अंतरराष्ट्रीय
पाकिस्तान के मशहूर टीवी स्टार और कराची से पीटीआई नेशनल असेंबली के सदस्य डॉ आमिर लियाकत हुसैन का कराची में निधन हो गया है.
पाकिस्तानी मीडिया के मुताबिक तबीयत खराब होने पर उन्हें अस्पताल ले जाया गया था लेकिन डॉक्टरों के मुताबिक अस्पताल लाए जाने के वक्त उनकी मौत हो चुकी थी.
पुलिस का कहना है कि उनकी मौत के सही कारणों का फ़िलहाल पता नहीं चल सका है. उनका पोस्टमार्टम किया जाएगा.
अभिनेता आमिर लियाकत के निधन के कारण नेशनल असेंबली का सत्र शुक्रवार शाम 5 बजे तक से लिए स्थगित कर दिया गया है.
हाल ही में आमिर लियाकत अपनी तीसरी शादी को लेकर विवादों में घिर गए थे, जिसके बाद उन्होंने देश छोड़ने का ऐलान कर दिया था.
धार्मिक टीवी कार्यक्रम 'आलम ऑनलाइन' से प्रसिद्धि पाने वाले डॉ आमिर लियाकत हुसैन ने 2018 में पीटीआई के टिकट पर चुनाव जीतकर सांसद बने थे. (bbc.com)
मुंबई, नौ जून (भाषा) कच्चे तेल की कीमतों में तेजी और विदेशी पूंजी के लगातार बाहर जाने के चलते रुपया बृहस्पतिवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले टूटकर दिन के कारोबार के अब तक के सबसे निचले स्तर 77.81 पर पहुंच गया।
अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 77.74 पर खुला, फिर और गिरावट दर्ज करते हुए दिन के निचले स्तर 77.81 पर आ गया।
रुपया बुधवार को अमेरिकी मुद्रा के मुकाबले अपने रिकॉर्ड निचले स्तर से उबरकर 10 पैसे की तेजी के साथ 77.68 पर बंद हुआ था।
इसबीच वैश्विक तेल मानक ब्रेंट क्रूड वायदा 0.12 प्रतिशत गिरकर 123.43 डॉलर प्रति बैरल के भाव पर आ गया।
शेयर बाजार के अस्थाई आंकड़ों के मुताबिक विदेशी संस्थागत निवेशकों ने बुधवार को शुद्ध रूप से 2,484.25 करोड़ रुपये के शेयर बेचे।
इस्लामाबाद, 9 जून | इस्लामाबाद में एक सुरक्षा गार्ड ने यूनिसेफ की एक अधिकारी के साथ कथित तौर पर रेप किया। डॉन न्यूज की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि स्वीडिश नागरिक यूनिसेफ के अधिकारी ने पाकिस्तानी राजधानी के आबपारा इलाके में पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है कि उनके आवास पर तैनात सुरक्षा गार्ड ने उनके साथ बलात्कार किया।
पुलिस के मुताबिक पीड़िता इस साल जनवरी से इस्लामाबाद में तैनात थी।
प्राथमिकी में कहा गया है कि मार्च से अधिकारी के आवास पर तैनात गार्ड ने पीड़िता के शयनकक्ष में प्रवेश किया और उसके साथ रेप किया।
पुलिस ने कहा कि उसने फरार अपराधी की तलाश के लिए एक टीम गठित की है। (आईएएनएस)
कराची, 9 जून | पाकिस्तान के कराची में बुधवार को कोरंगी इलाके के श्री मारी माता मंदिर में तोड़फोड़ की गई। इसकी जानकारी गुरुवार को एक मीडिया रिपोर्ट में दी गई। तोड़फोड़ की सूचना मिलने के बाद पुलिस ने इलाके में पहुंचकर मंदिर का निरीक्षण किया, वहीं कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए अतिरिक्त बल भी तैनात कर दिए।
इलाके के हिंदू निवासी संजीव ने पाकिस्तानी दैनिक द एक्सप्रेस ट्रिब्यून को बताया कि मोटरसाइकिल पर छह से आठ लोग आए। उान्होंने मंदिर पर हमला कर दिया। संजीव ने कहा कि वह नहीं जानते कि किसने और क्यों हमला किया है।
कोरंगी थाना के एसएचओ फारूक संजरानी ने इस घटना की पुष्टि की और कहा कि पांच से छह अज्ञात संदिग्ध मंदिर में घुस गए और तोड़फोड़ करने के बाद भाग गए।
संजरानी ने बताया कि अज्ञात हमलावरों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया गया है।
पाकिस्तान में हिंदू मंदिरों में अक्सर तोड़फोड़ के मामले सामने आते रहते हैं। (आईएएनएस)
सोल, 9 जून | दक्षिण कोरिया के डेगू शहर में गुरुवार को एक कार्यालय की इमारत में आग लग गई, जिसमें सात लोगों की मौत हो गई और 46 अन्य घायल हो गए। दमकलकर्मियों के अनुसार, सोल से 302 किलोमीटर दक्षिण में शहर की सात मंजिला इमारत में सुबह करीब 10.55 बजे (स्थानीय समयानुसार) आग लग गई।
योनहाप न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, करीब 20 मिनट बाद इसे पूरी तरह से बुझा दिया गया।
दर्जनों अन्य नागरिकों ने इमारत को खाली करा लिया।
अधिकारियों ने 50 दमकल गाड़ियों और 160 दमकलकर्मियों को घटनास्थल पर भेजा।
पुलिस ने कहा कि वे आगजनी की संभावना सहित आग के सही कारणों की जांच कर रहे हैं। (आईएएनएस)
न्यूयॉर्क (अमेरिका), 9 जून (एपी)। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने कहा कि रूस युद्ध को समाप्त करने के लिए बातचीत को तैयार नहीं है क्योंकि वह अब भी खुद को ताकतवर समझता है।
जेलेंस्की ने बुधवार को अमेरिका के औद्योगिक नेताओं से कहा कि रूस का अभी वार्ता के लिए आना ‘‘ संभव नहीं है क्योंकि अब भी रूस अपनी ताकत का अनुभव कर सकता है।’’
वीडियो लिंक के जरिए अनुवादक की मदद से जेलेंस्की ने कहा, ‘‘ हमें रूस को कमजोर करना होगा और यह काम विश्व को करना होगा।’’
जेलेंस्की ने कहा कि यूक्रेन युद्ध के मैदान में अपना काम कर रहा है और रूस को आर्थिक रूप से कमजोर करने के लिए और भी सख्त प्रतिबंधों का आह्वान किया।
उन्होंने औद्योगिक नेताओं ने कहा, ‘‘ हमें रूस की वैश्विक वित्तीय प्रणाली को पूरी तरह ठप करना होगा।’’
पाकिस्तानी सेना ने बुधवार को वरिष्ठ पत्रकार शाहीन सहबाई के सेना के शीर्ष नेतृत्व पर लगाए गए आरोपों को निराधार बताते हुए उन्हें ख़ारिज कर दिया है.
पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार सहबाई ने एक ट्वीट करके दावा किया था कि पूर्व वित्त मंत्री शौकत तारीन को पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान को ‘धोखा’ देने और मौजूदा प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ की मदद के लिए कहा गया था.
उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा है: मैं बहुत जल्दी ही इस बारे में विस्तार से लिखूंगा कि आख़िर क्यों चीफ़ न्यूट्रल, जिसे शौकत तारीन ने नॉन-न्यूट्रल साबित किया, ने उन्हें इमरान ख़ान को छोड़ने और शहबाज की मदद के लिए कहा था.
हालांकि सेना की मीडिया विंग, इंटर-सर्विस पब्लिक रिलेशन्स ने वरिष्ठ पत्रकार के लगाए आरोपों को एक बयान जारी करके ख़ारिज किया है.
सेना की मीडिया विंग के इस बयान में कहा गया है, “सोशल मीडिया पर शाहीन सहबाई और कुछ अन्य लोगों ने पूर्व वित्त मंत्री के हवाले से जो आरोप लगाए हैं वे निराधार हैं और सिर्फ़ दुष्प्रचार के लिए इस्तेमाल किये जा रहे हैं.”
सेना की ओर से जारी बयान में आगे कहा गया है कि ख़ुद शौकत तारीन ने वरिष्ठ पत्रकार सहबाई के लगाए आरोपों का खंडन किया है.
सेना की ओर से कहा गया है कि निजी स्वार्थ में और सिर्फ़ दुष्प्रचार करने के लिए सेना पर इस तरह के गंभीर आरोप लगाना दुर्भाग्यपूर्ण है. इसके साथ ही सेना की ओर से इस मामले में शामिल लोगों के ख़िलाफ़ क़ानूनी रास्ता अपनाने की भी बात कही गई है.
सेना के साथ-साथ पूर्व वित्त मंत्री ने ख़ुद भी सहबाई के आरोपों से इनक़ार किया है. उन्होंने ट्विटर पर एक पोस्ट लिखकर इससे इनक़ार किया है.
उन्होंने ट्वीट किया है- “शाहीन सहबाई ने जिस तरह से मुझे चित्रित किया है, मैं उससे स्पष्ट तौर पर इनक़ार करता हूं. मुझे किसी ने, कभी भी इमरान ख़ान का साथ छोड़ने और शहबाज शरीफ़ की सरकार का हिस्सा बनने के लिए नहीं कहा था. ” (bbc.com)
इमरान ख़ान ने पत्रकार पीयर्स मोर्गन को दिए एक इंटरव्यू में अपने ऊपर हुए संभावित ‘जानलेवा’ हमलों के बारे में कहा कि यह उन लोगों की योजना थी, जो नहीं चाहते हैं कि वह (इमरान ख़ान) वापस सत्ता में आएं.
मोर्गन ने इमरान ख़ान से उन पर हुए कथित जानलेवा हमलों के बारे में सवाल पूछा था.
जिसके जवाब में इमरान ख़ान ने कहा कि वो पहले भी अपने ख़िलाफ़ हुए षड़यंत्र के बारे में बता चुके हैं. उन्हें अपने ख़िलाफ़ हो रहे षड़यंत्र के बारे में पता था. अविश्वास प्रस्ताव लाए जाने के छह महीने पहले से ही उन्हें अपने ख़िलाफ़ हो रहे षड़यंत्र के बारे में मालूम था.
इमरान ख़ान ने कहा कि हर बार वो यही सोचते थे कि यह कामयाब नहीं होने वाला है. उन्होंने कहा कि कुछ वजहों से उन्हें ऐसा लगता था कि उनके ख़िलाफ़ हो रही साज़िश कामयाब नहीं होगी.
उन्होंने कहा, “कुछ वजहों से मुझे लगता था कि मुझे पद से हटाने की साज़िश कामयाब हो ही नहीं सकती है, ख़ासतौर पर उन लोगों की रची साज़िश जो लगभग 30 साल तक सत्ता (दो परिवार) में रहे और जिनके ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार के अनगिनत मामले हैं. मुझे हटाकर जो नई सरकार आई है, उसकी 60 फ़ीसद कैबिनेट बेल पर है. ऐसे में मेरा दिमाग़ मान नहीं रहा था कि हमारी सरकार को हटाया जा सकता है. एक ऐसी सरकार जिसने दो साल में हर तरह के संकट से देश को उबारा है. मुझे यह लगा ही नहीं कि ये अपराधी एक ऐसी सरकार को हटा सकते हैं.”
अपने ऊपर हुए कथित जानलेवा हमले पर इमरान ख़ान ने कहा कि ऐसे में जो लोग नहीं चाहते हैं कि मैं वापस आऊं, ये उन्हीं की साज़िश है.
उन्होंने कहा, “वे नहीं चाहते है कि मैं दोबारा आऊं. तो ये उनके लिए फ़ाइनल-सॉल्यूशन है.”
इमरान ख़ान ने इसी के साथ ही ‘पाकिस्तान की असल आज़ादी के लिए जिहाद’ करने की भी बात कही है.
इमरान ख़ान की पार्टी पाकिस्तान तहरी-ए-इंसाफ़ की ओर से एक ट्वीट करके इसके बारे में जानकारी दी गई है.
ट्वीट क मुताबिक़, इमरान ख़ान ने कहा है - “पूरा देश तैयार हो जाए, मैं बहुत जल्दी आपका आह्वान करूंगा और हम इतिहास का अब तक का सबसे बड़ा विरोध प्रदर्शन करेंगे क्योंकि यह राजनीति नहीं है, यह पाकिस्तान की असल आज़ादी के लिए जिहाद है.” (bbc.com)
सिनेमा चेन सिनेवर्ल्ड ने ब्रिटेन में अपने सभी थियेटरों में पैगंबर मोहम्मद की बेटी के बारे में बनी फ़िल्म की स्क्रीनिंग रद्द कर दी है. कुछ सिनेमाघरों के बाहर इस फ़िल्म के ख़िलाफ़ प्रदर्शन के बाद कंपनी ने ये फैसला किया.
सिनेवर्ल्ड ने कहा कि अपने कर्मचारियों और कस्टमर्स की सुरक्षा का ध्यान में रखते हुए उसने फ़िल्म का प्रदर्शन रोका है.
ब्रिटेन में पैगंबर मोहम्मद की बेटी पर बनी फ़िल्म 'लेडी ऑफ हेवेन्स' का विरोध हो रहा है. लगभग एक लाख बीस हज़ार लोगों ने एक याचिका पर हस्ताक्षर कर सिनेमाघरों से इस फ़िल्म को उतारने की मांग की है.
बॉल्टन काउंसिल ऑफ मॉस्क्स ने इस फ़िल्म को 'ईशनिंदा' और सांप्रदायिक करार दिया. लेकिन हाउस ऑफ लॉर्ड्स की सदस्य क्लेयर फॉक्स ने इस फैसले को 'कला के लिए विनाशकारी और अभिव्यक्ति की आज़ादी के लिए ख़तरनाक' बताया है. वहां स्वास्थ्य अधिकारी साजिद जावेद ने कहा कि वह इस 'कैंसल कल्चर' के बढ़ने से चिंतित है.
बॉल्टन न्यूज़ के मुताबिक बॉल्टन काउंसिल ऑफ मॉस्क्स के चेयरमैन आसिफ पटेल ने सिनेवर्ल्ड को भेजे ई-मेल में कहा है,'' फ़िल्म सांप्रदायिक विचारधारा की बुनियाद पर बनाई गई है. इसमें पुराने ऐतिहासिक कहानियों को गलत ढंग से दिखाया गया है. यह इस्लामी इतिहास से जुड़े कई प्रतिष्ठित लोगों की बेअदबी करती है. ''
बॉल्टन न्यूज़ ने कहा है कि इस सप्ताह लगभग सौ लोगों ने थियेटर के बाहर इस फ़िल्म के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया था.
मुस्लिम न्यूज़ साइट 5पिलर्स ने भी अपने ट्वीट में एक तस्वीर शेयर की है. इसके मुताबिक सिनेवर्ल्ड के बर्मिंघम शाखा के बाहर 200 लोग इस फ़िल्म के प्रदर्शन के ख़िलाफ़ विरोध जता रहे हैं.
फ़िल्म के एग्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर मलिक शिलिबा ने कहा, '' लोग अपने विचार रखें. वह इसका स्वागत करते हैं. लेकिन सिनेमाघरों को आगे आकर अपने उस अधिकार की रक्षा करनी चाहिए जिसके तहत वो जनता की इच्छा के मुताबिक चीजें दिखाते हैं. ''
गार्जियन अख़बार से उन्होंने कहा, '' मुझे लगता है कि सिनेमाघर दबाव में चरमरा रहे हैं. वे शांति बनाए रखने के लिए शायद ये फैसला कर रहे हैं.''
बुधवार को टॉक टीवी से बात करते हुए उन्होंने कहा, '' देश में बढ़ते कैंसल कल्चर से मैं काफी चिंतित हूं. ऐसे लोग हैं जो ये मानते हैं कि उन्हें बुरा नहीं लगना चाहिए. निश्चित तौर पर किसी को ये अधिकार नहीं है. '' ''अगर कोई कुछ कहे तो हो सकता है कि वो आपको पसंद ना हो लेकिन उन्हें बोलने का अधिकार तो है ही.''
उन्होंने कहा कि ब्रिटेन में ईशनिंदा का कोई कानून नहीं है. उन्होंने चेतावनी दी कि ब्रिटेन अगर इस राह पर चला तो ये बड़ा ख़तरा होगा.
''इस देश में बोलने और अभिव्यक्ति की आज़ादी है और यह बुनियादी मूल्य हैं. ''
फॉक्स ने फ़िल्म की स्क्रीनिंग रद्द करने की मांग की आलोचना करते हुए कहा इस तरह का 'कैंसल कल्चर' कला और बोलने की आज़ादी के लिए घातक है. ये उन लोगों के लिए एक सबक है जो ये दलील देते हैं तो पहचान की राजनीति लोकतंत्र के लिए ख़तरा नहीं है.
'विभाजनकारी'
'लेडी ऑफ हेवेन्स' ब्रिटेन के सिनेमाघरों में 3 जून को रिलीज हुई थी. इसमें फातिमा की कहानी बताने का दावा किया गया है. फातिमा पैगंबर मोहम्मद की बेटी थीं. कुछ समूहों ने फ़िल्म की आलोचना की है क्योंकि इसमें मोहम्मद साहब को दिखाया गया है. इस्लाम में इसे गुनाह माना गया है.
हालांकि फिल्म की वेबसाइट में कहा गया है ,'' फ़िल्म में किसी भी व्यक्ति को पवित्र व्यक्ति के तौर पर नहीं दिखाया गया है. अभिनेता-अभिनेत्रियों के खास संयोग, इन-कैमरा इफेक्ट्स, लाइटिंग और विजुअल के ज़रिये प्रदर्शन का लक्ष्य हासिल किया गया है. ''
ब्रिटेन में मुस्लिमों के सबसे बड़े संगठनों का समूह मुस्लिम काउंसिल ऑफ ब्रिटेन ने इस फ़िल्म को ' विभाजनकारी' करार दिया है.
रविवार को जारी एक बयान में उसने कहा, '' उन विद्वानों और नेताओं का समर्थन कीजिये जो व्यापक एकता और साझा बेहतरी की पैरवी कर रहे हैं. ''
'' फ़िल्म के समर्थक और सांप्रदायिक राजनीति में शामिल लोग इसमें शामिल हैं. उनका मकसद नफ़रत फैलाना है. ''
फिलहाल बुधवार को लंदन और दक्षिण पूर्वी इंग्लैंड में व्यू सिनेमा के कई सिनेमाघरों में बुधवार को भी स्क्रीनिंग रखी गई थी.
व्यू सिनेमा के एक प्रवक्ता ने कहा, '' कई तरह के कंटेंट दिखाने के लिए मुहैया कराए जाने वाले प्लेटफॉर्म के साथ जो ज़िम्मेदारी आती है, व्यू उसे पूरी गंभीरता से लेता है. यह ब्रिटेन में अलग-अलग समुदायों की रुचियों के हिसाब से सिनेमा दिखाने में विश्वास करता है. ''
'' व्यू इस फ़िल्म को तभी दिखाएगा जब उसे बीबीएफसी (इंडिपेंडेंट ब्रिटिश बोर्ड ऑफ फिल्म क्लासिफिकेशन) इस फ़िल्म को रेटिंग दे देगा. हालांकि बीबीएफसी ने लेडी ऑफ हेवेन्स को एक्रिडेशन दे दिया है और हमारे कई सिनेमाघरों में यह चल भी रही है'.'' (bbc.com)
अमेरिका के एक शीर्ष जनरल ने कहा है कि लद्दाख में भारत से लगती सीमा के पास चीन के कुछ रक्षा बुनियादी ढांचे स्थापित करना 'चिंताजनक' है और 'आंख खोलने वाली' हैं.
अंग्रेज़ी अख़बार द इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, भारत के दौरे पर आए अमेरिकी सेना के प्रशांत क्षेत्र के कमांडिंग जनरल चार्ल्स ए. फ्लिन ने मीडिया से बातचीत के दौरान कहा, "मेरा मानना है कि चीन की गतिविधि चिंताजनक हैं. मुझे लगता है कि कुछ पश्चिमी थिएटर कमांड में कुछ बुनियादी ढांचे का निर्माण चिंताजनक है."
हालाँकि उन्होंने ये भी कहा कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के अस्थिर करने वाला और दबाव बढ़ाने वाले व्यवहार से चीन को कोई मदद नहीं मिलेगी. फ्लिन ने कहा कि जब कोई चीन के सैन्य शस्त्रागार को देखता है, तो उसे यह सवाल पूछना चाहिए कि इसकी ज़रूरत क्यों है.
चीनी सेना की पश्चिमी थिएटर कमान भारत की सीमा से लगी है.
भारत और चीन की सेना के बीच साल 2020 से ही पूर्वी लद्दाख में तनावपूर्ण संबंध बने हुए हैं. उस समय पेंगोंग त्सो क्षेत्रों में दोनों देशों के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हुई थी.
भारत और चीन के बीच सैन्य और कूटनीतिक वार्ताओं के संबंध में अमेरिकी जनरल ने कहा, "मुझे लगता है कि वार्ता मदद करेगी लेकिन यहाँ व्यवहार भी मायने रखना है. तो मेरा मानना है कि वो (चीन) जो कह रहा है वो अलग बात है लेकिन जो वो जिस तरह का व्यवहार कर रहा है वो चिंताजनक है और इससे सबको चिंतित होना चाहिए."
भारत और चीन ने पूर्वी लद्दाख विवाद को सुलझाने के लिए अब तक 15 दौर की सैन्य वार्ता की है.
दोनों पक्षों के बीच राजनयिक और सैन्य वार्ता के बाद पैंगोंग त्सो के उत्तर और दक्षिणी तट और गोगरा से सैनिकों को हटा लिया गया था. (bbc.com)
नॉर्वे के एनजीओ "ईरान ह्यूमन राइट्स" ने दावा किया है कि ईरान में एक साथ 12 कैदियों को फांसी लगा दी गई है. ईरान में बढ़ती फांसी की सजा पर अंतरराष्ट्रीय मंचों से चिंता व्यक्त की जा रही है.
"ईरान ह्यूमन राइट्स" (आईएचआर) एनजीओ के मुताबिक मरने वालों में 11 पुरुष और एक महिला थी और उन्हें ड्रग्स से जुड़े अपराध या हत्या के आरोपों में सजा हुई थी. सोमवार सात जून की सुबह उन्हें अफगानिस्तान और पाकिस्तान की सीमा से लगे सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत के जाहेदान मुख्य कारागार में फांसी दे दी गई.
एनजीओ ने यह भी बताया कि सभी 12 कैदी बलोच अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्य थे जो मुख्य रूप से सुन्नी इस्लाम को मानते हैं. ईरान में शिया इस्लाम हावी है. 12 में से छह लोगों को ड्रग्स से जुड़े आरोपों में और छह के हत्या के आरोप में सजा हुई थी.
अल्पसंख्यक निशाने पर
महिला कैदी की सिर्फ उनके उपनाम गारगीज से पहचान की गई. उन्हें उनके पति की हत्या के लिए 2019 में गिरफ्तार किया गया था और सजा दी गई थी. एनजीओ ने यह भी दावा किया कि इनमें से किसी की भी फांसी के बारे में ना तो ईरान में अधिकारियों ने पुष्टि की और ना स्थानीय मीडिया में कोई खबर आई.
ईरान में प्रतिबंधित संगठन नेशनल काउंसिल ऑफ रेजिस्टेंस ऑफ ईरान ने भी कहा कि सोमवार को जाहेदान में 12 लोगों को फांसी दी गई. संगठन ने कहा, "फैलते हुए लोकप्रिय विरोध प्रदर्शनों को देखते हुए सरकार ने दमन और हत्याएं बढ़ा दी हैं और मौत की सजा में एक अभूतपूर्व रिकॉर्ड बना दिया है."
एक्टीविस्टों ने लंबे समय से चिंता व्यक्त की है कि ईरान में मौत की सजा में अनुपातहीन रूप से देश के नस्लीय और धार्मिक अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जाता है. इनमें उत्तरपश्चिम में कुर्द, दक्षिणपश्चिम में अरब और दक्षिणपूर्व में बलोच शामिल हैं.
विरोध के लिए मृत्युदंड?
एनजीओ ने बताया, "हमने जो जानकारी इकट्ठी की है उसके हिसाब से 2021 में जितने लोगों को फांसी दी गई उनमें से 21 प्रतिशत कैदी बलोच थे, जबकि वो देश की कुल आबादी का सिर्फ दो से छह प्रतिशत हैं."
हाल में देश में मौत की सजा के मामलों में आए उछाल पर भी चिंता व्यक्त की गई है. यह सब ऐसे समय में हो रहा है जब आम जरूरत की चीजों के दाम बढ़ने की वजह से देश के नेताओं को अक्सर विरोध का सामना करना पड़ रहा है.
आईएचआर के मुताबिक 2021 में कम से कम 333 लोगों को फांसी दे दी गई थी, जो 2020 के आंकड़ों के मुकाबले 25 प्रतिशत ज्यादा है. एमनेस्टी इंटरनेशनल ने अपनी सालाना रिपोर्ट में कहा कि 2021 में ईरान में 314 फांसियां हुईं जो पिछले साल से 28 प्रतिशत ज्यादा है.
लेकिन एमनेस्टी ने यह भी कहा कि संभव है कि ये आंकड़े वास्तविक आंकड़ों से कम हों. संस्था ने आगे जोड़ा, "मौत की सजा का अल्पसंख्यकों के खिलाफ अनुपातहीन रूप से अस्पष्ट आरोपों के आधार पर...और राजनीतिक दमन के एक औजार के रूप में भी इस्तेमाल किया गया."
पढ़ें डॉयचे वैले पर राहुल मिश्र का लिखा-
चीनी विदेश मंत्री वांग यी और फिर ऑस्ट्रेलियाई विदेश मंत्री पेनी वांग के दौरों के बाद पैसिफिक आईलैंड फोरम की बैठक हुई. दुनिया इन द्वीपीय देशों की अहमियत समझ रही है. क्या वे खुद अपनी अहमियत समझ रहे हैं?
7 जून को दक्षिण- प्रशांत द्वीपसमूह देशों के संगठन पैसिफिक आइलैंड फोरम की एक अहम बैठक हुई जिसमें छह सदस्य देशों ने बाहरी और अंदरूनी दबावों से क्षेत्र को बचाने के लिए आपसी मतभेदों को भुला कर और साथ मिलकर काम करने का निश्चय किया.
18 सदस्यों वाले इस संगठन की स्थापना 1971 में तब हुई थी जब चीन इस क्षेत्र में अपने कदम बढ़ा रहा था. शीत युद्ध की पृष्ठभूमि में इस संगठन को अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड का साथ मिला. लेकिन बीते कुछ सालों में इस संगठन ने अपनी चमक-दमक और पकड़ खो दी. 2021 से तो इस संगठन की बैठक ही नहीं हो पाई, जिसकी बड़ी वजह रही मुखिया के चुनाव को लेकर मतभेद और आपसी विवाद.
छिपी हुई कोरल रीफ
साउथ पैसिफिक में ताहिती के तट के पास वैज्ञानिकों को एक स्वस्थ कोरल रीफ मिली है. यह 65 मीटर चौड़ा और तीन किलोमीटर लंबी है.
लेकिन चीन, अमेरिका-ऑस्ट्रेलिया की कूटनीतिक उठापटक के बीच पैसिफिक आइलैंड फोरम के देशों को यह अहसास होना लाजमी था कि अब नहीं जागे तो दो पाटों के बीच बुरी तरह पिसेंगे. शायद यही वजह है कि 12-14 जुलाई के बीच फिजी की राजधानी सुवा में इस संगठन के सदस्य मिल बैठ कर मतभेदों को दूर करने और संगठन में सुधार लाने को तैयार हो गए हैं.
चीन का प्रभाव गलत या अमेरिका का दबाव गलत?
पिछले लगभग दो दशकों में चीन ने दक्षिण प्रशांत के द्वीपसमूह देशों पर काफी ध्यान दिया है. व्यापक आर्थिक निवेश, व्यापार संबंधों और इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में सहयोग से चीन के इन तमाम देशों से संबंधों में व्यापक परिवर्तन आये हैं. इनकी शुरुआत इस क्षेत्र के तमाम देशों के साथ कूटनीतिक संबधों की शुरुआत से हुई.
लेकिन दोस्ती बढ़ाने की इस तमाम कवायद के पीछे एक बड़ी वजह यह थी कि दक्षिण-प्रशांत के तमाम देश पहले पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (चीन) की बजाय रिपब्लिक ऑफ ताइवान को औपचारिक मान्यता दे कर उसके साथ संबंध बनाये हुए थे. पिछले लगभग एक दशक में यह स्थिति तेजी से बदली है और दक्षिण प्रशांत के कई देशों ने अपनी वफादारियां चीन से जोड़ ली हैं.
ताइवान में भी युद्ध की आशंका
ताइवान के कई लोगों को अब इसमें कोई संदेह नहीं है कि एक बड़ा पड़ोसी अपने छोटे पड़ोसी पर हमला कर सकता है. उनमें से कई लोगों का मानना है कि चीन ताइवान पर कभी भी हमला कर सकता है और ऐसे में चूंकि उसे अपने अस्तित्व के लिए लड़ना है, इसलिए बेहतर होगा कि अभी से तैयारी शुरू कर दी जाए. इसे ध्यान में रखते हुए कई लोगों ने पहले ही बंदूक प्रशिक्षण में दाखिला ले लिया है.
जब यह गतिविधियां हो रही थीं तब शायद अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया को कोई फिक्र नहीं थी, लेकिन जब चीन इन देशों के साथ सामरिक और सैन्य सहयोग की पींगें बढ़ाने की गुपचुप कोशिश में लगा तो बात न गुपचुप रही और न ही इसमें चीन को सफलता मिली.
चीनी विदेश मंत्री की हाल ही में हुई दक्षिण-प्रशांत द्वीपसमूहों की यात्रा चीन की सैन्य सहयोग संबंधी समझौते न कर पाने से ज्यादा इस बात की गवाह है कि सैन्य मोर्चे पर देशों को साथ लाने में अभी वह समर्थ नहीं है. लेकिन चीन की कमजोरी के साथ-साथ यह इस बात को भी उजागर करती है कि अपने तमाम वादों और इरादों के बावजूद पिछले कई दशकों से अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया ने दक्षिण-प्रशांत के द्वीपसमूह देशों की ओर ध्यान नहीं दिया था.
अचानक आई याद
हुआ यूं कि मई महीने के आखिर में चीनी विदेश मंत्री वांग यी दक्षिण-प्रशांत के देशों के दस - दिवसीय दौरे पर निकले. अपने दौरे में वांग यी ने सोलोमन द्वीपसमूह, किरिबाती, सामोआ, फिजी, टोंगा, वानुआतू, पापुआ न्यू गिनी के साथ-साथ तिमोर लेस्त का भी दौरा किया. तिमोर पिछले काफी सालों से आसियान की सदस्यता लेने की कोशिश में है.
इन तमाम बैठकों के अलावा चीन और पैसिफिक आइलैंड देशों की दूसरी विदेश मंत्री स्तरीय बैठक में भी हिस्सा लिया. माइक्रोनेशिया कुक द्वीपसमूह और निआउ के मंत्रियों के साथ ऑनलाइन वार्ता भी की.
इन तमाम बैठकों के पीछे एक बड़ी योजना यह थी कि किसी तरह पूरे क्षेत्र के साथ सोलोमन द्वीपसमूह की तर्ज पर सुरक्षा समझौतों पर दस्तखत हो जाएं. वांग यी के दौरे की शुरुआत में मीडिया में चर्चा आम थी कि वांग यी इस दौरे में कुछ बड़ा करने वाले हैं.
अटकलें इस बात की भी लगाई गईं कि वांग यी शायद पूरे क्षेत्र के देशों के साथ एक बड़ा समझौता करने वाले हैं हालांकि उन समझौतों में क्या होगा यह बात साफ तौर पर सामने नहीं आई थी. लेकिन चीन के मंसूबे हकीकत में नहीं बदल पाए.
भारत और चीन की तुलना
थिंकटैंक ग्लोबल फायर पावर ने चीन को दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी सैन्य शक्ति माना है और भारत को चौथी. यह तुलना 46 मानकों पर परखने के बाद की गई है, जिनमें से 38 में चीन भारत से आगे है.
तमाम बातचीत के बावजूद दक्षिण-प्रशांत के कुछ देशों को लगा कि चीन से दोस्ती कुछ ज्यादा ही गाढ़ी हो रही है जिसके परिणाम हर लिहाज से गंभीर होंगे. आमराय न बन पाने की स्थिति में सुरक्षा समझौते की पेशकश खटाई में पड़ गयी और वांग यी को खाली हाथ लौटना पड़ा.
क्यों बढ़ गयी हैं अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया की चिंताएं?
सोलोमन द्वीपसमूह के साथ चीन के सुरक्षा समझौते से चूकी अमेरिकी और ऑस्ट्रेलियाई सरकारों को फिजी में इस बात की भनक लग गयी कि मामला गंभीर है और चीन की योजना प्रशांत द्वीपसमूहों में व्यापक सैन्य पकड़ बनाने की है. और अगर यह समझौते कारगर हुए तो चीन को दक्षिण-प्रशांत क्षेत्र से निकालना मुश्किल हो जाएगा.
इसी डर के चलते आनन-फानन में दक्षिण प्रशांत के तमाम देशों को समझा-बुझा कर चीन के साथ समझौता न करने की गुपचुप अपील की गयी जो रंग भी लायी. जहां इन समझौतों के फलीभूत न होने से चीन को निराशा हुई होगी तो वहीं शायद ऑस्ट्रेलिया को अपनी भूल का अहसास भी हुआ होगा. यह ऑस्ट्रेलिया का कूटनीतिक अपराधबोध ही था कि जिन छोटे-छोटे पड़ोसी देशों की याद पिछले कई सालों में उसे नहीं आयी, वहां नवनिर्वाचित विदेश मंत्री पेनी वांग अपने विदेशी दौरे पर फिजी पहुंच गईं.
इस तमाम घटनाक्रम में एक बात समान है. एक ओर चीन दक्षिण-प्रशांत के देशों को दोस्त और खुद को अच्छा भाई बताकर सुरक्षा समझौता करना चाहता था. तो दूसरी ओर ऑस्ट्रलियाई विदेश मंत्री ने भी दक्षिण-प्रशांत के देशों को परिवार बता कर उनसे नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश की. इन सबसे अलग कुक द्वीपसमूह के प्रधानमंत्री मार्क ब्राउन ने पैसिफिक आइलैंड फोरम में सुधारों और संगठन के देशों के साथ मिलकर काम करने को यह कह कर परिभाषित किया कि एक सच्चा परिवार ही आखिरकार साथ रहता है.
अब कौन सा "परिवार" असली है और टिकाऊ भी, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा. लेकिन यह बात साफ है किए परिवार के बहाने सामरिक और कूटनीतिक वार और पलटवार का खेल दक्षिण-प्रशांत में कई साल बढ़ चढ़ कर खेला जायेगा जिसमें पैसिफिक आइलैंड फोरम की भूमिका महत्वपूर्ण होगी.
डॉ. राहुल मिश्र सेंटर मलाया विश्वविद्यालय के आसियान केंद्र के निदेशक और एशिया-यूरोप संस्थान में अंतरराष्ट्रीय राजनीति के वरिष्ठ प्राध्यापक हैं. आप @rahulmishr_ ट्विटर हैंडल पर उनसे जुड़ सकते हैं)
नयी दिल्ली, 8 जून। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने स्वास्थ्य क्षेत्र में सहयोग के लिए भारत और अमेरिका के बीच समझौता ज्ञापन को बुधवार को मंजूरी दे दी।
सरकारी बयान के अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल की बैठक में भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) तथा भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) और अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय एड्स वैक्सीन पहल (आईएवीआई) के बीच समझौता ज्ञापन को मंजूरी दे दी गई।
बयान में कहा गया है कि यह एचआईवी, टीबी, कोविड-19 और अन्य संक्रामक बीमारियों को रोकने तथा उनका इलाज करने के लिए नए, बेहतर और नवोन्मेषी जैव चिकित्सा उपकरणों और प्रौद्योगिकियों के विकास में योगदान करेगा।
इसमें कहा गया है कि यह समझौता ज्ञापन पारस्परिक हित के क्षेत्रों में अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक और तकनीकी सहयोग की रूपरेखा के अंतर्गत भारत तथा अमेरिका के बीच संबंधों को और मजबूत करेगा।(भाषा)
इस्लामाबाद, 8 जून। भाजपा से अब निलंबित व निष्कासित किए जा चुके नेताओं द्वारा पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ की गई विवादास्पद टिप्पणियों की निंदा करते हुए पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने पाकिस्तान सरकार से भारत के साथ संबंध तोड़ने और इस मुद्दे पर कठोर रुख अपनाने को कहा है।
पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के अध्यक्ष, अपदस्थ प्रधानमंत्री ने मंगलवार को इस्लामाबाद में वकीलों के सम्मेलन को संबोधित करते हुए यह मांग की।
उन्होंने कहा कि पाकिस्तान सरकार को अरब देशों का अनुसरण करना चाहिए और नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ कड़ा रुख अपनाना चाहिए।
उन्होंने कहा, “सरकार को भारत से संबंध तोड़ लेने चाहिए। भारतीय उत्पादों का बहिष्कार किया जाना चाहिए।”
सोमवार को खान ने पैगंबर मोहम्मद पर “भाजपा प्रवक्ता द्वारा घृणित हमले” की कड़ी निंदा की और मोदी सरकार पर “जानबूझकर भारत में मुसलमानों के प्रति उत्तेजना और नफरत की नीति का पालन करने का आरोप लगाया, जिसमें उनके खिलाफ हिंसा को उकसाना भी शामिल था।”
प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने रविवार को पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ “आहत करने वाली” टिप्पणी की निंदा की।
भारत सरकार द्वारा पांच अगस्त, 2019 को जम्मू- कश्मीर के विशेष दर्जे को रद्द करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त करने के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्तों में दरार और गहरा गई थी। भारत के फैसले पर पाकिस्तान से कड़ी प्रतिक्रिया हुई, जिसने राजनयिक संबंधों के स्तर को कम कर भारतीय दूत को निष्कासित कर दिया। (भाषा)
डॉयचे वैले पर विवेक कुमार का लिखा-
यूरोप में अब चार्जर के लिए परेशान होने के दिन बीतने वाले हैं. जल्द ही वहां हर डिवाइस के लिए एक जैसा चार्जर उपलब्ध होगा. इस बात पर अस्थायी सहमति बन गई है, जिसे औपचारिक मंजूरी जल्द मिल जाएगी.
यूरोपीय संघ में इस बात पर सहमति बन गई है कि 2024 से सभी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस एक जैसा चार्जर इस्तेमाल करेंगी. यह यूएसबी-सी चार्जर होगा, जो फिलहाल एप्पल और गूगल समेत कुछ नए मॉडल के लिए ही उपबल्ध है.
यूरोपीय संघ में फिलहाल यह सहमति अस्थायी है और इसे औपचारिक अनुमति मिलनी बाकी है. इसके लिए प्रस्ताव को यूरोपीय संसद और मंत्री परिषद के समक्ष पेश किया जाएगा. ऐसा गर्मियों की छुट्टियों के बाद ही हो पाएगा, जब ये दोबारा बैठक करेंगे. तब इन प्रस्तावों को औपचारिक मंजूरी दी जाएगी और प्रकाशित किया जाएगा.
कंपनियों पर असर
इस फैसले का इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस बनाने वाली कंपनियों पर बड़ा असर होगा क्योंकि उन्हें अपने उपकरणों में बदलाव करने होंगे. एप्पल के उत्पाद जैसे आईफोन, आईपैड आदि को अपने चार्जिंग पोर्ट बदलन होंगे. मैक सीरीज के कुछ लैपटॉप पहले से ही यूएसबी-सी चार्जर से युक्त हैं.
यूरोपीय संघ का यह फैसला मौजूदा उपकरणों पर लागू नहीं होगा यानी, वे उपकरण जो 2024 से पहले बाजार में उपलब्ध हैं, वे पुराने चार्जर के साथ ही बेचे जा सकेंगे. बहुत सारी कंपनियां इस प्रस्ताव को लेकर ज्यादा उत्साहित नहीं रही हैं.
फोन को चार्ज करने वाली सोलर घड़ी
जब सितंबर 2021 में यह प्रस्ताव लाया गया था तो एप्पल ने कहा था कि ऐसे सख्त नियम रचनात्मक विकास को प्रभावित करते हैं. एप्पल ने तब बीबीसी को कहा था, "एक ही तरह का कनेक्टर लगाने की सख्ती इनोवेशन को बढ़ावा नहीं देती बल्कि उसके रास्ते में रोड़े अटकाती है. अंततः यूरोप में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में यह उपभोक्ताओं के लिए नुकसानदायक होता है."
एप्पल के साथ यह समस्या ज्यादा है क्योंकि बड़े उत्पादकों में एप्पल ही है जो अपने उपकरणों के लिए अलग तरह के पोर्ट इस्तेमाल करती है. अक्सर ये उपकरण एप्पल के बनाए चार्जर द्वारा ही चार्ज हो पाते हैं. अपने आईफोन सीरीज के लिए एप्पल ने लाइटनिंग कनेक्टर का प्रयोग किया है, जो एप्पल द्वारा ही बनाया जाता है.
उपभोक्ताओं की खातिर
यूरोपीय संघ के नए नियम के तहत जिन उपकरणों में बदलाव करने होंगे, उनमें मोबाइल फोन, टैबलेट, हेडफोन और हेडसेट, वीडियोगेम कंसोल और पोर्टेबल स्पीकर आदि शामिल हैं. अब इनमें से किसी भी डिवाइस के लिए केबल चार्जर का पोर्ट यूएसबी टाइप-सी ही हो सकता है और ऐसा करना डिवाइस बनाने वाली कंपनियों की जिम्मेदारी होगी.
कौन फैला रहा है समंदर में जहर
नए नियम लैपटॉप पर भी लागू होंगे लेकिन उनके लिए उत्पादकों को नियम लागू होने के बाद 40 महीने का समय दिया जाएगा. समझौते में यह प्रावधान भी रखा गया है कि इस बात का फैसला खरीददारों पर छोड़ा जाए कि वे चार्जिंग केबल चाहते हैं या नहीं.
अपने बयान में यूरोपीय संघ ने कहा, "यह कानून ईयू की उन कोशिशों का ही एक हिस्सा है जिनके तहत यूरोपीय संघ में उत्पादों को ज्यादा सस्टेनेबल बनाया जा रहा है ताकि इलेक्ट्रॉनिक कचरा कम किया जाए और उपभोक्ताओं की जिंदगी आसान बनाई जा सके."
घटेगा ई-वेस्ट
संघ का कहना है कि इन नए नियमों से उपभोक्ताओं को नए चार्जर पर गैरजरूरी खर्च नहीं करना होगा और उन्हें 250 मिलियन यूरो यानी लगभग दो अरब रुपये सालाना की बचत होगी. साथ ही इलेक्ट्रॉनिक कचरे में भी सालाना 11,000 टन की कमी आएगी.
स्वीडन के कचरा प्रबंधन और रीसाइक्लिंग संगठन एवफॉल स्वेरिज ने हिसाब लगाया है कि एक स्मार्टफोन को बनाने में करीब 86 किलो और एक लैपटॉप को बनाने में लगभग 1,200 किलो अदृश्य कचरा निकलता है. इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट को सबसे ज्यादा तेजी से बढ़ता हुआ कचरा स्रोत माना गया है. कड़े निर्देशों और कानूनों के अभाव में आज अधिकतर ई-वेस्ट सामान्य कचरा प्रवाह का हिस्सा बन जाता है. यहां तक विकसित देशों के रिसाइकिल होने वाले ई-कचरे का 80 प्रतिशत हिस्सा विकासशील देशों में जाता है.
नूपुर शर्मा और नवीन कुमार जिंदल को भले बीजेपी ने पार्टी से निकाल दिया है लेकिन जिस तरह से इस्लामिक देशों और मुस्लिम बहुल देशों से प्रतिक्रिया आई, उस पर बहस ख़त्म नहीं हुई.
57 इस्लामिक या मुस्लिम बहुल देशों के संगठन ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन यानी ओआईसी ने भी इस मामले में भारत को आड़े हाथों लिया था.
भारत ने ओआईसी को तीखा जवाब दिया लेकिन इस्लामिक देशों को लेकर सतर्कता से प्रतिक्रिया दी. भारत सरकार ने अपने आधिकारिक बयान में कहा है कि भारत सभी धर्मों का सम्मान करता है.
जब पैग़ंबर मोहम्मद पर विवादित टिप्पणी को लेकर अरब देशों से आपत्ति आ रही थी, उसी वक़्त भारत के उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू क़तर में थे.
ख़बर आई कि क़तर के डेप्युटी अमीर ने उपराष्ट्रपति को दी दावत को रद्द कर दिया. द हिन्दू की रिपोर्ट के अनुसार, वजह सेहत से जुड़ी समस्या बताई गई थी. कई देशों में भारत के राजदूत रहे विवेक काटजू ने द हिन्दू से कहा है कि विदेशी धरती पर भारत के लिए यह बहुत ही अपमानजनक रहा. इसके अलावा ईरान के विदेश मंत्री भारत आने वाले थे, तभी यह विवाद हुआ. ईरान ने भी भारत से कहा कि वह पैग़ंबर के अपमान करने वालों को रोके.
भारत की विदेश नीति में खाड़ी के देश काफ़ी अहम रहे हैं. पाँच अगस्त, 2019 को भारत ने कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म किया तो अरब के देशों ने कोई आपत्ति नहीं जताई थी. दूसरी तरफ़ पाकिस्तान उम्मीद कर रहा था और उसने दबाव भी बनाया कि अरब देश भारत के ख़िलाफ़ बोलें.
इन सबके बीच नीदरलैंड्स के सांसद का एक ट्वीट भारत का एक तबका ख़ूब पसंद कर रहा है.
भारत की विदेश नीति में खाड़ी के देश काफ़ी अहम रहे हैं. पाँच अगस्त, 2019 को भारत ने कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म किया तो अरब के देशों ने कोई आपत्ति नहीं जताई थी. दूसरी तरफ़ पाकिस्तान उम्मीद कर रहा था और उसने दबाव भी बनाया कि अरब देश भारत के ख़िलाफ़ बोलें.
इन सबके बीच नीदरलैंड्स के सांसद का एक ट्वीट भारत का एक तबका ख़ूब पसंद कर रहा है.
ये ट्वीट है डच सांसद गीर्ट वाइलडर्स का. पैग़ंबर पर टिप्पणी के बाद उपजे विवाद पर वाइलडर्स ने एक ट्वीट कर कहा था कि तुष्टीकरण कभी भी फ़ायदा नहीं देता बल्कि इससे चीज़ें और ख़राब होती हैं.
गीर्ट ने लिखा है, "तुष्टीकरण कभी काम नहीं करता. ये स्थितियों को बिगाड़ता ही है. इसलिए भारत के मेरे प्यारे दोस्तों, इस्लामिक देशों के उकसावे में न आएं. आज़ादी के लिए खड़े होइए और गर्व करिए. अपनी नेता नूपुर शर्मा के बचाव में आइए, जिन्होंने सच कहा है."
अपने इस्लाम विरोधी बयानों के लिए पहचाने जाने वाले गीर्ट वाइल्डर्स पर एक बार ब्रिटेन में प्रवेश पर प्रतिबंध भी लगा था. हालाँकि, बाद में ये प्रतिबंध वापस ले लिया गया. वाइल्डर्स की जान के ख़तरे को देखते हुए उन्हें सुरक्षा मुहैया कराई जाती है.
गीर्ट वाइलडर्स का ये ट्वीट अब तक करीब 16 हज़ार बार रीट्वीट हो चुका है. भारत में कई बीजेपी समर्थकों अब इस ट्वीट को शेयर कर रहे हैं.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मुखपत्र ऑर्गेनाइज़र ने भी इस ट्वीट के आधार पर नूपुर शर्मा के समर्थन में पूरा लेख छापा है.
ऑर्गनाइज़र पत्रिका के संपादक प्रफुल्ल केतकर ने इस आर्टिकल को ट्वीट करते हुए साथ में लिखा है, "सर तन से जुदा वाली सोच को जानते हुए डच सांसद ने नूपुर शर्मा के बयान का बचाव किया; कहा- तुष्टीकरण से स्थितियां ख़राब होती हैं. यूरोप में उभरती संकट की स्थिति का स्पष्ट संकेत."
ख़ुद को आरएसएस से जुड़ा बताने वाले ट्विटर यूज़र देवेंद्र जाटव लिखते हैं, "जो हिम्मत डच सांसद ने दिखाई है, वही हिम्मत बीजेपी के नेताओं को दिखानी चाहिए थी. मगर अफ़सोस सब के सब ख़ामोश है. हैरानी है कि बीजेपी की महिला नेताओं ने भी नूपुर का साथ नहीं दिया."
गीर्ट वाइल्डर्स ने क्या कहा?
डच सांसद वाइलडर्स ने एक के बाद एक नूपुर शर्मा के समर्थन में कई ट्वीट किए हैं.
उन्होंने अपने ताज़ा ट्वीट में दावा किया है कि नूपुर शर्मा को समर्थन देने की वजह से उन्हें कई मुस्लिमों ने जान से मारने की धमकी दी है.
उन्होंने एक अन्य ट्वीय में लिखा, "ये बहुत ही वाहियात है कि अरब और इस्लामिक देश भारतीय नेता नूपुर शर्मा की ओर से पैग़ंबर मोहम्मद पर सच बोलने से ग़ुस्सा है. भारत माफ़ी क्यों मांगे?"
गीर्ट वाइल्डर्स ने मंगलवार को एक और ट्वीट कर के इस्लामी देशों पर निशाना साधा.
उन्होंने लिखा, "पाखंडियों की मत सुनिए. इस्लामिक देशों में लोकतंत्र नहीं है, क़ानून का शासन नहीं है, आज़ादी नहीं है. ये अल्पसंख्यकों पर ज़ुल्म करते हैं और मानवाधिकारों की इस तरह धज्जियां उड़ाते हैं, जैसे कोई और नहीं करता. इनकी आलोचना होनी ही चाहिए!"
गीर्ट वाइल्डर्स बुधवार को भी एक ट्वीट में अपील की है कि पूरे भारत को एकजुट होकर नूपुर शर्मा का समर्थन करना चाहिए.
क्या है पूरा मामला?
नूपुर शर्मा ने बीती 26 मई को एक न्यूज़ चैनल पर डिबेट शो में पैग़ंबर मोहम्मद को लेकर विवादित टिप्पणी की थी. नूपुर शर्मा के अलावा बीजेपी के एक और प्रवक्ता नवीन कुमार जिंदल ने भी पैग़ंबर को लेकर आपत्तिजनक ट्वीट किया था.
इनकी टिप्पणी का भारत में कई दिनों तक विरोध जारी रहा. क़रीब दस दिन बाद इस्लामिक देशों ने इस बयान पर तीख़ी प्रतिक्रिया दी. क़तर ने भारत के राजदूत दीपक मित्तल को को तलब किया और आधिकारिक तौर पर आपत्ति का नोट सौंपा. क़तर ने इस मामले में भारत सरकार से सार्वजनिक रूप से माफ़ी मांगने को कहा.
विवाद इतना बढ़ा कि इसके बाद भारतीय जनता पार्टी ने नूपुर शर्मा को निलंबित किया और नवीन कुमार जिंदल को पार्टी से बाहर कर दिया गया.
दूसरी ओर भारत सरकार अरब देशों को ये समझाने की कोशिश की कि इन दोनों नेताओं के बयान का भारत सरकार के रुख से लेना-देना नहीं है.
इसके बाद भी विरोध नहीं थमा. दूसरे देशों के अलावा नूपुर शर्मा के निलंबन पर बीजेपी को अपने समर्थकों की ओर से भी विरोध का सामना करना पड़ रहा है.
कहा जा रहा है कि पार्टी का काडर दोनों नेताओं पर हुई इस कार्रवाई से संतुष्ट नहीं है. हालाँकि, अंग्रेज़ी अख़बार द इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया है कि बीजेपी के कई वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि पैग़ंबर मोहम्मद को लेकर की गई विवादित टिप्पणी पर दोनों प्रवक्ताओं को पार्टी से निलंबित और निष्कासित करने का फैसला 'अच्छा और ठीक तरह से सोच-समझकर लिया गया फैसला है'. (bbc.com/hindi)
ओरलैंडो (अमेरिका), 8 जून। मध्य फ्लोरिडा में 10 वर्षीय लड़की को मंगलवार को गिरफ्तार किया गया। अधिकारियों ने बताया कि लड़की ने एक महिला की गोली मारकर हत्या कर दी है जिसका उसकी मां से झगड़ा हो गया था।
ओरलैंडो पुलिस विभाग ने कहा कि लड़की दूसरी डिग्री की हत्या के आरोप का सामना कर रही है। उसे हिरासत में ले लिया गया है और स्थानीय किशोर न्याय केंद्र में रखा गया है।
अधिकारियों ने कहा कि लड़की की मां को पिछले हफ्ते गैर इरादतन लापरवाही, बच्चे की उपेक्षा, हथियार को लापरवाही से रखने और हथियार से गंभीर हमले के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।
पुलिस अधिकारियों ने कहा कि ‘मेमोरियल डे’ पर देर रात एक अपार्टमेंट परिसर के बाहर लड़की की मां की 41 वर्षीय लशुन रॉजर्स से लड़ाई हो गई थी।
पुलिस के मुताबिक, उसने अपनी बेटी को एक बैग दिया और लड़की ने बैग से बंदूक निकालकर दो गोलियां चलाई जो रॉजर्स को लगी। बाद में रॉजर्स की अस्पताल में मौत हो गई। (एपी)
कीव, 8 जून। यूक्रेन की सैन्य खुफिया एजेंसी ने कहा है कि रूस ने अब तक मारियुपोल की लड़ाई में मारे गए 210 यूक्रेनी लड़ाकों के शव लौटाए हैं।
सैन्य खुफिया एजेंसी ने बताया कि इनमें से अधिकतर अजोवस्ताल स्टील संयंत्र में मारे गए थे। हालांकि, एजेंसी ने इस संबंध में कोई जानकारी नहीं दी कि संयंत्र में अभी कितने और शव हो सकते हैं।
तबाह हो चुके बंदरगाह शहर पर अब रूस का कब्जा है। रूस ने मारे गए यूक्रेनी लड़ाकों के शवों को पिछले सप्ताह लौटाना शुरू किया था।
यूक्रेन ने शनिवार को कहा था कि अब तक दोनों पक्षों ने 320 शवों की अदला-बदली की है, दोनों को अपने नागरिकों के 160-160 शव मिले हैं। अभी स्पष्ट नहीं है कि रूस को इसके बाद और शव लौटाए गए या नहीं।
रूस के स्टील संयंत्र पर पूरी तरह से कब्जा करने से पहले करीब तीन महीने तक यूक्रेनी लड़ाकों ने रूस के जमीनी, हवाई और समुद्र से किए गए हमलों का डटकर मुकाबला किया था। (एपी)
इस्लामाबाद, 7 जून| पिछले हफ्ते मामलों में खतरनाक उछाल के बाद भी पाकिस्तान का पोलियो उन्मूलन अभियान अस्त-व्यस्त है। द गार्जियन ने बताया कि अफगानिस्तान की सीमा से लगे उत्तरी वजीरिस्तान जिले में पिछले एक महीने में बच्चों में पोलियो के आठ मामले सामने आए हैं।
अधिकारियों का मानना है कि यह नया प्रकोप माता-पिता द्वारा खुद को और अपने बच्चों को टीकाकरण के रूप में गलत तरीके से चिह्न्ति करने के कारण है और सरकार ने प्रकोप की जांच शुरू की है।
उत्तरी वजीरिस्तान उत्तर पश्चिमी पाकिस्तान में तालिबान का एक पूर्व गढ़ है, जहाँ नए मामलों के पीछे हाई वैक्सीन अस्वीकृति रेट को माना जाता है।
पाकिस्तान के पोलियो उन्मूलन कार्यक्रम के एक अधिकारी ने कहा, "हाल के प्रकोप में नकली निशान और इनकार दो प्रमुख कारण हैं, पोलियो कर्मचारी माता-पिता के साथ टीकाकरण से चूकने की साजिश रच रहे हैं।"
राष्ट्रीय कार्यक्रम समन्वयक शहजाद बेग ने कहा, "मामले ठीक उसी जगह पर प्रकाश डाल रहे हैं जहां चुनौतियां हैं और हम यह सुनिश्चित करने के लिए अपनी पूरी कोशिश कर रहे हैं कि वायरस निहित रहे और हम अंत तक इससे लड़ते रहें।"
गार्जियन ने बताया कि इस उछाल से पहले, पोलियो के परिणामस्वरूप चाइल्ड पेरालायिसिस का आखिरी मामला पिछले साल जनवरी में दर्ज किया गया था।
संघीय स्वास्थ्य मंत्री, अब्दुल कादिर पटेल ने कहा, "अप्रैल में पहले दो मामलों के बाद, पोलियो कार्यक्रम ने इस क्षेत्र में खासकर कराची, पेशावर और क्वे टा में ऐतिहासिक जलाशयों (संक्रमण के) में वायरस को आगे फैलने से रोकने के लिए तत्काल कदम उठाए।"
पाकिस्तान में आतंकवादी समूहों ने 2012 से अब तक 100 से अधिक स्वास्थ्य कर्मियों और उनके सुरक्षा गाडरें की हत्या कर दी है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, पाकिस्तान अफगानिस्तान के साथ केवल दो देशों में से एक है, जहां जंगली पोलियो वायरस अभी भी स्थानिक है। (आईएएनएस)
बीजिंग, 7 जून| चीन के जियांग्शी प्रांत में 800,000 से अधिक निवासी मूसलाधार बारिश और बाढ़ से प्रभावित हुए हैं, स्थानीय अधिकारियों ने मंगलवार को यह जानकारी दी। समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने अधिकारियों के हवाले से कहा कि, 28 मई के बाद से बारिश के नवीनतम दौर ने प्रांत के 80 काउंटियों में कहर बरपाया है, जिससे 76,300 हेक्टेयर फसल को नुकसान पहुंचा है और 1.16 बिलियन युआन का प्रत्यक्ष आर्थिक नुकसान हुआ है।
भारी बारिश के थमने के बाद प्रांत ने मंगलवार को अपने स्तर 4 बाढ़ नियंत्रण आपातकालीन प्रतिक्रिया को हटा लिया।
अधिकारियों ने मौसम परिवर्तन और कुशल बाढ़ नियंत्रण और सूखा राहत प्रयासों की बारीकी से निगरानी करने को कहा है।
राष्ट्रीय मौसम विज्ञान केंद्र ने मंगलवार को देश के विभिन्न हिस्सों में आंधी तूफान के लिए अलर्ट जारी किया।
दोपहर 2 बजे से मंगलवार दोपहर 2 बजे तक बुधवार को, जियांग्शी, फुजि़यान, ग्वांगडोंग, गुआंग्शी, युन्नान और हैनान के कुछ हिस्सों में भारी बारिश की संभावना है। (आईएएनएस)
कुछ क्षेत्रों में 180 मिमी तक वर्षा हो सकती है।
(मैथ्यू रिकेट्सन, डीकिन विश्वविद्यालय)
जिलॉन्ग (ऑस्ट्रेलिया), सात जून। यह भूलना आसान है कि जूलियन असांजे पर इंग्लैंड में मुकदमा क्यों चल रहा है।
क्या असांजे ने स्वीडन में कथित तौर पर दो महिलाओं का यौन उत्पीड़न नहीं किया था? क्या इसीलिए वह आरोपों का सामना करने से बचने के लिए लंदन में इक्वाडोर के दूतावास में वर्षों तक छिपे रहे?
जब ब्रिटेन के पुलिस अधिकारियों ने आखिरकार जूलियन असांजे को इक्वाडोर के दूतावास से बाहर खींच निकाला, तो क्या उसका अस्त-व्यस्त रूप उसकी घटिया व्यक्तिगत छवि के बारे में उन सभी कहानियों की पुष्टि नहीं करता?
क्या असांजे ने चेल्सी मैनिंग को अमेरिकी सैनिकों और खुफिया एजेंटों के जीवन को खतरे में डालने वाली राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी महत्वपूर्ण और संवेदनशील जानकारियों को प्रकट करने के लिए अमेरिकी सेना के कंप्यूटरों को हैक करने के लिए राजी नहीं किया था?
असांजे का कहना है कि वह एक पत्रकार हैं, लेकिन क्या न्यूयॉर्क टाइम्स ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि वह सिर्फ एक ‘स्रोत’ हैं और प्रकाशक नहीं है?
यदि आपने इनमें से किसी एक या सभी प्रश्नों का उत्तर हां में दिया है, तो आप अकेले नहीं हैं। लेकिन जवाब वास्तव में नहीं हैं। कम से कम, यह उससे कहीं अधिक जटिल है।
एक उदाहरण के तौर पर, असांजे के नाखुश होने का कारण यह था कि इक्वाडोर के दूतावास के कर्मचारियों ने तीन महीने पहले उनके शेविंग उपकरण को जब्त कर लिया था ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि गिरफ्तारी के समय उनकी उपस्थिति आम लोगों के बीच बनी उनकी छवि से मेल खाती हो।
संयुक्त राष्ट्र के विशेष प्रतिवेदक निल्स मेल्ज़र ने जूलियन असांजे को प्रताड़ित किए जाने की खबरों पर अपनी रिपोर्ट में यह खुलासा किया है। द ट्रायल ऑफ जूलियन असांजे नामक किताब में निल्स मेल्ज़र की जांच का उल्लेख किया गया है।
आप पूछ सकते हैं कि असांजे मामले की जांच कर रहे संयुक्त राष्ट्र के विशेष प्रतिवेदक क्या हैं?
मेल्ज़र ने भी ऐसा ही जवाब दिया जब 2018 में असांजे के वकीलों ने पहली बार उनसे संपर्क किया। निल्स मेल्ज़र ने कहा : मेरे पास करने के लिए और भी महत्वपूर्ण काम थे : मुझे ‘असली’ यातना पीड़ितों के मामलों को देखना था!
निल्स मेल्ज़र ने तमाम पूर्वाग्रहों को दरकिनार करते हुए जांच की तो पता चला कि जूलियन असांजे को वास्तव में प्रताड़ित किया गया है।
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के 47 सदस्य यातना के मुद्दे पर सीधे विशेष प्रतिवेदक नियुक्त करते हैं। मेल्ज़र ने जो पाया, वह बेहद परेशान करने वाला था:
असांजे का मामला एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जिसे युद्ध अपराध, यातना और भ्रष्टाचार सहित शक्तिशाली लोगों के गंदे रहस्यों को उजागर करने के लिए सताया और प्रताड़ित किया जा रहा है। यह पश्चिमी लोकतंत्रों में न्यायिक मनमानी की कहानी है जो मानवाधिकारों के क्षेत्र में खुद को अनुकरणीय के रूप में पेश करने के इच्छुक रहते हैं।
यह राष्ट्रीय संसदों और आम जनता की नजरों से छुपकर खुफिया सेवाओं की सोची समझी मिलीभगत की कहानी है । यह एक विशेष व्यक्ति को जानबूझकर अलग-थलग करने, उसे बदनाम करने और नष्ट करने के उद्देश्य से मुख्यधारा के मीडिया में हेरफेर और जोड़-तोड़ वाली रिपोर्टिंग की कहानी है। यह एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जिसे सरकारी भ्रष्टाचार और राज्य द्वारा स्वीकृत अपराधों को सुलझाने में हमारी अपनी सामाजिक विफलताओं के लिए हम सभी द्वारा बलि का बकरा बनाया गया है।
मेल्ज़र द्वारा इस दिशा में काम किए जाने से दो महत्वपूर्ण बिंदु स्पष्ट होते जाते हैं कि चार देशों ने बड़ी सावधानी के साथ एक योजना पर काम किया कि इन सरकारी रहस्यों को उजागर करने के लिए असांजे को कड़ी सजा मिले और ये चार देश थे-अमेरिका, ब्रिटेन, स्वीडन और आस्ट्रेलिया।
2019 में दूतावास से बेलमर्श जेल ले जाने के बाद से, असांजे ने अपना अधिकांश समय 22 या 23 घंटे एकांत कारावास में बिताया है। उन्हें परिवार और दोस्तों की बात तो छोड़िए, उनकी कानूनी टीम तक सीमित पहुंच के अलावा सभी से वंचित कर दिया गया है।
असांजे का शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य इस हद तक प्रभावित हुआ है कि उन्हें आत्महत्या की आशंका के चलते निगरानी में रखा गया है। मेल्ज़र लिखते हैं: असांजे को सताने का प्राथमिक उद्देश्य व्यक्तिगत रूप से उन्हें दंडित करना नहीं है - और न ही कभी रहा है, बल्कि यह अन्य पत्रकारों, प्रचारकों और कार्यकर्ताओं के लिए एक मिसाल कायम करना है। (द कन्वरसेशन)
(अदिति खन्ना)
लंदन, 7 जून। ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन मंगलवार को राजनीतिक उथलपुथल भरे तनावपूर्ण दिन के बाद अपनी पहली कैबिनेट बैठक कर रहे हैं। इससे पहले उन्होंने अपनी पार्टी के सदस्यों के अविश्वास प्रस्ताव में मामूली अंतर से जीत हासिल की। काफी संख्या में पार्टी सांसदों ने एक नेता के तौर पर उनके खिलाफ मतदान किया।
जॉनसन अपने कैबिनेट मंत्रियों की बैठक कर रहे हैं, जिन्होंने बड़े पैमाने पर उन्हें सार्वजनिक रूप से समर्थन दिया। मंत्रियों ने बगावत का नेतृत्व कर रहे सांसदों से कहा कि वे देश के भले के लिये उनके (जॉनसन के) नेतृत्व के साथ खड़े हों।
डाउनिंग स्ट्रीट से संदेश यह था कि जॉनसन अपने मंत्रियों से परिवारों पर वित्तीय दबाव को कम करने, राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा (एनएचएस) देखभाल तक पहुंच को तेज और सुगम बनाने और सड़कों को सुरक्षित बनाने की सरकार की प्राथमिकताओं पर आगे बढ़ने का आह्वान करेंगे।
जॉनसन (57) ने मंगलवार को डाउनिंग स्ट्रीट से एक बयान में कहा, “यह एक ऐसी सरकार है जो इस देश के लोगों की सबसे ज्यादा परवाह करती है।”
उन्होंने कहा, “हमने 37 अरब पाउंड का वादा किया है जिससे आर्थिक रूप से परिवारों की मदद की जा सके, समुदायों को सुरक्षित बनाने के लिये 13,500 और पुलिस अधिकारियों को काम पर रखा जा सके और लगभग 100 सामुदायिक निदान केंद्र खोलकर एनएचएस में कोविड बैकलॉग से निपटा जा सके जिससे लोगों को घर के करीब देखभाल मिल सके।”
उन्होंने कहा, “आज, मैं इन प्राथमिकताओं को जारी रखने का संकल्प लेता हूं। हम कड़ी मेहनत करने वाले ब्रिटिश लोगों के पक्ष में हैं।”
हालांकि जॉनसन की मौजूदगी में डाउनिंग स्ट्रीट में कोविड-19 लॉकडाउन के नियमों के उल्लंघन में हुई पार्टियों को लेकर उठा विवाद अभी पूरी तरह से थमा नहीं है और सोमवार को हुए अविश्वास मत प्रस्ताव में भी इसने ही एक प्रेरक के तौर पर भूमिका निभाई थी।
कंजर्वेटिव पार्टी के 211 सदस्यों ने उनके पद पर बने रहने के पक्ष में मतदान किया, जबकि 148 ने उनके खिलाफ वोट किया।
जॉनसन ने कहा कि यह मतदान व्यापक रूप से उनके पक्ष में रहा, क्योंकि 41.2 प्रतिशत के मुकाबले 58.8 प्रतिशत ने उनके पक्ष में मतदान किया। हालांकि, इन परिणामों के बाद उनके विरोधियों को उनकी आलोचना करने का मौका मिल गया है, जबकि उनके समर्थकों का कहना है कि परिणाम दिखाते हैं कि पार्टी के अधिकतर सदस्य उनके साथ हैं। (भाषा)
लंदन, 7 जून | ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने अविश्वास प्रस्ताव जीत लिया है। वह अब प्रधानमंत्री के रूप में अपने पद पर बने रहेंगे। दरअसल, उन्हीं की कंजरवेटिव पार्टी के सांसदों ने अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था। समाचार एजेंसी शिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, कंजरवेटिव पार्टी के संसदीय समूह के अध्यक्ष ग्राहम ब्रैडी द्वारा घोषित नतीजों के अनुसार, जॉनसन ने 359 सांसदों में से 211 का समर्थन हासिल किया और जीत दर्ज की।
ब्रैडी ने कहा, मैं घोषणा करता हूं कि संसदीय दल को प्रधानमंत्री पर भरोसा है।
जॉनसन की नेतृत्व पर तब खतरा मंडराने लगा, जब उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश करने वाले कंजर्वेटिव पार्टी के सांसदों की संख्या 54 के पार हो गई। यह संख्या कुल सांसदों का 15 प्रतिशत है।
कंजरवेटिव पार्टी के मौजूदा नियमों के तहत, अब जॉनसन कम से कम एक साल तक किसी अन्य अविश्वास प्रस्ताव का सामना नहीं करेंगे।
दरअसल, साल 2020 और 2021 में कोविड लॉकडाउन के दौरान डाउनिंग स्ट्रीट पर जॉनसन ने अपने करीबीयों और कुछ मंत्रियों के साथ पार्टी की थी। नियमों का उल्लंघन करने पर ब्रिटिश पुलिस ने उन पर जुमार्ना लगाया था और इस तरह वह कानून तोड़ने पर दंडित होने वाले पहले प्रधानमंत्री बन गए थे। (आईएएनएस)
लॉस एंजेलिस, 7 जून | अमेरिकी नौसेना का एक लड़ाकू विमान दक्षिणी कैलिफोर्निया के रेगिस्तान में दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जिसमें पायलट की मौत हो गई। इसकी पुष्टि अधिकारियों ने की। अमेरिकी नौसेना की एक प्रेस रिलीज के अनुसार, पायलट लेफ्टिनेंट रिचर्ड बुलॉक का फाइटर जेट सुपर हॉर्नेट शहर से लगभग 260 किमी दूर दोपहर लगभग 2:30 बजे दुर्घटनाग्रस्त हो गया। जिसमें उनकी मौत हो गई।
दुर्घटना उस वक्त हुई, जब बुलॉक एक रूटीन ट्रेनिंग मिशन के लिए उड़ान भर रहे थे। नौसेना ने कहा, इस घटना में किसी भी नागरिक को नुकसान नहीं पहुंचा है। इसकी जांच की जा रही है। दुर्घटना वाली जगहों की नौसेना और स्थानीय अधिकारियों जांच कर रहे है। (आईएएनएस)
मास्को, 7 जून | यूक्रे न युद्ध के मद्देनजर वाशिंगटन के लगाए गए प्रतिबंधों के जवाब में अतिरिक्त 61 अमेरिकी नागरिकों को मास्को में प्रवेश करने से रोक दिया गया है, इस बात की घोषणा रुसी विदेश मंत्रालय ने की है। समाचार एजेंसी शिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, अतिरिक्त ब्लैक लिस्टेड अमेरिकियों में ट्रेजरी सचिव जेनेट येलेन और ऊर्जा सचिव जेनिफर ग्रानहोम शामिल हैं।
सोमवार को एक संक्षिप्त बयान में, मंत्रालय ने कहा कि घरेलू व्यापार के प्रतिनिधियों के खिलाफ अमेरिकी प्रतिबंधों के लगातार विस्तार की वजह से यह कदम उठाया गया है।
61 अमेरिकी नागरिकों में अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि कैथरीन ताई, व्हाइट हाउस संचार निदेशक केट बेडिंगफील्ड और न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज के अध्यक्ष जेफरी स्प्रेचर भी शामिल हैं।
अब ये लोग रूस में प्रवेश करने से प्रतिबंधित अमेरिकियों की एक लंबी सूची में शामिल हो गए हैं।
रुसी विदेश मंत्रालय ने इस सूची को जारी करके बताया है कि इस सूची में 963 नाम हैं। इसमें राष्ट्रपति जो बाइडेन, उपराष्ट्रपति कमला हैरिस, मेटा के सीईओ मार्क जुकरबर्ग और अभिनेता मॉर्गन फ्रीमैन शामिल हैं। (आईएएनएस)