूरी पर परिक्रमा कर रहा था जिस पर पृथ्वी सूरज के चारों ओर करती है. अब यह तारे की मृत्यु के बाद लगभग 2.1 गुना अधिक दूरी पर है.
पृथ्वी के साथ क्या होगा?
इस ग्रह के बारे में एक अध्ययन ‘नेचर एस्ट्रोनॉमी' पत्रिका में प्रकाशित हुआ है. अध्ययन के प्रमुख लेखक, कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के खगोलशास्त्री केमिंग जांग बताते हैं कि "वर्तमान में यह एक बर्फीली दुनिया है क्योंकि सफेद बौना तारा, जो वास्तव में ग्रह से छोटा है, अब बहुत फीका हो चुका है, जबकि पहले यह एक सामान्य तारा था.”
कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के बर्कले स्थित कैंपस में खगोलशास्त्री और अध्ययन की सह-लेखक जेसिका लू ने कहा, "हमारे सूरज के जीवन के अंत में, यह एक विशाल आकार में फूल जाएगा जिसे खगोलशास्त्रियों ने लाल दानव नाम दिया है. और धीरे-धीरे अपनी बाहरी परतों को हवा में उड़ा देगा. जैसे ही सूरज अपना भार खोएगा, ग्रहों की कक्षाएं बड़ी हो जाएंगी. अंततः सूरज अपनी सभी बाहरी परतों को खो देगा और एक गर्म, भीतर भाग बच जाएगा, जिसे व्हाइ ड्वॉर्फ कहा जाता है."
खगोलशास्त्रियों में यह बहस लंबे समय से जारी है कि जब सूरज एक लाल दानव तारे के रूप में फैलेगा, तो उसकी कक्षा का तीसरा ग्रह पृथ्वी को निगल लेगा या नहीं. कुछ वैज्ञानिकों का अनुमान है कि सूरज का लाल दानव रूप पृथ्वी को निगल लेगा. अनुमान है कि यह प्रक्रिया अब से सात अरब साल बाद होगी. सूरज इसके बाद एक अरब साल में व्हाइट ड्वॉर्फ बन जाएगा.
जांग कहते हैं, "सैद्धांतिक मॉडल इस बात पर असहमत हैं कि क्या पृथ्वी बच पाएगी. शुक्र निश्चित रूप से निगल लिया जाएगा, जबकि मंगल निश्चित रूप से बचेगा. हमारे मॉडल से पता चलता है कि इस ग्रह की कक्षा सूरज के विशाल होने से पहले पृथ्वी जैसी थी. यह संकेत देता है कि पृथ्वी के बचने की संभावना पहले की तुलना में अधिक हो सकती है."
अब तक, केवल बृहस्पति से बड़े गैस-दानव ग्रहों को व्हाइट ड्वॉर्फ तारों की परिक्रमा करते हुए देखा गया था, जो हमारे सौर मंडल का सबसे बड़ा ग्रह है. नए खोजे गए व्हाइट ड्वॉर्फ तारे की परिक्रमा करने वाले दो पिंड हैं - एक पृथ्वी जैसा ग्रह, और दूसरा कुछ अधिक दूरी पर, एक ब्राउन ड्वॉर्फ, जो ग्रह से बड़ा लेकिन तारे से छोटा होता है.
कैसा होगा अंत?
वैज्ञानिक कहते हैं कि इस ग्रह ने अपने तारे की मृत्यु के कठिन दौर को झेला है. जांग बताते हैं, "जब तारा लाल दानव बना था, तब यह ग्रह संभवतः एक लावा ग्रह बन गया था. फिर अंततः ठंडा होकर अपनी वर्तमान बर्फीली अवस्था में पहुंच गया."
जैसे-जैसे हमारा सूरज बूढ़ा होता जाएगा, उसका तापमान बढ़ता जाएगा. तब हमारी सौर प्रणाली का "निवास योग्य क्षेत्र" बाहर की ओर खिसक जाएगा. जांग कहते हैं कि पृथ्वी लगभग एक अरब साल और जीवन के लिए अनुकूल रहेगी, जब तक कि इसके महासागर संभवतः सूख नहीं जाते.
क्या इसका मतलब है कि मानवता, या उस समय जो भी जीवन पृथ्वी पर मौजूद होगा, उसका विनाश निश्चित है? जांग कहते हैं, "हमें एक अरब साल की इस समय सीमा से पहले पृथ्वी से पलायन करना होगा."
उन्होंने कहा, " जब सूरज एक लाल दानव बनेगा, तब हमारे सौर मंडल के बाहरी हिस्से में बृहस्पति के चंद्रमा गैनिमेड और शनि के चंद्रमा टाइटन और एनसेलाडस जैसे कुछ बड़े चंद्रमा मानव जीवन के लिए संभावित आश्रय दे सकते हैं. उम्मीद अभी बाकी है."
वीके/आरपी (रॉयटर्स)
रायपुर, 19 अगस्त। नवा रायपुर स्थित इंद्रावती भवन परिसर में हर वर्ष की भाँति इस वर्ष भी स्वतंत्रता दिवस समारोह का आयोजन बड़े ही हर्षोल्लास से मनाया गया। इस अवसर पर संचालक पशु पालन ,तकनीकी शिक्षा विभाग एवं नोडल अधिकारी इंद्रावती भवन डॉ प्रियंका शुक्ला द्वारा राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया, साथ ही सभी उपस्थित कर्मचारियों व अधिकारियों द्वारा राष्ट्रीय गान गाकर देश के 78 वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर राष्ट्र के प्रति सम्मान व देश प्रेम की भावना प्रकट की गयी।
इस अवसर पर नोडल अधिकारी डॉ प्रियंका शुक्ला ने अपने उद्बोधन में सभी कर्मचारियों, उनके परिजनों व सभी देशवासियों को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएँ दी। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ के विकास में विभागाध्यक्ष कार्यालय की अहम भूमिका है। शासन के विभिन्न योजनाओं के कार्ययोजना बनाने के साथ ही क्रियान्वयन कराने की प्रमुख रूप से विभागाध्यक्ष कार्यालय का योगदान रहता है।
इस अवसर पर श्री कमल वर्मा प्रांतीय संयोजक छत्तीसगढ़ कर्मचारी अधिकारी फेडरेशन ने अपने उद्बोधन में कहा कि इस दिन देश को अंग्रेजी हुकूमत से आजादी मिली थी। देश की आजादी में शहीद असंख्य स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए उनके बलिदान को याद किया।
अरुणाचल प्रदेश के टेल वन्यजीव अभयारण्य में सींग वाले मेंढक की एक नई प्रजाति मिली है. शोधकर्ताओं का कहना है कि यह खोज भारत की समृद्ध जैव विविधता का एक और सबूत है.
डॉयचे वैले पर प्रभाकर मणि तिवारी की रिपोर्ट-
मेघालय में जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (जेडएसआई) के शोधकर्ताओं ने ईटानगर और पुणे के सहयोगियों के साथ मिलकर अरुणाचल प्रदेश के टेल वन्यजीव अभयारण्य से सींग वाले मेंढक की एक नई प्रजाति को खोज निकाला है. इसे वहां की स्थानीय जनजाति के नाम पर 'जेनोफ्रीस अपाटानी' नाम दिया गया है.
शोधकर्ताओं की टीम में जेडएसआई शिलांग के भास्कर सैकिया और बिक्रमजीत सिन्हा, जेडएसआई पुणे के केपी दिनेश और ए शबनम और जेडएसआई ईटानगर की इलोना जैसिंटा खारकोंगोर शामिल थी. इससे संबंधित रिपोर्ट 'रिकार्ड्स ऑफ द जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया' के ताजा अंक में छपी है.
मेंढक की इस प्रजाति को अलग क्यों माना गया
जेडएसआई शिलांग की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि इस टीम के अध्ययन ने अरुणाचल प्रदेश में माओसन सींग वाले मेंढक (जेनोफ्रीस माओसोनेसिस) की पिछली गलत रिपोर्ट को पलट दिया. 2019 में सैकिया और उनकी टीम ने सीमित अनुवांशिक डेटा के कारण 'जेनोफ्रीस अपाटानी' के नमूने की पहचान गलती से 'जेनोफ्रीस माओसोनेसिस' के रूप में कर ली थी.
उस समय माना गया था कि यह वही प्रजाति है, जो वियतनाम में पाई जाती है. लेकिन 2023 में नए सिरे से शुरू हुए अध्ययन और जांच में दोनों प्रजातियों के बीच कई असमानताएं मिलीं. उसके बाद ही इस टीम ने इस प्रजाति को अलग मानते हुए इसके नामकरण का फैसला किया.
वियतनाम और अरुणाचल की दूरी भी एक फैक्टर
शोध टीम के एक वरिष्ठ सदस्य ने डीडब्ल्यू से बातचीत में जानकारी दी, "2019 में हमने एक अलग प्रजाति की खोज की थी, जो वियतनाम में पाई जाने वाली मेंढक की एक प्रजाति से मिलती-जुलती थी. उस समय हमें लगा कि वह वियतनाम वाली ही प्रजाति है. फिर 2023 में सर्वेक्षण के दौरान हमें पता चला कि वियतनाम की प्रजाति कई अन्य प्रजातियों का मिश्रण है. वहां कुछ और प्रजातियां मिल सकती हैं, जिसे इस पुराने नाम से जाना जाता है."
अधिकारी ध्यान दिलाते हैं कि अरुणाचल प्रदेश और वियतनाम के बीच की भौगोलिक दूरी करीब 1,600 किलोमीटर है. बीच में कई पहाड़ हैं. यह भौगोलिक दूरी दोनों प्रजातियों के अलग-अलग होने का बड़ा संकेत है, लेकिन पहले इस पक्ष पर बहुत ध्यान नहीं दिया गया था. बाद में जब शोधकर्ताओं ने समीक्षा की, तो कई अन्य मापदंडों पर पुनर्मूल्यांकन के बाद नतीजों में अंतर पाया गया. अरुणाचल प्रदेश में मिले मेंढक के कई गुण वियतनाम की प्रजाति से मेल नहीं खा रहे थे.
इससे साफ हुआ कि यह एक अलग प्रजाति है. दोनों जगहों की दूरी और पहाड़ियों को देखते हुए वियतनाम की प्रजाति का यहां तक पहुंचना संभव नहीं था. इसलिए शोधकर्ताओं ने इस प्रजाति को नया नाम देने का फैसला किया. अब भविष्य में इस प्रजाति पर और शोध व अध्ययन होंगे और ये जानकारियां इसकी प्रोफाइल में जुड़ती रहेंगी.
हिमालय में जैव विविधता से संपन्न इलाका
मेंढक की इस नई प्रजाति का नाम अरुणाचल प्रदेश की 'अपाटानी' जनजाति के नाम पर रखा गया है. यह जनजाति मुख्य रूप से अरुणाचल प्रदेश की निचली सुबनसिरी घाटी में रहती है और जंगली वनस्पतियों और जीवों के संरक्षण का महत्व समझती है. टेल वन्यजीव अभयारण्य भी इसी इलाके में है.
इससे पहले शोधकर्ताओं ने 2022 में भी पश्चिमी अरुणाचल प्रदेश में मेंढकों की तीन नई प्रजातियों की खोज की थी. इनमें पश्चिमी कामेंग जिले के सेसा व दिरांग से अमोलोप्स टेराओर्किस और अमोलोप्स चाणक्य के अलावा तवांग जिले से अमोलोप्स तवांग शामिल थे.
शोधकर्ताओं का कहना है कि जेनोफ्रीज अपाटानी की यह खोज भारत की समृद्ध जैव विविधता का एक और सबूत है. इसके साथ ही यह देश की प्राकृतिक विरासत को समझने की दिशा में ऐसे अध्ययनों की अहमियत भी रेखांकित करती है. शोधकर्ताओं ने अपनी रिपोर्ट में भारत में जेनोफ्रीज प्रजातियों के जैव-भौगोलिक वितरण के बारे में भी जानकारी दी है. ये प्रजातियां पूर्वी हिमालय और भारत-बर्मा (अब म्यांमार) के जैव विविधता से समृद्ध हॉटस्पॉटों में पाई जाती हैं.
टेल वन्यजीव अभयारण्य
अरुणाचल प्रदेश हिमालयी जैव विविधता का एक हॉटस्पॉट है. भारत में फूलों और जीवों की जितनी प्रजातियों हैं, उनमें से करीब 40 फीसदी यहां हैं. प्रकृति और पर्यावरण की इस अनमोल दौलत का एक बेहद संपन्न ठिकाना है, लोअर सुबनसिरी जिले का टेल वन्य जीव अभयारण्य. चार नदियां यहां से गुजरती हैं, जिनके नाम हैं पांगे, सीपू, कारिंग और सुबनसिरी.
सिल्वर फिर के घने जंगल और चीड़ के पेड़ों से ढके इस अभयारण्य में क्लाउडेड तेंदुआ, हिमालयी गिलहरी व हिमालयी काले भालू समेत कुछ अहम लुप्तप्राय प्रजातियां रहती हैं. वनस्पतियों के लिहाज से भी यह काफी समृद्ध इलाका है. प्लियोब्लास्टस सिमोन नामक बांस की एक प्रजाति तो देशभर में सिर्फ यहीं उगती है. फर्न व बुरांश समेत कई वनस्पतियों और फूलों से भरे जंगलों के कारण ट्रैकिंग के शौकीनों के बीच यह काफी लोकप्रिय है.
कई ऐसे दुर्लभ पक्षी भी हैं, जो देश में सिर्फ इसी अभयारण्य में देखे जा सकते हैं. साल 2015 में किए गए एक अध्ययन के दौरान यहां पक्षियों की 130 दुर्लभ प्रजातियों को देखा गया था. शोधकर्ताओं की एक टीम ने इसी साल अप्रैल में यहां 'नेप्टिस पिलायरा' नामक तितली की एक नई प्रजाति की खोज की थी. इस शोध से जुड़ी रिपोर्ट 'ट्रॉपिकल लेपिडोप्टेरा रिसर्च' नामक पत्रिका में छपी थी.
तितली की इस दुर्लभ प्रजाति का जिक्र सबसे पहले रूस के एम.मेनेट्रिएस ने किया था. यह तितली मुख्य रूप से पूर्वी साइबेरिया, कोरिया, जापान, मध्य व दक्षिण-पश्चिम चीन के अलावा पूर्वी एशिया के कई इलाकों में पाई जाती है. (dw.com)
वैज्ञानिकों ने चींटियों में ऐसा मेडिकल सिस्टम पाया है जो सिर्फ इंसानों में देखा जाता है. चींटियां अपने घायल साथियों का इलाज करती हैं और जरूरत पड़ने पर टांग काट देती हैं.
युद्ध, बीमारी या किसी हादसे में घायल किसी व्यक्ति का अंग अगर इतना खराब हो जाए कि उसके कारण जान का खतरा बन जाए तो डॉक्टर उस अंग को काट देते हैं. यह एक बेहद जटिल सर्जरी होती है जिसे विशेषज्ञ करते हैं. लेकिन सिर्फ इंसान ऐसी सर्जरी नहीं करते हैं. हाल ही में हुए एक शोध में वैज्ञानिकों ने पाया कि चींटियां भी ऐसी ही सर्जरी करती हैं.
ताजा अध्ययन दिखाता है कि कुछ चींटियां अपने घायल साथियों के अंग काट देती हैं ताकि उनकी जान बचाई जा सके. ‘फ्लोरिडा कारपेंटर' प्रजाति की चींटियों को ऐसा करते देखा गया. भूरे-लाल रंग की ये चींटियां डेढ़ सेंटीमीटर तक लंबी होती हैं और दक्षिण-पूर्वी अमेरिका में पाई जाती हैं.
वैज्ञानिकों ने पाया कि ये चींटियां अपने घोंसलों में रहने वाली अन्य चींटियों का इलाज कर रही थीं. वे अपने मुंह से उनके घाव साफ करती हैं और दांतों से खराब हुए अंग को काट देती हैं. अंग काटने का फैसला भी बहुत सावधानी से किया जाता है. तभी किसी टांग को काटा गया जब चोट ऊपरी हिस्से में लगी हो. अगर चोट निचले हिस्से में थी तो अंग को काटा नहीं गया.
कैसे होती है सर्जरी?
जर्मनी की वुर्त्सबुर्ग यूनिवर्सिटी में प्राणी विशेषज्ञ एरिक फ्रांक इस शोध के मुख्य लेखक हैं, जो ‘करंट बायोलॉजी' नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है. वह बताते हैं, "इस अध्ययन में हमने पहली बार यह बताया है कि इंसान ही नहीं, दूसरे प्राणी भी अपने साथियों की जान बचाने के लिए टांगें काटने जैसी प्रक्रियाओं का इस्तेमाल करते हैं.”
फ्रांक कहते हैं कि चींटियों का यह व्यवहार अद्वितीय है. वह बताते हैं, "मुझे यकीन है कि घायलों की देखरेख का चींटियों का यह मेडिकल सिस्टम प्राणी जगत में बेहद सॉफिस्टिकेटेड है और इसकी तुलना सिर्फ इंसानों में मिलती है.”
ये चींटियां सड़ी हुई लकड़ी में अपने घोंसले बनाती हैं और दुश्मन चींटियों से उसकी रक्षा बहुत जोर-शोर से करती हैं. फ्रांक कहते हैं, "अगर लड़ाई हो जाए तो घायल होने का खतरा रहता है.” चीटियों का अध्ययन प्रयोगशाला में किया गया. पहले भी ऐसे अध्ययन हुए हैं कि चींटियां अपने घायल साथियों की देखरेख करती हैं.
वैज्ञानिकों ने टांग के ऊपरी और निचले हिस्से की चोटों का अध्ययन किया. ऐसी चोटें जंगली चींटियों की तमाम प्रजातियों में पाई जाती हैं जो शिकार करते हुए या अन्य प्राणियों से लड़ते हुए लगती हैं.
शोधकर्ता कहते हैं, "इस बात पर फैसला सोच समझ कर किया जाता है कि टांग काट दी जाए या घाव को भरने के लिए और वक्त दिया जाए. यह फैसला वे कैसे करती हैं, हमें नहीं पता. लेकिन हमें यह पता है कि अलग-अलग इलाज कब किया जाता है.”
किसका इलाज कैसे होगा?
इलाज का यह फैसला जानवरों में खून के रूप में पाए जाने वाले नीले-हरे रंग के द्रव्य के बहाव के आधार पर होता है. फ्रांक कहते हैं, "अगर चोट टांग के निचले हिस्से में हो तो द्रव्य का बहाव बढ़ जाता है. इसका अर्थ है कि चोट लगने के पांच मिनट के भीतर ही पैथोजन शरीर में प्रवेश कर चुके हैं और तब टांग काटने का कोई मतलब नहीं रह जाता. अगर चोट ऊपर के हिस्से में हो तो द्रव्य का बहाव कम होता है और तब सही समय पर और प्रभावशाली रूप से टांग को काटने का वक्त मिल जाता है.”
दोनों ही स्थितियों में चींटियां पहले घाव को साफ करती हैं. इसके लिए वे मुंह से निकलने वाले एक चिपचिपे द्रव का इस्तेमाल करती हैं. साथ ही वे घाव को चूसकर भी साफ करती हैं. अंग को काटने की पूरी प्रक्रिया में कम से कम 40 मिनट से लेकर तीन घंटे तक का समय लगता है. चींटियों की छह टांगें होती हैं और उनमें से एक के कट जाने के बाद भी वे कामकाज कर सकती हैं.
वैज्ञानिकों ने पाया कि ऊपरी हिस्से में चोट लगने पर टांग को काटने के बाद चींटी के जीवित रहने की संभावना 90 से 95 फीसदी तक बढ़ जाती है जबकि अगर घाव का इलाज नहीं किया गया तो उनके बचने की संभावना 40 फीसदी तक थी. अगर चोट टांग के निचले हिस्से में थी तो घाव की बस सफाई की गई और तब बचने की संभावना 75 फीसदी थी. अगर उस घाव का इलाज नहीं किया गया तो बचने की संभावना सिर्फ 15 फीसदी थी.
क्यों इलाज करती हैं चींटियां?
मादा चींटियों को ही यह काम करते पाया गया. फ्रांक बताते हैं, "काम करने वाली चींटियां मादा ही थीं. चींटियों की कॉलोनी में नर चींटियों की भूमिका सीमित होती है. वे बस रानी चींटी के साथ सहवास करते हैं और मर जाते हैं.”
विज्ञान जगत के लिए यह अनसुलझा सवाल है कि अंग काटने जैसे इस व्यवहार की वजह क्या है? फ्रांक कहते हैं, "यह बहुत दिलचस्प सवाल है और समानुभूति की हमारी मौजूदा परिभाषाओं पर कुछ हद तक सवाल खड़े करता है. मुझे नहीं लगता कि चींटियों में सहानुभूति होती है.”
वह कहते हैं कि घायलों के इलाज की एक साधारण वजह हो सकती है. उनके शब्दों में, "इससे संसाधनों की बचत होती है. अगर मैं किसी कर्मचारी को थोड़ी कोशिश करके दोबारा कामकाज करने लायक बना सकता हूं तो ऐसा करने का लाभ बहुत ज्यादा है. अगर कोई चींटी बहुत ज्यादा घायल हो जाए तो चींटियां उसका इलाज नहीं करेंगी और उसे मरने के लिए छोड़ देंगी.”
वीके/एए (रॉयटर्स)
वैज्ञानिकों ने नील नदी की एक लंबे समय से दबी हुई शाखा की खोज की है जो कभी मिस्र में 30 से अधिक पिरामिडों के किनारे बहती थी.
इस खोज से इस रहस्य को सुलझाने की उम्मीद है कि प्राचीन मिस्रवासियों ने प्रसिद्ध स्मारकों को बनाने के लिए बड़े-बड़े पत्थरों को वहां कैसे पहुंचाया.
मिस्र के पिरामिडों के बारे में सबसे आश्चर्यजनक सवालों में से एक यह है कि प्राचीन मिस्रवासी इतने भारी पत्थरों को ऐसी जगह कैसे ले जाने में सक्षम थे, जब इतने भारी पत्थरों को ले जाने के लिए कोई मशीन या वाहन नहीं थे.
अब वैज्ञानिकों को मिस्र के गीजा पिरामिड के पास नील नदी की दबी हुई शाखा मिली है. सदियों पहले नील नदी यहां से होकर गुजरती थी. गीजा पिरामिड के पास जो शाखा मिली है वह सहस्राब्दियों तक रेगिस्तान और खेत के नीचे दबी हुई थी.
इस पर शोध रिपोर्ट गुरुवार को प्रकाशित हुई है. विशेषज्ञों के मुताबिक नदी की यह शाखा यह भी बताती है कि 3,700 से 4,700 साल पहले इन पिरामिडों को एक विशेष श्रृंख्ला में क्यों बनाया गया था. विशेषज्ञों का कहना है कि तब नदी की मौजूदगी के कारण यह हरा-भरा इलाका था और आज जैसा रेगिस्तान नहीं था. यहां पर 31 पिरामिड एक श्रृंखला में बनाए गए थे.
कैसे हुई खोज
प्राचीन मिस्र की राजधानी मेमफिस के पास की पट्टी में गीजा का पिरामिड, दुनिया के सात अजूबों में से एकमात्र जीवित संरचना है. साथ ही खफरे, चेप्स और मायकेरिनोस पिरामिड भी शामिल हैं.
पुरातत्वविदों का लंबे समय से मानना था कि पिरामिडों के पास एक जलमार्ग रहा होगा, जिसका इस्तेमाल प्राचीन मिस्रवासी निर्माण सामग्री के परिवहन के लिए करते थे.
इस शोध के मुख्य लेखक इमान घोनिम ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, "लेकिन कोई भी इस विशाल जलमार्ग के स्थान, आकार या वास्तविक पिरामिड स्थल से निकटता के बारे में निश्चित नहीं था."
शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने नदी के मार्ग का पता लगाने के लिए रडार सैटेलाइट इमेजरी का भी इस्तेमाल किया. रडार के माध्यम से रेत के भीतर नदी संरचनाओं की खोज की गई.
घोनिम ने कहा, "रडार ने उन्हें रेत की सतह में घुसने और दबी हुई नदियों और प्राचीन संरचनाओं समेत छिपी हुई विशेषताओं की छवियां बनाने की अनूठी क्षमता दी."
कम्युनिकेशन अर्थ एंड एनवायरनमेंट जर्नल में प्रकाशित शोध में पिरामिडों के पास रेत के नीचे दबी हुई नील नदी की मौजूदगी की पुष्टि की गई है.
शोधकर्ताओं का कहना है कि ऐसा हो सकता है कि 4,200 साल पहले नदी में भयंकर सूखे के कारण नदी का यह हिस्सा सूख गया और रेत के नीचे दब गया था.
एए/सीके (एएफपी)
सुनामी सामान्य प्राकृतिक आपदाओं में से नही हैं, लेकिन भयंकर तबाही ला सकती हैं. जानिए इनके पीछे की वैज्ञानिक कहानी.
डॉयचे वैले पर क्लेयर रोठ की रिपोर्ट-
आमतौर पर समुद्र की गहराई में टेक्टॉनिक प्लेटों में हलचल होने की वजह से जो भूकंप पैदा होता है, उससे सुनामी आती है. पानी के भीतर अचानक हुई इन हरकतों से बहुत सारा पानी एक साथ तरंग के रूप में समुद्र के एक ओर से दूसरी ओर जाता है. ये लहरें बड़ी भले ना हों, लेकिन बेहद तेज गति से आगे बढ़ती हैं. तकरीबन 800 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से.
ये तरंगें सैकड़ों किलोमीटर लंबी हो सकती हैं. यह भी मुमकिन है कि एक सुनामी लहर समुद्र के एक से दूसरे छोर तक पहुंचने में पूरा दिन लगा दे. किनारे पर पहुंचने की यह गति इस पर निर्भर करती है कि भूकंप समुद्र के नीचे कहां पर आया था.
सुनामी की वजह बनने वाली तरंगें इंसानी आंखों से दिखाई नहीं देतीं, जब तक वे समुद्र तट के नजदीक ना हों. धरती पर वे कई तरंगों की एक रेल सी बनाती हैं और पानी की एक बेहद ऊंची दीवार बनाती हुई आ सकती हैं. इसकी चपेट में इंसान, इमारतें, कारें और पेड़ सब आ सकते हैं.
वर्जीनिया टेक के भूविज्ञान विभाग में प्रोफेसर रॉबर्ट वाइस कहते हैं कि ये तरंगें तट तक लंबे अंतराल में पहुंच सकती हैं, जिसका अनुमान लगाना मुश्किल है. "इनके आने का पैटर्न काफी जटिल हो सकता है, क्योंकि तरंगें ही जटिल होती हैं. आप एक तालाब में दो पत्थर फेंकें और तरंगों का पैटर्न देखें. उनकी संख्या या उनके बीच दूरी का कुछ कहा नहीं जा सकता."
रिक्टर वह स्केल है, जिस पर सीज्मोग्राफ की मदद से भूकंपों की तीव्रता का वर्गीकरण किया जाता है. रिक्टर स्केल पर 1 तीव्रता वाले भूकंप आम हैं और बिना असर डाले चले जाते हैं, जबकि 10 की तीव्रता वाले भूकंप दुर्लभ हैं, लेकिन जान-माल का भयंकर नुकसान पहुंचा सकते हैं.
कहां आती है सुनामी
सुनामी, पैसिफिक सागर में "रिंग ऑफ फायर" के इर्द-गिर्द काफी सामान्य तौर पर आती हैं. एक टेक्टॉनिक प्लेट, जहां ज्वालामुखियों और भूकंपों की लड़ी लगी रहती है. अमेरिका के नोआ (एनओएए) सुनामी प्रोग्राम के मुताबिक, पिछली सदी में जितनी सुनामी आईं, उनमें से 80 फीसदी वहीं पैदा हुईं.
ऐतिहासिक तौर पर सबसे विध्वंसकारी सुनामी 2004 में सुमात्रा और इंडोनेशिया में आई, जब9.1 तीव्रता वाले भूकंपने समुद्र तट को हिलाकर रख दिया. सुनामी लहरों की ऊंचाई 50 मीटर तक थी, जिनसे 5 किलोमीटर दूर तक तबाही हुई. इस आपदा में करीब 23,000 लोग मारे गए थे.
फिर साल 2011 में जापान में आया भूकंप और सुनामी भी भारी तबाही के लिए याद रखे जाते हैं. उस वक्त भी 9.0 तीव्रता वाले भूकंप से पैदा हुई सुनामी लहरों ने करीब 20,000 लोगों की जान ले ली थी. अटलांटिक महासागर, कैरीबियन सागर, भूमध्यसागर और हिंद महासागर में भी सुनामी आई हैं.
क्या सुनामी का अनुमान लगा सकते हैं
सुनामी का एकदम सटीक ढंग से अनुमान लगा पाना मुमकिन नहीं है. वाइस कहते हैं, "इसमें दिक्कत यह है कि भूकंप, जो सुनामी का सामान्य कारण हैं, उनका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता. ना ही यह कहना संभव है कि ऐसा कब, कहां, कितनी गहराई में और किस तीव्रता से होगा." हालांकि, वह कहते हैं कि भूकंप और तट से सुनामी लहरों के टकराने के बीच अंतर कम होता है.
"इस तरह की घटनाओं से निपटने के लिए तैयारी जरूरी है, लेकिन इस तरह की चीजों के लिए तैयार होना काफी मुश्किल है, जिसे लोग अपने पूरे जीवन में शायद एक-दो बार ही अनुभव करेंगे. ताकवर भूकंप और उसके बाद आने वाली सुनामी भले ही बार-बार आती हों, लेकिन किसी एक इलाके में उनका दो बार आना और उतनी ही तबाही फैलाना बेहद दुर्लभ है. यह समझना अहम है कि चेतावनी के साथ-साथ तैयारी भी जरूरी है. दोनों में से किसी एक से काम नहीं चलेगा."
ग्लोबल सुनामी वॉर्निंग सेंटरों में अपने सिस्टम के जरिए महासागरों का स्कैन किया जाता है, ताकि पता लगाया जा सके कि पानी के भीतर भूकंप कब आ सकते हैं. फिर स्थानीय प्रशासन चेतावनी जारी करके खतरे के प्रति आगाह करते हैं. लेकिन संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि ये सिस्टम सर्वव्यापी नहीं हैं. दुनिया के ज्यादातर देशों में इस तरह के सिस्टम भी नहीं हैं और ना ही उनसे जुड़ने के लिए कानूनी जरूरतें पूरी की गई हैं. सुनामी का असर पूरी दुनिया में एक सा नहीं है. गरीब देशों पर मार अक्सर ज्यादा ही पड़ती है. (dw.com)
भारत 2014 में पोलियो मुक्त हो चुका है. लेकिन पड़ोसी देश पाकिस्तान और अफगानिस्तान में अभी भी इसका खतरा बरकरार है. इसकी रोकथाम के लिए पोलियो ड्रॉप्स पिलाई जाती हैं, लेकिन उनके भी अपने खतरे हैं.
पोलिया बेहद तेजी से फैलने वाली वायरल बीमारी है. यह बीमारी पोलियो वायरस के चलते होती है. इससे स्थायी विकलांगता और गंभीर मामलों में मौत भी हो सकती है, खासकर पांच साल से कम उम्र के बच्चों में.
आज दुनिया में दो तरह के पोलियो वायरस मौजूद हैं. पहला- जंगली पोलियो वायरस और दूसरा ओरल पोलियो वैक्सीन (ओपीवी) से उत्पन्न होने वाला पोलियो वायरस.
पाकिस्तान और अफगानिस्तान को छोड़कर, ज्यादातर सभी देशों में जंगली पोलियो वायरस पूरी तरह खत्म हो गया है. वैक्सीन से उत्पन्न होने वाला पोलिया वायरस यमन और मध्य अफ्रीका में पाया गया है.
पोलियो के अलग अलग प्रकार
दोनों ही तरह के पोलियो वायरस के तीन प्रकार होते हैं- टाइप एक, टाइप दो और टाइप तीन. वैक्सीन से उत्पन्न होने वाला वायरस, इनमें से किसी भी प्रकार का हो सकता है. वहीं, जंगली पोलियो का केवल ‘टाइप एक' ही बचा है. टाइप दो को 2015 में और टाइप तीन को 2019 में समाप्त घोषित किया चुका है.
जंगली पोलिया वायरस के सभी प्रकारों में लक्षण एक जैसे हो सकते हैं. लेकिन उनसे हो सकने वाले नुकसान अलग-अलग होते हैं. एक प्रकार के वायरस के खिलाफ मौजूद इम्युनिटी दूसरे प्रकार से वायरस से रक्षा नहीं कर पाती है.
पोलियो के लक्षण क्या हैं?
पोलियो से संक्रमित होने वाले ज्यादातर लोगों में लक्षण नजर नहीं आते हैं. हर चार में से एक व्यक्ति में बुखार, सिरदर्द, गले में खराश और पेट दर्द जैसे लक्षण सामने आते हैं. आमतौर पर ये लक्षण दो से पांच दिन बाद अपने आप चले जाते हैं.
संक्रमित लोगों में एक फीसदी से भी कम में स्थायी लकवे जैसे खतरनाक लक्षण सामने आते हैं. इनके चलते स्थायी विकलांगता हो सकती है. इसके अलावा जब वायरस सांस लेने के लिए जरूरी मांसपेशियों को प्रभावित करता है तो मौत तक हो सकती है.
कई बार जो बच्चे पूरी तरह ठीक हो जाते हैं, उनमें बड़े होने पर पोस्ट-पोलियो सिंड्रोम विकसित हो सकता है. इसमें मांसपेशियों में दर्द होता है, कमजोरी महसूस होती है और लकवा भी मार सकता है.
पोलियो कैसे फैलता है?
यह वायरस व्यक्ति के गले और आंतों को संक्रमित करता है. यह वहां कई हफ्तों तक जीवित रह सकता है. यह संक्रमित व्यक्ति की सांस के साथ बाहर आने वाली छोटी बूंदों और मल के संपर्क में आने से फैलता है.
कम साफ-सफाई वाली जगहों पर यह वायरस भोजन और पीने के पानी को भी दूषित कर सकता है. संक्रमित लोग लक्षण नजर आने से ठीक पहले और दो हफ्ते बाद तक वायरस को दूसरों में फैला सकते हैं.
किन देशों में हैं पोलियो के मामले
पोलियो को अभी दुनियाभर से खत्म नहीं किया जा सका है. जंगली पोलियो अभी भी अफगानिस्तान और पाकिस्तान में मौजूद है. वहीं, अफ्रीका को अगस्त 2020 में जंगली पोलियो से मुक्त घोषित कर दिया गया. लेकिन उसके बाद मलावी और मोजांबिक में बाहर से आए कुछ लोगों में पोलियो के मामले मिल चुके हैं.
जुलाई 2022 में अमेरिका में वैक्सीन से उत्पन्न होने वाला पोलियो वायरस मिला था.यह अमेरिका में सामने आया दशक का पहला मामला था. वैक्सीन से पैदा होने वाला वायरस ब्रिटेन और इजरायल के सीवेज नमूनों में भी पाया गया था.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के महानिदेशक टेड्रोस एडनोम घेब्रेयेसस ने तब इस पर बयान दिया था. उन्होंने कहा था, "यह याद दिलाता है कि अगर हम हर जगह से पोलियो को समाप्त करने के अपने लक्ष्य को पूरा नहीं करते हैं, तो यह विश्व स्तर पर फिर से उभर सकता है.”
बीसवीं सदी के मध्य में पोलियो वैक्सीन विकसित की गई थी. उसके बाद दुनियाभर में टीकाकरण अभियान चलाए गए. जिसके चलते आज सौ से ज्यादा देश पोलियो मुक्त घोषित किए जा चुके हैं. भारत को मार्च 2014 में पोलिया मुक्त घोषित किया गया था.
पोलियो वैक्सीन कितने प्रकार की होती हैं?
पोलिया का कोई इलाज नहीं होता है. लेकिन इसकी रोकथाम के लिए वैक्सीन मौजूद हैं. यह दो तरह की होती हैं. पहली- ओरल पोलियो वैक्सीन (ओपीवी) और दूसरी- निष्क्रिय पोलियो वैक्सीन (आईपीवी).
ओरल वैक्सीन को तरल पदार्थ के रूप में दिया जाता है. इसकी बूंदों को मुंह में डाला जाता है. दुनियाभर में पोलियो के खात्मे में इसकी अहम भूमिका रही है क्योंकि यह वैक्सीन व्यक्ति की रक्षा करती है और वायरस को फैलने से रोकती है.
ओपीवी में जीवित लेकिन कमजोर पोलियोवायरस का इस्तेमाल किया जाता है. इन्हें इस तरह संशोधित किया जाता है कि ये वैक्सीन लेने वाले व्यक्ति को बीमार ना करें.
लेकिन अगर ओपीवी में मौजूद कमजोर वायरस जिंदा रह जाता है और कम साफ-सफाई वाली जगहों तक फैल जाता है. जहां बड़ी संख्या में बिना टीकाकरण वाले लोग रहते हैं तो यह पोलियो फैलाने वाले वायरस के रूप में परिवर्तित हो सकता है.
दूसरी तरफ, निष्क्रिय पोलियो वैक्सीन इंजेक्शन के जरिए दी जाती है. यह लोगों को पोलियो से बचाने में बेहद प्रभावी है. इसमें निष्क्रिय वायरस होता है, जिससे दोबारा वायरस के पनपने का खतरा नहीं होता. हालांकि, अगर व्यक्ति पहले से संक्रमित हो तो यह वायरस को फैलने से नहीं रोक पाती है. इसके उलट, ओरल वैक्सीन ऐसा बखूबी कर लेती है.
आईपीवी की तुलना में ओपीवी ज्यादा सस्ती होती है. इसे देने के लिए किसी स्वास्थ्यकर्मी की जरूरत नहीं होती. लेकिन अब ज्यादा से ज्यादा देश आईपीवी का इस्तेमाल कर रहे हैं, क्योंकि इससे पोलियो वायरस के उत्पन्न होने का खतरा नहीं होता.
पोलियो के लक्षण नजर आने पर कुछ उपाय मदद कर सकते हैं. जैसे- आराम करना और दर्दनिवारक दवा लेना. फिजिकल थेरेपी और ब्रीदिंग असिस्टेंस की मदद भी ली जा सकती है. (dw.com)
पृथ्वी पर नाम मात्र की प्रजातियां हैं जिनकी मादाएं एक वक्त के बाद बच्चे पैदा करना बंद कर देती हैं. ऐसा क्यों होता है? व्हेल मछलियों के अध्ययन से इसका जवाब मिला है.
रजोनिवृत्ति यानी माहवारी का बंद हो जाना एक अनूठी चीज है जो पृथ्वी पर मौजूद बहुत कम प्रजातियों में पाई जाती है. पृथ्वी पर पाए जाने वाले 6,000 से ज्यादा स्तनधारियों में से सिर्फ छह ऐसी प्रजातियां हैं जिनमें रजोनिवृत्ति होती है. इनमें एक तो इंसान हैं, और उसके बाद व्हेल मछिलयां हैं. व्हेल मछलियों में भी सभी प्रजातियों में नहीं बल्कि किलर व्हेल और चार अन्य प्रजातियों रजोनिवृत्ति से गुजरती हैं.
वैज्ञानिक इन व्हेल प्रजातियों पर अध्ययन कर रहे हैं ताकि रजोनिवृत्ति के रहस्यों को और तरतीबवार समझा जा सके. हाल ही में हुए एक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि रजोनिवृत्ति क्यों शुरू हुई. वैज्ञानिकों ने चार व्हेल प्रजातियों की 32 मछलियों के पूरे जीवन का अध्ययन किया. उन्होंने पाया कि जो पांच व्हेल प्रजातियां रजोनिवृत्ति से गुजरती हैं यानी किलर व्हेल, फॉल्स किलर व्हेल, बेलूगा व्हेल, नारवाल्स और पायलट व्हेल, वे अन्य प्रजातियों के मुकाबले लगभग चार दशक ज्यादा लंबा जीती हैं.
इनके जैसी अन्य दांत वाली प्रजातियां जैसे स्पर्म व्हेल और बालीन व्हेल में रजोनिवृत्ति नहीं होती. इंग्लैंड की एक्सटर यूनिवर्सिटी में प्राणी व्यवहार पढ़ाने वाले सैम एलिस, जो इस अध्ययन में मुख्य शोधकर्ता थे, कहते हैं, "शोध के निष्कर्ष हमें रजोनिवृत्ति के विकास के बारे में बहुत अनूठी जानकारी देते हैं. जिन व्हेल मछलियों में रजोनिवृत्ति होती है, उनका प्रजनन चक्र अन्य प्रजातियों जैसा ही है. लेकिन प्रजनन के बाद का जीवन अलग-अलग है.”
मांओं को लंबा जीवन
यह शोध पत्र नेचर पत्रिका में प्रकाशित हुआ है. इसके बारे में एलिस बताते हैं, "जीवन-विकास की प्रक्रिया में मादाओं को ज्यादा लंबा जीवन दिया गया है ताकि मांएं और दादियां अपने परिवारों को प्रजनन के बाद भी सहारा देती रहें. हमने ऐसा इंसानों में भी देखा है, जहां महिलाओं का प्रजनन चक्र मानव प्रजाति के सबसे करीबी प्राणियों जैसा ही होता है लेकिन उनका जीवन कहीं ज्यादा लंबा होता है.”
लंबा जीवन इन व्हेल प्रजातियों की मादाओं को अपने बच्चों का ध्यान रखने के लिए ज्यादा समय देता है और चूंकि उनका प्रजनन चक्र बंद हो जाता है, इसलिए वे अपनी बेटियों के साथ किसी तरह के मुकाबले में भी नहीं होतीं.
सहायक शोधकर्ता, वॉशिंगटन में सेंटर फॉर व्हेल रिसर्च के निदेशक डैरेन क्रॉफ्ट कहते हैं, "जब एक ही समूह में मां और बेटी दोनों एक वक्त पर प्रजनन करती हैं तो संसाधनों को लेकर विवाद की संभावना रहती है क्योंकि दोनों ही अपने बच्चों को प्राथमिकता देती हैं. ऐसा होना और बढ़ जाएगा अगर मादाएं लंबे समय तक बच्चे जनती रहें. प्रजनन बंद हो जाने से इस विवाद की संभावना कम हो जाती है.”
बुजुर्ग मादाओं का व्यवहार अलग
अमेरिका के पश्चिमी तट पर रहने वालीं किलर व्हेल्स के अध्ययन में पाया कि मादाएं 40 वर्ष की उम्र में प्रजनन बंद कर देती हैं लेकिन अक्सर 60 या 80 साल से ज्यादा जीती हैं. जबकि नर व्हेल 40 साल से पहले ही मर जाती हैं.
यह अध्ययन दिखाता है कि नानी व्हेल मछली अपनी बेटी और नाती-नातिनों को भोजन और सुरक्षा के रूप में लंबे समय तक सहारा देती हैं.
एलिस बताते हैं, "हमने पाया कि जिन बच्चों के पास प्रजनन चक्र से मुक्त हो चुकी नानी का सहारा होता है, उनके जिंदा रहने की संभावनाएं अन्यों के मुकाबले ज्यादा होती हैं. एक अन्य शोध बताता है कि जब संसाधन कम होते हैं, तब मादाएं ही समूह का नेतृत्व करती हैं, जो दिखाता है कि जीवन के बारे में ज्यादा जानकारी उन्हें संसाधनों की ओर नेतृत्व की क्षमता देती है.”
ये बुजुर्ग मादाएं मछलियां भी पकड़ती हैं और उन्हें आधा काटकर परिवार के अन्य सदस्यों में बांटती हैं. ऐसा व्यवहार युवा मछलियों में बहुत कम देखा जाता है जबकि नर मछलियों में तो लगभग नहीं होता.
शोधकर्ता कहते हैं कि रजोनिवृत्ति इंसानों और व्हेल मछलियों में अलग-अलग विकसित हुई है. इन दोनों का साझा पूर्वज नौ करोड़ साल पहले हुआ था.
क्रॉफ्ट कहते हैं, "जीवन के विकास के लिहाज से देखा जाए तो प्रजनन चक्र बंद हो जाने के बाद के जीवन को समझना मुश्किल है. अधिकतर प्रजातियों में विकास चक्र मादाओं को जीवन के अंत तक प्रजनन का गुण देता है ताकि वे अपने जीन आने वाली पीढ़ियों में पहुंचा सकें. तो इंसानों और दांतों वाली व्हेल मछलियों में रजोनिवृत्ति कैसे विकसित हुई? यह नया विश्लेषण बताता है कि रजोनिवृत्ति का विकास जीवन की अवधि बढ़ने के साथ हुआ है लेकिन प्रजनन की अवधि नहीं बढ़ी."
वीके/एए (रॉयटर्स)
विज्ञान कहता रहा है कि मानव के पूर्वजों की पूंछ हुआ करती थी. तो फिर यह पूंछ कब और कैसे गायब हुई होगी? रिसर्चरों ने पहली बार इसका एक वैज्ञानिक कारण ढूंढने में सफलता हासिल की है.
मानव के पूर्वजों की पूंछ होती थी, तो फिर हमारी क्यों नहीं है? करीब दो से ढाई करोड़ साल पहले जब बंदरों से विकसित होकर कपि की प्रजाति तैयार हुई, तो इंसान के जीवनवृक्ष से पूंछ अलग हो गया. डार्विन के जमाने से ही वैज्ञानिकों को यह सवाल उलझाता रहा है कि आखिर यह कैसे हुआ होगा?
अब रिसर्चरों ने कम-से-कम एक ऐसे प्रमुख जेनेटिक बदलाव की पहचान कर ली है, जिसकी वजह से यह परिवर्तन हुआ होगा. 28 फरवरी को नेचर जर्नल में छपी एक रिसर्च रिपोर्ट में यह दावा किया गया है. रिपोर्ट के सह लेखक और बोर्ड इंस्टिट्यूट के आनुवांशिकी विज्ञानी बो जिया ने बताया, "हमने एक महत्वपूर्ण जीन में एक म्यूटेशन को खोजा है."
बिना पूंछ वाले चूहे
रिसर्चरों ने मानव समेत कपियों की छह प्रजातियां और पूंछ वाले बंदरों की 15 प्रजातियों के जीनोम की तुलना की, ताकि अलग-अलग समूहों में प्रमुख अंतर की पहचान की जा सके. एक बार जब उन्होंने म्यूटेशन को खोज लिया, तो फिर जीन एडिटिंग टूल सीआरआईएसपीआर के जरिए अपने सिद्धांत का परीक्षण किया. इसमें उन्होंने चूहों के भ्रूणों में उसी जगह परिवर्तन किए. इसके बाद उन भ्रूणों से जो चूहे पैदा हुए, उनकी पूंछ नहीं थी.
जिया ने सावधान करते हुए कहा है कि मुमकिन है, दूसरे जेनेटिक बदलावों ने भी इंसान की पूंछ के खत्म होने में भूमिका निभाई हो.
इसके साथ ही एक बड़ा सवाल यह भी है कि क्या पूंछ नहीं होने से कपियों के पूर्वजों और फिर इंसानों को धरती पर जीने में कोई मदद मिली थी? या फिर यह महज एक म्यूटेशन की वजह से हुआ और धरती पर इंसानों की आबादी दूसरी वजहों से बढ़ी?
क्लेमसन यूनिवर्सिटी के आनुवांशिकी विज्ञानी मिरियम कोंकेल का कहना है, "यह संयोगवश हुआ हो सकता है, लेकिन मुमकिन है कि इससे विकास की प्रक्रिया में बहुत बड़ा फायदा मिला हो." मिरियम कोंकेल इस रिसर्च में शामिल नहीं हैं.
पूंछ नहीं होने के फायदे
पूंछ के नहीं होने से मदद मिली होगी, इसे लेकर कई सिद्धांत हैं. इनमें से एक तो यह है कि पूंछ रहित होने पर मानव आखिरकार सीधे खड़े होकर चलने में सफल हुआ. स्मिथसोनियन इंस्टिट्यूट के ह्यूमन ओरिजिंस प्रोजेक्ट के निदेशक रिक पॉट्स का कहना है कि पूंछ का नहीं होना कई कपियों के लिए शरीर को लंबवत रखने की दिशा में पहला कदम रहा होगा.
यहां तक कि पेड़ों पर रहना छोड़ने से पहले ही यह हुआ होगा. आज भी सारे कपि जमीन पर नहीं रहते हैं. ओरांगउटन और गिब्बॉन बिना पूंछ वाले कपि हैं और ये अब भी पेड़ों पर ही रहते हैं. हालांकि पॉट ने ध्यान दिलाया है कि इनकी चाल बंदरों से काफी अलग होती है.
बंदर पेड़ों की एक शाखा से दूसरी शाखा पर दौड़-भाग करते हैं और इस दौरान पूंछ का इस्तेमाल संतुलन बनाने में करते हैं. दूसरी तरफ कपि पेड़ की शाखाओं के नीचे लटकते हैं, एक से दूसरी शाखा पर जाने के दौरान भी वो लटक-लटक कर ही चलते हैं. इस दौरान उनका शरीर लंबवत सीधा होता है.
50 करोड़ साल पहले पूंछ लगभग सभी कशेरुकी जीवों के शरीर का अनिवार्य हिस्सा थी. वैज्ञानिकों का कहना है कि इसके खत्म होने से शायद हमारे पूर्वजों को पेड़ों से उतर कर जमीन पर रहने में मिली हो.
न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के जीवविज्ञानी इताई याना भी इस रिसर्च रिपोर्ट के सहलेखक हैं. उनका कहना है कि पूंछ का खत्म होना निश्चित रूप से एक बड़ा बदलाव था. हालांकि इसके कारण का निश्चित तौर पर पता लगाने का एक ही तरीका है, "टाइम मशीन का आविष्कार."
एनआर/एसएम (एपी, रॉयटर्स)
लॉरिक एसिड नारियल में पाया जाता है। डॉक्टर नारियल के इसी गुण के कारण रोजाना इसके इस्तेमाल पर जोर देते हैं। लॉरिक एसिड का बायलॉजिकल नाम मोनोलॉरिन है जो सबसे ज्यादा मां के दूध में पाया जाता है। मां का दूध बच्चों के शरीर का इम्यून सिस्टम बढ़ाता है।
लॉरिक एसिड का उपयोग शरीर में मोनोलॉरीन तैयार करने में होता है, जो शरीर की प्रतिरोध क्षमता बढ़ाने में अहम भूमिका निभाता है। यह फैटी एसिड का सह-उत्पाद होता है। इसमें बैक्टीरिया, वायरस और फंगस का मुकाबला करने की ताकत होती है। मां के दूध के बाद लॉरिक एसिड का दूसरा सबसे अच्छा स्रोत नारियल तेल है, जिसमें सतृप्त वसा का 50 प्रतिशत भाग लॉरिक एसिड होता है। मोनोलॉरिन कुदरत के बेहतर एंटीबॉयटिक के रूप में कार्य करता है, जिसके साइड इफेक्ट भी नहीं हैं।
* पृथ्वी का एक दिन 23 घंटे 56 मिनट और 4.091 सेकेंड का होता है।
* पृथ्वी का घनफल एक ट्रिलीयन घन किमी है।
* पृथ्वी पूरी तरह से गोल नहीं है। घू्र्णन से धु्रवों पर चपटी है। धु्रवों से व्यास 12,713.6 किमी (7882.4 मील) है लेकिन विषुवत पर 12,756.2 किमी (7908.8 मील ) है। दोनो में अंतर 43 किमी का है, जो 0.3 प्रतिशत है, यह ज़्यादा नहीं है लेकिन है।
* पृथ्वी थोड़ी चपटी तो है लेकिन सूर्य और चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण उसे और चपटा करते है जिसे हम ज्वार भाटा कहते हैं। यह प्रभाव सागर पर लगभग एक मीटर का होता है लेकिन ठोस ज़मीन पर भी यह आधा मीटर होता है।
* ऐसी कोई जगह नहीं है जहां पृथ्वी का वातावरण समाप्त हो कर अंतरिक्ष प्रारभ होता है। वातावरण उंचाई के साथ पतला होता जाता है। आधिकारिक रूप से 100 किमी ऊंचाई पर अंतरिक्ष प्रारंभ माना जाता है जिसे कारमन रेखा कहते है। इस ऊंचाई पार करने वाले को अंतरिक्ष यात्री कहा जाता है।
* चंद्रमा का व्यास पृथ्वी का एक चौथाई है, जो उसे मातृ ग्रह की तुलना में सबसे बड़ा उपग्रह बनाता है। वैसे शेरान जो प्लूटो का सबसे बड़ा उपग्रह है, प्लूटो के व्यास के आधे से ज़्यादा व्यास का है। लेकिन अब प्लूटो ग्रह नहीं है, इसलिए चंद्रमा विजेता है!
* चंद्रमा हमारी कल्पना ज़्यादा दूर है। यदि हम पृथ्वी बास्केटबाल की गेंद माने तो चंद्रमा 7.4 मीटर दूरी पर एक टेनिस की गेंद है।
* पृथ्वी का वातावरण विद्युत चुंबकीय विकिरण के एक छोटे भाग को ही पार होने देता है जिसे हम प्रकाश कहते है, अन्य मुख्य भाग जैसे अवरक्त , पराबैंगनी, क्ष किरण और गामा किरण रोक दी जाती है। यह सब ख़तरनाक विकिरण है, अन्यथा जीवन संभव नहीं था।
* पृथ्वी गरम हो रही है और यह एक तथ्य है।
* पृथ्वी पर 200 से कम उल्कापात से बने क्रेटर हंै, जबकि चंद्रमा पर वे अरबों में है। पृथ्वी के कई क्रेटर हवा पानी से नष्ट हो चुके हंै और वे करोड़ों वर्ष पूराने है जबकि चंद्रमा पर वे नए हंै।
* पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा एक दीर्घ वृत्त में करती है। पृथ्वी सूर्य की सबसे समीपस्थ स्थिति में 147.1 मिलियन किमी (91.3 मिलियन मील) तथा दूरस्थ स्थिति 152.1 मिलियन किमी (94.3 मिलियन मील ) दूर होती है।
* यदि आप पृथ्वी के समस्त पानी की एक बूंद बनाएं तो वह 1400 किमी (860 मील ) व्यास मात्र की ही होगी।
* पृथ्वी के वातावरण का वजऩ 5000 ट्रिलीयन टन है।
* पृथ्वी अब तक का ज्ञात इकलौता ग्रह है जिस पर जीवन है!
दुनिया में सबसे ऊंची इमारत दुबई के बुर्ज खलीफा और चीन के कैंटन टावर को माना जाता था, लेकिन जापान ने भी अपनी सबसे ऊंची इमारत टोक्यो स्काई ट्री तैयार की है। 634 मीटर ऊंचाई वाली इस इमारत का नाम 17 नवंबर 2011 को गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड में दुनिया की सबसे ऊंची इमारत के रूप में दर्ज हुआ। 23 मई 2012 में टोक्यो स्काई टावर का उद्घाटन हुआ और इसके रेस्तरां और शॉपिंग मॉल के दरवाजे आम लोगों के लिए खोल दिए गए।
स्काई टावर का खास मकसद उसे ब्रॉडकास्टिंग टावर के रूप में खड़ा करना भी था। इस इमारत की एक और खासियत है इसकी भूकंप झेलने की क्षमता। ढांचे का मुख्य आंतरिक खंबा टावर के जमीन से 125 मीटर ऊपर बाहरी हिस्से से इस तरह से जुड़ा है कि पूरे ढांचे को मजबूती देता है। वहां से लेकर 375 मीटर तक की ऊंचाई तक यह खम्बा बीच में तेल की परतों के साथ इमारत से जुड़ा है। इसकी वजह से भूकंप की स्थिति में ये परतें गद्दे का काम करती हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार अल नीनो की आवृत्ति और उसकी चंचलता जलवायु में बदलाव से नहीं जुड़ी हैं । अल नीनो एक मौसमी प्रभाव है, जो हर पांच साल के बाद उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर पर दस्तक देता है। गर्म होती जलवायु का अल नीनो पर क्या असर होता है यह जानने के लिए रिसर्च में जुटे वैज्ञानिकों ने प्राचीन मूंगों के जीवाश्मों में मासिक विकास का अध्ययन किया। ये जीवाश्म प्रशांत महासागर के दो द्वीपों पर मिले थे। तापमान और अवक्षेपण की कई सदियों में गुजरी स्थिति को दोबारा पैदा कर इसके असर का पता लगाया गया। रिसर्च में अल नीनो की आवृत्ति और तीव्रता के आंकड़ों की तुलना करने पर पता चला कि बीसवीं सदी में इन दोनों में इजाफा हुआ है।
हालांकि आंकड़ों के लिहाज से यह काफी अहम है और पर्यावरण में बदलाव से इसे जोड़ा जा सकता है, लेकिन मूंगों के जीवाश्म का इतिहास बताता है अल नीनो के दक्षिणी स्पंदन में भी पिछली सदी में काफी बदलाव आए हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसे में यह साफ नहीं हैं कि पिछले दशकों में जो बदलाव दिखे हैं वह कार्बन डाइ ऑक्साइड की बढ़ती मात्रा के कारण पर्यावरण में हो रहे बदलाव से जुड़े हैं या नहीं।
अमेरिका के नेशनल साइंस फाउंडेशन ने यह रिसर्च कराया जो साइंस जर्नल में छपा है। इस रिसर्च में स्क्रिप्स इंस्टीट्यूट ऑफ ओशेनोग्राफी और यूनिवर्सिटी ऑफ मिनेसोटा के वैज्ञानिकों ने भी योगदान दिया। अल नीनो हर पांच साल बाद आता है। इसमें प्रशांत महासागर की सतह पर मौजूद पानी को चलाने वाली हवाएं कमजोर पड़ जाती हैं। इसके कारण पश्चिमी प्रशांत में गर्म पानी का एक विशाल भंडार बनता चला जाता है जो आखिरकार महासागर के पूर्वी हिस्सों की ओर बढ़ता है। इस वजह से पूर्वी हिस्से वाले इलाके के देशों की बारिश में बदलाव, बाढ़, भूस्खलन की आपदाएं आती हैं। अल नीनो को एक ठंडा दौर बाहर निकलाता है इसे ला नीना कहते हैं जो अकसर अल नीनो के अगले साल आता है।
1. निम्नलिखित में से कौन सा धात्विक खनिज है?
(अ) हीरा (ब) कोयला (स) जिप्सम (द) सोना
2. क्रिवायरॉग क्षेत्र से कौन सा खनिज प्राप्त किया जाता है?
(अ) बॉक्साइट (ब) मैंगनीज (स) लौह अयस्क (द) खनिज तेल
3. मेसाबी रेंज किससे संबंधित है?
(अ) लौह अयस्क (ब) पेट्रोलियम (स) कोयला (द) सोना
4. निम्नलिखित में से किस एक देश को यूरेनियम सिटी स्थापित करने का श्रेय दिया जाता है?
(अ) आस्ट्रेलिया (ब) कनाडा (स) रूस (द) संयुक्त राज्य अमेरिका
5. मध्य पूर्व के खनिज तेलों में अग्रणी उत्पादक है?
(अ) ईरान (ब) इराक (स) कुवैत (द) सऊदी अरब
6. ओपेक देशों में खनिज का तेल सबसे अधिक उत्पादन करता है?
(अ) कुवैत (ब) यूएई (स) सऊदी अरब (द) वेनेजुएला
7. गैर तेल निर्यातक देशों में खनिज तेल उत्पादन में अग्रणी देश कौन सा है?
(अ)संयुक्त राज्य अमेरिका (ब)रूस (स) दक्षिण कोरिया (द) जर्मनी
8. अजंता चित्रकला का संबंध मूल रूप से किस धर्म से है?
(अ) जैन धर्म (ब) ब्राह्मïण धर्म (स) शाक्त धर्म (द) बौद्घ धर्म
9. आनंदमठ, नामक बांगला उपन्यास के लेखक कौन हैं?
(अ) बंकिम चंद्र चटर्जी (ब) शरद चंद्र चटर्जी (स) रवीन्द्रनाथ टैगोर (द) एस.सी. बोस
10. किस कानून के द्वारा भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन समाप्त हुआ है?
(अ) रेग्यूलेटिंग एक्ट, 1773 (ब) पिट का इंडिया एक्ट, 1784 (स) गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट, 1858 (द) मोर्ले-मिन्टो एक्ट, 1909
11. किस युग में ब्राह्मïण क्षत्रियों की तुलना में हीन माने जाते थे?
(अ) वैदिक युग (ब) बौद्घ युग (स) मौर्य युग (द) मौर्योत्तर युग
12. बौद्घ साहित्य में कितने पिटक हैं?
(अ) एक (ब) दो (स) तीन (द) चार
13. मेरीकल्चर में किसका उत्पादन किया जाता है?
(अ) वृक्षों तथा झाडिय़ों का (ब) फूलों का (स) समुद्री जीवों का (द) मधुमक्खियों का
14. उष्ण कटिबंधीय महासागरों में मत्स्य उद्योग का विकास काफी कम हुआ है। इसका कारण क्या है?
(अ) छिछले सागरों का अभाव (ब) मांग की कमी (स) संरचनात्मक सुविधाओं का अभाव (द) उपर्युक्त सभी
15. पृथ्वीराज रासो की रचना किसने की?
(अ) चंदवरदाई (ब) गुणाढ्य (स) अमीर खुसरो (द) सामदेव
16. पांड्य वंश के शासकों का संबंध मूल रूप से निम्र में से किस क्षेत्र से था?
(अ) मदुरै (ब) तंजौर (स) आंध्र प्रदेश (द) कावेरीपत्तन
17. मौर्यकाल में ‘भाग’ शब्द का इस्तेमाल निम्र में से किसके लिए किया जाता था?
(अ) गृह कर (ब) भूमि कर (स) जल कर (द) हिरण्य
18. निम्नलिखित में से कौन सीमांत गांधी के नाम से जाने जाते थे?
(अ) सर सैयद अहमद खां (ब) सैयद अमीर अली (स) अबुल कलाम आजाद (द) अब्दुल गफ्फार खां
19. भारत में गदर पार्टी के संस्थापक कौन थे?
(अ) वासुदेव बलवंत फडक़े (ब) विनय दामोदर सावरकर (स) लाला हरदयाल (द) भगत सिंह
20. जलियांवाला बाग हत्याकांड की जांच के लिए बनाई गई समिति का नाम क्या था?
(अ) साइमन कमीशन (ब) हंटर कमीशन (स) रेमण्ड कमीशन (द) लिनलिथगो कमीशन
21. जब चंद्रमा, पृथ्वी के सबसे नजदीक होता है, तो ऐसी स्थिति कहलाती है?
(अ) छाया (ब) प्रच्छाया (स) अपभू (द) उपभू
22. इटली का एकीकरण कब हुआ?
(अ) 1959-1970 के बीच (ब) 1880-1891 के बीच (स) 1859-1870 के बीच (द) 1759-1770 के बीच
23. भारत की जनगणना 2001 में विकलांग जनसंख्या की गणना के लिए कितने प्रकार की विकलांगताएं सम्मिलित की गई थीं?
(अ) पांच (ब) छह (स) तीन (द) चार
24. तेरह अप्रैल, 1919 को जलियांवाला बाग में लोग किस का विरोध करने के लिए एकत्रित हुए थे?
(अ) साइमन कमीशन (ब) मॉन्टेग्यू चेम्सफोर्ड रिपोर्ट (स) रौलेट एक्ट (द) गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट
25. मिट्टी की पारगम्यता किसकी संक्रिया होती है?
(अ) गठन एवं गहराई की (ब) सरंध्रता एवं गठन की (स) सरंध्रता एवं गहराई की (द) सरंध्रता, गठन एवं गहराई की
26. राष्टï्रीय मानव अधिकार आयोग में कितने सदस्यों का प्रावधान है?
(अ) 9 (ब) 10 (स) 7 (द) 8
27. निम्नलिखित में से क्या अनुसूचित जनजाति की विशेषता नहीं है?
(अ) अंतर्विवाह (ब) सामान्य संस्कृति (स) निश्चित भू-भाग का अभाव (द) सामान्य भाषा
28. पृथ्वी के चारों ओर एक विशेष वृत्तीय कक्षा में विभिन्न द्रव्यमानों के दो कृत्रिम उपग्रह निम्र में से किस स्थिति में घूम सकते हैं?
(अ) नियम चाल से (ब) नियम संवेग से (स) नियम गतिज ऊर्जा से (द) असमान वेग से
29. चीन के प्रधानमंत्री कौन हैं?
(अ) ली केकियांग (ब) वेन जियाबाओ (स) ली पेंग (द) इनमें से कोई नहीं
30. भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष कौन हैं?
(अ) कपिल देव (ब) शाहरूख खान (स) एन. श्रीनिवासन (द) सौरभ गांगुली
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सही जवाब- 1.(द)सोना, 2.(स)लौह अयस्क, 3.(अ) लौह अयस्क, 4.(ब) कनाडा, 5.(द) सऊदी अरब, 6.(स) सऊदी अरब, 7.(अ) संयुक्त राज्य अमेरिका, 8.(द) बौद्घ धर्म, 9.(अ) बंकिम चंद्र चटर्जी, 10.(स) गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट, 1858, 11.(ब) बौद्घ युग, 12.(स) तीन, 13.(स) समुद्री जीवों का, 14.(द) उपर्युक्त सभी, 15.(अ) चंदवरदाई, 16.(अ) मदुरै, 17.(ब) भूमि कर, 18.(द) अब्दुल गफ्फार खां, 19.(स) लाला हरदयाल, 20.(ब) हंटर कमीशन, 21.(द) उपभू, 22.(स) 1859-1870 के बीच, 23.(अ) पांच, 24.(स) रौलेट एक्ट, 25.(द) सरंध्रता, गठन एवं गहराई की, 26.(स) 7, 27.(स) निश्चित भू-भाग का अभाव, 28.(अ) नियम चाल से, 29.(अ) ली केकियांग, 30.(स) एन. श्रीनिवासन।
कन्हेरी गुफाएं महाराष्ट्र के पश्चिमी घाट पर संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान के परिसर में स्थित हैं। कन्हेरी की गुफाओं में एक पहाड़ को तलाशकर लगभग 109 गुफाओं का निर्माण किया गया है। यह बौद्ध धर्म की शिक्षा हीनयान और महायान का एक बड़े केन्द्र रहा है।
कन्हेरी के चैत्यगृह की बनावट कार्ले के चैत्यगृह जैसी ही है। कन्हेरी के चैत्यगृह के प्रवेश द्वार के सामने एक आंगन है, जो अन्य किसी चैत्यगृह में नहीं मिलता है। यहां से यज्ञश्री शातकर्णी का एक अभिलेख प्राप्त हुआ है, जिसमें शकों और सातवाहनों के बीच वैवाहिक संबंधों का उल्लेख है।
कन्हेरी शब्द कृष्णागिरी यानी काला पर्वत से निकला है। इनको बड़े बड़े बेसाल्ट की चट्टानों से तराशा गया है। कन्हेरी का यह गिरिमंदिर बंबई से लगभग 25 मील दूर सालसेट द्वीप पर स्थित पर्वत की चट्टान काटकर बना बौद्धों का चैत्य है। हीनयान संप्रदाय का यह चैत्यमंदिर आंध्रसत्ता के प्राय: अंतिम युगों में दूसरी शती ई. के अंत में निर्मित हुआ था। इसकी बाहरी दीवारों पर जो बुद्ध की मूर्तियां बनी हैं, उनसे स्पष्ट है कि इसपर महायान संप्रदाय का भी बाद में प्रभाव पड़ा और हीनयान उपासना के कुछ काल बाद बौद्ध भिक्षुओं का संबंध इससे टूट गया था जो गुप्त काल आते आते फिर जुड़ गया, यद्यपि यह नया संबंध महायान उपासना को अपने साथ लिए आया, जो बुद्ध और बोधिसत्वों की मूर्तियों से प्रभावित है। इन मूर्तियों में बुद्ध की एक मूर्ति 25 फुट ऊंची है।
गुफा में स्तंभों की संख्या 34 है और समूची गुफा की लंबाई 86 फुट, चौड़ाई 40 फुट और ऊंचाई 50 फुट है। स्तंभों के ऊपर की नर-नारी-मूर्तियों को कुछ लोगों ने निर्माता दंपति होने का भी अनुमान किया है जो संभवत: अनुमान मात्र ही है। कोई प्रमाण नहीं जिससे इनको इस चैत्य का निर्माता माना जाए। कन्हेरी की गणना पश्चिमी भारत के प्रधान बौद्ध दरीमंदिरों में की जाती है।
अश्मक या अस्सक पौराणिक 16 महाजनपदों में से एक था। नर्मदा और गोदावरी नदियों के बीच स्थित इस प्रदेश की राजधानी पाटन थी। आधुनिक काल में इस प्रदेश को महाराष्ट्र कहते हैं।
बौद्ध साहित्य में इस प्रदेश का, जो गोदावरी तट पर स्थित था, कई स्थानों पर उल्लेख मिलता है। महागोविन्दसूत्तन्त के अनुसार यह प्रदेश रेणु और धृतराष्ट्र के समय में विद्यमान था। इस ग्रन्थ में अस्सक के राजा ब्रह्मदत्त का उल्लेख है।
सुत्तनिपात में अस्सक को गोदावरी-तट पर बताया गया है। इसकी राजधानी पोतन, पौदन्य या पैठान(प्रतिष्ठानपुर) में थी। पाणिनि ने अष्टाध्यायी में भी अश्मकों का उल्लेख किया है। सोननंदजातक में अस्सक को अवंती से सम्बंधित कहा गया है।
अश्मक नामक राजा का उल्लेख वायु पुराण और महाभारत में है। सम्भवत: इसी राजा के नाम से यह जनपद अश्मक कहलाया। ग्रीक लेखकों ने अस्सकेनोई लोगों का उत्तर-पश्चिमी भारत में उल्लेख किया है। इनका दक्षिणी अश्वकों से ऐतिहासिक सम्बन्ध रहा होगा या यह अश्वकों का रूपान्तर हो सकता है।
मडिकेरी एक नगर है, जो मधुकेरी भी कहलाता है। पहले यह मरकरा नगर के नाम से भी प्रसिद्ध था। यह नगर दक्षिणी कर्नाटक भूतपूर्व मैसूर राज्य दक्षिण-पश्चिम भारत का हिस्सा है।
यह नगर पश्चिमी घाट में 1,160 मीटर की ऊंचाई पर मैसूर से मंगलोर जाने वाले राष्टï्रीय राजमार्ग पर स्थित है। 1681 में मुड्डïा राजा ने इस मध्यवर्ती लेकिन दुर्गम क्षेत्र को कुर्ग के स्वतंत्र हिंदू वंश की राजधानी के लिए चुना। 1812 में लिंगे राजा द्वारा बनवाया गया दुर्ग और पहाड़ी की चोटी पर ओंकारेश्वर मंदिर इस शांत नगर के निकट स्थित है। एक सुंदर छोटे बगीचे में स्थित राजा का स्थान मनोहारी दृश्य उत्पन्न करता है।
यहां एक विधि महाविद्यालय समेत कई महाविद्यालय हैं, जो मैसूर विश्वविद्यालय से संबद्घ हैं। इसके आसपास के क्षेत्र में कॉफी और चाय के बगान हैं। इसके निकट के क्षेत्रों में कई वन्यजीव अभयारण्य और आरामगाह हैं। जिनमें बांदीपुर राष्टï्रीय उद्यान, एक बाघ संरक्षण क्षेत्र, मछली ,मगरमच्छ,पक्षियों,हिरन व अन्य जानवरों का प्राकृतिक आवास भीमेश्वरी और मछली पकडऩे का कैंप भी है, भद्र वन्यजीव अभयारण्य बिलिगिरि पर्वतीय अभयारण्य काबिनी संरक्षित क्षेत्र, नागरहोल राष्टï्रीय उद्यान ,पक्षियों के लिए विख्यात रंगानाथिट्टïे और बाइसन नदी आश्रयणी के साथ दांडेली वन्यजीव अभयारण्य शामिल हैं। यहीं की जनसंख्या (2001 के अनुसार) 32 हजार 286 है।
कोटदीजी प्राचीन सिंधु सभ्यता का स्थल है, जो वर्तमान में पाकिस्तान के सिन्धु प्रांत के खैरपुुर में स्थित है। वर्ष 1955 में फजल अहमद खान ने इस स्थल की नियमित खुदाई करवाई । यहां पर प्राचीन हड़प्पा संस्कृति की अवस्था नजर आती है, जहां पत्थरों का इस्तेमाल होता था। संभवत: पाषाण युगीन सभ्यता का विकास यहां हुआ है। यहां से मुख्य अवशेष के रूप में वाणाग्र, कांस्य की चूडिय़ां, धातु के उपकरण और हथियार प्राप्त हुए हैं।
1. इंटीग्रेटेड सर्किट चिप (आई.सी.) पर किसकी परत लगी होती है?
(अ) सिलिकॉन (ब) निकिल (स) आयरन (द) कॉपर
2. चुंबकीय डिस्क पर किस पदार्थ की परत होती है?
(अ) आयरन ऑक्साइड (ब) फॉस्फोरस पेटॉक्साइड (स) मैग्नीशियम ऑक्साइड (द) सोडियम पेरोक्साइड
3. कंप्यूटर में किसी शब्द की लंबाई किसमें मापते हैं?
(अ) बाइट (ब) बिट (स) मीटर (द) मिमी
4. आधुनिक डिजिटल कंप्यूटर में किस पद्धति का उपयोग किया जाता है?
(अ) द्विआधारी अंक पद्धति (ब) दशमलव अंक पद्धति (स) अनुरूप गणना पद्धति (द) इनमें कोई नहीं
5. कंप्यूटर भाषा स्नह्रक्रञ्जक्र्रहृ किस क्षेत्र में उपयोगी है?
(अ) व्यवसाय (ब) रेखाचित्र (स) विज्ञान (द) वाणिज्य
6. वैसे नाभिक जिनमें न्यूट्रॉनों की संख्या समान, परंतु प्रोटॉनों की संख्या भिन्न हो, कहलाते हैं?
(अ) समइलेक्ट्रॉनिक (ब) समभारिक (स) समस्थानिक (द) समन्यूट्रॉनिक
7. आइसोटोन होते हैं?
(अ) समान संख्या में प्रोटॉन (ब) समान संख्या में न्यूट्रॉन (स) समान संख्या में न्यूक्लियान (द) इनमें से कोई नहीं
8. धब्बारहित लोहा बनाने में लोहे के साथ प्रयुक्त होने वाली महत्वपूर्ण धातु कौन सी है?
(अ) एल्युमीनियम (ब) क्रोमियम (स) टिन (द) कार्बन
9. नाभिकीय ऊर्जा प्राप्त करने के लिए किस तत्व का प्रयोग किया जाता है?
(अ) यूरेनियम (ब) एंटीमनी (स) लेन्थेनम (द) कोबाल्ट
10. नाभिकीय रिएक्टर में ईंधन का काम करता है?
(अ) कोयला (ब) यूरेनियम (स) रेडियम (द) डीजल
11. मच्छर क्वाइल में प्रयोग होने वाला पाइरेथ्रिन प्राप्त होता है?
(अ) एक कवक से (ब) एक बीजीय पौधे से (स) एक कीट से (द) एक जीवाणु से
12. हेरोइन निम्नलिखित में से किससे प्राप्त होता है?
(अ) सुपारी से (ब) भारतीय भाग से (स) अफीम पोस्ता से (द) तंबाकू से
13. निम्नलिखित में से कौन मानव निर्मित धान्य है?
(अ) बौना गेहूं (ब) संकर मक्का (स) ट्रिटीकेल (द) सोयाबीन
14. एकदिवसीय अंतर्राष्टï्रीय क्रिकेट मैच में पॉवर प्ले कौन साइड होता है?
(अ) केवल बैटिंग साइड (ब) केवल बॉलिंग साइड (स) बैटिंग एवं बॉलिंग दोनों साइड (द) अम्पायर की इच्छानुसार
15. अंतर्राष्टï्रीय ओलंपिक समिति के अध्यक्ष का चुनाव कितने वर्षों के लिए होता है?
(अ) चार वर्ष (ब) पांच वर्ष (स) आठ वर्ष (द) दस वर्ष
16. क्रिकेट खेल में स्टम्प्स की चौड़ाई कितनी होती है?
(अ) आठ इंच (ब) दस इंच (स) पांच इंच (द) नौ इंच
17. मानविकी के लिए पूर्णत: समर्पित भारत का पहला विश्वविद्यालय कहां स्थापित किया गया है?
(अ) लखनऊ (ब) दिल्ली (स) जयपुर (द) मुंबई
18. हाइली रिकल्ड माइग्रेन्ट प्रोग्राम के अंतर्गत हजारों भारतीयों को निम्नलिखित में से किस देश में हस्तांतरित किया गया था?
(अ) ब्रिटेन (ब) ऑस्ट्रेलिया (स) न्यूजीलैंड (द) कनाडा
19. प्रसिद्घ पेट्रोनास ट्विन टावर्स कहां स्थित है?
(अ) कुआलालम्पुर में (ब) वाशिंगटन (स) ताइवान (द) काबुल
20. भारत के अंतर्राष्टï्रीय फिल्म महोत्सव में सर्वश्रेष्ठï फिल्म को पुरस्कार स्वरूप क्या भेंट किया जाता है?
(अ) स्वर्ण सिंह (ब)स्वर्ण बा$ज (स)स्वर्ण मयूर (द) स्वर्ण कोयल
21. विद्युत उत्पादन के लिए भूतापीय ऊर्जा का प्रयोग सबसे पहले किस देश में किया गया?
(अ) संयुक्त राज्य अमेरिका (ब) जापान (स) जर्मनी (द) इटली
22. विश्व में कोयला का सबसे बड़ा उत्पादक देश कौन सा है?
(अ) चीन (ब) संयुक्त राज्य अमेरिका (स) भारत (द) रूस
23. सीमेंट उद्योग की स्थापना के लिए निम्न में से किसकी उपस्थिति अधिक प्रभावी होती है?
(अ) कोयला तथा अभ्रक (ब) कोयला तथा लौह अयस्क (स) चूना पत्थर, जिप्सम तथा कोयला (द) चूना पत्थर तथा मैंगनीज
24. किस प्राकृतिक प्रदेश में मानव को अत्यधिक संघर्षमय जीवन व्यतीत करना पड़ता है?
(अ) तृणभूमि प्रदेश में (ब)पश्चिम यूरोपीय प्रदेश में (स) विषुवतरेखीय प्रदेश में (द)उष्ण तथा शीत मरुस्थल प्रदेश में
25. विश्व का सबसे बड़ा मरुस्थल निम्नलिखित में से किस प्राकृतिक प्रदेश में स्थित है?
(अ) उष्ण मरुस्थलीय प्रदेश (ब) भूमध्यसागरीय प्रदेश (स) स्टेपी प्रदेश (द) भूमध्यसागरीय प्रदेश
26. विश्व में सर्वाधिक कागज तैयार करने वाला देश कनाडा किस प्राकृतिक प्रदेश में स्थित है?
(अ) भूमध्यसागरीय प्रदेश (ब) मानसूनी प्रदेश (स) टैगा प्रदेश (द) सवाना प्रदेश
27. सहारा प्रदेश में धूल दानव है?
(अ) प्रात: काल चलने वाली तीव्र आंधी (ब) धूल से युक्त हवा (स) बालुका स्तूपों का खिसकाव (द) धूल भरी वर्षा
28. भूमध्यसागरीय जलवायु क्षेत्रों में जाड़े की ऋतु में वर्षा किस कारण से होती है?
(अ)संवहन धाराओं के कारण (ब)जाड़ों में निम्न दबाव के कारण (स)लौटते हुए मानसून के कारण (द) स्थानीय वायु व्यवस्था के कारण
29. गाय के दूध का रंग किसकी मौजूदगी के कारण थोड़ा पीला होता है?
(अ) जैंथोफिल (ब) राइबोफ्लेविन (स) राइब्यूलोस (द) कैरोटिन
30. अन्न निम्न में से किसका समृद्ध स्रोत है?
(अ)स्टार्च के (ब)ग्लूकोस के (स) फ्रक्टोस के (द) माल्टोस के
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सही जवाब- 1.(अ) सिलिकॉन, 2.(अ) आयरन ऑक्साइड, 3.(ब) बिट, 4.(अ) द्विआधारी अंक पद्धति, 5.(स) विज्ञान, 6.(द) समन्यूट्रॉनिक, 7.(ब) समान संख्या में न्यूट्रॉन, 8.(ब) क्रोमियम, 9.(अ) यूरेनियम, 10.(ब) यूरेनियम, 11.(ब) एक बीजीय पौधे से, 12.(स) अफीम पोस्ता से, 13.(स) ट्रिटीकेल, 14.(अ) केवल बैटिंग साइड, 15.(स)आठ वर्ष, 16.(द) नौ इंच, 17.(ब) दिल्ली, 18.(अ) ब्रिटेन, 19.(अ)कुआलालम्पुर में, 20.(स) स्वर्ण मयूर, 21.(द) इटली, 22.(अ) चीन, 23.(स) चूना पत्थर, जिप्सम तथा कोयला, 24.(द) उष्ण तथा शीत मरुस्थल प्रदेश में, 25.(अ) उष्ण मरुस्थलीय प्रदेश, 26.(स) टैगा प्रदेश, 27.(अ) प्रात: काल चलने वाली तीव्र आंधी, 28.(ब) जाड़ों में निम्न दबाव के कारण, 29.(द) कैरोटिन, 30.(अ)स्टार्च के।
1. कार चलाते समय अपने पीछे के यातायात को देखने के लिए आप किस प्रकार के दर्पण का उपयोग करना चाहेंगे?
(अ) अवतल दर्पण (ब) समतल दर्पण (स) गोलीय दर्पण (द) उत्तल दर्पण
2. मानव आंख की रेटिना पर कैसा प्रतिबिम्ब बनता है?
(अ) वास्तविक तथा उल्टा (ब) वास्तविक तथा सीधा (स) आभासी तथा उल्टा (द) आभासी तथा सीधा
3. किसी अपारदर्शी वस्तु का रंग उस रंग के कारण होता है, जिसे वह?
(अ) अवशोषित करता है (ब) अपवर्तित करता है (स) परावर्तित करता है (द) प्रकीर्णित करता है
4. मायोपिया से क्या तात्पर्य है?
(अ) दूर दृष्टि दोष (ब) निकट दृष्टि दोष (स) वर्णान्धता (द) रतौंधी
5. निम्नलिखित वैज्ञानिक में से कौन अपने बेटों के साथ नोबेल पुरस्कार का सहविजेता था?
(अ) मैक्स प्लांक (ब) अल्बर्ट आइन्स्टाइन (स) विलियम हैनरी ब्रैग (द) एनरिको फर्मी
6. उबलती हुई गंधक को ठंडे जल में डालने पर प्राप्त होता है?
(अ) प्रिज्मीय गंधक (ब) दूधिया गंधक (स) एकनताक्ष गंधक (द) प्लास्टिक गंधक
7. वह कौन सी गैस है, जो स्वयं जलती है लेकिन जलाने में सहायक नहीं होती है तथा सड़े अंडे जैसी गंध देती है?
(अ) नाइट्रोजन (ब) ऑक्सीजन (स) कार्बन डाइऑक्साइड (द) हाइड्रोजन सल्फाइड
8. सिरका को लैटिन भाषा में कहा जाता है?
(अ) फॉर्मिकस (ब) ऐसीटम (स) ब्यूटिरम (द) ऑक्जैलम
9. मांसपेशियों में किस द्रव के एकत्रित होने से थकावट आती है?
(अ) लैक्टिक अम्ल (ब) ऑक्जैलिक अम्ल (स) यूरिक अम्ल (द) पारूविक अम्ल
10. टमाटर की चटनी को अधिक समय तक ताजा रखने के लिए थोड़ी मात्रा में मिलाया जाने वाला यौगिक है?
(अ) सोडियम टार्टरेट (ब) सोडियम क्लोराइड (स) सोडियम बाइकार्बोनेट (द) सोडियम बेन्जोएट
11. पुर्तगालियों से गोवा किस वर्ष मुक्त किया गया?
(अ)1950 (ब) 1961 (स) 1955 (द) इनमें से कोई नहीं
12. किस युग के साथ नुकीले भूरे खुरपे का प्रयोग संबंधित है?
(अ)नवपाषाण युग (ब) पुरापाषाण युग (स) पाषाण युग (द)इनमें से कोई नहीं
13. हिंदी और फारसी दोनों भाषाओं का विद्वान था?
(अ) अकबर (ब) तानसेन (स) अमीर खुसरो (द) बैरम खां
14. मोहम्मद गौरी को सबसे पहले किसने पराजित किया?
(अ) भीम द्वितीय (ब) पृथ्वीराज चौहान (स) जयचंद (द) पृथ्वीराज द्वितीय
15. पोटवार पठार निम्नलिखित में से किस देश में स्थित है?
(अ) वियतनाम (ब) म्यांमार (स) भूटान (द) पाकिस्तान
16. तिब्बत का पठार निम्नलिखित में से कहां स्थित पर है?
(अ) थियानथान तथा काराकोरम के मध्य (ब) थियानशान तथा अल्टाई टांग के मध्य (स) हिमालय पर्वत तथा काराकोरम के मध्य (द) हिमालय पर्वत तथा क्युनलून के मध्य
17. बोलीविया के पठार पर निम्न में से किस धातु का सर्वाधिक उत्खनन किया जाता है?
(अ) कोयला (ब) लिग्नाइट (स) टिन (द) बिटुमिनस
18. उत्तरी पश्चिमी चीन को लोयस मैदान किस प्रकार के जमाव से बना है?
(अ) लावा के जमाव में (ब) रेत व धूलकणों के जमाव से (स) कांप मिट्टी के जमाव से (द) इनमें से कोई नहीं
19. जो पठार चारों ओर से पर्वत मालाओं द्वारा घिरे होते हैं, वे क्या कहलाते हैं?
(अ) गिरिपद पठार (ब) तटीय पठार (स) अंतरापर्वतीय पठार (द) वायव्य पठार
20. भारत में कौनसा बेसिन सबसे बड़ा है?
(अ)सिंधु का बेसिन (ब) महानदी का बेसिन (स) गोदावरी का बेसिन (द) गंगा का बेसिन
21. बंगाल की खाड़ी की ओर जाते हुए गंगा नदी कौनसे राज्य में से नहीं गुजरती है?
(अ) बिहार (ब) उड़ीसा (स) उत्तर प्रदेश (द) पश्चिमी बंगाल
22. चिकित्सक परामर्श देते हैं कि हमें अपना भोजन वनस्पति घी की अपेक्षा तेल में बनाना चाहिए, क्योंकि?
(अ) तेल में असंतृप्त वसाएं होती हैं (ब) तेल में संतृप्त वसाएं होती हैं (स) तेल में संग्रह आसान है (द) तेल सस्ता है
23. कोलेस्टेरोल क्या होता है?
(अ) पर्णहरित का प्रकार (ब) क्लोरोफार्म का एक यौगिक (स)जंतु वसा में उपस्थित वसीय एल्कोहल (द) क्रोमियम लवण
24. कार्बिलान कप किस खेल से संबंधित है?
(अ) विश्व महिला टेबिल टेनिस (ब) विश्व महिला बैडमिंटन (स) विश्व महिला हॉकी (द) विश्व महिला क्रिकेट
25. भारत का सबसे पुरानी हॉकी टूर्नामेंट कौन सा है?
(अ) बेटन कप (ब) ध्यानचंद ट्राफी (स) आगा खां कप (द) ओबेदुल्ला गोल्ड कप
26. ओलंपिक के किसी स्पर्धा के फाइनल तक पहुंचने वाली प्रथम भारतीय महिला कौन है?
(अ) कमलजीत संधु (ब) मेरी डिसूजा (स) शाइनी अब्राहम (द) पी.टी. उषा
27. आधुनिक ओलंपिक को शुरू करने का श्रेय किसे जाता है?
(अ) पियरे दि कुबर्तिन (ब) अर्नेस्ट कर्टियस (स)जुआन एंटानियो समारांच (द) गारफील्ड
28. शब्द संक्षेप आर.पी.एफ. का तात्पर्य क्या है?
(अ) रेलवे पुलिस फोर्स (ब) रिजर्व पुलिस फोर्स (स) रेलवे प्रोटेक्शन फोर्स (द) रीजनल पुलिस फोर्स
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सही जवाब- 1.(द) उत्तल दर्पण, 2.(अ) वास्तविक तथा उल्टा, 3.(स) परावर्तित करता है, 4.(ब) निकट दृष्टि दोष, 5.(स) विलियम हैनरी, 6.(द) प्लास्टिक गंधक, 7.(द) हाइड्रोजन सल्फाइड, 8.(ब) ऐसीटम, 9.(अ) लैक्टिक अम्ल, 10.(द) सोडियम बेन्जोएट, 11.(अ)1950, 12.(अ)नवपाषाण युग, 13.(स)अमीर खुसरो, 14.(अ) भीम द्वितीय, 15.(द)पाकिस्तान, 16.(स)हिमालय पर्वत तथा काराकोरम के मध्य, 17.(स) टिन, 18.(ब) रेत व धूलकणों के जमाव से, 19.(स) अंतरापर्वतीय पठार, 20.(स) गोदावरी का बेसिन, 21.(ब) उड़ीसा, 22.(अ) तेल में असंतृप्त वसाएं होती हैं, 23.(स)जंतु वसा में उपस्थित वसीय एल्कोहल, 24.(ब) विश्व महिला बैडमिंटन, 25.(ब) ध्यानचंद ट्राफी, 26.(द) पी.टी. उषा, 27.(अ) पियरे दि कुबर्तिन, 28.(स) रेलवे प्रोटेक्शन फोर्स।
फ्लोरिडा संयुक्त राज्य अमरीका के दक्षिण पूर्वी क्षेत्र में स्थित एक राज्य है, जिसके उत्तर-पश्चिमी सीमा पर अलाबामा और उत्तरी सीमा पर जॉर्जिया स्थित है। संयुक्त राज्य में शामिल होने वाला यह 27वां राज्य था। इस राज्य के भूस्थल का अधिकांश भाग एक बड़ा प्रायद्वीप है जिसके पश्चिम में मैक्सिको की खाड़ी और पूर्व में अटलांटिक महासागर है।
मुख्य रूप में इस राज्य को गर्म जलवायु की वजह से इसे सनशाइन स्टेट के रूप में जाना जाता है। इसके उत्तरी और मध्य क्षेत्रों में उपोष्णकटिबंधीय एवं दक्षिणी भाग में उष्णकटिबंधीय जलवायु पाई जाती है। इस राज्य में चार बड़े शहरी क्षेत्र, कई छोटे-छोटे औद्योगिक नगर और बहुत से छोटे - छोटे कस्बे हैं। टलहसी, इस राज्य की राजधानी और मियामी सबसे बड़ा महानगरीय क्षेत्र है। फ्लोरिडा के निवासियों को फ्लोरिडियन्स के रूप में जाना जाता है।
कॉफी आज एक लोकप्रिय पेय है। यह कई प्रकार की होती है-
एस्प्रेसो- जिसे इसे बनाने के लिये, कडक़ ब्लैक कॉफ़ी को एक एस्प्रेसो मशीन में भाप को गहरे-सिंके हुए तेज़ गंध वाले कॉफ़ी के दानों के बीच से निकालकर तैयार किया जाता है। इसकी सतह पर सुनहरे-भूरे क्रीम के (झाग) होते हैं।
कैपेचीनो- गरम दूध और दूध की क्रीम की समान मात्रा से मिलकर बनती है।
कैफ़े लैट्टे-कैफ़ै लैट्टे में एक भाग एस्प्रेसो का एक शॉट और तीन भाग गर्म दूध होता है। इतालवी में लैट्टे का अर्थ दूध होता है। जिसके कारण इसका यह नाम पड़ा है।
फ्रैपी- इस प्रकार की कॉफी ठंडी एस्प्रेसो होती है, जिसे बफऱ् के साथ एक लंबे गिलास में पेश किया जाता है, और इसमें दूध भी मिलाया जा सकती हैं।
फिल्टर कॅाफी- दक्षिण भारतीय फि़ल्टर कॉफ़ी को दरदरी पिसी हुई, हल्की गहरी सिंकी हुई कॉफ़ी अरेबिका से बनाया जाता है। इसके साथ पीबेरी के दानों को सबसे अधिक पसंद किया जाता है। इसे परोसने किए जाने के पहले एक पारंपरिक धातु के कॉफ़ी फि़ल्टर में घंटों तक रिसा कर अथवा टपकाकर तैयार किया जाता है।
इस्टेंट कॉफ़ी (या सॉल्यूबल कॉफ़ी) को कॉफ़ी के द्रव को बहुत कम तापमान पर छिडक़ाव कर सुखाया जाता है। फिर उसे घुलनशील पाउडर या कॉफ़ी के दानों में बदलकर इंस्टेंट कॉफ़ी तैयार की जाती है।
मोचा या मोचाचिनो, कैपेचिनो और कैफ़े लैट्टे का मिश्रण है जिसमें चॉकलेट सिरप या पाउडर मिलाया जाता है। यह कई प्रकार में उपलब्ध होती है।
ब्लैक कॉफ़ी टपकाकर तैयार की गई छनी हुई या फ्रेंच प्रेस शैली की कॉफ़ी है जो बिना दूध मिलाए सीधे सर्व की जाती है।
आइस्ड कॉफ़ी में सामान्य कॉफ़ी को बफऱ् के साथ, और कभी-कभी दूध और शक्कर मिलाकर परोसा जाता है।
फीरोजा़ या टर्कौएश एक अपारदर्शी, नीले से हरा खनिज है। यह ताम्र एवं अल्यूमिनियम का हायड्रस फॉस्फेट है, जिसका रासायनिक सूत्र है-CuAl6(PO4)4(OH)8·4H2O। यह दुर्लभ एवं कीमती है। अपनी अनुपम आभा के कारण फीरोजा की गिनती अच्छे रत्नों में होती है।
शुक्र का उप रत्न फिरोजा है। यह आसमानी रंग से मिलते-जुलते कई रंग में पाया जाता है। हल्के किन्तु प्रखर चमकदार रंग वाला यह रत्न सर्वोत्तम होता है, जबकि हरे, पीले रंग से युक्त फीरोजा निकृष्ट माना जाता है। यह रत्न शरीर की रक्षा, रोग, बीमारी और दुर्घटना का निवारक होता है। इसके धारण करने से रक्तदोष, रक्ताल्पता, नेत्र विकार आदि रोगों में लाभ मिलता है। स्त्रियों के लिए यह सौभाग्यदायी, स्वास्थ्यवर्धक , दाम्पत्य-प्रेम का पोषक, सौंदर्य प्रदाता और भौतिक बाधाओं से रक्षा करने वाला होता है।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली को अधिक केंद्रित तथा गरीब आबादी के अत्यंत गरीब वर्ग तक पहुंचाने के लिए अन्त्योदय अन्न योजना (एएवाई) को दिसंबर, 2000 में शुरू किया गया था।
अन्त्योदय अन्न योजना, राज्यों में लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अंतर्गत आने वाले बीपीएल परिवारों में से अत्यंत गरीब परिवारों की पहचान करके अत्यधिक रियायती दर पर यानी 2 रू. प्रति किलो गेहूं और 3 रू. प्रति किलो चावल उपलब्ध कराती है। वितरण लागत, व्यापारियों तथा खुदरा विक्रेताओं का लाभ और परिवहन लागत राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों को वहन करना पड़ता है। अत: इस योजना के अंतर्गत पूरी खाद्य सब्सिडी उपभोक्ताओं को मिलती है। अन्त्योदय परिवारों की पहचान और ऐसे परिवारों को विशिष्ट राशन कार्ड जारी करना संबंधित राज्य सरकारों की जिम्मेदारी होती है। इस योजना के तहत आबंटन के लिए खाद्यान, पहचाने गए अन्त्योदय परिवारों को विशिष्ट एएवाई राशन कार्ड जारी करने के आधार पर राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों को जारी किए जाते हंै। एएवाई के अंतर्गत वर्तमान मासिक आबंटन 31 दिसंबर, 2012 को करीब 8.51 लाख टन है।
शुरूआत में जारी किया गया पैमाना जो कि प्रति परिवार 25 किलो प्रति महीना था उसको प्रभावी पहली अप्रैल, 2002 से प्रति परिवार 35 किलो प्रति महीना तक बढ़ा दी गई है। अन्त्योदय अन्न योजना (एएवाई) गरीबी रेखा के नीचे (बीपीएल) परिवारों की पहचान करके 1 करोड़ परिवारों के लिए शुरू की गई थी। इस योजना के तहत राशि को तीन बार यानी की 2003-04, 2004-05 और 2005-06 के दौरान हर समय 50 लाख अतिरिक्त परिवारों के लिए बढ़ाया गया। इस प्रकार एएवाई के अंतर्गत कुल 2.50 करोड़ परिवारों (यानी की बीपीएल का 38 प्रतिशत) तक पहुंचाया गया।
गोल्डन गेट सेतु अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को नगर में सैन फ्रांसिसिको खाड़ी के दोनो छोरों को जोडऩे वाला झूला पुल है। यह अमेरिका के महामार्ग 101 और राज्य मार्ग 1 का भाग है।
वर्ष 1937 में जब ये सेतु बनकर तैयार हुआ था तब यह दुनिया का सबसे लंबा झूला पूल था, और ये सैन फ्रांसिस्को और कैलिफोर्निया दोनों का एक अंतरराष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह बन गया था। जो अहमियत पेरिस के लिए एफिल टॉवर की है वही सैन फ्रांसिस्को के लिए गोल्डन गेट ब्रिज की है। लाल नारंगी रंग का यह पुल हॉलीवुड में भी काफी मशहूर है। दुनिया में इसकी नकल भी मौजूद है। पुर्तगाल के पोंट डे 25 एब्रिल को 25 अप्रैल 1974 में पुर्तगाली क्रांति की याद में बनाया गया। पहली नजर में यह गोल्डन गेट ब्रिज ही लगता है, लेकिन इसकी डिजाइन और सजावट में थोड़ा फर्क है।