अंतरराष्ट्रीय
वाशिंगटन, 23 जनवरी | वैश्विक स्तर पर कोरोनावायरस मामलों की कुल संख्या 9.8 करोड़ से अधिक हो गई है, जबकि संक्रमण से हुई मृत्यु संख्या 21 लाख से अधिक हो गई है। यह जानकारी जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय ने शनिवार को दी।
विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर सिस्टम साइंस एंड इंजीनियरिंग (सीएसएसई) ने शनिवार सुबह अपने नवीनतम अपडेट में खुलासा किया कि वर्तमान में वैश्विक संक्रमण के मामलों और मृत्यु क्रमश: 98,129,394 और 2,105,056 पर है।
सीएसएसई के अनुसार, अमेरिका दुनियाभर में सबसे अधिक 24,815,084 मामलों और 413,925 मौतों के साथ सबसे ज्यादा प्रभावित देश है।
संक्रमण के हिसाब से भारत 10,625,428 मामलों के साथ दूसरे स्थान पर है, जबकि देश की कोविड से हुई मौतों की संख्या 153,032 है।
सीएसएसई के आंकड़ों के अनुसार, दस लाख से अधिक मामलों वाले अन्य देश ब्राजील (8,753,920), रूस (3,637,862), ब्रिटेन (3,594,094), फ्रांस (3,069,695), स्पेन (2,499,560), इटली (2,441,854), तुर्की (2,418,472), जर्मनी (2,125,261), कोलम्बिया (1,987,418), अर्जेंटीना (1,853,830), मेक्सिको (1,711,283), पोलैंड (1,464,448), दक्षिण अफ्रीका (1,392,568), ईरान (1,360,852), यूक्रेन (1,222,459) और पेरू (1,082,907) हैं।
कोविड से हुई मौतों के मामले में वर्तमान में ब्राजील 215,243 आंकड़ों के साथ दूसरे नंबर पर है।
वहीं 20,000 से अधिक मृत्यु दर्ज करने वाले देश मेक्सिको (146,174), ब्रिटेन (96,166), इटली (84,674), फ्रांस (72,788), रूस (67,376), ईरान (57,225), स्पेन (55,441), जर्मनी (51,277), कोलंबिया (50,586), अर्जेंटीना (46,575), दक्षिण अफ्रीका (40,076), पेरू (39,274), पोलैंड (34,908), इंडोनेशिया (27,453), तुर्की (24,789), यूक्रेन (22,228) और बेल्जियम (20,620) है।
--आईएएनएस
वाशिंगटन, 23 जनवरी | सेवानिवृत्त अमेरिकी सेना के जनरल लॉयड ऑस्टिन जो बाइडेन प्रशासन में रक्षा मंत्री बन गए हैं। मीडिया रिपोर्ट्स में शुक्रवार को उनके रक्षा मंत्री बनने की पुष्टि की गई है। बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, ऑस्टिन को सीनेट में 93 वोट मिले, जबकि दो वोट उनके खिलाफ गए। बाइडेन के नेतृत्व वाली सरकार में एवरिल हैन्स के बाद ऑस्टिन के तौर पर दूसरी बड़ी जिम्मेदारी की पुष्टि हुई है। ऑस्टिन से पहले हैन्स नेशनल इंटेलिजेंस की निदेशक बनने वाली पहली महिला बनीं थीं।
लॉयड ऑस्टिन पहले अफ्रीकी-अमेरिकी हैं, जो पेंटागन प्रमुख की जिम्मेदारी संभालेंगे।
कांग्रेस (अमेरिकी सदन) ने गुरुवार को रक्षा मंत्री के तौर पर ऑस्टिन के नाम पर मुहर लगा दी थी। इस मंजूरी के बाद उनका रक्षा मंत्री बनने का रास्ता साफ हो गया था। दरअसल अमेरिकी कानून के तहत, सैन्य अधिकारियों को रक्षा मंत्री बनने से पहले अपनी सेवानिवृत्ति के बाद सात साल की अवधि की आवश्यकता होती है और ऑस्टिन 2016 में ही सेवानिवृत्त हुए थे।
पिछले राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के पहले रक्षा मंत्री लेफ्टिनेंट जनरल जेम्स मैटिस (सेवानिवृत्त) को भी इस पद के लिए 2016 में कांग्रेस की मंजूरी मिली थी।
--आईएएनएस
मिस्र में दस साल पहले लोग सड़कों पर उतरे थे और उन्होंने दशकों से राज कर रहे एक तानाशाह को उखाड़ दिया था. आज फिर वहां राष्ट्रपति की गद्दी पर ऐसा व्यक्ति बैठा है जिसने पूरे विपक्ष का सफाया कर दिया है.
मिस्र ,22 जनवरी | मिस्र की राजधानी काहिरा के ऐतिहासिक तहरीक चौक पर 25 जनवरी 2011 को सरकार विरोधी प्रदर्शन शुरू हुए. इसके कुछ दिनों के भीतर तानाशाह होस्नी मुबारक को सत्ता छोड़नी पड़ी. यह अरब दुनिया में फैली क्रांति के लिए बहुत बड़ा पल था.
मिस्र एक ऐसे दौर में दाखिल हुआ जहां लोगों ने पहली बार महसूस किया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रा और निष्पक्ष चुनाव क्या होते हैं. इस्लामी कट्टरपंथी नेता मोहम्मद मुर्सी लोकतांत्रिक रूप से चुने गए देश के पहले राष्ट्रपति बने. लेकिन सिर्फ ढाई साल के भीतर उन्हें भी सत्ता से हटा दिया गया.
मिस्र में 2013 में फिर सत्ता परिवर्तन हुआ और देश के पूर्व सेना प्रमुख अब्देल फतह अल-सिसी राष्ट्रपति बने. और फिर मिस्र में कट्टरपंथी इस्लामी कार्यकर्ताओं, धर्मनिरपेक्ष विरोधियों, पत्रकारों, वकीलों, कलाकारों और बुद्धिजीवियों को प्रताड़ित करने का सिलसिला भी शुरू हो गया. गैर न्यायिक हत्याओं से जुड़े मामले पर संयुक्त राष्ट्र की विशेष प्रतिनिधि आगनेस कालामर्द कहती हैं, "मिस्र में अरब क्रांति बस थोड़े से समय के लिए थी." उनकी राय में, "वहां की सरकार ने क्रांति से एक बदतर सबक सीखा है- आजादी की कोई कली फूटने का संकेत भी मिले तो उसे मसल दो."
"बाहरी हस्तक्षेप"
दिसंबर की शुरुआत में मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी इंटरनेशन ने अरब दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाले देश मिस्र में लोगों को मौत की सजा दिए जाने के बढ़ते मामलों की निंदा की थी. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होने वाली आलोचना की मिस्र के अधिकारियों को परवाह नहीं है. हर आलोचना पर उनका यही जबाव होता है कि किसी भी तरह के "बाहरी हस्तक्षेप" को स्वीकार नहीं करेंगे.
हाल में मिस्र के विदेश मंत्री सामेह शौकरी ने एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा था कि देश में "मानवाधिकारों से जुड़े सवाल वहां के समाज की जिम्मेदारी हैं ना किसी बाहरी पक्ष की". उनके मंत्रालय की तरफ से समाचार एजेंसी एएफपी को दिए गए वकत्व में मिस्र में मनमाने तरीके से होने वाली गिरफ्तारियों और दमन के मामलों से इनकार किया गया था. बयान के मुताबिक, "मिस्र में कोई राजनीतिक कैदी नहीं हैं". साथ ही यह भी कहा गया कि "मिस्र की सरकार अभिव्यक्ति की आजादी को बहुत महत्व देती है".
मिस्र में 2013 की गर्मियों में दमन की शुरुआत हुई, जब मोहम्मद मुर्सी को हटाए जाने के खिलाफ सड़कों पर उतरे सैकड़ों प्रदर्शकारी सुरक्षा बलों की कार्रवाई में मारे गए. मुस्लिम ब्रदरहुड के कार्यकर्ताओं को बड़ी संख्या में हिरासत में लिया गया, उन पर मुकदमे चले और सजाएं सुनाई गईं. सिसी की सत्ता लगातार मजबूत होती गई. वह मोर्सी को हटाए जाने के बाद देश के राष्ट्रपति चुने गए. 2018 में 97 प्रतिशत वोटों के साथ फिर राष्ट्रपति चुने गए.
अप्रैल 2019 में एक संवैधानिक संशोधन के जरिए बतौर राष्ट्रपति उनके कार्यकाल को बढ़ाया गया और इससे देश की न्यायपालिका पर भी उनका नियंत्रण मजबूत हुआ. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि मिस्र में इस समय 60 हजार से ज्यादा राजनीतिक विरोधियों को सलाखों के पीछे रखा गया है, सरकार भले ही इससे इनकार करे.
अभी समय लगेगा
सितंबर 2019 में सैकड़ों लोग सिसी के इस्तीफे की मांग के साथ फिर तहरीर चौक पर प्रदर्शन करने पहुंचे और सरकार को भी गिरफ्तारियों का नया दौर शुरू करने की वजह मिल गई. अधिकारियों पर जब भी मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोप लगते हैं तो वे आतंकवाद के खतरों का हवाला देने लगते हैं. मिस्र के उत्तरी सिनाई इलाके में 2013 से जिहादी तत्व मजबूत हो रहे हैं. बेरुत के कारनेगी मध्य पूर्व सेंटर में मिस्र और उत्तर अफ्रीका पर विशेषज्ञ शेरीफ मोहिलेदीन कहते हैं, "कथित दमन और मानवाधिकारों के उल्लंघन से संस्थागत हिंसा और कुछ हद तक चरमपंथ को भी बढ़ावा मिलता है."
मिस्र में इंटरनेट पर भी सख्त पहरा है. 2017 से सैकड़ों वेबसाइटों को बंद किया गया है. रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स संस्था का कहना है कि 28 पत्रकार अभी मिस्र की जेलों में बंद हैं. सरकार महिलाओं को भी निशाना बना रही है. हाल के महीनों में दर्जनों सोशल मीडिया इंफ्लुएंसरों को गिरफ्तार किया गया है. उन पर टिकटॉक पर ऐसे वीडियो पोस्ट करने का आरोप है जो देश की रूढ़िववादी सामाजिक मान्यताओं के हिसाब से अनैतिक हैं. मिस्र की राष्ट्रीय मानवाधिकार परिषद के महासचिव मोखलेस कोत्ब का कहना है, "मिस्र में कानून का राज स्थापित होने में अभी समय लगेगा."
परमाणु अस्त्रों पर प्रतिबंध लगाने वाली एक अंतरराष्ट्रीय संधि अब लागू हो चुकी है. जानकारों को चिंता है कि ताकतवर देशों के समर्थन के अभाव में यह संधि दुनिया को परमाणु अस्त्रों से मुक्त कराने में कितना सफल हो पाएगी.
संयुक्त राष्ट्र की नाभिकीय अस्त्र निषेध संधि (टीपीएनडब्ल्यू) शुक्रवार 22 जनवरी से लागू हो गई. संधि का उद्देश्य परमाणु अस्त्रों के विकास, उत्पादन, परीक्षण, आधिपत्य और प्रयोग पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाना है. 2017 में दुनिया के दो-तिहाई देशों ने इस के पक्ष में मतदान किया था, लेकिन परमाणु शक्तियों के रूप में जाने जाने वाले सभी देश और उनका संरक्षण पाने वाले कई देश संधि का हिस्सा नहीं बने हैं.
संधि देशों को दूसरे देशों में अपने अस्त्र रखने पर भी प्रतिबंध लगाती है. बेल्जियम, जर्मनी, इटली, नीदरलैंड्स और तुर्की जैसे राष्ट्रों में अमेरिका के परमाणु वॉरहेड मौजूद हैं. संधि के लागू होने का स्वागत करते हुए, संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेश ने कहा, "परमाणु अस्त्रों से खतरा बढ़ रहा है और उनके संभावित इस्तेमाल से जो अनर्थकारी मानवीय और पर्यावरण-संबंधी परिणाम होंगे उन्हें रोकने के लिए इन अस्त्रों को तुरंत ही नष्ट कर दिया जाना चाहिए."
कुछ ऐसे ही विचार 2017 का नोबेल शांति पुरस्कार जीतने वाले परमाणु अस्त्रों को नष्ट करने के अंतर्राष्ट्रीय अभियान (आईसीएएन) ने भी व्यक्त किए. आईसीएएन को नोबेल संधि के लिए समर्थन जुटाने और परमाणु युद्ध की क्रूरता की तरफ दुनिया का ध्यान दिलाने के लिए दिया गया था. लेकिन इस संधि से निशस्त्रीकरण तब तक नहीं होगा जब तक परमाणु शस्त्र रखने वाले देश और नाटो इसका विरोध करते रहेंगे.
संधि का निशस्त्रीकरण पर असर
संधि को शुरू में 122 देशों ने समर्थन दिया था, लेकिन उनमें से सिर्फ 51 देशों ने उसके आधार पर राष्ट्रीय कानून पास किए हैं. इनमें से अधिकतर विकासशील देश हैं. संधि के लागू होने के थोड़ी ही देर पहले नाटो के सदस्य देश जर्मनी ने चेतावनी दी थी कि संधि में "निशस्त्रीकरण पर हो रही बातचीत को और मुश्किल बनाने के क्षमता है." जापान ने भी संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं. अक्टूबर तक 50 देशों ने संधि को मंजूरी दे दी थी.
परमाणु-विरोधी कार्यकर्ताओं का मानना है कि बड़ी शक्तियों के विरोध के बावजूद संधि सिर्फ सांकेतिक नहीं रहेगी. उन्हें उम्मीद है कि इससे परमाणु कार्यक्रमों पर धब्बा लगेगा और यथास्थिति की मानसिकता को चुनौती मिलेगी. विश्व में परमाणु हथियारों वाले कुल मिला कर नौ देश हैं, जिनमें अमेरिका और रूस के पास इस तरह के 90 प्रतिशत हथियार हैं. बाकी देशों में चीन, फ्रांस, ब्रिटेन, भारत, पाकिस्तान, इस्राएल और उत्तर कोरिया शामिल हैं. इनमें से अधिकतर देशों का कहना है कि उनके अस्त्रों का उद्देश्य सिर्फ बचाव है और वो इसके पहले कि परमाणु प्रसार संधि के प्रति प्रतिबद्ध हैं.
अमेरिका-रूस के बीच परमाणु अस्त्र संधि जारी
इसी बीच अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने शपथ लेते ही रूस को प्रस्ताव भेजा है कि दोनों देशों के बीच चल रही परमाणु अस्त्रों की संधि 'स्टार्ट' को पांच और सालों के लिए जारी रखा जाना चाहिए. मौजूदा संधि की मियाद फरवरी 2021 में खत्म हो जाएगी. रूस पहले ही कह चुका है कि वो संधि को जारी रखने का स्वागत करेगा. संधि का उद्देश्य दोनों देशों के सामरिक परमाणु हथियारों की संख्या पर लगाम रखना है.
माना जा रहा है कि शपथ लेते ही बाइडेन द्वारा यह प्रस्ताव दिया जाना परमाणु हथियारों पर नियंत्रण लगाने के उनके इरादे का संकेत है. व्हाइट हाउस के प्रेस सचिव जेन साकी ने एक बयान में कहा कि संधि को पांच साल ताक जारी रखना "ऐसे समय में और भी तर्कसंगत है जब रूस के साथ हमारे रिश्ते विरोधात्मक हैं."
कीव, 22 जनवरी | यूक्रेन के खारकिव में स्थित एक प्राइवेट नर्सिग होम में आग लगने से 15 लोगों की मौत हो गई है और 5 अन्य घायल हो गए। सिन्हुआ समाचार एजेंसी के मुताबिक, आपातकालीन स्थितियों के लिए यूक्रेनियन स्टेट सर्विस के प्रेस सर्विस ने बताया कि यह आग गुरुवार शाम को 3.03 बजे लगी और देखते ही देखते यह लगभग सौ स्क्व ॉयर मीटर के दायरे में फैल गई।
करीब दो घंटे बाद आग पर काबू पा लिया गया। राज्य आपातकालीन सेवा के पचास कर्मी और 13 अन्य उपकरणों की मदद से यह आग बुझाई गई।
इस हादसे में मारे गाए 15 लोगों के शव मिल गए हैं। नौ और लोगों को बचा लिया गया है, जिनमें से पांच अस्पताल में एडमिट हैं। इनकी स्थिति के बारे में अभी कोई सूचना नहीं मिली है।
राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की ने इसे एक भयानक त्रासदी करार दिया है और साथ ही अपने कैबिनेट के मंत्रियों को स्थिति पर तत्काल कदम उठाने के निर्देश भी दिए हैं।
प्रॉसीक्यूटर जनरल इरिना वेनेडिकटोवा के मुताबिक, सुरक्षा नियमों का उल्लंघन करना आग लगने की मुख्य वजह रही है।
प्रधानमंत्री डेनिस शमहल ने तत्काल एक सरकारी बैठक बुलाने का आह्वान किया है, जिसके तहत एक स्टेट कमीशन का गठन किया जाएगा, जो त्रासदी के कारणों का पता लगाएंगे। (आईएएनएस)
जापान सरकार ने उन रिपोर्टों का खंडन किया है, जिनमें कहा गया था कि टोक्यो ओलंपिक रद्द किया जा रहा है. इसी के साथ जापान ने टोक्यो ओलंपिक की मेजबानी के लिए अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है.
कोरोना वायरस महामारी की तीसरी लहर के कारण जापान के अधिकांश हिस्से में आपातकाल लागू है. टोक्यो ओलंपिक के आयोजकों ने पिछले साल मार्च में खेलों के स्थगित होने के बाद इस साल 23 जुलाई से ओलंपिक के आयोजन पर ध्यान केंद्रित कर रखा है. जापान सरकार के प्रवक्ता ने कहा है कि द टाइम्स की उस रिपोर्ट में "कोई सच्चाई नहीं" है जिसमें कहा गया था कि जापान ने अब 2032 में आयोजन कराने पर ध्यान केंद्रित कर दिया है.
शुक्रवार को डिप्टी कैबिनेट सचिव मानाबू सकाई ने कहा, "हम स्पष्ट रूप से रिपोर्ट का खंडन कर रहे हैं." टोक्यो 2020 आयोजन समिति ने भी रिपोर्ट का खंडन किया है. उसने कहा है कि जापान सरकार और अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति का खेलों के निर्धारित समय पर आयोजन पर ध्यान केंद्रित है.
ब्रिटिश अखबार द टाइम्स ने जापानी सरकार के एक सूत्र के हवाले से कहा था कि जापान ने ओलंपिक आयोजित करने की कोशिशों को छोड़ दिया है और सरकार अब यह सुनिश्चित करने के लिए काम कर रही है कि अगले उपलब्ध साल 2032 में टोक्यो में ओलंपिक आयोजित किया जाए.
सकाई के मुताबिक सरकार खेलों की मेजबानी सुनिश्चित करने और कोरोना वायरस को नियंत्रित करने के लिए हर संभव उपाय कर रही है. शुरुआती अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाओं में ऑस्ट्रेलियाई और अमेरिकी ओलंपिक समितियों ने कहा कि वे खेलों की तैयारी कर रही हैं. ऑस्ट्रेलियाई समिति के प्रमुख मैट कैरल ने सिडनी में पत्रकारों से कहा, "दुर्भाग्य से मुझे निराधार अफवाहों को संबोधित करने की जरूरत पड़ी है कि टोक्यो ओलंपिक को रद्द कर दिया जाएगा. ऐसी अफवाहें खिलाड़ियों के लिए चिंता का कारण बनती हैं." उन्होंने कहा, "टोक्यो ओलंपिक होने जा रहा है. ओलंपिक की ज्योति 23 जुलाई 2021 को जलाई जाएगी."
इस महीने की शुरूआत में ओलंपिक के आयोजन को लेकर संशय तब सामने आया जब कोरोना वायरस के मामले देश में तेजी से बढ़ने लगे और आपातकाल की घोषणा करनी पड़ी. बड़ी संख्या में लोगों ने खेलों को रद्द करने के लिए अपनी राय दी थी. टोक्यो समेत बड़े शहरों में आपातकाल लागू है और देश ने अनिवासी विदेशियों के लिए अपनी सीमाएं बंद कर दी. ताजा जनमत सर्वेक्षण में जापान के 80 फीसदी लोग इस साल गर्मी में ओलंपिक आयोजन नहीं करने के पक्ष में हैं. उन्हें डर है कि खिलाड़ियों के आने से वायरस का प्रसार होगा. टोक्यो में ओलंपिक और पैरालंपिक खेलों में लगभग 15,000 खिलाड़ी हिस्सा लेंगे. पैरा ओलंपिक 24 अगस्त से शुरू होगा. आयोजक अगले कुछ हफ्तों में तय करेंगे कि दर्शकों को कोरोना वायरस के खतरे को देखते हुए स्टेडियम में आने की अनुमति दी जाए या नहीं.
एए/सीके (एएफपी, डीपीए)
अंधेरी रात में तरह तरह की रोशनी से जगमगाते शहरों की तस्वीरें देखने में बहुत अच्छी लगती हैं. लेकिन चौबीसों घंटे रोशन रहने वाले इन शहरों की पर्यावरण को बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है.
17 जनवरी 1994 को अमेरिका के लॉस एंजेलेस में जब भूकंप आया तो वहां बिजली भी गुल हो गई. घबराहट में लोगों ने पुलिस को फोन किया. कुछ लोगों ने तो यहां तक कहा कि धरती के कांपने से ज्यादा वो आसमान के दृश्य को देख कर डर गए थे. काले आसमान में कुछ चमक रहा था, टिमटिमा रहा था. दरअसल ये लोग, आसमान में तारों को देख कर डर गए थे. बिजली चले जाने से इतना अंधेरा हो गया था कि आकाशगंगा को साफ देखा जा सकता था. लॉस एंजेलेस में रहने वाले अधिकतर लोगों ने यह नजारा पहली बार देखा था.
दिन और रात का फर्क खत्म
19वीं सदी में जब बिजली की खोज हुई तो यह एक बहुत बड़ी क्रांति थी. आज इस खोज के सौ साल बीत जाने के बाद बिजली के बिना जीने की कल्पना करना भी मुश्किल है. लेकिन अब दुनिया की 80 फीसदी आबादी प्रकाश प्रदूषण से जूझ रही है. सिंगापुर में तो आसमान इतना रोशन रहता है कि लोगों की आंखों को अंधेरे की आदत ही नहीं रही है.
जर्मन वैज्ञानिक क्रिस्टोफर किबा का कहना है कि कृत्रिम रोशनी ने बायोस्फेयर को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है. उनका कहना है कि प्रकृति हमें संकेत देती है, "बताती है कि यह दिन है और यह रात है लेकिन जिन इलाकों में प्रकाश प्रदूषण बहुत ज्यादा है, वहां यह संकेत बहुत ही कम हो गया है." वैज्ञानिकों का दावा है कि हमारी पृथ्वी हर साल दो फीसदी ज्यादा रोशन हो रही है.
शहरों में रहने वाले लोगों पर प्रकाश प्रदूषण का सबसे ज्यादा असर हो रहा है. मुंबई के नीलेश देसाई कहते हैं, "बहुत ही बुरा हाल है. आपको पूरे मुंबई के ऊपर नारंगी रंग की रोशनी की चादर दिखती है." दिनेश बताते हैं कि रात को 12 बजे तक बत्ती का जलना मुंबई में आम है लेकिन कई बार तो सुबह के तीन बजे तक भी बत्तियां जलती रहती थी, "मुझे बहुत परेशानी होती थी. मेरे बैडरूम में इतनी तेज रोशनी आती थी और मुझे बहुत दिक्कत होती थी, मैं सो ही नहीं पाता था."
क्या रोशनी हमें बीमार कर रही है?
2018 में नीलेश ने इसके खिलाफ शिकायत दर्ज कराई लेकिन उसे नजरअंदाज कर दिया गया. नीलेश ने लोगों को इकठ्ठा किया और अपने अधिकार के लिए प्रदर्शन करने शुरू किए. अब उनकी मांगें मान ली गई हैं. उनके घर के पास मौजूद एक स्टेडियम को रात के समय फ्लड लाइट बंद करने का आदेश दिया गया है. लेकिन भारत में प्रकाश प्रदूषण से जुड़े बहुत कानून नहीं हैं. ऐसे में पर्यावरण मंत्रालय से इसे बदलने की मांग भी की जा रही है.
रिसर्च दिखाती है कि ज्यादा वक्त तक प्रकाश का सामना करने से इंसानों की आंखें खराब हो सकती हैं. नींद ना आना, मोटापा और यहां तक कि डिप्रेशन भी इसका नतीजा हो सकता है. अमेरिका में शिफ्ट में काम करने वालों पर हुए शोध में ब्रेस्ट कैंसर के अधिक मामले भी पाए गए. दरअसल, रोशनी के कारण शरीर में मेलाटॉनिन नाम का हार्मोन सक्रिय हो जाता है. बहुत अधिक मात्रा में इस हार्मोन के होने से तरह तरह की बीमारियां हो सकती हैं.
रोशनी का यह बुरा असर ना केवल इंसानों, बल्कि जानवरों, पक्षियों, कीड़ों और पौधों पर भी होता है. एक शोध बताता है कि जर्मनी में सिर्फ गर्मियों के मौसम में ही रात में निकलने वाले 100 अरब कीड़ों की जान कृत्रिम रोशनी के कारण चली जाती है. इसी तरह जो पौधे स्ट्रीट लाइट के आसपास मौजूद होते हैं, उन पर फल और फूल कम लग पाते हैं.
कार्बन उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार
चूंकि बिजली अब भी अधिकतर कोयले से बनाई जाती है इसलिए रात को बिजली का अधिक इस्तेमाल जलवायु परिवर्तन को भी बढ़ावा देता है. उत्तर प्रदेश स्थित रानी लक्ष्मी बाई सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी के पवन कुमार कहते हैं, "रात को बिजली इस्तेमाल करने के कारण दुनिया भर में हर साल एक करोड़ टन से भी ज्यादा सीओ2 उत्सर्जन होता है." उनका कहना है कि अगर इस ओर ध्यान दिया जाए तो कार्बन उत्सर्जन को भी रोका जा सकेगा और पैसे की भी बचत की जा सकेगी.
रिपोर्ट: टिम शाउएनबेर्ग/आईबी
अमेरिका के नए राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा है कि कोरोना वायरस महामारी को हराने के लिए युद्धस्तर पर काम किए जाने की ज़रूरत है.
कोरोना से मुक़ाबला करने के लिए उन्होंने एक विस्तृत योजना पेश की है. इसके तहत गुरुवार को उन्होंने 10 ऐसे एग्ज़िक्युटिव ऑर्डर पर हस्ताक्षर किए जिनसे सरकारी एजेंसियों, निजी क्षेत्र और नागरिकों को कोरोना वायरस के रोकथाम में मदद मिलेगी.
बाइडन ने ये स्पष्ट कर दिया कि अपने पूर्ववर्ती की अपेक्षा कोरोना से लड़ाई के मामले में राज्यों को फ़ैसला करने देने से बेहतर है कि इससे लिए राष्ट्रीय रणनीति तैयार का जाए. कोरोना पर लगाम न लगा पाने के लिए ट्रंप प्रशासन की काफ़ी निंदा हुई थी.
बाइडन का कहना है कि कोरोना से निपटने के लिए "कठोर कदम" उठा रहे हैं जिन पर अलम करना आसान नहीं होगा. उन्होंने कहा, "मैं आपको स्पष्ट कर दूं कि चीज़ें अभी और बिगड़ भी सकती हैं."
उनका कहना है कि उन्हें डर है कि अगले महीने तक ये वायरस पाँच लाख लोगों की जान ले सकता है और स्थिति को बेहतर करने के लिए हमें युद्धस्तर पर काम करने की ज़रूरत है.
राष्ट्रपति के तौर पर कार्यभार संभालने के बाद बाइडन ने पहले ही कहा था कि देश में कोरोना वैक्सीन अभियान शुरू होने के पहले सौ दिनों में 10 करोड़ लोगों को टीका लगाए जाएंगे.
ट्रंप प्रशासन में आप कुछ कहें और उस पर प्रतिक्रिया न हो, ऐसा नहीं लगता थाः फाउची
मुख्य चिकित्सा सलाहकार एंथनी फाउची ने वैक्सीन रोलआउट के बारे में कहा कि बाइडन प्रशासन पहले से ही मौजूद कार्यक्रम को आगे बढ़ा रहा है.
उनका कहना है कि अगर उम्मीद के मुताबिक, 70-85% आबादी को गर्मियों के अंत तक टीका लगा दिया गया तो सर्दियों के आने तक स्थिति सामान्य हो सकती है. फाउची ने कहा कि उनकी चिंता उन लोगों को मनाने की है जो इस वैक्सीन को लेकर संशय में हैं.
उन्होंने कहा कि और अधिक वैक्सीन बनाई जाए इसके लिए प्रशासन इसके उत्पादकों से बातचीत कर रहा है. कुछ क्षेत्रीय अधिकारियों का कहना है कि उनके पास उपलब्ध वैक्सीन ख़त्म होने वाली है.
डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन में भी मुख्य चिकित्सा अधिकारी रहे फाउची ने इस बात का स्वागत किया कि नया प्रशासन विज्ञान पर जोर दे रहा है.
फाउची ने कहा, "यह आइडिया कि आप वहाँ तक पहुँच सकते हैं जो आप जानते हैं और इसके साक्ष्य क्या हैं, विज्ञान क्या कहता है... इसके बारे में आप बात कर सकते हैं. जबकि ट्रंप प्रशासन में आप ऐसा महसूस नहीं करते थे कि आप कुछ कहेंगे और उस पर कड़ी प्रतिक्रिया नहीं होगी."
इससे पहले राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने कई अहम एग्ज़िक्युटिव ऑर्डर पर हस्ताक्षर किए और अपने पूर्ववर्ती के फ़ैसलों को पलटा. इनमें सभी सरकारी दफ़्तरों के परिसर में मास्क पहनना और सोशल डिस्टेंन्सिंग का पालन करना अनिवार्य करने का फ़ैसला शामिल है.
साथ ही उन्होंने कोरोना वायरस टेस्टिंट बढ़ाने और महामारी पर प्रतिक्रिया के समन्वय के लिए एक नया ऑफिस स्थापित करने का भी फ़ैसला लिया है. बाइडन ने ये भी कहा है कि अमेरिका ग़रीब देशों तक वैक्सीन पहुँचाने के कोवैक्स कार्यक्रम में भी शामिल होगा. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने उनके इस फ़ैसले का स्वागत किया है.
कोरोना से निपटने के लिए बाइडन के 10 कदम
1. डिफेन्स प्रोडक्शन एक्ट का इस्तेमालः कोरोना से लड़ने के लिए ज़रूरी मेडिकल इक्विपमेंट, पीपीई किट और वैक्सीन सप्चलाई को जारी रखने के लिए ज़रूरी चीज़ों के उत्पादन के लिए बाइडन ने शीत युद्ध के दौर के एक अहम क़ानून का इस्तेमाल करने का फ़ैसला किया है. इसके तहत राष्ट्रपति को राष्ट्रीय सुरक्षा के कारणों से उत्पादन बढ़ाने के लिए इजाज़त देने का विशेषाधिकार मिलता है. इसके अलावा बाइडन प्रशासन एन95 मास्क, आइसोलेशन गाउन और कोरोना की टेस्टिंग के लिए ज़रूरी सामानों का उत्पादन भी बढ़ाएगा.
2. प्लेन, ट्रेन और बसों में मास्क अनिवार्यः बाइडन प्रशासन की योजनानुसार हवाई अड्डों, कुछ ट्रेनों, हवाई यात्राओं और बसों में सफ़र के दौरान लोगों के लिए मास्क पहनना अनिवार्य किया जाएगा. दूसरे देशों से आने वालों को सफर शुरू करने से पहले अपना कोरोना टेस्ट कराना होगा और अपने निगेटिव होने का प्रमाणपत्र साथ रखना होगा. अमेरिका पहुँचने के बाद उन्हें क्वारंटीन से जुड़े सेंटर ऑफ़ डिज़ीज़ कंट्रोल के सभी नियमों का पूरा पालन करना होगा.
3. राज्यों के हाथ मज़बूत करनाः बाइडन फेडेरल इमर्जेंसी एडमिनिस्ट्रेशन को कोरोना महामारी से लड़ने के लिए इमर्जेंसी सप्लाई सुनिश्चित करने और अधिक संख्या में कर्मचारियों को नियुक्त करने के लिए 75 से 100 फ़ीसद तक मदद देने की योजना बना रहे हैं. स्कूलों को सुरक्षित तरीके से फिर से खोलने में भी सरकार आर्थिक मदद करेगी.
4. तेज़ी से वैक्सीन रोलआउटः बाइडन पहले ही कह चुके हैं कि कोरोना वैक्सीन अभियान शुरू होने के पहले सौ दिनों में 10 करोड़ लोगों को टीका लगाया जाएगा. इस टार्गेट तक पहुँचने के लिए फेडरल इमर्जेंसी एडमिनिस्ट्रेशन को सामुदायिक टीकाकरण केंद्र बनाने की इजाज़त दी जाएगी और अगले महीने तक इस तरह के 100 केंद्र खोलने का लक्ष्य रखा गया है. स्थानीय दवा की दुकानों में कोरोना वैक्सीन उपलब्ध कराने की भी कोशिशें की जाएगी जिसकी निगरानी सेंटर्स ऑफ़ डिज़ीज़ कंट्रोल करेगा.
5. टेस्टिंग बढ़ानाः कोरोना वायरस टेस्टिंग बढ़ाने के लिए और इसके लिए ज़रूरी सामान का वितरण बेहतर करने के लिए बाइडन कोविड-19 टेस्टिंग बोर्ड बनाएंगे. उनकी योजना स्वास्थ्यकर्मियों की संख्या बढ़ाने, स्कूलों में टेस्टिंग कराने और ब्लैक समुदाय के लोगों के लिए टेस्टिंग बढ़ाने की भी है.
6. स्कूलों को दोबोरा खोलने पर विचारः शिक्षा विभाग, स्वास्थ्य विभाग और मानव संसाधन विभाग से बाइडन प्रशासन ने कहा कि वो स्कूलों को सुरक्षित तरीके से खोलने, बच्चों की सुरक्षा और उच्च शिक्षा संस्थानों को खोलने को लेकर सरकार को अहम सलाह दें. साथ ही जिन छात्रों के पास ब्रॉडबैंड की सुविधा नहीं है उनके लिए बेहतर कनेक्विटी पर भी सरकार विचार करेगी.
7. स्वास्थ्य सेवा का दायरा बढ़ानाः कोविड-19 के बेहतर इलाज के लिए सरकार उसके इलाज के नए तरीकों की पहचान करने, स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति बेहतर करने और ज़रूरत पड़ने पर अधिक स्वास्थ्यकर्मियों की नियुक्ति पर भी ध्यान देगी.
8. कोविड-19 से कर्मचारियों की सुरक्षाः कामगारों के लिए काम करने वाली सरकारी एजेंसी और स्वास्थ्य विभाग से कहा गया है कि वो कर्मचारियों को कोविड-19 से सुरक्षा देने के लिए एम्पलॉयर्स के लिए दिशानिर्देश जारी करें.
9. समुदायों के लिए अधिक मददः जो समुदाय कोरोना महामारी से बुरी तरह प्रभावित हैं उन्हें अधिक मदद पहुँचाने के लिए कोविड-19 हेल्थ इक्विटी टास्क फोर्स को सलाह देने के लिए कहा गया है.
10. बेहतर समझ के लिए अधिक डेटाः सरकार ने कोविड-19 से बेहतर मुक़ाबला करने के लिए अधिक डेटा इकट्ठा करने और उसका अध्ययन करने का भी फ़ैसला लिया है. इसके लिए दूसरे संगठनों से भी डेटा साझा किया जाएगा.
जॉन्स हॉप्किन्स यूनिवर्सिटी के डैशबोर्ड के अनुसार अमेरिका में अब तक 2.4 करोड़ लोग कोरोना वायरस संक्रमण की चपेट में आ चुके हैं, जबकि 4,09,794 लोगों की मौत हो चुकी है.
पूरी दुनिया में कोरोना के कारण होने वाली मौतों में अमेरिका सबसे आगे है. दुनिया भर में अब तक कोरोना के कारण 20 लाख 88 हज़ार लोगों की मौत हो चुकी है. (bbc.com)
जर्मन चांसलर एंगेला मर्केल 16 साल से सत्ता में हैं. क़रीब नौ महीने बाद बतौर चांसलर उनका चौथा कार्यकाल पूरा हो जाएगा और उन्हें पद छोड़ना होगा.
एंगेला मर्केल की पार्टी क्रिश्चन डेमोक्रेटिक यूनियन (सीडीयू) ने आर्मिन लाशेट को नया नेता चुन लिया है. वो अगला चांसलर बनने की रेस में आगे माने जा रहे हैं. ये पद उन्हें ही मिलेगा, अभी इसकी गारंटी नहीं है.
हालांकि, ये तय है कि अगले चांसलर के सामने कई चुनौतियां होंगी. उन्हें जर्मनी को कोरोना महामारी के झटके से उबारना होगा. साथ ही यूरोपीय यूनियन के साथ बेहतर तालमेल के ज़रिए सुखद भविष्य की राह तलाशनी होगी.
नए चांसलर की सबसे बड़ी चुनौती होगा एंगेला मर्केल की छाया से बाहर आना.
जर्मनी का 'मर्केल युग'
जर्मनी में एंगेला मर्केल के युग का ज़िक्र करते हुए यूरोपियन काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशन्स की सीनियर फेलो याना पुलेरिन कहती हैं, "मुझे लगता है कि उन्हें यूरोप की एक महान शख्सियत और जर्मनी की बेहतरीन चांसलर के तौर पर याद किया जाएगा लेकिन आप उनकी किसी एक बहुत बड़ी उपलब्धि को बयान नहीं कर सकते हैं हालांकि, उनकी एक बड़ी नाकामी को गिनाना भी मुश्किल है."
याना कहती हैं कि एंगेला मर्केल के पास मुश्किल वक़्त में संतुलन बनाए रखने की ख़ूबी है और जर्मनी को इसका फ़ायदा मिलता रहा है.
वो कहती हैं कि बीते दस सालों को देखें तो एंगेला मर्केल मुश्किल वक़्त में एक अच्छी प्रबंधक साबित हुईं.
एंगेला मर्केल की शुरुआती ज़िंदगी की बात करें तो वो पूर्वी जर्मनी में बड़ी हुईं. 1989 में जब बर्लिन की दीवार गिरी और जर्मनी का एकीकरण हुआ तब वो 35 बरस की थीं. सीडीयू में शामिल होने के 16 साल बाद वो जर्मनी की चांसलर बन गईं.
एंगेला मर्केल के पहले कार्यकाल के दौरान कई विश्लेषकों की राय थी कि वो इस पद पर ज़्यादा वक़्त तक नहीं टिक पाएंगी.
इसकी वजह बताते हुए याना पुलेरिन कहती हैं, "तब सीडीयू के पास मामूली सा बहुमत था. दूसरी वजह ये थी कि वो सीडीयू में दबदबा रखने वाली पहली महिला थीं. वो पूर्वी जर्मनी से आईं थीं और उन्हें एक बाहरी शख्स के तौर पर देखा जाता था."
लेकिन साल 2007 में एंगेला मर्केल के बारे में राय बदलने लगी. तब उनके कार्यकाल की पहली बड़ी चुनौती यानी वित्तीय संकट सामने था और उन्होंने समझबूझ के साथ रास्ता तलाशा. तब उन्होंने कड़े उपायों की बजाए निवेश पर ज़ोर दिया. उन्होंने उस समय जो स्कीम लागू की, वैसे ही उपाय कोरोना महामारी के दौरान भी किए गए. बाद के सालों में चुनौतियों के वक़्त उनके मज़बूत नेतृत्व की ख़ूबियां सामने आती रहीं.
कमाल की प्रबंधक
एंगेला मर्केल की नेतृत्व क्षमता पर याना पुलेरिन कहती हैं, "एंगेला मर्केल भविष्य की योजना पेश करने वाली कल्पनाशील नेता नहीं हैं. वो संतुलित और व्यावहारिक नेता हैं. चुनौती के वक़्त वो साहसिक फ़ैसले लेती रही हैं."
उधर, एंगेला मर्केल कहती हैं कि लोग उन्हें लेकर आरोप लगाते हैं कि वो तेज़ी से काम नहीं करती हैं. जबकि होता ये है कि कोई भी फ़ैसला लेने के पहले वो उस पर सोच विचार करती हैं.
बतौर चांसलर उनके सामने आई बड़ी चुनौतियों में से एक था यूरोज़ोन संकट. उस वक़्त एंगेला मर्केल की राय थी कि यूरोप के हर एक देश को अपनी वित्तीय चुनौती से ख़ुद निपटना चाहिए. वो मानती थीं कि दूसरों की ग़लती का बोझ जर्मनी के करदाताओं पर नहीं पड़ना चाहिए. तब दक्षिणी यूरोप के देशों ने उनकी ख़ूब आलोचना की.
एंगेला मर्केल अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और यूरोप के केंद्रीय बैंक के ज़रिए यूरोज़ोन संकट का हल कराने में कामयाब रहीं लेकिन इसके ठीक बाद एक और बड़ा संकट उनके सामने था. साल 2011 में सीरिया में ज़ोरदार संघर्ष शुरू हो गया. सीरिया के लोग यूरोप का रुख़ करने लगे. दस लाख से ज़्यादा प्रवासी जर्मनी में दाख़िल हो गए. इस वक़्त एंगेला मर्केल प्रवासी संकट से जूझते यूरोपीय देशों के साथ खड़ी हो गईं.
याना पुलेरिन बताती हैं कि शुरुआत में एंगेला मर्केल की तारीफ़ हुई लेकिन बाद में वो घिरने लगीं.
वो कहती हैं, "शरणार्थी संकट की शुरुआत में जर्मनी के लोग सीमाएं खुली रखने और प्रवासियों को देश में आने देने के समर्थन में थे. बाद में लोग सोचने लगे कि हमने किन्हें आने दिया है. क्या ये सही फ़ैसला था और क्या चीज़ें हमारे नियंत्रण से बाहर जा रही हैं. मुझे लगता है कि मर्केल ने जब ये फ़ैसला किया था तब उन्हें जानकारी नहीं थी कि चीज़ें कैसे बदल जाएंगी और लोग कैसी प्रतिक्रिया देंगे."
जर्मनी में लोग नाराज़ हुए और एंगेला मर्केल की लोकप्रियता तेज़ी से कम हुई. तब धुर दक्षिणपंथी पार्टी अल्टरनेटिव फॉर जर्मनी (एएफडी) के लिए लोगों का समर्थन बढ़ने लगा. फिर आया साल 2020 और कोरोना महामारी. हवा का रुख़ दोबारा बदल गया. याना कहती हैं कि तमाम संकटों के दौरान एंगेला जर्मनी की उम्दा चांसलर साबित हुईं.
यहां के लोग जब बीते 10 सालों को देखते हैं तो उन्हें अभूतपूर्व ख़ुशहाली नज़र आती है. बेरोज़गारी घटी है. अर्थव्यवस्था मज़बूत है. लेकिन जर्मनी के लोग ये सोचकर फ़िक्रमंद हैं कि जब एंगेला मर्केल चांसलर नहीं रहेंगीं तब संकट की स्थितियों के दौरान देश का प्रबंधन कौशल कसौटी पर आ सकता है.
जर्मनी की अर्थव्यवस्था का दसवां हिस्सा कार निर्माण और सप्लाई पर टिका है. जर्मनी में क़रीब दस लाख लोग सीधे या किसी न किसी तौर पर ऑटो सेक्टर का हिस्सा हैं. इस सेक्टर पर जर्मनी का बहुत कुछ दांव पर लगा होता है.
लेकिन अब इस क्षेत्र में बदलाव की जरूरत महसूस होने लगी है. यूनिवर्सिटी ऑफ़ बासेल के प्रोफ़ेसर ऑलिवर नैचवे की राय में जर्मनी के इंजन को पूरी तरह से मरम्मत किए जाने की ज़रूरत है.
वो कहते हैं, "आने वाले सालों में जर्मनी की अर्थव्यवस्था की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक होगा निर्माण के ऐसे मॉडल को अपनाना जो ज़्यादा टिकाऊ और पर्यावरण के ज़्यादा माकूल हो. जर्मनी की अर्थव्यवस्था बहुत हद तक निर्माण, ख़ासकर कार के निर्माण पर टिकी है. ग्लोबल वार्मिंग पर इसका काफ़ी असर होता है. ये एक ऐसा क्षेत्र है जहां नई खोज होती रहती है. इसमें श्रमिकों की भी माँग रहती है. ये क्षेत्र राजनीति को भी काफ़ी प्रभावित करता है."
प्रोफ़ेसर ऑलिवर को जर्मनी के तकनीकी कौशल पर भरोसा है. लेकिन उन्हें एक फ़िक्र भी है. उनकी राय है कि जर्मन कारों की माँग दो बातों पर टिकी है, जो शायद भविष्य में उतनी मज़बूत न रहें. इनमें से पहली है चीन में मध्यवर्ग के लोगों की लगातार बढ़ती संख्या और दूसरी है पूर्वी यूरोप में उपलब्ध सस्ता श्रम. वो कहते हैं कि बीते दस साल में ये दो वजह जर्मनी की कामयाबी और अर्थव्यवस्था बढ़ने के अहम कारण थे. लेकिन अब स्थिति बदल रही है.
कैसे दूर होगी असमानता?
प्रोफ़ेसर ऑलिवर कहते हैं, "जो समस्या सबसे बड़ी है, वो है जर्मनी में पिछले बीस साल के दौरान बनी असमानता है. जर्मनी की कुल श्रमशक्ति में से एक चौथाई कम वेतन पर काम करती है. जर्मनी में जिन क्षेत्रों में कम मज़दूरी मिलती है, वो मज़दूरी के लिहाज़ से यूरोप में सबसे निचले पायदान पर हैं."
इसे देखते हुए एंगेला मर्केल के उत्तराधिकारी के लिए सामाजिक एकजुटता बनाए रखना एक बड़ी चुनौती हो सकती है.
प्रोफ़ेसर ऑलिवर कहते हैं, "मिडिल क्लास का एक तबक़ा अपने भविष्य को लेकर चिंतित है. उन्हें अपने बच्चों के भविष्य की चिंता है. भविष्य को लेकर इस फ़िक्र ने जर्मनी में ध्रुवीकरण की शुरुआत करा दी है. इसका अनुभव दुनिया के दूसरे देश भी कर चुके हैं. मसलन ब्रिटेन, अमरीका, फ्रांस या फिर इटली. अगर हालात बेहतरी की दिशा में नहीं गए तो जर्मनी में पहले से कहीं ज़्यादा अस्थिरता देखने को मिल सकती है."
ज़मीनी सच ये है कि जर्मनी यूरोपीय यूनियन का सबसे ज़्यादा आबादी वाला और सबसे अमीर देश है. ऐसे में जब यूरोपीय यूनियन को दिशा दिखाने का मौक़ा आता है, तब जर्मनी ही आगे बढ़ने की राह तय करता है लेकिन इसमें भी कुछ पेंच हैं.
'द पैराडॉक्स ऑफ़ जर्मन पावर' नाम की किताब के लेखक और यूरोप की राजनीति पर नज़र रखने वाले विश्लेषक हंस कंडनानी कहते हैं, "अगर सरल शब्दों में कहें तो जर्मनी इतना शक्तिशाली है कि वो नियम तय कर सके. लेकिन उसके पास इतनी शक्ति नहीं है कि दबदबे के ज़रिए नियम लागू करा सके. दूसरे देशों के पास इतनी ताक़त है कि वो नियम तोड़ सकें. लेकिन उनके पास इतनी शक्ति नहीं है कि नियमों को बदल सकें. यूरो संकट और शरणार्थी संकट दोनों के ही समय यही देखने को मिला था. यूरोप में अब भी यही स्थिति है."
हंस की राय है कि जर्मनी को अक्सर ख़ुशफ़हमी में ये मानकर चलता है कि उनके और यूरोप के हित मोटे तौर पर एक से हैं.
हंस कहते हैं कि यूरोज़ोन संकट के वक़्त जर्मनी अपने हित दूसरे देशों पर थोपने की कोशिश कर रहा था. तब एंगेला मर्केल ने कमज़ोर देशों को लेकर कड़ा रुख़ अपनाया था. इसका मक़सद जर्मनी के हितों की रक्षा करना था लेकिन उन्होंने तस्वीर ऐसी पेश की मानो उनके क़दम यूरोप के हित में हों.
हंस कंडनानी कहते हैं, "यूरो संकट की शुरुआत से ही एंगेला मर्केल ने जर्मनी की रणनीति तय कर दी थी. वो यूरोप को जर्मनी की छवि में ढालना चाहती थीं. ख़ासकर आर्थिक मामलों में. जर्मनी में तमाम लोगों की राय यही थी कि संकट को टालने का सही तरीक़ा यही है. ये तमाम तरह से दिक्क़त की बात है लेकिन जर्मनी की नीति ऐसी ही रही है."
बदलेंगे रिश्ते?
ये भी माना जा रहा है कि अमेरिका के नए राष्ट्रपति जो बाइडन जर्मनी के साथ रिश्ते सुधारना चाहेंगे. लेकिन इसकी राह में दो बड़ी बाधाएं हैं. ये हैं आर्थिक क्षेत्र और सुरक्षा का मामला.
हंस कंडनानी कहते हैं, "ये देखना होगा कि बाइडन प्रशासन रक्षा पर ख़र्च बढ़ाने और अपने आर्थिक ढांचे में सुधार के लिए जर्मनी पर किस हद तक दबाव बना पाता है."
जर्मनी की अर्थव्यवस्था में चीन की भूमिका अहम है. हंस का कहना है कि ये एक ऐसी राजनीतिक साझेदारी है जिसे बनाए रखना एंगेला मर्केल के उत्तराधिकारी एक मुश्किल चुनौती होगी.
हंस कंडनानी कहते हैं, "मर्केल जब से चांसलर बनीं, उन्होंने लगभग हर साल चीन का दौरा किया. आर्थिक साझेदारी के अलावा दोनों देशों की साझा कैबिनेट मीटिंग भी होती रही हैं. लेकिन अब ये स्थिति जर्मनी के लिए मुश्किल बन गई है. ख़ासकर अमेरिका और जर्मनी के रिश्तों के लिहाज़ से यही लगता है."
कौन होगा अगला चांसलर?
बड़ा सवाल ये भी है कि एंगेला मर्केल की जगह कौन लेगा ?
एंगेला मर्केल ने सीडीयू की कमान साल 2018 में छोड़ दी थी. उनकी जगह आनेग्रेट क्राम्प-कारेनबावर को नेता चुना गया था. जर्मनी के लोग उन्हें मिनी मर्केल कहते रहे हैं. लेकिन वक़्त के साथ ज़ाहिर होता गया कि उनमें एंगेला मर्केल जैसा दबदबा नहीं हैं. उन्होंने बीते साल फ़रवरी में इस्तीफ़ा दे दिया.
जर्मनी की राजनीति पर क़रीबी नज़र रखने वाली पत्रकार मेलानी अमन कहती हैं," ये सीडीयू के लिए एक दुखद अध्याय था. जब ये महिला आईं थीं तो उनकी काफ़ी तारीफ़ होती थी, उन्हें लेकर काफ़ी उम्मीदें लगाई गई थीं. तब माना गया था कि वो यक़ीनन चांसलर बनेंगी."
और अब जब एंगेला मर्केल की विदाई भी क़रीब है तब जर्मनी के कई लोग चाहते हैं कि वो अक्टूबर के बाद भी पद पर बनी रहें. मर्केल इससे इनकार कर चुकी हैं और इस बीच सीडीयू ने आर्मिन लाशेट को नया नेता चुना है. लाशेट नॉर्थ राइन वेस्टफ़ेलिया राज्य के मुख्यमंत्री हैं. उन्होंने पार्टी के सम्मेलन में एंगेला मर्केल के पुरानी प्रतिद्वंद्वी फ्रेडरिक मैर्त्स को मात दी. रेस में शामिल तीसरे उम्मीदवार नॉर्बर्ट रोएटगेन पहले ही दौर में बाहर हो गए. आर्मिन लाशेट के मुस्लिम समूहों के साथ अच्छे संबंध हैं.
मेलानी अमन कहती हैं, "एक वक़्त ऐसा भी था जब सीडीयू के अंदर ही उनकी लोकप्रियता काफ़ी घट गई थी. इसकी वजह ये थी कि वो मुसलमान सदस्यों के साथ काफ़ी घुलते मिलते थे. तब उन्हें तुर्क आर्मिन कहा जाने लगा था. लेकिन अब उन्होंने ख़ुद को काफ़ी मज़बूत बना लिया है."
मेलानी अमन की राय है कि अब नए नेता के अगला चांसलर बनने की संभावना सबसे ज़्यादा रहेगी.
वो कहती हैं, "जर्मनी में फ़िलहाल सोशल डेमोक्रेट्स संघर्ष कर रहे हैं. चुनाव में उनका प्रदर्शन ख़राब रहा है. मर्केल जब से चांसलर बनी हैं, तब से हर चुनाव में उनका आधार घटा है. अगर वो चांसलर पद के लिए उम्मीदवार भी खड़ा करेंगे तो लोगों को हैरानी होगी."
कोरोना महामारी जब से शुरू हुई है तब से दक्षिणपंथी पार्टी एएफ़डी के समर्थन में भी कमी आई है. इस दौरान ग्रीन पार्टी ने प्रगति की है.
मेलानी अमन के मुताबिक़, "एक वक़्त चुनाव में उनका प्रदर्शन इतना उम्दा था कि उन्हें सीडीयू से मज़बूत माना जा रहा था. तब ये बात की जा रही थी कि एक दिन जर्मनी का चांसलर ग्रीन पार्टी से होगा. देखना दिलचस्प होगा कि क्या वो इस कामयाबी को जारी रख पाते हैं."
हालांकि, फ़िलहाल तय ये है कि नौ महीने बाद जर्मनी के लोग नए चांसलर का चुनाव करेंगे. लेकिन अभी ये तय नहीं है कि लाशेट ही अगले चांसलर बनें. उन्हें स्वास्थ्य मंत्री येन्स श्पान और सीएसयू के नेता मार्कुस ज़ूडर से चुनौती मिल सकती है.
चांसलर चाहे जो बने लेकिन ये सवाल सामने रहेगा कि क्या जर्मनी एंगेला मर्केल के बिना ख़ुद को संभाल सकेगा. फ़िलहाल दुनिया के तमाम देशों की तरह जर्मनी भी कोरोना महामारी से आर्थिक मोर्चे पर मिले झटके से जूझ रहा है. चुनौतियां यूरोप के दूसरे देशों के साझा दिक्क़तों से निपटने की भी होंगी.
जर्मनी के अगले चांसलर को न सिर्फ़ समझबूझ दिखानी होगी बल्कि एक ऐसा व्यापक नज़रिया भी पेश करना होगा, जिसके न होने को लेकर एंगेला मर्केल की भी आलोचना होती रही थी. (bbc.com)
धर्मशाला, 22 जनवरी | तिब्बती लोगों के लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित नेता लोबसांग सांगे ने गुरुवार को उम्मीद जताई कि राष्ट्रपति जो बाइडन के नेतृत्व में अमेरिका का नया प्रशासन तिब्बत और तिब्बती लोगों के लिए अमेरिका का समर्थन लगातार जारी रखेगा। उन्होंने अमेरिका के 46वें राष्ट्रपति और 49वीं उपराष्ट्रपति के रूप में शपथ लेने पर बाइडन और कमला हैरिस को बधाई देते हुए यह टिप्पणी की।
सांगे ने अपने एक बधाई संदेश में कहा, "केंद्रीय तिब्बती प्रशासन और तिब्बती लोगों की ओर से, मैं संयुक्त राज्य अमेरिका के 46वें राष्ट्रपति के तौर पर शपथ लेने के लिए आपको बधाई देता हूं।"
उन्होंने कहा, "अमेरिका ने दशकों से विभिन्न मोचरें पर तिब्बत मुद्दे का समर्थन किया है और हम हमेशा अमेरिका और उसके लोगों के आभारी हैं।"
सांगे ने कहा, "हालांकि आज चिंता केवल तिब्बती लोगों के लिए नहीं रह गई है, इसके बजाय आज चिंता वैश्विक लोकतंत्र और सार्वभौमिक आदशरें के लिए है, जो चीन जैसे सत्तावादी शासन से खतरे में हैं।"
सांगे ने शपथ ग्रहण के बाद राष्ट्रपति बाइडन की ओर से दिए गए भाषण में आशा, एकता और लोकतंत्र के संदेश का स्वागत भी किया। सांगे ने कहा, "मैं वास्तव में राष्ट्र के लिए आपके दशकों की सेवा की प्रशंसा करता हूं। आपकी जीत आप में संयुक्त राज्य अमेरिका के लोगों के भरोसे की पुष्टि है, जिनके लिए आप खड़े हैं। एक सफल कार्यकाल के लिए मेरी ओर से हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।"
भारतीय मूल की हैरिस के उपराष्ट्रपति बनने पर भी सांगे ने खुशी जाहिर की। उन्होंने कहा कि अमेरिकी सरकार के इतिहास में सर्वोच्च रैंकिंग वाली महिला बनना, वैश्विक राजनीति और नेतृत्व में महिलाओं के लिए एक नए युग का प्रतीक है।
उन्होंने कहा कि यह दुनिया भर में भारतीयों के लिए बहुत गर्व और प्रेरणा का विषय है।
--आईएएनएस
चीन के सरकारी मीडिया ने जो बाइडन से चीन को लेकर डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों को पलटने की अपील की है ताकि दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंध फिर से पटरी पर आ सकें.
चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने उन मुद्दों को प्राथमिकता दी है जिसे बाइडन ने अपने संबोधन में चुनौतियों के तौर पर रेखांकित किया है.
बाइडन ने राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद अपने संबोधन में कोविड-19 महामारी, सामाजिक असमानता, नस्लीय भेदभाव और जलवायु परिवर्तन के मुद्दों को चुनौतियां बताया है.
शपथ ग्रहण समारोह में ट्रंप की अनुपस्थिति को भी एजेंसी ने ख़बर बनाते हुए लिखा है कि ट्रंप ने किस तरह से परंपरा तोड़ दी.
शिन्हुआ की अंग्रेज़ी वेबसाइट ने बाइडन के शपथ ग्रहण समारोह को कोविड महामारी के चलते आंशिक लॉकडाउन और छह जनवरी को कैपिटल हिल की हिंसा के बाद सुरक्षा व्यवस्था के कारण असामान्य बताया है.
चीन के सरकारी अख़बार ग्लोबल टाइम्स ने चीनी और अंग्रेज़ी में लिखे अपने संपादकीय में सत्ता हस्तांतरण को ट्रंप की ग़ैर-मौजूदगी के चलते सद्भावपूर्ण नहीं माना है. ट्रंप ने 19 जनवरी के अपने विदाई भाषण में चीन के ख़िलाफ़ सख़्ती से खड़े होने की अपील की थी, इसको चीनी मीडिया में उपहास के तौर पर देखा गया है.
बाइडन के सहयोगी ने 19 जनवरी को चीन के प्रति सख़्त रवैया जाहिर किया था.
इसको ध्यान में रखते हुए अख़बार ने लिखा है, "अगर बाइडन की टीम अगले चार सालों में कुछ हासिल करना चाहती है तो चीन के साथ संबंधों को सहज बनाना ही एकमात्र विकल्प है."
संपादकीय में बाइडन प्रशासन से अपील की है कि गंभीर मतभेदों को संभालते हुए उनमें चीन के साथ सहयोग का साहस होना चाहिए.
चीन के दूसरी सरकारी मीडिया आउटलेट्स ने भी बाइडन प्रशासन पर अमेरिका-चीन संबंधों को बेहतर करने के लिए दबाव बनाया है.
शिन्हुआ के अंग्रेज़ी कमेंट्री सेक्शन में कहा गया है कि बाइडन प्रशासन को डोनाल्ड ट्रंप से विरासत में अमेरिका और चीन के तनाव भरे संबंध मिले हैं. इसमें कहा गया है कि ट्रंप प्रशासन में ऐसे लोग शामिल थे जो अंतिम दिनों में भी चीन विरोधी उन्माद से काम कर रहे थे.
इसमें कहा गया है, "अमेरिका के नए राष्ट्रपति को बीजिंग प्रशासन के साथ तनाव को कम करना चाहिए और दोनों देशों के आपसी संबंधों को पटरी पर लाने के लिए चीन के साथ मिलकर काम करना चाहिए. अब यह बाइडन प्रशासन पर निर्भर है कि वो तर्कसंगत फ़ैसले ले और सही चीज़ों को करे."
सरकारी अख़बार बीजिंग न्यूज़ ने भी चीन को लेकर ट्रंप की नीतियों को पलटने की अपील बाइडन प्रशासन से की है. अख़बार ने उम्मीद जताई है कि बाइडन दोनों ताक़तवर देशों के बीच नए तरह के संबंध बनाने की शुरुआत करेंगे.
अख़बार ने अपने कमेंट्री सेक्शन में लिखा है, "बाइडन ने शपथ ग्रहण के दौरान क्या कहा, उस पर ध्यान देने के बदले भविष्य में वे क्या कहते हैं और क्या करते हैं, ये देखना होगा. अमेरिका चीन के साथ तनाव को कम करके सहयोग बढ़ाना चाहता है तो बाइडन प्रशासन को ट्रंप प्रशासन के कुछ फ़ैसलों को सही करना होगा और यह दिखाना होगा कि चीन के साथ अपने संबंधों को बेहतर बनाने के प्रति उनकी निष्ठा है."
अंग्रेज़ी सरकारी अख़बार चाइना डेली के यूरोप ब्यूरो चीफ़ चेन वेहुआ ने अंतरराष्ट्रीय पाठकों को ध्यान में रखते हुए लिखा है कि बाइडन को उन नीतियों को सही करना होगा जो चीन को नुक़सान पहुंचाने वाली थीं, इनमें दंडात्मक शुल्क, चीन की तकनीकी कंपनियों पर पाबंदी और कंफ्यूशियस इंस्टीट्यूट को लेकर जानबूझकर डर फैलाना शामिल है.
कई मीडिया आउटलेट्स ने ताइवान को लेकर बाइडन प्रशासन से सीमा नहीं लांघने की अपील की है.
बीजिंग प्रशासन ताइवान को चीन का हिस्सा मानता है. ताइवान की स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ने वाले लोगों को ट्रंप प्रशासन के समर्थन के मुद्दे पर चीन पहले भी आपत्ति जता चुका है. जब अमेरिका ने ताइपे के साथ अनाधिकारिक बातचीत पाबंदी हटाई थी, तब भी चीन ने अमेरिका को बदले की कार्रवाई के लिए चेताया था.
शिन्हुआ की अंग्रेज़ी वेबसाइट ने बाइडन प्रशासन से अपील की है कि वे ना तो ताइवान के मुद्दे पर चीन को चुनौती दें और ना ही साउथ चाइना सी सीमा विवाद में दख़ल दें. इस आलेख में यह भी कहा गया कि अगर अमेरिका चीन की सरकारी व्यवस्था को सामने रखकर चीन के प्रति नीतियों को तैयार करता है तो वह कहीं नहीं पहुंचेगा.
इसमें यह भी कहा गया है, "चीन-अमेरिका के आपसी संबंधों का पटरी पर लौटना बाइडन प्रशासन पर निर्भर है. दोनों दोशों के आपसी संबंधों के लिए एक दूसरे की सीमा को समझना होगा. जलवायु परिवर्तन जैसे दूसरे मुद्दों पर सहयोग के अवसर तलाशने होंगे."
ग्लोबल टाइम्स में प्रकाशित चीनी और अंग्रेज़ी में छपे संपादकीय में कहा गया है कि ट्रंप प्रशासन और ताइवान की राष्ट्रपति साई इंग-वेन की आपसी मिलीभगत के चलते बाइडन को ताइवान स्ट्रीट में नई चुनौतियों का सामना करना होगा. संपादकीय में इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि द्वीप का भाग्य अमेरिका नहीं बीजिंग ही तय करेगा. (बीबीसी)
डॉयचे वैले पर ईशा भाटिया लिखा-
मुर्गी अंडे देती है. इसलिए काम की होती है. और मुर्गा? वो खास किसी काम का नहीं होता, इसलिए पैदा होते ही ज्यादातर नर चूजों को मार दिया जाता है.
बहुत लोग इस बात से अनजान होते हैं कि दुनिया भर में हर दिन करोड़ों नर चूजों को मार दिया जाता है. मीट इंडस्ट्री में बाकायदा ऐसे लोगों को नौकरी पर रखा जाता है, जिनका काम ही होता है नर और मादा चूजों को अलग अलग करना. मादा चूजे बड़े हो कर मुर्गी के रूप में अंडे भी देते हैं और उसका मांस भी 'चिकन' के रूप में खाया जाता है.
वैसे, खाया तो मुर्गे को भी जा सकता है. लेकिन मुर्गी कम दाना चुग कर भी फल फूल जाती है जबकि मुर्गा खूब खाता है और फिर भी ना ज्यादा मासपेशियां बना पाता है और ना ही उसका 'चिकन' इतना स्वादिष्ट होता है. तो कुल मिला कर मुर्गा सिर्फ ब्रीडिंग के काम आता है. इसलिए इसे पालना मीट उद्योग के लिए घाटे का सौदा साबित होता है. यही वजह है कि पैदा होते ही नर चूजों को मार दिया जाता है.
नर चूजे पैदा ही ना हों
जर्मनी में अब इस पर रोक लगने जा रही है. ऐसा करने वाला जर्मनी दुनिया का पहला देश है. 2022 से नर चूजों को श्रेडर में डालने की प्रक्रिया पर प्रतिबंध लग जाएगा. चिकन फार्म मालिकों को सुनिश्चित करना होगा कि नर चूजे पैदा ही ना हों. इसके लिए उन्हें तकनीक का सहारा लेना होगा. ऐसी तकनीक जो अंडे को देख कर ही बता देगी कि उसके अंदर नर चूजा मौजूद है या फिर मादा.
जर्मनी की कृषि मंत्री यूलिया क्लोएकनेर ने संसद में यह विधेयक पेश करते हुए कहा, "बहुद दुखद है कि दुनिया भर में ऐसा किया जाता है. लेकिन मैं इसे नैतिक रूप से स्वीकार नहीं सकती. इसलिए हम कानूनी रूप से पहले ऐसे देश होंगे जो इस हत्या को बंद करने जा रहा है."
बुधवार से जर्मनी में "ग्रीन वीक" की शुरुआत हुई है. इसी दौरान संसद में यह बिल लाया गया है. अंडों में लिंग कैसे निर्धारित किया जाएगा, इस तकनीक पर चर्चा चल रही है. 2024 से सिर्फ ऐसी तकनीक के इस्तेमाल को मंजूरी होगी जिसमें भ्रूण को कोई नुकसान या दर्द ना हो.
बढ़ जाएंगे दाम
अकेले जर्मनी में ही हर साल साढ़े चार करोड़ नर चूजे मार दिए जाते हैं. पशु कल्याण कार्यकर्ता इसे "चिक श्रेडिंग" कहते हैं. इसे लेकर ना केवल वे विरोध प्रदर्शन करते रहे हैं, बल्कि अदालत भी पहुंचे हैं. 2019 में अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि श्रेडिंग रोकना मीट उद्योग के आर्थिक लाभ को नजरअंदाज करता है, इसलिए इसे जायज माना जाए.
रिपोर्टों के अनुसार इस नए कानून के अमल में आने के बाद से देश में चिकन और अंडों के दाम बढ़ जाएंगे जिसका फार्म मालिक विरोध कर रहे हैं. जर्मनी में मीट की काफी बड़ी वैरायटी होती है. मुर्गों को किस हाल में रखा गया, उन्हें क्या खिलाया गया, वे कितने खुशहाल थे, इस सब के अनुसार उनके दामों को चार अलग श्रेणियों में बांटा जाता है. जहां पहली श्रेणी का चिकन मात्र तीन यूरो प्रति किलो में मिल जाता है, वहीं चौथी श्रेणी का पंद्रह से बीस यूरो यानी लगभग डेढ़ हजार रुपये प्रति किलो में मिलता है. ऐसा ही अंडों के साथ भी है. (dw.com)
(डीपीए)
बगदाद, 21 जनवरी | बगदाद के भीड़ भरे बाजार में गुरुवार को हुए दोहरे आत्मघाती विस्फोट में कम से कम 13 लोग मारे गए और 30 अन्य घायल हो गए। बीबीसी ने अपनी एक रिपोर्ट में एक सैन्य अधिकारी का हवाला देते हुए कहा कि जैसे ही सुरक्षाबलों ने हमलावरों का पीछा किया, उन्होंने बाबर अल-शरकी के तायरान स्क्वायर में स्थित एक कपड़े के बाजार में खुद को उड़ा लिया।
इस बीच, इराकी गृह मंत्रालय के सूत्र ने समाचार एजेंसी सिन्हुआ को बताया कि एम्बुलेंस से घायलों को पास के अस्पतालों और चिकित्सा केंद्रों में पहुंचाया गया है।
किसी भी समूह ने अबतक घटना की जिम्मेदारी नहीं ली है। (आईएएनएस)
मैड्रिड, 21 जनवरी | मैड्रिड के केंद्र में एक इमारत में हुए विस्फोट में तीन लोगों की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, मैड्रिड के मेयर जोस लुइस मार्टिनेज-अल्मेडा ने संवाददाताओं को संबोधित करते हुए कहा कि विस्फोट में 85 वर्षीय एक महिला और पुरुष की मौत हो गई। विस्फोट बुधवार को अपराह्न् 3 बजे से ठीक पहले प्लाजा मेयर के करीब टोलेडो स्ट्रीट में हुआ।
बाद में दिन में, मैड्रिड में सरकारी प्रतिनिधि, जोस मैनुअल फैंको ने पुष्टि की कि एक तीसरे व्यक्ति की भी मौत हो गई, जबकि एक अन्य लापता है।
माना जा रहा है कि विस्फोट के समय हीटिंग सिस्टम पर काम करने वाला व्यक्ति लापता हो गया है।
हालांकि अभी तक फायर ब्रिगेड ने विस्फोट की पुष्टि नहीं की है, लेकिन मार्टिनेज-अल्मेडा ने बताया कि गैस रिसाव विस्फोट का सबसे संभावित कारण हो सकता है। (आईएएनएस)
अमेरिका के राष्ट्रपति बनने के तुरंत बाद जो बाइडन ने अपने पूर्ववर्ती डोनाल्ड ट्रंप की कुछ नीतियों को पलटने का काम शुरू कर दिया है.
शपथग्रहण समारोह के बाद काम शुरू करने से पहले व्हाइट हाउस के लिए रवाना हुए बाइडन ने सोशल मीडिया पर लिखा, "हमें हमारे सामने मौजूद संकट से निपटना है, हमारे पास बर्बाद करने के लिए वक्त नहीं है."
राष्ट्रपति बनने के बाद सबसे पहले उन्होंने 15 एग्ज़िक्युटिव ऑर्डर पर हस्ताक्षर किए हैं, जिनमें कोरोना महामारी से निपटने में सरकार को मदद मिलने संबंधी ऑर्डर भी शामिल हैं.
इसके अलावा इसमें जलवायु संकट और अप्रवासन संबंधी ट्रंप प्रशासन की नीतियों को बदलने के लिए नए आदेश भी शामिल हैं.
इससे पहले ओवल ऑफ़िस (अपने दफ़्तर) में काला मास्क पहनकर आए राष्ट्रपति बाइडन ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि उनकी बड़ी प्राथमिकताओं में 'कोविड संकट', 'आर्थिक संकट' और 'जलवायु संकट' शामिल हैं.
बुधवार को एक विशेष समारोह में जो बाइडन ने देश के 46वें राष्ट्रपति के तौर पर शपथ ग्रहण किया जिसमें कोविड-19 महामारी के कारण कम ही लोग उपस्थित थे.
हालाँकि तीन पूर्व-राष्ट्रपति, बराक ओबामा, बिल क्लिंटन और जॉर्ज डब्ल्यू बुश उनके शपथग्रहण समारोह में मौजूद थे. साथ ही ट्रंप प्रशासन में उप-राष्ट्रपति रहे माइक पेंस भी इस दौरान मौजूद रहे.
राष्ट्रपति ने स्पष्ट किया कि "न केवल ट्रंप प्रशासन के फ़ैसलों से देश को जो नुक़सान हुआ है उसे बदलने के लिए बल्कि देश को आगे बढ़ाने के लिए, हम एक्शन लेंगे."
कोरोना वायरस महामारी के मद्देनज़र उन्होंने सभी सरकारी दफ़्तरों के परिसर में मास्क पहनना और सोशल डिस्टेंन्सिंग का पालन करना अनिवार्य कर दिया है. अब तक कोरोना वायरस के कारण अमेरिका में चार लाख से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है.
बाइडन ने फ़ैसला लिया है कि महामारी पर प्रतिक्रिया के समन्वय के लिए एक नया ऑफिस स्थापित किया जाएगा.
इसके साथ ही विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) से अमेरिका को अलग करने की जो प्रक्रिया डोनाल्ड ट्रंप ने शुरू की थी, बाइडन उस फ़ैसले को खारिज करने के लिए एक्शन लेंगे.
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने बाइडन प्रशासन के इस फ़ैसले का स्वागत किया है. उनके प्रवक्ता स्टीफ़न दुजारिक ने कहा कि गुटेरेस ने अधिक समन्वित वैश्विक प्रतिक्रिया के लिए इसे बहुत अहम बताया.
संक्रामक बीमारियों के शीर्ष अमेरिकी विशेषज्ञ डॉ एंटोनी फाउची के नेतृत्व में बाइडन प्रशासन की एक टीम डब्ल्यूएचओ के एग्ज़िक्युटिव बोर्ड की बैठक में शामिल होगी. डब्ल्यूएचओ के साथ रिश्ते सामान्य होने पर अमेरिका इसे मजबूत करने पर काम करेगा और कोरोना महामारी से लड़ाई में सहयोग करेगा.
बाइडन ने 2015 के पेरिस जलवायु समझौते में शामिल होने के लिए एक एग्ज़िक्युटिव ऑर्डर पर हस्ताक्षर किया, जिससे ट्रंप ने औपचारिक रूप से पिछले साल अमेरिका को वापस ले लिया था.
बाइडन ने राष्ट्रपति से मिली विवादास्पद कीस्टोन एक्सएल पाइपलाइन पर डोनाल्ड ट्रंप के फ़ैसले को रद्द कर दिया, जिसे लेकर पर्यावरणविदों और अमेरिका के मूल निवासियों ने एक दशक से भी अधिक समय तक संघर्ष किया है.
ट्रंप ने 2019 में कनाडा के साथ 1,900 किलोमीटर लंबी तेल पाइपलाइन बनाने का करार किया था. बराक ओबामा प्रशासन ने भी पर्यावरण समूहों के विरोध को देखते हुए इस पाइपलाइन के निर्माण पर बैन लगा दिया था. पर्यावरण समूहों का कहना था कि क्रूड ऑयल निकालने के कारण ग्रीनहाउस गैसों का 17 फीसदी ज़्यादा उत्सर्जन होगा.
निजी वित्तीय सहायता से बनने वाली इस पाइपलाइन की लागत क़रीब 8 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी और इसके ज़रिए कनाडा के अल्बर्टा से नेब्रास्का तक एक दिन में लगभग 830000 बैरल हेवी क्रूड ले जाने की योजना थी.
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की प्रेस सचिव जेन साकी ने अपनी पहली व्हाइट हाउस ब्रीफिंग में बताया कि नए राष्ट्रपति इस हफ़्ते के अंत तक कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो से भी इस बारे में बात करेंगे. ट्रूडो पहले विदेशी नेता होंगे जिनसे राष्ट्रपति बनने के बाद बाइडन सबसे पहले बात करेंगे.
कई मुस्लिम देशों से ट्रैवल बैन हटाया
बाइडन ने अप्रवासन संबंधी ट्रंप प्रशासन की आपातकालीन घोषणा जिसमें मैक्सिको की सीमा के साथ एक दीवार के निर्माण में मदद करना और 13 देशों पर से यात्रा प्रतिबंध हटाने का है, जिनमें ज़्यादातर मुस्लिम बहुसंख्यक देश और अफ़्रीकी देश शामिल हैं. ट्रंप ने कई मुस्लिम देशों और अफ़्रीकी देशों से मुस्लिमों के अमेरिका में प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया था.
आव्रसन को लेकर बाइडन ने एक मेमोरेंडम पर हस्ताक्षर करके होमलैंड सिक्योरिटी और अमेरिकी अटॉर्नी जनरल को निर्देश दिया जो निर्वासित बच्चों के रूप में देश में आए प्रवासियों की रक्षा करता है. इससे उन लोगों को अमेरिकी नागरिकता मिल सकेगी जो बच्चे के तौर पर देश में आए और कई वर्षों तक अमेरिकी विकास में योगदान किया है.
साथ ही यह भी बताया गया है कि वो इस संबंध में क़ानून बनाने के लिए एक विस्तृत बिल अमेरिकी संसद को भेजेंगे.
मोराटोरियम पर फ़ैसला
आर्थिक मोर्चे पर राष्ट्रपति जो बाइडन ने सीडीसीसेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल ऐंड प्रीवेंशन (सीडीसी) से मोराटोरियम पर बेदख़ली को मार्च तक बढ़ाने के लिए कहा है, और शिक्षा विभाग से स्टूडेंट लोन की अदायगी को सितंबर तक बढ़ाने को कहा है.
उन्होंने संघीय योजनाओं और संस्थानों में किसी भी प्रकार के नस्लीय भेदभाव को समाप्त करने के एक एग्ज़िक्युटिव ऑर्डर पर भी हस्ताक्षर किया.
प्रेस सेक्रेटरी जेन साकी ने कहा, "आने वाले दिनों और हफ़्तों में, हम अतिरिक्त प्रशासनिक फ़ैसलों की घोषणा करेंगे." (bbc.com)
माउंट एवरेस्ट से इकट्ठा किए गए कचरे को नेपाल कला में बदलकर उसे पास की एक गैलरी में प्रदर्शित करने की योजना बना रहा है. इसका मकसद दुनिया की सबसे ऊंची चोटी को कचरे के अंबार से बचाना है.
माउंट एवरेस्ट से जमा किए गए कचरे को कला में तब्दील कर दुनिया के सामने एक आर्ट गैलरी के जरिए प्रदर्शित किया जाएगा ताकि दुनिया के सबसे ऊंच पर्वत को डंपिंग साइट बनने से बचाने के लिए लोगों का ध्यान आकर्षित किया जा सके. पर्वत पर चढ़ाई करने वाले अपने पीछे कचरा छोड़कर चले जाते हैं. इस्तेमाल किए हुए ऑक्सीजन सिलेंडर, फटे हुए टेंट, रस्सी, टूटी हुई सीढ़ियां, बोतल और प्लास्टिक को पर्वतारोही और ट्रैकर अपने पीछे ही छोड़कर चले जाते हैं. 8,848.86 मीटर ऊंची चोटी और आस पास के क्षेत्र में इस तरह का कचरा फैला रहता है.
सगरमाथा नेक्स्ट केंद्र के परियोजना निदेशक और सह-संस्थापक टॉमी गुस्टाफसन के मुताबिक विदेशी और स्थानीय कलाकारों को कचरे को कला में तब्दील करना सिखाया जाएगा. गुस्टाफसन ने रॉयटर्स को बताया, "हम दिखाना चाहते हैं कि आप कैसे ठोस कचरे को कला के अनमोल टुकड़ों में बदल सकते हैं और रोजगार और आय पैदा कर सकते हैं." उन्होंने कहा, "इसके जरिए हम कचरे के बारे में लोगों की धारणाओं को बदलने और इसे प्रबंधित करने की उम्मीद करते हैं."
यह केंद्र स्यांगबोचे में 3,780 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है, यह एवरेस्ट बेस कैंप के मुख्य मार्ग पर है और यहां पहुंचने में लुक्ला से दो दिन पैदल सफर करना पड़ता है. गुस्टाफसन कहते हैं कि यह कला केंद्र वसंत ऋतु में स्थानीय लोगों के लिए खोला जाएगा, कोरोना वायरस के कारण लगी पाबंदियों की वजह से यहां आने वालों की संख्या सीमित होगी. उन्होंने कहा कि पर्यावरण के लिए जागरूकता बढ़ाने के लिए उत्पादों और कलाकृतियों को प्रदर्शित किया जाएगा. स्मृति चिह्न की बिक्री से होने वाली आय का इस्तेमाल क्षेत्र के संरक्षण के लिए होगा.
पहाड़ और चढ़ाई वाले रास्ते, घरों और चाय की दुकानों से कचरे को इकट्ठा करने का काम स्थानीय पर्यावरण समूह, सगरमाथा प्रदूषण नियंत्रण समिति द्वारा किया जाता जाता है, लेकिन एक ऐसे क्षेत्र में काम करना बड़ी चुनौती है जहां कोई सड़क नहीं है. आम तौर पर कचरे को खुले गड्ढों में डाल दिया या फिर जलाया जाता है जिससे वायु और जल प्रदूषण के साथ-साथ मिट्टी भी प्रदूषित होती है.
योजना में शामिल इको हिमल समूह के पिंजो शेरपा के मुताबिक "कैरी मी बैक" पहल के तहत पर्यटक और गाइड को एक किलो कचरा लुक्ला एयरपोर्ट तक वापस ले जाने के लिए अनुरोध किया जाएगा. यहां से कचरे को काठमांडू तक ले जाया जाएगा. साल 2019 में 60 हजार से अधिक ट्रेकर्स, पर्वतारोहियों और गाइडों ने क्षेत्र का दौरा किया था. शेरपा कहते हैं, "अगर हम पर्यटकों को इसमें शामिल करते हैं तो भारी मात्रा में कचरे का प्रबंधन कर सकते हैं."
एए/सीके (रॉयटर्स)
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इस्लामाबाद, 21 जनवरी | पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने कहा कि इस्लामाबाद ने यूरोपीय संघ (ईयू) के साथ अपने संबंधों को बहुत महत्व दिया है, जो साझा मूल्यों और शांति, समृद्धि और विकास के साझा उद्देश्यों पर आधारित है। कुरैशी ने बुधवार को देश के लिए काम कर रहे ब्लॉक के राजदूतों के लिए लंच की मेजबानी करते हुए कहा कि, पाकिस्तान-यूरोपीय संघ के संबंध सालों में लगातार मजबूत हुए हैं और साउंड इंस्टीट्यूशनल मैकेनिज्म और संवाद प्रक्रियाओं के माध्यम से आगे बढ़ रहे हैं।
बयान में आगे कहा गया कि, विदेश मंत्रालय ने कहा कि कुरैशी ने आर्थिक और सांस्कृतिक कूटनीति के महत्व पर प्रकाश डाला और इन क्षेत्रों में दोनों पक्षों के बीच गहरे जुड़ाव का आह्वान किया।
पाकिस्तानी सरकार द्वारा अपनाए गए कोविड विरोधी उपायों के बारे में बात करते हुए कुरैशी ने कहा कि जान बचाने और आजीविका चलाने के लिए स्मार्ट लॉकडाउन रणनीति सफल रही है और साथ ही निर्यात सहित देश में आर्थिक गतिविधियों में वृद्धि हुई है।
बयान में कुरैशी के हवाले से कहा कि, वैश्विक समुदाय को वायरस का मुकाबला करने के लिए एक साथ आना चाहिए और यह महसूस करना चाहिए कि कोई भी तब तक सुरक्षित नहीं है जब तक सभी सुरक्षित न हों।
बैठक के दौरान, राजदूतों ने यूरोपीय संघ-पाकिस्तान संबंधों और क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर घनिष्ठ जुड़ाव के महत्व को रेखांकित किया। (आईएएनएस)
सैन फ्रांसिस्को, 21 जनवरी | ट्विटर ने अपनी नीति में परिवर्तन के एक हिस्से के रूप में ट्रांसफर करने की जगह 'पोटस' और 'व्हाटस हाऊस' अकांउट से सभी फॉलोअर्स को रिमूव कर दिया है। ट्रंप प्रशासन के ट्विटर अकांउट्स अब सार्वजनिक रूप से आर्काइव कर दिए गए हैं, जिनमें 'पोटस 45', 'व्हाटस हाऊस 45', 'वीपी 45', 'प्रेस सेकेट्ररी 45', 'फ्लोटस 45' और 'सेकेंड लेडी 45' शामिल रहे हैं।
द वर्ज की रिपोर्ट के मुताबिक, व्हाइट हाऊस, राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, प्रथम महिला और व्हाइट हाऊस प्रेस सचिव को अब उनके नए यूजरनेम मिले हैं जैसे कि 'ट्रांजिशन 46' अब 'व्हाइट हाऊस' बन गया है, जबकि 'प्रेस इलेक्ट बाइडन' अब 'पोटस' बन गया है। इनके अलावा, 'सेन कमला हैरिस' अकाउंट को अब 'वीपी' में तब्दील कर दिया गया है, जबकि 'फ्लोटस बाइडन' को 'फ्लोटस' में परिवर्तित किया गया है।
साल 2017 में जब ट्रंप प्रशासन ने बराक ओबामा के प्रशासन से अपने कार्यभार को संभाला था, तब माइक्रोब्लॉगिंग साइट ने इससे बिल्कुल विपरीत काम किया था। ट्विटर ने उस दौरान मौजूदा अकाउंट्स को डुप्लीकेट किया था और ओबामा काल के ट्वीट्स और फॉलोअर्स को आर्काइव कर दिया था।
कंपनी के मुताबिक, व्हाइट हाऊस अकाउंट ट्रांसफर्स के संबंध में कई अलग-अलग पहलुओं पर बाइडन की ट्रांजिशन टीम से बात की जा रही है।
बुधवार को इस रिपोर्ट में कहा गया, "बाइडन की टीम नीति में हुए बदलाव से नाखुश दिखाई पड़ रहे हैं क्योंकि इसके चलते वे अपना डिजिटल लाभ खो देंगे।"
'पोटस' 3.3 करोड़ फॉलोअर्स हैं, 'व्हाइट हाऊस' के 2.6 करोड़ फॉलोअर्स हैं, 'फ्लोटस' के 1.6 करोड़ फॉलोअर्स हैं, जबकि 'प्रेस सेकेट्ररी' के 60 लाख फॉलोअर्स हैं।
डोनाल्ड ट्रंप के 'पोटस' अकाउंट का नाम बदलकर अब 'पोटस 45' कर दिया जाएगा, जबकि 'रियल डोनाल्ड ट्रंप' के नाम से बने उनके निजी अकांउट को पहले ही बैन कर दिया गया है। कुछ आपत्तिजनक और भ्रामक ट्वीट्स इसके पीछे की वजह रही। इस बैन के बाद से ट्रंप ने अपने कई फॉलोअर्स खो दिए। (आईएएनएस)
संयुक्त राष्ट्र, 21 जनवरी संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते में फिर से प्रवेश करने के लिए नए अमेरिकी प्रशासन की घोषणा का स्वागत किया है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, गुटेरस ने बुधवार को बयान में कहा, "मैं जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते में फिर से प्रवेश करने और सरकारों, शहरों, राज्यों, व्यवसायों और जलवायु संकट का सामना करने के लिए महत्वाकांक्षी कार्रवाई करने वाले लोगों के बढ़ते गठबंधन में शामिल होने के लिए राष्ट्रपति (जो) बाइडन का गर्मजोशी से स्वागत करता हूं।"
उन्होंने कहा कि पिछले साल के क्लाइमेट एंबिशन समिट के बाद वैश्विक कार्बन प्रदूषण का आधा उत्पादन करने वाले देशों ने कार्बन तटस्थता के लिए प्रतिबद्धता जताई थी। राष्ट्रपति बाइडन द्वारा बुधवार की प्रतिबद्धता उस आंकड़े को दो-तिहाई तक लाती है।
उन्होंने कहा लेकिन अभी भी बहुत लंबा रास्ता तय करना है। जलवायु संकट बदतर होता जा रहा है और 1.5 डिग्री सेल्सियस तक तापमान वृद्धि को सीमित करने और अधिक जलवायु-प्रतिरोधक समाजों का निर्माण करने के लिए समय बीतता जा रहा है।
उन्होंने कहा, "हम इस साल के अंत में ग्लासगो में सीओपी26 के एडवांस में महत्वाकांक्षी 2030 लक्ष्यों और जलवायु वित्त के साथ एक नए राष्ट्रीय रूप से निर्धारित योगदान को आगे लाने सहित, नेट-जीरो (उत्सर्जन) की दिशा में वैश्विक प्रयासों को तेज करने में संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व के लिए तत्पर हैं। मैं जलवायु आपातकाल को दूर करने और कोविड-19 से बेहतर तरीके से लड़ने के लिए राष्ट्रपति बाइडन और अन्य नेताओं के साथ मिलकर काम करने के लिए प्रतिबद्ध हूं।"
संयुक्त राज्य अमेरिका के 46वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेने के कुछ घंटे बाद बाइडन ने बुधवार को जलवायु परिवर्तन पर 2015 के पेरिस समझौते में अमेरिका के लौटने के एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर करते हुए पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के फैसले को रद्द कर दिया। (आईएएनएस)
अरुल लुईस
न्यूयॉर्क, 21 जनवरी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने यूएस इंटरनेशनल डेवलपमेंट फाइनेंस कॉपोर्रेशन (यूएसआईडीएफसी) के कार्यकारी प्रमुख के रूप में देव जगदेसन को नियुक्त किया है। यह जानकारी व्हाइट हाउस द्वारा की गई घोषणा से मिली।
गौरतलब है कि बुधवार को डोनाल्ड ट्रंप का कार्यकाल खत्म हो गया, जिसके बाद प्रमुख पदों पर नियुक्त सभी वरिष्ठ राजनीतिक कर्मचारी अपने पद से हट चुके हैं, ऐसे में बाइडन ने अंतरिम नियुक्तियों को अपने उम्मीदवारों की सीनेट की मंजूरी के लिए लंबित कर दिया। इनमें से अधिकांश राजनीतिक नियुक्ति के बजाय करियर कर्मचारी हैं।
बाइडेन द्वारा नियुक्त अन्य लोगों में माइक पोम्पिओ के स्थान पर विदेश सेवा संस्थान के निदेशक डेन स्मिथ, डिप्टी डिफेंस सेक्रेटरी डेविड नोरक्विस्ट को क्रिस्टोफर मिलर की जगह, सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी के उप-निदेशक डेविड कोहेन को जीना हास्पेल के स्थान पर रखा गया है।
जगदेसन, जो यूएसआईडीएफसी के उप महाप्रबंधक हैं, डेविड बोहलर के स्थान पर कार्यकारी सीईओ होंगे। (आईएएनएस)
टोक्यो, 21 जनवरी | जापान की सरकार ने अमेरिकी फार्माट्यूसिकल कंपनी फाइजर के साथ एक करार किया है, जिसके तहत इस साल जापान के अधिकतम 7.2 करोड़ लोगों को कंपनी द्वारा कोविड-19 के खिलाफ विकसित की गई वैक्सीन प्रदान कराई जाएगी। यहां के स्वास्थ्य मंत्रालय ने इसकी जानकारी दी है। सिन्हुआ समाचार एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक, छह करोड़ लोगों के लिए वैक्सीन की खुराकें उपलब्ध कराने के लिए पिछले साल दवा निर्माण कंपनी के साथ देश के हुए करार में अतिरिक्त आपूर्ति को शामिल कर लिया गया है। यह संख्या देश की कुल आबादी 12.6 करोड़ की लगभग आधी है।
यहां के समाचार पत्र योमिउरी शिंबुन के मुताबिक, सरकार को उम्मीद है कि जुलाई तक अधिक से अधिक बुजुर्गो का टीकाकरण करा लिया जाएगा, जिस वक्त ओलम्पिक खेल की शुरुआत होने वाली है।
स्थानीय मीडिया की रिपोर्टों के मुताबिक, स्वास्थ्य कर्मियों और अधिक बीमार लोगों का टीकाकरण कराए जाने के बाद सरकार को उम्मीद है कि मई से आम जनता में टीकाकरण अभियान का शुभारंभ कर लिया जाएगा। (आईएएनएस)
अमेरिका के 46वें राष्ट्रपति जो बाइडेन ने सत्ता में आने के साथ ही पहले दिन पिछली सरकार के कई बड़े फैसले पलट दिए. उन्होंने पेरिस जलवायु समझौते पर वापसी का ऐलान किया है. पहले दिन 15 कार्यकारी आदेशों पर हस्ताक्षर किए.
राष्ट्रपति बनने के कुछ ही घंटों बाद जो बाइडेन ओवल ऑफिस पहुंचे और पत्रकारों को बतौर राष्ट्रपति टिप्पणी देते हुए कहा, "आज काम शुरू करने का समय है." बाइडेन ने पद संभालते ही कई कार्यकारी आदेशों पर हस्ताक्षर किए जिनमें सबसे महत्वपूर्व है अंतरराष्ट्रीय पेरिस जलवायु समझौते में अमेरिका का दोबारा शामिल होना. उन्होंने डॉनल्ड ट्रंप के कई फैसलों को मिनटों में पलट डाला.
बाइडेन ने जिन कार्यकारी आदेशों पर हस्ताक्षर किए उनमें मैक्सिको से लगी सीमा पर दीवार बनाने के फैसले और उसकी फंडिंग को रोकना और कोरोना वायरस महामारी से निपटने के लिए फैसला भी शामिल है, जिसके तहत सरकारी इमारतों में चेहरों पर मास्क लगाना अनिवार्य कर दिया गया है.
पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप अक्सर अपने दफ्तर और अन्य जगहों पर बिना मास्क के ही नजर आते थे लेकिन बाइडेन ने अपने दफ्तर में मास्क पहने इन आदेशों पर हस्ताक्षर किए. इसी के साथ उन्होंने मुस्लिम बहुल देशों से यात्रा संबंधित प्रतिबंध भी हटा दिया. उन्होंने अमेरिका के दोबारा विश्व स्वास्थ्य संगठन से हटने की प्रक्रिया को भी रोक दिया है.
बाइडेन ने कुल 15 कार्यकारी आदेशों पर हस्ताक्षर किए. वो पिछले चार सालों की ट्रंप की नीतियों को तेज गति के साथ पलटना चाहते हैं. सिर्फ दो राष्ट्रपतियों ने ही अपने कार्यकाल के पहले दिन कार्यकारी आदेशों पर हस्ताक्षर किए थे, वह भी एक-एक. लेकिन अमेरिका इस वक्त कोरोना वायरस महामारी के गंभीर संकट से गुजर रहा है और देश की अर्थव्यवस्था की हालत नाजुक है. बाइडेन अपने कार्यों से यह जताना चाह रहे हैं कि बिना देर किए आगे बढ़ने की जरूरत है और वो इन सब कार्यों को करने के लिए सक्षम हैं.
ओवल दफ्तर में कार्यकारी आदेशों पर हस्ताक्षर करते वक्त बाइडेन मास्क लगाए हुए थे. ट्रंप के साथ शायद ही ऐसा कभी देखा गया हो. बाइडेन ने एक और आदेश जारी किया है जिसके तहत संघीय दफ्तरों में कर्मचारियों के लिए शारीरिक दूरी और मास्क लगाना अनिवार्य हो गया है. कोरोना महामारी की वजह से आर्थिक संकट झेल रहे लोगों की आर्थिक मदद का ऐलान भी किया गया है. उन्होंने कोरोना वायरस से निपटने के लिए एक नया संघीय समन्वय कार्यालय बनाया है और वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा और रक्षा के लिए व्हाइट हाउस के राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद निदेशालय को दोबारा बहाल किया है, ट्रंप ने अपने कार्यकाल में इसे बंद कर दिया था.
ये कार्रवाई नए राष्ट्रपति की सर्वोच्च नीति प्राथमिकता को दर्शाती है जिसमें महामारी से निपटना सबसे अहम है. शपथ समारोह के बाद बाइडेन ने अपने भाषण के दौरान कुछ पल के लिए उन लोगों के लिए मौन रखा था जिनकी जान कोरोना वायरस के कारण चली गई. अपने भाषण में उन्होंने कहा आने वाले हफ्तों में ''गति और तत्परता के साथ आगे बढ़ेंगे.'' बाइडेन ने कहा, "हमारे पास आपदा के इस समय में बहुत कुछ करना है, महत्वपूर्ण संभावनाएं हैं, सुधार करने के लिए बहुत है और हमें बहुत कुछ हासिल करना है.''
नस्लभेद पर बाइडेन
बाइडेन ने नस्लभेद को लेकर भी कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किया है. जिसके तहत संघीय एजेंसियों को नस्लभेद को खत्म करने को कहा गया है और ऐसी नीतियों की समीक्षा करने को कहा है जो प्रणालीगत नस्लवाद को मजबूत करती हैं. बाइडेन ने 2020 की जनगणना से संबंधित ट्रंप के दो आदेशों को भी रद्द कर दिया है.
उन्होंने संघीय कर्मचारियों को नैतिकता की प्रतिज्ञा लेने का भी आदेश दिया जो न्याय विभाग की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है. बाइडेन ने अपने शपथ ग्रहण के बाद भाषण में कहा था, "अमेरिका में हर व्यक्ति की आवाज सुनी जाएगी. अमेरिका विभाजनकारी, धार्मिक भेदभाव, नस्लवाद को खारिज कर अपना एकजुट चेहरा पेश करेगा. धर्म, जाति, नस्ल,रंग की पहचान को अलग रखकर मैं हर अमेरिकी का राष्ट्रपति बनूंगा."
रिपब्लिकन पार्टी ने संकेत दिया है कि बाइडेन को उनके कुछ एजेंडे के लिए उग्र विरोध का सामना करना पड़ेगा. बाइडेन की प्रेस सचिव जेन साकी ने कहा है कि पहले दिन जो फैसले लिए गए हैं वे बस शुरुआत है. उन्होंने कहा, "आने वाले दिनों में हम अतिरिक्त कार्यकारी आदेशों का ऐलान करेंगे और चुनाव के दौरान किए गए वादों को पूरा किया जाएगा."
एए/सीके (एपी, डीपीए, एएफपी)
जो बाइडेन के साथ एक नए राष्ट्रपति ने व्हाइट हाउस संभाला है. यूरोपीय संघ में ट्रांस-अटलांटिक संबंधों के लिए इसके मायने निकाले जा रहे हैं. इन संबंधों को ट्रंप युग में काफी झटका लगा है, अब उसके सामान्य होने की उम्मीद है.
डॉयचेवेले पर बारबरा वेजेल की रिपोर्ट-
कोई संदेह नहीं है कि नए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से यूरोपीय संघ की बड़ी उम्मीदें हैं. संघ के नेता इस आशा के बीच बंटे हैं कि ट्रांस-अटलांटिक संबंध बहाल होंगे और अमेरिका के साथ संबंध सामान्य हो जाएंगे तो दूसरी ओर रास्ते में खड़ी बाधाओं का बढ़ता हुआ एहसास भी है. फ्रांस के यूरोपीय मामलों के मंत्री क्लेमों बोन का मानना है कि विभाजित अमेरिका में कोई बड़ा बदलाव देखने को नहीं मिलेगा. वे कहते हैं, "यूरोप को और अधिक जिम्मेदारी लेनी चाहिए." बोन "रणनीतिक स्वायत्तता" की अवधारणा के समर्थक हैं लेकिन यह महसूस करते हैं कि सहयोग बढ़ना चाहिए. वे कहते हैं, "यूरोप को अपने हितों, अपने मूल्यों को परिभाषित करना चाहिए. निश्चित रूप से अमेरिका के खिलाफ नहीं, हमें मिलकर काम करना चाहिए." फ्रांसीसी मंत्री का मानना है कि पर्यावरण नीति, सुरक्षा और व्यापार के मामलों में संबंधों में विशेष रूप से सुधार होगा.
क्लेमों बोन फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों के करीबी सहयोगी हैं. माक्रों ने "रणनीतिक स्वायत्तता" के विचार को बढ़ावा देकर विदेश नीति में पेरिस को बर्लिन और वारसॉ से दूर कर दिया है. बोन यह नहीं सोचते कि यूरोपीय संघ को अमेरिका और नाटो के साथ अपनी साझेदारी की उपेक्षा करनी चाहिए, लेकिन उनका मानना है कि भविष्य के बारे में सोचना जरूरी है, "अमेरिका हमें और अधिक स्वायत्त होने के लिए कहता रहेगा, हमें और अधिक जिम्मेदारी लेने के लिए कहेगा, प्रतिरक्षा पर अधिक खर्च करने को कहेगा.” उन्होंने यूरोपीय संघ और चीन के विवादित निवेश समझौते का बचाव करते हुए कहा, "यह सोचना अजीब होगा कि यूरोपीय संघ के रूप में हमें समझौतों पर हस्ताक्षर करने का कोई अधिकार नहीं है." राष्ट्रीय परंपरा को ध्यान में रखते हुए फ्रांस की सरकार ट्रांस-अटलांटिक संबंधों के प्रति एक निश्चित संशय बनाए रखना चाहती है और यूरोप के लिए अधिक स्वायत्तता चाहती है.
समाधान का हिस्सा
विदेश नीति परिषद की बर्लिन दफ्तर की प्रमुख याना पुग्लियरिन का कहना है कि वाशिंगटन और यूरोप को ट्रंप प्रशासन की नीतियों से फौरन किनारा कर लेना चाहिए. वे कहती हैं, "यह कठिन चार साल थे, लेकिन अब हम फिर से एक लहर पर हैं और हम नए राष्ट्रपति का खुले दिल से स्वागत करते हैं." उन्होंने कहा कि बाइडेन को एक स्पष्ट संदेश जाना चाहिए, "हम दास नहीं हैं और घड़ी की सूई वापस नहीं कर सकते हैं लेकिन नई सरकार को दिखाना चाहिए कि यूरोपीय संघ की बहुपक्षवाद में दिलचस्पी है और वह जिम्मेदारी लेना चाहता है."
याना पुग्लियरिन कहती हैं, "हमें समाधान का हिस्सा होना चाहिए और समस्या का नहीं." वे रणनीतिक स्वायत्तता के विचार का भी समर्थन करती हैं क्योंकि यह यूरोपीय लोगों को बेहतर साझेदार बनाने का मौका देता है. पुग्लियरिन की सिफारिश है कि यूरोपीय संघ को शुरू में "हल्के विषयों" पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जिसमें जल्दी कामयाबी संभव है, जैसे जलवायु परिवर्तन, ईरान के साथ बातचीत या नाटो की भूमिका जैसे मुद्दे. व्यापार नीति जैसे विषय कठिन हैं और उसके प्रति दृष्टिकोण क्रमिक होना चाहिए. जिस तरह से ईयू-चीन डील हड़बड़ी में हुई थी, वे उसकी आलोचना करती हैं.
तिरस्कार का अंत
कार्नेगी यूरोप की सीनियर फेलो जूडी डेम्पसी के लिए बाइडेन युग की शुरुआत काफी उम्मीदों के साथ हो रही है. वे कहती हैं, "यूरोप के लिए ट्रंप के तिरस्कार का अंत हुआ है." उनका कहना है कि नए राष्ट्रपति यूरोपीय महाद्वीप को समझते हैं और जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल के साथ उनके घनिष्ठ संबंध हैं. जूडी डेम्पसी मानती हैं कि यूरोपीय संघ को सुरक्षा और रक्षा नीति के मामले में कदम बढ़ाना होगा और इससे परमाणु हथियारों को नियंत्रण में रखने पर बातचीत के नए अवसर मिल सकते हैं. उसका सुझाव है कि कनाडा से जापान तक अन्य लोकतांत्रिक देशों के साथ ट्रांस-अटलांटिक संबंधों का विस्तार किया जाना चाहिए. वे कहती हैं कि चीन, भारत और लैटिन अमेरिका के संबंध में साझा सुरक्षा, प्रतिरक्षा और व्यापार रणनीतियों पर सहमत होना संभव है.
जूडी डेम्पसी का कहना है कि ट्रंप वाला दुःस्वप्न दूर करना तभी संभव होगा जब यह समझने का असल प्रयास हो कि वैकल्पिक दक्षिणपंथ और दूसरे पॉपुलिस्ट आंदोलनों की प्रेरणा क्या थी. वे मानती हैं कि लोकतंत्रों को कमजोर करने की कोशिश करते निरंकुश नेतृत्व वाले देशों ने वित्तीय समर्थन और साइबर गतिविधियों के जरिए सरकार विरोधी आंदोलनों को हवा दी है. वे कहती हैं कि सोशल मीडिया साइटों के नियमन के तरीकों पर गौर करना महत्वपूर्ण है. जूडी डेम्पसी के अनुसार, "ट्रंप प्रशासन ने लोकतांत्रिक संस्थानों की नजाकत और उनकी ताकत को भी दिखाया है."
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का चार साल का कार्यकाल काफ़ी उतार चढाव भरा रहा है, ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि डोनाल्ड ट्रंप की विरासत क्या होगी? वे व्हाइट हाउस में क्या कुछ छोड़कर जा रहे हैं?
इस सवाल का जानने के लिए हमने कुछ विशेषज्ञों से बात की. इन लोगों ने क्या कुछ कहा, पढ़िए.
अमेरिकी इंटरप्राइज़ इंस्टीट्यूट के फ़ेलो मैथ्यू कॉन्टेनेटी, डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल के दौरान रिपब्लिकन पार्टी के उभार और अमेरिकी कंज़रवेटिव मूवमेंट को बड़ी बात बताते हैं.
डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के ऐसे पहले राष्ट्रपति के तौर पर याद किए जाएंगे जिन पर दो बार महाभियोग लगाया गया. उन्होंने चुनावी नतीजों के चोरी होने की बात को हवा दी, इलेक्ट्रोल कॉलेज वोट को सर्टिफ़िकेट देने की प्रक्रिया का विरोध करने के लिए उन्होंने अपने समर्थकों को वाशिंगटन बुलाया, उनसे कहा कि ताक़त के बल पर ही देश को वापस हासिल कर सकते हैं. इन समर्थकों ने कैपिटल हिल में हिंसा की और सरकार की संवैधानिक व्यवस्था में दख़ल देने की कोशिश की.
जब इतिहासकार ट्रंप के राष्ट्रपति कार्यकाल के बारे में लिखेंगे तो कैपिटल हिल में हुई हिंसा के परिपेक्ष्य में उनके कार्यकाल को देखेंगे. उनके कार्यकाल के दौरान जिन दूसरे मुद्दों पर भी इतिहासकारों की नज़र होगी उनमें 'अल्टरेनिटव राइट' का दावा करने वाले आनलाइन दक्षिणपंथी समूह के साथ लगभग यातना तक पहुंचे उनके संबंध, 2017 में चार्लोटेसेविली विरोध प्रदर्शन को नृशंसता से निपटना, दक्षिणपंथी अतिवादियों की हिंसा में बढ़ोत्तरी और पुरुषवादी कांस्पेरिसीज थ्योरी को बढ़ावा देने की उनकी शैली शामिल होगी.
यदि डोनाल्ड ट्रंप ने अपने पूर्ववर्तियों के नीतियों का अनुसरण किया होता और सत्ता हस्तांतरण शांतिपूर्ण ढंग से होता तो उन्हें परिवर्तन सोचने वाले एक ऐसे नेता के तौर याद किया जाता जो लोकप्रिय भी रहा हो.
उन्हें ऐसे राष्ट्रपति के तौर पर भी देखा जाता जिनके शासनकाल में (कोविड-19 संक्रमण से पहले) आर्थिक प्रगति में उछाल देखने को मिला था. इसके अलावा उनके कार्यकाल में चीन के प्रति अमेरिकी सोच बदली, चरमपंथी नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाया गया, अंतरिक्ष कार्यक्रम को नए सिरे से बेहतर रूप दिया गया. साथ ही अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में कंज़रवेटिव लोग बहुमत में आए और कोविड-19 की वैक्सीन को रिकॉर्ड कम समय में तैयार करने का अभियान चलाया गया.
लाउरा बेलमोंटे वर्जिनिया टेक कॉलेज ऑफ़ लिबरल आर्ट्स एंड हम्यून साइंसेज की डीन और इतिहास प्रोफ़ेसर हैं. साथ ही वह अंतरराष्ट्रीय संबंधों की विशेषज्ञ और कल्चरल डिप्लोमेसी पर किताब की लेखिका हैं.
मेरे ख्याल से उन्होंने ग्लोबल लीडरशिप को छोड़कर अंदर के मामलों पर ज़्यादा ध्यान दिया. इसे किलेबंदी जैसी मानसिकता कह सकते हैं. मुझे नहीं लगता है कि इसमें वे कामयाब हुए लेकिन उनकी कोशिशों से अमेरिका की अंतरराष्ट्रीय छवि को कितना नुक़सान हुआ है- इसका आकलन अभी होना है.
डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल के दौरान, मेरे लिए सबसे चौंकाने वाला पल 2018 में व्लादिमीर पुतिन के साथ हेलसिंकी में हुई प्रेस कांफ्रेंस थी. इसमें ट्रंप ने चुनाव में दख़ल देने के मामले में अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसियों के बदले पुतिन का पक्ष लिया था.
एक राष्ट्रपति के तौर पर ट्रंप समाज के लोकतांत्रिक ताक़तों के ख़िलाफ़ पूरी ताक़त से खड़े थे, ऐसे में उनके दूसरे कार्यकाल की कल्पना मुझे नहीं थी. ट्रंप ने इस दौरान बहुराष्ट्रीय संस्थाओं से समझौतों पर भी हमला किया. उन्होंने पेरिस जलवायु संधि और ईरानी न्यूक्लियर फ्रेमवर्क से अमेरिका को अलग कर लिया था.
ट्रंप ने तुर्की के राष्ट्रपति रेचैप तैयप अर्दोआन और ब्राजील के राष्ट्रपति जैर बोलसोनारो की प्रशंसा की. उत्तर कोरियाई राष्ट्रपति किम जोंग ऊन से मुलाक़ात की. यह सब दर्शाता है कि उन्होंने उन देशों के साथ अमेरिकी रिश्ते को बेहतर करने की कोशिश की जो घोषित तौर पर अमेरिकी नीतियों का विरोध करते आए हैं. यह मेरे ख्याल से विशिष्ट रहा.
तरह तरह के मुद्दे
इसके अलावा उन्होंने दुनिया भर में मानवाधिकार को बढ़ाव देने वाले प्रयासों से अमेरिका को अलग कर लिया, इसके अलावा उन्होंने अमेरिकी गृह विभाग की सालाना मानवाधिकार रिपोर्ट के कंटेंट में भी बदलाव किया. इन रिपोर्टों से एलजीबीटी समानता जैसे मुद्दों को शामिल नहीं किया गया.
कैथरीन ब्राउनेल पुर्डूय यूनिवर्सिटी में इतिहास की प्रोफ़ेसर हैं. उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति के कार्यकाल को मीडिया, राजनीति और पापुलर कल्चर के लिहाज़ से आंका है.
साफ़-साफ़ कहूं तो डोनाल्ड ट्रंप, रिपब्लिकन पार्टी के अंदर उनके समर्थकों और कंज़रवेटिव मीडिया ने अमेरिकी लोकतंत्र को इम्तिहान के दौर में डाल दिया है. इससे पहले ऐसा कभी देखने को नहीं मिला. ट्रंप ने जिस तरह से लाखों लोगों को अपनी मनगढ़ंत बातों को सच मानने का यकीन कराया उससे अमेरिकी राष्ट्रपति और मीडिया के आपसी संबंधों का आकलन करने वाले इतिहासकार आर्श्चयचकित होंगे.
राष्ट्रपति के तौर पर ट्रंप ने चार सालों तक जो ग़लत जानकारियां लोगों से शेयर कीं, उसी का नतीजा थी छह जनवरी को अमेरिकी कैपिटल हिल में हुई घटना.
जिस तरह से रिचर्ड निक्सन के पद से हटने के दशकों बाद भी वाटरगेट और महाभियोग की जांच का आकलन किया जाता है उसी तरह से ट्रंप के ऐतिहासिक आकलन की मुख्य बात कैपिटल हिल की हिंसा होगी.
दूसरी अहम बात क्या लगी?
डोनाल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह की भीड़ की तुलना बराक ओबामा के शपथ ग्रहण की भीड़ से करके ट्रंप प्रशासन में सलाहकार रहीं कैलायन कोनवे ने अल्टरनेटिव फ़ैक्ट्स (वैकल्पिक सच) की धारणा का पहला उदाहरण दिया था.
20वीं शताब्दी के सभी अमेरिकी राष्ट्रपतियों में घटनाओं और नीतियों की अपने अनुकूल व्याख्या का चलन देखा गया जो लगतार बढ़ता भी रहा. इस दौरान इन लोगों ने मीडिया को भी नियंत्रित करते रहे. लेकिन ट्रंप के कार्यकाल में अपने वैकल्पिक सच को पेश करने की शुरुआत हुई जो अनुकूल व्याख्या से आगे की बात थी और इसने यह भी तय कर दिया था कि ट्रंप प्रशासन ग़लत जानकारियों के आधार पर शासन करेगा.
ट्रंप ने सोशल मीडिया की ताकत का इस्तेमाल करके मनोरंजन और राजनीति के बीच की दीवार को मिटा दिया. इसके जरिए वे अपने आलोचकों को नज़रअंदाज़ करके सीधे समर्थकों से जुड़े.
फ्रैंकलिन रूज़वेल्ट, जॉन एफ़ कैनेडी और रोनाल्ड रीगन भी न्यू मीडिया के तौर तरीक़ों और सेलिब्रेटी स्टाइल से लोगों से सीधे जुड़े थे. इसने राष्ट्रपति के कामकाज के तरीक़े और उम्मीदों को बदला और ट्रंप ने जो किया उसके लिए रास्ता तैयार हुआ था.
मैरी फ्रांसेस बेरी पेनसेल्वेनिया यूनिवर्सिटी में अमेरिकी इतिहास और समाज की प्रोफ़ेसर हैं. 1980 से 2004 के बीच मैरी अमेरिकी नागरिक अधिकार आयोग की सदस्य रही हैं. उन्होंने ट्रंप के कार्यकाल को क़ानूनी इतिहास और सामाजिक नीतियों के हिसाब से आंक रही हैं.
न्यायाधीशों के साथ ट्रंप ने जो किया है उसका असर अगले 20-30 सालों तक जारी रहेगा. नीतियां क़ानून के हिसाब से भी मान्य हों और उसे लागू करने की चुनौती रहेगी, चाहे इस दौरान कोई राष्ट्रपति रहे या किसी का प्रशासन रहे.
अदालतों में रिपब्लिकन पार्टी द्वारा नियुक्त न्यायाधीशों का नियंत्रण है. कई बार न्यायाधीश हमें चौंकाते हैं लेकिन इतिहास गवाह रहा है कि वे वही करते हैं जो उनकी राजनीति पार्टी या राजनीतिक पृष्ठभूमि की ओर से करने को कहा जाता है.
उन्होंने जब पहली बार काले लोगों के समुदाय में ख़ास लोगों की मदद के लिए फ़र्स्ट स्टेप पैकेज के प्रावधानों का समर्थन किया तो लोगों ने उनकी उस बात को माफ़ कर दिया जिसमें उन्होंने उस विधेयक में संशोधन का समर्थन किया था जिस विधेयक के ज़रिए पहली बार काले लोगों के कॉलेजों और विश्वविद्यालयों को पहली बार बजट आवंटित किया जाना था.
उन्होंने इन सब पहलूओं को आपस में मिला दिया. उन्होंने ऐसा कार्यक्रम शुरू किया था जिसके ज़रिए काले कारोबारियों और उद्यमियों को ऋण लेने में आसानी होने लगी, उससे पहले ये ऋण लेने में उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ता था.
इन सबका असर ये हुआ कि काले युवाओं ने ज़्यादा संख्या में ट्रंप का समर्थन किया था. अगर यह ट्रेंड क़ायम रहा थो रिपब्लिकन पार्टी को फ़ायदा मिलेगा.
मार्ग्रेट ओ मारा वाशिंगटन यूनिवर्सिटी में इतिहास की प्रोफ़ेसर है. वे ट्रंप कार्यकाल को आधुनिक अमेरिका के राजनीतिक, आर्थिक और मेट्रोपॉलिटन नज़रिए से आंक रही हैं.
तनाव भरे माहौल में सत्ता हस्तांतरण के मामले पहले भी देखने को मिले हैं. हार्बर्ट हूवर अपनी हार पर काफ़ी आहत थे लेकिन पेनसेल्वेनिया एवेन्यू में शपथ ग्रहण सामारोह में वे अपनी कार में मौजूद थे. उन्होंने फ्रैंकलिन रूज़वेल्ट से पूरे समय कोई बात नहीं की लेकिन वह शांतिपूर्ण हस्तांतरण था.
ट्रंप एक तरह से, राजनीतिक दलों के अंदर जो कुछ भी उथलपुथल चल रहा है, उसकी अभिव्यक्ति हैं. यह केवल रिपब्लिकन पार्टी में नहीं हो रहा है, डेमोक्रेट्स भी हो रहा है, या कहें अमेरिकी राजनीति में ही हो रहा है- लोगों का सरकार, सरकारी संस्थाओं और विशेषज्ञता से मोहभंग होता जा रहा है.
ट्रंप कई मायनों में असाधारण हैं, लेकिन किसी पद के अनुभव के बिना राष्ट्रपति चुना जाना उनकी सबसे बड़ी ख़ासियत रही.
ट्रंप तो चले जाएंगे लेकिन सत्ता प्रतिष्ठानों को बड़ी निराशा होगी. जब आप ख़ुद को शक्तिहीन होते हैं तब आप ऐसे शख़्स को वोट देते हैं जो सबकुछ अलग ढंग से करने का वादा करता हो, ट्रंप ने वास्तव में ऐसा किया था.
राष्ट्रपति जिन लोगों को नियुक्त करते हैं, उससे भी राष्ट्रपति का कार्यकाल परिभाषित होता है. लेकिन काफ़ी अनुभव रखने वाले रिपब्लिकन लोगों को प्रशासन में शामिल होने के लिए आमंत्रित नहीं किया गया है.
समय के साथ ट्रंप का प्रशासन समर्थकों के झुंड में तब्दील हो गया, जिसमें बहुत अनुभवी लोग नहीं रहे थे और विचारधारा के स्तर पर बेहतर प्रशासन में दिलचस्पी नहीं रखते थे. इन सबका असर यह हुआ कि अमेरिकी नौकरीशाही को फिर से तैयार करने में लंबा वक़्त लगेगा.
श्रीकृष्णा प्रकाश वर्जीनिया यूनिवर्सिटी के लॉ स्कूल में प्रोफ़ेसर हैं. उन्होंने ट्रंप के कार्यकाल का आकलन संवैधानिक व्यवस्था, अंतरराष्ट्रीय क़ानून और राष्ट्रपति की शक्तियों के आधार पर किया है.
उनके प्रशासन का अंतिम दौर सबसे अहम रहा है, अपने समर्थकों के आधार पर वे लगातार दूसरे कार्यकाल में लौटने की बात कहते रहे.
उन्होंने लोगों को राष्ट्रपति के लिए पर वह विचार करने के लिए मजबूर किया जिसे बुश और ओबामा प्रशासन के दौरान सच नहीं माना जा सकता. जैसे कि 25वें संशोधन और महाभियोग के बारे में बिल क्लिंटन के बाद से लोगों ने सोचा भी नहीं था.
ट्रंप जैसा कोई दूसरा शख़्स राष्ट्रपति के पद पर आ सकता है यह सोचते हुए संभव है कि लोग अलग रूख़ अपनाएंगे. यह संभव है कि अमेरिकी कांग्रेस उन्हें कम प्रतिनिधित्व देगी और कुछ अधिकारी भी ले ले.
ट्रंप ने बतौर राष्ट्रपति यह दिखाया है कि बहुत सारे लोग इन कारोबारी समझौतों का विराध करते हैं. ये लोग वैसे शख़्स को वोट दे सकते हैं जो अमेरिका को इन समझौतों से या तो बाहर निकाल ले या फिर इन समझौतों को थोड़ा पारदर्शी बनाए.
ट्रंप ने यह भी ज़ाहिर किया है कि चीन अमेरिका का फ़ायदा उठा रहा है और इससे अमेरिका को आर्थिक और सुरक्षा के दृष्टिकोण से नुक़सान हो रहा है- मेरे ख्याल से अमेरिकी लोगों में भी इस पहलू को लेकर सहमति है. कोई भी चीन को लेकर नरम रुख़ नहीं अपनाना चाहता है, हालांकि कोई कनाडा के प्रति नरम रूख़ को लेकर सवालिया निशान नहीं उठाता.
मुझे लगता है कि लोग सख़्त होने पर ज़ोर देना चाहते हैं, या कम से कम चीन के प्रति सख़्त दिखना चाहते हैं. घरेलू मोर्चे पर ट्रंप ने लोकलुभावनी नीतियों पर ज़ोर दिया. हालांकि यह उनकी नीतियों में पूरी तरह से शामिल नहीं किया गया लेकिन अब कहीं ज़्यादा रिपब्लिकन को लोकलुभावने विचारों को अपनाते देखा जा सकता है. (bbc)
वॉशिंगटन, 21 जनवरी | जॉन हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के मुताबिक, दुनियाभर में कोरोनावायरस महामारी से संक्रमित हुए मरीजों की संख्या 9.68 करोड़ तक पहुंच चुकी है, जबकि 20.7 लाख से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। गुरुवार की सुबह अपने हालिया अपडेट में यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर सिस्टम साइंस एंड इंजीनियरिंग (सीएसएसई) ने खुलासा किया कि इस वक्त दुनिया में कुल मामलों और मौतों की संख्या क्रमश: 96,823,968 और 2,073,866 है।
सीएसएसई के मुताबिक, संक्रमितों की सबसे अधिक संख्या 24,432,807 के साथ अमेरिका वायरस से सबसे अधिक प्रभावित देशों की सूची में अव्वल नंबर पर है, जबकि यहां हुई मौतों की संख्या 406,001 है।
भारत का स्थान इस सूची में दूसरे नंबर पर है, जहां इस वक्त मामलों और हुई मौतों की संख्या क्रमश: 10,595,660 और 152,718 पर बनी हुई है।
सीएसएसई के आंकड़ों के मुताबिक, अन्य जिन देशों में कोरोना मरीजों की संख्या दस लाख से अधिक है, उनमें ब्राजील (8,638,249), रूस (3,595,136), ब्रिटेन (3,515,796), फ्रांस (3,023,661), इटली (2,414,166), स्पेन (2,412,318), टर्की (2,406,216), जर्मनी (2,090,195), कोलंबिया (1,956,979), अर्जेटीना (1,831,681), मेक्सिको (1,688,944), पोलैंड (1,450,747), दक्षिण अफ्रीका (1,369,426), ईरान (1,348,316), यूक्रेन (1,210,854), पेरू (1,073,214) शामिल हैं।
कोरोना से हुई मौतों के मामलों में ब्राजील दूसरे नंबर पर है, जहां 212,831 मौतें हुई हैं।
जिन देशों में मृतकों की संख्या 20,000 से अधिक हैं, उनमें मेक्सिको (144,371), ब्रिटेन (93,469), इटली (83,681), फ्रांस (71,792), रूस (66,214), ईरान (57,057), स्पेन (54,637), कोलंबिया (49,792), जर्मनी (49,499), अर्जेटीना (46,216), पेरू (39,044), दक्षिण अफ्रीका (38,854), पोलैंड (34,141), इंडोनेशिया (26,857), टर्की (24,487), यूक्रेन (22,264) और बेल्जियम (20,554) शामिल हैं।
--आईएएनएस