अंतरराष्ट्रीय
श्रीलंकाई संसद के स्पीकर अब श्रीलंका के अस्थायी राष्ट्रपति होंगे. स्पीकर महिंदा यापा अभयवर्द्धना ने बीबीसी से कहा कि वह राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को ये जानकारी देने जा रहे हैं कि पार्टी नेताओं ने उन्हें संविधान के प्रावधानों के मुताबिक राष्ट्रपति का कार्यभार संभाालने को कहा है.
स्पीकर ने कहा कि राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को अब अपना पद छोड़ देना चाहिए. श्रीलंका के संविधान के मुताबिक वो अब राष्ट्रपति का पद कुछ दिनों तक संभालेंगे. उन्होंने कहा कि पार्टी के नेताओं के अनुरोध और श्रीलंका के लोगों की सुरक्षा के लिए वह राष्ट्रपति पद का कार्यभार संभालने जा रहे हैं. (bbc.com)
श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति के एक सलाहकार ने महीनों के विरोध प्रदर्शनों के चरम पर पहुंचने के बाद वर्तमान राजनीतिक स्थिति पर अपने विचार रखे हैं.
राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे अपने आधिकारिक निवास से भाग गए हैं और राम मणिक्कलिंगम के मुताबिक उनकी वापसी को कोई रास्ता नहीं बचा है.
राम मणिक्कलिंगम, श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति चंद्रिका कुमारतुंगा के सलाहकार थे. चंद्रिका कुमारतुंगा ने 1994 से 2005 तक राष्ट्रपति के पद पर रहे थे.
राम मणिक्कलिंगम ने बीबीसी को बताया कि राष्ट्रपति राजपक्षे का भाग्य तय हो गया है. राष्ट्रपति को जाना ही होगा.
उन्होंने कहा, "एक तरफ से राष्ट्रपति पहले ही जा चुके हैं. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे क्या कहते हैं. वे अब अप्रासंगिक हो गए हैं."
"हमने सुना है कि वे कोलंबो के उपनगरीय इलाके में कहीं एक सेना शिविर में छिपे हुए हैं और इसलिए मुझे लगता है कि यह एक निर्णायक मोड़ है और अब कोई वापसी नहीं है."
उन्होंने कहा कि राजपक्षे हमेशा के लिए खत्म हो गए हैं और ये आशा की जाती है कि देश की सत्ता चलाने वाले राजनेताओं का एक भ्रष्ट वर्ग भी खत्म हो जाएगा. (bbc.com)
श्रीलंकाई पार्टी के नेताओं की एक मुश्किल भरी बैठक अभी खत्म हुई है. विपक्ष के सांसद हर्ष डी सिल्वा ने कहा कि बैठक में बहुमत के साथ लोगों ने सहमति दी है कि राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को तुरंत इस्तीफा देना चाहिए.
बीबीसी से बातचीत में उन्होंने बताया कि इस बात पर भी सहमति बनी है कि अधिकतम 30 दिनों के लिए स्पीकर संविधान के मुताबिक राष्ट्रपति के रूप में काम करेंगे.
उनका कहना है कि एक सर्वदलीय अंतरिम सरकार की स्थापना की जानी चाहिए और जल्द से जल्द चुनाव कराए जाना चाहिए.
हर्ष डी सिल्वा ने कहा कि संसद को गुप्त मतदान के जरिए 24 नवंबर तक राष्ट्रपति का पद संभालने के लिए किसी का चुनाव करना चाहिए. (bbc.com)
लाहौर, 10 जुलाई। पाकिस्तान के एक प्रमुख टेलीविजन चैनल में प्रस्तोता को शनिवार को रिहा कर दिया गया जिसे इस्लामाबाद के पास इस सप्ताह की शुरुआत में गिरफ्तार किया गया था। उच्च न्यायालय ने उसे एक मामले में जमानत दे दी और उसके खिलाफ अन्य मामलों को खारिज कर दिया। यह जानकारी एक सरकारी अधिवक्ता ने दी।
इमरान रियाज खान को मंगलवार को हिरासत में लिया गया था, हालांकि कुछ हफ्ते पहले पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद की एक अदालत ने पुलिस को उन्हें और कई अन्य पत्रकारों को देश की सेना के खिलाफ नफरत भड़काने का आरोप लगाने वाली शिकायतों पर गिरफ्तार नहीं करने का आदेश दिया था।
पाकिस्तान के सबसे अधिक आबादी वाले प्रांत पंजाब के अलग-अलग शहरों में खान के खिलाफ कुल 17 मामले दर्ज किए गए।
पंजाब के महाधिवक्ता परवेज शौकत के अनुसार, खान को 10 दिनों की अवधि के लिए यानी लोगों को आंदोलन के लिए उकसाने और अराजकता उत्पन्न करने के आरोपों को लेकर अगली सुनवाई तक जमानत दी गई। वहीं 16 अन्य मामलों को खारिज कर दिया गया।
खान एक टेलीविजन चैनल में प्रस्तोता हैं जिन्होंने हाल ही में समा टीवी पर एक कार्यक्रम की मेजबानी की थी। वह सोशल मीडिया पर अपने ब्लॉग और पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान का सार्वजनिक रूप से समर्थन करने के लिए जाने जाते हैं। पूर्व प्रधानमंत्री खान ने टीवी प्रस्तोता की गिरफ्तारी के खिलाफ आवाज उठायी थी।
शौकत ने शनिवार की सुनवाई में लाहौर उच्च न्यायालय को बताया कि टेलीविजन के प्रस्तोता को जमानत दिए जाने पर सरकार को कोई आपत्ति नहीं है। सरकार ने उनके खिलाफ देशद्रोह के आरोप लगाने की असफल कोशिश की थी।
शौकत ने कहा कि अदालत ने खान से यह आश्वासन भी मांगा कि वह अगली सुनवाई तक कोई विवादास्पद बयान नहीं देंगे। (एपी)
कोलंबो, 10 जुलाई। श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे 13 जुलाई को इस्तीफा देंगे। श्रीलंका की संसद के अध्यक्ष महिंदा यापा अभयवर्धने ने शनिवार रात को यह जानकारी दी।
अभयवर्धने ने शनिवार शाम को हुई सर्वदलीय नेताओं की बैठक के बाद उनके इस्तीफे के लिए पत्र लिखा था, जिसके बाद राष्ट्रपति राजपक्षे ने इस फैसले के बारे में संसद अध्यक्ष को सूचित किया। अभयवर्धने ने बैठक में लिए गए निर्णयों पर राजपक्षे को पत्र लिखा।
पार्टी के नेताओं ने राजपक्षे और प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे के तत्काल इस्तीफे की मांग की थी जिससे कि संसद का उत्तराधिकारी नियुक्त किए जाने तक अभयवर्धने के कार्यवाहक राष्ट्रपति बनने का मार्ग प्रशस्त हो सके।
विक्रमसिंघे पहले ही इस्तीफा देने की इच्छा जता चुके हैं। राजपक्षे ने अभयवर्धने के पत्र का जवाब देते हुए कहा कि वह 13 जुलाई को पद छोड़ देंगे।
शनिवार के विरोध प्रदर्शनों से पहले शुक्रवार को अपने आवास से निकलने के बाद राजपक्षे के ठिकाने का पता नहीं चला है। प्रदर्शन के दौरान हजारों सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों ने कोलंबो में राजपक्षे के आधिकारिक आवास पर धावा बोल दिया था।
राजपक्षे मार्च से इस्तीफे के दबाव का सामना कर रहे थे। वह राष्ट्रपति भवन को अपने आवास और कार्यालय के रूप में इस्तेमाल कर रहे थे, क्योंकि प्रदर्शनकारी अप्रैल की शुरुआत में उनके कार्यालय के प्रवेश द्वार पर कब्जा करने पहुंच गए थे।
श्रीलंका एक अभूतपूर्व आर्थिक उथल-पुथल का सामना कर रहा है। 2.2 करोड़ लोगों की आबादी वाला देश सात दशकों में सबसे खराब दौर से गुजर रहा है। श्रीलंका में विदेशी मुद्रा की कमी है, जिससे देश ईंधन और अन्य आवश्यक वस्तुओं के जरूरी आयात के लिए भुगतान कर पाने में असमर्थ हो गया है। (भाषा)
(अदिति खन्ना)
लंदन, 10 जुलाई। ब्रिटेन की कंजर्वेटिव पार्टी का नया नेता और देश का अगला प्रधानमंत्री चुने जाने के लिए अपना अभियान औपचारिक रूप से शुरू करने वाले भारतीय मूल के ऋषि सुनक नेतृत्व संभालने की दौड़ में शनिवार को सबसे आगे नजर आए। बहरहाल, इस दौड़ में कई अन्य नेता शामिल हो गए हैं।
42 वर्षीय सुनक इंफोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति के दामाद हैं। हाउस ऑफ कॉमन्स में सत्ता पक्ष के नेता मार्क स्पेंसर, कंजर्वेटिव पार्टी के पूर्व अध्यक्ष ओलिवर डाउडेन और पूर्व कैबिनेट मंत्री लियाम फॉक्स सहित कई वरिष्ठ टोरी सांसदों ने सार्वजनिक रूप से उनका समर्थन किया है।
सुनक के बाद ब्रिटेन के चांसलर बने इराकी मूल के नाधिम जहावी और परिवहन मंत्री ग्रांट शाप्स ने भी शनिवार को अपनी उम्मीदवारी की घोषणा की।
कंजर्वेटिव पार्टी के एक बड़े समूह का मानना है कि सुनक विभाजित सत्तारूढ़ दल को एकजुट करने के लिए सबसे उपयुक्त उम्मीदवार हैं और वह पूर्व चांसलर के रूप में ब्रिटेन के सामने खड़ी बड़ी आर्थिक चुनौतियों से निपटने में सबसे अधिक सक्षम हैं।
सुनक की स्थिति इसलिए और मजबूत हो गई है, क्योंकि कंजर्वेटिव पार्टी के नेता और प्रधानमंत्री पद के संभावित दावेदारों में शामिल ब्रिटेन के रक्षा मंत्री बेन वॉलेस ने खुद को इस दौड़ से आधिकारिक तौर पर बाहर कर लिया है।
अपने सोशल मीडिया अभियान ‘रेडी4ऋषि’ के उद्धाटन वीडियो में सुनक ने कहा, “मैंने सबसे कठिन समय में, जब हम कोविड-19 के प्रकोप से जूझ रहे थे, सरकार में सबसे कठिन विभाग का संचालन किया।”
‘रेडी4ऋषि’ अभियान की वेबसाइट पर प्रकाशित सुनक के संदेश में कहा गया है, “हमारा देश बड़ी चुनौतियों का सामना कर रहा है, जो किसी पीढ़ी के लिए सबसे गंभीर हैं। किसी को इस संवेदनशील पल में मजबूत स्थिति में आगे आना है और सही निर्णय लेने हैं।”
इस बीच, बोरिस जॉनसन के समर्थकों ने सुनक पर निवर्तमान प्रधानमंत्री के खिलाफ साजिश रचने का आरोप लगाते हुए कहा कि उनके अभियान से जुड़ा वीडियो दर्शाता है कि वह लंबे समय से इस दिशा में काम कर रहे थे।
हालांकि, सुनक का खेमा दावा कर रहा है कि यह वीडियो जॉनसन का इस्तीफा सार्वजनिक होने के कुछ घंटे बाद तैयार किया गया था। इसमें सुनक भारतीय मूल की अपनी पारिवारिक विरासत और अपनी नानी के पूर्वी अफ्रीका से ब्रिटेन आने की भावुक कहानी भी बयां करते नजर आ रहे हैं।
वेबसाइट ‘ऑड्सचेकर यूके’ के मुताबिक, सुनक सट्टेबाजों की पहली पसंद बनकर उभरे हैं और विदेश मंत्री लिज ट्रूस व रक्षा मंत्री बेल वॉलेस जैसे अन्य संभावित दावेवारों पर भी खूब दांव लग रहे हैं। हालांकि, वॉलेस अब इस दौड़ से बाहर होने की घोषणा कर चुके हैं।
नाइजीरियाई मूल की पूर्व समानता मंत्री केमी बडेनोच (42) अपनी उम्मीदवारी की घोषणा करने वाली नवीनतम उम्मीदवार बनीं।
वहीं, टोरी नेता स्टीव बेकर ने गोवा मूल की अटॉर्नी जनरल सुएला ब्रेवरमैन के प्रति समर्थन जताते हुए अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली है। ब्रेवरमैन प्रधानमंत्री पद की दौड़ में शामिल होने का अपना इरादा जाहिर करने वाली शुरुआती नेताओं में से एक हैं।
वरिष्ठ कंजर्वेटिव नेता टॉम तुगेंदत भी प्रधानमंत्री बनने की होड़ में शामिल हैं। यानी फिलहाल इस पद के छह दावेदार हैं और आने वाले दिनों में कुछ अन्य नेताओं के सामने आने से यह संख्या और बढ़ सकती है।
जॉनसन का उत्तराधिकारी चुनने की प्रक्रिया काफी लंबी है और 10 डाउनिंग स्ट्रीट में उनकी जगह कब तक भरेगी, इसकी स्थिति अगले हफ्ते तक स्पष्ट होने की संभावना है।
‘द डेली टेलीग्राफ’ के अनुसार, कंजेर्वेटिव पार्टी के नेता के चुनाव से जुड़े नियम और समयसीमा निर्धारित करने को लेकर 1922 की समिति के भीतर चिंताएं हैं, क्योंकि 16 उम्मीदवार दौड़ में शामिल होने पर विचार कर सकते हैं।
अखबार के मुताबिक, ऐसे में कम गंभीर उम्मीदवारों को शुरुआती चरण में ही नेतृत्व की दौड़ से बाहर निकालने के लिए प्रत्येक प्रत्याशी के वास्ते 20 सांसदों का समर्थन जुटाने की प्रारंभिक सीमा तय की जा सकती है, जिसमें एक प्रस्तावक, एक समर्थक और 18 अन्य टोरी सांसद शामिल हैं।
अखबार के अनुसार, पहले प्रत्येक दावेदार के लिए एक प्रस्तावक, एक समर्थक और आठ सांसदों सहित 10 सहयोगियों का समर्थन हासिल करने की सीमा तय किए जाने की संभावना थी।
मसौदा योजना, जिस पर सोमवार को सहमति बन सकती है, उसके तहत नेतृत्व की दौड़ में शामिल उम्मीदवारों के लिए नामांकन दाखिल करने के वास्ते मंगलवार शाम तक की समयसीमा तय किए जाने की संभावना है। वहीं, सप्ताह के अंत में दूसरे दौर का मतदान कराने की योजना है, जिसमें अंतिम स्थान पर रहने वाला सांसद दौड़ से बाहर हो जाएगा।
इसके बाद 18 जुलाई के आसपास 1922 की एक प्रमुख समिति की बैठक होगी, जिसमें बाकी उम्मीदवारों से पार्टी के सभी सांसद निजी तौर पर सवाल-जवाब करेंगे।
अंतिम दो उम्मीदवारों के चयन के लिए उस सप्ताह कई और दौर के मतदान हो सकते हैं। 21 जुलाई के आसपास दोनों उम्मीदवारों को लेकर तस्वीर साफ होने की उम्मीद है। इसके बाद दोनों उम्मीदवारों को चुनाव से गुजरना होगा, जिसमें कंजर्वेटिव पार्टी के लगभग दो लाख सदस्य मतदान करेंगे।
हर दौर के मतदान में आगे बढ़ने के लिए प्रत्येक प्रत्याशी के लिए कम से कम 15 फीसदी टोरी सदस्यों का समर्थन हासिल करना अनिवार्य होगा। पांच सितंबर तक पार्टी के नए नेता के चयन की प्रक्रिया पूरी हो जाने की उम्मीद है। (भाषा)
श्रीलंका का संकट भयानक रूप ले सकता है. देश की एक प्रमुख मानवाधिकार रक्षा वकील भवानी फोनेस्का ने बीबीसी से कहा कि श्रीलंका में हालात भयावह शक्ल ले सकते हैं. उन्होंने कहा कि इस बात का डर है कि मांगें न पूरी होने पर लोग हिंसा पर उतर सकते हैं. आर्थिक हालात और खराब हुए तो भयानक हिंसा भड़क सकती है. .
भवानी ने कहा, '' श्रीलंका के लिए बेहद संकट का वक्त है. ऐसा यहां कभी नहीं हुआ था. उन्होंने कहा कि देश में मेडिकल संकट भी बेहद गहरा गया है. उन्होंने कहा कि हालात ऐसे हैं कि हिंसा भड़क सकती है और जवाबी हिंसा भी हो सकती है.इसलिए बेहद भारी संकट आ सकता है.
उनकी टिप्पणी ऐसे वक्त में आई है, जब श्रीलंका में पहले नाराज लोग राष्ट्रपति के घर में घुस गए और फिर बाद में पीएम रानिल विक्रमसिंघे का घर जला दिया. (bbc.com)
श्रीलंका के प्रधानमंत्री रनिल विक्रमसिंघे के आवास को प्रदर्शनकारियों ने आग लगा दी है. इससे कुछ घंटे पहले प्रदर्शन कर रहे लोगों और पुलिस के बीच झड़प भी हुई लेकिन प्रदर्शन कर रहे लोग पीएम आवास में दाख़िल हो गए थे.
यह घटना ऐसे वक़्त में हुई है जब अब से कुछ घंटे पहले ही विक्रमसिंघे अपने पद से इस्तीफ़ा देने के लिए तैयार हो गए हैं. प्रधानमंत्री रनिल विक्रमसिंघे ने ख़ुद ट्वीट कर इसकी पुष्टि की.
इससे पहले पीएमओ की ओर से भी बताया गया कि विक्रमसिंघे इस्तीफ़ा देने के लिए तैयार हो गए हैं ताकि सर्वदलीय सरकार का गठन किया जा सके.
प्रधानमंत्री रनिल विक्रमसिंघे ने अपनी पार्टी के नेताओं को सूचित किया है कि सर्वदलीय सरकार बन सके, इसके लिए वह अपने पद से इस्तीफ़ा देने के लिए तैयार हैं.
बीबीसी सिंहला के संवाददाता रंगा सिरीलाल के अनुसार, पीएमओ की ओर से दावा किया गया है कि 'नागरिकों की सुरक्षा' सुनिश्चित करने के लिए प्रधानमंत्री विपक्ष के प्रस्ताव पर सहमत हो गए हैं.
वहीं विपक्ष के सांसद हर्ष डी सिल्वा ने कहा कि बैठक में बहुमत के साथ लोगों ने सहमति दी है कि राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को तुरंत इस्तीफा देना चाहिए. बीबीसी से बातचीत में उन्होंने बताया कि इस बात पर भी सहमति बनी है कि अधिकतम 30 दिनों के लिए स्पीकर संविधान के मुताबिक राष्ट्रपति के रूप में काम करेंगे.
उनका कहना है कि एक सर्वदलीय अंतरिम सरकार की स्थापना की जानी चाहिए और जल्द से जल्द चुनाव कराए जाना चाहिए.
हर्ष डी सिल्वा ने कहा कि संसद को गुप्त मतदान के जरिए 24 नवंबर तक राष्ट्रपति का पद संभालने के लिए किसी का चुनाव करना चाहिए.
दोपहर में सरकार विरोधी प्रदर्शनकारी राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे के सरकारी आवास में दाखिल हो गए थे और शाम होते-होते प्रदर्शनकारी प्रधानमंत्री आवास में भी दाखिल हो गए.
उधर, प्रदर्शनकारियों के बीच श्रीलंका के पूर्व क्रिकेटर सनथ जयसूर्या भी पहुंचे. उन्होंने प्रदर्शनकारियों के साथ अपनी कुछ तस्वीरें भी ट्विटर पर शेयर कीं.
उन्होंने लिखा, "वे श्रीलंका के लोगों के साथ खड़े हैं और जल्द ही जीत का जश्न मनाएंगे और इसे बिना किसी रुकावट के जारी रखा जाना चाहिए."
शनिवार दोपहर को जब प्रदर्शनकारी राष्ट्रपति राजपक्षे के आवास में दाख़िल हुए तो, राजपक्षे वहां मौजूद नहीं थे.
रिपोर्टों के मुताबिक, राष्ट्रपति राजपक्षे को सुरक्षित जगह पर ले जाया गया है. हालांकि, राष्ट्रपति कहां हैं इस बारे में अभी कोई पुष्ट जानकारी सामने नहीं आई है.
इस बीच ऐसे दावे भी किए जा रहे हैं कि राजपक्षे श्रीलंका से बाहर निकलने की कोशिश में हैं.
हालांकि अभी कुछ भी स्पष्ट नहीं है.
वहीं कोलंबो में अभी भी तनाव की स्थिति बनी हुई है.
सड़कों पर उतरे प्रदर्शनकारियों को तितर बितर करने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे और हवा में गोलियां भी चलाईं.
रिपोर्टों के मुताबिक, पुलिस की कार्रवाई में कई लोग घायल भी हुए हैं और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है.
जो वीडियो फ़ुटेज सामने आए हैं उनमें प्रदर्शनकारी राष्ट्रपति भवन में लगी कुर्सियों पर बैठे हुए दिख रहैं और कुछ स्वीमिंग पूल में नहाते दिखाई दे रहे हैं.
श्रीलंका में बढ़ती कीमतों और ज़रूरी सामान की कमी के विरोध में लंबे समय से विरोध प्रदर्शन जारी हैं. प्रदर्शन में हिस्सा लेने के लिए देश के कई हिस्सों से लोग कोलंबो पहुंचे हैं.
प्रदर्शनकारी राष्ट्रपति राजपक्षे से इस्तीफ़ा देने की मांग कर रहे हैं.
श्रीलंका बीते कई दशकों की सबसे बड़े आर्थिक संकट का सामना कर रहा है. देश में पेट्रोल, खाने पीने के सामान और दवाओं की कमी हो गई है.
कई लोग घायल
श्रीलंका पुलिस ने राष्ट्रपति आवास को घेरने की कोशिश करने वाले लोगों पर आंसू गैस के गोले दागे. पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर पानी की बौछार भी की. जिसमें कई लोगों के घायल होने की ख़बर है.
भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने हवाई फायरिंग भी की. वहां से आए वीडियो फुटेज में आंसू गैस के गोले से घायल लोगों को अस्पताल ले जाते हुए देखा जा सकता है.
कोलंबो नेशनल हॉस्पिटल ने जानकारी दी है कि एक सुरक्षा गार्ड समेत 33 लोग घायल हुए हैं.
एक ओर श्रीलंका में राजनीतिक अशांति फैली हुई है वहीं दूसरी ओर ऑस्ट्रेलिया और श्रीलंका के बीच टेस्ट मैच भी खेला जा रहा है.
ऑस्ट्रेलिया और श्रीलंका के बीच क्रिकेट मैच शनिवार को भी जारी रहा. यह मैच गाले शहर में खेला जा रहा है. यह जगह राजधानी कोलंबो से लगभग 124 किमी दूर है. हालांकि लोगों का एक समूह स्टेडियम के बाहर भी जमा हो गया था.
श्रीलंका के पीएम ने क्यों कहा- भारत की मदद कोई ख़ैरात नहीं है
श्रीलंका: आर्थिक संकट, तेल की कमी और कर्फ़्यू के बीच क्या कह रहा है वहां का मीडिया
पाकिस्तान क्रिकेट टीम भी अपनी आगामी सिरीज़ के लिए श्रीलंका में मौजूद है. श्रीलंकाई क्रिकेट बोर्ड के अधिकारियों का कहना है कि खेल कार्यक्रम में बदलाव की कोई योजना नहीं है.
उन्होंने विश्वास जताते हुए कहा कि खेल, देश में मचे राजनीतिक उथल-पुथल से अप्रभावित है. क्रिकेट बोर्ड के एक अधिकारी ने एएफ़पी को बताया, "ऑस्ट्रेलिया के साथ टेस्ट मैच ख़त्म हो रहा है और पाकिस्तान के साथ सिरीज़ शुरू होने वाली है."
श्रीलंका में राजनीतिक अस्थिरता: क्या है पूरा मामला
- श्रीलंका अपने इतिहास के सबसे ख़राब आर्थिक संकट से गुज़र रहा है.
- श्रीलंका के पास ईंधन ख़रीदने के लिए पैसे नहीं हैं जिसकी वजह से वहां बिजली का संकट तक पैदा हो गया है.
- देश में पेट्रोल-डीज़ल की भारी किल्लत है. दवाइयों की कमी से भी जूझ रहा है देश.
- श्रीलंका के विदेशी मुद्रा भंडार की हालत खस्ता है.
- श्रीलंका के लोगों के बीच सरकार को लेकर नाराज़गी इस साल के शुरू से ही दिख रही है.
- अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहे लोग राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे से गद्दी छोड़ने की माँग कर रहे हैं.
- अप्रैल में लोग अपनी मांगों को लेकर लोग श्रीलंका की सड़कों पर उतर आए थे. उस दौरान प्रदर्शन हिंसक हो गए थे.
- हिंसक विरोध प्रदर्शन के बाद एक महीने के भीतर दो बार आपातकाल लागू किया गया.
- अप्रैल में पहली बार आपातकाल लागू होने के अगले दिन देश के केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इस्तीफ़ा दे दिया था.
- पूर्व प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के इस्तीफ़े के बाद रनिल विक्रमसिंघे पीएम बने. वह छठी बार देश के प्रधानमंत्री बने हैं.
- रनिल विक्रमसिंघे ने पीएम बनने के साथ ही कह दिया था- "ये संकट और बुरा होगा."
- संयुक्त राष्ट्र ने एक बयान में कहा है- "श्रीलंका मानवीय संकट के कगार पर है."
रैली का आयोजन
श्रीलंका में बेतहाशा बढ़ी महंगाई के साथ खाने पीने के सामान, ईंधन और दवाओं की क़िल्लत के विरोध में शनिवार को सरकार के ख़िलाफ़ रैली का आयोजन किया गया. विरोध प्रदर्शन को विपक्षी दलों, ट्रेड यूनियनों, छात्र और किसान संगठनों ने भी समर्थन दिया.
इससे पहले सरकार ने राजधानी कोलंबो और इसके पास के इलाक़ों में होने वाली इस रैली के पहले शुक्रवार रात नौ बजे से कर्फ़्यू लगा दिया था.
अधिकारियों का कहना है कि यह कर्फ़्यू शुक्रवार की रात नौ बजे से लेकर अगले आदेश तक लगाया गया है. प्रशासन ने लोगों से अनुरोध किया है कि वे अपने घरों में ही रहें और बाहर न जाएं.
विरोध रैली के दौरान हिंसा से बचाव के लिए प्रशासन ने सेना और पुलिस के हज़ारों जवानों को तैनात किया गया.
देश के मौजूदा आर्थिक संकट के लिए राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को ज़िम्मेदार बताते हुए प्रदर्शनकारी उनके इस्तीफ़े की मांग कर रहे हैं.
पिछले कई महीनों से आर्थिक बदहाली और महंगाई से परेशान लोग सड़कों पर सरकार के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे हैं. इस दौरान हिंसा की कई घटनाएं हो चुकी हैं.
श्रीलंका का आर्थिक संकट वहाँ के विदेशी मुद्रा भंडार के तेज़ी से घटने से पैदा हुआ है. कई लोगों का आरोप है कि ऐसा वहां की सरकार की आर्थिक बद-इंतज़ामी और कोरोना महामारी के प्रभाव की वजह से हुआ है.
विदेशी मुद्रा भंडार की कमी की वजह से श्रीलंका ज़रूरी सामानों का आयात नहीं कर पा रहा जिनमें तेल, खाने-पीने के सामान और दवाएं जैसी चीज़ें शामिल हैं. इस साल मई में वो इतिहास में पहली बार अपने कर्ज़ की किस्त चुकाने में नाकाम रहा था. तब उसे सात करोड़ 80 लाख डॉलर की अदायगी करनी थी मगर 30 दिनों का अतिरिक्त समय दिए जाने के बावजूद वो इसे नहीं चुका सका.
श्रीलंका अभी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) से लगभग 3.5 अरब डॉलर की बेल-आउट राशि चाह रहा है जिसके लिए उसकी बातचीत चल रही है.
श्रीलंका सरकार का कहना है कि उसे इस साल आईएमएफ़ समेत अंतरराष्ट्रीय समुदाय से पांच अरब डॉलर की मदद चाहिए. (bbc.com)
-रूपर्ट विंगफ़ील्ड-हाएस
जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंज़ो आबे पर शुक्रवार को देश के पश्चिमी हिस्से नारा में तब हमला हुआ जब वह एक सड़क पर भाषण दे रहे थे. उसके बाद अस्पताल में उनका निधन हो गया.
उनके ऊपर हमले से लेकर उनके निधन की ख़बर आने तक और अभी भी दोस्तों और मुझे जानने वालों के लगातार फ़ोन कॉल्स और मैसेज आ रहे हैं. उन सभी के सवाल एक जैसे हैं. किसी को ये यक़ीन नहीं हो पा रहा कि जापान में भी ऐसा कुछ हो सकता है. उन सभी के सवाल एक ही जैसे हैं... सभी पूछ रहे हैं... आख़िर जापान में ऐसा कैसे हो सकता है?
मुझे ख़ुद भी बहुत हद तक ऐसा ही लगा. जापान में रहते हुए आप हिंसक हमलों या अपराध के बारे में नहीं सोचते हैं. या फिर यूं कहना चाहिए कि ऐसा कुछ नहीं सोचने की आदत हो जाती है.
हमला किस पर हुआ है, ये भी अपने आप में चौंकाने वाली बात है. देश के पूर्व प्रधानमंत्री पर बीच सड़क, दर्जनों लोगों की मौजूदगी में पीछे से गोली चलाई गई.
शिंज़ो आबे अभी जापान के प्रधानमंत्री नहीं थे लेकिन जापान के लोगों के बीच और जापान की पब्लिक लाइफ़ में उनकी ख़ास पकड़ और पहचान थी. इसके अलावा बीते तीन दशक में वह जापान के सबसे लोकप्रिय और चर्चित नेता रहे.
आबे को कौन मारना चाहेगा? और क्यों?
मैं ख़ुद भी कुछ ऐसा ही सोचने की कोशिश कर रहा हूं... राजनीतिक हिंसा का एक और वाकया. एक ऐसा वाकया जो जापान में शुक्रवार को हुए हमले के जैसा ही था. जिसने स्थानीय लोगों को चौंका दिया था. याद करने पर ज़हन में साल 1986 में स्वीडन के प्रधानमंत्री ओलोफ़ पाल्मे पर गोली चलाए जाने का वाक़या याद आता है.
जब मैं लोगों को कहता हूं कि वे जापान में हिंसक अपराधों के बारे में न सोचें तो मैं वाकई इसे बढ़ा-चढ़ाकर नहीं कहता हूं.
जापान में क्रिमिनल रिकॉर्ड
हां, ये बात बिल्कुल सही है कि यहां पर याकूज़ा हैं... जापान का मशहूर और संगठित क्राइम गैंग लेकिन इस बात से और सच्चाई से इनक़ार नहीं किया जा सकता है कि ज़्यादातर लोगों का उनसे कोई लेना-देना नहीं है. इसके अलावा याकूज़ा बंदूकों से कतराते हैं क्योंकि इसके बदले जो सज़ा है, वो काफ़ी सख़्त है.
जापान में बंदूक रखना काफी मुश्किल है. अगर आपको बंदूक रखना है तो इसके लिए आपका कोई क्रीमिनल रिकॉर्ड नहीं होना चाहिए, आपके पास पूरी ट्रेनिंग होनी चाहिए, आपको मनोवैज्ञानिक स्तर पर बेहतर होना चाहिए और इसके साथ ही आपका पूरा बैकग्राउंड भी चेक किया जाता है. पुलिस आपके पड़ोसियों से आपके बारे में पूरी तफ़्तीश करती है.
इसका नतीजा यह है कि जापान में मूल तौर पर गन-क्राइम नहीं है. अगर आंकड़ों के आधार पर बात करें तो जापान में हर साल औसतन 10 से भी कम मौतें बंदूक हमले के कारण हुईं. साल 2017 में तो यह संख्या सिर्फ़ तीन थी.
ऐसे में इस बात में कोई आश्चर्य नहीं है कि शिंज़ो आबे की हत्या के बाद अब पूरा ध्यान उस बंदूकधारी हमलावर और उसके इस्तेमाल किए गए हथियार पर केंद्रित हो गया है.
कौन है हमलावर
वह कौन शख़्स है? उसे कहां से हथियार मिला? जापान की स्थानीय मीडिया का कहना है कि हमलावर की पहचान 41 साल के तेत्सुया यामागामी के रूप में हुई है.
उन्होंने पुलिस से कहा है कि वो आबे से असंतुष्ट थे और उनकी हत्या करना चाहते थे. रक्षा मंत्रालय के सूत्रों के हवाले से एनएचके ने बताया है, "संदिग्ध सेल्फ डिफेंस फ़ोर्स का पूर्व मेंबर है और इसने हैंडमेड गन से गोली मारी है. 2005 तक इसने तीन साल सेल्फ डिफेंस फ़ोर्स में काम किया था."
लेकिन शुरुआती जांच में पता चला है कि उन्होंने सिर्फ़ तीन साल ही नेवी में बिताए थे. जो बंदूक उन्होंने इस्तेमाल की थी वो ही अजीबोगरीब थी. हमले के बाद की जो तस्वीरें सामने आई हैं उनमें साफ़ पता चल रहा है कि यह एक होम-मेड हथियार था. यानी घरेलू-स्तर पर बना हुआ हथियार था. स्टील पाइप की दो बिट्स एक टेप की मदद से चिपकाई गई थीं. और गन देखकर लग रहा था कि किसी तरह हाथ से ही ट्रिगर भी बनाया गया होगा.
हमले में इस्तेमाल बंदूक को देखने पर लग रहा है कि उसे इंटरनेट पर देख-देखकर तैयार किया गया होगा.
तो क्या यह जानबूझकर किया गया राजनीतिक हमला था? या फिर किसी लोकप्रिय और मशहूर शख़्स को गोली मारकर ख़ुद मशहूर हो जाने की कोशिश? ये जानलेवा हमला क्यों किया गया, हम नहीं जानते हैं.
ऐसा नहीं है कि जापान में होने वाली यह पहली राजनीतिक हत्या है. जापान के एक नेता की पहले भी बर्बर तरीक़े से हत्या हो चुकी है. वो साल 1960 का दौर था.
साल 1960 में जापान के सोशलिस्ट पार्टी के नेता इनेजिरो असानुमा की एक कट्टर दक्षिणपंथी ने तलवार घोंपकर उनकी हत्या कर दी थी. यह शख़्स समुराई तलवार चलाता था. हालांकि राइट-विंग चरमपंथी अभी भी जापान में मौजूद हैं, आबे खुद भी राइट-विंग नेशनलिस्ट थे.
हाल के सालों में, हमने यहां कुछ अलग ही किस्म के अपराधों को सामान्य होते देखा है. जापान में शांत, अकेले रहने वाले लोग बहुत हैं जिनका शायद किसी ना किसी से द्वेष है. जो शायद किसी ना किसी से खुश नहीं हैं.
साल 2019 में, एक सख़्स ने क्योटो स्थित एक लोकप्रिय एनिमेशन स्टूडियो की ब्लिडिंग में आग लगा दी थी. इस हादसे में 36 लोगों की मौत हो गई थी.
बाद में जब पुलिस ने उस शख़्स को गिरफ़्तार किया तो उसने बताया कि वो उस स्टूडियो से नाराज़ था क्योंकि उस स्टूडियो की वजह से उसका काम छिन गया था.
ऐसा ही एक और भी मामला सामने आया था. यह साल 2008 की घटना थी जब, टोक्यो के अकिहाबारा ज़िले में एक असंतष्ट युवक ने दुकानदारों के एक समूह पर ट्रक चढ़ा दिया था. इसके बाद वो ट्रक से बाहर निकला और वहां खड़े लोगों को चाकू घोंपने लगा. इस हमले में सात लोगों की मौत हो गई थी.
इस हमले को अंजाम देने से पहले उसने ऑनलाइन एक संदेश पोस्ट किया था. जिसमें उन्होंने लिखा था, "मैं अकिहाबारा में लोगों की हत्या करूंगा. मेरा कोई दोस्त नहीं है. मुझे लोगों ने दरकिनार कर दिया, क्योंकि मैं बदसूरत हूं. मेरी क़ीमत कूड़ेदान से भी कम है."
हालांकि आबे की हत्या को लेकर अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि ये हत्या फ़र्स्ट कैटेगरी की है या फिर सेकंड कैटेगरी की. लेकिन ऐसा लगता है कि इस राजनीतिक हत्या के बाद से जापान बदल जाएगा.
जापान इतना सुरक्षित है कि यहां सुरक्षा काफी रीलैक्स्ड है. चुनावी अभियानों के दौरान नेता खुले में जाकर, सड़कों पर चुनाव प्रचार करते हैं, भाषण देते हैं, लोगों से हाथ मिलाते हैं.
ऐसे में यह समझना भी आसान हो जाता है कि आबे का हमलावर कैसे उनके इतने क़रीब आ गया और हथियार निकालकर उसने ठीक पीछे खड़े होकर हमला भी कर दिया.
इस हमले के बाद से यह निश्चित तौर पर तय माना जा रहा है कि आज के बाद यह बदल जाएगा. (bbc.com)
श्रीलंका के प्रधानमंत्री रनिल विक्रमसिंघे इस्तीफ़ा देने के लिए तैयार हो गए हैं. प्रधानमंत्री रनिल विक्रमसिंघे ने ख़ुद ट्वीट कर इसकी पुष्टि की है.
इससे पहले पीएमओ की ओर से भी बताया गया कि विक्रमसिंघे इस्तीफ़ा देने के लिए तैयार हो गए हैं ताकि सर्वदलीय सरकार का गठन किया जा सके.
प्रधानमंत्री रनिल विक्रमसिंघे ने अपनी पार्टी के नेताओं को सूचित किया है कि सर्वदलीय सरकार बन सके, इसके लिए वह अपने पद से इस्तीफ़ा देने के लिए तैयार हैं.
बीबीसी सिंहला के संवाददाता रंगा सिरीलाल के अनुसार, पीएमओ की ओर से दावा किया गया है कि नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रधानमंत्री विपक्ष के प्रस्ताव पर सहमत हो गए हैं.
इस दौरान प्रदर्शनकारी प्रधानमंत्री आवास में भी दाखिल हो गए हैं. दोपहर में सरकार विरोधी प्रदर्शनकारी राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे के सरकारी आवास में भी दाखिल हो गए थे.
उधर, प्रदर्शनकारियों के बीच श्रीलंका के पूर्व क्रिकेटर सनथ जयसूर्या भी पहुंचे. उन्होंने प्रदर्शनकारियों के साथ अपनी कुछ तस्वीरें भी ट्विटर पर शेयर कीं.
उन्होंने लिखा कि वे श्रीलंका के लोगों के साथ खड़े हैं और जल्द ही जीत का जश्न मनाएंगे और इसे बिना किसी रुकावट के जारी रखा जाना चाहिए.
दोपहर को जब प्रदर्शनकारी राष्ट्रपति राजपक्षे के आवास में दाखिल हुए तो राजपक्षे वहां मौजूद नहीं थे.
रिपोर्टों के मुताबिक, राष्ट्रपति राजपक्षे को सुरक्षित जगह पर ले जाया गया है. हालांकि, राष्ट्रपति कहां हैं इस बारे में अभी कोई पुष्ट जानकारी सामने नहीं आई है.
कोलंबो में तनाव की स्थिति बनी हुई है. प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए सेना तैनात की गई है. सड़कों पर उतरे प्रदर्शनकारियों को तितर बितर करने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे और हवा में गोलियां भी चलाईं.
रिपोर्टों के मुताबिक, पुलिस की कार्रवाई में कई लोग घायल भी हुए हैं और उन्हें अस्पताल में दाखिल कराया गया है. जो वीडियो फ़ुटेज सामने आई हैं उनमें प्रदर्शनकारी राष्ट्रपति भवन में लगी कुर्सियों पर बैठे और स्वीमिंग पूल में नहाते दिखाई दे रहे हैं.
श्रीलंका में बढ़ती कीमतों और ज़रूरी सामान की कमी के विरोध में लंबे समय से विरोध प्रदर्शन जारी हैं. प्रदर्शन में हिस्सा लेने के लिए देश के कई हिस्सों से लोग कोलंबो पहुंचे हैं.
प्रदर्शनकारी राष्ट्रपति राजपक्षे से इस्तीफ़ा देने की मांग कर रहे हैं. श्रीलंका बीते कई दशकों की सबसे बड़े आर्थिक संकट का सामना कर रहा है. देश में पेट्रोल, खाने पीने के सामान और दवाओं की कमी हो गई है.
शनिवार की दोपहर एक बजे के क़रीब प्रदर्शनकारी राष्ट्रपति के सरकारी आवास में दाखिल होने लगे. कुछ प्रदर्शनकारी मेनगेट पर चढ़ गए और परिसर में घुस गए. प्रदर्शन की जगह पर सेना के जवानों को भी तैनात किया गया है.
प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए पुलिस ने कर्फ़्यू लगाया था.
रिपोर्टों के मुताबिक, बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारी गॉल क्रिकेट स्टेडियम के बाहर भी जमा हो गए हैं. यहां श्रीलंका और ऑस्ट्रेलिया के बीच टेस्ट मैच खेला जा रहा है.
कई लोग घायल
श्रीलंका पुलिस ने राष्ट्रपति आवास को घेरने की कोशिश करने वाले लोगों पर आंसू गैस के गोले दागे. पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर पानी की बौछार भी की. जिसमें कई लोगों के घायल होने की ख़बर है.
भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने हवाई फायरिंग भी की है. वहां से आए वीडियो फुटेज में आंसू गैस के गोले से घायल लोगों को अस्पताल ले जाते हुए देखा जा सकता है.
कोलंबो नेशनल हॉस्पिटल ने जानकारी दी है कि एक सुरक्षा गार्ड समेत 33 लोग घायल हुए हैं.
रैली का आयोजन
श्रीलंका में बेतहाशा बढ़ी महंगाई के साथ खाने पीने के सामान, ईंधन और दवाओं की क़िल्लत के विरोध में शनिवार को सरकार के ख़िलाफ़ रैली का आयोजन किया गया है. विरोध प्रदर्शन को विपक्षी दलों, ट्रेड यूनियनों, छात्र और किसान संगठनों ने भी समर्थन दिया है.
इससे पहले सरकार ने राजधानी कोलंबो और इसके पास के इलाक़ों में होने वाली इस रैली के पहले शुक्रवार रात नौ बजे से कर्फ़्यू लगा दिया था.
अधिकारियों का कहना है कि यह कर्फ़्यू शुक्रवार की रात नौ बजे से लेकर अगले आदेश तक लगाया गया है. प्रशासन ने लोगों से अनुरोध किया है कि वे अपने घरों में ही रहें और बाहर न जाएं.
विरोध रैली के दौरान हिंसा से बचाव के लिए प्रशासन ने सेना और पुलिस के हज़ारों जवानों को तैनात किया गया है.
देश के मौजूदा आर्थिक संकट के लिए राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को ज़िम्मेदार बताते हुए प्रदर्शनकारी उनके इस्तीफ़े की मांग कर रहे हैं.
पिछले कई महीनों से आर्थिक बदहाली और महंगाई से परेशान लोग सड़कों पर सरकार के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे हैं. इस दौरान हिंसा की कई घटनाएं हो चुकी हैं.
सकंट की वजह
श्रीलंका का आर्थिक संकट वहाँ के विदेशी मुद्रा भंडार के तेज़ी से घटने से पैदा हुआ है. कई लोगों का आरोप है कि ऐसा वहां की सरकार की आर्थिक बद-इंतज़ामी और कोरोना महामारी के प्रभाव की वजह से हुआ है.
विदेशी मुद्रा भंडार की कमी की वजह से श्रीलंका ज़रूरी सामानों का आयात नहीं कर पा रहा जिनमें तेल, खाने-पीने के सामान और दवाएं जैसी चीज़ें शामिल हैं.इस साल मई में वो इतिहास में पहली बार अपने कर्ज़ की किस्त चुकाने में नाकाम रहा था. तब उसे सात करोड़ 80 लाख डॉलर की अदायगी करनी थी मगर 30 दिनों का अतिरिक्त समय दिए जाने के बावजूद वो इसे नहीं चुका सका.
श्रीलंका अभी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) से लगभग 3.5 अरब डॉलर की बेलआउट राशि चाह रहा है जिसके लिए उसकी बातचीत चल रही है.
श्रीलंका सरकार का कहना है कि उसे इस साल आईएमएफ़ समेत अंतरराष्ट्रीय समुदाय से पांच अरब डॉलर की मदद चाहिए. (bbc.com)
श्रीलंका की स्थानीय समाचार एजेंसी न्यूज़वायर ने एक वीडियो जारी किया है जिसमें हजारों की संख्या में प्रदर्शनकारी कोलंबों में राष्ट्रपति भवन पर धावा बोल रहे हैं.
कैसे शुरू हुआ प्रदर्शन
श्रीलंका की राजधानी में शुक्रवार को प्रस्तावित विरोध प्रदर्शन से पहले भारी संख्या में सशस्त्र सैनिकों और पुलिस को तैनात किया गया था.
अधिकारियों ने शुक्रवार रात कर्फ्यू की घोषणा कर उन्हें रोकने की कोशिश की, लेकिन विपक्षी दलों और लोगों की कड़ी आपत्ति के बाद इसे हटा लिया गया. बार एसोसिएशन ने पुलिस प्रमुख पर मुकदमा चलाने की धमकी दी.
घर में रहने के आदेश की अवहेलना करते हुए प्रदर्शनकारी शनिवार को राष्ट्रपति के आधिकारिक आवास के पास जमा होने लगे. समाचार एजेंसी एएफपी ने बताया कि कुछ लोगों ने रेलवे कर्मचारियों को कोलंबो ले जाने के लिए ट्रेन चलाने के लिए मजबूर किया था.
पुलिस ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले दागे और हवा में गोलियां चलाईं लेकिन इतने सारे लोग प्रदर्शन के लिए पहुंचे कि अधिकारी उन्हें रोक नहीं पाए.
सोशल मीडिया पर फुटेज में जल्द ही लोगों को राष्ट्रपति के घर में घूमते हुए, उसके आलीशान कमरों में आराम करते और उनके पूल में नहाते हुए देखा गया. (bbc.com)
वाशिंगटन, 9 जुलाई | एक अमेरिकी अदालत ने 19 कंपनियों और कम से कम 15 अमेजन स्टोरफ्रंट, 10 ईबे स्टोरफ्रंट और कई अन्य संस्थाओं को चलाने वाले एक व्यक्ति पर आरोप लगाया है। इसने 1 बिलियन डॉलर के नकली सिस्को नेटवर्किं ग डिवाइस बेचे हैं।
न्यू जर्सी जिले में एक संघीय ग्रैंड जूरी ने मियामी के ओनूर अक्सॉय, उर्फ रॉन अक्सॉय, उर्फ डेव डर्डन (38) पर कई वर्षो से धोखाधड़ी और नकली सिस्को नेटवर्किं ग उपकरण में यातायात के लिए एक बड़े पैमाने पर ऑपरेशन चलाने का आरोप लगाया है, जिसका अनुमानित खुदरा मूल्य 1 बिलियन डॉलर से अधिक है।
अमेरिकी न्याय विभाग ने शुक्रवार देर रात एक बयान में कहा कि उसने चीन और हांगकांग से हजारों नकली सिस्को उपकरणों का आयात किया और उन्हें अमेरिका और विदेशों में ग्राहकों को बेच दिया, तथा उत्पादों को नए और वास्तविक के रूप में गलत तरीके से पेश किया।
ऑपरेशन ने कथित तौर पर 100 मिलियन डॉलर से अधिक राजस्व अर्जित किया और अक्सॉय को अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए लाखों डॉलर प्राप्त हुए।
अभियोग के अनुसार, उपकरण आमतौर पर पुराने, निम्न-मॉडल वाले उत्पाद थे, जिनमें से कुछ को बेच दिया गया था या त्याग दिया गया था, जिसे चीनी जालसाजों ने नए, उन्नत और अधिक महंगे सिस्को उपकरणों के वास्तविक संस्करण के रूप में संशोधित किया।
चीनी जालसाजों ने पायरेटेड सिस्को सॉ़फ्टवेयर और अनधिकृत, निम्न-गुणवत्ता या अविश्वसनीय पुर्जो को जोड़ा, जिसमें सिस्को द्वारा सॉ़फ्टवेयर लाइसेंस अनुपालन की जाँच करने और हार्डवेयर को प्रमाणित करने के लिए सॉ़फ्टवेयर में जोड़े गए तकनीकी उपायों को रोकने के लिए पुर्जे शामिल हैं।
न्याय विभाग ने कहा कि अंत में, सिस्को द्वारा उपकरणों को नया, वास्तविक, उच्च-गुणवत्ता और फैक्टरी-सील दिखाने के लिए, चीनी जालसाजों ने कथित तौर पर नकली सिस्को लेबल, स्टिकर, बॉक्स, दस्तावेजीकरण, पैकेजिंग और अन्य सामग्री को जोड़ा।
(आईएएनएस)
कराची, 9 जुलाई | कराची में पिछले तीन दिनों में बारिश से संबंधित अलग-अलग घटनाओं में कम से कम 14 लोगों की मौत हो गई है। समाचार एजेंसी शिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, शुक्रवार को चार लोगों की करंट लगने से मौत हो गई और दो अन्य डूब गए।
डॉन न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार, शनिवार को कराची और सिंध प्रांत के अन्य इलाकों में तेज हवाओं और गरज के साथ भारी बारिश हुई, जिससे शहरी बाढ़ की आशंका बढ़ गई है।
पाकिस्तान मौसम विज्ञान विभाग (पीएमडी) के मुख्य मौसम विज्ञानी सरदार सरफराज ने डॉन को बताया कि कराची और सिंध के अन्य हिस्सों में बारिश जारी रहने की संभावना है, क्योंकि एक मजबूत मानसून प्रणाली थी और इसकी धाराएं अरब सागर से प्रवेश कर रही थीं।
शनिवार को एक ट्वीट में जलवायु परिवर्तन मंत्री शेरी रहमान ने कहा कि सिंध और बलूचिस्तान प्रांत 30 साल के औसत पर बहुत उच्च स्तर की वर्षा से गुजर रहे हैं।
देश के राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने कहा कि पिछले तीन हफ्तों में पाकिस्तान में लगातार बारिश के कारण कम से कम 97 लोग मारे गए हैं और 101 अन्य घायल हुए हैं।
इस बीच, मौसम कार्यालय ने ईद-उल-अजहा के दौरान और बारिश होने का अनुमान जताया है, जो रविवार को पूरे पाकिस्तान में मनाया जाएगा और अधिकारियों को सावधानी बरतने को कहा है।(आईएएनएस)
मेक्सिको सिटी, 9 जुलाई| मेक्सिको के राष्ट्रपति एंड्रेस मैनुअल लोपेज ओब्रेडोर ने टेक्सास के गवर्नर ग्रेग एबॉट द्वारा जारी एक नए आव्रजन आदेश को बेकार और पिछड़ा बताया है। समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने शुक्रवार को लोपेज ओब्रेडोर के हवाले से कहा, "यह एक विचलन आदेश है। हम इससे सहमत नहीं हैं। यह बेहद बेकार है और इसका कोई कानूनी आधार नहीं है।"
एबॉट ने गुरुवार को कार्यकारी आदेश जारी कर राज्य बलों को प्रवासियों को पकड़ने और उन्हें यूएस-मेक्सिको सीमा पर वापस करने के लिए अधिकृत किया।
लोपेज ओब्रेडोर ने कहा कि राज्यपाल को कानूनी रूप से वह निर्णय लेने की अनुमति नहीं है, क्योंकि इसे अमेरिकी संघीय सरकार के साथ करना है।
उन्होंने कहा कि एबॉट के बयानों और कार्यो को नवंबर में राज्य चुनावों के लिए राजनीतिक अभियान के तहत तैयार किया गया है।
राष्ट्रपति ने कहा, "वे सनसनीखेज और पीत पत्रकारिता की तलाश में हैं, उन्हें लगता है कि इस तरह से उन्हें सहानुभूति मिलेगी।"
उन्होंने अमेरिका में चुनावी उद्देश्यों के साथ प्रवासी विरोधी अभियानों के अस्तित्व की भी आलोचना की, जिसे उन्होंने अनैतिक और राजनीति के रूप में वर्णित किया।
एबॉट के प्राधिकरण ने उन अन्य निर्णयों का पालन किया जो उन्होंने आप्रवास के लिए निर्णय लिए हैं, जिसने मेक्सिको और अमेरिका के बीच विवाद उत्पन्न किया है।
(आईएएनएस)
पूरी दुनिया और यूरोप में बच्चों का यौन शोषण बड़ी समस्या बन चुका है. बच्चों को पालने वाली दाई, पड़ोसी, शिक्षक और पिता तक इस मामले में दोषी पाए गए हैं. दुनिया के नेताओं ने इस समस्या को खत्म करने का संकल्प लिया है.
कुछ ही दिनों पहले दुनिया भर के नेता जर्मनी में आयोजित जी7 की बैठक में शामिल हुए थे. नेताओं ने इस शिखर सम्मेलन की अपनी अंतिम घोषणा में संकल्प लिया, "हम मानव तस्करी के खिलाफ अपनी लड़ाई को मजबूत करने के साथ-साथ ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरह से दुनिया भर में बच्चों को यौन शोषण से बचाने और उनका मुकाबला करने के लिए प्रतिबद्ध हैं.”
बाल यौन शोषण से पीड़ित लोगों के समूह ‘ब्रेव मूवमेंट' से जुड़ी विबके मूलर ने इसे ऐतिहासिक कदम बताया. उन्होंने कहा, "जब मैं छोटी बच्ची थी, तो मुझे किसी ने यौन हिंसा से नहीं बचाया. आज पहली बार, जी7 के नेताओं ने सामूहिक तौर पर बच्चों की सुरक्षा करने का संकल्प लिया है, जो सभी बच्चों के लिए जरूरी है.”
जर्मनी में बाल यौन शोषण के मामलों में वृद्धि दर्ज की गई है. फेडरल क्रिमिनल पुलिस ऑफिस (बीकेए) के अनुसार, पिछले साल जर्मनी में हर दिन औसतन 49 नाबालिगों के साथ यौन हिंसा हुई. जारी आंकड़ों से पता चलता है कि 2021 में 14 साल से कम उम्र के 17,704 बच्चे यौन हिंसा का शिकार हुए. इनमें से 2,281 की उम्र छह साल से कम थी. वहीं, 2020 में यह आंकड़ा 16,990 था.
हाल ही में देश के पश्चिमी हिस्से में मौजूद कोलोन शहर से थोड़ी दूर पर स्थित वेर्मेल्सकिर्शेन में बाल यौन शोषण से जुड़ा एक मामला सामने आया. माना जा रहा है कि बच्चों की देखभाल करने वाले एक 44 वर्षीय पुरुष ने 12 छोटे बच्चों का यौन शोषण किया. इनमें दिव्यांग बच्चे भी शामिल थे. सबसे छोटे बच्चे की उम्र महज एक महीने रही होगी.
पुलिस ने इस आरोपी को गिरफ्तार किया है और इसके कंप्यूटर को जब्त कर लिया है. ऐसी संभावना जताई जा रही है कि उसने पैसे लेकर 70 से अधिक लोगों के साथ बच्चों के दुर्व्यवहार से जुड़ी तस्वीरें और वीडियो को शेयर किया है. इस मामले में अभी भी जांच जारी है. नॉर्थ राइन वेस्टफालिया राज्य में पुलिस ने यौन शोषण से जुड़े कई बड़े नेटवर्क का खुलासा किया है. कुछ अपराधी भी पकड़े गए हैं.
बाल यौन शोषण से जुड़े मामलों की देखरेख के लिए जर्मन सरकार ने नए स्वतंत्र आयोग का गठन किया है. इस आयोग की प्रमुख केस्टिन क्लाउस ने डीडब्ल्यू को बताया, "वेर्मेल्सकिर्शेन मामला इस तथ्य को दिखाता है कि डिजिटल मीडिया के प्रसार की वजह से, वीभत्स तरीके के हिंसा के मामले पहले की तुलना में ज्यादा सामने आ रहे है. हालांकि, डार्कनेट के इस्तेमाल से पहले भी ऐसी घटनाएं होती थीं. बस कल और आज में फर्क यह है कि आज हम साबित कर सकते हैं कि हिंसा हुई है.”
तेजी से हरकत में आने की जरूरत
पीड़ितों और अपराधियों को ढूंढना कोलोन पुलिस के साइबर क्राइम टास्क फोर्स का काम है. इसका नेतृत्व मार्कुस हाटमन करते हैं. वे एक वकील हैं. इन्होंने पिछले दो वर्षों में लगभग 9,900 संदिग्धों के खिलाफ 9,300 से ज्यादा मामले दर्ज किए हैं.
ऑनलाइन यौन हिंसा के बारे में कई सूचनाएं अमेरिका के नेशनल सेंटर फॉर मिसिंग एंड एक्सप्लॉइटेड चिल्ड्रेन (एनसीएमईसी) से मिलती हैं. हाटमन के लिए जरूरी चीज यह है कि अपराधियों की तुरंत पहचान कर ली जाए, लेकिन उन्होंने कहा कि आईपी अड्रेस का पता चलने के काफी समय बाद जांचकर्ताओं को इसकी सूचना मिलती है. इस वजह से, देश की गृह मंत्री नैंसी फेजर ने ऐसे कदमों का समर्थन किया है जिसके तहत इंटरनेट की सेवा देने वाली कंपनियों को आईपी अड्रेस से जुड़ी जानकारी को लंबे समय तक सुरक्षित रखना होगा.
भारी भरकम आंकड़े
कमिश्नर क्लाउस इस बात पर जोर देती हैं कि पीड़ित ‘अक्सर महीनों और कई वर्षों तक उत्पीड़न करने वाले पर निर्भर होते हैं'. कभी-कभी उत्पीड़न करने वाला उनके परिवार का ही कोई सदस्य होता है, तो कभी उनका काफी नजदीकी व्यक्ति. वह कहती हैं कि रिपोर्ट नहीं किए गए मामलों की संख्या मौजूदा ज्ञात आंकड़ों के मुकाबले कई गुना ज्यादा हो सकती है. वह इसे ‘स्कैंडल' बताते हुए कहती हैं कि यह नहीं पता कि अभी और कितने मामलों की जानकारी सामने नहीं आयी है.
क्लाउस को सलाह देने वाले पीड़ितों ने बताया कि यौन हिंसा ‘अपराधियों के लिए सबसे सुरक्षित अपराधों में से एक है'. जांच के दौरान ही दो-तिहाई मामले बंद हो जाते हैं, खासकर उस स्थिति में जब अपराध करने वाले लोगों के बयान के सामने पीड़ितों के बयान को तवज्जो नहीं दी जाती.
हाटमन ने कहा कि वेर्मेल्सकिर्शेन में 30 से अधिक टेराबाइट डेटा जब्त किया गया था. एनआरडब्ल्यू साइबर अपराध इकाई आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस टूल का इस्तेमाल करती है. इसकी मदद से, बच्चों के साथ दुर्व्यवहार से जुड़ी 90 फीसदी तस्वीरों की पहचान हो सकती है. इससे जांचकर्ता काफी कम समय में ज्यादा डेटा का विश्लेषण कर यह पता लगा पाते हैं कि क्या मौजूदा समय में किसी बच्चे के साथ दुर्व्यवहार किया जा रहा है या नहीं. हालांकि, इन सब तस्वीरों और वीडियो की जांच इंसानों को ही करनी होती है, इसलिए ज्यादा कर्मचारियों और टूल की जरूरत है.
अंतरराष्ट्रीय सहयोग की जरूरत
आंकड़े बताते हैं कि यूरोप बाल शोषण से जुड़ी तस्वीरों का केंद्र बन गया है. इसलिए, क्लाउस ने यूरोपीय आयोग के उस कदम का स्वागत किया है जिसके तहत राष्ट्रीय कानून प्रवर्तन एजेंसियों की संख्या बढ़ाने के लिए ईयू में एक सेंटर की स्थापना करने की योजना है. साथ ही, यूरोपीय आयोग ने पीड़ितों को राहत पहुंचाने के उद्देश्य से दुर्व्यवहार वाली तस्वीरों को हटाने की भी योजना बनाई है.
मार्कुस हाटमन भी चाहते हैं कि इस मामले में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहयोग बढ़ना चाहिए. वह कहते हैं, "बाल्टिक देशों में मौजूद विशेष रूप से प्रशिक्षित साझेदारों के साथ काम करने से सफलता मिली है. कभी-कभी जर्मनी के सीमावर्ती देशों की तुलना में यूरोप की सीमा से बाहर के अन्य देशों के साथ तेजी से सहयोग मिलता है.”
कमिश्नर क्लाउस कहती हैं, "पिछले कुछ सालों में जागरूकता बढ़ी है, लेकिन अभी भी बहुत सारे लोग यह मानने को तैयार नहीं हैं कि यौन शोषण की समस्या उनके आसपास के बच्चों को प्रभावित करती है. हम सभी पीड़ितों को जानते हैं, इसलिए हम अपराधियों को भी जानते हैं.”
बचपन में मिले आघात से छोटी हो सकती है जिंदगी
मनोवैज्ञानिक माथियास फ्रांत्स ने बाल शोषण के शिकार लोगों के साथ काम किया है. वह बताते हैं कि नवजात शिशुओं के दिमाग में भी उन घटनाओं की यादें हमेशा के लिए बैठ जाती हैं. इसके कारण उनके मस्तिष्क के एक विशेष हिस्से में डर और दर्द होता है.
फ्रांत्स बताते हैं, "अगर मैंने बचपन में बुरी चीजों का अनुभव किया, तो 40 साल बाद भी वे यादें ताजा हो सकती हैं. अगर मेरा बॉस मुझे डांटने वाली नजरों से देखता है, तो इससे मुझे यह याद आ सकता है कि मेरे पिता ने मुझे पीटने से पहले कैसे देखा था.”
वह आगे कहते हैं, "ऐसी स्थिति में तनाव बढ़ाने वाला हार्मोन रिलीज होता है. इससे पैनिक अटैक आ सकता है और दिल के दौरे के वजह से अस्पताल में जिंदगी खत्म हो सकती है.” फ्रांत्स कहते हैं कि अक्सर ऐसे मरीजों को फिर से घर भेज दिया जाता है. अगर वे भाग्यशाली रहे, तो डॉक्टर पैनिक अटैक का इलाज करने के बाद, उन्हें मनोचिकित्सक से परामर्श लेने का सुझाव दे सकते हैं.
वह आगे कहते हैं, "हमने गंभीर रूप से दुर्व्यवहार का सामना करने वाले बच्चों की स्थिति को लेकर लंबे समय तक किए गए अध्ययन की समीक्षा की है. इससे पता चलता है कि इनके मानसिक तौर पर बीमार होने या नशे के आदी होने की संभावना अधिक होती है. अध्ययन से यह बात भी सामने आयी है कि ऐसे बच्चों कि जिंदगी 20 साल तक कम हो सकती है.” फ्रांत्स का मानना है कि वयस्क पीड़ितों के लिए इलाज की सुविधा आसानी से उपलब्ध होनी चाहिए.
अपराधियों पर शोध
जब अपराधी बेनकाब होते हैं, तो उनके सहयोगी और पड़ोसी अक्सर टिप्पणी करते हैं कि इन्हें देखकर तो ऐसा लगता ही नहीं था. मनोवैज्ञानिक माथियास फ्रांत्स बताते हैं कि कई अपराधियों में सहानुभूति की कमी होती है और वे कमजोर लोगों पर दबदबा बनाना चाहते हैं. वह कहते हैं, "ऐसा करके कुछ लोगों को एहसास होता है कि वे सबसे ज्यादा शक्तिशाली हैं.”
इंटरनेट की खुली दुनिया ऐसे मामलों को बढ़ाने का काम करती है. एक-दूसरे के अपराधों को देखकर अपराधियों को ऐसा लगता है कि वे सही काम कर रहे हैं. फ्रांत्स कहते हैं, "हमें इस पर और अधिक शोध करने की जरूरत है. अपराधी ऐसे कैसे हो जाते हैं? क्या इसका इलाज किया जा सकता है?”
रोकथाम और सुरक्षा
हाटमन की साइबर क्राइम टास्क फोर्स संभावित अपराधियों को चेतावनी देने के लिए सार्वजनिक सूचना अभियान भी चलाती है कि गलत काम करने पर वे पकड़े जा सकते हैं. जांचकर्ताओं ने यौन शोषण की रोकथाम के लिए कुछ कंटेंट भी तैयार किए हैं. इसके जरिए बताया गया है कि ग्रूमिंग क्या होती है. साथ ही, इसमें यह भी जानकारी दी गई है कि किस तरह कोई अपराधी पहले किसी बच्चे के साथ संपर्क करता है, ताकि लंबे समय तक उसके साथ दुर्व्यवहार करने के लिए दबाव बना सके.
क्लाउस कहती हैं, "बच्चों, शिक्षकों और माता-पिता को शिक्षित करना महत्वपूर्ण है. इसके साथ ही डिजिटल प्लेटफॉर्म के इस्तेमाल के लिए भी नियम बनाने चाहिए, जैसे, सुरक्षा से जुड़ी डिफॉल्ट सेटिंग, मदद की पेशकश की सीमा तय करना, उम्र से जुड़ी पाबंदियां, वेबसाइटों का मॉडरेशन वगैरह क्योंकि बच्चे यहां अकेले होते हैं.”
वह इस साल के अंत में एक अभियान शुरू करना चाहती हैं, ताकि लोगों को पता चले कि बच्चों को दुर्व्यवहार से बचाने में मदद कहां मिलेगी. यह ठीक उसी तरह है जैसे उन्हें पता रहता है कि आग लगने पर फायर अलार्म कहां से चालू किया जाता है.
भूटान में समलैंगिकता कभी अपराध हुआ करता था. हालांकि, अब स्थिति काफी बदल गई है. यहां 2021 से एलजीबीटीक्यू समुदाय के लोगों को कई अधिकार मिलने शुरू हो गए, लेकिन कार्यकर्ताओं का कहना है कि अभी काफी कुछ और करने की जरूरत है.
2021 में भूटान के राजा यानी ड्रुक ग्यालपो ने देश की दंड संहिता में संशोधन करने वाले कानून पर हस्ताक्षर किया. इसके बाद हिमालय की गोद में बसे छोटे से देश भूटान में समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया. इससे पहले इस दंड संहिता के तहत, ‘सोडोमी यानी किसी भी तरह के अप्राकृतिक यौन संबंध' को अपराध घोषित किया गया था. इसमें समलैंगिक यौन संबंध भी शामिल था.
समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी में रखने वाली धारा को निरस्त करने की सिफारिश करने वाले वित्त मंत्री नामगे शेरिंग ने कहा कि ये धाराएं देश की प्रतिष्ठा पर "दाग" बन गई थीं. उन्होंने कहा, "हमारे समाज में एलजीबीटीक्यू समुदाय को बड़े स्तर पर स्वीकृति मिल चुकी है.”
पिछले महीने, ताशी चोडेन चोंबल ने मिस भूटान 2022 का ताज अपने नाम किया था. वह मिस यूनिवर्स 2022 की प्रतियोगिता में भूटान का प्रतिनिधित्व करने वाली पहली समलैंगिक महिला होंगी.
चोंबल ने साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट अखबार को दिए एक इंटरव्यू में बताया, "शुरुआत में, मेरे परिवार को मेरे यौन रुझान यानी सेक्सुअल ओरिएंटेशन के बारे में समझाना थोड़ा मुश्किल था, क्योंकि मैं एक बहुत ही 'सीधे' और रूढ़िवादी परिवार से आती हूं. अब चीजें बदल गई हैं. उन्होंने अब मुझे उस रूप में स्वीकार कर लिया है जैसी मैं हूं.”
एलजीबीटीक्यू के अधिकारों के बारे में जागरूकता बढ़ाना
भूटान की आबादी करीब 770,000 है. यहां की 75 फीसदी आबादी बौद्ध धर्म का पालन करती है. संविधान में इसे राजधर्म के तौर पर मान्यता दी गई है. बौद्ध दर्शन समलैंगिकता का विरोध नहीं करता है. हालांकि, समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के एक साल बाद, एलजीबीटीक्यू कार्यकर्ताओं का कहना है कि समुदाय के सदस्यों और उनकी चुनौतियों के बारे में अभी भी बहुत कम जागरूकता है.
क्वीर वॉयस भूटान से जुड़े कार्यकर्ता ताशी शेटेन ने डीडब्ल्यू को बताया, "एलजीबीटीक्यू समुदाय को लेकर कई तरह की गलतफहमियां हैं, जैसे कि समलैंगिकता एक विकल्प है. साथ ही, समुदाय से जुड़े अलग-अलग शब्दों के बारे में भी काफी कम जागरूकता है. लोगों को इनसे जुड़े शब्दों का मतलब नहीं पता है. लोग अभी भी इसके बारे में सीख रहे हैं. हालांकि, अपराध की श्रेणी से बाहर होने के बाद, अब वे खुले तौर पर इसके बारे में चर्चा कर रहे हैं और जानकारी पाने की कोशिश कर रहे हैं.”
उन्होंने आगे कहा, "समुदाय के लोग अक्सर उस हिंसा या उत्पीड़न के बारे में बात नहीं करते हैं जिसका वे सामना करते हैं.” इसके अलावा, भूटान में समलैंगिक विवाह को अभी तक कानूनी रूप से मान्यता नहीं मिली है.
2008 से पहले तक भूटान में पूरी तरह राजशाही थी. इसके बाद, देश संवैधानिक राज्य में बदल गया. हालांकि, 2004 में ही दंड संहिता तैयार कर ली गई थी. कानून के जानकार डेमा लाम और स्टेनली येओ के शोध के मुताबिक, दंड संहिता का निर्माण अमेरिकी कानून प्रणाली के मुताबिक किया गया था. भूटान में सेक्स और "अप्राकृतिक सेक्स" पर रोक लगाने वाली धाराएं कुछ अन्य दक्षिण एशियाई देशों के कानूनों के मुताबिक बनाई गई थीं.
काफी ज्यादा प्रगति
समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर किए जाने से काफी समय पहले वर्ष 2015 में फिजियोथेरेपिस्ट पासंग दोरजी ने टीवी पर इंटरव्यू दिया था. उन्होंने 2016 में साल्ल्सबुर्ग ग्लोबल एलजीबीटी फोरम के दौरान कहा था, "टीवी पर आकर अपनी कहानी बताते हुए, मुझे लगा कि युवा पीढ़ी प्रेरित थी. मुझे मुख्य रूप से यह बताना था कि हमारा एलजीबीटी समुदाय हमारे खूबसूरत हिमालयी देश में मौजूद है, जहां हम सकल आर्थिक उत्पाद से ज्यादा खुशी को तवज्जो देते हैं. वह भूटान के एलजीबीटी समुदाय के लिए चुप्पी तोड़ने वाला क्षण था.”
क्वीयर से जुड़े मुद्दों के बारे में बोलना अब आसान हो गया है, क्योंकि कानून में बदलाव होने की वजह से अब इसकी वकालत करने और इसे लेकर जागरूकता बढ़ाने का मंच मिल गया है.
शेटेन ने कहा, "सरकारी स्तर पर अब हमारे समुदाय की स्वीकार्यता बढ़ गई है. नागरिक समाज खुल रहा है. इसलिए, काफी ज्यादा प्रगति हुई है. अपराध की श्रेणी से बाहर होने के बाद, युवा पीढ़ी अब खुलकर समलैंगिकता पर बातें कर रही है. वे एलजीबीटी मुद्दों के बारे में बात करते हैं और खुलकर अपनी बात रखते हैं.”
उन्होंने आगे कहा, "हालांकि, पुरानी पीढ़ी के क्वीयर लोगों के लिए ऐसा नहीं कहा जा सकता, जिन्होंने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर किए जाने से पहले ही अपनी पहचान जाहिर की थी. उन्हें काफी ज्यादा समस्याओं का सामना करना पड़ा. समाज में उन्हें कलंक के तौर पर माना गया. हर किसी के लिए उसका अनुभव अलग है.”
सैन फ्रांसिस्को, 9 जुलाई | टेस्ला के सीईओ एलन मस्क ने 44 अरब डॉलर के अधिग्रहण सौदे को समाप्त कर दिया है, इसको लेकर अब माइक्रो-ब्लॉगिंग प्लेटफॉर्म ट्विटर ने शनिवार को घोषणा की वह मस्क पर मुकदमा दर्ज करेगा। एक आश्चर्यजनक कदम उठाते हुए मस्क की कानूनी टीम ने यूएस सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज फाइलिंग में कहा कि वह सौदे को समाप्त कर रहा है, क्योंकि ट्विटर उनके समझौते के भौतिक उल्लंघन में था और बातचीत के दौरान झूठे और भ्रामक बयान दिए थे।
ट्विटर के अध्यक्ष ब्रेट टेलर ने एक ट्वीट में कहा, "बोर्ड मस्क के साथ सहमत कीमत और शर्तो पर लेनदेन को बंद करने के लिए प्रतिबद्ध है और विलय समझौते को लागू करने के लिए कानूनी कार्रवाई करने की योजना बना रहा है।"
उन्होंने कहा, "हमें विश्वास है कि हम डेलावेयर कोर्ट ऑफ चांसरी में जीत हासिल करेंगे।"
मस्क ने प्लेटफॉर्म पर स्पैमी/फर्जी खातों और बॉट्स की वास्तविक संख्या पर सौदे को रोक दिया था। इस सबको लेकर ट्विटर के सीईओ पराग अग्रवाल से जवाब मांगा।
ट्विटर ने गुरुवार को दावा किया था कि वह एक दिन में 10 लाख से अधिक स्पैम खातों को निलंबित कर रहा है।
ट्विटर के सीईओ पराग अग्रवाल ने पिछले अपडेट में कहा था कि यह प्लेटफॉर्म एक दिन में 500,000 स्पैम खातों को हटा रहा है।
अग्रवाल ने मई में ट्वीट करके बताया था कि टीम हर दिन पांच लाख से अधिक स्पैम खातों को निलंबित करती है।
कंपनी के सामान्य वकील, सीन एडगेट ने कर्मचारियों को विलय के बारे में किसी भी टिप्पणी को ट्वीट करने, स्लैक करने या साझा करने से बचने के लिए कहा है।
एडगेट ने आगे लिखा, "मुझे पता है कि यह एक अनिश्चित समय है और हम आपके धैर्य और हमारे द्वारा चल रहे महत्वपूर्ण कार्य के प्रति प्रतिबद्धता की सराहना करते हैं।"
(आईएएनएस)
टोक्यो, 9 जुलाई| टेक दिग्गज सोनी अगले महीने अपनी प्लेस्टेशन स्टोर सेवा पर सैकड़ों फिल्मों और टीवी शो तक पहुंच को हटा रही है, जिसका अर्थ है कि पहले पैडिंगटन और द हंगर गेम्स जैसे खिताब के लिए भुगतान करने वाले उपयोगकर्ता अब उन्हें नहीं देख पाएंगे। द वर्ज की रिपोर्ट के अनुसार, दो क्षेत्रीय साइटों पर पोस्ट किए गए कानूनी नोटिस के अनुसार, शटडाउन जर्मनी और ऑस्ट्रिया में यूजर्स को प्रभावित करता है और स्टूडियोकैनल द्वारा निर्मित फिल्मों को कवर करता है।
सोनी द्वारा अपने डिजिटल स्टोर से मूवी और टीवी शो की खरीदारी बंद करने के ठीक एक साल बाद 31 अगस्त को शटडाउन लागू होगा।
रिपोर्ट में कहा गया है कि उस समय सोनी ने कहा था कि उसके ग्राहक पहले से खरीदे गए कंटेंट तक पहुंच पाएंगे।
शटडाउन एक महत्वपूर्ण अनुस्मारक के रूप में कार्य करता है कि जब आप डिजिटल रूप से एक शीर्षक 'खरीदते' हैं, तब भी आपका स्वामित्व अक्सर एक रिटेलर पर निर्भर करता है जो मौजूद रहता है और सही लाइसेंसिंग सौदे होते हैं।
(आईएएनएस)
अरुल लुइस
संयुक्त राष्ट्र, 9 जुलाई| भारत ने युद्धग्रस्त सीरिया के कुछ हिस्सों तक सहायता पहुंचाने के लिए पश्चिमी देशों द्वारा प्रायोजित संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव के लिए मतदान किया है और रूस द्वारा प्रस्तावित प्रति-प्रस्ताव पर मतदान में भाग नहीं लिया है। प्रति-प्रस्ताव वीटो के कारण पास नहीं हो सका।
बाब अल-हवा शुक्रवार को सीमा क्रॉसिंग का उपयोग करके सीरिया में विद्रोही-नियंत्रित क्षेत्रों में तुर्की के माध्यम से 40.1 लाख लोगों के लिए मानवीय सहायता भेजने का प्रतिस्पर्धी प्रस्ताव रखा।
परिषद में विवाद इस बात पर केंद्रित था कि क्रॉसिंग का उपयोग करने के लिए रविवार को समाप्त होने वाले जनादेश को कब तक और कैसे बढ़ाया जाए और इसने यूक्रेन युद्ध द्वारा तेज किए गए संयुक्त राष्ट्र में असंबद्ध ध्रुवीकरण को फिर से सामने लाया।
सीमा के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र सहायता भेजने के लिए परिषद के जनादेश के 12 महीने के विस्तार के लिए नॉर्वे और आयरलैंड द्वारा प्रस्तावित पहला प्रस्ताव रूस द्वारा वीटो कर दिया गया था।
इसने मॉस्को के अलगाव को दिखाया, यहां तक कि चीन ने भी परहेज किया, जबकि अन्य 13 सदस्यों ने इसके लिए मतदान किया।
इसके बाद, केवल छह महीने के लिए जनादेश का विस्तार करने के एक रूसी प्रस्ताव को अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस द्वारा ट्रिपल वीटो द्वारा खारिज कर दिया गया था।
केवल चीन ने प्रस्ताव के लिए रूस के साथ मतदान किया, जबकि अन्य 10 देशों ने भाग नहीं लिया।
भारत ने अपनी स्थिति स्पष्ट करने के लिए परिषद की बैठक में बात नहीं की।
लेकिन केन्या के स्थायी प्रतिनिधि मार्टिन किमानी ने भारत और परिषद के अन्य नौ अस्थायी सदस्यों की ओर से बोलते हुए कहा कि उन्होंने सीमा पार का उपयोग करने की व्यवस्था के 12 महीने के विस्तार का समर्थन किया।
उन्होंने कहा कि 10 देश सीरियाई लोगों के लिए परिषद में एकता चाहते हैं।
रूस ने सैद्धांतिक रूप से सीरिया के लोगों को सहायता दिए जाने का विरोध किया है, हालांकि अंतर्राष्ट्रीय दबाव में उसने संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में सीमा पार से सहायता की अनुमति दी है।
इसके पहले के वीटो ने इराक और जॉर्डन के माध्यम से तुर्की सीमा पर डिलीवरी बंद कर दी थी।
विद्रोहियों के कब्जे वाले इलाकों में फंसे लोग अंतर्राष्ट्रीय सहायता के लिए एकमात्र सीमा पार पर निर्भर हैं। उन्हें भोजन, दवा, बच्चों के लिए आपातकालीन पोषण और यहां तक कि सर्दियों के लिए कंबल भी शामिल हैं।
पश्चिमी देश, अन्य सात अस्थायी सदस्यों के समर्थन के साथ 12 महीने के विस्तार पर जोर देते हुए कहते हैं कि यह प्रभावी योजना और रसद के लिए जरूरी था।
नॉर्वे की स्थायी प्रतिनिधि मोना जुल ने कहा कि एक समझौते के रूप में उनके देश और आयरलैंड द्वारा प्रस्तावित प्रस्ताव ने छह महीने के विस्तार के दो खंडों का प्रावधान किया था।
दूसरा विस्तार इस शर्त पर था कि इसका कोई विरोध नहीं था।
अमेरिका के स्थायी प्रतिनिधि लिंडा थॉमस-ग्रीनफील्ड ने आयरलैंड-नॉर्वे के मसौदे को 'एक चरम समझौता' कहा और कहा कि यह जीवन और मृत्यु का मुद्दा था और दुखद है कि रूस के वीटो के कारण लोग मर जाएंगे।
रूस के उप स्थायी प्रतिनिधि दिमित्री पोलांस्की ने प्रतिवाद किया कि छह महीने के विस्तार के लिए उनके प्रस्ताव ने जनादेश को जारी रखने के लिए प्रदान किया और इसमें वह सब शामिल था जो थॉमस-ग्रीनफील्ड चाहते थे।
आयरलैंड-नॉर्वे के प्रस्ताव पर अपना विरोध व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि इसने दमिश्क के हितों की अनदेखी की, जिसका अर्थ बशर अल-असद सरकार है।
उन्होंने इस्लामिक स्टेट आतंकी समूह के कब्जे वाले कुछ क्षेत्रों का भी उल्लेख किया और व्यंग्यात्मक रूप से कहा, "जहां तक इदलिब में घुसे आतंकवादियों का सवाल है, आपको वैसे भी उन्हें प्रदान करने के अवसर मिले हैं।"
संयुक्त अरब अमीरात के स्थायी प्रतिनिधि लाना जकी नुसीबेह ने नौ महीने के विस्तार के समझौते का प्रस्ताव रखा, जिसे ब्राजील, केन्या और घाना का समर्थन प्राप्त था।
आयरलैंड के स्थायी प्रतिनिधि ने सुझाव के बाद अधिक वार्ता आयोजित करने के लिए सत्र को स्थगित करने का सुझाव दिया और इसे ब्राजील के स्थायी प्रतिनिधि रोनाल्डो कोस्टा फिल्हो ने स्वीकार कर लिया, जो इस महीने के लिए परिषद के अध्यक्ष हैं।
(आईएएनएस)
पेरिस, 9 जुलाई | पिछले 24 घंटों में 74 अतिरिक्त घातक घटनाओं के बाद फ्रांस में कुल कोविड-19 की मौत का आंकड़ा 150,000 को पार कर गया है, इस बात की जानकारी स्वास्थ्य मंत्रालय से सामने आई है । शनिवार की सुबह तक देशभर में मरने वालों की संख्या 1,50,017 थी, जबकि मामलों की संख्या 32,115,604 तक पहुंच गया।
मंत्रालय ने कहा कि एक सप्ताह में कोविड-19 जांचों की संख्या 30 लाख तक पहुंच गई और इस सप्ताह संक्रमित होने वाले 16 से 25 वर्ष के बच्चों की संख्या में 60 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
देश में महामारी की चपेट में आने के दो साल बाद 11 मार्च को फ्रांस में कोविड की कुल मौतों की संख्या 140,000 हो गई। (आईएएनएस)
कोलंबो, 9 जुलाई। श्रीलंका में शीर्ष वकीलों के संघ, मानवाधिकार समूहों और राजनीतिक दलों के लगातार बढ़ते दबाव के बाद पुलिस ने शनिवार को सरकार विरोधी प्रदर्शनों से पहले कर्फ्यू हटा लिया है।
यह कर्फ्यू सरकार विरोधी प्रदर्शनों को रोकने के लिए कोलंबो सहित देश के पश्चिमी प्रांत में सात संभागों में लगाया गया था।
पुलिस के मुताबिक पश्चिमी प्रांत में सात पुलिस संभागों में कर्फ्यू लगाया गया था जिसमें नेगोंबो, केलानिया, नुगेगोडा, माउंट लाविनिया, उत्तरी कोलंबो, दक्षिण कोलंबो और कोलंबो सेंट्रल शामिल हैं। यह कर्फ्यू शुक्रवार रात नौ बजे से अगली सूचना तक लागू किया गया था।
पुलिस महानिरीक्षक (आईजीपी) सी डी विक्रमरत्ने ने शुक्रवार को घोषणा करते हुए कहा, ‘‘जिन क्षेत्रों में पुलिस कर्फ्यू लागू किया गया है, वहां रहने वाले लोगों को अपने घरों में ही रहना चाहिए और कर्फ्यू का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।’’
श्रीलंका के बार एसोसिएशन ने पुलिस कर्फ्यू का विरोध करते हुए इसे अवैध और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करार दिया।
बार एसोसिएशन ने एक बयान में कहा, ‘‘इस तरह का कर्फ्यू स्पष्ट रूप से अवैध है और हमारे देश के लोगों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है जो अपने मूल अधिकारों की रक्षा करने में राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे और उनकी सरकार की विफलता को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।’’
श्रीलंका के मानवाधिकार आयोग ने पुलिस कर्फ्यू को मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन बताया है।
श्रीलंका के मानवाधिकार आयोग ने एक वक्तव्य में कहा,“मानवाधिकार आयोग सूचित करता है कि पुलिस महानिरीक्षक द्वारा मनमाने ढंग से पुलिस कर्फ्यू लगाना अवैध है। यह आईजीपी को इस अवैध आदेश को वापस लेने का निर्देश देता है जो लोगों के मौलिक अधिकारों का घोर उल्लंघन है।”
गौरतलब है कि श्रीलंका मौजूदा समय में गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा है। (भाषा)
जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंज़ो आबे की हत्या पर चार देशों के अंतरराष्ट्रीय संगठन 'क्वाड' के नेताओं ने जारी एक संयुक्त बयान में गहरा दुख जताया है.
अमेरिकी राष्ट्रपति भवन 'व्हाइट हाउस' की ओर से जारी इस संयुक्त बयान में अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन, ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज़ और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि वे शिंज़ो आबे की हत्या से सदमे में हैं.
इस बयान के अनुसार, ''हम, ऑस्ट्रेलिया, भारत और अमेरिका के नेता, पूर्व जापानी प्रधानमंत्री शिंज़ो आबे की दुखद हत्या से स्तब्ध हैं. प्रधानमंत्री आबे जापान के लिए और हमारे हर देश के साथ जापान के संबंधों के लिहाज़ से बदलाव लाने वाले एक नेता थे.''
इसमें आगे कहा गया है, ''उन्होंने क्वाड की साझेदारी को स्थापित करने में भी एक रचनात्मक भूमिका निभाई और आज़ाद और खुले इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के लिए एक साझा नज़रिए को आगे बढ़ाने के लिए अथक प्रयास किया.''
नेताओं ने कहा है, ''दुख की इस घड़ी में हमारी संवेदनाएं जापान के लोगों और प्रधानमंत्री किशिदा के साथ हैं. हम प्रधानमंत्री आबे की यादों का सम्मान, इस क्षेत्र को शांतिपूर्ण और समृद्ध बनाने की दिशा में अपने काम को दोगुना करके करेंगे.''
इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन के दबदबे को संतुलित करने के लिए दुनिया के चार देशों अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया का एक संगठन है.
शुक्रवार को जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंज़ो आबे की देश के पश्चिमी हिस्से नारा की एक सड़क पर भाषण देने के दौरान गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.
उसके बाद अस्पताल में उनका निधन हो गया. वो जापान के उच्च सदन के लिए होने वाले चुनावों के लिए प्रचार कर रहे थे. ऐसी ख़बरें थीं कि गोली लगने के बाद आबे को कार्डियक अरेस्ट भी हुआ था. (bbc.com)
अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट द्वारा गर्भपात पर लगाई गई रोक के बाद राष्ट्रपति जो बाइडन ने गर्भपात के अधिकार की बहाली के लिए एक संघीय क़ानून बनाए जाने की वकालत की है.
इसके अलावा शुक्रवार को उन्होंने प्रजनन स्वास्थ्य सुविधाओं तक लोगों की पहुंच को सुरक्षित करने वाले एक 'कार्यकारी आदेश' पर भी दस्तख़त कर दिया है.
इसका एलान करते हुए जो बाइडन ने कहा, ''सुप्रीम कोर्ट के 'रो बनाम वेड' केस के फ़ैसले को पलटने के बाद आज मैंने महिलाओं के प्रजनन अधिकारों की रक्षा के लिए एक कार्यकारी आदेश पर दस्तख़त कर दिए हैं.''
उन्होंने कहा, ''यह आदेश सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के ठीक बाद मैंने जिन क़दमों का एलान किया था, उसे औपचारिक रूप देता है. इससे महिलाओं के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए नए उपाय जुड़ जाएंगे.''
एलान के वक़्त राष्ट्रपति बाइडन के साथ उप राष्ट्रपति कमला हैरिस और स्वास्थ्य मंत्री जेवियर बेसेरा भी मौजूद थे.
अभी से क़रीब दो हफ़्ते पहले 24 जून को अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने गर्भपात का अधिकार देने वाले 1973 के ऐतिहासिक 'रो बनाम वेड' केस के अपने फ़ैसले को पलटते हुए गर्भपात को अवैध क़रार दे दिया था.
और क्या कहा बाइडन ने
उन्होंने गर्भपात पर हाल के सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर कहा, ''इस अदालत ने साफ़ कर दिया है कि वह महिलाओं के अधिकारों की रक्षा नहीं करेगी. लेकिन मैं उनके अधिकारों की रक्षा करूंगा.''
उन्होंने कहा, ''इसलिए मैं आज प्रजनन स्वास्थ्य सुविधाओं तक लोगों की पहुंच को सुरक्षित करने वाले एक 'कार्यकारी आदेश' पर दस्तख़त कर रहा हूं.''
राष्ट्रपति बाइडन ने कहा, ''कांग्रेस के रिपब्लिकन सदस्य चाहते हैं कि गर्भपात अवैध हो, लेकिन मैं आपको कुछ बता दूं कि जब तक मैं राष्ट्रपति हूं, मैं ऐसे किसी भी प्रयास को वीटो करूंगा. मुझे परवाह नहीं है कि वे क्या करने की कोशिश करते हैं. मैं इसे कभी क़ानून नहीं बनने दूंगा.''
उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के साथ मिलकर रिपब्लिकन सदस्यों को लोगों की स्वतंत्रता को छीनने वाले एजेंडे को आगे नहीं बढ़ाने देंगे. (bbc.com)
(योषिता सिंह)
न्यूयॉर्क/संयुक्त राष्ट्र, 9 जुलाई। जापान के साथ क्वॉड समूह की स्थापना करने वाले देशों भारत, ऑस्ट्रेलिया, और अमेरिका के नेताओं ने जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे की हत्या पर शोक व्यक्त करते हुए कहा है कि उन्होंने समूह की स्थापना में 'रचनात्मक भूमिका' निभाई और मुक्त एवं खुले हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए साझा दृष्टिकोण को आगे बढ़ाने को लेकर अथक प्रयास किए।
आबे (67) को शुक्रवार को पश्चिमी जापान के नारा में प्रचार भाषण के दौरान पीछे से गोली मार दी गई थी। उन्हें अस्पताल ले जाया गया, लेकिन उनकी सांसें और दिल की धड़कनें नहीं चल रही थीं। बाद में अस्पताल में उन्हें मृत घोषित कर दिया गया।
स्वास्थ्य कारणों से 2020 में पद छोड़ने से पहले आबे जापान के सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहे थे।
शुक्रवार को व्हाइट हाउस की तरफ से जारी एक बयान में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन, ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीस और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, 'हम, ऑस्ट्रेलिया, भारत और अमेरिका के नेता जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे की हत्या को लेकर स्तब्ध हैं।'
नेताओं ने आबे को जापान के लिए और तीनों देशों के साथ जापान के अलग-अलग संबंधों के लिए एक 'परिवर्तनकारी नेता' करार दिया।
नेताओं ने कहा, 'उन्होंने (आबे) क्वॉड समूह की स्थापना में भी एक रचनात्मक भूमिका निभाई और एक मुक्त एवं खुले हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए साझा दृष्टिकोण को आगे बढ़ाने को लेकर अथक प्रयास किए।'
आबे चीन के बढ़ते प्रभाव और सैन्य ताकत का मुकाबला करने के उद्देश्य से बनाए गए क्वॉड समूह के वास्तुकारों में से एक थे।
चार देशों ने 2017 में हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के आक्रामक व्यवहार का मुकाबला करने के लिए 'क्वॉड' की स्थापना करने के लंबे काफी समय से लंबित प्रस्ताव को आकार दिया था।
क्वॉड नेताओं ने 'एक शांतिपूर्ण व समृद्ध हिंद-प्रशांत क्षेत्र की दिशा में अपने प्रयासों को दोगुना करके' आबे की स्मृति का सम्मान करने का संकल्प लिया और कहा कि दुख की इस घड़ी में उनकी संवेदनाएं जापान के लोगों और प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा के साथ हैं।
आबे की हत्या पर दुनिया भर के नेताओं ने शोक व्यक्त किया।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस ने कहा कि वह आबे की 'भयावह हत्या' से बहुत दुखी हैं।
संयुक्त राष्ट्र प्रमुख के प्रवक्ता द्वारा जारी एक बयान में कहा गया कि आबे को बहुपक्षवाद के रक्षक, सम्मानित नेता और संयुक्त राष्ट्र के समर्थक के रूप में याद किया जाएगा। बयान में कहा गया, 'महासचिव शांति व सुरक्षा को बढ़ावा देने, सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में काम करने और सार्वभौमिक स्वास्थ्य सुविधा की वकालत करने के लिए शिंजो आबे की प्रतिबद्धता को याद करते हैं। सबसे लंबे समय तक जापान के प्रधानमंत्री रहे आबे देश की अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने और जापान के लोगों की सेवा करने के लिए समर्पित थे।' (भाषा)
सैन फ्रांसिस्को (अमेरिका), 9 जुलाई। टेस्ला के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एलन मस्क ने ट्विटर के बोर्ड को शुक्रवार को बताया कि वह इसके अधिग्रहण का समझौता खत्म कर रहे हैं, जिसके बाद माइक्रोब्लॉगिंग साइट को 44 अरब डॉलर में खरीदने का उनका समझौता खटाई में पड़ता दिख रहा है।
ट्विटर ने अभी इस पर कोई टिप्पणी नहीं की है। अभी यह भी स्पष्ट नहीं है कि क्या ट्विटर बोर्ड समझौता खत्म करने के लिए एक अरब डॉलर की क्षतिपूर्ति राशि लगाएगा या इस समझौते को लेकर कानूनी लड़ाई लड़ी जाएगी।
दुनिया के सबसे अमीर शख्स और सबसे प्रभावशाली सोशल मीडि
या मंचों में से एक ट्विटर के बीच नाटकीय ढंग से हुए समझौते में यह नया मोड़ है। 9.5 करोड़ से अधिक फॉलोअर वाले मस्क ने ट्विटर पर भड़कते हुए कहा था कि वह स्वतंत्र अभिव्यक्ति के मंच के तौर पर अपनी क्षमता पर खरा उतरने में नाकाम रहा है।
शुक्रवार को ट्विटर के शेयर पांच प्रतिशत तक गिरकर 36.81 डॉलर पर पहुंच गए। इस बीच, टेस्ला का शेयर 2.5 प्रतिशत की उछाल के साथ 752.29 डॉलर पर पहुंच गया।
प्रतिभूति एवं विनिमय आयोग को लिखे पत्र में मस्क ने कहा कि ट्विटर ने इस समझौते को लेकर ‘‘अपने दायित्वों का पालन नहीं किया’’ है और साथ ही वह फर्जी या स्पैम खातों की संख्या नहीं बता पाया है। (एपी)