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लाहौर, 8 जनवरी | लाहौर में एक आतंकवाद-रोधी अदालत (एटीसी) ने लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) के कमांडर जकीउर रहमान लखवी को कम से कम 15 साल कैद की सजा सुनाई है। अदालत ने उसे आतंकी वित्तपोषण के मामले में दोषी पाया।
हाल ही में लखवी को गिरफ्तार किया गया था।
एटीसी अदालत के एक अधिकारी ने कहा, "आतंकवाद रोधी न्यायालय (एटीसी) लाहौर ने आतंकवाद के वित्तपोषण के आरोप में लखवी को आतंकवाद निरोधी अधिनियम 1997 की विभिन्न धाराओं के तहत 15 साल की सजा सुनाई है।
61 वर्षीय लखवी को तीन मामलों में 5-5 साल की सजा और इतने ही मामलों में 1-1 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया है।
एटीसी के अधिकारी ने कहा, "जुर्माना न देने की स्थिति में, उसे तीन मामलों में प्रत्येक मामलों में छह महीने की जेल की सजा काटनी होगी।" (आईएएनएस)
वाशिंगटन, 8 जनवरी | न्यूजीलैंड में शुक्रवार को संदिग्ध शार्क हमले में एक महिला की मौत। इसकी जानकारी पुलिस ने शुक्रवार को दी। समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने पुलिस का हवाला देते हुए कहा कि, यह घटना गुरुवार शाम को ऑकलैंड से करीब 153 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल वैही बीच पर हुई।
पुलिस के एक बयान में कहा गया है कि एक महिला के पानी में घायल होने की सूचना मिली, जिसके बाद शाम करीब 5.10 बजे इमरजेंसी सेवाओं को बुलाया गया। महिला को देखकर अंदाजा लगाया जा रहा है कि उसपर शार्क ने हमला किया होगा।
हालांकि, कुछ समय बाद महिला की घटनास्थल पर ही मौत हो गई।
न्यूजीलैंड में शार्क हमले के मामले बहुत ही कम पाए जाते हैं, हालांकि यहां के पानी में 60 से अधिक प्रजातियों का घर है।
देश के संरक्षण विभाग के अनुसार, पिछले 170 वर्षो में, न्यूजीलैंड में केवल 13 घातक शार्क हमले हुए हैं।(आईएएनएस)
लखनऊ / मेरठ, 8 जनवरी | उत्तर प्रदेश में शुक्रवार को एक रिटायर्ड सैनिक को पाकिस्तान के लिए जासूसी करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। सूत्रों ने आईएएनएस को बताया कि सेवानिवृत्त सिग्नलमैन सौरभ शर्मा को उत्तर प्रदेश के आतंकवाद-रोधी दस्ते (एटीएस) ने लखनऊ में सैन्य खुफिया (एमआई) यूनिट से मिले इनपुट के बाद गिरफ्तार किया।
पूर्व सैनिक कथित तौर पर कराची में स्थित पाकिस्तानी खुफिया संचालकों के लिए काम कर रहा था।
सूत्रों ने कहा कि पिछले नवंबर में, लखनऊ एमआई के अधिकारियों को जासूसी गतिविधियों में शर्मा की 'भागीदारी' के बारे में इनपुट मिले थे।
हापुड़ जिले के बिहुनी गांव में अपने पैतृक घर से गिरफ्तारी के बाद, शर्मा ने पूछताछकर्ताओं को बताया कि वह 2014 में फेसबुक पर एक पाकिस्तानी खुफिया ऑपरेटर के संपर्क में था।
सूत्रों के अनुसार, शुरुआत में पाकिस्तानी ऑपरेटिव ने खुद को एक रक्षा पत्रकार के रूप में पेश किया। इसके बाद, 2016 से, उसने पैसे के बदले में संवेदनशील सैन्य जानकारी साझा करना शुरू कर दिया।
पूर्व सैनिक को जून 2020 में चिकित्सा आधार पर सेना से डिस्चार्ज कर दिया गया था। सूत्रों ने कहा कि उसकी गतिविधियों का प्रमाण उसके मोबाइल फोन पर भी मिला है।
शर्मा के खिलाफ लखनऊ में गोमती नगर पुलिस स्टेशन में आईपीसी की धारा 120-बी और 123, आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम की धारा 3, 4, 5 और 9 और गैरकानूनी गतिविधियों (रोकथाम) अधिनियम की धारा 13 के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई है।(आईएएनएस)
कोरोना वायरस से पीछा छुड़ाने का एक ही मुमकिन तरीका नजर आ रहा है - वैक्सीन. लेकिन "हाई रिस्क" श्रेणी में होने के बावजूद जर्मनी में कई डॉक्टर और नर्स टीका नहीं लगवा रहे. जानिए क्यों.
डॉयचे वैले पर येंस थुराऊ/ईशा भाटिया का लिखा -
सेबास्टियान श्मिट बर्लिन के बेथेल अस्पताल के आईसीयू में बतौर नर्स काम करते हैं. वे जल्द से जल्द टीका लगवाना चाहते हैं, "मैं हर दिन कोरोना वायरस के कारण लोगों को मरते हुए देखता हूं. मैं देखता हूं कि कैसे लोग तड़पते हैं, वायरस लोगों को कितनी बुरी तरह बीमार कर देता है. इसलिए मैं हर हाल में टीका लगवाना चाहता हूं. सिर्फ खुद को बचाने के लिए ही नहीं, अपने परिवार के लिए भी. मेरी जिम्मेदारी बनती है कि मैं उनकी सुरक्षा के बारे में भी सोचूं."
जर्मनी में हर रोज कोरोना वायरस से औसतन एक हजार लोगों की जान जा रही है. इसे देखते हुए सामान्य समझ तो यही कहती है कि लोग टीका लेने के लिए बेताब होंगे. खास कर डॉक्टर और नर्स, जिन्हें हर दिन कोरोना के मरीजों का सामना करना होता है. लेकिन असलियत कुछ और ही है. देश में ऐसे डॉक्टरों और नर्सों की काफी संख्या है जो फिलहाल इस टीके से बचना चाहते हैं.
बेथेल अस्पताल में ही काम करने वाली नर्स विवियन कॉखमन इसकी एक मिसाल हैं. वे एक छोटे बच्चे की मां भी हैं. पिछले लगभग एक साल से वह सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पूरी संजीदगी से पालन कर रही हैं, मास्क लगा रही हैं, दिन में कई बार अपने हाथ धो रही हैं और कम से कम लोगों से मिल रही हैं. लेकिन फिर भी वह टीके को ले कर बहुत उत्साहित नहीं हैं, "मैं इस पूरे मामले को लेकर थोड़ी सतर्क हूं. मुझे चिंता है क्योंकि वैक्सीन को आए बहुत वक्त नहीं हुआ है, इसलिए मैं यह नहीं कह सकती कि मैं इससे 100 फीसदी आश्वस्त हूं. लेकिन यह मेरी निजी राय है."
विवियान मूल रूप से टीकों के खिलाफ नहीं हैं. बाकी हर मुमकिन टीके उन्होंने लगवाए हैं लेकिन कोरोना के मामले में वह उम्मीद कर रही हैं कि शायद वक्त बीतने के साथ इसके अच्छे और बुरे असर को बेहतर समझा जा सकेगा.
50% नर्स नहीं लगवाना चाहती टीका
दिसंबर में आई एक रिपोर्ट के अनुसार जर्मनी में 73 प्रतिशत डॉक्टर और 50 प्रतिशत नर्स ही कोरोना का टीका लगवाना चाहते हैं. देश में वैक्सीन लगाने का पहला चरण शुरू हो गया है. इसमें वे लोग शामिल हैं जिनकी उम्र 80 से अधिक है और वे डॉक्टर और नर्स भी, जो इनका इलाज करते हैं. अगले चरण में 70 से अधिक उम्र वाले और उसके बाद 60 से अधिक उम्र वाले लोगों और उनके डॉक्टरों को टीका लगेगा. लेकिन टीका लगवाना अनिवार्य नहीं है. स्वास्थ्य मंत्री येंस श्पान ने भी हाल ही में कहा था कि कुछ नर्सिंग होम में 80 फीसदी स्टाफ को टीका लग चुका है, तो कुछ ऐसे हैं जहां मात्र 20 फीसदी स्टाफ ने ही टीका लगवाया है.
इन टीकों पर हुए परीक्षण सिर्फ फौरन होने वाले साइड इफेक्ट के बारे में ही बताते हैं. लंबे समय में इनका क्या असर होगा, यह तो वक्त के साथ ही पता चलेगा. टीका ना लगवाने की सबसे बड़ी वजह इसी को माना जा रहा है. कई महिलाएं इस बात को भी लेकर चिंतित हैं कि आगे चल कर इसका असर उनकी प्रेग्नेंसी पर ना पड़े. जहां आम जनता उम्मीद कर रही है कि टीकाकरण पूरा होने के बाद उन्हें मास्क से मुक्ति मिल जाएगी, वहीं नर्सों के लिए ऐसा मुमकिन नहीं होगा. उन्हें टीके के बावजूद पीपीई किट और मास्क लगाना होगा.
इस बीच, आम जनता में वैक्सीन को लेकर विश्वास बढ़ रहा है. ताजा आंकड़े दिखाते हैं कि 54 प्रतिशत लोगों का कहना है कि वे टीका लगवाएंगे और 21 प्रतिशत का कहना है कि वे टीका लगवाने के बारे में सोच रहे हैं. जानकारों के अनुसार देश में हर्ड इम्यूनिटी हासिल करने के लिए 60 प्रतिशत लोगों को टीका लगना ही काफी होगा.(dw.com)
लॉस एंजेलिस, 8 जनवरी | हॉलीवुड स्टार जॉर्ज क्लूनी ने कैपिटोल हिल विद्रोह की निंदा करते हुए कहा है कि डोनाल्ड ट्रंप का नाम अब हमेशा विद्रोह से जुड़ा रहेगा। हॉलीवुड रिपोर्टर डॉट कॉम की रिपोर्ट के अनुसार, केसीआरडब्ल्यू के 'द बिजनेस' वीकली पॉडकास्ट के एक एपिसोड के दौरान, क्लूनी ने डोनाल्ड ट्रंप के समर्थकों द्वारा अमेरिका में कैपिटोल हिल पर हमले के बारे में बोला।
उन्होंने कहा, "इस तरह लोगों के घर को उजाड़ते हुए देखना विनाशकारी है। "
उन्होंने कहा, "इसने डोनाल्ड ट्रंप, डोनाल्ड ट्रम्प जूनियर इवांका, सभी को इतिहास के कूड़ेदान में डाल दिया है। यह नाम अब हमेशा के लिए विद्रोह से जुड़ा होगा।"
अभिनेता ने इस दौरान यह भी उल्लेख किया कि कैसे व्हाइट हाउस के पूर्व चीफ ऑफ स्टाफ जनरल केली ने हाल ही में कहा था कि अगर वह कैबिनेट में होते तो ट्रंप को पद से हटाने के लिए 25 वें संशोधन के लिए मतदान करते।
--आईएएनएस
-विनीत खरे
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के समर्थकों के कैपिटल हिल पर हमले की घटना को कई लोग 'थर्ड वर्ल्ड' यानी 'तीसरी दुनिया' के समानांतर देख रहे हैं.
एक ट्वीट में लिखा गया, "ट्रंप एक तीसरी दुनिया/कम्युनिस्ट तानाशाह की तरह व्यवहार कर रहे हैं. उन्होंने वोटों की गिनती से पहले ही जीत का दावा कर दिया."
कई दिनों से राष्ट्रपति ट्रंप के चुनावों के नतीजों को स्वीकार ना करने को लेकर तीख़ी आलोचना हो रही है.
उनके समर्थकों के एक बड़े वर्ग का मानना है कि चुनाव में धांधली हुई थी. उन्हें उनके नेता के बेबुनियाद बयानों पर भरोसा था.
बुधवार की घटना देश के राजनीतिक और वैचारिक विभाजन को दिखाती है, जहां अराजकता की तस्वीरों ने शर्मिंदगी और ख़ुद में झांकने को मजबूर किया.
'तीसरी दुनिया' टर्म के इस्तेमाल से एक ऐसी जगह की तस्वीर उबरती है, जहां संस्थाएं बर्बाद हो चुकी हैं और अराजक शासन व्यवस्था है.
फ्लोरिडा के सांसद मार्क रुबियो ने ट्वीट किया, "कैपिटल हिल पर जो हो रहा है, उसमें देश भक्ति जैसा कुछ भी नहीं है. यह तीसरी दुनिया की अमेरिका-विरोधी अराजकता है." इस ट्वीट पर कई प्रतिक्रियाएं आ रही हैं.
लेकिन क्या तीसरी दुनिया इतनी बुरी है?
घटना की तस्वीरों पर लेखक आतिश तासीर ने कहा, "यह तीसरी दुनिया के देश में भी नहीं होगा."
उन्होंने कहा, "मैंने पाकिस्तान में ऐसे चुनाव देखे हैं जहां लोग मारे गए हैं, धांधली हुई है, गोलियां चलाई गई हैं ... (लेकिन) ये अपनी तरह की एक घटना है."
श्रुति राजगोपालन ने मार्को रूबियो के ट्वीट पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, "मैं तीसरी दुनिया में पली-बढ़ी हूं और मैं आपको विश्वास दिलाती हूं कि हम चुनाव के बाद ऐसे सत्ता हस्तांतरित नहीं करते हैं."
किसी ने पूछा, "तीसरी दुनिया के एक गर्वित प्रोडक्ट के रूप में कहूंगा कि 'कृपया ये सब ना कहें. ये ज़िनोफ़ोबिक है. (अपने से अलग किसी व्यक्ति या विदेशी से डर या नापसंदगी ज़ाहिर करना)
शीत युद्ध के बाद, "ग़ैर-गठबंधन" वाले देशों को तीसरी दुनिया के तौर पर जाना जाता था, लेकिन अब इसे व्यापक रूप से विकासशील दुनिया या निम्न या निम्न-मध्यम-वर्ग के आय वाले देशों के लिए उपयोग किया जाता है.
तीसरी दुनिया का इस्तेमाल दुनिया के कुछ हिस्सों को सभ्य पश्चिमी देशों की सरकार की तुलना में ज़्यादा अराजक और तख़्तापलट के लिए संवेदनशील बताने के लिए भी किया जाता है.
लेकिन क्या अमेरिका और पश्चिमी देशों के लोगों को अपने हिंसक इतिहास पर ध्यान नहीं देना चाहिए?
यरूशलम पोस्ट के एडिटर सेथ फ्रेंट्ज़मैन ने लिखा, "केवल 100 साल पहले ही ज़्यादातर पश्चिमी देश इस तरह की अराजकता और तख्तापलट की कोशिशों से भरे थे जैसा कि आज वॉशिंगटन में देखा गया."
उन्होंने लिखा, "1920 और 1930 के दशक में यूरोप में अराजकता, विश्व युद्ध और होलोकॉस्ट की ओर ले गई. इसी तरह, अमेरिका में भी 1920 और 1930 के दशक हिंसा और अतिवाद से भरे थे."
"यह भी याद किया जाना चाहिए कि महिलाओं को 1971 में स्विट्जरलैंड में वोट देने का अधिकार प्राप्त हुआ, स्पेन में 1978 में लोकतंत्र आया, और ग्रीक कर्नलों ने 1974 तक देश का नेतृत्व किया. उत्तरी आयरलैंड में राजनीतिक हिंसा 1990 के दशक में समाप्त हुई और पूर्वी यूरोप में 1990 के दशक में लोकतंत्र आया."
"अमेरिका की अराजकता को तीसरी दुनिया का कह देना बहुत आसान है. पिछले वर्षों में उठे मुद्दे अमेरिका के दिल से जुड़े हुए हैं, चाहे इसलिए कि उनमें से कुछ 'हृदयभूमि' में पनपे हैं, या न्यूयॉर्क शहर के एक प्रॉपर्टी मालिक से शोमैन बने शख़्स की वजह से जो राष्ट्रपति पद की भूमिका गॉडफादर फ़िल्म की तरह निभा रहा था. "
अमेरिका भी ऐसा देश है जो मानवाधिकारों, पेशेवर ताक़तों और लोकतांत्रिक मानदंडों पर चलने को लेकर दूसरों को भाषण देता है. लेकिन जॉर्ज फ्लॉयड, ब्रेओना टेलर और वैसी अन्य हत्याओं को लेकर 'ब्लैक लाइव्स मैटर' प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ बल प्रयोग किए जाने की वजह से अमेरिकी पुलिस आलोचना की शिकार हुई है.
अमेरिकी पुलिस के हाथों हर साल सैकड़ों लोग मरते हैं लेकिन केवल कुछ मामलों में ही अधिकारी आपराधिक आरोपों का सामना करते हैं.
2019 में एक ब्लैक महिला को उनकी बेडरूम की खिड़की से पुलिस ने तड़के गोली मार दी थी. पिछले साल पुलिस ने एक ब्लैक व्यक्ति को गोली मार दी और पुलिस के मुताबिक़ ये एक घरेलू घटना की प्रतिकिया में हुआ.
इन घटनाओं की बुधवार को हज़ारों ट्रंप समर्थकों के ख़िलाफ़ पुलिस की कार्रवाई से तुलना करें तो जहां ज़्यादातर गोरे पुलिस से भिड़ गए, कैपिटल बिल्डिंग के अंदरूनी हिस्सों में तोड़फोड़ की, दीवारों पर चढ़ गए, खिड़कियां तोड़ दीं और इमारत में फैल गए.
तासीर ने कहा, "हमने एक समुदाय के साथ ऐसे बर्ताव को देखा जो इस तरह के गंभीर अपराध के लिए किसी अन्य समुदाय के साथ नहीं किया गया."
एक दिन बाद मैं कैपिटल हिल के बाहर जेसी जेम्स से मिला. उन्होंने ख़ुद को ट्रंप के बैनर से ढका हुआ था. एक दिन पहले ही वे उन हज़ारों लोगों के साथ मौजूद थे, जिन्होंने कैपिटल हिल की सुरक्षा को तोड़ा.
जेम्स का दावा है कि वे किसी हिंसा में शामिल नहीं थे.
उन्होंने कहा, "लोग बस घूम रहे थे. वे सीढ़ियों पर खड़े थे क्योंकि हमें लगा कि हम सीढ़ियों पर खड़े हो सकते हैं. हमें किसी ने उतरने को नहीं बोला."
"नेशनल गार्ड कह रहे हैं कि वे यहां थे. मैंने तो उन्हें कहीं नहीं देखा. शायद वे हों पर मैंने तो नहीं देखा."
एक्टिविस्ट इसे पुलिस का दोहरा रवैया बता रहे हैं और तीसरी दुनिया उसे नोटिस कर रही है.
रिपब्लिकन शहाब क़रनी ने कहा, "अगर किसी अफ्ऱीकी-अमेरिकी ने कैपिटल हिल का एक कांच भी तोड़ा होता तो सोचिए पुलिस और नेशनल गार्ड की क्या प्रतिक्रिया होती. वॉशिंगटन डीसी जल रहा होता."
उन्होंने कहा, "फ़िलहाल जो एक्शन लिया गया वो एक धोखा है. ऐसा लग रहा है कि अमेरिका दो भागों में विभाजित हो गया है और बीच में एक लाइन खिंच गई है."
नेशनल जियोग्राफिक के एक लेख में रानिया अबुज़ीद पूछती हैं कि क्या ये घटना शहर की छवि को परिभाषित करेगी.
वे लिखती हैं, "बग़दाद, बेरुत, बोगोटा जैसे शहर अक्सर उसकी बुरी यादों से परिभाषित किए जाते हैं. उनका नाम जैसे किसी एक वक़्त का पर्यायवाची है. क्या वॉशिंगटन डीसी को भी इस लिस्ट में डाल दिया जाए?"
"क्या अब सभी गोरे अमरीकियों को कुछ लोगों की वजह से दंगाई कहने लगें और उनके साथी अमरीकियों के जुर्म के लिए उनसे माफ़ी मंगवाएं?"
ये सब कितना भी बुरा रहा हो लेकिन आतिश तासीर इसमें उम्मीद देखते हैं कि एक कुर्सी पर बैठे राष्ट्रपति के अपनी पार्टी और उप-राष्ट्रपति पर चुनाव नतीजों को रद्द करवाने के दबाव के बावजूद सिस्टम बना रहा.
उन्होंने कहा, "संदेश है...संस्थाएं, संस्थाएं, संस्थाएं."
हडसन इंस्टिट्यूट की अपर्णा पांडे कहती हैं, "लोकतंत्र हर जगह नाज़ुक है."
"बहुत पहले जब बेंजामिन फ्रेंकलिन से पूछा गया कि अमेरिका क्या है तो उन्होंने जवाब दिया- 'एक गणतंत्र, अगर आप इसे बनाए रखें तो." (bbc.com)
काठमांडू, 8 जनवरी | भारत में बर्ड फ्लू के प्रकोप के मद्देनजर नेपाल ने पड़ोसी देश से सभी प्रकार के पोल्ट्री उत्पादों के आयात पर पाबंदी लगा दी है। अधिकारियों ने कहा कि यह प्रतिबंध गुरुवार से लागू हुआ।
नेपाल के कृषि और पशुधन विकास मंत्रालय ने अपने सभी कार्यालयों को भारत से पोल्ट्री उत्पादों के आयात को रोकने का निर्देश दिया है, जो नेपाल के लिए कई अरब का पोल्ट्री उद्योग का प्राथमिक बाजार है।
मंत्रालय ने सभी स्थानीय कार्यालयों और क्वारंटीन चेकपोस्टों को सतर्क रहने और पोल्ट्री उत्पादों के आयात को रोकने के निर्देश दिए हैं।
इसने स्थानीय अधिकारियों से नेपाल-भारत सीमा के करीब पोल्ट्री उत्पादों के खुले व्यापार को रोकने का भी आग्रह किया।
नेपाल और भारत के बीच कई अन्य सीमाएं साथ ही साथ प्रवेश बिंदु हैं जिसके माध्यम से पोल्ट्री के अलावा, अन्य उत्पाद भी बेरोकटोक आ रहे हैं।
नेपाल सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने आईएएनएस को बताया, "नेपाल और भारत के बीच इस समय सभी व्यापारिक वस्तुओं के आयात और निर्यात की जांच करना बहुत मुश्किल है क्योंकि देश एक लंबी खुली सीमा साझा करते हैं और सीमावर्ती क्षेत्रों में होने वाली गड़बड़ियों की जांच के लिए अधिकारियों को तैनात करना संभव नहीं है।"
पिछले एक सप्ताह से केरल, गुजरात, हरियाणा और बिहार सहित एक दर्जन से अधिक राज्यों में बर्ड फ्लू के मामले सामने आए हैं।
कृषि मंत्रालय के प्रवक्ता श्री राम घिमिरे ने पुष्टि की है कि केवल प्रमाणित पोल्ट्री उत्पादों को नेपाल के अंदर आयात करने की अनुमति है।
घिमिरे ने कहा कि नेपाल ने अपने हिस्से में नेपाल-भारत सीमा पर 16 क्वारंटीन सेंटर स्थापित किए हैं और अधिकारियों से कहा गया है कि वे पोल्ट्री उत्पादों के आयात को रोकने के लिए कमर कस लें। उन्होंने कहा कि नेपाल में बर्ड फ्लू का एक भी मामला सामने नहीं आया है। (आईएएनएस)
अरुल लुईस
न्यूयॉर्क, 8 जनवरी | अमेरिका के नव निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन द्वारा नामित एसोसिएट अटॉर्नी जनरल वनिता गुप्ता ने चार साल की उम्र में अपने साथ हुए नस्लीय कट्टरपंथ के अनुभव को याद किया है, जब उन्होंने नागरिक अधिकारों और न्याय सुधार के लिए अपनी प्रतिबद्धता का वादा किया।
गुरुवार को बाइडेन द्वारा अमेरिका में सबसे सम्मानित नागरिक अधिकारों की वकील में से एक के रूप में पेश किए जाने के बाद, वनिता गुप्ता ने 'भारत से गर्वित अप्रवासी' के रूप में अपने माता-पिता के बारे में बात की और परिवार को किन पूर्वाग्रहों का सामना करना पड़ा, इस बारे में अपने अनुभव साझा किए।
उन्होंने कहा, "एक दिन, मैं अपनी बहन, मां और दादी के साथ मैकडॉनल्ड्स के रेस्तरां में बैठी हुई थी। जब कि हम खाना खा रहे थे, पास वाली मेज पर बैठे कुछ लोगों ने हम पर नस्लीय फब्तियां कसना शुरू कर दिया और भोजन फेंकने लगे, जिसके कारण हम रेस्तरां से निकल गए।"
गुप्ता ने कहा, "उस भावना ने मेरा साथ कभी नहीं छोड़ा कि आप जो हैं, उसके कारण असुरक्षित होने का क्या मतलब है।"
वह उस समय चर्चा में आईं जब एक नई वकील के रूप में उन्होंने 38 लोगों की रिहाई कराने में कामयाबी हासिल की, उनमें से अधिकांश अफ्रीकी-अमेरिकी थे, जिन्हें टेक्सस शहर में ड्रग के आरोपों में गलत तरीके से दोषी ठहराया गया था और गुप्ता ने उन्हें मुआवजे के तौर पर 60 लाख डॉलर भी दिलाया था।
गुप्ता ने कहा कि उन्होंने नस्लीय कट्टरता का अनुभव करने के साथ ही अमेरिका के वादे का सबक भी सीखा है।
उन्होंने कहा, "मैंने अपने साथ एक और भावना रखी, हालांकि, मेरे माता-पिता द्वारा और मेरे पति (चिन्ह क्यू. ली) द्वारा भी इसे गहराई से अनुभव किया गया, जिनके (ली के) परिवार ने वियतनाम में हिंसा और युद्ध के कारण पलायन किया था।"
उन्होंने आगे कहा, "उन्होंने अमेरिका के वादे पर किसी चीज की अपेक्षा ज्यादा भरोसा जताया और इस देश से प्यार करना सीखा, इसे बेहतर बनाने के लिए आवश्यक कार्य करने का दायित्व भी साथ लाता है।"
वहीं, गुप्ता का परिचय कराते हुए बाइडेन ने कहा कि वह हर कदम पर, हम केस में बेहतर निषप्क्षता और समानता के लिए लड़ीं और हमारी न्याय प्रणालियों की गलतियों को ठीक करने के लिए लड़ीं। (आईएएनएस)
कोको शनैल के गुजरने के 50 साल बाद भी हम उनके बनाए डिजाइन पहन रहे हैं. ज्यादातर लोगों को तो यह अंदाजा भी नहीं है कि आज का पहनावा दरअसल कोको शनैल की ही देन है.
10 जनवरी 1971 रविवार का दिन था. यूरोप में इस छुट्टी के दिन को बहुत संजीदगी से लिया जाता है. लोग काम से दूर रहते हैं. लेकिन कोको शनैल रविवार होने के बावजूद काम में लगी थीं. उन्हें अपनी नई कलेक्शन पूरी करनी थी. उस वक्त उनकी उम्र 87 साल थी. फैशन की चकाचौंध वाली दुनिया में बुजुर्गों के लिए कोई जगह नहीं होती. लेकिन कोको शनैल अपनी ऐसी जगह बना चुकी थीं जिसे कोई चुनौती नहीं दे सकता था.
अचानक रात को नौ बजे उनके गुजरने की खबर आई. शनैल पेरिस के पांच सितारा होटल में रहा करती थीं. रिट्स नाम के इस होटल में उनके नाम का स्वीट हमेश बुक रहता था. उनका कोई परिवार नहीं था. इसलिए अपनी आखिरी सांसें उन्होंने अकेले ही होटल के कमरे में लीं.
आखिरी बार उनके स्टाफ ने उन्हें एक दिन पहले देखा था जब वे देखने आई थीं कि उनके डिजाइन किए कपड़े ठीक से बने हैं या नहीं. शनेल परफेक्शनिस्ट थीं. कपड़े की क्वॉलिटी से लेकर बटन तक, वे हर चीज पर ध्यान देती थीं. जिस फैशन कलेक्शन पर वे काम कर रही थीं, उनकी मौत के दो हफ्ते बाद उसे दिखाया भी गया.
औरतों को पहनाई पैंट्स
आज की पीढ़ी शायद शनैल को सबसे ज्यादा सिर्फ परफ्यूम के लिए ही जानती है लेकिन शनैल वह शख्स थीं जिन्होंने पश्चिमी फैशन में क्रांति ला दी. उनकी सबसे बड़ी सफलता थी "लिटल ब्लैक ड्रेस" - एक सीधी शालीन सी काले रंग की ड्रेस जो आज के लिए बिलकुल भी खास नहीं है लेकिन जिस जमाने में शनैल ने इसे पेश किया था उस जमाने में यह फेमिनिस्ट मूवमेंट की निशानी बन गई थी.
पश्चिमी जगत में महिलाएं बड़ी बड़ी ड्रेस पहना करती थीं जिनमें वे तंग कॉर्सेट के अंदर कैद होती थीं. फ्रांस की शनैल ने उन्हें इस कैद से छुड़वाया और महिलाओं के लिए पुरुषों जैसे लिबास बनाए. शनैल की ही बदौलत आज महिलाएं पतलून पहनती हैं. सिर्फ कपड़े ही नहीं, जूतों से लेकर हैंडबैग और जूलरी तक, शनैल ने सब बदल कर रख दिया.
फैशन जगत में इतनी बड़ी क्रांति लाने वाली शनैल के जीवन में एक काला अध्याय भी था. फ्रांस में कई लोगों का मानना था कि दूसरे विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने नाजियों का साथ दिया. फ्रांस में शनैल जितनी लोकप्रिय रहीं, उतनी ही विवादों में भी घिरी रहीं. इसी कारण वे फ्रांस छोड़ कर स्विट्जरलैंड में जा कर रहने लगीं. और इसी कारण उनके नाम से पेरिस में पहली प्रदर्शनी लगने में उनकी मौत के बाद भी पांच दशक लग गए.
अनाथालय से फाइव स्टार तक का सफर
शनैल ने 1937 में होटल रिट्स में रहना शुरू किया. होटल के दूसरे माले पर वह जिस स्वीट में रहती थीं वह 188 वर्ग मीटर का था. इसमें दो बैडरूम और एक हॉल था. आलीशान फर्नीचर और सोफे वाले इस स्वीट में इन्होंने जिंदगी के कुछ 35 साल बिताए. बीच में जब वे फ्रांस छोड़ कर स्विट्जरलैंड गईं, तब भी यह अपार्टमेंट उन्हीं के नाम पर रहा.
मौत से पहले वे कह गईं थी कि कि उनके कमरे में कोई ना आए. बस उनकी बहन के बच्चों को मृत शरीर को देखने की इजाजत दी गई. उनके स्टाफ का कहना था कि अपने आखिरी दिनों में उन्होंने इतनी जल्दबाजी में कलेक्शन का सारा काम कराया जैसे वे जानती हों कि उनका वक्त करीब ही है और जाने से पहले वे सारा काम खत्म करना चाहती थीं.
तीन दिन बाद 13 जनवरी को उनके अंतिम संस्कार के लिए पेरिस के चर्च के बाहर खूब भीड़ जमा हुई. उनके सभी 250 कर्मचारियों के अलावा, फैशन जगत के सभी बड़े नाम वहां मौजूद थे. उनके बाद मशहूर जर्मन डिजाइनर कार्ल लागरफेल्ड ने उनका काम संभाला और उनकी कंपनी को 100 अरब डॉलर की कंपनी में तब्दील किया.
कोको शनैल ने अपनी जिंदगी के शुरुआती साल अनाथालय में बिताए थे. वहां से फाइव स्टार तक का उनका सफर किसी परीकथा जैसा है. ना केवल उन्होंने महिलाओं को पतलून पहनना सिखाया, बल्कि बालों को छोटा काटना भी. फैशन में रिस्क लेने से और जिंदगी में बंदिशों को तोड़ने से वे कभी पीछे नहीं हटीं.
ईशा भाटिया (एएफपी)
कैपिटल हिंसा के बाद डॉनल्ड ट्रंप ने एक वीडियो संदेश में "जघन्य" हमले की निंदा की है. हिंसा के बाद ट्विटर ने उनका अकाउंट 12 घंटों के लिए निलंबित कर दिया था. अब उन्होंने सत्ता के "व्यवस्थित" हस्तांतरण करने की बात कही है.
गुरुवार को डॉनल्ड ट्रंप ने कैपिटल हिल हिंसा के बाद एक वीडियो संदेश जारी किया. ट्विटर पर जारी संदेश कैपिटल हिल हिंसा के बाद ट्रंप का पहला संदेश था. हिंसा के बाद ट्विटर ने उनके खाते को 12 घंटे के लिए निलंबित कर दिया था. ट्वीट किए गए वीडियो संदेश में उन्होंने हिंसा की निंदा की है. उन्होंने अपने बयान में कहा, "सभी अमेरीकियों की तरह मैं अराजकता, हिंसा और उत्पात से नाराज हूं." उन्होंने इस हमले को "जघन्य" बताया है. उन्होंने कहा कि दंगाइयों ने "लोकतंत्र की कुर्सी को दूषित किया." और कहा कि "कानून तोड़ने वालों को इसकी भरपाई करनी होगी."
उनका नया बयान एक दिन पूर्व दिए गए बयान के स्वर से बिल्कुल उलट था. बुधवार को उन्होंने हिंसा के पहले वाले बयान में मतदान में धोखाधड़ी के अपने निराधार दावों को दोहराया था. इस्तीफे के बढ़ते दबाव का सामना कर रहे और डेमोक्रेट्स द्वारा उन्हें पद से जल्द हटाने की कोशिशों के बीच ने ट्रंप ने जो बाइडेन प्रशासन को व्यवस्थित सत्ता हस्तांतरण को लेकर प्रतिबद्धता जाहिर की है. उन्होंने कहा, "अब कांग्रेस ने नतीजों को प्रमाणित कर दिया है. 20 जनवरी को एक नए प्रशासन का उदघाटन होगा. मेरा ध्यान अब सत्ता के सुचारू, व्यवस्थित और बिना बाधा के परिवर्तन को सुनिश्चित करने पर है." उन्होंने अपने भाषण के अंत में कहा, "आपके राष्ट्रपति के रूप में सेवा करना मेरे जीवन का सम्मान रहा है. हमारी अविश्वसनीय यात्रा की यह शुरुआत है."
हिंसा का भड़कना
ट्रंप ने बुधवार को अपने समर्थकों द्वारा हिंसा पर अपनी भूमिका को स्वीकार नहीं किया और ना ही कैपिटल हिल तक मार्च करने को लेकर प्रोत्साहन को स्वीकारा. दूसरी ओर ट्विटर ने कहा है कि अगर वे गलत सूचना और हिंसा भड़काने के नियमों का उल्लंघन करते हैं तो ट्रंप के अकाउंट पर स्थायी प्रतिबंध लगाया जा सकता है. फेसबुक और इंस्टाग्राम ने उनके अकाउंट्स को अनिश्चितकाल के लिए ब्लॉक कर दिया है.
20 जनवरी को बाइडेन प्रशासन के उदघाटन से पहले ट्रंप को पद से हटाने का दबाव बढ़ता जा रहा है. एक संभावना यह है कि उनको अमेरिकी संविधान के 25वें संशोधन की मदद से हटाया जा सकता है. इस संशोधन की मदद से राष्ट्रपति का अपना ही मंत्रिमंडल उन्हें पद से हटा सकता है, अगर वह अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में असमर्थ हैं. हालांकि इस तरह की कार्यवाही का नेतृत्व उप राष्ट्रपति को करना होगा. सीनेट के अल्पसंख्यक नेता चक शूमर और हाउस स्पीकर नैंसी पेलोसी ने उपराष्ट्रपति माइक पेंस से संशोधन के लिए अपील की है. कई मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक पेंस ने ट्रंप को पद से हटाने के लिए संशोधन का इस्तेमाल करने का विरोध किया है.
एए/सीके (एपी, रॉयटर्स)
जेनेवा, 8 जनवरी | मानवाधिकार मामलों के लिए संयुक्त राष्ट्र की उच्चायुक्त मिशेल बाचेलेत ने कहा कि अमेरिका के कैपिटल भवन पर हुए हिंसक हमले ने राजनेताओं के नफरत का विनाशकारी प्रभाव दिखाया है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ के मुताबिक, गुरुवार शाम को बाचेलेत के हवाले से जारी एक बयान में कहा गया, "कैपिटल भवन पर बुधवार के हमले को लेकर हम काफी परेशान हैं, जिसने स्पष्ट रूप से तथ्यों के विनाशकारी प्रभाव, तथ्यों के जानबूझकर विरूपण, और राजनेताओं द्वारा हिंसा और घृणा को उकसाने का प्रदर्शन किया।"
उन्होंने कहा, 'राजनीतिक भागीदारी के अधिकार को कमजोर करने की कोशिश करने के लिए चुनावी धोखाधड़ी के आरोप लगाए गए हैं।"
अपने बयान में उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति सहित सभी राजनेताओं से झूठे और खतरनाक बयानों को प्रोत्साहित नहीं करने और उनके समर्थकों से भी ऐसा नहीं करने देने का आह्वान किया।
पुलिस ने बताया कि कैपिटल भवन में हुई हिंसा में एक महिला सहित चार लोगों की मौत हो गई। (आईएएनएस)
अरुल लुईस
न्यूयॉर्क, 8 जनवरी| अमेरिका के कैपिटल भवन में हुई हिंसक विरोध के सोशल मीडिया पर वायरल हुए फुटेज में अमेरिका और ट्रंप समर्थकों के झंडों के बीच एक भारतीय झंडा भी दिखा।
एक भारतीय-अमेरिकी रिपब्लिकन पॉलिटिकल एक्टिविस्ट विन्सेन्ट जेवियर ने गुरुवार को विरोध प्रदर्शन के दौरान भारत, दक्षिण कोरिया और ईरान के झंडों की तस्वीरें ट्वीट की।
ईरानी झंडा इस्लामिक क्रांति पूर्व युग से था।
उन्होंने ट्वीट कर कहा, "अमेरिकी देशभक्त - वियतनामी, भारतीय, कोरियाई और ईरानी मूल, और अन्य देशों और नस्लों से, जो मानते हैं कि बड़े पैमाने पर मतदाता धोखाधड़ी हुई है, ट्रंप के साथ एकजुटता दर्शाने के लिए कल रैली में शमिल हुए, शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारी जो हमारे अधिकारों का प्रयोग कर रहे थे।"
अपने फेसबुक पेज पर, जेवियर ने भारतीय ध्वज के साथ विरोध प्रदर्शन में शामिल एक व्यक्ति का वीडियो पोस्ट किया।
पोस्ट पर टिप्पणी करने वाले कई लोगों ने भारत और भारतीयों को हिंसक विरोध के साथ जोड़ने के लिए उनकी आलोचना की।
पोस्ट में से एक ने कहा, "ट्रंप रैलियों में विरोध करना आपका अधिकार है, लेकिन ट्रंप रैली में भारतीय ध्वज को ले जाने का आपको कोई अधिकार नहीं है।"
एक ट्विटर यूजर की एक अन्य तस्वीर में संघीय जांच ब्यूरो (एफबीआई) मुख्यालय के सामने छह लोगों को दिखाया गया है, जैसे कि तस्वीर के लिए पोज दे रहे हो और उनमें से एक भारतीय झंडा थामे मालूम पड़ा।
समूह के एक अन्य व्यक्ति को एक तख्ती के साथ देखा गया जिसमें लिखा था, 'ट्रंप के लिए भारतीय आवाजें'।
ये लोग भारतीय मूल के मालूम पड़े और इनकी उम्र 20 से लेकर 30-35 के असपास लग रही थी।
उनकी पहचान नहीं की जा सकी और न ही यह पता लगाया जा सका कि उन्होंने विरोध प्रदर्शन में भाग लिया था या नहीं।
एक सार्वजनिक रेडियो स्टेशन के लिए काम करने वाले भारतीय मूल के एक पत्रकार ने विरोध प्रदर्शन में भाग लेने के बारे में ट्वीट किया, "प्रदर्शन में राष्ट्रपति के भारतीय-अमेरिकी समर्थक भी थे जो मेरे करीबी हेमंत (इजेलिन, न्यूजर्सी के एक व्यवसायी) की तरह इसमें शामिल हुए, जो आज की घटना को लेकर उत्साहित मालूम पड़े।"
पत्रकार ने केवल हेमंत के रूप में पहचाने गए व्यक्ति के साथ एक स्क्रीनशॉट पोस्ट किया, जिसमें उन्होंने (हेमंत) कहा, "मैं यहां हूं। हजारों लोग यहां हैं। उन्होंने कैपिटल भवन में हमला बोल दिया, मैंने इसे देखा।"
वाशिंगटन न्यूज रेडियो स्टेशन डब्ल्यूटीओपी के डिजिटल संपादक एलेजांद्रो अल्वारेज द्वारा पोस्ट किए गए एक वीडियो में भारतीय ध्वज पहली बार सामने आया था।
झंडे को पकड़े हुए व्यक्ति को वीडियो में नहीं देखा जा सकता है।
अक्टूबर 2020 में प्रकाशित एक भारतीय-अमेरिकी एटिट्यूड सर्वे (आईएएएस) सर्वेक्षण से पता चला है कि समुदाय के पंजीकृत मतदाताओं में से 22 प्रतिशत ने ट्रंप को वोट देने की योजना बनाई, जबकि 72 प्रतिशत डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बाइडेन के समर्थन में थे। (आईएएनएस)
वाशिंगटन, 8 जनवरी | वैश्विक स्तर पर कोरोनावायरस के कुल मामले करीब 8.8 करोड़ तक बढ़ गए हैं, जबकि संक्रमण से हुई मौतें 18.9 लाख से अधिक हो गई हैं। यह जानकारी जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी ने दी।
विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर सिस्टम साइंस एंड इंजीनियरिंग (सीएसएसई) ने शुक्रवार सुबह अपने नवीनतम अपडेट में खुलासा किया कि वर्तमान में कुल वैश्विक मामलों और मृत्यु दर क्रमश: 87,952,778 और 1,895,925 हैं।
सीएसएसई के अनुसार, अमेरिका 21,543,310 मामलों और 364,735 मृत्यु के साथ कोविड से सर्वाधिक प्रभावित देश बना हुआ है।
संक्रमण के मामलों के हिसाब से भारत 10,395,278 मामलों के साथ दूसरे स्थान पर है, जबकि देश में कोविड से मरने वालों की संख्या बढ़कर 150,336 हो गई है।
सीएसएसई के अनुसार, दस लाख से अधिक पुष्ट मामलों वाले अन्य देश ब्राजील (7,961,673), रूस (3,297,833), ब्रिटेन (2,898,037), फ्रांस (2,763,370), तुर्की (2,296,102), इटली (2,220,361), स्पेन (2,024,904), जर्मनी (1,869,306), कोलम्बिया (1,737,347), अर्जेंटीना (1,690,006), मेक्सिको (1,479,835), पोलैंड (1,356,882), ईरान (1,268,263), दक्षिण अफ्रीका (1,170,902), यूक्रेन (1,133,802) और पेरू (1,022,018) हैं।
कोविड से हुई मौतों के मामले में ब्राजील 200,498 आंकड़ों के साथ अमेरिका के बाद दूसरे नंबर पर है।
वहीं 20,000 से अधिक मृत्यु दर्ज करने वाले देश मेक्सिको (129,987), ब्रिटेन (78,632), इटली (77,291), फ्रांस (66,700), रूस (59,628), ईरान (55,933), स्पेन (51,675), कोलंबिया (45,067), अर्जेंटीना (44,122), जर्मनी (38,304), पेरू (37,925), दक्षिण अफ्रीका (31,809), पोलैंड (30,241), इंडोनेशिया (23,520), तुर्की (22,264), और यूक्रेन (20,334) हैं।
--आईएएनएस
बीजिंग, 7 जनवरी | राजधानी बीजिंग में गुरुवार को पारा शून्य से 19.6 डिग्री सेल्सियस नीचे चला गया, जोकि शहर में 1966 से अब तक की सबसे सर्द सुबह रही। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, बीजिंग के डैक्सिंग जिले में स्थित नानजियाओ स्टेशन 1912 में स्थापित एक राष्ट्रीय स्तर का मौसम विज्ञान स्टेशन है।
इसके डेटा का इस्तेमाल विशेषज्ञों ने ऐतिहासिक स्तर पर तुलना करने के लिए किया है।
30 दिसंबर, 2020 से शीत लहर ने बीजिंग को बुरी तरह जकड़ लिया है, जिससे तापमान में भारी गिरावट दर्ज की गई है। यहां 30 दिसंबर के बाद से तेज हवाएं चल रही हैं। (आईएएनएस)
जिस वक़्त वॉशिंगटन स्थित कैपिटल बिल्डिंग पर ट्रंप-समर्थकों ने हमला किया, तब जेमी स्टेह्म बिल्डिंग के अंदर ही थीं.
वे एक पत्रकार हैं और राजनीतिक विषयों पर लिखती हैं. जब भीड़ कैपिटल बिल्डिंग के अंदर दाख़िल हुई, तब जेमी प्रेस गैलरी में बैठी हुई थीं.
बुधवार सुबह से ही उन्हें लग रहा था कि कुछ बड़ा होने वाला है. उन्होंने इस बारे में अपनी बहन से बात भी की थी. उन्होंने अपनी बहन से कहा था, ‘लग रहा है कुछ बुरा होने वाला है.’
जब जेमी कैपिटल बिल्डिंग पहुँची थीं, तब ट्रंप के समर्थक बिल्डिंग के बाहर जमा थे. वे ट्रंप के समर्थन में नारेबाज़ी कर रहे थे. अमेरिकी झंडे उनके हाथों में थे और उनके गुस्से को देखकर लग रहा था कि अंदर ही अंदर कुछ पक रहा है.
प्रेस गैलरी में पहुँच कर उन्होंने देखा कि नेन्सी पेलोसी मंच पर हैं और वे सत्र का संचालन कर रही हैं.
इसके आगे की कहानी जेमी बताती हैं: “हम प्रेस गैलरी में थे और दूसरा घंटा लगा ही था, तभी अचानक काँच टूटने की आवाज़ें सुनाई दीं. कुछ ही मिनटों में पुलिस ने घोषणा की कि बिल्डिंग में लोग घुस आये हैं. तो लोगों ने आसपास देखना शुरू किया. तनाव और हड़बड़ी दिखने लगी थी. पुलिस के स्पीकर की आवाज़ और जल्दी जल्दी आने लगी. उस आवाज़ में चिंता साफ़ पता चल रही थी. वो कह रहे थे कि लोग अंदर की ओर बढ़ रहे हैं.”
“कुछ ही मिनटों में लोग अंदर के सेंट्रल हॉल तक पहुँच गये. लोकतंत्र का मंदिर कहे जाने वाले कैपिटल बिल्डिंग में तोड़फोड़ और आगजनी हो रही थी. प्रेस गैलरी में कई वरिष्ठ पत्रकार थे. इनमें से कई ने दंगा-फ़साद कवर किया है. लेकिन कैपिटल बिल्डिंग में ऐसी घटना की किसी ने उम्मीद नहीं की थी.”
“पुलिस को देखकर लग रहा था कि बात उनके हाथ से निकल चुकी है. उनमें सामंजस्य की कमी साफ़ दिख रही थी. तभी उन्होंने चैंबर हॉल के दरवाज़े बंद कर दिये और उन्होंने हम से कहा कि आपको यहाँ से निकलना होगा. ये सुनकर हम डर गये. मैं बहुत डरी हुई थी. हालांकि, बहुत से अन्य पत्रकार यह स्वीकार नहीं कर रहे थे कि उन्हें डर लग रहा है. इस बीच मैंने अपने परिवार को फ़ोन किया, मैंने उन्हें सारी परिस्थिति बताई और कहा कि हालात वाक़ई ख़तरनाक लग रहे हैं.”
"तभी गोली चलने की आवाज़ आयी. हम देख पा रहे थे कि दरवाज़े के पास खड़े पाँच लोगों ने बंदूकें तान रखी थीं. वो दरवाज़े के टूटे हुए काँच से बाहर देखने की कोशिश कर रहे थे और उन्हें देखकर लग रहा था कि वो किसी भी समय गोली चला देंगे. अच्छी बात ये रही कि चैंबर के अंदर कोई गोली नहीं चली. हम घुटने के बल प्रेस गैलरी से बाहर निकले. फ़िलहाल हम सदन के कैफ़ेटेरिया में हैं और डर की वजह से मुझे अब भी सिहरन महसूस हो रही है."(https://www.bbc.com/hindi)
यूएस कैपिटल हिस्टोरिकल सोसाइटी के विशेषज्ञों के मुताबिक़ यूएस कैपिटल (कैपिटल बिल्डिंग) पर हुआ ताजा हमला 1812 के युद्ध के बाद से पहला हमला है.
उस समय ब्रिटिश सेना ने कैपिटल बिल्डिंग में आग लगा दी थी.
वाइस एडमिरल सर एलेक्ज़ेंडर कॉकबर्न और मेजर जनरल रॉबर्ट रॉस के नेतृत्व में ब्रिटिश सैनिकों ने अगस्त 1814 में निर्माणाधीन कैपिटल बिल्डिंग को आग के हवाले कर दिया था. हालांकि, फिर भी इमारत बच गई क्योंकि तेज़ बारिश हो गई थी.
ब्रिटिश सैनिकों ने ये हमला उस अमेरिकी हमले के जवाब में किया था जिसमें एक साल पहले अमेरिका ने अपर कनाडा की राजधानी यॉर्क में आग लगा दी थी.
ब्रिटिश सैनिकों ने व्हाइट हाउस समेत शहर के अन्य हिस्सों पर भी हमला किया था.
उस दौरान कनाडा कोई देश नहीं था बल्कि वो ब्रिटेन के उपनिवेशों से बना था.
यूएस कैपिटल में हिंसा के बाद एक बयान जारी करते हुए हिस्टॉरिकल सोसाइटी ने कहा, “यूएस कैपिटल एक इमरात से कहीं ज्यादा है. यह अमेरिकी लोकतंत्र और हमारे जीने के तरीके का मूर्त रूप है.”
“हम क़ानून का पालन करने वाले देश हैं और सत्ता का शांतिपूर्ण हस्तांतरण हमारे संवैधानिक गणतंत्र के सबसे बुनियादी विशेषताओं में से एक है.”(https://www.bbc.com/hindi)
वाशिंगटन, 7 जनवरी | नवंबर 2020 के राष्ट्रपति चुनाव के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी हार स्वीकार कर ली है। वो 20 जनवरी को पद छोड़ देंगे। गुरुवार को उन्होंने इसकी पुष्टि की और वादा किया कि वह सत्ता का हस्तांतरण कर देंगे। एक बयान में ट्रंप ने कहा है, "भले ही मैं चुनाव परिणाम से पूरी तरह से असहमत हूं और इस तथ्य को सहन करते हुए भी 20 जनवरी को व्यवस्थित तरीके से हस्तांतरण होगा।"
उन्होंने आगे कहा, "मैंने हमेशा कहा है कि हम यह सुनिश्चित करने के लिए अपनी लड़ाई जारी रखेंगे कि केवल कानूनी वोटों की गिनती की गई है। भले ही राष्ट्रपति पद के इतिहास का सबसे महान कार्यकाल खत्म हो रहा है लेकिन यह हमारी अमेरिका को फिर से महान बनाने की लड़ाई की शुरूआत है।" (आईएएनएस)
कुआलालम्पुर, 7 जनवरी | एएफसी एशिया कप-2023 16 जून से शुरू होगा और 16 जुलाई तक चीन के 10 शहरों में खेला जाएगा। एशियाई फुटबाल परिसंघ (एएफसी) और स्थानीय आयोजक समिति (एलओसी) ने गुरुवार को इस बात की पुष्टि की।
एशिया कप का यह 18वां संस्करण इतिहास का सबसे लंबा संस्करण होगा जो 31 दिनों तक चलेगा।
एएफसी के महासचिव डाटो विंडसर जॉन ने कहा, "एएफसी एशिया कप अपने ख्याति के हिसाब से दिन ब दिन बढ़ता जा रहा है। हर संस्करण के बाद यह सभी उम्मीदों को पार कर रहा है और हम इस बात को लेकर आश्वस्त हैं कि चीन में होने वाला आगामी संस्करण एशियाई इतिहास में फुटबाल का सबसे बड़ा टूर्नामेंट होगा।"
एलओसी के महासचिव शी कियांग ने कहा, "तारीखों की पुष्टि होने के बाद एलओसी काम सही तरीके से शुरू करेगी। तैयारियों में फुटबाल स्टेडियमों का निर्माण, आयोजन, समर्थन, वोलेंटियर प्रोग्राम के अलावा कार्यक्रम तय करना भी शामिल है। हम एएफसी के साथ मिलकर काम करेंगे ताकि एक शानदार टूर्नामेंट का आयोजन कर सकें।" (आईएएनएस)
अमेरिकी संसद भवन पर हमले और फिर जो बाइडन और कमला हैरिस की जीत पर संसद की आधिकारिक मुहर के बाद राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बयान जारी कर कहा है कि अमेरिका में सत्ता का हस्तांतरण 'व्यवस्थित रूप' से होगा.
हालांकि चुनावों में धांधली के अपने आरोपों पर वो अभी भी क़ायम हैं.
ट्रंप ने कहा है, हालांकि मैं चुनाव के नतीजे से पूरी तरह असहमत हूं, और इस बात के प्रमाण भी हैं लेकिन बावजूद इसके 20 जनवरी को सुचारू रूप से सत्ता का हस्तांतरण होगा.
ट्रंप का यह बयान उनके प्रवक्ता के ट्विटर हैंडल से जारी किया गया है क्योंकि ट्विटर ने ट्रंप के अकाउंट को ब्लॉक कर दिया है.
उन्होंने आगे कहा, "मैंने हमेशा कहा है कि सिर्फ़ वैध मतों की गिनती हो इसको सुनिश्चित करने के लिए हमलोग अपनी लड़ाई जारी रखेंगे. अमेरिकी राष्ट्रपति के इतिहास में इसके साथ ही सबसे महान पहले कार्यकाल का अंत होता है, लेकिन अमेरिका को दोबारा महान बनाने की हमारी लड़ाई में यह सिर्फ़ एक शुरूआत है.''
ट्रंप की चुनावी टीम ने नवंबर में हुए राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों को चुनौती देने के लिए 60 से ज़्यादा मुक़दमा किया था लेकिन वे सभी ख़ारिज कर दिए गए हैं. (bbc.com)
दुनिया के सबसे पुराने और सबसे ताक़तवर लोकतंत्र माने जाने वाले अमेरिका में इस समय लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर ख़तरे के बादल मँडराते नज़र आ रहे हैं.
राष्ट्रपति ट्रंप के समर्थकों ने राजधानी वॉशिंगटन डीसी में स्थित कैपिटल बिल्डिंग में घुसकर काफ़ी हंगामा किया और इसमें हिंसा भी हुई है.
अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव से पहले से लेकर चुनाव के नतीजे आने के बाद तक राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप लगातार अपनी जीत के दावे करते रहे हैं. चुनाव से पहले उन्होंने कहा था कि अगर वो हार गए, तो आसानी से अपनी हार स्वीकार नहीं करेंगे.
अब चुनाव के नतीजे आने के बाद और जो बाइडन की जीत की आधिकारिक घोषणा का वक़्त नज़दीक आने पर भी ट्रंप अपनी ज़िद पर अड़े हुए हैं.
वो बार-बार दोहरा रहे हैं कि चुनाव में धोखाधड़ी और धाँधली हुई है.
हालाँकि, अपने दावों को पुष्ट करने के लिए उन्होंने अब तक एक भी सबूत नहीं दिए हैं.
कैपिटल बिल्डिंग में उत्पात और हिंसा के बाद भी ट्रंप अपने रुख़ पर कायम हैं. दुनिया भर में ट्रंप के रवैए की आलोचना हो रही है और अमेरिका के मौजूदा हालात पर चिंता जताई जा रही है.
एक तरफ़, नवनिर्वाचित अमेरिका राष्ट्रपति जो बाइडन को 20 जनवरी को पद की शपथ लेनी है और दूसरी तरफ़, अमेरिका में अप्रत्याशित अराजकता का माहौल है.
ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या 20 जनवरी को ट्रंप का कार्यकाल ख़त्म होने से पहले उन्हें हटाया जा सकता है? इस बात पर भी चर्चा हो रही है कि क्या ट्रंप को अमेरिकी संविधान के 25वें संशोधन का सहारा लेकर हटना मुमकिन है?
आम तौर पर हम महाभियोग की प्रक्रिया के बारे में सुनते हैं, जिसके ज़रिए अमेरिकी संसद राष्ट्रपति को पद से हटा सकती है. वहीं, 25वें संशोधन की मदद से राष्ट्रपति की अपनी ही कैबिनेट उन्हें पद से हटा सकती है.
1963 में जब तत्कालीन उपराष्ट्रपति लिंडन जॉनसन ने राष्ट्रपति जॉन एफ़ केनेडी की हत्या के दो घंटे बाद राष्ट्रपति पद की शपथ ली.
अमेरिका को 25वें संशोधन की ज़रूरत क्यों पड़ी?
अमेरिकी संविधान से जुड़े विषयों पर काम करने वाली वेबसाइट 'कॉन्स्टिट्यूशन डेली' के मुताबिक़ अमेरिका के संविधान में 25वें संशोधन की ज़रूरत साल 1963 में उस वक़्त पड़ी, जब तत्कालीन राष्ट्रपति जॉन एफ़ केनेडी की अचानक हत्या कर दी गई.
जॉन एफ़ केनेडी की अचानक हुई हत्या के साथ ये ख़बरें भी आईं कि उप राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन भी घायल हो गए हैं. इसके बाद अमेरिका में शोक के साथ-साथ कुछ समय के लिए राजनीतिक संकट की स्थिति भी पैदा हो गई.
हालाँकि, केनेडी की हत्या के दो घंटे के भीतर लिंडन जॉनसन ने राष्ट्रपति पद की शपथ ली. इसी के साथ अमेरिकी संविधान में 25वें संशोधन की शुरुआत हुई.
केनेडी की हत्या के दो साल बाद 1965 में अमेरिकी संसद ने 25वें संशोधन का प्रस्वात रखा और फिर दो साल बाद 1967 में इसे मंज़ूरी मिली.
इससे पहले तक अमेरिका के संविधान में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं थी कि राष्ट्रपति की अचानक मौत, हत्या, इस्तीफ़े या उनके पद संभालने में असमर्थ हो जाने पर उनका उत्तराधिकारी कौन होगा.
क्या कहता है 25वाँ संशोधन?
25वें संशोधन की मदद से राष्ट्रपति को पद से हटाने के लिए मंत्रिमंडल को बहुमत से और उप राष्ट्रपति के साथ मिलकर इस आशय के पत्र पर हस्ताक्षर करना होगा कि मौजूदा राष्ट्रपति अपने कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ हैं.
आधिकारिक शब्दों में कहें तो कैबिनेट और उपराष्ट्रपति को घोषणा करनी होगी कि राष्ट्रपति अपने पद की संवैधानिक शक्तियों का इस्तेमाल करने और अपने संवैधानिक कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ हैं.
25वें संशोधन का सेक्शन-4 अमेरिका में उन स्थितियों के बारे में है, जब कोई राष्ट्रपति अपना कार्यभार चलाने में असमर्थ हो जाए, लेकिन पद छोड़ने के लिए स्वेच्छा से क़दम न उठाए.
इसे लेकर कुछ संवैधानिक विशेषज्ञों का कहना है कि सेक्शन-4 को राष्ट्रपति की मानसिक या शारीरिक विकलांगता (असमर्थता) से जुड़ी स्थितियों के संदर्भ में ही देखा जाना चाहिए.
वहीं, कुछ जानकारों का कहना है कि के सेक्शन-4 को राष्ट्रपति की शारीरिक और मानसिक विकलांगता से आगे बढ़कर ज़्यादा व्यापक संदर्भ में देखा जाना चाहिए.
जैसे कि, अगर कोई राष्ट्रपति शारीरिक या मानसिक रूप से असमर्थ न होने के बावजूद अगर पद के लिए 'ख़तरनाक रूप से अनुपयुक्त' हो तो उसे सेक्शन-4 के प्रावधानों के दायरे में रखा जाना चाहिए.
इन प्रावधानों की अलग-अलग परिस्थितियों के अनुसार व्याख्या की जा सकती है.
क्या है राष्ट्रपति को हटाए जाने की पूरी प्रक्रिया?
कैबिनेट के बहुमत और उपराष्ट्रपति की मंज़ूरी के साथ पत्र पर हस्ताक्षर होने के बाद उप राष्ट्रपति ही कार्यकारी राष्ट्रपति बन जाता है.
इन सबके बीच राष्ट्रपति को भी एक मौक़ा दिया जाता है कि वो लिखित में अपना बचाव कर सकें.
हालाँकि, अगर राष्ट्रपति अपने बचाव में इस फ़ैसले को चुनौती देता है, तो भी इससे जुड़ा आख़िरी फ़ैसला कैबिनेट ही करती है.
सत्ता हस्तांतरण के लिए आगे बढ़ने से पहले सीनेट और प्रतिनिधि सभा में दो-तिहाई बहुमत की वोटिंग का फ़ॉर्मूला अपनाया जाता है. लेकिन इन सबके बीच उप राष्ट्रपति कार्यकारी राष्ट्रपति के तौर पर अपना काम जारी रखता है.
ट्रंप को इस प्रक्रिया से हटाया जा सकता है?
क्या ट्रंप को 25वें संशोधन का सहारा लेकर हटाया जा सकता है?
पहले इसके आसार कम नज़र आ रहे थे क्योंकि ऐसा माना जा रहा था कि उप राष्ट्रपति माइक पेंस कभी डोनाल्ड ट्रंप के ख़िलाफ़ नहीं जाएंगे. लेकिन, अब पेंस ने खुलकर कहा है कि जो बाइडन और कमला हैरिस को अमेरिका की जनता ने चुना है. पेंस ने कहा है कि वो ट्रंप के दबाव के बावजूद अमेरिकी जनादेश के ख़िलाफ़ नहीं जा सकते.
ऐसे में 25वें संशोधन को लेकर चर्चा तेज़ हो गई है. अगर इसका उपयोग हुआ तो डोनाल्ड ट्रंप अमेरिकी इतिहास के ऐसे पहले राष्ट्रपति होंगे, जिन्हें संविधान के 25वें संशोधन के तहत पद से हटाया जाएगा क्योंकि इससे पहले किसी अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ ऐसा नहीं हुआ. (bbc.com)
वॉशिंगटन डीसी स्थित कैपिटल हिल्स में ट्रंप समर्थकों के उत्पात के बाद हुए हिंसक संघर्ष और दंगों के बाद एक बार फिर अमेरिकी संसद ने नव निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडन की चुनावी जीत पर मुहर लगाने के लिए चर्चा शुरू कर दी है.
कैपिटल्स हिल्स में हुई हिंसा के दौरान अब तक कुल चार लोगों की मौत हो गई है.
ट्रंप समर्थक अचानक ही कैपिटल्स हिल्स में घुसकर चुनावी नतीजों को उलटने की माँग करने लगे थे जिसके बाद अफ़रा-तफ़री मच गई थी और अमेरिकी संसद की सदनों को अपनी चर्चा स्थगित करनी पड़ी थी.
जो बाइडन ने लोकतांत्रिक प्रक्रिया में इस तरह दख़ल दिए जाने और ‘विद्रोह’ पर ग़ुस्सा ज़ाहिर किया है.
इधर, पहले अपने समर्थकों को कैपिटल हिल्स में जाने के लिए कहने वाले डोनाल्ड ट्रंप ने बाद में उनसे ‘घर जाने’ को कहा. हालाँकि इस बीच वो चुनाव में धोखाधड़ी के अपने आरोपों को दुहराते रहे. (bbc.com)
वाशिंगटन, 7 जनवरी | अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के समर्थकों द्वारा कैपिटल भवन पर हमला बोलने के बाद अमेरिका की राजधानी में हुई अराजकता को देखते हुए वाशिंगटन डी.सी. में कर्फ्यू लगा दिया गया है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, बुधवार देर रात एक बयान में वाशिंगटन डी.सी. की मेयर मुरील बोसेर ने कहा कि यह कर्फ्यू शाम 6 बजे से सुबह 6 बजे तक रहेगा। हालांकि यह कर्फ्यू मीडियाकर्मियों समेत जरूरी श्रमिकों पर लागू नहीं होगा।
उन्होंने कहा, "कर्फ्यू के घंटों के दौरान मेयर द्वारा तय किए गए लोगों के अलावा कोई भी व्यक्ति जिले के अंदर किसी भी सड़क, गली, पार्क, या अन्य सार्वजनिक स्थानों पर ना तो पैदल चल सकता है और ना ही परिवहन के माध्यमों कार, बाइक या मोटर से चल सकता है।"
बुधवार को 'ट्रंप' और 'यूएसए, यूएसए' के नारे लगाने वाले हजारों दंगाइयों ने पुलिस को मुश्किल में डाल दिया और सारे बैरियर्स हटाते हुए इमारत के अंदर पहुंच गए। उन्होंने सीनेट और हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव्स के संयुक्त सत्र के स्थगन के बाद उनसे मुलाकात कर एरिजोना के इलेक्टोरल कॉलेज वोटों पर अपनी आपत्ति जताई।
दंगाइयों की इस भीड़ ने सारी सुरक्षा व्यवस्थाओं को हटाते हुए कैपिटल में सीनेट के चैंबर में प्रवेश किया और उसे क्षति पहुंचाई। उन्हें रोकने के लिए नेशनल गार्ड को उप-राष्ट्रपति माइक पेंस और फेडरल ब्यूरो ऑफ इंवेस्टीगेशन (एफबीआई) की टीमों ने आदेश दिया।
इस अराजकता के दौरान गोली लगने से एक महिला की मौत हो गई। (आईएएनएस)
1 मार्च 2020 के बाद दुनियाभर में 600 से अधिक पत्रकारों की मौत कोरोना वायरस महामारी के कारण हुई है. प्रेस फ्रीडम से जुड़ी एक संस्था ने यह जानकारी दी है.
पिछले एक साल में कोरोना वायरस महामारी दुनिया में लाखों लोगों की जान ले चुकी है. मरने वालों में अग्रिम पंक्ति के कर्मचारी तो हैं ही इसके साथ ही वे लोग भी हैं जो दुनिया तक इससे जुड़ी खबरें जान जोखिम में डालकर लाते हैं, यानि पत्रकार. अंतरराष्ट्रीय मीडिया निगरानी सगंठन प्रेस इम्बलम कैंपेन (पीईसी) का कहना है कि कोरोना के कारण दुनियाभर में 602 पत्रकारों की मौत हुई है. लातिन अमेरिका में सबसे अधिक 303 पत्रकारों की मौत हुई है. एशिया में 145 मौतें दर्ज की गईं, यूरोप में 94, उत्तरी अमेरिका में 32 और अफ्रीका में 28 मौतें रिकॉर्ड की गईं.
पीईसी का कहना है कि पत्रकारों को अलग करना संभव नहीं है जो काम करते हुए संक्रमित हो गए और उनकी सूची में सेवानिवृत्त पत्रकार भी शामिल हैं. जेनेवा स्थित संगठन ने कहा है कि उसे लगता है कि पत्रकारों को "अनुरोध पर टीकाकरण की प्राथमिकता होनी चाहिए."
संकट में पत्रकारिता
पीईसी के महासचिव ब्लाइस लेम्पेन ने एक बयान में कहा, "अपने पेशे के कारण पत्रकार बयान दर्ज करने के लिए जमीन पर जाते हैं, वे खासतौर पर वायरस के संपर्क में आने के जोखिम में रहते हैं. उनमें से कुछ ऐसे फ्रीलांस पत्रकार और फोटो पत्रकार हैं जो सिर्फ घर से काम नहीं कर सकते हैं."
पीईसी का यह आंकड़ा स्थानीय मीडिया, पत्रकारों के राष्ट्रीय संघों और पीईसी के क्षेत्रीय संवाददाताओं की सूचनाओं के आधार पर है.
उसका कहना है कि वास्तविक संख्या 602 से अधिक होगी क्योंकि पत्रकारों की मृत्यु का कारण कभी-कभी स्पष्ट नहीं होता है, उनकी मृत्यु की घोषणा नहीं की जाती है या कोई विश्वसनीय स्थानीय जानकारी नहीं होती है. पिछले साल मार्च के बाद से पेरू में सबसे ज्यादा मीडियाकर्मी कोरोना महामारी में मारे गए. पेरू में वायरस की वजह से 93 मीडियाकर्मियों की मौत हुई, इसके बाद ब्राजील में 55, भारत में 53, मेक्सिको में 45, इक्वाडोर में 42, बांग्लादेश में 41, इटली में 37 और अमेरिका 31 पत्रकारों की मौत हुई.
2004 में स्थापित अंतरराष्ट्रीय गैर-लाभकारी संगठन कोविड-19 से मरने वाले पत्रकारों के परिवारों की वित्तीय सहायता के लिए अनुरोध का समर्थन करता है.
एए/सीके (एएफपी)
वाशिंगटन, 7 जनवरी| सोशल मीडिया दिग्गज ट्विटर और फेसबुक ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के अकाउंट को अस्थायी तौर पर बंद कर उन्हें पोस्ट करने से रोक दिया है। यह कदम ट्रंप के समर्थकों द्वारा वाशिंगटन डीसी में कैपिटल भलन पर हिंसक हमला करने के बाद उठाया गया है। बुधवार को एक वीडियो में ट्रंप ने अपने समर्थकों को संबोधित कर 3 नवंबर 2020 के चुनाव में हुई धांधली का निराधार आरोप दोहराया, जिसने उनके समर्थकों को कैपिटल जाने के लिए मजबूर किया।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, बुधवार की देर रात एक बयान में ट्विटर ने कहा कि ट्रंप के निजी ट्विटर अकाउंट को 12 घंटे के लिए बंद कर दिया जाएगा क्योंकि उन्होंने प्लेटफॉर्म की हिंसक धमकियां देने संबंधी नीतियों का उल्लंघन किया था। यदि वह आगे भी ऐसा करते हैं तो उनका अकाउंट स्थायी तौर पर बंद कर दिया जाएगा।
ट्विटर सेफ्टी ने एक बयान में कहा, "हमारी सिविक इंटिग्रिटी या हिंसक धमकियों को लेकर बनाई गई नीतियों समेत ट्विटर के नियमों का भविष्य में होने वाले उल्लंघनों को देखते हुए एट द रेट रियल डोनाल्ड ट्रंप का अकाउंट स्थायी रूप से निलंबित कर दिया जाएगा।"
फेसबुक ने पहले तो वीडियो को नहीं हटाया था और इसके बजाय उस पर लेबल लगा दिया था। द हिल समाचार वेबसाइट ने एक रिपोर्ट में कहा है कि पोस्ट को हटाए जाने से पहले के 30 मिनट में 49 हजार बार शेयर कर लिया गया था।
फेसबुक में इंटीग्रिटी के वाइस प्रेसिडेंट ने एक बयान में कहा, "यह एक आपातकालीन स्थिति है और हम राष्ट्रपति ट्रंप के वीडियो को हटाने जैसे उचित उपाय कर रहे हैं। हमने वीडियो हटा दिए हैं क्योंकि हमारा मानना है कि यह हिंसा के जोखिम को कम करता है।"
इतना ही नहीं गूगल के स्वामित्व वाले यूट्यूब ने भी वीडियो को हटा दिया है। उसने कहा है कि इसने प्लेटफॉर्म की नीतियों का उल्लंघन किया है। यूट्यूब के प्रवक्ता एलेक्स जोसेफ ने कहा है, "हम आने वाले घंटों में भी सतर्क रहेंगे।"
बता दें कि बुधवार को कैपिटल के अंदर हुई गोलीबारी में महिला की उस वक्त मौत हो गई जब बड़ी संख्या में ट्रंप के समर्थकों ने बिल्डिंग पर कब्जा कर लिया था और कांग्रेस के लोकतांत्रिक कामकाज को रोकने के लिए हिंसक प्रदर्शन किया। उस समय यहां सीनेट और हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव्स राष्ट्रपति के रूप में जो बाइडेन और उप-राष्ट्रपति के पद पर कमला हैरिस के चुने जाने की पुष्टि की प्रक्रिया कर रहे थे। (आईएएनएस)
वाशिंगटन, 7 जनवरी| अमेरिकी चयनित राष्ट्रपति जो बाइडन ने बुधवार को यूएस कैपिटल में प्रदर्शनकारियों द्वारा इमारत में तोड़-फोड़ करने और औपचारिक रूप से चल रहे इलेक्टोरल कॉलेज के वोटों को रोकने के लिए कार्यवाही को मजबूर करने की घटना को 'विद्रोह' बताया। बाइडन ने विलमिंगटन, डेलावेयर में कहा, "यह विरोध नहीं है, यह 'विद्रोह' है। यह असंतोष नहीं है, यह अव्यवस्था है। यह अराजकता है। यह देशद्रोह से मिलता-जुलता है।"
समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, डेमोक्रेट ने कहा कि, वह रिपब्लिकन, डोनाल्ड ट्रंप का आह्वान करते हैं कि वह अपनी शपथ पूरी करने और संविधान की रक्षा करने और इस अशांति को समाप्त करने की मांग करने के लिए टेलीविजन पर आए।
गौरतलब है कि ट्रंप ने बाइडेन के साथ 2020 के राष्ट्रपति पद की दौड़ में अपनी हार को स्वीकार करने से इनकार कर दिया है और वह अभी भी वोट में धोखाधड़ी के दावे कर रहे हैं। हालांकि विभिन्न स्तरों पर अमेरिकी कोर्ट ने उनके अभियान और सहयोगियों द्वारा दायर दर्जनों मुकदमों को सबूतों की कमी के कारण खारिज कर दिया है।
उल्लेखनीय है कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के समर्थकों ने कैपिटल बिल्डिंग में घुसकर जमकर उत्पात मचाया और हिंसा की। इस दौरान हुई गोलीबारी में एक महिला की मौत हो गई है।
ट्रंप समर्थक कांग्रेस के लोकतांत्रिक कामकाज को रोकने के लिए यहां पहुंचे थे, जो कि राष्ट्रपति के तौर पर जो बाइडेन और उप-राष्ट्रपति के तौर पर कमला हैरिस की जीत की पुष्टि करने के लिए प्रक्रिया कर रहे थे।
मरने वाली महिला की शाम तक पहचान नहीं हो सकी थी। कैपिटल बिल्डिंग पर समर्थकों ने कब्जा कर लिया था और वहां से धुआं निकल रहा था। वहीं इन लोगों को हटाने के लिए नेशनल गार्ड और संघीय कानून प्रवर्तन कर्मियों को भेजा गया है। यहां स्थानीय समय के अनुसार शाम 6 पूरे इलाके में कर्फ्यू लगा दिया गया।
यह दंगा तब शुरू हुआ, जब कांग्रेस चुनावी कॉलेज के वोटों की पुष्टि कर रही थी कि इसमें बाइडेन-हैरिस को चुना गया है। (आईएएनएस)