अंतरराष्ट्रीय
वैटकिन सिटी, 6 मई (एपी)। पोप फ्रांसिस ने कहा है कि रूस-यूक्रेन युद्ध विशेष तौर पर "बर्बर" है क्योंकि इसमें ईसाई ही साथी ईसाइयों की हत्या में शामिल हैं।
कैथोलिक, रूढ़िवादी और अन्य ईसाई चर्चों के बीच एकता को बढ़ावा देने वाले वैटिकन कार्यालय के सदस्यों से बातचीत करते हुए पोप फ्रांसिस ने कहा कि ईसाइयों को खुद से यह सवाल पूछना चाहिए कि एक दूसरे के साथ भाईचारे को बढ़ावा देने के लिए वे क्या कर सकते हैं और उन्होंने अब तक क्या किया है।
पोप ने पिछली शताब्दी में ईसाइयों को एकजुट करने के लिए शुरू किए गए प्रयासों का जिक्र करते हुए इस जागरूकता को धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा, "आज, युद्ध की बर्बरता के सामने, एकता की उसी लालसा को फिर से जगाना होगा।"
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने कैरीन ज्यां पिएर को नयी प्रमुख प्रवक्ता के रूप में नामित किया है.
ये पहला मौक़ा है जब किसी काले व्यक्ति को इस पद के लिए नामित किया गया है. साथ ही वह पहली ऐसी शख़्स हैं जो घोषित तौर पर गे हैं.
44 साल की कैरीन हालांकि बाइडन के राष्ट्रपति बनने के बाद से ही उनके साथ काम कर रही हैं.अभी तक वह बाइडन प्रशासन की प्रमुख उप प्रेस सचिव के रूप में काम कर रही थीं.
वह निवर्तमान प्रेस सचिव जेन साकी की जगह अब इस महत्वपूर्ण पद को संभालेंगी.
व्हाइट हाउस के प्रेस सचिव हर रोज़ पत्रकारों को प्रशासन से जुड़े क़दम की और घोषणाओं की ब्रीफ़िंग देते हैं. ऐसे में यह एक बेहद ज़िम्मेदारी भरा पद है.
जेन साकी ने ट्विटर पर कैरीन को बधाई दी है.
उन्होंने लिखा है, "मैं अमेरिकी राष्ट्रपति की बहुत शुक्रगुज़ार हूं और इस बारे में बहुत कुछ कहने के लिए है. बतौर प्रेस सचिव मुझ पर भरोसा करने के लिए मैं शुक्रगुज़ार हूं. बहुत कुछ बताने के लिए है लेकिन आज कैरीन की बात...वो एक विलक्षण प्रतिभा वाली महिला हैं, जो जल्द ही हर रोज़ पोडियम के पीछे से संबोधित करते नज़र आएंगी."
साकी ने कैरीन के बारे में लिखा है कि इस पद को संभालने वाली वह पहली अश्वेत महिला होंगी और पहली ओपन एलजीबीटीक्यू शख़्स भी. रीप्रेज़ेंटेशन बहुत मायने रखता है और इससे बहुत से लोगों को बड़े सपने देखने का साहस भी मिलेगा. (bbc.com)
इसराइल के प्रधानमंत्री नेफ़्टाली बेनेट ने दावा किया है कि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अपने विदेश मंत्री की आपत्तिजनक टिप्पणियों के लिए माफ़ी मांगी है.
बीते दिन, पुतिन और बेनेट के बीच फ़ोन पर बात हुई. इस दौरान बेनेट ने कहा कि वह उनकी (पुतिन) माफ़ी को स्वीकार करते हैं. उन्होंने राष्ट्रपति पुतिन को उनकी स्थिति स्पष्ट करने के लिए धन्यवाद भी दिया.
विवाद क्या था?
रूस के विदेश मंत्री ने सर्गेई लावरोफ़ ने इतालवी टेलीविजन चैनल रेटे 4 चैनल के साथ बातचीत में कहा था कि नाज़ियों के नेता हिटलर की रग़ों में यहूदियों का ख़ून बहता था.
सर्गेई लावरोफ से ये सवाल पूछा गया था कि रूस किस तरह से ये दावा कर सकता है कि यूक्रेन को यहूदियों के प्रभाव से मुक्त किए जाने की ज़रूरत है जबकि उसके राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेस्की ख़ुद एक यहूदी हैं.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, सर्गेई लावरोफ़ ने इस सवाल के जवाब में कहा था, "जब वे कहते हैं कि अगर हम यहूदी हैं तो ये किस तरह का नाज़ीकरण है, मुझे लगता है कि हिटलर भी यहूदी मूल के थे तो इस दलील का कोई मतलब नहीं है."
इसराइल की आपत्ति और पुतिन की माफ़ी
लावरोफ के इस बयान पर इसराइल की ओर से कड़ी आपत्ति जताई गई थी. यहाँ तक की इसराइल में रूस के राजदूत को तलब भी किया गया था.
इसराइल के विदेश मंत्री येर लैपिड ने वाईनेट न्यूज़ वेबसाइट से बातचीत में इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा था, "ये एक अपमानजनक, अक्षम्य, ऐतिहासिक ग़लती है और हमें उम्मीद है कि वे इसके लिए माफ़ी मांगेंगे."
इसराइली विदेश मंत्री ने कहा था, "यहूदियों ने होलोकॉस्ट में ख़ुद अपनी जान नहीं ली थी. यहूदियों के ख़िलाफ़ नस्लवाद का सबसे ख़राब स्तर ये है कि उन पर ख़ुद ही यहूदियों के विरोध का इल्ज़ाम लगा दिया जाए."
इसराइल की ओर से पाँच मई को दावा किया गया कि रूस के राष्ट्रपति ने पीएम बेनेट के साथ फ़ोन पर बात की और अपने विदेश मंत्री की टिप्पणी के लिए माफ़ी मांगी.
हालांकि रूस की ओर से इस बातचीत का जो ब्योरा दिया गया है उसमें माफ़ी वाली बात का ज़िक्र नहीं है. (bbc.com)
जापान और ब्रिटेन के बीच सैन्य समझौता हुआ है. इस समझौते के बारे में बताते हुए ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने कहा कि ब्रिटेन "निरंकुश और दवाब बनाने वाली ताक़तों" के ख़िलाफ़ अन्य देशों के साथ मिलकर काम करने का वादा करता है.
डाउनिंग स्ट्रीट में अपने जापानी समकक्ष फुमियो किशिदा के साथ मुलाक़ात के बाद ब्रिटेन के पीएम ने यह बात कही.
इस मुलाक़ात के दौरान दोनों नेताओं ने संयुक्त सैन्य अभ्यास की भी घोषणा की. उन्होंने इस बात पर भी सहमति जतायी कि दोनों देश आपदा राहत के लिए भी मिलकर काम करेंगे.
जापान और किसी यूरोपीय देश के बीच हुआ यह अपनी तरह का पहला समझौता है.
जापान और ब्रिटेन यूक्रेन पर रूस के हमले की निंदा करते रहे हैं और इस सैन्य समझौते को उसी सोच के क्रम में एक नई साझेदारी के तौर पर देखा जा रहा है.
यह समझौता ब्रिटेन की सरकार की रक्षा और विदेश नीति की समीक्षा के अनुरूप भी है, जिसके तहत इंडो-पैसिफ़िक क्षेत्र की तरफ़ झुकाव की घोषणा की गई थी.
बोरिस जॉनसन ने कहा कि यहाँ यूरोप में निरंकुश कार्रवाई से पूर्वी एशिया में क्या हो सकता है, हम समझते हैं और इसीलिए हम एक साथ मिलकर काम करना चाहते हैं.
बोरिस जॉनसन ने ज़ोर देकर कहा कि यूरोप की सुरक्षा, हमारी सामूहिक सुरक्षा, एशिया-प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा से अलग नहीं है. यह आपस में जुड़ी हुई है.
जापान जी-7 समूह का सदस्य देश है और वह शुरू से यूक्रेन पर रूस के हमले का विरोध करता रहा है.
उसने आक्रमण की निंदा भी की है और रूस पर प्रतिबंध भी लगाए हैं.
साथ ही कीएव को सहायता भी पहुँचायी है.
बैठक के संदर्भ में एक प्रवक्ता ने बताया कि दोनों देशों के नेताओं ने इस बात पर सहमति जतायी है कि रूस के यूक्रेन पर हमले से अतंरराष्ट्रीय स्थिरता पर व्यापक असर हुआ है.(bbc.com)
रूस के सबसे बड़े अल्पसंख्यक नस्ली समूह तातार नस्ल से आने वाली एलवीरा अबीउल्लीना को रुस की सत्ता के गलियारों में फ्रेंच भाषा में कविताएं पढ़ने और संकट के समय सख़्त क़दम उठाने के लिए जाना जाता है. वो रूस के सेंट्रल बैंक का नेतृत्व करने वाली पहली महिला भी हैं.
साल 2000 में पुतिन के सत्ता संभालने के बाद से ही वो उनकी निकट सहयोगी हैं. पुतिन ने उन्हें आर्थिक विकास का मंत्री बनाया था और बाद में उन्हें अपने सलाहकारों की टीम में शामिल किया.
उनके करियर का सबसे अहम समय 2013 में आया, जब उन्हें रूस के सेंट्रल बैंक का प्रमुख बना दिया गया. सेंट्रल बैंक रूस के सबसे अहम संस्थानों में से एक है.
इन सालों के दौरान सेंट्रल बैंक को कई चुनौतियां का सामना करना पड़ा, लेकिन यूक्रेन युद्ध इन सबसे बड़ी चुनौती है.
नबीउल्लीना बहुत कम बोलती हैं, उनके क़दम बाज़ार को प्रभावित करते हैं और रूस की वित्तीय नीति की चाबी उनके ही हाथों में है.
शायद यही वजह है कि वो क्या आर्थिक क़दम उठाने वाली हैं? इसके संकेत पाने के लिए निवेशकों और विश्लेषकों ने उनकी पोशाक पर लगाए जाने वाले ब्रूच (पिन) के प्रतीकों के संकेतों इर्द-गिर्द कई अर्थ गढ़ लिए हैं.
ब्रूच की भाषा
दो साल पहले रूस के टीवी चैनल से बात करते हुए नबीउल्लीना ने कहा था, "मैं हर प्रतीक में कुछ ना कुछ लगाती हूँ, मैं इस समझाने नहीं जा रही हूँ."
कुछ लोग ये मानते हैं कि जब उन्होंने बाज़ का ब्रूच लगाया था, तब इसका मतलब ये था कि वो ब्याज़ दर बढ़ाने जा रही हैं और जब उन्होंने बादलों वाला ब्रूच पहना तब महंगाई दर कम करने का संकेत दिया.
बीबीसी की रूसी सेवा की इकनॉमिक ए़डिटर ओल्गा शमीना कहती हैं, "रूस के यूक्रेन पर आक्रमण करने के कुछ दिन बाद जब वो एक सार्वजनिक समारोह में शामिल हुईं तो उन्होंने काली पोशाक पहनी थी, मानों वो ग़म मना रही हों."
जब पश्चिमी देशों के आर्थिक प्रतिबंधों के बाद रूबल गिरा तो उन्होंने अपनी पोशाक पर पिन नहीं लगाई. बहुत से लोगों ने इस बात पर ध्यान दिया.
शमीना बताती हैं, "उनकी पोशाक पर लगाई जाने वाली पिनें एक जटिल संचार सिस्टम का हिस्सा हैं, जिनसे रूस के बैंकरों और निवेशकों को संकेत मिलता है कि वो आगे क्या करने जा रही हैं."
शमीना बताती हैं, "उदाहरण के तौर पर जब मार्च 2020 में कोविड महामारी के बीच बाज़ार में गिरावट आई तब नबीउल्लीना ने एक खिलौने की शक्ल का ब्रूच लगाया. शीशे का खिलौना ऐसा है कि हर बार जब ये गिरता है तो खड़ा हो उठता है."
उसी साल अप्रैल में जब अधिकतर लोग क्वारंटीन में थे तब नबीउल्लीना ने घर की शक्ल का ब्रूच लगाया. लेकिन समस्या ये है कि कई बार वो जटिल प्रतीकों का इस्तेमाल करती हैं. लैपर्ड, तीर कमान और अन्य कई जटिल प्रतीक जिनके सही मायने तक पहुंचना मुश्किल होता है.
युद्ध के शुरू होने के बाद से नबीउल्लीना सार्वजनिक तौर पर कोई ब्रूच लगाकर सामने नहीं आई हैं.
क़रीब एक दशक तक सेंट्रल बैंक का नेतृत्व करने के बाद नबीउल्लीना, जिन्हें लेडी विद द ब्रूचेज़ भी कहा जाता है के पद को 2027 तक के लिए सुनिश्चित कर दिया गया है. ये कार्यकाल उनकी क्षमताओं की परीक्षा भी होगा क्योंकि प्रतिबंधों से घिरी रूस की अर्थव्यवस्ता कई चुनौतियों का सामना कर रही है.
शक्तिशाली लोगों में गिनती
नबीउल्लीना को ओपेरा पसंद हैं, उनकी सर्वजनिक छवि एक सख़्त टेक्नोक्रेट की है. सेंट्रल बैंक के प्रमुख के तौर पर उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, वॉल स्ट्रीट निवेशकों, कारोबारियों और सरकार के रणनीतिकारों की तारीफ़ हासिल की है. उन्हें एक ऐसे पेशेवर के तौर पर जाना जाता है जो अपने मैदान के खेल को अच्छे से समझती हैं.
2013 से 2017 के बीच उन्होंने तीन सौ से अधिक बैंकों के लाइसेंस निरस्त किए. ये बैंके अच्छा नहीं कर रहे थे और उनके प्रबंधन पर भी सवाल थे. ये रूस के क्रेडिट संस्थानों में से एक तिहाई थी. इनके लाइसेंस निरस्त करने को लेकर नबीउल्लीना की ख़ूब तारीफ़ भी हुई.
उन्हें महंगाई को नियंत्रित करने का भी श्रेय दिया जाता है. साल 2018 में उन्होंने ब्याज़ दरों को दो प्रतिशत तक कर दिया था. ये ऐतिहासिक गिरावट थी.
2014 में एक्सचेंज दरों पर नियंत्रण करने के बजाए उन्होंने रूबल को स्वतंत्र रूप से कारोबार करने दिया. इसका भी उन्हें श्रेय दिया जाता है.
2015 में यूरोमनी मैगज़ीन ने उन्हें दुनिया की सर्वश्रेष्ठ सेंट्रल बैंकर की उपाधि दी थी. वहीं 2017 में बैंकर पब्लिकेशन ने उन्हें यूरोप की सर्वश्रेष्ठ बैंकर घोषित किया था.
उनके नेतृत्व में ही रूस के सेंट्रल बैंक ने अपने इतिहास का सर्वाधिक विदेशी मुद्रा भंडार अर्जित किया. ये एक ऐसा सुरक्षा कवच था जो मुश्किल समय में रूस को अपनी अर्थव्यवस्था कम मज़बूत रखने में मदद करता.
इकनॉमिस्ट की इंटेलिजेंस यूनिट एनेलिसिस कंसल्टेंसी ग्लोबल फॉरकास्ट की निदेशक अगाथे डेमारियाज़ कहती हैं कि नबीउल्लीना ने रूसी अर्थव्यवस्था के सबसे मुश्किल दौर में सेंट्रल बैंक का नेतृत्व किया. 2014 में जब यूक्रेन ने क्राइमिया पर नियंत्रण किया और 2022 में जब यूक्रेन पर हमला किया, तब वो ही सेंट्रल बैंक की प्रमुख थीं.
अगाथे कहती हैं, "दोनों ही मामलों में वह रूबल को गिरने से बचाने और तीव्र महंगाई को रोकने में कामयाब रहीं. अगर ऐसा होता तो इससे रूस के लोगों की ख़रीददारी की क्षमता प्रभावित होती."
अगाथे कहती हैं, "लेकिन जब उन्हें लगा कि दरें बढ़ानी ज़रूरी हैं तो उन्होंने ब्याज़ दरें बढ़ाईं."
एक सिक्के के दो पहलू
पेरिस की साइंसेज़ पो यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर सर्गेई ग्यूरेव हाल के दशकों में देश के इतिहास की पृष्ठभूमि में कहते हैं कि नबीउल्लीना ने रूस में नए आर्थिक ढांचे को लागू किया है.
सर्गेई ग्यूरोव इकोनॉमिक पॉलिसी रिसर्च सेंटर से भी जुड़े हैं और इकोनॉमिक एसोसिएशन की कार्यकारी समिति के सदस्य भी हैं. सर्गेई कहते हैं, "वो देश को महंगाई की निश्चित दर की मॉर्डन नीति और लचीले एक्सचेंज रेट की नीति की तरफ़ ले आई हैं."
रूस के सत्ता गलियारे का हिस्सा रहे उदारवादी विचारधारा के सर्गेई ग्यूरेव ने अचानक 2013 में रूस छोड़ दिया था. वो नबीउल्लीना को 15 सालों से जानते हैं.
वो कहते हैं, "पुतिन को उन पर भरोसा है लेकिन इस कहानी का एक दूसरा पहलू भी है."
नबीउल्लीना ने जो क़दम उठाए हैं, उनमें सबसे ज़्यादा चर्चा संदिग्ध वित्तीय संस्थानों को बंद करने की जाती है.
सर्गेई कहते हैं, "नबीउल्लीना कई आपराधिक वित्तीय संस्थानों को बंद किया. इस अभियान को सिर्फ़ रूस के भीतर ही नहीं बल्कि रूस के बाहर भी सराहा जाता है. ये भी ध्यान देने योग्य तथ्य है कि नबीउल्लीना के पूर्ववर्ती ने जब कुछ अछूत बैंकरों तक पहुँचने की कोशिश की तो उन्हें अपनी जान गंवानी पड़ी."
हालांकि नबीउल्लीना के भ्रष्टाचार विरोधी अभियान को लेकर भी विवाद हुआ क्योंकि इसमें सिर्फ़ छोटे बैंकरों को ही निशाना बनाया गया और बड़े संस्थानों को छुआ तक नहीं गया.
सर्गेई ग्यूरेव कहते हैं, "कई बड़े भ्रष्ट सरकारी बैंकों को छुआ तक नहीं गया. इससे एक असंतुलन का माहौल बना जिसने बैंकिंग सेक्टर को ही और मज़बूत किया."
लेकिन आलोचक मानते हैं कि नबीउल्लीना की जो अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त उपलब्धियां हैं, वो ऐसी नहीं हैं जैसी की दिखती हैं.
उदाहरण के तौर पर वो ये बताते हैं कि जिन बैंकों को बंद किया गया था, उनमें से कुछ ऐसी थीं जिन्हें दूसरे संस्थानों ने अधिग्रहित कर लिया था. इनमें से कुछ बैंक बाद में दिवालिया हो गए और उन्हें जनता के पैसों से बचाया गया.
आलोचकों का ये भी कहना है कि नबीउल्लीना के कई अभियानों में पारदर्शिता नहीं थी और उन्होंने सरकारी तेल कंपनी रोसनेफ्ट को मदद पहुंचाई.
फॉरन पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट से जुड़ी शोधकर्ता मैक्समिलन हेस ने अमेरिका के नेशनल पब्लिक रेडियो से बात करते हुए कहा, "नबीउल्लीना ने उन कंपनियों को ही बचाया जो सरकार से जुड़ी हुई थीं."
वो कहते हैं कि जब से नबीउल्लीना ने पद संभाला है तब से ही ऐसे संकेत मिलते रहे हैं कि वो पुतिन के भरोसों के लोगों के समूह में शामिल हैं.
मैक्समिलन हैस कहते हैं, "उन्होंने ना सिर्फ़ रूस के लोगों की बचत को बर्बाद कर दिया बल्कि उनके लिए निवेश की क़ीमत को और अधिक बढ़ा दिया. रूस का सेंट्रल बैंक ये कहता है कि उसकी ज़िम्मेदारी अर्थव्यवस्था को बचाने की है और इसके लिए दाम स्थिर रखने है, दुनिया भर के सभी सेंट्रल बैंक यही कहते हैं. लेकिन नबीउल्लीना की सिर्फ़ एक ही ज़िम्मेदारी है- रूस के सत्ता प्रतिष्ठान क्रेमलिन के हितों की रक्षा करना और क्रेमलिन की सत्ता को बचाए रखना."
उनके मुताबिक़ अभी हालात नहीं बदले हैं और नबीउल्लीना पुतिन के सबसे भरोसेमंद लोगों में शामिल हैं. हालांकि ऐसी अफ़वाहें भी आईं थीं कि यूक्रेन पर हमले के बाद इसी साल मार्च में उन्होंने इस्तीफ़ा देने की पेशकश भी की थी.
प्रतिबंधित लोगों की सूची में शामिल
रूस की प्रमुख बैंकर नबीउल्लीना और उनकी टीम की ज़िम्मेदारी यूक्रेन युद्ध के इस संकट के समय में रूस की अर्थव्यवस्था को बचाए रखना है.
पश्चिमी देशों के प्रतिबंध लगाए जाने के बाद से ही नबीउल्लीना ने रूस की मुद्रा रूबल में जान डालने की कोशिश की है. उन्होंने दाम नियंत्रित किए हैं और कई ऐसे क़दम उठाए हैं जो नियमावली से बाहर के हैं.
पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों में रूस के सेंट्रल बैंक के सोने और मुद्रा भंडारों का लगभग आधा (64000 करोड़ डॉलर) को ज़ब्त करना भी शामिल है. रूस पर ऐसे कई और सख़्त आर्थिक प्रतिबंध लगाए गए हैं जो रूस के संभावित डिफॉल्ट या क़र्ज़ चुकाने में नाकाम रहने की स्थिति की तरफ़ धकेल रहे हैं.
अब नबीउल्लीना के सामने ऐसी अर्थव्यवस्था है जो हर मोर्चे पर संघर्ष कर रही है. दुनिया में अलग-थलग पड़ गई है और जहाँ से बड़ी कंपनियां और निवेशक भाग रहे हैं.
लेकिन उन्हें सिर्फ़ अपने देश की आर्थिक चुनौतियों से ही नहीं निबटना है.
19 अप्रैल को कनाडा की सरकार ने नबीउल्लीना पर निजी प्रतिबंध लगाए थे. उनके अलावा रूस के राष्ट्रपति के तेरह क़रीबी लोग भी इनके दायरे में हैं. हालांकि अमेरिका ने अभी उन्हें अपनी ब्लैकलिस्ट में शामिल नहीं किया है. अमेरिका ने सेंट्रल बैंक की पहली डिप्टी प्रेजिडेंट केशनिया युदायेवा पर प्रतिबंध लगाए हैं. वो नबीउल्लीना की क़रीबी सहयोगी हैं.
आगे क्या?
1991 में सोवियत यूनियन के पतन के बाद से ये रूस के सामने सबसे बड़ा आर्थिक संकट है. नबीउल्लीना के सामने ऐसी अर्थव्यवस्था को विकसित करने की चुनौती है जो कच्चे माल के निर्यात पर बहुत अधिक निर्भर है. उन्हें महंगाई का भी सामना करना है जो 20 सालों के सर्वोच्च स्तर पर है.
अप्रैल में नबीउल्लीना ने कहा था, "हमारा काम ये है कि हम अपनी अर्थव्यस्था को प्रतिद्वंदी बनाए रखें."
नबीउल्लीना ने कहा था, "महंगाई को रोकना सबसे बड़ा काम है. हमारा मक़सद 2024 तक इसे चार प्रतिशत या इससे कम तक लेकर आना है."
अभी सेंट्रल बैंक ने ब्याज़ दर 20 प्रतिशत कर दी है और फॉरन एक्सचेंज को भी नियंत्रित किया है, जिससे विदेशी मुद्रा ख़रीदना बहुत मुश्किल हो गया है.
नबीउल्लीना ने जो क़दम उठाए हैं, उससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ये धारणा बन रही है कि संकट के बावजूद, तूफ़ान में फंसी रूस की अर्थव्यवस्था अच्छा कर रही है.
हालांकि कुछ विशेषज्ञ इस पर सवाल उठाते हैं.
ओल्गा शमीना कहती हैं, "सेंट्रल बैंक की वजह से रूस की अर्थव्यवस्था दिखने में स्थिर लग रही है लेकिन वास्तविकता में वो धीरे-धीरे बर्बाद हो रही है."
पश्चिमी अनुमानों के मुताबिक़ रूस की अर्थव्यवस्था में इस साल दस प्रतिशत तक की गिरावट आ सकती है, रूबल गंभीर संकट का सामना करेगा और महंगाई 25 फ़ीसदी तक बढ़ जाएगी, लेकिन जैसे-जैसे महंगाई दर बदलेगी, ये अनुमान भी किसी भी समय बदल सकते हैं.
अनिश्चितता के इस दौर में सबसे बड़ा सवाल ये है कि रूस-यूक्रेन युद्ध का नतीजा क्या होगा. एक और सवाल जो पूछा जा रहा है वो है कि नबीउल्लीना अगली बार ब्रूच कब पहनेंगी.(bbc.com)
(ललित के. झा)
वाशिंगटन, 4 मई। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा कि दुनिया में तानाशाही और लोकतंत्र के बीच जंग चल रही है और चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग का मानना है कि 21वीं सदी में लोकतंत्र को बनाए नहीं रखा जा सकता।
बाइडन ने अलबामा के ‘लॉकहीड मार्टिन पाइक काउंटी ऑपरेशन’ में मंगलवार को कहा, ‘‘ हम इतिहास में बदलाव के मोड़ पर हैं, यकीनन...यह प्रत्येक छठवीं या आठवीं पीढ़ी में होता है, जहां चीजें बहुत तेजी से बदलती हैं, लेकिन हमें नियंत्रण में रहना होता है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘ मित्रों दुनिया में तानाशाही और लोकतंत्र के बीच जंग चल रही है। चीन के नेता शी चिनफिंग, जिनके साथ मेरी बात हुई और उनके साथ मैंने दुनिया के किसी अन्य नेता की तुलना में अधिक वक्त बिताया है। उनके साथ व्यक्तिगत तौर पर और फोन पर करीब 78 घंटे बिताए हैं और उनका कहना है कि 21वीं सदी में लोकतंत्र को बनाए नहीं रखा जा सकता।’’
अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘ यह मजाक नहीं है। इसे इसलिए नहीं बनाए रखा जा सकता, क्योंकि चीजें तेजी से बदल रही हैं। लोकतंत्र सहमति से बनता है और सहमति बनना मुश्किल है लेकिन केवल इसलिए तानाशाही नहीं ला सकते। ऐसा नहीं होने वाला। अगर ऐसा होता है तो पूरी दुनिया बदल जाएगी।’’
बाइडन ने लोगों से कहा कि वह इस बात को संभव बना रहे हैं कि यूक्रेन के लोग अपनी रक्षा खुद कर सकें अमेरिका को युद्ध में शामिल होने का खतरा नहीं उठाना पड़े।
उन्होंने लॉकहीड के कर्मचारियों को बताया कि अमेरिका ने यूक्रेन को 5500 से अधिक जैवलिन टैंक रोधी मिसाइलें देने का वादा किया है। लॉकहीड कंपनी इन्हीं मिसाइलों का निर्माण करती है। (भाषा)
प्रधानमंत्री पद की कुर्सी जाने के बाद से इमरान ख़ान खुलकर अमेरिका पर उनकी सरकार गिराने का आरोप लगा रहे हैं.
इमरान ख़ान ने अपने दावे के सबूत के तौर पर एक अमेरिकी रक्षा विशेषज्ञ का वीडियो भी ट्वीट किया लेकिन इस वजह से वो अपने ही देश में घिर गए हैं.
पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ पार्टी के प्रमुख इमरान ख़ान ने सोमवार को फॉक्स न्यूज़ के एक कार्यक्रम का वीडियो क्लिप शेयर किया, जिसमें अमेरिकी विशेषज्ञ रेबेका ग्रांट के बयान पर उन्होंने ज़ोर दिया.
ख़ान ने वीडियो के साथ सिलसिलेवार ट्वीट किए. उन्होंने लिखा, "अगर पाकिस्तान में सत्ता बदलने के पीछे अमेरिकी साज़िश पर किसी को शक है तो ये वीडियो सारी आशंकाएं ख़त्म कर देगा कि क्योंकि एक जनता द्वारा चुने गए पीएम और उसकी सरकार को हटा दिया गया."
इमरान ख़ान ने लिखा, "स्पष्ट है कि अमेरिका एक आज्ञाकारी कठपुतली पीएम चाहता था, जो यूरोप के युद्ध में पाकिस्तान को निष्पक्ष नहीं रहने देना चाहता."
इमरान ख़ान ने सीधे तौर पर बाइडन प्रशासन पर सवाल खड़े कर दिए. उन्होंने एक अन्य ट्वीट में लिखा, "मैं बाइडन प्रशासन से पूछना चाहूंगा कि एक 22 करोड़ की आबादी वाले देश में लोकतांत्रिक तरीक़े से चुने हुए पीएम को हटाने के लिए साज़िश में शामिल होकर और एक कठपुतली पीएम लाने से, क्या आपको लगता है कि उसने पाकिस्तान में अमेरिका विरोधी भावनाओं को कम या ज़्यादा किया है."
इमरान ख़ान सरकार में विदेश मंत्री रह चुके शाह महमूद क़ुरैशी ने भी वीडियो ट्वीट करके पाकिस्तान की मौजूदा सरकार पर निशाना साधा है. उन्होंने लिखा है कि इस आयातित सरकार को पाकिस्तान की संप्रभुता के साथ समझौता नहीं करना चाहिए.
इमरान सरकार में ही मंत्री रहीं शिरीन मज़ारी ने भी वीडियो ट्वीट करते हुए लिखा है कि अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा और डिफेंस एनालिस्ट रेबेका ग्रांट कबूल कर रही हैं कि इमरान ख़ान को हटाने में अमेरिका का हाथ था.
इमरान ख़ान के इस ट्वीट पर लेकिन पाकिस्तान के ही कई नागरिक आपत्ति जता रहे हैं और कह रहे हैं कि रेबेका ग्रांट का अमेरिकी सरकार से कोई रिश्ता नहीं है और उनके वीडियो को ख़ान अपने आरोपों की पुष्टि के लिए शेयर नहीं कर सकते.
वीडियो यूक्रेन में रूसी हमले को लेकर फॉक्स न्यूज़ के एक कार्यक्रम का है, जिसमें एंकर रेबेका ग्रांट से पूछ रहे हैं कि अमेरिका का पाकिस्तान को क्या संदेश होना चाहिए.
इस पर ग्रांट कहती हैं, "पाकिस्तान को यूक्रेन की मदद करनी चाहिए, रूस के साथ समझौते नहीं करने चाहिए, चीन के साथ रिश्ते सीमित करने चाहिए और अमेरिका विरोधी नीतियों को रोकना चाहिए, जो कि इमरान ख़ान की सरकार गिरने के पीछे एक कारण थी."
जियो न्यूज़ के पत्रकार मुर्तज़ा अली शाह ने वीडियो शेयर करते हुए साथ में लिखा, "इमरान ख़ान की अगुवाई में पीटीआई के सारे नेताओं का फॉक्स न्यूज़ के कार्यक्रम में ट्रंप की समर्थक विशेषज्ञ के बयान को पाकिस्तान में सत्ता परिवर्तन के सबूत के रूप में पेश करना हास्यास्पद है."
पाकिस्तान के अन्य पत्रकार रज़ा अहमद रूमी ने इमरान ख़ान के ट्वीट को कोट करते हुए लिखा है, "कितना चिंताजनक है कि ये शख्स- प्रत्यक्ष तौर पर पद के लिए अयोग्य- एक परमाणु शक्ति संपन्न, 22 करोड़ की आबादी वाले देश का पीएम था. ये फॉक्स न्यूज़ की एक क्लिप को पाकिस्तान में सत्ता परिवर्तन के सबूत के तौर पर पेश कर रहे हैं. ये आगे भी झूठ फैलाते रहेंगे और इनके समर्थक इसको सच मानते रहेंगे."
पाकिस्तान के उज़ैर यूनुस लिखते हैं, "फॉक्स न्यूज़ को देखकर अमेरिकी नीतियों को लेकर किसी निष्कर्ष पर पहुँचना ठीक वैसा है जैसे अमेरिकी ज़ैद हामिद और किसी 'डिफेंस एनालिस्ट' को किसी पाकिस्तानी चैनल पर बातचीत करते देख पाकिस्तान की पश्चिम को लेकर नीतियों को लेकर निष्कर्ष पर पहुंचे.''
फैक्ट चेक पाकिस्तान ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि रेबेका एल ग्रांट का अमेरिकी सरकार से कोई लेना-देना नहीं है. उन्होंने पहले भी कभी अमेरिकी सरकार के लिए काम नहीं किया.
पाकिस्तान फैक्ट चेक के अनुसार, रेबेका फॉक्स न्यूज़ की विशेषज्ञ हैं और उनकी अपनी IRIS नाम की रिसर्च फर्म है. (bbc.com)
बर्लिन. भारतीय मतदाताओं ने एक बटन दबाकर देश में तीन दशकों से चल रही राजनीतिक अस्थिरता को खत्म कर दिया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को जर्मनी में भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए यह बात कही. पीएम मोदी ने अपने संबोधन की शुरुआत यह कहकर की कि वह जर्मनी की राजधानी में न तो अपने बारे में और न ही मोदी सरकार के बारे में बात करने के लिए हैं. उन्होंने कहा, “मैं आपसे करोड़ों भारतीयों की क्षमताओं के बारे में बात करना चाहता हूं और उनकी सराहना करना चाहता हूं. जब मैं करोड़ों भारतीयों की बात करता हूं, तो इसमें न केवल वहां रहने वाले लोग शामिल होते हैं, बल्कि यहां रहने वाले लोग भी शामिल होते हैं.”
प्रधानमंत्री ने कहा कि उनके शब्दों में दुनिया के कोने-कोने में रहने वाली मां भारती के सभी बच्चे शामिल हैं. पीएम मोदी ने कहा, “आज का आकांक्षी भारत, आज का युवा भारत, देश का तेज विकास चाहता है. वो जानता है कि इसके लिए राजनीतिक स्थिरता और प्रबल इच्छाशक्ति कितनी आवश्यक है. इसलिए भारत के लोगों ने तीन दशकों से चली आ रही राजनीतिक अस्थिरता के वातावरण को एक बटन दबाकर खत्म कर दिया. 30 साल बाद 2014 में पूर्ण बहुमत वाली सरकार चुनी गई और ये भारत की महान जनता की दूरदृष्टि है कि साल 2019 में उसने, देश की सरकार को पहले से भी ज्यादा मजबूत बना दिया.”
‘नया भारत जोखिम लेने के लिए तैयार है’
प्रवासी भारतीयों के लिए प्रधानमंत्री का एक घंटे का संबोधन यहां ‘थिएटर एम पोस्टडैमर प्लात्ज’ में हुआ. वहां बड़ी संख्या में प्रवासी भारतीय एकत्र हुए थे. इस दौरान वहां मौजूद लोगों ने ‘भारत माता की जय’, ‘मोदी है तो मुमकिन है’ और ‘2024, मोदी फिर एक बार’ जैसे नारे लगाये. मोदी ने कहा कि पिछले आठ वर्षों में भारत हर क्षेत्र- जीवन में सुगमता, जीवन की गुणवत्ता, रोजगार में आसानी, शिक्षा की गुणवत्ता, व्यापार करने में आसानी, यात्रा की गुणवत्ता, उत्पादों की गुणवत्ता- में तेज प्रगति हासिल कर रहा है. मोदी ने कहा, “नया भारत अब एक सुरक्षित भविष्य के बारे में नहीं सोचता है, बल्कि जोखिम लेने के लिए तैयार है, नया करने और विकास को बढ़ावा देने के लिए तैयार है.”
‘डिजिटल भुगतान में भारत की हिस्सेदारी 40% से अधिक’
उन्होंने कहा, “भारत में 2014 के आसपास 200-400 स्टार्ट-अप थे, आज 68,000 स्टार्ट अप और दर्जनों यूनिकॉर्न हैं…जिनमें से कुछ पहले ही 10 अरब डॉलर के आकलन के साथ डेका-कॉर्न बन गए हैं.” डिजिटल भुगतान तंत्र की सफलता को रेखांकित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि दुनिया भर में वास्तविक समय (रियल टाइम) डिजिटल भुगतान में भारत की हिस्सेदारी 40 प्रतिशत से अधिक है. उन्होंने कहा कि सरकार भी किसानों को सीधे उनके बैंक खातों में भुगतान करने के लिए डिजिटल भुगतान तंत्र का उपयोग कर रही है.
मोदी ने परोक्ष रूप से कांग्रेस पार्टी पर निशाना साधते हुए कहा कि अब किसी भी प्रधानमंत्री को यह अफसोस नहीं करना पड़ेगा कि वह एक रुपया भेजते हैं, लेकिन केवल 15 पैसे ही इच्छित लाभार्थी तक पहुंचता है. उन्होंने तंज कसते हुए कहा, “वो कौन सा पंजा था, जो 85 पैसे घिस लेता था.”
उन्होंने संभवत: कांग्रेस पार्टी के चुनाव चिह्न की ओर इशारा करते हुए यह कहा. उन्होंने कहा कि पिछले आठ वर्षों में उनकी सरकार ने प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) के माध्यम से लाभार्थियों को 22 लाख करोड़ रुपये से अधिक भेजे हैं.
(इनपुट भाषा से भी)
(ललित के. झा)
वाशिंगटन, 3 मई। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने सोमवार को कहा कि दुनियाभर में मुसलमान हिंसा का शिकार हो रहे हैं। साथ ही, उन्होंने कहा कि मुस्लिम समुदाय हर दिन अमेरिका को मजबूत बना रहा है यद्यपि वह खुद समाज में वास्तविक चुनौतियों और खतरों का सामना कर रहा है।
व्हाइट हाउस में ईद-उल-फितर के मौके पर बाइडन ने यह बात कही।
बाइडन ने कहा कि उन्होंने अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता के लिए दूतावास प्रभारी के पद पर पहली बार किसी मुस्लिम को नियुक्त किया है।
उन्होंने कहा, ‘‘ यह बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि आज, दुनिया भर में हम देख रहे हैं कि बहुत से मुसलमान हिंसा का शिकार हो रहे हैं। किसी को भी, उसकी धार्मिक आस्थाओं के लिए प्रताड़ित नहीं किया जाना चाहिए।’’
इस कार्यक्रम में प्रथम महिला जिल बाइडन, मस्जिद मोहम्मद के इमाम डॉ. तालिब एम शरीफ और पाकिस्तानी गायिक एवं संगीतकार अरूज आफताब ने भी शिरकत की।
बाइडन ने कहा, ‘‘ आज, हम उन सभी को याद करते हैं जो इस पाक दिन का जश्न नहीं मना पा रहे हैं, जिनमें उइगर, रोहिंग्या समुदाय के लोगों सहित वे सभी शामिल हैं जो अकाल, हिंसा, संघर्ष और बीमारी से पीड़ित हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘ दुनिया में आशा और प्रगति के संकेतों का सम्मान करें, जिसमें युद्धविराम भी शामिल है, जिससे यमन में लोगों को छह वर्षों में पहली बार शांति से रमज़ान और ईद मनाने का मौका मिला है।’’
बाइडन ने कहा, ‘‘ लेकिन साथ ही, हमें यह भी स्वीकार करना होगा कि विदेशों में और यहां देश में बहुत काम किया जाना बाकी है। मुसलमान हमारे देश को हर दिन मजबूत बनाते हैं, भले ही वे अब भी हमारे समाज में वास्तविक चुनौतियों और खतरों का सामना कर रहे हैं, जिसमें लक्षित हिंसा और ‘इस्लामोफोबिया’ (इस्लाम से भय) शामिल है।’’
समारोह के बाद एक ट्वीट में बाइडन ने कहा, ‘‘ जिल और मैं व्हाइट हाउस में आज रात ईद-उल-फितर का पर्व मनाकर काफी सम्मानित महसूस कर रहे हैं और हम दुनिया भर में यह पर्व मनाने वाले सभी लोगों को हार्दिक शुभकामनाएं देते हैं। ईद मुबारक।’’
इस बीच, अमेरिका की उप राष्ट्रपति कमला हैरिस ने भी लोगों को ईद की शुभकामनाएं दी।
उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘ डगलस और मैं ईद-उल-फितर मनाने वाले सभी लोगों को हार्दिक शुभकामनाएं देते हैं....ईद मुबारक।’’ (भाषा)
एलन मस्क और ट्विटर के बीच अगर प्रस्तावित 44 अरब डॉलर की डील पूरी हो जाती है तो मस्क के पास ट्विटर को ट्रांसफॉर्म करने का अपना एक प्लान है.
ये पूरा प्लान क्या है, इसकी पुख़्ता जानकारी तो नहीं है लोकिन इतना ज़रूर है कि आने वाले वक़्त में एलन मस्क का ट्विटर कैसा दिखेगा और इसमें संभावित बदलाव क्या-क्या होंगे, इसका एक अंदाज़ा है.
ये हैं वो चंद चीज़ें जिसे माना जा रहा है कि मस्क के आने पर बदलेंगी.
फ़्री स्पीच टाउन स्क्वेयर
एलन मस्क कई बार फ़्री स्पीच की बात अपने नए-पुराने ट्वीट्स में दोहराते रहे हैं. माना जा रहा है कि ये उनकी सबसे अहम प्राथमिकताओं में से एक होगी.
ट्विटर को दुनिया में एक सार्थक बहस शुरू करने के लिए एक "राजनीतिक रूप से निष्पक्ष" डिज़िटल टाउन स्क्वेयर बनाना चाहते हैं जो प्रत्येक देश के क़ानूनों अनुसार अधिक से अधिक फ़्री स्पीच की जगह बनेगा.
ओपेन सोर्स एल्गोरिदम
एआई यानी आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस में मस्क की लंबे समय से रूचि है इस डील में एल्गोरिदम एक बड़ा मुद्दा भी रही है. वह चाहते हैं कि लोगों के बीच ‘विश्वास बढ़ाने के लिए एल्गोरिदम कोओपोन सोर्स रखा जाए.’
वह उन प्रणालियों के बारे में बात कर रहे हैं जो कंटेंट को रैंक करती हैं ताकि यह तय किया जा सके कि यूजर्स के फ़ीड पर क्या दिखाई देगा.
वह एक ऐसा ट्विटर बनाना चाह रहे हैं जिसमें मॉडरेशन कम से कम हो.
‘स्पैम बॉट्स’मस्क के लिए एक व्यक्तिगत परेशानी रहे हैं, कई ट्विटर अकाउंट अतीत में मस्क की तस्वीर और नाम का इस्तेमाल कर क्रिप्टो के घोटालों को मस्क के नाम से साथ प्रमोट करते रहे हैं. मस्क के आने से ट्विट पर इस तरह के बॉट पर भी एक्शन होने की उम्मीद है.
हर इंसान की पहचान
मस्क ने बार-बार कहा है कि वह चाहते हैं कि ट्विटर "सभी यूज़र्स,इंसानों को प्रमाणित करे", ये बात भी स्पैम अकाउंट से छुटकारा पाने की उनकी इच्छा से जुड़ा हुआ माना जाता है.
लोगों की पहचान को तेज़ करना उनकी लिए प्राथमिकता है और संभव है कि इसके लिए टू-फैक्टर ऑथेंटिकेशन प्रणाली का सहारा लिया जाए. (bbc.com)
कीव, एक मई । यूक्रेन की सेना ने दावा किया है कि देश के पूर्वी हिस्से में रूसी आक्रमण का कड़ा प्रतिरोध किया जा रहा है, जिसकी कीमत जानमाल की हानि के रूप में चुकानी पड़ रही है।
यूक्रेन के सशस्त्र बलों के जनरल स्टाफ ने रविवार को एक फेसबुक पोस्ट में कहा कि रूसी सैनिक स्लोबोदा, दोनेत्स्क और तौरीद क्षेत्रों में आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन यूक्रेनी सैनिक उन्हें रोक रहे हैं, जो गांव दर गांव लड़ाई जारी रखे हुए है।
वहीं, यूक्रेन के खुफिया अधिकारियों ने रूसी सैनिकों पर उनके कब्जे वाले कई शहरों और कस्बों में चिकित्सा संस्थान नष्ट करने का आरोप लगाया है।
इस बीच, दक्षिणी यूक्रेन के मारियुपोल शहर की नगर परिषद ने कहा है कि नागरिकों की व्यापक स्तर पर निकासी के लिए संयुक्त राष्ट्र समर्थित एक कार्यक्रम की शुरूआत सोमवार को होने वाली है।(एपी)
कीव, दो मई। यूक्रेन के मारियुपोल शहर में एक इस्पात संयंत्र से कुछ आम नागरिकों को सुरक्षित बाहर निकाला गया, जिसके तत्काल बाद रूसी बलों ने गोलाबारी फिर से शुरू कर दी।
‘यूक्रेनी नेशनल गार्ड ब्रिगेड’ के कमांडर डेनेस शलेगा ने रविवार को टेलीविजन पर दिए गए एक साक्षात्कार में कहा कि एजोव्स्ताल इस्पात मिल से आम नागरिकों को पूरी तरह से निकालने के लिए अभी कम से कम एक बार और अभियान चलाना होगा। इस्पात संयंत्र के नीचे बंकरों में बड़ी संख्या में व्यस्कों के अलावा कई छोटे बच्चे छिपे हैं।
शलेगा ने कहा कि बचाव दल ने जैसे ही संयंत्र से आम नागरिकों को निकालने का काम बंद किया, गोलाबारी शुरू हो गयी।
उन्होंने बताया कि एक अनुमान के अनुसार संयंत्र में अब भी सैकड़ों आम नागरिक तथा करीब 500 घायल सैनिक फंसे हुए हैं और बड़ी संख्या में शव वहां पड़े हुए हैं। मारियुपोल का सिर्फ यही एक हिस्सा है, जिस पर रूसी सैनिक कब्जा नहीं कर पाए हैं।
इससे पहले रविवार को रूस के रक्षा मंत्रालय की ओर से जारी एक वीडियो में लोग संयंत्र से बाहर आते दिखाई दे रहे थे, जिनमें महिलाओं का एक समूह भी था और उनके साथ दो पालतू कुत्ते थे। (एपी)
दुनिया भर में प्राकृतिक संसाधनों और वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों की बड़े स्तर तलाश चल रही है.
हाल के महीनों में ये तलाश और तेज हुई है क्योंकि कई देश ऊर्जा संकट का सामना कर रहे हैं.
इस तलाश में आर्कटिक क्षेत्र ऐसा इलाक़ा है जिस पर कई देशों की नज़रें टिकी हुई हैं. इस क्षेत्र में बड़ी मात्रा में तेल और प्राकृतिक गैस का भंडार है.
लेकिन, ऊर्जा के इस स्रोत तक पहुंचना विवादों से घिरा है. पर्यावरण को होने वाला नुकसान और क्षेत्रीय विवाद इसका मुख्य कारण हैं.
आर्कटिक में तेल और गैस के लिए ऊर्जा कंपनियों के ड्रिल करने को लेकर कोर्ट में केस भी चल रहा है.
पर्यावरण कार्यकर्ताओं के एक समूह ने यूरोपियन कोर्ट ऑफ़ ह्यूमन राइट्स (ईसीएचआर) में नॉर्वे की सरकार पर मुक़दमा किया है क्योंकि नॉर्वे ने आर्कटिक में प्राकृतिक संसाधनों की निकासी की इजाजत दे दी है.
अब एक तरह से इस मामले पर निर्भर करता है कि भविष्य में इस इलाक़े से कितना प्राकृतिक संसाधन निकाला जा सकता है. (bbc.com)
इस्लामाबाद, 1 मई । सऊदी अरब के मदीना में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और उनके प्रतिनिधिमंडल के खिलाफ नारेबाजी के मामले में पाकिस्तान की फैसलाबाद पुलिस ने देश के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान और उनकी पार्टी पीटीआई के मुख्य नेताओं और अन्य 100 लोगों पर ईशनिंदा का मामला दर्ज किया है।
आरोप लगाया गया है कि इमरान खान, फवाद चौधरी, शेख राशिद, शाहबाज गुल, शेख राशिद शफीक, साहिबजादा जहांगीर चिको, अनिल मुसरत, नबील नुसरत, उमर इलियास, राणा अब्दुल सत्तार, बैरिस्टर अमीर इलियास, गौहर जिलानी, कासिम सूरी और करीब 100 लोगों ने मदीना की मस्जिद-ए-नबवी की पवित्रता और कुरान में कही गई बातों का उल्लंघन किया है।
एक स्थानीय निवासी नईम भट्टी नाम के शख़्स की शिकायत पर प्राथमिकी दर्ज की गई है।
मुकदमे में कहा गया है कि सऊदी अरब में पाकिस्तानी चरमपंथियों का एक दल भेजा गया था, पाकिस्तानियों का ये दल ब्रिटेन से इस गतिविधि में हिस्सा लेने सऊदी पहुंचा था और इसके सबूत पूछताछ के दौरान सौंपे जाएंगे।
फैसलाबाद पुलिस ने पुष्टि की है कि मामला दर्ज कर लिया गया है, इसकी जांच की जाएगी और फिर यह तय किया जाएगा कि मामले को खारिज करना है या नहीं।
सऊदी पुलिस ने किया पाकिस्तानी लोगों को गिरफ्तार
इससे पहले, सऊदी के शहर मदीना में पुलिस ने पुष्टि की थी कि पैगंबर की मस्जिद में गुरुवार की घटना के संबंध में पांच पाकिस्तानी नागरिकों को हिरासत में लिया गया था।
सऊदी प्रेस एजेंसी ने मदीना पुलिस के एक प्रवक्ता के हवाले से कहा कि सुरक्षा अधिकारियों ने पांच पाकिस्तानी नागरिकों को गिरफ्तार किया है, कानूनी कार्यवाही पूरी कर मामले को सक्षम अधिकारियों के पास भेजा जाएगा।
क्या हुआ था?
प्रधानमंत्री बनने के बाद शहबाज शरीफ अपनी कैबिनेट के मंत्रियों के साथ तीन दिवसीय दौरे पर सऊदी अरब गए थे। इस दौरान वो मदीना की मस्जिद-ए नबवी गए थे, जहां कथित तौर पर पाकिस्तान तहरीके इंसाफ (पीटीआई) के समर्थकों ने उन्हें घेरकर उनके खिलाफ नारेबाजी की।
इस वाकये से जुड़े कई वीडियो सोशल मीडिया पर पोस्ट किए गए हैं। वीडियो में सुना जा सकता है कि उनके खिलाफ लोग चोर-चोर के नारे लग रहे थे। वीडियो में नार्कोटिक्स मंत्री नवाब शाहजैन बुग्ती और मरियम नवाज के खिलाफ भी जमकर नारेबाजी की गई थी।
बड़ी संख्या में पीटीआई के नेताओं और समर्थकों ने सोशल मीडिया पर इस घटना का समर्थन किया, हालांकि अधिकांश लोगों ने इसकी निंदा की और पाकिस्तान में सोशल मीडिया पर राजनीति को लेकर लोगों के बीच बढ़ते मतभेद के बारे में चिंता व्यक्त की।
पाकिस्तान में ऐसा पहले भी हुआ है
ये इस तरह की पहली घटना नहीं है। इससे पहले अप्रैल में ही एक शाम अवामी नेशनल पार्टी के समर्थक और बैंकर जियाउल्लाह शाह ने पेशावर में इसी तरह की एक घटना के चश्मदीद बने।
अपनी कार की मरम्मत करते समय उन्होंने देखा कराची में पीटीआई की रैली का सीधा प्रसारण करने के लिए चारों तरफ बड़े-बड़े पर्दे लगाए गए थे। रात तक इन पर्दों के पास अच्छी-खासी भीड़ जमा हो गई और लोग डीजल-डीजल के नारे लगाने लगे।
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान इस शब्द का इस्तेमाल अपने विरोधी मौलाना फजलुर्रहमान पर निशाना साधने के लिए करते रहे हैं।
जियाउल्लाह शाह के अनुसार, कुछ देर में मौलाना फजलुर्रहमान के समर्थक भी वहां एकत्र हो गए और वो इमरान के खिलाफ यहूदी एजेंट के नारे लगाने लगे। स्थिति को देखकर डर लगने लगा था, ऐसा लग रहा था कि किसी भी वक्त हिंसा हो सकती है।
हालांकि देश के शीर्ष सैन्य और खुफिया नेतृत्व ने विदेशी साजिश से जुड़े किसी तरह के सबूत मिलने से इनकार किया था।
प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की अध्यक्षता में राष्ट्रीय सुरक्षा समिति की बैठक के बाद ऐलान किया गया कि उनकी जांच में विदेशी साजिश का ऐसा कोई सबूत नहीं मिला है, जिसका जिक्र बार-बार इमरान खान करते रहे हैं।
इसके बाद सुरक्षा एजेंसियों ने विदेशी साजिश का सबूत न मिलने की बात दोहराई। अमेरिका ने भी राष्ट्रीय सुरक्षा समिति के बयान का स्वागत किया था।
लेकिन इमरान खान के समर्थक बार-बार ये आरोप दोहरा रहे हैं। इमरान खान ने भी बेहद आक्रामक रुख अखतियार किया है। रैलियों और सोशल मीडिया पर वो मौजूदा सरकार को निशाने पर ले रहे हैं।
जब से इमरान खान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया गया है तब से सोशल मीडिया पर ऐसी खबरें साझा करने की घटनाएं बढ़ रही हैं। इससे ऐसा लगता है कि राजनीति को लेकर समाज में मतभेद गहरा हो रहा है और सोशल मीडिया पर इमरान खान के समर्थकों और आलोचकों के बीच भी चर्चा हो रही है।
जियाउल्लाह शाह कहते हैं कि इन दिनों पाकिस्तान में राजनीति की बात करने मुश्किल होता जा रहा है। वो कहते हैं, व्हाट्सऐप ग्रुप पर आपके परिचित आपसे दूर हो जाते हैं, वो ग्रुप छोड़ देते हैं या गाली-गलौच करते हैं।
इमरान खान सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव के सफल होने से पहले इमरान खान ने आरोप लगाया था कि उनके विरोधियों ने उनकी सरकार गिराने के लिए उनके खिलाफ कथित विदेशी साजिश की थी। इस दौरान वो गलती से अमेरिका का नाम भी ले बैठे थे। (bbc.com)
पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के राज्यपाल उमर सरफ़राज़ चीमा ने हमज़ा शहबाज़ को पंजाब के नए मुख्यमंत्री के रूप में मान्यता देने से इनकार कर दिया है.
हमज़ा शहबाज़ शरीफ़ ने शनिवार को पंजाब सूबे के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. वह सूबे के 21वें मुख्यमंत्री बने हैं.
शपथ लेने के बाद हमज़ा ने कहा कि देश का सबसे बड़ा प्रांत एक महीने से संवैधानिक संकट से जूझ रहा है.
लेकिन पंजाब के राज्यपाल के बयान के बाद यह संकट और गहराता नज़र आ रहा है.
पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के राज्यपाल उमर सरफ़राज़ चीमा ने ट्वीट किया है कि वह हमज़ा शहबाज़ को नए मुख्यमंत्री के रूप में मान्यता देने से इनकार करते हैं.
उन्होंने लिखा है, “मुझे इन मुख्यमंत्री पर विश्वास नहीं है. बतौर गवर्नर मैं किसी भी असंवैधानिक और झूठे मुख्यमंत्री की नियुक्ति के नोटिफ़िकेशन को मान्यता नहीं देता हूं. यह एक जाली नोटिफ़िकेशन तैयार करने की कोशिश है यह शपथ धमकाकर और धोखे से ली गयी है.”
उन्होंनेलिखा है कि हम उस क्रूरता को माफ़ नहीं करेंगे, जिससे पाकिस्तान को ठेस पहुंचाई जा रही है.देश सब कुछ देख रहा है, इतिहास में सब कुछ लिखा जा रहा है कि आज कौन किस भूमिका में है.
राज्यपाल चीमा ने हमज़ा के शपथ ग्रहण समारोह के लिए राजभवन के सुरक्षाकर्मियों को हटाकर सुरक्षा व्यवस्था अपने नियंत्रण में लेने को लेकर पुलिस की भी आलोचना की है.
चीमा ने मुख्य न्यायाधीश से अनुरोध किया कि वह पूरे मामले पर संज्ञान लें. (bbc.com)
अक्सर ऐसा देखा गया है कि जो लोग सुनसान इलाकों में जाते हैं, उन्हें वहां ऐसी चीजें नजर आ जाती हैं जो हैरान करने वाली होती हैं. फिर लोग इन चीजों को सोशल मीडिया पर शेयर करते हैं और इंटरनेट की दुनिया भी उन चीजों को देख दंग रह जाती है. हाल ही में ऐसा ही हुआ जब अमेरिका में एक शख्स, झील के किनारे टहलने गया था. उसे एक विचित्र जीव का कंकाल मिला जो करीब 2 फीट लंबा था.
मिरर वेबसाइट की रिपोर्ट के अनुसार इलिनॉइस के शिकागो में रहने वाले 55 साल के फ्रीलांस पत्रकार रॉबर्ट लॉएर्जेल ने हाल ही में मिशिगन झील के पास मॉनट्रोस बीच ड्यून्स के पास एक ऐसी चीज देखी कि उनके होश उड़ गए. रॉबर्ट ने बताया कि वो इस बीच पर अक्सर जाते रहते हैं. हाल ही में वो जब वहां थे तो उनकी नजर एक कंकाल पर गई जो सांप जैसा दिख रहा था.
विचित्र जीव को देख हैरान हुए लोग
रिपोर्ट के मुताबिक कंकाल की लंबाई 2 फीट से थोड़ी ज्यादा थी और वो यू के आकार में बीच पर पड़ा हुआ था. उसकी खोपड़ी इंसान की मुट्ठी से थोड़ी बड़ी थी जबकि कंकाल पर बची थोड़ी-बहुत चमड़ी भी सिकुड़ गई थी और खराब होने लगी थी. रॉबर्ट ने कहा कि उन्होंने पहली बार ऐसी कोई खौफनाक चीज देखी थी जिसे देखकर वो भी हैरत में पड़ गए. इसलिए उन्होंने तुरंत जीव की फोटो खींची और उसकी फोटो आईनेचरलिस्ट एप पर डाल दी. साथ में फेसबुक पर भी उन्होंने फोटो को शेयर किया.
फोटो पर लोगों ने दी टिप्पणी
फेसबुक पर तो लोग एलियन से लेकर सी मॉन्स्टर तक सब बताने लगे मगर एक शख्स ने समझदारी वाला जवाब देते हुए लिखा कि वो कैटफिश का कंकाल लग रहा है. दूसरी ओर आईनेचरलिस्ट एप पर लोगों ने अंदाजा लगाया कि वो एक बर्बॉट फिश है जिसे कैटफिश और ईल का क्रॉस माना जाता है. आपको बता दें कि ये मछली ब्रिटेन में विलुप्त हो चुकी है और आखिरी बार ब्रिटेन के पानी में 1969 में देखी गई थी. अमेरिका में ये मछली दिखना भी लोगों को हैरानी में डाल रहा है. हालांकि, लोगों ने दावा किया कि उस दौरान लेक मिशिगन में, उस इलाके के पास ये मछली नहीं देखी गई थी. ये वहां से 80 मील दूर अमेरिका के दूसरे राज्य में देखी गई थी.
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने शनिवार को बताया कि विदेशी मुद्रा विनिमय क़ानून के उल्लंघन के आरोप में स्मार्टफ़ोन बनाने वाली चीनी कंपनी शाओमी के 5,551 करोड़ रुपये से ज़्यादा रकम के फंड ज़ब्त कर लिए गए हैं.
समाचार एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, ईडी की ये कार्रवाई शाओमी इंडिया टेक्नोलॉजी इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के ख़िलाफ़ की गई है. इसे शाओमी इंडिया के नाम से भी जाना जाता है.
भारत के बाज़ार में शाओमी इंडिया एमआई ब्रैंड से मोबाइल फोन का वितरण और व्यापार करती है.
ईडी की ओर से जारी बयान में कहा गया है, "शाओमी इंडिया चीन की कंपनी शाओमी समूह की पूर्ण स्वामित्व वाली सब्सिडियरी है. कंपनी के बैंक खातों में जमा 5,551.27 करोड़ रुपये की रकम प्रवर्तन निदेशालय ने ज़ब्त कर ली है."
कंपनी ने फरवरी में कथित तौर पर अवैध तरीके से बाहर पैसे भेजे थे जिसे लेकर ईडी ने जांच की और इसके बाद फॉरेन एक्सचेंज मैनेजमेंट ऐक्ट (फ़ेमा क़ानून) के संबंधित प्रावधानों के तहत ज़ब्ती की ये कार्रवाई की गई है.
शाओमी ने साल 2014 में भारत में अपना कारोबार शुरू किया था और उसके अगले साल से ही बाहर पैसे भेजने का सिलसिला शुरू हो गया था.
ईडी के बयान में कहा गया है, "शाओमी इंडिया ने रॉयल्टी के नाम पर तीन विदेशी कंपनियों को जिनमें एक शाओमी समूह की भी कंपनी है, 5,551.27 करोड़ रुपये के बराबर की विदेशी मुद्रा भेजी थी. रॉयल्टी के नाम पर इतनी बड़ी रकम का भुगतान चीन में मौजूद पैरंट कंपनी के निर्देशों के अनुसार किया गया था."
शाओमी इंडिया से पैसा पाने वाली दो अमेरिकी कंपनियां भी हैं जिनका इस समूह से कोई सीधा संबंध नहीं है. ईडी के बयान के अनुसार, शाओमी इंडिया भारत में मोबाइल फोन बनाती है और उसने इन तीन में किसी कंपनी से कोई सर्विस नहीं ली थी जिसके एवज में उन्हें इतनी बड़ी रकम का ट्रांसफर किया गया है. (bbc.com)
ब्रिटेन की विपक्षी लेबर पार्टी की सांसद नाडिया व्हाइटोम ने गुरुवार को ब्रिटिश संसद में प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन की हालिया भारत यात्रा पर सवाल उठाते हुए कहा कि क्या बुलडोज़र के साथ फोटो खिंचवाकर पीएम जॉनसन ने भारत की बीजेपी सरकार के बुलडोज़र का इस्तेमाल कर मुस्लिमों के घर ढहाने के क़दम को वैध ठहराने की कोशिश की.
नाडिया व्हाइटोम ने संसद में कहा, ''प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन हाल में भारत दौरे के दौरान जेसीबी पर चढ़ कर फोटो खिंचवाते हैं. जबकि उससे कुछ दिन पहले जेसीबी का इस्तेमाल करके बीजेपी सरकार ने कई मुस्लिमों की दुकान और घर ढहाए. भारत के कई राज्यों में भी सरकारों ने बुलडोज़र का इस्तेमाल करके ऐसे ही मुसलमानों की संपत्तियों और घरों को निशाना बनाया है. मैं प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन से पूछती हूं कि क्या उन्होंने पीएम मोदी से ये सवाल पूछा और अगर नहीं पूछा तो क्यों?"
उन्होंने आगे कहा, ''साथ ही पीएम जॉनसन ऐसा करके क्या भारत की अति-दक्षिणपंथी सरकार की बुलडोज़र कार्रवाई को जायज़ ठहरा रहे हैं?''
इसके बाद जहांगीरपुरी में ही बीजेपी शासित दिल्ली नगर निगम ने 'अवैध निर्माण' के ख़िलाफ़ 'अतिक्रमण हटाओ अभियान' चलाया. इस 'अभियान' में बुलडोज़र का इस्तेमाल किया गया. हालांकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ये कार्रवाई रोक दी गई.
इससे पहले भी बीजेपी शासित मध्य प्रदेश में सांप्रदायिक झड़प हुई थी और यहाँ भी प्रशासन ने बिना दोषी साबित हुए अभियुक्तों के घरों पर बुलडोज़र चलाया था. यूपी में भी 'अपराधियों' के घरों पर बुलडोज़र चलाने के मामले ख़बरों में सामने आते रहे हैं.
बोरिस जॉनसन ने अपने दौरे के दौरान, गुजरात में वडोदरा के पास हलोल इंडस्ट्रियल इलाक़े में एक जेसीबी फैक्ट्री का उद्घाटन किया था. जहां उन्होंने जेसीबी पर चढ़ कर तस्वीर खिंचवाई.
इससे पहले लेबर पार्टी की सांसद नाज़ शाह ने भी ब्रिटिश पीएम बोरिस जॉनसन के भारत दौरे को लेकर कई सवाल पूछे हैं.
नाज़ शाह ने ट्वीट कर कहा है, "भारत दौरे पर गए बोरिस जॉनसन के लिए मेरा संदेश है कि हमारे मुल्क की विदेश नीति केवल व्यापार और अंतरराष्ट्रीयवाद पर आधारित नहीं होनी चाहिए बल्कि मानाधिकार भी अहम है."
"मेरा अनुरोध है कि ब्रिटिश सरकार पीएम मोदी के सामने इस्लामोफ़ोबिया का मुद्दा भी उठाए. ब्रिटिश सरकार दुनिया भर में मानवाधिकारों की वकालत करती है, ऐसे में भारत में मुसलमानों के ख़िलाफ़ बढ़ती नफ़रत पर चुप नहीं रह सकती है."
भारत में भी उठे थे सवाल
जेसीबी के जिस नए प्लांट का ब्रिटिश पीएम ने उद्घाटन किया वह ब्रिटेन की ही कंपनी जोसेफ़ सिरील बैमफ़र्ड एक्स्कवेटर लिमिटेड है. भारत के राजनीतिक टिप्पणीकारों ने भी बोरिस जॉनसन के जेसीबी फैक्ट्री के उद्घाटन पर सवाल खड़े किए थे.
लोगों ने कहा कि जिस जेसीबी प्लांट का ब्रिटिश पीएम उद्घाटन कर रहे हैं, उसी से दिल्ली के जहाँगीरपुरी में मुसलमानों की संपत्तियों को निशाना बनाया गया.
सोशल मीडिया पर लोगों ने जेसीबी की तोड़फोड़ की तस्वीरें पोस्ट की हैं और उसमें कंपनी के लोगो को प्रमुखता से चिह्नित किया गया है. बुलडोज़र की तोड़फोड़ के साथ लोगों के रोते चेहरे भी इन तस्वीरो में हैं.
हार्डन्यूज़ मैगज़ीन के संपादक संजय कपूर ने ट्वीट कर लिखा है, "ग़ज़ब की विडंबना है! ब्रिटिश पीएम बोरिस जॉनसन हलोल में बुलडोज़र बनाने के प्लांट का उद्घाटन करेंगे जबकि सुप्रीम कोर्ट प्रशासन की ओर से बुलडोज़र के इस्तेमाल पर संवैधानिक हदों का संज्ञान ले रहा है."
पत्रकार दानिश ख़ान ने लिखा है, "दिल्ली में इस तरह की कई तस्वीरें सामने आ रही हैं. दिलचस्प है कि इन्हीं तस्वीरों के बीच ब्रिटिश पीएम गुजरात में जेसीबी प्लांट का उद्घाटन करेंगे."
एमनेस्टी इंडिया ने अपने ट्वीट में कहा है, "एक ओर उत्तर-पश्चिमी दिल्ली के जहाँगीरपुरी में मुसलमानों के घर और दुकान जेसीबी बुलडोज़र से तोड़े गए तो दूसरी तरफ़ ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ने गुजरात में एक जेसीबी फैक्ट्री का उद्घाटन किया. यह ने केवल उपेक्षा है बल्कि एक अहम घटना पर उनकी चुप्पी भी है."
एमनेस्टी ने कहा है, "भारतीय प्रशासन हर दिन मानवाधिकारों का उल्लंघन कर रहा है. ब्रिटेन की सरकार को तमाशबीन नहीं बने रहना चाहिए. ब्रिटिश पीएम को भारत में मानवाधिकारों पर भी बात करनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट की रोक के बावजूद तोड़फोड़ जारी रही. यहाँ तक कि जहाँगीरपुरी में लोगों को अपनी संपत्तियां हटाने का भी समय नहीं दिया गया. यह जीविका के अधिकार पर हमला है."
ब्रॉउन यूनिवर्सिटी से पीएचडी कर रहे भानू जोशी ने दिल्ली में तोड़फोड़ के लिए अवैध निर्माण के तर्क को ख़ारिज करते हुए लिखा है, "दिल्ली में अनाधिकृत क्या है? दिल्ली सरकार के डेटा के अनुसार, केवल 23 फ़ीसदी ही सुनियोजित कॉलोनी हैं. 77 फ़ीसदी अनाधिकृत हैं. क्या बाक़ी के दो नगर निगम 75 फ़ीसदी पर भी बुलडोज़र चलाएंगे?"
बोरिस जॉनसन ने क्या कहा?
बोरिस जॉनसन ने गुजरात दौरे पर ब्रिटेन की मीडिया से बातचीत में कहा था कि वह पीएम मोदी के सामने प्रेस पर पाबंदी, अप्लसंख्यकों की सुरक्षा मुख्य रूप से मुसलमानों के घरों को बुलडोज़र से नष्ट करने का मुद्दा उठाएंगे.
ब्रिटिश पीएम ने कहा, "हमने हमेशा मुश्किल मुद्दे उठाए हैं और ज़ाहिर है हम ऐसा करते हैं लेकिन यह तथ्य है कि भारत 1.35 अरब लोगों का देश है और यह लोकतांत्रिक है. भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है."
बोरिस जॉनसन के प्रवक्ता ने बुलडोज़र के इस्तेमाल को लेकर उठ रहे सवालों पर कहा है, "यह भारत पर निर्भर करता है कि वह किस उपकरण का इस्तेमाल कैसे करता है."
हिंदू राष्ट्रवाद पर बोरिस जॉनसन ने क्या कहा था
ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से द्विपक्षीय मुलाक़ात के बाद एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस की गई और इस दौरान जॉनसन से 'भारत में बढ़ते हिंदू राष्ट्रवाद और मानवाधिकारों के उल्लंघन' से जुड़ा सवाल पूछा गया जिस पर उन्होंने कहा कि भारत एक महान लोकतंत्र है और यहां लोगों के पास संवैधानिक सुरक्षा है.
उन्होंने कहा, ''हम मानवाधिकारों और लोकतांत्रिक मूल्यों के सवालों पर बेशक बातचीत करते हैं, हमारी दोस्ती का फ़ायदा यह है कि हम ये बातें कर सकते हैं, और हम इस मुद्दे पर बात एक दोस्ताना और निजी तरीके से करते हैं.''
"यह समझना बहुत महत्वपूर्ण है कि भारत में सभी समुदायों के लिए संवैधानिक सुरक्षा है, भारत दुनियाभर के कई देशों में चलने वाले निरंकुशता के शासन से बहुत अलग है. भारत यह एक महान लोकतंत्र है, लगभग 1.35 अरब लोग इस लोकतंत्र में रहते हैं और हमें इसका जश्न मनाना चाहिए." (bbc.com)
सियोल, 30 अप्रैल ।(एपी) उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन ने एक बार फिर चेतावनी दी है कि अगर उनके देश को धमकी दी गई, तो वह अपने परमाणु हथियारों का इस्तेमाल पहले कर सकते हैं।
उत्तर कोरिया की आधिकारिक कोरियन सेंट्रल न्यूज एजेंसी (केसीएनए) ने शनिवार को यह जानकारी दी। किम ने राजधानी प्योंगयांग में इस सप्ताह एक विशाल सैन्य परेड के आयोजन को लेकर अपने शीर्ष सैन्य अधिकारियों की प्रशंसा भी की है।
किम ने उत्तर कोरिया की सेना को परमाणु हथियारों से लैस करने के प्रयासों को जारी रखने को लेकर दृढ़ इच्छाशक्ति व्यक्त की है। किम ने कहा कि यह शत्रु देशों से लगातार बढ़ते परमाणु खतरों के मद्देनजर आवश्यक है।
केसीएनए के मुताबिक किम ने सोमवार को आयोजित परेड में सैन्य अधिकारियों के काम की प्रशंसा करने के लिए उन्हें आमंत्रित किया था।
उत्तर कोरिया ने इस विशाल सैन्य परेड में अपनी सेना के परमाणु कार्यक्रम के अंतर्गत सबसे शक्तिशाली हथियारों का प्रदर्शन किया। परेड में अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइलें भी प्रदर्शित की गयीं। इस परेड का आयोजन उत्तर कोरिया की सेना की 90वीं वर्षगांठ के मौके पर किया गया था।
-लीस डुसेट
अफ़ग़ानिस्तान सेना के एक पूर्व जनरल ने कहा है कि उनके समेत कई पूर्व सैनिक और नेता तालिबान के ख़िलाफ़ नई जंग छेड़ने की तैयारी कर रहे हैं.
लेफ़्टिनेंट जनरल सामी सादात ने कहा है कि तालिबान शासन के आठ महीनों के दौरान अफ़ग़ानिस्तान के तमाम लोग ये मानने लगे हैं कि सैन्य कार्रवाई आगे बढ़ने का इकलौता रास्ता है.
उन्होंने कहा कि अगले महीने ईद के बाद ऑपरेशन शुरू हो सकता है. उनकी भी तभी अफ़ग़ानिस्तान लौटने की योजना है.
तालिबान ने बीते साल अगस्त में अफ़ग़ानिस्तान पर कब्ज़ा कर लिया था.
अमेरिका की अगुवाई वाली सेना की करीब 20 साल बाद देश से विदाई के साथ तालिबान ने सिर्फ़ 10 दिन के अंदर अधिकार जमा लिया.
'लड़ाई रहेगी जारी'
अपनी योजना के बारे में पहली बार बात करते हुए लेफ़्टिनेंट जनरल सादात ने बीबीसी को बताया कि वो और अन्य लोग "अफ़ग़ानिस्तान को तालिबान से आज़ाद कराने और लोकतांत्रिक व्यवस्था दोबारा कायम करने के लिए अपनी ताक़त के मुताबिक सबकुछ करेंगे."
उन्होंने आगे कहा, "जब तक हमें आज़ादी नहीं मिलती, जब तक हमारे इरादे कामयाब नहीं होते, हम लड़ाई जारी रखेंगे."
अफ़ग़ानिस्तान की सेना के पूर्व जनरल ने इस तरफ भी ध्यान दिलाया कि तालिबान ने किस तरह से दोबारा कड़े नियम क़ानून लागू कर दिए हैं. इनमें महिलाओं और लड़कियों पर कड़ी पाबंदियां लगानी शामिल हैं. उन्होंने कहा कि अब वक़्त आ गया है कि उनकी मनमानी को रोका जाए और एक नए अध्याय की शुरुआत की जाए.
उन्होंने कहा, " हमने अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के आठ महीने के शासनकाल में देखा कि धार्मिक आधार पर ज़्यादा पाबंदियां लगाई गईं. राजनीतिक मकसद के लिए पवित्र कुरान में लिखी बातों का ग़लत तरीके से उद्धरण दिया गया, गलत व्याख्या की गई और ग़लत तरीके से इस्तेमाल किया गया."
उनके मुताबिक ये देखने के लिए क्या तालिबान बदलते हैं, उनका इरादा उन्हें 12 महीने का वक़्त देने का था. उन्होंने कहा, " दुर्भाग्य से आप हर दिन सुबह उठकर देखते हैं कि तालिबान के पास नया करने के लिए कुछ है. मसलन लोगों का उत्पीड़न, हत्याएं, खाने पीने की सामान की कमी और कुपोषण का शिकार बच्चे. "
लेफ़्टिनेंट जनरल सादात ने कहा कि उन्हें हर दिन अफ़ग़ानिस्तान के लोगों से हज़ारों संदेश मिलते हैं जिनमें लोग जानना चाहते हैं कि वो इसे लेकर क्या करने वाले हैं?
लेकिन, 40 साल से ज़्यादा वक़त से संघर्ष का सामना कर रहे देश के कई लोग जंग से उकता चुके हैं. वो देश छोड़ने को बेताब हैं या फिर ग़हरे आर्थिक संकट के बीच गुजर बसर के लिए संघर्ष में जुटे हैं.
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक अफ़ग़ानिस्तान एक ऐसा देश है जो 'थकान से जूझ रहा है' और यहां लाखों लोग भुखमरी की कगार पर हैं.
तालिबान के ख़िलाफ़ नाटों की जंग के झटके झेलते रहे कई ग्रामीण इलाकों में अभी के अपेक्षाकृत शांत माहौल का स्वागत किया जा रहा है. आज अमेरिकी और अफ़ग़ानिस्तान के लड़ाकू विमान आसमान में दिखाई नहीं देते हैं और तालिबान के हमले थम गए हैं.
तालिबान के आक्रामक अभियान के आखिरी महीनों के दौरान लेफ़्टिनेंट जनरल सादात दक्षिण राज्य हेलमंद में अफ़ग़ानिस्तान सेना के कमांडर थे. आरोप है कि उन्होंने जो हमले का आदेश दिया था, उनमें आम नागरिकों की जान गई. इस बारे में पूछने पर उन्होंने आरोपों से इनकार किया.
बीते साल अगस्त में उन्हें अफ़ग़ान स्पेशल फोर्सेज़ का प्रमुख नियुक्त किया गया. तालिबान जिस दाखिल हुए और उनके कमांडर इन चीफ़ राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी देश छोड़कर चले गए, उसी दिन वो काबुल आए थे.
एक और युद्ध शुरू करने के अलावा भी कोई विकल्प है, ये पूछने पर लेफ़्टिनेंट जनरल सादात ने कहा कि उन्हें उम्मीद थी कि नरम तालिबान नई सरकार का हिस्सा हो सकते हैं.
उन्होंने कहा, "हम तालिबान के ख़िलाफ़ नहीं हैं." हम उनकी मौजूदा 'टेक्स्ट बुक' के ख़िलाफ हैं. लेफ़्टिनेंट जनरल सादात की नज़र में अफ़ग़ानिस्तान ऐसी जगह है, "जो सब के लिए है. ये सिर्फ़ तालिबान का देश नहीं है."
लीक हुआ ऑडियो
हालिया हफ़्तों के दौरान एक ऑडियो संदेश मीडिया में लीक हो गया था. इनमें लेफ़्टिनेंट जनरल सादात अफ़ग़ानिस्तान को 'फिर से आज़ाद' कराने के मक़सद से सशस्त्र संघर्ष की बात कर रहे थे.
अतीत में तालिबान समेत सशस्त्र समूहों ने पड़ोसी देशों की मदद और विदेशी फंडिग के दम पर अफ़ग़ानिस्तान में जंग जीती हैं.
अभी ये साफ़ नहीं है कि लेफ़्टिनेंट जनरल सादात के सहयोगी और अस्तित्व में आ रहे तमाम अन्य सशस्त्र समूहों के पास ऐसे कोई संसाधन हैं.
तालिबान को बाहर करने के लिए मक़सद से कई समूह एकजुट हो रहे हैं लेकिन वो नस्लीय आधार पर बंटे हुए हैं और उनकी निष्ठाएं परस्पर विरोधी कमांडरों के साथ है.
लेफ़्टिनेंट जनरल सादात ने बताया कि वो एक प्रमुख समूह नेशनल ररिस्टेंस फ्रंट (एनआरएफ़) के संपर्क में हैं. इसकी अगुवाई अहमद मसूद कर रहे हैं. वो एक वक्त चर्चित रहे, दिवंगत कमांडर अहमद शाह मसूद के बेटे हैं.
लीक हुए मैसेज में उन्हें कहते सुना गया, "मैं अपने भाई अहमद मसूद के संपर्क में हूं और हम उनके कदम का हर हाल में समर्थन करते हैं. मैं दूसरे प्रतिरोधी समूहों के भी संपर्क में हूं. "
उन्होंने बीबीसी को बताया कि उनकी जंग एक ऐसी बग़ावत है जिसके लिए अफ़ग़ानिस्तान के देशभक्त लोग धन मुहैया करा रहे हैं. लेफ़्टिनेंट जनरल सादात ने कहा कि विदेश में उनका कोई मददगार नहीं है और वो ऐसी किसी मदद की तलाश में भी नहीं हैं. वो 37 साल के हैं और सबसे युवा जनरल रहे हैं. उन्होंने लंदन और कई पश्चिमी देशों की सैन्य अकादमियों में पढ़ाई की है.
लेकिन वो कहते हैं कि अफ़ग़ानिस्तान के भ्रष्ट नेताओं और अमेरिकी नीतियों की वजह से उन्हें नीचा देखना पड़ा.
लेफ़्टिनेंट जनरल सादात की राय है कि अमेरिकी सेना अफ़ग़ानिस्तान से जिस अस्त व्यस्त तरीके से वापसी हुई, उसने अमेरिका की कमज़ोरी उजागर की और यही रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के यूक्रेन पर हमले की वजह बना.
अमेरिका की अगुवाई वाली सेना की अफ़ग़ानिस्तान से जिस अंदाज़ में वापसी हुई, तब उसकी बड़े स्तर पर आलोचना हुई थी. ये सवाल भी पूछे गए कि तालिबान ऐसी रफ़्तार में देश पर कब्ज़ा करने में कैसे कामयाब हो गए.
लेफ़्टिनेंट जनरल सादात ने कहा कि ये अफ़ग़ानिस्तान के लिए बुरी स्थिति थी. उन्होंने इसके लिए नेटो देशों के नेताओं को दोषी बताया. उनके मुताबिक सबसे बड़े दोषी अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन हैं. वो पश्चिमी देशों को सैन्य कमांडरों को दोषी नहीं मानते. वो बताते हैं कि सैन्य कमांडरों में से कई एक अभी उनके संपर्क में हैं.
उन्होंने कहा, " ये ऐसा अंत नहीं था, जिस पर हम गर्व करें या हमें उसे लेकर खुशी हो. "
यूक्रेन ने जिस तरह प्रतिरोध की क्षमता दिखाई है, उन्होंने उसकी तारीफ़ की और कहा कि नाटो एक दिन उन्हें भी नीचा दिखा सकता है.
उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि वो अच्छी तरह से अपना किला बचा रहे हैं लेकिन मैं उन्हें बताना चाहता हूं कि वो ख़ुद में ज़्यादा भरोसा रखें क्योंकि नेटो और दूसरे देशों की ओर से मिलने वाला समर्थन एक दिन थम सकता है."
उन्होंने कहा, "मुझे उम्मीद है कि जब तक उन्हें ज़रूरत है, तब तक मदद मिलती रहेगी." (bbc.com)
कोरोना महामारी के बाद चीन से पढ़ाई छोड़कर स्वदेश लौटने वाले भारतीय छात्र-छात्राओं की वापसी की चीन ने इच्छा ज़ाहिर की है.
चीन की राजधानी बीजिंग स्थित भारतीय दूतावास ने शुक्रवार को बताया है कि वहाँ लौटने को तैयार छात्र 8 मई तक गूगल फ़ॉर्म में ज़रूरी सभी सूचनाएँ भरकर जमा करें.
भारतीय दूतावास की ओर से ट्विटर पर जारी एक बयान में ये जानकारी दी गई है.
इस बयान में कहा गया कि इस साल 25 मार्च को दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच मुलाक़ात हुई थी. इसमें चीन ने कहा था कि वो हर छात्र की ज़रूरत पर विचार करके भारतीय छात्रों की वापसी के लिए प्रयास करने को तैयार है.
भारतीय दूतावास ने कहा है कि इसके लिए ऐसे छात्रों की एक सूची बनाने की योजना है. उसके बाद इस सूची को चीन से साझा किया जाएगा, ताकि चीन उस पर विचार करे.
इसलिए भारत के छात्र ज़रूरी सूचनाएँ 'गूगल फ़ॉर्म' के एक लिंक को क्लिक करके अपनी सूचनाएँ दे सकते हैं.
इसमें बताया गया कि जब ये सूचनाएं चीन से साझा होंगी, तब चीन संबंधित विभाग से संपर्क करके इस सूची को वेरिफ़ाई करेगा. उसके बाद निश्चित समय के भीतर तय किया जाएगा कि छात्र अपना कोर्स पूरा करने के लिए चीन आएँगे या नहीं.
हालाँकि सभी छात्रों को कोरोना के तय दिशानिर्देशों का पालन करना ज़रूरी होगा. (bbc.com)
-रियाज़ सुहैल
पाकिस्तान में बलूचिस्तान प्रांत के प्रमुख शहर तुर्बत से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर स्थित कलातक ही वह शहर है, जहाँ कराची में आत्मघाती हमला करने वाली शारी बलोच अपनी शादी के बाद 10 साल पहले शिफ़्ट हुई थीं.
इसी शहर के प्राइमरी स्कूल में शारी ने अपनी पहली नौकरी की थी और आज भी मुख्य सड़क के किनारे स्कूल की इमारत के चारों ओर "आज़ादी का एक ही ढंग, गुरिल्ला जंग" जैसे नारे लाल रंग में लिखे हुए देखे जा सकते हैं.
शारी बलोच की पहचान उनके संगठन बलोच लिबरेशन आर्मी के मजीद ब्रिगेड ने एक आत्मघाती हमलावर के रूप में उस समय की थी, जब पुलिस ने सीसीटीवी फ़ुटेज की मदद से पता लगाया कि विस्फ़ोट की जगह पर एक महिला भी मौजूद थी.
कराची में शारी बलोच के ठिकाने की पहचान करने के लिए सिंध पुलिस अभियान चला रही है, लेकिन बीबीसी उर्दू की टीम ने उनके इलाक़े कलातक का दौरा किया और इस ऑपरेशन के बाद वहाँ की स्थिति का पता लगाने की कोशिश की.
तुर्बत शहर से कलातक पहुँचने के बाद जब एक राहगीर से स्कूल का पता पूछा तो उसने कहा, "कौन सा गर्ल्स स्कूल?" हमने कहा कि जिस में शारी पढ़ाती थी, तो उसने एक बिल्डिंग की तरफ़ इशारा कर दिया.
छह कमरों वाले इस स्कूल को देखकर लगाता है कि हाल ही में इसकी मरम्मत और पुताई की गई है. इसके बाहर यूरोपीय संघ और बलूचिस्तान सरकार का एक संयुक्त बोर्ड लगा हुआ है.
हमें स्कूल की तलाश इसलिए भी थी क्योंकि शारी बलोच की एक दोस्त ने स्कूल की इमारत के बाहर बीबीसी से मिलने और बात करने के लिए बुलाया था.
हम इमारत के बाहर रुक कर शारी की दोस्त का इंतज़ार करने लगे लेकिन जल्द ही उस महिला ने बताया कि उनके भाई ने उन्हें वहाँ आने की इजाज़त नहीं दी, इसलिए वह नहीं आ सकती हैं.
यह जवाब मिलने के बाद हम वापस तुर्बत चले गए और शारी का घर तलाश करने लगे. हमें बताया गया कि शारी बलोच के पिता हयात बलोच का घर तुर्बत शहर की ओवरसीज़ कॉलोनी में स्थित है और हयात बलोच तुर्बत यूनिवर्सिटी के रिटायर्ड रजिस्ट्रार हैं. इससे पहले योजना एवं विकास विभाग में भी काम कर चुके हैं.
तलाश करते करते जब हम उस घर तक पहुँचे तो देखा कि सरकारी नंबर प्लेट वाली कुछ गाड़ियां पहले से ही गली में मौजूद हैं.
बंगलानुमा घर के आंगन में क़रीब एक दर्जन लोग मौजूद थे जबकि अंदर के कमरे में इससे भी ज़्यादा लोग बैठे थे. लेकिन हैरानी की बात यह है कि वहाँ इस घटना के बारे में कोई बात नहीं हो रही थी.
ये लोग हयात बलोच से अपना दुख जताने आए थे. चूंकि अभी तक तद्फ़ीन (अंत्येष्टि) नहीं हुई थी, इसलिए फ़ातेहा ख़्वानी नहीं हो रही थी. यहीं हमें पता चला कि कुछ रिश्तेदार शारी का शव लेने कराची गए हुए थे.
मैंने शारी के पिता हयात बलोच से पूछा कि उन्हें इस घटना के बारे में कब पता चला. इसके जवाब में उन्होंने कहा कि मंगलवार को चार, साढ़े चार बजे के क़रीब टीवी और सोशल मीडिया पर ये ख़बर आने के बाद उन्हें इस बात का पता चला. तभी से वह सदमे में हैं.
हयात बलोच का कहना था कि शारी डेढ़ महीने पहले एक शादी में शामिल होने के लिए तुर्बत आई थी. आख़िरी बार वह अपनी बेटी से कुछ हफ्ते पहले कराची में मिले थे, उस समय शारी ने कहा था कि वह जल्द ही तुर्बत आएंगी. वह तो नहीं आई, लेकिन यह ख़बर आ गई.
हयात बलोच के 10 बच्चे हैं और उनमें 31 वर्षीय शारी छठे नंबर पर थीं. उनके अनुसार, शारी ने क्वेटा यूनिवर्सिटी से एमएससी जूलॉजी किया था जिसके बाद वह प्राइमरी और सेकंडरी स्कूल टीचर रहीं और इसी दौरान उन्होंने अल्लामा इक़बाल यूनिवर्सिटी से बी.एड और एम.एड भी किया.
शारी की तरह, हयात बलोच के अन्य बच्चों ने भी उच्च शिक्षा हासिल की है और उनमें से ज़्यादातर सरकारी पदों पर हैं. शारी के पति हेबातन बशीर भी एक डॉक्टर हैं जबकि उनका एक देवर जज, एक असिस्टेंट ट्रेज़री ऑफ़िसर और दो यूनिवर्सिटी में शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े हुए हैं.
हयात बलोच ने बताया कि शारी के पति उनके पड़ोस में ही रहते थे, उनके साथ शादी करने के बाद वह कलातक चली गई थी और वहाँ से वह डेढ़ साल पहले कराची शिफ़्ट हो गई थी.
हयात बलोच के मुताबिक़, शारी के पति कराची में अमेरिकी डिवेलपमेंट एजेंसी में काम करते हैं. शारी ने कराची यूनिवर्सिटी से एम.फिल करने वाली थी लेकिन अभी तक एडमिशन नहीं लिया था.
शारी के पिता के घर पर उनके रिश्तेदार इस घटना के बाद शारी के बच्चों के बारे में चिंतित दिखाई दिए, क्योंकि उनका दोनों बच्चों और शारी के पति डॉक्टर हेबतान बशीर से कोई संपर्क नहीं था.
हमले के लगभग 10 घंटे बाद, शारी के पति हेबतान ने शारी और बच्चों के साथ अपनी एक तस्वीर शेयर की जिसमे उन्होंने विक्ट्री का निशान बनाया हुआ है. इस तस्वीर के साथ अपने मैसेज में उन्होंने अपनी पत्नी के इस क़दम की तारीफ़ भी की थी.
बलोच लिबरेशन आर्मी की ओर से भी बीबीसी को भेजे गए एक संदेश में यह दावा किया गया है कि शारी बलोच ने अपने पति से सलाह-मशवरे करने के बाद, पूरे होश हवास में इस हमले को अंजाम देने का फ़ैसला किया था. हालांकि अभी तक सरकारी स्तर पर इस घटना की जांच में न तो हेबातान को शामिल करने की कोई बात सामने आई है और न ही शारी बलोच के परिवार की तरफ़ से कोई पुष्टि की गई है.
शारी के पिता से मिलने से पहले, हम उनके बड़े चाचा ग़नी परवाज़ के घर भी गए, जो बलोच भाषा के लेखक, मानवाधिकार आयोग के एक वरिष्ठ कार्यकर्ता हैं और अपनी युवावस्था में राजनीतिक रूप से भी सक्रिय रहे हैं.
उनका कहना था, कि "हम शारी के बारे में ऐसा कभी सोच भी नहीं सकते थे, बल्कि हम तो हैरान हैं. उस रात जब मैं कमरे में बैठकर बच्चों से बातें कर रहा था, तो अचानक एक बच्चे ने कहा कि ऐसा हो गया है.
बार-बार वो तस्वीरें देखी गईं, नाम देखा गया, मैंने कहा कि देखो ये सच में हमारी शारी है, फिर हम रात को उनके घर गए. उनके पिता और परिवार के अन्य सदस्य भी यक़ीन नहीं कर रहे थे, लेकिन यक़ीन करना पड़ा कि सच में ऐसा हुआ है. अभी भी ऐसा लगता है जैसे यह कोई बुरा सपना है."
ग़नी परवाज़ के अनुसार, उन्होंने इस घटना के बाद शारी के भाई-बहनों से यह पता लगाने की कोशिश की थी कि क्या उन्हें शारी के उग्रवाद के प्रति झुकाव के बारे में पता था. उन्होंने कहा कि "राष्ट्रवादी राजनीति में उसकी रुचि थी और वह राजनीति के बारे में बात करती रहती थीं."
हालांकि, ख़ुद ग़नी परवाज़ का कहना हैं कि जब भी वह अपनी भतीजी से बात करते थे, तो विषय दर्शनशास्त्र होता था, राजनीति नहीं और शारी उनसे दार्शनशास्त्र से जुड़े सवाल पूछती थी और उनसे दर्शनशास्त्र के बारे में किताबें भी ले जाती थी.
अपने भाई के इस दावे के विपरीत, शारी के पिता का कहना है कि जब वह बलूचिस्तान यूनिवर्सिटी में थीं, तो उस समय उसने (शारी ने) राजनीति में भाग लेना शुरू किया था. "शारी ने साल 2012 में मास्टर्स किया था, लगभग चार साल तक राजनीति की, तुर्बत से ही वह बीएसओ में शामिल हो गई थी. वह बीएसओ की पत्रिका 'आज़ाद' में लिखती भी थी.
सोशल नेटवर्किंग साइट ट्विटर पर सक्रिय बीएसओ की केंद्रीय समिति के पूर्व सदस्य प्रधान बलोच का कहना है कि जब बीएसओ आज़ाद और उग्रवादी संगठनों ने साल 2013 में चुनावों का बहिष्कार किया था, तो शारी ने उन दिनों क्वेटा में निकाली गई रैली में भी भाग लिया था.
प्रधान बलोच ने यह भी कहा कि हाई स्कूल के दिनों से ही उनकी राजनीतिक साहित्य पढ़ने में रुचि थी.
शारी बलूचिस्तान के मकरान क्षेत्र से थीं और पसनी, ओरमारा, जीवानी, ग्वादर, तुर्बत, पंजगुर, तम्प और मंड के इस क्षेत्र को सरदारी के प्रभाव से आज़ाद क्षेत्र माना जाता है जहां पुरुषों और महिलाओं की साक्षरता दर अन्य क्षेत्रों की तुलना में अधिक है. सार्वजनिक और निजी क्षेत्र में यहां के युवाओं की मौजूदगी भी स्पष्ट है. इतना ही नहीं, बल्कि राजनीतिक रूप से भी यह क्षेत्र राष्ट्रवादी और वर्ग संघर्ष में सबसे आगे रहा है.
शारी बलोच के इस चरमपंथी क़दम ने जहां उनके परिवार को अनिश्चितता और चिंतित कर दिया है, वहीं यह बहस भी जन्म ले रही है कि इस आतंकवादी घटना के बलूचिस्तान से बाहर यूनिवर्सिटियों में पढ़ने वाले बलोच छात्रों के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ सकते हैं.
कुछ बलोच छात्रों ने सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर हमले की निंदा करते हुए इस बारे में भी बात की. शारी को संबोधित करते हुए क़ुलसुम बलोच ने लिखा, कि "आपने आम छात्रों के फलने फूलने की जगह को तबाह कर दिया है! आपने उस स्पेस को भी बर्बाद कर दिया जिसके लिए वर्षों का निवेश किया गया था."
"बेगुनाहों को मारने में कोई शान नहीं है. आप में और दूसरों में कोई अंतर नहीं है, जो शिक्षा प्राप्त करने की चाहत रखने वाले बलूचों को प्रताड़ित करते हैं. उम्मीद है कि कराची यूनिवर्सिटी में बलोच छात्रों को कोई परिणाम नहीं भुगतना पड़ेगा. उन्हें उत्पीड़न या और ज़्यादा भेदभाव का सामना नहीं करना पड़ेगा."
लापता लोगों की बरामदगी के लिए काम करने वाले कार्यकर्ता गुलज़ार दोस्त ने कहा कि उनका मानना है कि अगर यूनिवर्सिटियों में सख़्ती होगी तो इसकी प्रतिक्रिया भी ज़्यादा होगी.
"जो लोग लापता हैं उनकी प्रतिक्रिया में भी तेज़ी आई है. जब ऐसी पढ़ी-लिखी मध्यम वर्ग की लड़कियां इस आंदोलन में शामिल हो गई हैं, तो उन्हें लगता है कि हमारे भाई-बहन जिन्हें जबरन ग़ायब कर दिया जाता है, उन्हें प्रताड़ित किया जाता है और इस तरह की प्रतिक्रिया का कारण यही है." (bbc.com)
वाशिंगटन, 29 अप्रैल। व्हाइट हाउस ने बृहस्पतिवार को कहा कि 55 से अधिक देशों ने इंटरनेट के भविष्य के लिए एक घोषणा की शुरुआत की है और भारत जैसे देशों के लिए इसके दरवाजे अब भी खुले हैं जो इसमें शामिल नहीं हुए हैं।
व्हाइट हाउस ने कहा कि इंटरनेट के भविष्य के लिए घोषणा उस डिजिटल निरंकुशता की बढ़ती प्रवृत्ति के संबंध में प्रतिक्रिया है, जिसमें विश्वसनीय समाचार साइट को अवरुद्ध करने और यूक्रेन पर आक्रमण के दौरान दुष्प्रचार को बढ़ावा देने के लिए रूस की कार्रवाई शामिल है।
उसने कहा, ‘‘यह घोषणा इंटरनेट और डिजिटल प्रौद्योगिकियों के लिए एक सकारात्मक दृष्टि को आगे बढ़ाने की खातिर भागीदारों के बीच राजनीतिक प्रतिबद्धता का प्रतिनिधित्व करती है। यह 21 वीं शताब्दी द्वारा प्रस्तुत वैश्विक अवसरों और चुनौतियों के सामने इंटरनेट के वादे पर पुनः जोर देती है।’’
व्हाइट हाउस ने कहा, ‘‘यह एक ऐसे वैश्विक इंटरनेट के लिए भागीदारों की पुन: पुष्टि और प्रतिबद्धता भी जताती है - जो वास्तव में खुला है और प्रतिस्पर्धा, गोपनीयता और मानवाधिकारों के सम्मान को बढ़ावा देता है।’’
इसने इस घोषणा का समर्थन करने वाले देशों की सूची भी जारी की। घोषणा का समर्थन करने वालों में अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, बुल्गारिया, कनाडा, डेनमार्क, यूरोपीय आयोग, फ्रांस, जर्मनी, यूनान, हंगरी, आयरलैंड, इज़राइल, इटली, जापान, केन्या, मालदीव, नीदरलैंड, न्यूजीलैंड, पेरू, पोलैंड, पुर्तगाल, रोमानिया, सेनेगल, सर्बिया, स्पेन, स्वीडन, ताइवान, त्रिनिदाद और टोबैगो, ब्रिटेन, यूक्रेन और उरुग्वे शामिल हैं।
प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इसकी पुष्टि की कि भारत अभी तक इस घोषणा का हिस्सा नहीं है। भारत के बारे में पूछे जाने पर अधिकारी ने कहा, ‘‘उम्मीद कायम है और भारत के शामिल होने के लिए समय अभी बीता नहीं है। हालांकि हम इन सभी देशों को शामिल करने के लिए बहुत गहन प्रयास कर रहे हैं।’’ (भाषा)
माइक्रोब्लॉगिंग साइट ट्विटर को ख़रीदकर अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में सनसनी पैदा करने वाले एलन मस्क ने आज अपने ट्वीट से सबको चौंका दिया है.
टेस्ला सीईओ मस्क ने बताया है कि जल्द ही वो कोका-कोला ख़रीदने जा रहे हैं ताकि इसमें दोबारा 'कोकेन मिला सकें'. हालांकि एलन मस्क के इस ट्वीट से कुछ भी स्पष्ट नहीं है.
एलन मस्क ने ट्वीट किया, "अब, मैं कोका-कोला ख़रीदने जा रहा हूं ताकि उसमें कोकेन वापस मिला सकूं."
इसके कुछ देर बाद ही मस्क ने एक और ट्वीट किया. इसमें उन्होंने अपने ही ट्विटर हैंडल से किए एक ट्वीट के स्क्रीनशॉट को शेयर किया है, जिसमें लिखा है, "अब मैं मैकडॉनल्ड्स ख़रीदने वाला हूँ और सभी आईसक्रीम मशीनों को ठीक करूंगा." स्क्रीनशॉट के साथ मस्क ने लिखा है, "सुनिए, मैं चमत्कार नहीं कर सकता. ठीक है."
इन दोनों ट्वीट के बीच में मस्क ने एक और ट्वीट किया जिसमें उन्होंने ट्विटर को ज़्यादा से ज़्यादा मज़ेदार बनाने को कहा है.
इसी सप्ताह एलन मस्क ने ट्विटर को 44 अरब डॉलर में ख़रीदा है. मस्क ने दो सप्ताह पहले कहा था कि ट्विटर में "जबर्दस्त क्षमता" है जिसे वह अनलॉक करेंगे.
ये डील होने के साथ ही सार्वजनिक रूप से कारोबार करने वाली फर्म ट्विटर अब मस्क के स्वामित्व वाली एक निजी कंपनी बन जाएगी.
ट्विटर ने कहा है कि कंपनी की क़ीमत 54.20 डॉलर प्रति शेयर के हिसाब से लगाई गई है जो कुल 44 अरब डॉलर होगी. फ़र्म ने कहा है कि अब वह शेयरधारकों से सौदे को मंज़ूरी देने के लिए वोटिंग करने के लिए कहेगी.
बुधवार को एक ट्वीट के ज़रिए मस्क ने ट्विटर में कुछ बदलावों के संकेत भी दिए हैं. उन्होंने लिखा है कि ट्विटर पर डायरेक्ट मेसेज वैसे ही एंड-टु-एंड एनक्रिप्ट होने चाहिए जैसे सिग्नल ऐप पर होते हैं, ताकि कोई भी मैसेज हैक न कर सके.
दुनिया के सबसे अमीर शख्स हैं मस्क
फोर्ब्स पत्रिका के अनुसार, एलन मस्क दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति हैं, जिनकी कुल संपत्ति 273.6 अरब डॉलर है. उनकी संपत्ति का ज़्यादातर हिस्सा इलेक्ट्रिक वाहन निर्माता टेस्ला में उनकी हिस्सेदारी के कारण है. वह एयरोस्पेस फर्म स्पेसएक्स के भी मालिक हैं.
हालांकि, मस्क की मुखरता उन्हें कई बार भारी भी पड़ी है. इसका एक उदाहरण ये है कि अमेरिका की सिक्योरिटी और एक्सचेंज कमिशन ने उन्हें टेस्ला के मामले से जुड़ा कोई भी ट्वीट करने से प्रतिबंधित कर दिया था क्योंकि उनके एक ट्वीट से टेस्ला के शेयर में 14 अरब डॉलर का नुक़सान हुआ था.
क्या कोका-कोला में होता था कोकेन?
एक ज़माने में कोका कोला सुनकर लोग सोचते थे कि कोका का मतलब है इसमें कोकीन मिलाई जाती है. जिससे लोग उसके आदी हो जाते हैं. हालांकि सच ये था कि उसमें कोका की पत्तियों का रस मिलाया जाता था.
दरअसल, कोका कोला नाम के पेय का आविष्कार, अमरीका के अटलांटा शहर के केमिस्ट जॉन पेम्बर्टन ने किया था. अमेरिका के गृह युद्ध में ज़ख़्मी पेम्बर्टन को मॉरफ़ीन की लत लग गई थी.
उससे छुटकारा पाने के लिए पेम्बर्टन ने शराब में कोका की पत्तियों का रस मिलाकर पीना शुरू किया. अच्छा लगा तो उसे बेचना भी शुरू कर दिया.
शराब में कोका की पत्तियों का रस मिलाने की वजह ये भी थी कि अटलांटा की सरकार ने शराबबंदी का सख़्त क़ानून बना दिया था. इसी से बचने के लिए पेम्बर्टन ने ये नया नुस्ख़ा तैयार किया था.
असल में कोका कोला में जो पहला शब्द यानी कोका है, वो इसमें मिलाए जाने वाले कोका की पत्तियों के रस की वजह से है. (bbc.com)
नयी दिल्ली, 28 अप्रैल। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बुधवार को अपने पुर्तगाली समकक्ष जोआओ क्राविन्हो के साथ द्विपक्षीय सहयोग में हुई प्रगति पर चर्चा की और यूक्रेन संकट पर विचार साझा किए।
बैठक के बाद जयशंकर ने ट्वीट किया, ' पुर्तगाल के विदेश मंत्री जोआओ क्राविन्हो का स्वागत कर प्रसन्नता हुई। यूरोपीय संघ के साथ हमारे संबंधों को बढ़ावा देने में पुर्तगाल द्वारा लगातार दिया गया सहयोग सराहनीय है।'
उन्होंने कहा, ' हमारे द्विपक्षीय सहयोग की प्रगति पर चर्चा की और यूक्रेन संकट पर विचार साझा किए।'
जयशंकर ने मेडागास्कर के विदेश मंत्री रिचर्ड जे रैंड के साथ भी बैठक की।
जयशंकर ने कहा, 'हमारी चर्चा विकास साझेदारी को आगे ले जाने के बारे में हुई। खाद्य एवं स्वास्थ्य सुरक्षा और क्षमता निर्माण पर भी ध्यान केंद्रित किया।' (भाषा)