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सऊदी अरब के किंग सलमान बिन अब्दुलअजीज ने कैबिनेट में फेरबदल करते हुए अपने बेटे और उत्तराधिकारी प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान को देश का प्रधानमंत्री और अपने दूसरे बेटे प्रिंस खालिद को रक्षा मंत्री के रूप में नामित किया है.
सऊदी अरब के डी फैक्टो शासक माने जाने वाले क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान को उनके पिता किंग सलमान ने मंगलवार को एक शाही फरमान में देश का प्रधानमंत्री नियुक्त किया है. इससे पहले वे रक्षा मंत्री का पद संभाल रहे थे.
कैबिनेट बदलाव में किंग सलमान ने अपने दूसरे बेटे प्रिंस खालिद को उप रक्षा मंत्री से रक्षा मंत्री के पद पर नियुक्त किया है. किंग सलमान ने अपने एक और बेटे प्रिंस अब्दुलअजीज बिन सलमान को ऊर्जा मंत्री के रूप में बरकरार रखा है.
शाही परिवार के एक अन्य सदस्य प्रिंस फैसल बिन फरहान अल सऊद को राजशाही में विदेश मंत्री के रूप में बरकरार रखा गया है. प्रिंस फैसल की पैदाइश जर्मनी में हुई थी.
किंग ही करेंगे कैबिनेट बैठक की अध्यक्षता
वित्त मंत्री मोहम्मद अल-जादान और निवेश मंत्री खालिद अल-फलीह अपने पद पर बने रहेंगे. दोनों का रिश्ता शाही परिवार से नहीं है. ताजा शाही फरमान के मुताबिक 86 वर्षीय किंग सलमान अभी भी सऊदी कैबिनेट की बैठकों की अध्यक्षता करेंगे, जिसमें वह आमतौर पर भाग लेते हैं.
इस ऐलान के बाद सऊदी अरब के सरकारी टीवी ने किंग सलमान को मंगलवार को कैबिनेट की बैठक की अध्यक्षता करते हुए दिखाया. किंग सलमान ने 2015 में सत्ता संभाली थी, लेकिन उनकी तबीयत अक्सर खराब रहती है और हाल के वर्षों में उन्हें कई बार अस्पताल में भर्ती कराया जा चुका है.
एमबीएस की छवि सुधारने की कोशिश
क्राउन प्रिंस सलमान को एमबीएस के नाम से भी जाना जाता है, वह सऊदी अरब की अर्थव्यवस्था और ऊर्जा के बुनियादी ढांचे को बदलने के लिए देश की "विजन 2030" योजना में एक प्रमुख व्यक्ति के रूप में काम कर रहे हैं.
बीते सालों में उन्होंने महिलाओं को कुछ शर्तों के साथ कार चलाने की अनुमति देने जैसे सामाजिक सुधारों का भी प्रयास किया है.
हालांकि, आलोचकों का कहना है कि सऊदी ने इस सुधार अभियान में केवल मामूली प्रगति की है और इसके उलट नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं, गैर-धार्मिक लोगों और राजशाही से असहमति व्यक्त करने वाले अन्य लोगों पर लगातार कार्रवाई हो रही है.
साल 2018 में पत्रकार जमाल खशोगी के इस्तांबुल में सऊदी वाणिज्य दूतावास में लापता होने के बाद मोहम्मद बिन सलमान की छवि को गहरा झटका लगा था. बाद में अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने पाया कि संभवत: क्राउन प्रिंस ने ही उनकी हत्या को मंजूरी दी थी.
खशोगी की हत्या के बाद कई पश्चिमी देशों ने शुरू में खुद को सऊदी से दूर कर लिया, लेकिन फ्रांस, जर्मनी और अमेरिका के नेताओं ने हाल ही में मोहम्मद बिन सलमान के साथ बातचीत की. क्योंकि पश्चिमी देश जीवाश्म ईंधन के लिए रूस के विकल्प की तलाश कर रहे हैं.
राष्ट्रपति जो बाइडेन ने एक बार कहा था कि वह खशोगी की हत्या पर सऊदी अरब को "अलग-थलग" कर देंगे, लेकिन उन्होंने देश का भी दौरा किया और क्राउन प्रिंस से मुलाकात की. उन्होंने दुनिया के सबसे बड़े तेल निर्यातक के साथ संबंधों के निरंतर महत्व को स्वीकार करते हुए ऐसा किया था.
पिछले हफ्ते ही जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स खाड़ी देशों के दौरे पर गए थे. वहां पर उन्होंने मोहम्मद बिन सलमान के साथ बातचीत की थी. उन्होंने वैकल्पिक गैस और तेल की सख्त आवश्यकता को देखते हुए सऊदी अरब में कठिन सवालों से परहेज किया, जिसके लिए उन्हें जर्मनी में आलोचना का भी सामना करना पड़ा. रूस पर ऊर्जा के लिये निर्भर नहीं रहेगा जर्मनी, यूएई से करार
शॉल्त्स ने जेद्दाह में पत्रकारों से कहा कि उन्होंने और क्राउन प्रिंस ने "नागरिकों और मानवाधिकारों के इर्द-गिर्द घूमने वाले सभी सवालों पर चर्चा की."
एए/सीके (एएफपी, रॉयटर्स)
स्वीडन की हथियार बनाने वाली कंपनी साब (SAAB) भारत में फैक्ट्री लगाएगी और हथियारों का निर्माण करेगी. साब ने कहा है कि कंपनी अपना उत्पादन बढ़ाना चाहती है और भारत में कार्ल-गुस्ताफ एम4 वेपन सिस्टम बनाएगी.
डॉयचे वैले पर विवेक कुमार की रिपोर्ट-
साब के वरिष्ठ उपाध्यक्ष गोर्गेन योहैनसन ने पत्रकारों को बताया कि यह फैक्ट्री 2024 में उत्पादन शुरू कर देगी. हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया कि कंपनी भारत में कितना निवेश कर रही है. उन्होंने कहा कि नई फैक्ट्री ना सिर्फ हथियार बनाएगी बल्कि दुनियाभर में इस्तेमाल होने वाले अन्य हथियारों के लिए उपकरण भी बनाएगी.
योहैन्सन ने कहा, "हमने ऐसा और किसी देश में नहीं किया है.”
कार्ल-गुस्ताफ एम4 एक राइफल है जिसे भारतीय सेना इस्तेमाल करती है. भारत में लगाई जा रही फैक्ट्री में इसी राइफल का अतिरिक्त उत्पादन होगा. हाल के सालों में कार्ल-गुस्ताफ में विभिन्न सेनाओं की दिलचस्पी बढ़ी है. खासतौर पर यूक्रेन युद्ध के बाद यह राइफल चर्चा में रही है. कुछ महीने पहले ही कंपनी ने ऐलान किया था कि इस राइफल का उत्पादन बढ़ाया जाएगा. योहैन्सन ने कहा, "आने वाले दिनों में और ज्यादा देश टैंक-रोधी क्षमता चाहेंगे.”
स्वीडन की कंपनी साब अपनी सबसे चर्चित राइफल कार्ल-गुस्ताफ का निर्माण भारत में करेगी. कंपनी ने कहा कि उसने ऐसा अब तक किसी और देश में नहीं किया है.
यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद, जिसे वह ‘विशेष सैन्य अभियान' कहता है, बहुत सारे देशों ने अपना रक्षा खर्च बढ़ाया हैऔर ज्यादा हथियार खरीदने शुरू कर दिए हैं. इनमें साब का देश स्वीडन भी शामिल है.
भारत दुनिया का सबसे बड़ा हथियार खरीददार है. उसके सबसे ज्यादा हथियार रूस से आते हैं. लेकिन हाल के वर्षों में उसने अपने यहां हथियार उत्पादन को बढ़ाने पर जोर दिया है और वह हथियारों का निर्यात बढ़ाने की कोशिश भी कर रहा है.
भारत का रिकॉर्ड निर्यात
पिछले कुछ वर्षों में भारत का निर्यात बढ़ा भी है. आठ साल पहले भारत लगभग 10 अरब रुपये के रक्षा उत्पादों का निर्यात करता था. मंगलवार को भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि अब भारत के रक्षा उत्पादों का निर्यात बढ़कर 130 अरब रुपये का हो चुका है.
हथियार निर्माताओं की एक बैठक में भारतीय रक्षा मंत्री ने कहा, "हमने 2025 तक 1.75 खरब रुपये के रक्षा उत्पादन का लक्ष्य रखा है जिसमें 350 अरब रुपये का निर्यात लक्ष्य भी शामिल है.”
भारत सरकार के मुताबिक बीते पांच साल में ही देश का रक्षा निर्यात 334 प्रतिशत बढ़ चुका है और अब देश 75 देशों को सैन्य उपकरण और गोला-बारूद निर्यात कर रहा है.
हाल ही में भारतीय रक्षा मंत्रालय द्वारा जारी एक बयान में कहा गया, "भारत का रक्षा क्षेत्र जो दूसरी सबसे बड़ी सेना है, एक क्रांतिकारी दौर में है. पिछले पांच साल में रक्षा निर्यात 334 प्रतिशत बढ़ा है.” सरकारी आंकड़ों के मुताबिक भारत ने 2022-23 की पहली तिमाही में ही 1,387 करोड़ रुपये का निर्यात किया है.
बीते साल यानी 2021-22 में भारत का रक्षा उपकरणों और तकनीकों का निर्यात 12,815 करोड़ रुपये रहा था जो अब तक का सर्वाधिक है. 2020-21 के मुकाबले यह 54.1 फीसदी ज्यादा था. 2020-21 में भारत का निर्यात 8,434 करोड़ रुपये और उससे पिछले साल 9,115 करोड़ रुपये रहा था.
आयात कम करने की कोशिश
बीते कुछ सालों में भारत सरकार ने ऐसे कई नीतिगत फैसले किए हैं कि देश में हथियारों के निर्माण को बढ़ावा दिया जाए. ‘मेक इन इंडिया' नीति के तहत भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार विदेश कंपनियों को अपने यहां न्योता देते रहे हैं. उनकी सरकार ने इस क्षेत्र में विदेशी निवेश की प्रक्रिया को आसान किया है और उसकी सीमा को बढ़ाकर 74 प्रतिशत कर दिया गया है.
इसके अलावा भारत ने दो रक्षा उत्पादन गलियारे भी स्थापित किए हैं. इनमें से एक उत्तर प्रदेश में है और दूसरा तमिलनाडु में. इनका मकसद देश में ही हथियारों का निर्माण करना और सेना को सप्लाई करना है ताकि हथियारों का आयात घटाया जा सके. ऐसे उपकरणों और हथियारों विशेष सूचियां बनाई गई हैं जिन्हें बाहर से खरदीने की जरूरत ना पड़े और स्वदेशी निर्माण से सेना की जरूरतों को पूरा किया जा सके. पहली सूची में 2,851 हथियार और उपकरण शामिल हैं जिनमें से 2,500 का भारत में निर्माण करने की तैयारी हो चुकी है.
दूसरी सूची में 107 उपकरण हैं और तीसरी में 101. इन सूचियों में हल्के टैंक, हेलीकॉप्टर और यूएवी विमान शामिल हैं. इन हथियारों को स्वदेश में बनाने के लिए इनके आयात पर निश्चित समय के बाद अस्थायी प्रतिबंध जैसे कदम उठाने का भी विचार है. (dw.com)
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में कई कोर्सों की फीस चार गुना तक बढ़ाए जाने के खिलाफ छात्रों का आंदोलन लगातार उग्र हो रहा है. ना तो आंदोलन की धार कम हो रही है और न ही विश्वविद्यालय प्रशासन छात्रों की मांगों पर विचार कर रहा है.
डॉयचे वैले पर समीरात्मज मिश्र की रिपोर्ट-
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हजारों छात्र पिछले करीब 22 दिन से विश्वविद्यालय के मुख्य परिसर में फीस में हुई बढ़ोत्तरी के फैसले के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं. विश्वविद्यालय प्रशासन ने करीब तीन हफ्ते पहले हुई कार्यकारी परिषद में विभिन्न पाठ्यक्रमों में काफी ज्यादा फीस बढ़ाने का फैसला किया जिससे छात्रों में नाराजगी बढ़ गई. छात्रों ने विश्वविद्यालय की कुलपति से मिलकर अपनी आपत्ति दर्ज करानी चाही लेकिन कुलपति से मिलना का मौका उन्हें अब तक नहीं मिला है. इसी वजह से आंदोलन नारेबाजी और पोस्टर प्रदर्शनों से शुरू होकर तालाबंदी, मशाल जुलूस और आत्मदाह की कोशिशों तक पहुंच गया है.
आंदोलनकारी छात्रों का कहना है कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार से हजारों की संख्या में गरीब छात्र पढ़ने आते हैं और उनके परिवारों की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं होती है कि वो इतनी ज्यादा फीस और फिर यहां रहने का खर्च उठा सकें. इस विश्वविद्यालय में न सिर्फ यूपी और बिहार बल्कि देश के अन्य राज्यों के भी छात्र बड़ी संख्या में पढ़ने आते हैं. इसके अलावा विश्वविद्यालय और उसके आस-पास के इलाकों में बड़ी संख्या में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्र भी रहते हैं.
मध्य प्रदेश के सीधी जिले के रहने वाले दुर्गेश सिंह ने डीडब्ल्यू को बताया, "मैं यहां से एमकॉम कर रहा हूं. बीकॉम की पढ़ाई में हर साल सिर्फ एक हजार रुपये फीस लगती थी लेकिन नए छात्रों को अब इसी पढ़ाई के लिए साल भर में चार हजार देने होंगे. इसके अलावा बाहर रहने का पांच-छह हजार रुपया खर्च अलग. यहां सभी बच्चों को हॉस्टल मिल नहीं पाता है और अब तो हॉस्टल की फीस भी कई गुना बढ़ा दी गई है. हमारे जैसे गरीब परिवारों के घरों से यदि दो-तीन बच्चे पढ़ रहे हों तो भला बताइए, वो कैसे पढ़ पाएंगे?”
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में स्नातक कक्षाओं यानी बीए, बीएससी और बीकॉम के छात्रों से ट्यूशन और अन्य मदों के लिए सालाना फीस के तौर पर 975 रुपये लिए जाते थे, उन्हें बढ़ाकर अब 3901 रुपये सालाना कर दिया गया है. इसी तरह से मास्टर डिग्री और अन्य कोर्सों की फीस भी इसी अनुपात में बढ़ाई गई है. विश्वविद्यालय प्रशासन का तर्क है कि लंबे समय से फीस नहीं बढ़ाई गई थी, और अब बढ़ाई जा रही है तो छात्रों को यह ज्यादा लग रही है. जबकि अन्य केंद्रीय विश्वविद्यालयों में पहले से ही इतनी या इससे भी ज्यादा फीस ली जा रही है.
विश्वविद्यालय में सेल्फ फाइनेंस स्कीम के तहत पहले से ही कई ऐसे व्यावसायिक कोर्स चल रहे हैं जिनकी फीस साल भर में पचास हजार से भी ज्यादा है. छात्रों को इन कोर्सों की फीस पर कोई आपत्ति नहीं है क्योंकि एक तो ये प्रोफेशनल कोर्सों की फीस हैं, दूसरे इन कोर्सों के लिए छात्रों को लोन इत्यादि भी मिल जाते हैं लेकिन बीए, बीएससी और बीकॉम जैसे कोर्स तो सामान्य छात्र और लगभग सभी छात्र करते हैं.
छात्रों के आंदोलन का नेतृत्व कर रहे अजय यादव सम्राट कहते हैं, "विश्वविद्याल प्रशासन तर्क दे रहा है कि उसके पास फंड की कमी है जबकि छात्रों के पैसे का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग किया जा रहा है. कई ऐसे अधिकारियों की नियुक्ति लाखों रुपये महीने की तनख्वाह पर की गई है जिनका कोई काम नहीं है. हॉस्टलों की स्थिति बद से बदतर है लेकिन वहां कोई पैसा नहीं खर्च हो रहा है. कक्षाओं और प्रयोगशालाओं की अव्यवस्था किसी से छिपी नहीं है तो विश्वविद्यालय केंद्र से मिल रहे पैसों का क्या कर रहा है और अब वह गरीब छात्रों से इतना पैसा वसूल कर क्या करना चाहता है. सच्चाई तो यह है कि विश्वविद्यालय प्रशासन और खासकर कुलपति गरीब छात्रों को उच्च शिक्षा से ही वंचित करना चाहते हैं. फीस इतनी बढ़ा दी जाए ताकि वो विश्वविद्यालय में पढ़ने की हिम्मत ही न जुटा पाएं.”
छात्रों के इस आंदोलन के दौरान कई बार छात्रों की पुलिस से भी झड़प हो चुकी है और कई छात्र चोटिल भी हुए हैं. दो दिन पहले अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े छात्रों ने कुछ हॉस्टलों और विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार को बंद करने की कोशिश की. इस दौरान पुलिस के साथ छात्रों की झड़पें हुईं, कुछ छात्रों को गिरफ्तार भी किया गया और कई छात्रों के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज हुई है. इस बीच, छात्रों के आंदोलन को समाज के दूसरे वर्गों के लोग भी समर्थन दे रहे हैं.
मंगलवार को इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष और हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता कमल कृष्ण रॉय के नेतृतव में बड़ी संख्या में वकीलों ने छात्रों के समर्थन में जुलूस निकाला और विश्वविद्यालय प्रशासन के इस फैसले की आलोचना की. डीडब्ल्यू से बातचीत में कमल कृष्ण रॉय ने कहा, "आज हमारे हजारों छात्र-छात्राएं नई शिक्षा नीति, शिक्षा पर कॉरपोरेट कंट्रोल और केंद्र सरकार का सबसे क्रूर हमला झेल रहे हैं. करीब तीन हफ्ते होने को हैं, फीस वृद्धि के खिलाफ सारे छात्र एक अभूतपूर्व आंदोलन और जुझारू संघर्ष में मोर्चा लगाए हुए हैं. कदम कदम पर खाकी वर्दी से छात्रावासों और डेलीगेसी के लड़ाकों से मुठभेड़ें हो रही हैं. आत्मदाह करने का प्रयास करने वाले छात्रों को बचाने की बजाय उन पर लाठियां बरसाई जा रही हैं. अगर यह लड़ाई नही जीती गई तो गरीब, मध्यमवर्गीय, ग्रामीण, कस्बाई परिवारों के बच्चों का यह आखिरी शैक्षणिक सत्र होगा.”
फीस वृद्धि के मामले में डीडब्ल्यू ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय की कुलपति डॉक्टर संगीता श्रीवास्तव से बात करने की कोशिश की लेकिन उनसे बात नहीं हो पाई. हालांकि पता चला है कि 28 सितंबर को कार्यकारी परिषद की बैठक बुलाई गई है और हो सकता है कि उसमें फीस वृद्धि के मामले पर भी चर्चा हो लेकिन विश्वविद्यालय के किसी अधिकारी से इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है.
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र संघ भवन के सामने छात्र संयुक्त संघर्ष समिति द्वारा पिछले 22 दिनों से आमरण अनशन जारी है. आमरण अनशन कर रहे छात्र नेता अजय सिंह यादव सम्राट का कहना है कि छात्रों को इस बात पर भी आपत्ति है कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने पूरे परिसर को छावनी में तब्दील कर दिया है जबकि यहां बड़े-बड़े आंदोलनों के बावजूद परिसर में पुलिस जल्दी नहीं घुसती है. अनशन पर बैठे और आंदोलनरत छात्रों के समर्थन में विश्वविद्यालय के कई पुरा छात्रों और राजनीतिक दलों से जुड़े लोगों का भी आना-जाना लगा रहता है और सभी ने इस फीस वृद्धि को वापस लेने की अपील की है.
सोमवार को कुछ छात्रों ने कुलपति के लापता होने संबंधी पोस्टर लगा दिए जिसके शहर में काफी चर्चा हुई और ये पोस्टर सोशल मीडिया पर भी वायरल हो गए. विश्वविद्यालय के एक छात्रावास में रहने वाले बीएससी तृतीय वर्ष की छात्रा रेणुका पुरी भी फीस वृद्धि के खिलाफ आंदोलन में शामिल हैं.
पश्चिमी यूपी के एक गांव की रहने वाली रेणुका कहती हैं, "यह ठीक है कि दूसरे केंद्रीय विश्वविद्यालयों में भी फीस बढ़ी है इसलिए यहां भी बढ़ा दी गई. लेकिन एक ही बार में इतनी ज्यादा बढ़ोत्तरी नहीं करनी थी. .. एकाएक चार गुना ही बढ़ा दिया." रेणुका आगे बताती हैं कि "अमीर लोगों के लिए चार-पांच हजार रुपये कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन जिनके परिवारों की आय ही महज दस-पंद्रह हजार रुपये महीने की हो, वो अपने बच्चों को कैसे पढ़ाएंगे? और इस विश्वविद्यालय में एक बड़ी तादाद ऐसे ही परिवारों के बच्चों की है.”
इलाहाबाद विश्वविद्यालय देश के सबसे पुराने विश्वविद्यालयों में से एक है. साल 1887 में स्थापित इस विश्वविद्यालय ने अभी चार दिन पहले यानी 23 सितंबर को ही अपना 135 वां स्थापना दिवस मनाया है. विश्वविद्यालय में पढ़े छात्रों में से देश के कई प्रधानमंत्री, कई राज्यों के मुख्यमंत्री, राष्ट्रपति, गवर्नर, न्यायाधीश, नौकरशाह, साहित्यकार और कलाकार भी रह चुके हैं. प्रशासनिक सेवाओं की तैयारी के लिए आज भी यह विश्वविद्यालय छात्रों की पहली पसंद होता है, हालांकि अब यहां से इन सेवाओं में जाने वाले छात्रों की संख्या में काफी कमी आ गई है.
अभी कुछ साल पहले विश्वविद्याल ने यूजीसी को तीन सौ करोड़ रुपये इसलिए लौटा दिए थे क्योंकि विश्वविद्यालय इन पैसों को खर्च नहीं कर सका था. छात्रों का सवाल है कि तीन सौ करोड़ रुपये बिना खर्च किए लौटा देने वाले विश्वविद्यालय को एकाएक पैसों की इतनी कमी का सामना क्यों करना पड़ गया कि उसने एक ही बार में चार गुना फीस बढ़ा दी. (dw.com)
दिल्ली में किराए पर एक मकान की तलाश कर रहे रौफ को दो महीनों से मकान नहीं मिला है. लेकिन यह कहानी अकेले दिल्ली की नहीं है. शहरों में मकान देने में भेदभाव की दशकों पुरानी समस्या बढ़ती जा रही है.
डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट-
रविवार का दिन है. सुबह के 11 बज रहे हैं. दिल्ली के मालवीय नगर मोहल्ले में एक पार्क के पास खड़े अब्दुल रौफ गनइ मकान किराए पर दिलाने वाले एक एजेंट का इंतजार कर रहे हैं. 28 साल के रौफ कई दिनों से दक्षिणी दिल्ली में रहने के लिए किराए पर एक मकान की तलाश कर रहे हैं.
एजेंट ने उन्हें भरोसा दिलाया है कि आज फ्लैट मिल ही जाएगा. एजेंट आता है और रौफ को साथ लेकर पास ही में स्थित एक मकान पर लेकर जाता है. घंटी बजाने के दो मिनट बाद मकान का मालिक खुद आ कर दरवाजा खोलता है और प्राथमिक पूछताछ वहीं पर शुरू कर देता है.
ज्यादा बातचीत की जरूरत नहीं पड़ती क्योंकि रौफ का नाम सुनते ही मकान का मालिक पूछता है, "मोहम्मडन हो?" और जवाब "हां" में मिलते ही बेझिझक रौफ से कह देता है, "हम मोहम्मडनों को मकान किराए पर नहीं देते." साथ ही एजेंट को यह कह कर डांट भी देता है कि उसे इस बारे में बताया भी था, फिर वो क्यों "एक मोहम्मडन" को यहां ले कर आया.
शरणार्थियों के लिए ही बने थे मोहल्ले
एजेंट मकान मालिक और रौफ दोनों से माफी मांगता है और फिर रौफ को ले कर अगले मकान की तरफ बढ़ जाता है. धीरे धीरे छुट्टी का दिन बीत जाता है लेकिन रौफ की तलाश पूरी नहीं हो पाती.
मालवीय नगर मोहल्ले को विभाजन के बाद पाकिस्तान से भारत आए शरणार्थियों को पनाह देने के लिए बसाया गया था. यहां के अधिकांश मकान मालिकों की यही पृष्ठभूमि है. सरकार ने लगभग 100 गज के जमीन के टुकड़े इन्हें दिए जिस पर इन्होने धीरे धीरे तीन-चार मंजिलों की इमारतें बना लीं.
लेकिन सात दशक पहले जिन जमीन के टुकड़ों पर विभाजन के मारे लोगों को शरण मिली उन्हीं पर बने ये मकान आज अपने ही देश में गुजर बसर करने की कोशिश में लगे हुए लोगों को पनाह नहीं दे पा रहे हैं.
28 साल के रौफ ने मीडिया के अध्ययन में पीएचडी की हुई है और दिल्ली में डीडब्ल्यू के लिए वीडियो जर्नलिस्ट के रूप में काम करते हैं. अमूमन मकान किराए पर देने के लिए किसी व्यक्ति को विश्वसनीय साबित करने के लिए इतना काफी होना चाहिए, लेकिन अगर आप मुस्लिम हैं तो ऐसा नहीं है.
सभी शहरों का एक ही हाल
रौफ के साथ तो दोहरी समस्या है. वो मुस्लिम होने के साथ साथ कश्मीरी भी हैं और शहरों में यह एक और पैमाना है मकान किराए पर नहीं मिलने का. रौफ बताते हैं कि उन्होंने कई साल पहले मुस्लिमों के खिलाफ इस तरह के भेदभाव के बारे में सिर्फ ट्विटर पर पढ़ा था. तब उन्हें यह नहीं पता था कि एक दिन उनके साथ भी यही होगा.
2018 में हैदराबाद में पहली बार उन्हें इस भेदभाव का सामना करना पड़ा, जब शहर के एक हिंदू बहुल इलाके में एक मकान मालिक ने उनसे कहा कि वो उन्हें अपना मकान नहीं देंगे, क्योंकि वो मुस्लिम हैं.
रौफ कहते हैं. "मैं बहुत डर गया था. मैं पहली बार कश्मीर से बाहर निकला था और यह मेरी पहली नौकरी थी. एक दिन तो मैंने यहां तक तय कर लिया था कि आज शाम तक अगर मकान नहीं मिला तो मैं यह शहर और नौकरी दोनों को छोड़ कर वापस कश्मीर चला जाऊंगा."
शहर और नौकरी छोड़ने की नौबत नहीं आई. रौफ ने हैदराबाद में पहले से रह रहे कुछ कश्मीरी लोगों से संपर्क किया और फिर उनकी मदद से उन्हें रहने के लिए जगह मिल ही गई. इस बात को चार साल बीत चुके हैं. यह शहर भी दूसरा है लेकिन रॉफ फिर से उसी मुसीबत का सामना कर रहे हैं.
अब बहाने भी नहीं बनाए जाते
रौफ इस समस्या का सामना करने वाले पहले मुस्लिम नहीं हैं. यह दशकों पुराना चलन है और शहरों में किराए पर मकान खोज रहे हर मुस्लिम व्यक्ति और परिवार की कहानी है. इसे लेकर कई अध्ययन भी किए गए हैं.
'द हाउसिंग डिस्क्रिमिनेशन प्रोजेक्ट' के तहत कानून, मनोविज्ञान आदि जैसे विविध क्षेत्रों से जुड़े शोधकर्ताओं ने 2017 से 2019 तक दिल्ली और मुंबई के 14 मोहल्लों में करीब 200 एजेंटों, 31 मकान मालिकों और करीब 100 मुस्लिम किरायेदारों से बात की.
अध्ययन में न सिर्फ यह साबित हुआ कि यह एक बड़ी समस्या है बल्कि यह भी सामने आया कि किराए पर मकान दिलाने की व्यवस्था की कुंजी माने जाने वाले एजेंटों में से भी कई इस भेदभाव से ग्रसित हैं.
लेखक, फिल्मकार और अपनी 'हेरिटेज वॉक' के जरिए दिल्ली के इतिहास के बारे में लोगों को बताने वाले सोहेल हाशमी बताते हैं कि उन्होंने इस भेदभाव का सामना पहली बार 1980 के दशक में किया था.
घेटो बनने की वजह
फर्क बस इतना था कि वो कहते हैं कि उस समय लोगों की "नजर में शर्म" थी जिस वजह से कोई सीधा यह नहीं कहता था कि मकान मुस्लिम होने की वजह से नहीं दिया जाएगा.
हाशमी कहते हैं कि सीधा कहने की जगह "आप लोग तो मांस खाते होंगे" या "हम तो आप ही को मकान देने वाले थे लेकिन अचानक मेरे भाई ने न्यूयॉर्क से वापस आने का फैसला कर लिया" जैसे बहाने दे दिए जाते थे.
इसी समस्या ने घेटोकरण को भी बढ़ावा दिया है. खुद भी इस भेदभाव का सामना कर चुके वरिष्ठ पत्रकार महताब आलम कहते हैं, "आज आप जिन मोहल्लों को मुस्लिमों से जोड़ कर उन्हें मुस्लिम घेटो कहते हैं वो मोहल्ले बसे ही इसी वजह से क्योंकि उन मुस्लिमों को दूसरे मोहल्लों में रहने वालों ने अपने मकान दिए ही नहीं."
बहरहाल, दक्षिणी दिल्ली में अपने दफ्तर के करीब मकान ढूंढते ढूंढते रौफ को करीब दो महीने बीत चुके हैं, लेकिन वो आज भी एक दोस्त के मकान में रहने को मजबूर हैं. थक हार कर उन्होंने कुछ दिनों की छुट्टी ले कर कश्मीर चले जाने का और वापस आने के बाद नए सिरे से मकान ढूंढने का फैसला किया है. यानी तलाश अभी भी जारी है. (dw.com)
नई दिल्ली, 28 सितंबर। कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश ने कहा है कि उनकी पार्टी हमेशा से ही सभी प्रकार की सांप्रदायिकता के ख़िलफ़ रही है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस की नीति हमेशा से बिना किसी डर के, बिना किसी समझौते के सांप्रदायिकता से लड़ने की रही है.
एक बयान जारी कर उन्होंने कहा, "हम हर उस विचारधारा और संस्था के ख़िलाफ़ हैं, जो हमारे समाज का धार्मिक ध्रुवीकरण करने के लिए पूर्वाग्रह, नफ़रत, कट्टरता और हिंसा का सहारा लेती है." (bbc.com/hindi)
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बिलासपुर, 28 सितंबर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने आईपीएस मुकेश गुप्ता की पदोन्नति निरस्त करने के राज्य सरकार के फैसले को सही ठहराया है। सरकार ने कैट और सिंगल बेंच के आदेश को डबल बेंच में चुनौती दी थी। इस महीने की शुरूआत में चीफ जस्टिस की डबल बेंच ने अंतिम सुनवाई के बाद इस मामले में फैसला सुरक्षित रखा था।
ज्ञात हो कि आर्थिक अनियमितताओं के आरोप में पिछले तीन साल से मुकेश गुप्ता निलंबित चल रहे हैं। पूर्व में भाजपा शासनकाल के दौरान सन् 2018 में उन्हें पदोन्नत कर अतिरिक्त महानिदेशक से महानिदेशक बना दिया गया था। इसके बाद कांग्रेस की सरकार बनने के बाद शिकायतों को आधार बनाकर उन्हें निलंबित कर दिया गया था। उनके विरुद्ध आपराधिक प्रकरण भी दर्ज किए गए थे। इसके अलावा सरकार ने 26 सितंबर 2019 को उनकी पदोन्नति का आदेश निरस्त कर दिया।
पदोन्नति निरस्त करने के खिलाफ गुप्ता ने केंद्रीय प्रशासनिक ट्रिब्यूनल (कैट) में अपील की थी। कैट ने उनके पक्ष में निर्णय दिया था और पदोन्नति निरस्त करने के आदेश को रद्द कर दिया। कैट के आदेश के खिलाफ छत्तीसगढ़ सरकार ने हाईकोर्ट में अपील की थी, जिसकी सिंगल बेंच में सुनवाई हुई। बेंच ने मुकेश गुप्ता के पक्ष में आदेश देते हुए कैट के आदेश को सही ठहराया। राज्य सरकार ने सिंगल बेंच के आदेश के खिलाफ डिवीजन बेंच में अपील की। डिवीजन बेंच ने सुनवाई के दौरान कैट के आदेश पर स्थगन दे दिया था। इसमें दोनों पक्षों की सुनवाई 6 सितंबर को पूरी होने के बाद डिवीजन बेंच ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। आज कोर्ट ने इस पर आदेश जारी किया और कैट के आदेश को निरस्त करते हुए राज्य शासन के पक्ष में फैसला दिया।
-प्रशांत पांडेय
यूपी, 28 सितंबर। यूपी के लखीमपुर खीरी ज़िले में आज बुधवार सुबह एक प्राइवेट बस और डीसीएम की टक्कर में छह लोगों की मौत हो गई है.
वहीं, छह लोग गंभीर रूप से घायल हैं जिन्हें लखनऊ ट्रॉमा सेंटर भेजा गया है और 23 लोगों का ज़िला अस्पताल में इलाज चल रहा है.
डीएम महेंद्र बहादुर सिंह ने हादसे में छह यात्रियों की मौत की पुष्टि करते हुए बताया कि बचाव कार्य किए जा रहे हैं. घायलों को अस्पताल भेजा गया है. अभी कुछ लोग फंसे हैं जिन्हें निकाला जा रहा है. हादसे में दो दर्जन से ज़्यादा यात्री घायल हैं.
ये हादसा लखीमपुर बहराइच रोड पर एनएच 730 पर ऐरा खमरिया के पहले शारदा नदी पर बने पुल पर हुआ.
धौरहरा की तरफ़ से आ रही एक प्राइवेट यात्री तेज रफ़्तार बस डीसीएम में आमने-सामने से टकरा गई. दोनो वाहनों की रफ़्तार इतनी तेज़ थी कि डीसीएम पलट गई. वहीं, बस में बैठे यात्री बुरी तरह जख़्मी हो गए. बस का आगे का हिस्सा पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया.
घटना की खबर मिलने के बाद पुलिस और स्थानीय लोगों ने बचाव कार्य शुरू किया जो अब भी चल रहा है. रास्ते को खाली कराया जा रहा है.
डीएम महेंद्र बहादुर सिंह ने बताया, ''आज सुबह हुए हादसे में कई लोग फंसे हुए हैं. राहत बचाव कार्य चल रहा है. हाइवे को खाली कराया जा रहा है. पुलिस और स्थानीय लोगों की मदद से किसी तरह लोगों को बाहर निकाला गया है.''
हादसे की ख़बर मिलते ही डीएम महेंद्र बहादुर और एसपी संजीव सुमन घायलों और बचाव कार्य की देखरेख के लिए पहुँच गए. घायलों को ज़िला अस्पताल पहुँचाया गया. सीएम योगी ने हादसे पर दुःख जताया है. (bbc.com/hindi)
राजस्थान में जारी सियासी खींचतान खत्म होती नज़र नहीं आ रही. अशोक गहलोत कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए दावेदारी पेश करेंगे या राजस्थान के मुख्यमंत्री बने रहेंगे इसे लेकर असमंजस बरकरार है. राजस्थान में विधायक दो खेमों में बंट गए हैं. अशोक गहलोत खेमे के विधायक सचिन पायलट के मुख्यमंत्री बनने पर रज़ामंद नहीं है, वहीं चर्चा है कि कांग्रेस नेतृत्व सचिन पायलट को मुख्यमंत्री पद देना चाहता है.
इस पूरे राजनीतिक उलटफेर और कांग्रेस के आंतरिक कलह पर अंग्रेज़ी अख़बार द हिंदू ने विस्तार से रिपोर्ट किया है. पढ़ें ये रिपोर्ट
अंग्रेज़ी अख़बार लिखता है, कांग्रेस के पार्टी अध्यक्ष पद का नामांकन भरने के लिए सिर्फ़ तीन दिन का वक्त बचा है और ऐसे में गांधी परिवार के समर्थक 'प्लान बी' की बात कर रहे हैं. अब तक केवल शशि थरूर और पार्टी के कोषाध्यक्ष पवन बंसल ने नामांकन का पर्चा लिया है.
राजस्थान में राजनीतिक संकट के बीच कांग्रेस ने मंगलवार को अशोक गहलोत के क़रीबी तीन विधायकों को कारण बताओ नोटिस जारी किया है. इन विधायकों को 'गंभीर अनुशासनहीन' रवैये के लिए 10 दिनों में जवाब मांगा गया है. हालांकि अशोक गहलोत पर किसी भी तरह की कार्रवाई नहीं की गई है.
इससे अशोक गहलोत के पार्टी के अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने की संभावना बनी हुई है, भले ही अब तक उन्होंने या पार्टी की ओर से कोई आधिकारिक बयान उनकी दावेदारी को लेकर सामने नहीं आ रहा है. 30 सितंबर को कांग्रेस अध्यक्ष पद का नामांकन भरने की आखिरी तारीख है.
अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए गांधी परिवार के वफ़ादारों के बीच 'प्लान बी' को लेकर काफ़ी चर्चा है और इसके लिए दिग्विजय सिंह और राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खडगे के नाम की चर्चा पार्टी के भीतर चल रही है.
अशोक गहलोत खेमे के विधायकों को कारण बताओ नोटिस उस रिपोर्ट के आधार पर जारी किया गया है जो कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी राजस्थान के महासचिव अजय माकन और पार्टी के वरिष्ठ नेता खडगे ने सौंपी है.
जिन विधायकों को ये नोटिस जारी किया गया है उनके नाम हैं- मंत्री शांति धारीवाल, मंत्री और विधानसभा में कांग्रेस के मुख्य व्हिप महेश जोशी और विधायक धर्मेंद्र राठौर हैं. इन पर राज्य में राजनीतिक संकट पैदा करने का आरोप लगाया गया है.
हालांकि, अब इस पूरे राजनीतिक संकट को कम करने की जद्दोजहद की जा रही है.
हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों को अंतिम रूप देने के लिए अपने आवास 10 जनपथ रोड पर एक बैठक के बाद सोनिया गांधी ने अंबिका सोनी और आनंद शर्मा जैसे वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं के साथ राजस्थान संकट के मुद्दे पर चर्चा की.
अख़बार सूत्रों के हवाले से लिखता है कि गहलोत को अपनी स्थिति स्पष्ट करने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष से भी बात करनी थी, लेकिन बातचीत हुई या नहीं इसकी कोई पुष्टि नहीं हुई है.(bbc.com/hindi)
अंग्रेज़ी अख़बार द इंडियन एक्सप्रेस को दिए गए इंटरव्यू में गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने कहा है कि उनसे एक रात पहले केंद्रीय नेतृत्व ने इस्तीफ़ा देने को कहा था.
11 सितंबर, 2021 को विजय रूपाणी ने गुजरात के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा दिया था. इस इस्तीफ़े के एक साल बाद अख़बार को दिए गए इंटरव्यू में रूपाणी ने बताया कि "मुझे एक रात पहले बीजेपी 'हाईकमान' ने इस्तीफ़ा देने को कहा और अगले ही दिन मैंने इस्तीफ़ा दे दिया. मैंने उनसे कोई वजह नहीं मांगी और उन्होंने मुझे इस्तीफ़ा मांगने की कोई वजह भी नहीं बताई. लेकिन मैं हमेश ही पार्टी का अनुशासित कार्यकर्ता रहा हूं और मैंने हमेशा वहीं किया जो पार्टी ने मुझसे करने को कहा.
"मुझे पार्टी ने मुख्यमंत्री बनाया तो मैं बन गया. फिर पार्टी ने जब कहा की वो सीएम बदलता चाहते हैं तो मैं उस पद से हट गया. "
अख़बार को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि जब उनसे एक रात पहले इस्तीफ़ा मांगा गया तो उन्होंने बिना किसी खींचतान के इस्तीफ़ा दे दिया.
अंग्रेजी अख़बार टाइम्स आफ़ इंडिया में छपी रिपोर्ट के अनुसार, आम आदमी पार्टी से जुड़े रहे इवेंट्स कंपनी 'ओनली मच लाउडर' के पूर्व सीईओ विजय नायर को दिल्ली आबकारी नीति मामले में अनियमितताओं के केस में सीबीआई ने गिरफ्तार किया है.
सीबीआई की एफआईआर में पांच लोगों का नाम है जिसमें में से एक नाम नायर का है
मंगलवार को नायर को सीबीआई मुख्यालय में पूछताछ के लिए बुलाया गया. उन पर आपराधिक षड्यंत्र रचने का आरोप है. जब ये एफ़आईआर दर्ज की गई तो विजय नायर विदेश में थे और कहा जा रहा था कि वह देश छोड़ कर भाग गए हैं. जिसके बाद उन्होंने बयान जारी करके इस दावे का खंडन किया था.
दिल्ली के उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना ने दिल्ली आबकारी नीति 2021-22 की सीबीआई जांच की सिफारिश की थी और इस मामले पर एफआईआर दर्ज की गई. इसके बाद दिल्ली सरकार ने घोषणा की थी कि वह नीति वापस ले रही है.
सीबीआई की एफआईआर में कहा गया कि सूत्र ने बताया कि कुछ एल -1 लाइसेंस धारक खुदरा विक्रेताओं को क्रेडिट नोट जारी कर रहे हैं, जिससे सरकारी कर्मचारियों को अनुचित आर्थिक लाभ पहुंचाया जा सके. इसके अलावा वे अपने रिकॉर्ड को सही रखने के लिए अपने खातों की किताबों में झूठी एंट्री दिखा रहे हैं. (bbc.com/hindi)
-फ़ैसल मोहम्मद अली
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के समर्थकों ने पिछले दो दिनों में जो किया उसके बाद ये सवाल खड़ा हो गया है कि क्या कांग्रेस में गांधी परिवार का दबदबा कम हो गया है?
दो साल पहले राजस्थान में कांग्रेस की सरकार को बीजेपी के कथित ऑपरेशन लोट्स से बचाने वाले अशोक गहलोत के गुट ने जयपुर में तय कार्यक्रम की जगह अपनी बैठक कर पार्टी पर दबाव बनाने की कोशिश की और दिल्ली से कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी द्वारा भेजी गई टीम को विधायकों से भेंट किए बिना ही बैरंग वापस लौटना पड़ा.
जयपुर प्रकरण को लेकर कौन क्या कहेगा ये इस पर निर्भर करेगा कि आप बात किससे कर रहे हैं.
कांग्रेस के लोग इसे पार्टी में लोकतंत्र की जड़े होने के रूप में बढ़ा-चढ़ा कर पेश करने की कोशिश करेंगे, गहलोत ख़ेमे का तर्क होगा कि ये ऐसे कुछ लोगों का बुना गया जाला है जो उन्हें अध्यक्ष पद पर नहीं देखना चाहते हैं. वहीं बीजेपी वाले व्यंग्य से कहेंगे कि राहुल पहले अपना घर बचाएं फिर भारत जोड़ने निकलें.
लेकिन राजनीति पर पैनी नज़र रखनेवालों का मानना है कि कांग्रेस हाई-कमान का प्रभाव सालों नहीं बल्कि दशकों से धीरे-धीरे नीचे जाता रहा है, हां, आजकल उनकी अनदेखी बार-बार खुलकर सामने आती रहती है.
राजनीतिक विश्लेषक और लेखक रशीद क़िदवई कहते हैं, "ये याद रखने की ज़रूरत है कि हम राजनीति और राजनीतिज्ञ से डील कर रहे हैं जहां आपकी ऑथरिटी इस बात पर निर्भर करती है कि आप चुनाव में कितनी बड़ी जीत दिला सकते हैं."
"पार्टी को नरेंद्र मोदी की तरह विजय रथ पर बिठाने की क्षमता हो तो आप चुनाव हारे हुए पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री के पद पर स्थापित कर सकते हैं."
भोपाल से फ़ोन पर हमसे बात करते हुए रशीद क़िदवई कहते हैं, "मध्य प्रदेश की बागडोर शिवराज सिंह चौहान को मिल सकती है, बावजूद इसके कि प्रदेश चुनाव में जब बीजेपी पीछे रह गई थी, तब वो ही सूबे के प्रमुख थे."
"बिहार में मार्च 1990 में लालू प्रसाद यादव की सरकार बनने के पहले नौवीं राज्य विधानसभा में 'चार मुख्यमंत्री' बिठाए गए और हर बार थोड़े हो-हल्ला के बाद मामला 'सबकी सहमति से सुलझ' गया जिसके लिए 'कंसेंसस' शब्द का प्रयोग कांग्रेस के लोग किया करते थे."
अब लेकिन चंद सालों से हालात बदले दिख रहे हैं. इसी साल की बात करें तो 23 बड़े नेताओं ने पार्टी प्रमुख को पत्र भेजकर संगठन में कमियों को उजागर किया, उनमें से ग़ुलाम नबी आज़ाद और कपिल सिब्बल पार्टी छोड़ चुके हैं, आनंद शर्मा ने ख़ुद को अलग-थलग कर लिया है.
राहुल गांधी के इनर सर्किल में समझे जानेवाले ज्योतिरादित्य सिंधिया, आरपीएन सिंह, जितिन प्रसाद का क़िस्सा भी बहुत पुराना नहीं है.
अंग्रेज़ी दैनिक डेक्कन हेराल्ड के पूर्व संपादक के सुब्रमन्या का मानना है कि किसी भी राजनीतिक दल की ओर आकर्षण के दो मुख्य बिंदु होते हैं - विचारधारा और शक्ति यानी सत्ता तक पहुंच की संभावना.
इस पैमाने पर के सुब्रमन्या के अनुसार 'कांग्रेस पार्टी किसी भी रूप में एक विकल्प नहीं है, पार्टी छह सालों से सत्ता के बाहर है और क्या किसी को यक़ीन है कि कांग्रेस साल 2024 में सत्ता में वापसी कर पाएगी?'
वो कहते हैं "जो आज 60 साल के हैं वो सोचते हैं कि जब 2029 आएगा तब हम 70 के, या जो आज 70 के हैं वो सोचते हैं कि हम 80 के होंगे, तो हमारे बारे में तब कौन सोचेगा, हमें मौक़ा मिलेगा."
सुब्रमन्या ने कहा कि 1990 के दशक के शुरुआती सालों में जब नरसिम्हा राव पार्टी के पद पर रहे तो सारा दल उनके साथ खड़ा रहा और फिर सीताराम केसरी के साथ हो लिया, लेकिन उसके बाद हुए 1998 के चुनावों में भी कांग्रेस सत्ता के क़रीब नहीं पहुंच पाई तो सीताराम केसरी को बड़ी बुरी तरीक़े से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया.
कांग्रेस के साथ क़रीब से काम करनेवाले एक व्यक्ति का कहना है कि पार्टी की पिछले दो दिनों में जो जग हंसाई हुई है और हाल के दूसरे मामलों में जो हालात बनते रहे हैं उसके लिए वो राहुल गांधी को ज़िम्मेदार मानते हैं. उनके अनुसार राहुल एक समूह से घिरे हैं, उन्हीं के माध्यम से काम करते हैं, और अपने सांसदों तक को मिलने का समय नहीं देते.
इस व्यक्ति ने बताया, "पार्टी के पुराने वफ़ादार और सीनियर नेता एके एंटनी जब रिटायरमेंट लेकर केरल वापस जा रहे थे तो उन्हें भाई-बहन ने विदाई भोज तक देना मुनासिब न समझा, सोनिया गांधी तो ख़ैर इन दिनों स्वस्थ नहीं हैं."
"टॉम वडक्कन जैसे लंबे समय के वफ़ादार कार्यकर्ता ने पार्टी इसलिए छोड़ी क्योंकि राहुल गांधी ने कई बार लोगों के सामने खुले तौर पर उनके साथ बुरा बर्ताव किया. वो अच्छे व्यक्ति हो सकते हैं लेकिन उन्हें नहीं मालूम कि लोगों से किस तरह मिला-जुला जाता है."
हालांकि रशीद क़िदवई का कहना है कि ये सब कहानियां भी इसी वजह से बाहर आ रही हैं क्योंकि सत्ता अभी दूर है और आगे भी कोई साफ़ राह नहीं दिख रही.
कांग्रेस और भारतीय राजनीति पर कई किताबें लिख चुके रशीद क़िदवई कहते हैं, "राहुल गांधी या प्रियंका को लेकर जिस तरह की बातें कही जा रही हैं उनकी वैसी शख्सियत एक दिन में थोड़े ही तैयार हो गई होगी, वो वैसे ही थे, लेकिन अब वो बातें बाहर कही जा रही हैं."
जयपुर प्रकरण को लेकर राजस्थान से प्रकाशित होनेवाले अख़बार दैनिक नवज्योति के संपादक त्रिभुवन का कहना है कि "शायद अशोक गहलोत को ठीक तरीक़े से भरोसे में नहीं लिया गया, और मेरे विचार से तो उन्हें पहले कांग्रेस अध्यक्ष बन जाने देना था फिर राजस्थान के मुख्यमंत्री के प्रश्न को सुलझाया जाना चाहिए था."
रशीद क़िदवई इसका दूसरा पहलू बताते हुए कहते हैं कि जिस प्रदेश के मुख्यमंत्री ने पांच-पांच सदस्यों - मनमोहन सिंह, मुकुल वासनिक, प्रमोद तिवारी और अन्य को राज्य सभा तक पहुंचाने के रास्ते बनाए हों, उन्हें हैंडल करने में सतर्क रहा जाना चाहिए.
सुब्रमन्या कहते हैं कि कांग्रेस का संगठनात्मक ढांचा 1970 के दशक से ही कमज़ोर होने लगा था, जब इंमरजेंसी के आसपास से इंदिरा गांधी से वफ़ादारी विचारधारा और प्रभाव से ऊंचे पायदान पर रखकर देखी जाती थी, तभी से नाते-रिश्तेदारों को प्राथमिकता मिलने लगी और फिर चूँकि कांग्रेस सत्ता-शक्ति दिलवा सकती थी तो लोग उसके क़रीब आने लगे.
निचले स्तर पर - ग्राम, पंचायत, ब्लाक, ज़िला स्तर पर जो कमज़ोरी तब घुसी वो धीरे-धीरे ऊपर को बढ़ने लगी और अब पूरा चक्र (फुल सर्किल) तैयार हो गया है. वो कहते हैं, "सोनिया गांधी बिल्कुल अस्वस्थ्य हैं, राहुल गांधी सत्ता दिलवाते नहीं दिखते, और उत्तर प्रदेश के चुनाव में प्रियंका गांधी के वोटरों में प्रभाव को तौला जा चुका है."
सुब्रमन्या कहते हैं कि कांग्रेस का दरबार कल्चर धीरे-धीरे बीजेपी में भी दिखने लगा है, उसके साथ फर्क़ यही है कि उसका एक ऑडियोलॉजिकल माइंडर - आरएसएस - है, यानी एक ऐसी संस्था जो देख रही है कि पार्टी विचारधारा पर चल रही है या नहीं.
जाने-माने टीवी एंकर और लेखक राजदीप सरदेसाई ने अपने एक ट्वीट में लिखा है - "दो हाई कमांड की कहानी - कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव को लेकर संघर्ष कर रही है, इधर बीजेपी जेपी नड्डा को दूसरी बार 'चुनने' वाली है. जो दिल्ली की सत्ता में है वो हाई कमांड है, जब विपक्ष में है तो न तो हाई है न कमांड."
शायद यहीं इस पूरी कहानी का सार है. (bbc.com/hindi)
पणजी, 28 सितंबर। गोवा की पुलिस ने राज्य के लोगों से स्कूलों से बच्चों के अपहरण के प्रयास की अफवाहों पर विश्वास नहीं करने की अपील करते हुए कहा कि ऐसी कोई घटना सामने नहीं आई है।
वास्को शहर में एक लड़के के कथित अपहरण के मामले में भीड़ द्वारा एक व्यक्ति की पिटाई करने के बाद पुलिस ने मंगलवार को यह बयान जारी किया।
पुलिस महानिदेशक जसपाल सिंह ने ट्वीट किया, ‘‘कुछ स्कूल अपहरण के प्रयास की घटनाओं के आधार पर परामर्श जारी कर रहे हैं। यह स्पष्ट किया जाता है कि ऐसी कोई घटना नहीं हुई है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘हालांकि सावधान रहना जरूरी है, हम सभी से अफवाहों पर विश्वास न करने की अपील करते हैं, क्योंकि इससे माहौल बिगड़ सकता है।’’
वास्को पुलिस के अनुसार, भीड़ ने एक लड़के के अपहरण में शामिल होने के संदेह में एक व्यक्ति पर हमला कर दिया था।
पुलिस के एक अधिकारी ने कहा, ‘‘ वह व्यक्ति मानसिक रूप से ठीक नहीं है और उसे उचित अदालती आदेश मिलने के बाद ‘इंस्टीट्यूट ऑफ साइकेट्री एंड ह्यूमन बिहेवियर’ (पणजी के पास) में भर्ती कराया जाएगा।’’ (भाषा)
पटना, 28 सितंबर। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के पटना सर्कल ने भारत में मौर्य साम्राज्य (322-185 ईसा पूर्व) की सबसे पुरानी जीवित 'रॉक कट' गुफाएं बराबर और नागार्जुन को यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों की अस्थायी सूची में शामिल किए जाने के लिए गुफाओं का प्रस्ताव भेजने का फैसला किया है।
बिहार में जहानाबाद जिले के मखदुमपुर क्षेत्र में स्थित बराबर हिल, जो कि चार गुफाओं के समूह को समेटे हुए है, को सामूहिक रूप से 'बराबर गुफाएँ' कहा जाता है। इनका नाम है: लोमस ऋषि गुफा, सुदामा गुफा, विश्वकर्मा गुफाएं और करण चौपर गुफा।
बराबर पहाड़ियों की गुफाओं से दो किलोमीटर की दूरी पर नागार्जुनी पहाड़ियाँ (तीन गुफाएँ) हैं। माना जाता है कि दोनों ही समकालीन हैं।
एएसआई पटना सर्कल की अधीक्षण पुरातत्वविद् गौतमी भट्टाचार्य ने बताया, ‘‘हम इस संबंध में एक विस्तृत प्रस्ताव तैयार कर रहे हैं और इसे जल्द ही विश्व धरोहर स्थलों की अपनी अस्थायी सूची में शामिल करने के लिए यूनेस्को को भेजा जाएगा। एएसआई मुख्यालय (नई दिल्ली) के माध्यम से प्रस्ताव यूनेस्को को भेजा जाएगा।"
उन्होंने कहा, "इन गुफाओं को उच्च स्तर की समरूपता के साथ बहुत कठोर ग्रेनाइट मोनोलिथिक पत्थर में बनाया गया है और अत्यधिक पॉलिश आंतरिक सतह (प्रसिद्ध मौर्य कालीन पॉलिश) है जो भारतीय कारीगरों की, यहां तक की लगभग 2200 साल पहले की अद्वितीय और अद्भुत शिल्प कौशल को दर्शाता है।"
उन्होंने कहा कि लोमस ऋषि भारत के सबसे पुराने रॉक कट कक्षों में से एक है। गुफा में एक दिलचस्प मेहराब के आकार का प्रवेश द्वार है जो समय की लकड़ी की संरचना का अनुकरण करता है।
भट्टाचार्य ने कहा कि सुदामा परिसर में एक और सबसे पुरानी गुफा जो करण चौपर के सामने स्थित है और लोमस ऋषि के करीब है। प्राचीन ब्राह्मी लेखन में शिलालेखों के अनुसार गुफा को सम्राट अशोक ने अपने शासनकाल के 12वें वर्ष 261 ईसा पूर्व में समर्पित किया था। उन्होंने कहा कि हाल ही में विशेषज्ञों ने इन गुफाओं का दौरा किया था और अब वे एक विस्तृत प्रस्ताव तैयार कर रहे हैं।
नागार्जुन गुफाओं के बारे में उन्होंने कहा कि नागार्जुन पहाड़ियों में तीन गुफाओं की खुदाई की गई है वदथी-का-कुभा, वापिया-का-कुभा और गोपी-का-कुभा। गुफा में कई महत्वपूर्ण शिलालेख हैं, इनमें से कुछ इस बात की गवाही देते हैं कि अशोक के पुत्र दशरथ (232-224 ईसा पूर्व शासनकाल) ने इन गुफाओं को आजिविका को समर्पित किया है। अजीविका एक तपस्वी संप्रदाय जो भारत में जिस समय बौद्ध और जैन धर्म के समय में ही उभरा था और जो 14 वीं शताब्दी तक चला।
उन्होंने कहा कि एक बार इन गुफाओं बराबर और नागार्जुन को विश्व धरोहर स्थलों की अस्थायी सूची में शामिल कर लिया जाए तो उनका उचित रखरखाव भी शुरू हो जाएगा। (भाषा)
इंदौर (मध्य प्रदेश), 28 सितंबर। इंदौर में बेसहारा कुत्तों के गुप्तांगों पर पेट्रोल छिड़क कर उन्हें भयंकर पीड़ा देने वाले दो लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। पुलिस के एक अधिकारी ने बुधवार को यह जानकारी दी।
संयोगितागंज पुलिस थाने के एक अधिकारी ने बताया कि शहर के जावरा कम्पाउंड स्थित एक डेयरी के दो कर्मचारियों पर आरोप है कि वे बेसहारा कुत्तों के गुप्तांगों पर सीरिंज से पेट्रोल छिड़क कर लंबे वक्त से उन्हें परेशान कर रहे थे।
अधिकारी ने बताया कि क्रूरता से भरी इस हरकत के कारण बेजुबान जानवर दर्द से छटपटाते थे। इस हरकत की जानकारी मिलने पर पशु हितैषी संगठन ‘‘पीपुल फॉर एनिमल्स’’ की इंदौर इकाई की अध्यक्ष प्रियांशु जैन ने पशु क्रूरता निवारण अधिनियम और अन्य संबद्ध प्रावधानों के तहत संयोगितागंज पुलिस थाने में मंगलवार रात प्राथमिकी दर्ज कराई।
जैन ने बताया, ‘‘चश्मदीदों ने हमें बताया कि गुप्तांगों पर पेट्रोल छिड़के जाने के कारण दर्द से छटपटाते कुत्तों को देखकर आरोपी खुश हो रहे थे। वे अपने मजे के लिए बेजुबान जानवरों को भयंकर पीड़ा दे रहे थे।’’
गौरतलब है कि जिस डेयरी के कर्मचारियों ने बेसहारा कुत्तों के साथ क्रूरता की, वह शहर में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के मुख्य कार्यालय से सटी है।
पुलिस के एक अधिकारी ने बताया कि आरोपियों को अभी गिरफ्तार नहीं किया गया है।(भाषा)
बस्ती (उत्तर प्रदेश) 28 सितंबर। बस्ती जिले की एक अदालत ने अपनी बेटी को जलाकर मारने के दोषी व्यक्ति और एक रिश्तेदार को आजीवन कारावास की सा सुनाई है और जुर्माना भी लगाया है। एक अधिकारी ने यह जानकारी दी।
जिला अपर शासकीय अधिवक्ता राघवेश प्रसाद पांडे ने बुधवार को बताया कि घटना वाल्टरगंज थाना क्षेत्र के खरहरा शुक्ल गांव की थी। वाजिद अली की पत्नी सकरुन्निसा ने थाना वाल्टरगंज में 18 मई 2017 को दर्ज कराए गए मुकदमे में आरोप लगाया था कि उनकी बेटी बेबी मोबाइल फोन पर बात कर रही थी, जिससे उसके चाचा अहमद और पिता वाजिद अली खफा हो गए और केरोसिन छिड़ककर उसे जला दिया।
उन्होंने बताया कि गंभीर रूप से झुलसी बेबी की गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में इलाज के दौरान मौत हो गई थी।
न्यायाधीश शिवचंद की अदालत ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद मंगलवार को आरोपी पिता और चाचा को दोषी करार देते हुए उम्रकैद तथा 20-20 हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई। (भाषा)
बेंगलुरु, 28 सितंबर। कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने बुधवार को पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) पर प्रतिबंध लगाने के केंद्र सरकार के निर्णय का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि इस कदम से सभी “राष्ट्र विरोधी तत्वों” को संदेश जाएगा कि इस देश में उनके लिए कोई जगह नहीं है।
पीएफआई पर कथित रूप से आतंकी गतिविधियों में शामिल होने के लिए प्रतिबंध लगाया गया है। बोम्मई ने कहा कि राज्य में पीएफआई की गतिविधियों को रोकने के लिए हर संभव प्रयास किया जाएगा।
मुख्यमंत्री ने कहा, “इस देश के लोगों और विपक्षी दलों मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) और कांग्रेस समेत सभी राजनीतिक दलों की ओर से लंबे समय से यह मांग की जा रही थी। पीएफआई, सिमी (स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया) और केएफडी (कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी) का अवतार है। ये राष्ट्र विरोधी गतिविधियों और हिंसा में लिप्त थे।”
बोम्मई ने यहां संवाददाताओं से कहा कि पीएफआई के आका देश के बाहर स्थित हैं और उसके कुछ पदाधिकारी प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए सीमापार तक जा चुके हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि पीएफआई सभी तरह की असामाजिक गतिविधियों में शामिल रहने वाला संगठन है और इस पर प्रतिबंध लगाने का समय आ गया है।
उन्होंने कहा, “इसकी पृष्ठभूमि में बहुत सारा काम किया गया, सूचनाएं एकत्र की गईं और मामला बनाया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के नेतृत्व में सही निर्णय लिया गया है।”
बोम्मई ने कहा, “यह सभी राष्ट्र विरोधी समूहों के लिए संदेश है कि इस देश में उनके लिए कोई जगह नहीं है। मैं लोगों से भी आग्रह करता हूं कि वे ऐसे संगठनों में शामिल न हों।”
कर्नाटक में पीएफआई के मजबूत होने और उसके लिए राज्य सरकार द्वारा उठाए गए कदम के बाबत पूछे गए सवाल के जवाब में बोम्मई ने कहा, “जो कुछ भी जरूरी होगा वह किया जाएगा।” (भाषा)
मुंबई, 28 सितंबर। बंबई उच्च न्यायालय ने कहा है कि केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने अभिनेत्री जिया खान की आत्महत्या के मामले की निष्पक्ष और विस्तृत जांच की है लेकिन जिया की मां राबिया खान इसे हत्या बताकर मामले की सुनवाई में विलंब करना चाहती हैं।
न्यायमूर्ति ए. एस. गडकरी और न्यायमूर्ति एम. एन. जाधव की एक खंडपीठ ने 12 सितंबर को दिए आदेश में यह कहा। इसके साथ ही अदालत ने राबिया खान की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें इस मामले की जांच फिर से करवाने का अनुरोध किया गया था।
राबिया ने अपनी याचिका में यह भी कहा था कि इस मामले की जांच अमेरिका की संघीय जांच एजेंसी (एफबीआई) से करवाई जानी चाहिए।
अदालत के आदेश की विस्तृत प्रति मंगलवार को उपलब्ध हुई। पीठ ने कहा कि वह अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर एफबीआई को मामले की जांच करने का निर्देश नहीं दे सकते।
वर्तमान में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) इस मामले की जांच कर रही है। सीबीआई का आरोप है कि जिया के मित्र सूरज पंचोली ने उसे तीन जून 2013 को आत्महत्या करने के लिए उकसाया। वहीं, राबिया का दावा है कि जिया की हत्या की गई।
अदालत ने अपने आदेश में कहा कि सीबीआई ने हर पहलू से इस मामले की जांच की और पाया कि यह आत्महत्या का मामला है। (भाषा)
मुजफ्फरनगर (उत्तर प्रदेश), 28 सितंबर। मुजफ्फरनगर से सटे शामली जिले में टॉफी देने के बहाने छह साल की बच्ची से बलात्कार के आरोप में 60 वर्ष के व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया है। पुलिस के एक अधिकारी ने यह जानकारी दी।
अपर पुलिस अधीक्षक ओपी सिंह ने दर्ज रिपोर्ट के हवाले से बुधवार को बताया कि गढ़ी पुख़्ता थाना क्षेत्र के एक गांव में सोमवार को 60 वर्षीय सोमपाल ने अपने पड़ोस में रहने वाली छह साल की बच्ची को टॉफी देने के बहाने अपने घर बुलाया और वहां उससे बलात्कार बनाया।
उन्होंने बताया कि इस मामले में सोमपाल के खिलाफ मामला दर्ज कर उसे मंगलवार को गिरफ्तार कर लिया गया।
सिंह ने बताया कि पुलिस आरोपी के खिलाफ अदालत में जल्द से जल्द आरोप पत्र दाखिल करने का प्रयास करेगी ताकि बच्ची को शीघ्र न्याय मिल सके। (भाषा)
लखीमपुर खीरी (उत्तर प्रदेश), 28 सितंबर। लखीमपुर खीरी जिले के ईसानगर क्षेत्र में बुधवार सुबह एक ट्रक और निजी बस के बीच भीषण टक्कर में कम से कम आठ लोगों की मौत हो गई तथा 14 अन्य घायल हो गए। अधिकारियों ने यह जानकारी दी।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस घटना पर दुख जाहिर करते हुए घायलों के समुचित इलाज के निर्देश दिए हैं।
पुलिस उपाधीक्षक प्रीतम पाल सिंह ने बताया कि धौरहरा से यात्रियों को लेकर लखनऊ जा रही एक निजी बस की राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 730 पर ऐरा पुल पर सामने से आ रहे एक ट्रक से जोरदार टक्कर हो गई। इस हादसे में कम से कम आठ लोगों की मौत हो गई। मृतक संख्या बढ़ने की भी आशंका है।
उन्होंने बताया कि सूचना मिलने पर मौके पर पहुंची पुलिस ने बचाव का काम शुरू कराया और घटना में बुरी तरह पिचक चुकी बस को गैस कटर से काट कर मृतकों और घायलों को बाहर निकाला गया दुर्घटना में घायल हुए 14 लोगों को जिला अस्पताल भिजवाया गया है।
सूत्रों के मुताबिक शवों की शिनाख्त की जा रही है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस घटना पर दुख प्रकट किया है।
राज्य सरकार के एक प्रवक्ता के मुताबिक, मुख्यमंत्री ने दिवंगत आत्माओं की शांति की कामना करते हुए शोक संतप्त परिजनों के प्रति संवेदना प्रकट की है। साथ ही दुर्घटना में घायल लोगों को तत्काल अस्पताल पहुंचाकर उनके समुचित उपचार के निर्देश दिए हैं। साथ ही राहत कार्य को युद्ध स्तर पर चलाने के आदेश भी जारी किए हैं। (भाषा)
नयी दिल्ली, 28 सितंबर। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने दिल्ली आबकारी नीति के क्रियान्वयन में कथित अनियमितताओं से जुड़े धन शोधन के मामले में शराब कारोबारी समीर महेन्द्रू को बुधवार सुबह गिरफ्तार किया। आधिकारिक सूत्रों ने यह जानकारी दी।
महेन्द्रू इंडोस्पिरिट्स नाम कंपनी के प्रबंध निदेशक हैं। सूत्रों ने कहा कि रातभर चली पूछताछ के बाद महेन्द्रू को धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमलए) के आपराधिक प्रावधानों के तहत हिरासत में लिया गया। आरोपी को एक स्थानीय अदालत में पेश किया जाएगा जहां ईडी उसकी रिमांड का अनुरोध करेगी।
इस मामले में एक दिन पहले केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने व्यवसायी विजय नायर को गिरफ्तार किया था। दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया भी (अब खत्म कर दी गई) शराब नीति के क्रियान्वयन में कथित अनियमितताओं के मामले में आरोपी हैं।
सीबीआई द्वारा प्राथमिकी के आधार पर ईडी ने धन शोधन का मामला दर्ज किया है और अब तक दोनों एजेंसियों ने इस मामले में कई तलाशी अभियान चलाये हैं।
सीबीआई की प्राथमिकी में आरोप लगाया गया है कि सिसोदिया के कथित सहयोगी अर्जुन पांडेय ने नायर की ओर से महेन्द्रू से दो से चार करोड़ रुपये लिए थे। नायर, एक मनोरंजन कंपनी ओनली मच लॉउडर का पूर्व सीईओ हैं। (भाषा)
बिलासपुर, 28 सितंबर। हसदेव बचाओ आंदोलन के दो सदस्य प्रथमेश मिश्रा और चंद्रप्रदीप वाजपेयी ने आज से आमरण अनशन शुरू करने का निर्णय लिया है। उन्होंने कहा है कि जब तक कटाई पर रोक नहीं लगती है उनका अनशन समाप्त नहीं होगा।
उल्लेखनीय है कि शहर में विभिन्न सामाजिक संगठन पिछले 138 दिनों से लगातार धरना देकर हसदेव में कोयला खनन की अनुमति देने का विरोध कर रहे हैं। मंगलवार को जैसे ही आंदोलनकारियों को पता चला कि हसदेव क्षेत्र में प्रशासन ने बलपूर्वक पेड़ों की कटाई शुरू कर दी है और विरोध करने वाले ग्रामीणों को गिरफ्तार कर लिया है, आंदोलन से जुड़े लोग धरना स्थल कोन्हेर गार्डन पहुंचने लगे। सभी ने कलेक्ट्रेट पहुंचकर मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपा और वृक्षों की कटाई बंद कर ग्रामीणों की निःशर्त रिहाई की मांग की।
पेड़ों की कटाई के विरोध में बुधवार से हसदेव बचाओ आंदोलन से जुड़े प्रथमेश मिश्रा और चंद्रप्रदीप बाजपेयी ने आमरण अनशन शुरू करने की घोषणा कर दी है। प्रथमेश मिश्रा इंजीनियर हैं, जो नेचर क्लब तथा अन्य स्वयंसेवी संगठनों से जुड़े हैं। बाजपेयी कांग्रेस के पूर्व पार्षद हैं, उन्होंने अपने वार्ड में हरियाली के लिए सैकड़ों पौधे लगाकर उनकी देखभाल की जिम्मेदारी ले रखी है।
आंदोलनकारियों ने बुधवार की शाम 6 बजे कैंडल मार्च निकालने का भी निर्णय लिया है। कलेक्टर को ज्ञापन सौंपने वालों में साकेत तिवारी, सतमीत सिंग, अमित वासुदेव, रतीश श्रीवास्तव, योगेश गुप्ता, पवन पांडेय, निलोत्पल शुक्ला, असीम तिवारी, राकेश खरे, श्रेयांश बुधिया, महमूद हसन रिजवी, प्रदीप नारंग, नंद कश्यप,जसबीर सिंह, प्रियंका शुक्ला, अनिलेश मिश्रा, डॉक्टर रश्मि बुधिया, संत कुमार नेताम, जितेन्द्र साहू, राजू साहू, राजेश खरे इत्यादि शामिल थे।
रायपुर, 28 सितम्बर। निगम लोककर्म विभाग के अध्यक्ष ज्ञानेष शर्मा ने विभाग के सभी 10 जोनों के कार्यपालन अभियंताओं की बैठक की इसमें अधीक्षण अभियंता विनोद देवांगन, हेमंत शर्मा को नगर विकास कार्यो के संबंध में आवश्यक निर्देश दिये।
शर्मा ने निविदा स्वीकृति एवं कार्यादेश के बाद कुल 4 करोड़ की लागत से राजधानी के निगम क्षेत्र की सड़कों के गड्ढों को पाटने,डामर पैच वर्क पर चर्चा की। उन्होंने गुणवत्ता युक्त कार्य करने आॅल लेवल माॅनिटरिंग किये जाने के निर्देष दिये है। उन्होने डामर पेंच वर्क के सभी विकास कार्यो को समय सीमा सहित गुणवत्ता का विशेष ध्यान रखकर व्यवस्थित रूप से करवाकर कार्यपालन अभियंताओं, सहायक अभियंताओं, उपअभियंताओं को सभी पेंचवर्क कार्यो के स्थल पर निरीक्षण करने कहा।
बैठक के दौरान शर्मा ने अधोसंरचना मद के विकास कार्यो एवं उनकी प्रगति की जानकारी ली।उन्होने महापौर एजाज ढेबर के मोर महापौर मोर द्वार शिविरों में सभी वार्डो में 25-25 लाख के विकास कार्यो की निविदा कार्यवाही की प्रगति की जानकारी ली।
रायपुर, 28 सितम्बर। महिला बाल विकास विभाग ने प्रदेश भर की 95 परियोजना पर्यवेक्षकों का तबादला किया है। आदेश देखें ------
रायपुर, 28 सितम्बर। राजधानी तहसील के राजस्व अधिकारियों की मिली भगत से पंडरी स्थित 30 हजार वर्ग फीट जमीन के मालिकाना हक में फेरबदल का मामला सामने आया है। इसमें पटवारी,और अन्य राजस्व अमले की भूमिका संदिग्ध बताई गई है।
सिविल लाइन पुलिस के अनुसार चौबे कालोनी निवासी निर्मल महावर की पण्डरी तराई स्थित 30492 वर्गफीट भूमि को भजनलाल अग्रवाल ने साथ अन्य लोगों ने राजस्व अधिकारी के
साथ सांठगांठ कर अपने नाम दर्ज करा लिया। महावर के आवेदन पर 420,34 का अपराध कायम जांच शुरू कर दी गई है। महावर की रिपोर्ट के अनुसार भूमि स्वामित्व में यह हेराफेरी 24 अगस्त को की गई।
-प्रदीप सरदाना
आशा पारेख को उनके 80 वें जन्म दिन से ठीक पहले दादा साहब फाल्के पुरस्कार मिलना उनके लिए एक खूबसूरत सौगात है. उनका 2 अक्टूबर को 80वां जन्म दिन है. जबकि इस बार का राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार समारोह 30 सितंबर को होना निश्चित हुआ है.
हिन्दी सिनेमा की दिलकश और बेहद सफल अभिनेत्री आशा पारेख ने अपने फ़िल्म करियर में एक से एक यादगार फ़िल्म की है. जब प्यार किसी से होता है, तीसरी मंज़िल, लव इन टोक्यो, दो बदन, उपकार, कन्यादान, आन मिलो सजना, कटी पतंग, समाधि और मैं तुलसी तेरे आँगन की.
इधर आशा पारेख को सन 2020 के लिए भारतीय सिनेमा का यह शिखर पुरस्कार मिलना और भी बड़ी बात है, क्योंकि भारत सरकार ने 37 साल बाद किसी फ़िल्म अभिनेत्री को फाल्के सम्मान दिया है. पिछली बार वर्ष 1983 के लिए अभिनेत्री दुर्गा खोटे को यह सम्मान मिला था, अन्यथा फाल्के पुरस्कार पर अधिकतर पुरुषों का वर्चस्व रहा है.
जबकि फाल्के पुरस्कार की शुरुआत सन 1969 में अभिनेत्री देविका रानी के साथ हुई थी, जब 1970 में 17 वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में देविका को इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, लेकिन बाद में पुरुष ही इस पुरस्कार को ज्यादा पाते रहे.
आशा के बाद अब फिर आशा
जहां तक किसी महिला को फाल्के सम्मान मिलने की बात है तो कोई महिला फिर 22 साल बाद फाल्के सम्मान से पुरस्कृत होगी. दिलचस्प यह है कि 2000 में भी फाल्के सम्मान आशा को मिला था, गायिका आशा भोसले को, और अब भी आशा, आशा पारेख को.
आशा पारेख से मेरी अक्सर फोन पर बात होती रहती है. मैं उन्हें जब भी यह कहता था कि उन्हें फाल्के पुरस्कार मिलना चाहिए तो वह मुस्कुराकर बस यही कहतीं, "क्या कह सकते हैं."
अभी जब उन्हें यह पुरस्कार मिलने की घोषणा हुई तो वह अमेरिका में हैं, लेकिन उनकी कज़िन अमीना ने बताया कि वह 29 सितंबर को मुंबई पहुँच जाएंगी और फिर दिल्ली में यह पुरस्कार लेने के लिए उपस्थित रहेंगी.
दादा साहब फाल्के से पहले आशा पारेख 1992 में पद्मश्री से सम्मानित हो चुकी हैं.
बाल कलाकार के रूप में की थी शुरुआत
गुजरात में 2 अक्तूबर 1942 को जन्मी आशा पारेख के पिता बच्चूभाई पारेख एक हिन्दू गुजराती परिवार से थे, जबकि उनकी माँ सुधा उर्फ़ सलमा एक मुसलमान परिवार से थीं. बचपन में ही आशा पारेख ने क्लासिकल डांस सीखना शुरू कर दिया था. साल 1952 में 10 साल की उम्र में ही उन्हें बाल कलाकार के रूप में एक फ़िल्म मिल गई थी, जिसका नाम था 'माँ'.
असल में फ़िल्मों में जब उस दौर के मशहूर फ़िल्मकार बिमल रॉय ने बेबी आशा के एक डांस को देखा तो उन्हें अपनी फ़िल्म 'माँ' में एक भूमिका दे दी. इस फ़िल्म में भारत भूषण, लीला चिटनिस और श्यामा मुख्य भूमिकाओं में थे.
यहीं से आशा का फ़िल्मों में शौक़ जागा. इसके बाद बाल कलाकार के रूप में आशा ने आसमान, धोबी डॉक्टर, बाप बेटी, चैतन्य महाप्रभु, अयोध्यापति और उस्ताद जैसी कुछ और फ़िल्में भी कीं.
सुबोध मुखर्जी ने दिया पहला ब्रेक
बतौर नायिका आशा को पहला ब्रेक निर्माता सुबोध मुखर्जी ने दिया फ़िल्म 'दिल देके देखो' से. जब आशा ने इस फ़िल्म की शूटिंग शुरू की तब वह 16 बरस की थीं. इस फ़िल्म के नायक थे शम्मी कपूर और निर्देशक नासिर हुसैन.
यह फ़िल्म जब 1959 में प्रदर्शित हुई तो हिट हो गई. इसी के साथ फ़िल्म क्षितिज पर एक नई तारिका आशा चमक उठी. शम्मी कपूर के साथ भी आशा पारेख की जोड़ी काफ़ी पसंद की गई.
आशा पारेख
आशा पारेख ने शम्मी कपूर के साथ मैंने 'पगला कहीं का', 'जवां मोहब्बत' और 'तीसरी मंज़िल' जैसी फिल्में कीं, बाद में कुछ और भी.
उधर 'दिल देके देखो' से आशा इसके निर्देशक नासिर हुसैन को अपना दिल दे बैठीं. दोनों का नाता ऐसा जुड़ा जो सदा के लिए बना रहा. दोनों का प्रेम किसी से छिपा नहीं था, लेकिन नासिर हुसैन पहले से ही शादीशुदा थे. इसलिए सम्मान और मर्यादाओं के चलते दोनों ने शादी नहीं की.
हालांकि नासिर हुसैन के साथ आशा पारेख ने सात फ़िल्में कीं जिनमें जब प्यार किसी से होता है, फिर वही दिल लाया हूँ, तीसरी मंज़िल, बहारों के सपने, प्यार का मौसम, कारवां में आशा नायिका थीं. जबकि 1984 में नासिर की एक और फिल्म 'मंज़िल मंज़िल' में भी आशा थीं.
यहाँ तक आशा पारेख ने फिर किसी से शादी की ही नहीं, जबकि सन 1960 से 1970 के दौर में उनकी दीवानगी देखते ही बनती थी. कितने ही लोग आशा के साथ शादी के लिए मचलते थे.
हालांकि आशा पारेख ने अपनी अविवाहित ज़िंदगी को ख़ूब मजे़ से जिया. उन्हें यात्राओं का भी अच्छा शौक रहा है. फ़िल्मों में अभिनय से दूर होने पर वह सीरियल आदि के निर्माण में व्यस्त रहीं तो समाज सेवा के लिए भी वह काफ़ी कुछ करती रहती हैं.
जब तक उनकी माँ सुधा जीवित थीं, तब तक वह उनके साथ रहती थीं, लेकिन जब सुधा पारेख बीमार रहने लगीं तो उन्हें बेटी की चिंता होने लगी कि बाद में वह अकेली कैसे रहेगी, लेकिन उनकी माँ की यह चिंता दूर कि सुधा की दोस्त शम्मी आंटी ने.
शम्मी आंटी फ़िल्मों की पुरानी अभिनेत्री थीं, बाद में वह सीरियल निर्माता के रूप में भी काफ़ी मशहूर रहीं.
शम्मी आंटी ने एक बार मुझे बताया था- सुधा पारेख ने अपनी बीमारी के दिनों में मुझसे कहा- "आशा ने शादी नहीं की, मेरे बाद उसका ध्यान कौन रखेगा. यह चिंता मुझे बहुत सताती है. तब मैंने उनसे कहा-जब तक मैं ज़िंदा हूँ मैं उसकी देखभाल करूंगी."
शम्मी आंटी ने अपना यह वचन मरते दम तक यानी 6 मार्च 2018 तक निभाया, जबकि शम्मी, आशा से 16 बरस छोटी थीं, लेकिन दोनों में दोस्ती का रिश्ता रहा. बाद में दोनों ने मिलकर कुछ सीरियल भी बनाए.
वहीदा रहमान और हेलन हैं ख़ास दोस्त
आशा पारेख की फ़िल्मी दुनिया में यूं बहुत से दोस्त रहे, लेकिन उनकी सबसे ज़्यादा दोस्ती वहीदा रहमान और हेलन के साथ है. ये तीनों अक्सर साथ घूमती-फिरती भी हैं, तो आए दिन कभी किसी के घर तो कभी किसी के घर मिलती भी रहती हैं.
आशा पारेख बताती हैं, "हम तीनों में बहुत अच्छी दोस्ती है. हम कभी भी रविवार को किसी के भी घर लांच पर मिलते हैं. मज़े से साथ खाते हैं, ख़ूब गप्पें मारते हैं, मस्ती करते हैं."
हालांकि इससे पहले आशा पारेख कि इस दोस्त मंडली में शम्मी आंटी, साधना और शशि कला भी थीं, लेकिन उनके निधन के बाद इनकी यह टोली छोटी हो गई.
यहाँ यह भी दिलचस्स्प है कि पिछले कुछ बरसों से फाल्के सम्मान की मीटिंग में जिन अभिनेत्रियों के नाम की चर्चा होती है, उनमें वहीदा रहमान और हेलन का नाम भी शामिल है, लेकिन यह बाज़ी आशा पारेख ने जीत ली है.
राजेश, धर्मेन्द्र, शशि और जीतेंद्र के साथ जमी जोड़ी
आशा पारेख की जोड़ी शम्मी कपूर के साथ तो जमी ही, लेकिन मनोज कुमार, राजेश खन्ना, शशि कपूर, धर्मेन्द्र और जीतेंद्र जैसे हीरो के साथ भी इनकी जोड़ी ख़ूब जमी.
धर्मेन्द्र के साथ आशा पारेख ने 'मेरा गाँव मेरा देश','आया सावन झूम के','शिकार', 'आए दिन बहार के' और 'समाधि' जैसी फ़िल्में करके बॉक्स ऑफ़िस पर भी धूम मचा दी थी.
फिर मनोज कुमार के साथ भी आशा ने 'अपना बनाके देखो' और 'साजन' जैसी फ़िल्में कीं, लेकिन 'दो बदन' और 'उपकार' इनकी सुपर हिट फ़िल्म थी.
उधर शशि कपूर के साथ भी आशा की 'कन्या दान', 'प्यार का मौसम' जैसी दो फ़िल्में तो बहुत पसंद की गईं. यूं 'पाखंडी', 'रायजादे' और 'हम तो चले परदेस' में भी ये दोनों थे.
आशा की जोड़ी जॉय मुखर्जी के साथ भी तब सुपर हिट रही, जब ये दोनों फ़िल्म 'लव एंड टोक्यो' और 'फिर वही दिल लाया हूँ' में आए. वैसे एक और फिल्म 'जिद्दी' में भी इन्हें पसंद किया गया.
जीतेंद्र के साथ आशा पारेख की जोड़ी की बात करें तो इनकी 'कारवां' फिल्म सबसे ऊपर आएगी जिसने लोकप्रियता का नया इतिहास लिख दिया था. साथ ही 'नया रास्ता' और 'उधार का सिंदूर' भी इनकी सफल और अच्छी फिल्मों में आती है.
वहीं राजेश खन्ना के साथ तो आशा पारेख की अपने करियर की तीन बेहद लोकप्रिय फिल्में हैं. 'बहारों के सपने', 'आन मिलो सजना' और 'कटी पतंग'. ये तीनों फिल्में अपने गीत संगीत के लिए भी बहुत लोकप्रिय रहीं.
आशा पारेख ने यूं अपनी फिल्मों में चुलबुली, चंचल और शोख भूमिकाओं को एक नया आयाम दिया है. वहाँ शक्ति सामंत ने 'कटी पतंग' में उन्हें संजीदा भूमिका देकर उनके करियर को एक नई मंज़िल दे दी थी.
'कटी पतंग' के लिए आशा पारेख को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेयर अवॉर्ड भी मिला, जबकि 'कटी पतंग' की रिलीज़ से पहले कुछ लोगों का मत था कि आशा पारेख ने एक विधवा के रूप वाली भूमिका करके अपने करियर का अंत कर दिया है, लेकिन गुलशन नंदा के उपन्यास पर बनी इस फिल्म के बाद आशा पारेख के करियर और अभिनय में और भी चमक आ गई.
हालांकि इससे पहले राज खोसला अपनी 'दो बदन' और 'चिराग' जैसी दो फिल्मों में गंभीर और त्रासदी भूमिकाएं देकर उनके अभिनय कौशल को दिखा चुके थे जिसे खोसला ने 1978 में 'मैं तुलसी तेरे आँगन की' फिल्म में फिर दोहराया. यह फिल्म आशा पारेख की ज़िंदगी में मील का नया पत्थर साबित हुई.
और भी हैं कई यादगार फिल्में
आशा पारेख ने जहां 1952 में बाल कलाकार के रूप में शुरुआत की, वहाँ उनकी अंतिम फिल्म 1999 में आई 'सर आँखों पर'. इससे उनका कुल सक्रिय फिल्म करियर 47 साल का रहा, लेकिन बतौर नायिका वह 1959 में आईं और 1995 में उन्होंने 'आंदोलन' फिल्म के बाद फिल्मों में काम करना बंद कर दिया था. इस हिसाब से उनका करियर 36 साल का रहा. उनके करियर को ध्यान से देखें तो उसमें लगभग 75 फिल्में हैं, लेकिन उनमें हिट फिल्में काफी हैं.
आशा पारेख की अन्य प्रमुख फिल्मों में घराना, मेरी सूरत तेरी आँखें, भरोसा, मेरे सनम, ज्वाला, राखी और हथकड़ी, हीरा, रानी और लाल पारी, ज़ख्मी, बिन फेरे हम तेरे, सौ दिन सास के, कालिया, हमारा खानदान, लावा, बंटवारा और प्रोफेसर की पड़ोसन जैसी फिल्में भी हैं.
उन्होंने गुजराती, पंजाबी और कन्नड की तीन भाषाओं की कुछेक फिल्मों में भी काम किया है.
सीरियल निर्माण के साथ समाज सेवा
आशा पारेख ने 1990 के दशक में गुजराती सीरियल 'ज्योति' बनाकर सीरियल निर्माण की दुनिया में भी क़दम रखा. बाद में उन्होंने हिन्दी में भी बाजे पायल, दाल में काला, कोरा कागज और कंगन जैसे सफल सीरियल भी बनाए.
आशा पारेख ने एक बार बताया था कि नृत्य उनका पहला प्यार है. फिल्मों में तो वह डांसिंग स्टार के रूप में मशहूर रही हीं. मंच पर भी वह अक्सर डांस शो करती रहीं, लेकिन कुछ बरस पहले अपने कमर दर्द के चलते उन्होंने डांस करना बंद कर दिया था.
लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि नृत्य कला को बढ़ावा देने के लिए आशा पारेख ने मालाबार हिल, मुंबई में 'गुरुकुल' के नाम से अपना एक डांस स्कूल भी खोला था.
उधर वह समाज सेवा में भी हमेशा आगे रही हैं. सांताक्रुज मुंबई में उनके सहयोग से 'आशा पारेख हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर' का संचालन भी लंबे समय तक होता रहा, लेकिन कुछ समय पहले आशा पारेख ने दुख के साथ बताया था कि अनुदान आदि ना मिलने के कारण अब वह अस्पताल चल नहीं पा रहा है.
उधर फिल्म कलाकारों के कल्याण के लिए मुंबई फिल्म उद्योग की संस्था 'सिंटा' के साथ जुड़कर कभी पदाधिकारी के रूप में तो कभी बाहर से वह कई तरह की मदद करती रही हैं.
सेंसर बोर्ड की भी रहीं अध्यक्ष
आशा पारेख सेंसर बोर्ड की भी 1998 से 2001 तक अध्यक्ष रहीं, हालांकि फिल्मों को पास करने के मामले में उनका सख्त व्यवहार शेखर कपूर, देव आनंद, सावन कुमार और फिरोज खान जैसे कई फ़िल्मकारों को पसंद नहीं आया.
इस पर आशा पारेख ने कहा था, "मुझे सरकार ने जो ज़िम्मेदारी सौंपी है मैं उसका पालन नियमानुसार करूंगी. फिल्मों में मेरे बहुत दोस्त हैं, लेकिन दोस्ती निभाने के लिए मैं आँख बंद करके फिल्में पास नहीं कर सकती."
बहरहाल अब आशा पारेख को दादा साहब फाल्के पुरस्कार मिलने से उनके अभिनय कौशल और उनके फिल्मों में किए गए योगदान को भी एक बड़ा प्रमाण मिल गया है. एक ऐसा पुरस्कार जिसे पाने का सपना फिल्मों से जुड़ा बड़े से बड़ा इंसान भी देखता है. (bbc.com/hindi)