मनोरंजन
बॉलीवुड की वेटरन एक्ट्रेस और राजनेता जया बच्चन 9 अप्रैल को अपना 74वां जन्मदिन मना रही हैं। इस खास दिन पर उनके फैमिली मेंबर्स के अलावा आम से लेकर खास तक उन्हें बर्थडे विश कर रहे हैं। जया बच्चन के इस खास दिन पर उनसे जुड़ी कई विवादित बातें आपको बताने जा रहे हैं। एक बार तो जया बच्चन ने शाहरुख खान को थप्पड़ मारने की बात तक कह दी थी। आइए जानते हैं जया बच्चन की कंट्रोवर्सी...
शाहरुख खान को थप्पड़ मारने की बात की
एक बार शाहरुख खान ने सलमान खान की एक्स गर्लफ्रेंड का जिक्र छेड़ा था। इनमें उन्होंने ऐश्वर्या राय का नाम भी लिया था। इस पर जया बच्चन ने रिएक्शन देते हुए कहा था, 'अगर मैं वहां होती तो शाहरुख खान को थप्पड़ मार देती।' Also Read - अमिताभ बच्चन ने खास अंदाज में जया बच्चन को दी जन्मदिन की बधाई
जया बच्चन ने फैन की लगाई क्लास
जया बच्चन ने एक बार एक फैन की जबरदस्त क्लास लगाई थी। दरअसल, एक फैन उनकी मोबाइल से तस्वीर लेने की कोशिश कर रहा था। इस पर जया बच्चन ने उसे खूब सुनया था। जयाा बच्चन ने उससे कहा था, 'क्या तुमने फोन से तस्वीर लेने से पहले मुझसे इजाजत ली, थोड़ी सी तमीज सीख लो।'
जया बच्चन ने पपाराजी को लगाई लताड़
ऐश्वर्या राय बच्चन एक इवेंट से वापस लौट रही थीं और इस दौरान पपाराजी ने उन्हें रोककर उनकी तस्वीर लेनी चाही। पपाराजी ने ऐश्वर्या राय बच्चन को ऐश कहकर आवाज दी। इस पर जया बच्चन ने पपाराजी को लताड़ लगाते हुए कहा था कि वो तुम्हारी क्लास में पढ़ती है क्या।
जया बच्चन ने फोटोग्राफर कह दिया था जंगली
जया बच्चन के एक इलेक्शन के समय फोटोग्राफर उनकी तस्वीर क्लिक कर रह थे। तभी जया बच्चन उन्हें जमकर फटकार लगाई थी। जया बच्चन ने कहा था, 'क्या जंगली की तरह कर रहे हो। फिर अभिषेक बच्चन ने अपनी मां को शांत किया था।'
कंगना रनौत के खिलाफ दिया बयान
जया बच्चन ने कंगना रनौत के खिलाफ संसद में बयान दिया था। जया बच्चन ने गुस्से में कहा था, जिन लोगों ने बॉलीवुड से नाम कमाया है, वही लोग इसे गटर कह रहे हैं। ये बहुत गलत बात है।
अभिषेक बच्चन की फिल्म की आलोचना की
जया बच्चन एक कार्यक्रम में भाषण देने के लिए गई थीं। जब वह स्टेज पर भाषण देने पहुंचीं तो उन्होंने अपने बेटे अभिषेक बच्चन की फिल्म अलोचना कर दी थी। उन्होंने अभिषेक बच्चन की फिल्म को नॉनसेंस कह डाला था। (bollywoodlife.com)
टेरेंस लुईस ने सिर्फ इंडिया ही नहीं बल्कि विदेशों में भी अपने डांस से लोगों का दिल जीत लिया है. मात्र 6 साल की उम्र से डांस सीखने वाले टेरेंस ने बचपन में ही एक डांस प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और जीत दर्ज की. इसी जीत ने उन्हें स्टेज का दीवाना बना दिया था. साल 2002 में अमेरिकन कोरियोग्राफी अवॉर्ड जीत चुके टेरेंस आज अपना बर्थडे मना रहे हैं.
टेरेंस लुईस की दीवानगी का आलम ये थे कि उन्हें रॉकस्टार बनने की धुन सवार हो गई थी. हालांकि टेरेंस के पिता हमेशा से चाहते थें कि उनका बेटा पढ़ाई-लिखाई पर फोकस करे. लेकिन यहां तो धुन सवार थी. टेरेंस के पिता ने एक बार उन्हें सलाह भी दी कि जब 15 साल के हो जाना तब डांस पर ध्यान देना.
टेरेंस लुईस चूंकि हर हाल में डांस की हर विधा में महारत हासिल करना चाहते थे, इसलिए घरवालों से छिप-छिप कर कथक सीखने लगे.
टेरेंस ने अपना खर्च चलाने के लिए डांस सिखाना शुरु किया, इससे उनकी ठीक-ठाक आमदनी हो जाती थी. हैंडसम टेरेंस ने सिर्फ ही डांस से ही पैसे नहीं कमाए बल्कि थोड़े बड़े होने पर बतौर फिटनेस इंस्ट्रक्टर भी काम किया.
टेरेंस लुईस, माधुरी दीक्षित, सुष्मिता सेनस बिपाशा बसु, सुजैन खान के अलावा शहारुख खान की वाइफ गौरी खान के फिटनेस इंस्ट्रक्टर रह चुके हैं.
टेरेंस लुईस को आमिर खान की फिल्म ‘लगान’ में पहला ब्रेक मिला. अब तक करीब 25 फिल्मों और म्यूजिक वीडियोज की कोरियोग्राफी कर चुके हैं.
बचपन से ही स्टेज का मोह ऐसा हुआ कि आज डांस रियलिटी शो के जाने-माने जज बन बैठे हैं. ‘डांस इंडिया डांस’, ‘नच बलिए’, ‘इंडियाज बेस्ट डांसर’ जैसे कई शोज के जज रह चुके हैं.
कम लोगों को पता होगा कि टेरेंस लुईस का नाम गिनिज वर्ल्ड रिकॉर्ड भी दर्ज है. टेरेंस के नाम ‘वर्ल्ड्स लारजेस्ट फोटोबुक’ का रिकॉर्ड अपने नाम किया है.
इसके अलावा साल 2020 में टेरेंस की लाइफ पर बनी बायोपिक ‘Terence Lewis, Indian Man’ को Pierre X Garnier नामक फ्रेंच डायरेक्टर ने बनाई है.
लॉस एंजिलिस, 9 अप्रैल। ऑस्कर अवॉर्ड समारोह में मेजबान क्रिस रॉक को थप्पड़ मारने को लेकर ‘एकेडमी ऑफ मोशन पिक्चर आर्ट्स’ ने अभिनेता विल स्मिथ पर ऑस्कर या अकादमी के किसी भी अन्य सामरोह में शामिल होने पर 10 साल का प्रतिबंध लगा दिया है।
स्मिथ की हरकत पर अकादमी के ‘बोर्ड ऑफ गवर्नर्स’ की बैठक के बाद यह फैसला किया गया है। हालांकि, फिलहाल यह स्पष्ट नहीं है कि उन्हें भविष्य में इन पुरस्कारों के लिए नामित किया जाएगा या नहीं।
अकादमी ने एक बयान जारी कर कहा, ‘‘94वें ऑस्कर अवॉर्ड समारोह का आयोजन हमारे समुदाय के उन अनेक लोगों के लिए किया गया था, जिन्होंने पिछले एक वर्ष में अविश्वसनीय काम किया। हालांकि, स्मिथ के अस्वीकार्य और गलत व्यवहार ने उन पलों को खराब कर दिया।’’
उधर, स्मिथ ने प्रतिबंध पर कहा, ‘‘मैं अकादमी के फैसले का सम्मान करता हूं।’’ उन्होंने पिछले सप्ताह ही अकादमी से इस्तीफा दे दिया था।
इससे पहले हुई बैठक में अकादमी ने कहा था कि स्मिथ ने अपनी हरकत से आचरण से जुड़े उसके मानकों का उल्लंघन किया है, जिसके तहत ‘अनुचित रूप से शारीरिक संपर्क करना, अपशब्द कहना या धमकाना एकेडमी की प्रतिष्ठा के खिलाफ है।’
अकादमी ने क्रिस रॉक से माफी भी मांगी थी।
गौरतलब है कि 27 मार्च को आयोजित ऑस्कर अवॉर्ड सामरोह में सर्वश्रेष्ठ फीचर डॉक्यूमेंटरी श्रेणी के लिए ऑस्कर पुरस्कार देते हुए रॉक ने स्मिथ की पत्नी एवं अभिनेत्री जेडा पिंकेट स्मिथ का मजाक उड़ाया था। इसके बाद स्मिथ ने मंच पर आकर रॉक को थप्पड़ मार दिया था, जो ऑस्कर के इतिहास में सबसे हैरतअंगेज घटनाओं में से एक है।
समारोह में स्मिथ को ‘‘किंग रिचर्ड’’ में उनके दमदार अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के पुरस्कार से नवाजा गया था। पुरस्कार लेते समय उन्होंने अकादमी और नामित कलाकारों से माफी मांगी थी, लेकिन रॉक का नाम नहीं लिया था। (एपी)
-एंड्रयू क्लेरेंस
ड्यून देखने के कुछ मिनटों बाद ही पता चल जाता है कि इस फ़िल्म को विज़ुअल इफ़ेक्ट्स के लिए ऑस्कर क्यों दिया गया है.
फ़्रेंक हार्बर्ट के 1965 के उपन्यास पर आधारित डेनिस विलनोव की यह साई-फ़ाई फ़िल्म रेगिस्तान की वैभवता को जीवंत कर देती है. समीक्षक इसे एक 'विशाल प्रदर्शनी' बता रहे हैं जिसमें अपनी गिरफ़्त में लेने वाले सार्थक डिज़ाइन और बनावट शामिल हैं.
लेकिन बहुत कम ही लोग नमित मल्होत्रा के बारे में जानते हैं. 46 साल के नमित उस कंपनी के सीईओ हैं जिसने ड्यून के शानदार विज़ुअल इफ़ेक्ट्स को डिज़ाइन किया है. उन्होंने अपना सफ़र भारत में बॉलीवुड से शुरू किया था.
Oscars 2022 में रेड कार्पेट पर फ़ैशन का जलवा तस्वीरों में देखें
यह फ़िल्म एक मरुस्थल ग्रह अराकिस पर प्यार और युद्ध के इर्द-गिर्द घूमती है. इसको लंदन स्थित विज़ुअल इफ़ेक्ट्स और एनिमेशन कंपनी DNEG ने डिज़ाइन किया है. इस कंपनी के ग्राफ़िक डिज़ाइनर्स और इंजीनियर्स ने फ़िल्म के 1,700 में से तक़रीबन 1,200 वीएफ़एक्स शॉट्स बनाए हैं.
फ़िल्म के वीएफ़एक्स सुपरवाइसर्स ने बीबीसी क्लिक से कहा कि हर तत्व 'विलनोव की कल्पना को मज़बूती देने के लिए' डिज़ाइन किया गया था.
बॉलीवुड से है मज़बूत रिश्ता
लंदन में अपने कार्यालय से मल्होत्रा ने फ़ोन पर बताया, "आप वास्तव में प्रोडक्शन डिज़ाइन, म्यूज़िक, सिनेमाटोग्राफ़ी को महसूस करते हैं जो बाकी अन्य हिस्सों के साथ मिलकर एक संसार बनाता है."
1995 में उन्होंने भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई के एक गैराज से अपना लंबा सफ़र शुरू किया था. अब वो उस वैश्विक कंपनी के प्रमुख हैं जिसने अब तक सात ऑस्कर जीते हैं.
वो जानते थे कि वो हमेश सिनेमा के संसार के साथ जुड़े रहेंगे क्योंकि उनके दादा बॉलीवुड में सिनेमाटोग्राफ़र थे जिन्होंने भारत की पहली रंगीन फ़िल्म झांसी की रानी (1953) में काम किया था. उनके पिता बॉलीवुड के एक बड़े प्रोड्यूसर रहे हैं जिन्होंने शहंशाह (1988) फ़िल्म का निर्माण किया था. इस फ़िल्म में मुख्य भूमिका अमिताभ बच्चन ने निभाई थी.
जब नमित मल्होत्रा 18 साल के हुए तो उन्होंने अपने पिता को बताया कि वो निर्देशक बनना चाहते हैं लेकिन उनके पिता ने उन्हें फ़िल्म निर्माण की अलग-अलग कलाओं को सीखने के लिए कहा जिनमें तकनीकी पक्ष पर उन्होंने ज़ोर दिया.
उनके पिता ने उनसे कहा कि वो फ़िल्म कभी भी डायरेक्ट कर सकते हैं लेकिन तकनीक गेमचेंजर होने वाली है.
बॉलीवुड के निर्देशकों को नई तकनीक दी
मल्होत्रा ने फिर एक कंपनी की शुरुआत की जो फ़िल्म निर्माताओं को एडिटिंग सेवा देती थी. एक साल बाद 1995 में उन्होंने प्राइम फ़ोकस की स्थापना की जो फ़िल्म निर्माण के बाद भी सहायता करती थी.
मल्होत्रा कहते हैं, "हमने जब स्थापना की हम तबसे लगातार नए परिवर्तन ला रहे थे. हमने जो कुछ भी किया वो भारत में अपने आप में पहली बार था."
2004 में वो विज़ुअल इफ़ेक्ट्स के लिए एक रोबोटिक क्रेन लेकर आए थे जो कि भारत में पहली बार हुआ था.
वो याद करते हुए कहते हैं, "वो बहुत जटिल उपकरण था. एक शूट के लिए उसे स्थापित करने में चार घंटे समय लगता. अभिनेता और निर्देशक कहते कि 'यह क्या चीज़ है?"
उस समय तक भारतीय लोग हॉलीवुड की लॉर्ड ऑफ़ द रिंग्स ट्राइलॉजी जैसी फ़िल्में देख चुके थे जिनमें ऐसी डिजिटल तकनीक इस्तेमाल हुई थी जिसने रंगों और किरदारों को अलग ही रूप दिया था.
वो कहते हैं, "हम उसको दोहरा सकने में समर्थ थे."
प्राइम फ़ोकस का विकास शुरू हुआ लेकिन मल्होत्रा कहते हैं कि उन्होंने पाया कि भारतीय फ़िल्म निर्माता बदलावों को स्वीकार करने में काफ़ी धीमे हैं.
वो कहते हैं, "फ़िल्म व्यवसाय में बदलाव बहुत मुश्किल होता है. वो उसी में आरामदेह महसूस करते हैं जिसमें उन्होंने फ़िल्म बनाई है. हर किसी को एक नई तकनीक पर साथ ले आना काफ़ी संघर्षपूर्ण था."
विदेश का किया रुख़
इसी दौरान उन्होंने विदेश में भी पांव पसारने का सोचना शुरू किया.
"मुझको इस चीज़ ने विश्वास दिलाया कि हम भारत में इसे एक-चौथाई क़ीमत पर कर सकते हैं तो हम इसका लाभ क्यों न उठाएं और इसे पश्चिम में लेकर जाएं?"
प्राइम फ़ोकस कंपनी जो कि भारतीय स्टॉक एक्सचेंज में साल 2006 में लिस्टेड हो चुकी थी वो छोटी-छोटी पोस्ट-प्रोडक्शन कंपनियों को ख़रीदकर अमेरिका और ब्रिटेन में दाख़िल हुई.
2010 में वो पहली कंपनी थी जिसने पूरी हॉलीवुड फ़िल्म क्लैश ऑफ़ द टाइटंस को 2डी से 3डी में बदला.
चार साल बाद इसने लंदन स्थित डबल नेगेटिव कंपनी को ख़रीद लिया जो कि पहले से ही क्रिस्टोफ़र नोलन की इंसेप्शन फ़िल्म के विज़ुअल इफ़ेक्ट्स के लिए ऑस्कर जीत चुकी थी. उसके बाद कंपनी ने छह और ऑस्कर विज़ुअल इफ़ेक्ट्स के लिए जीते.
मल्होत्रा अभी भी भारतीय फ़िल्म उद्योग में दिलचस्पी रखते हैं और वो बॉलीवुड सुपरहीरो फ़िल्म ब्रह्मास्त्र के निर्माताओं में से एक हैं.
भारतीय फ़िल्में क्यों विज़ुअल इफ़ेक्ट्स में पिछड़ीं
वो कहते हैं, "हर कोई चमत्कार पसंद करता है. हर कोई स्पाइडरमैन पसंद करता है, अवतार पसंद करता है."
वो कहते हैं कि भारतीय फ़िल्मों में अब विजुअल इफ़ेक्ट्स पर ख़र्चा किया जा रहा है. वो बाहुबली और आरआरआर फ़िल्मों का हवाला देते हैं.
उनका कहना है, "वीएफ़एक्स पर ख़र्च करना अब बढ़ रहा है. ये फ़िल्में मील का पत्थर हैं क्योंकि हमने आज तक ऐसी पीरियड फ़िल्म नहीं देखी जिसमें ऐसे विज़ुअल इफ़ेक्ट्स हों जो हमें चौंका कर रख दें."
भारत में एक सदी पहले फ़िल्में बनना शुरू हो गई थीं लेकिन आज तक यहां अवतार और इंटरस्टेलर जैसी फ़िल्में नहीं बन पाईं?
इस सवाल पर मल्होत्रा कहते हैं, "हमारे फ़िल्म निर्माताओं के सिनेमा को लेकर अलग संदर्भ बिंदु हैं."
वो कहते हैं कि उदाहरण के तौर पर देखें तो स्टेनली क्युबरिक की साई-फ़ाई फ़िल्म 2001: ए स्पेस ओडिसी को नोलन फ़िल्म निर्माण में मील का पत्थर मानते हैं.
मल्होत्रा कहते हैं, "जब नोलन इंटरस्टेलर बनाना चाहते हैं तो वो सोचते हैं कि वो कैसे फ़िल्म निर्माण और कहानी कहने की कला की सीमाओं को उस तरह से तोड़ सकें जैसे 1968 में उस फ़िल्म (2001: ए स्पेस ओडिसी) ने किया था."
दूसरी ओर भारतीय निर्देशकों के पास देश की एक समृद्ध फ़िल्म इतिहास की प्रेरणा है.
"अगर निर्देशक और अभिनेता राज कपूर 50 और 60 के दशक की एक तरह की फ़िल्मों के लिए प्रसिद्ध रहेंगे तो इस सिनेमा से स्टार वॉर्स या स्पेस ओडिसी जैसी फ़िल्मों की जगह वैसी ही फ़िल्में आएंगी." (bbc.com)
वाशिंगटन, 6 अप्रैल। अमेरिका के ओहियो प्रांत की सीनेट ने निर्देशक विवेक अग्निहोत्री को उनकी फिल्म 'द कश्मीर फाइल्स' के लिए प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया है।
ओहियो के सीनेटर नीरज अतानी ने कहा कि प्रशस्ति पत्र 'कश्मीरी पंडितों के नरसंहार' को दर्शाने वाली अग्निहोत्री की फिल्म 'द कश्मीर फाइल्स' पर उनके काम को सम्मानित करने के लिए दिया गया है।
अतानी ओहियो के इतिहास में प्रांत के पहले भारतीय-अमेरिकी और हिंदू सीनेटर हैं।
प्रशस्ति पत्र पर ओहियो सीनेट के अध्यक्ष मैट हफमैन और अतानी ने संयुक्त रूप से हस्ताक्षर किए हैं।
इसमें कहा गया है, 'वास्तव में, आपने सार्वभौमिक अपील वाली एक ऐसी फिल्म बनाने की कोशिश की है, जिसमें ऐतिहासिक महत्व के मामले यानी घाटी से कश्मीरी पंडितों के जबरन पलायन को दर्शाया गया है। आपको अपनी उपलब्धियों पर गर्व होना चाहिए।' (भाषा)
ओटीटी पर एकता कपूर के विवादित शो लॉक अप को होस्ट कर रही अभिनेत्री कंगना रनौत ने इस बार शाहरुख़ ख़ान और अक्षय कुमार जैसे स्टार्स पर निशाना साधा है. रियालिटी शो बिग बॉस की तर्ज़ पर ओटीटी पर एकता कपूर ने एक शो लॉन्च किया है, जिसका नाम है लॉक अप. ये शो में खुलेआम प्रतियोगियों को एक-दूसरे को गाली देते और कई बार हद पार करते देखा जा सकता है. लेकिन इस शो को होस्ट कर रही कंगना हमेशा यही कहती हैं कि उनका शो बाक़ी शो से अलग हट कर है.
कई बार उन्होंने बिना नाम लिए बिग बॉस पर भी निशाना साधा है. लेकिन इस बार उनके निशाने पर हैं हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री के कई नामी-गिरामी चेहरे. इंस्टाग्राम पर कंगना ने लिखा है कि कई सफल कलाकारों जैसे शाहरुख़ ख़ान, अक्षय कुमार, प्रियंका चोपड़ा और रणवीर सिंह ने होस्टिंग में अपना हाथ आज़माया. कंगना ने आगे लिखा है- उनका करियर भले ही सफल रहा हो, लेकिन वे होस्टिंग में सफल नहीं हो पाए. ये नाकाम होस्ट हैं. अभी तक सिर्फ़ श्री अमिताभ बच्चन जी, सलमान ख़ान जी और कंगना रनौत ने ही सुपरस्टार होस्ट बनने का गौरव हासिल किया है. मैं इस लीग में शामिल होकर अपने को सम्मानित महसूस कर रही हूँ.
इतना ही नहीं कंगना ने आगे लिखा है- काश, मुझे ये स्पष्ट करने की ज़रूरत नहीं पड़ती. लेकिन ईर्ष्यालु फ़िल्म माफ़िया मुझे और मेरे शो को बदनाम करने के लिए सब कुछ कर रहे हैं. इसलिए मुझे ये सब करना पड़ा. और मुझे इस पर कोई अफ़सोस भी नहीं. आख़िर में कंगना ने लिखा है- अपनी पीढ़ी का एकमात्र सफल होस्ट होना अदभुत है. अमिताभ बच्चन कौन बनेगा करोड़पति के होस्ट हैं, तो सलमान ख़ान बिग बॉस के. शाहरुख़ ख़ान ने एक बार केबीसी की होस्टिंग की थी, जो उतना सफल नहीं रहा था. जबकि अक्षय कुमार ख़तरों के खिलाड़ी के होस्ट रह चुके हैं. जबकि हाल ही में रणवीर सिंह ने द बिग पिक्चर शो की होस्टिंग की थी. (bbc.com)
अमेरिका के लास वेगस स्थित एमजीएम ग्रैंड मारक्वी बॉलरूम में 64वें ग्रैमी अवॉर्ड का आयोजन किया गया.
इस आयोजन में भारत के संगीतकार रिकी केज को ग्रैमी अवॉर्ड से नवाज़ा गया है, ये दूसरी बार है जब केज को ग्रैमी मिला है.
उन्हें ‘बेस्ट न्यू एज एल्बम’ का अवॉर्ड अमेरिकी रॉक बैंड ‘द पुलिस’ के ड्रमर स्टीवर्ट कोपलैंड के साथ मिला है.
ये अवॉर्ड उनके एल्बम ‘डिवाइन टाइड्स’ के लिए दिया गया है.
ट्विटर पर एक तस्वीर शेयर करते हुए केज ने लिखा, "हमारे एल्बम डिवाइन टाइड्स के लिए ग्रैमी अवॉर्ड दिए जाने के लिए बहुत आभारी हूं. मेरे बगल में जो शख़्स खड़े हैं, इस जीते-जागते लीजेंड- स्टीवर्ट कोपलैंड से मुझे प्यार है. आप सभी को मेरा ढेर सारा प्यार! यह मेरा दूसरा ग्रैमी अवॉर्ड है और स्टीवर्ट का छठा अवॉर्ड है."
रिकी केज का जन्म अमेरिका में हुआ था लेकिन अब वह बेंगलुरु में रहते है.
इसके अलावा पाकिस्तानी गायिका उरूज आफ़ताब को ‘बेस्ट ग्लोबल परफॉमेंस’ के लिए ग्रैमी अवॉर्ड दिया गया है. इसके साथ ही वह ग्रैमी जीतने वाली पहली पाकिस्तानी महिला बन गई हैं. (bbc.com)
फिल्म निर्माता और निर्देशक राजकुमार संतोषी को साढ़े 22 लाख रुपए के चेक बाउंस केस में कोर्ट ने दोषी करार दिया है और 1 साल की सजा सुनाई है. चेक बाउंस केस पर सुनवाई करते हुए वरिष्ठ दीवानी न्यायाधीश एनएच वासवेलिया की अदालत ने यह भी कहा है कि अगर राजकुमार संतोषी को 2 महीने के अंदर यह रकम चुकानी होगी, अगर वह ऐसा नहीं करते हैं तो उन्हें एक साल और जेल में रहना होगा.
मामला राजकोट के अनिलभाई धनराजभाई जेठानी से जुड़ा हुआ है. दरअसल, राजकुमार संतोषी और अनिलभाई धनराजभाई जेठानी के बीच लेन-देन किया गया था. जिसमें राजकुमार संतोषी का अनिलभाई जेठानी को दिया 5 लाख का चेक बाउंस हो गया. जिसके बाद अनिलभाई जेठानी ने अपने वकील के जरिए संतोषी को नोटिस भेजा.
राजकोट के कोर्ट में दर्ज कराई गई थी शिकायत
2016 में राशि का भुगतान ना किए जाने के बाद चेक बाउंस की शिकायत राजकोट के कोर्ट में दर्ज कराई गई. इस मामले पर राजकुमार संतोषी ने भी अपनी राय रखी है. संतोषी का कहना है कि उन्हें एक सेलिब्रिटी होने का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है. ईटाइम्स से बातचीत में उन्होंने कहा- ‘मुझे एक सेलिब्रिटी होने का हर्जाना भुगतना पड़ रहा है. एक सेलिब्रिटी को टारगेट करना आसान होता है.’
बता दें, अगर राजकुमार संतोषी 2 महीने के अंदर इस राशि का भुगतान नहीं करते हैं तो उन्हें एक साल अतिरिक्त जेल में बिताना होगा. संतोषी को पुकार, अंदाज अपना-अपना और घायल जैसी फिल्मों के निर्देशन के लिए जाना जाता है. हाल ही में खबरें आई थीं कि संतोषी अंदाज अपना-अपना 2 की प्लानिंग कर रहे हैं. लेकिन, अब इस केस में फंसने के चलते अंदाज अपना-अपना 2 की राह में मुश्किलें नजर आ रही हैं.
मुंबई, तीन अप्रैल। लोकप्रिय टीवी प्रस्तोता एवं हास्य कलाकार भारती सिंह ने एक बेटे को जन्म दिया है। भारती एवं उनके पति हर्ष लिंबाचिया की यह पहली संतान है।
लिंबाचिया (35) ने रविवार को इंस्टाग्राम पर यह जानकारी दी और भारती के गर्भवती होने के समय के फोटोशूट की एक तस्वीर पोस्ट की।
भारती सिंह एवं लिंबाचिया का 2017 में विवाह हुआ था। दंपति ने भारती के गर्भवती होने की जानकारी पिछले साल दिसंबर में दी थी।
दोनों इस समय ‘हुनरबाज: देश की शान’ और ‘खतरा खतरा खतरा’ कार्यक्रम की मिलकर मेजबानी कर रहे हैं। (भाषा)
-हर्षल आकुड़े
"कह देना उनको मैं आ रहा हूं अपनी केजीएफ़ लेने." केजीएफ़-2 में अभिनेता संजय दत्त का ये डायलॉग फ़िलहाल काफ़ी चर्चा में है.
दर्शकों के बीच प्रचलित इस फ़िल्म का ट्रेलर हाल ही में रिलीज़ किया गया था. ट्रेलर के रिलीज़ होते ही सोशल मीडिया पर तहलका मच गया. इसके वीडियो को दो दिन में ही 6.2 करोड़ लोग यूट्यूब पर देख चुके हैं.
यह फ़िल्म 14 अप्रैल को रिलीज़ होने वाली है. इसलिए सोशल मीडिया सहित हर जगह इस फ़िल्म की चर्चा ज़ोर शोर से हो रही है.
इस फ़िल्म में संजय दत्त, रवीना टंडन और प्रकाश राज सहित मुख्य किरदार निभा रहे कन्नड़ सुपरस्टार यश मुख जैसे बड़े अभिनेता भी शामिल हैं.
यह फ़िल्म पहले मूल रूप से कन्नड़ भाषा में ही बनी थी. इस फ़िल्म का पहला भाग 21 दिसंबर, 2018 को कन्नड़, तेलुगू और तमिल के साथ हिन्दी में भी रिलीज़ किया गया था. और तब इस फ़िल्म की पूरे देश में काफ़ी तारीफ़ हुई और तभी से दर्शक इसके दूसरे भाग का इंतज़ार कर रहे थे.
केजीएफ़ का इतिहास
केजीएफ़ यानी कोलार गोल्ड फ़ील्ड्स कर्नाटक के दक्षिण पूर्व इलाक़े में स्थित है. दक्षिण कोलार ज़िले के मुख्यालय से 30 किलोमीटर की दूरी पर रोबर्ट्सनपेट एक तहसील है, जहां ये खदान मौजूद है.
बेंगलुरू के पूर्व में मौजूद बैंगलोर-चेन्नई एक्सप्रेसवे पर 100 किलोमीटर दूर केजीएफ़ टाउनशिप है. न्यूज़ वेबसाइट 'द क्विन्ट' ने अपनी एक रिपोर्ट में केजीएफ़ के शानदार इतिहास के बारे में लिखा है.
इस रिपोर्ट के अनुसार, 1871 में न्यूज़ीलैंड से भारत आए ब्रिटिश सैनिक माइकल फिट्ज़गेराल्ड लेवेली ने बेंगलुरू में अपना घर बना लिया था. उस वक़्त वो अपना ज़्यादातर समय पढ़ने में ही गुज़ारते थे.
इस बीच, उन्होंने 1804 में एशियाटिक जर्नल में छपे चार पन्नों का एक लेख पढ़ा. उसमें कोलार में पाए जाने वाले सोने के बारे में बताया गया था. इस लेख के चलते कोलार में उनकी दिलचस्पी बढ़ गई.
इस विषय पर पढ़ते-पढ़ते लेवेली के हाथों ब्रिटिश सरकार के लेफ़्टिनेंट जॉन वॉरेन का एक लेख लगा. लेवेली को मिली जानकारी के अनुसार, 1799 की श्रीरंगपट्टनम की लड़ाई में अंग्रेज़ों ने टीपू सुल्तान को मारने के बाद कोलार और आस-पास के इलाक़े पर अपना क़ब्ज़ा जमा लिया था.
उसके कुछ समय बाद, अंग्रेज़ों ने यह ज़मीन मैसूर राज्य को दे दी, पर कोलार की ज़मीन सर्वे के लिए उन्होंने अपने पास ही रख ली.
सोने की तलाश
चोल साम्राज्य में लोग ज़मीन को हाथ से खोदकर ही सोना निकालते थे. उसके बाद वॉरेन ने सोने के बारे में उन्हें जानकारी देने वालों को ईनाम देने की घोषणा कर दी.
उस घोषणा के कुछ दिन बाद, एक बैलगाड़ी में कुछ ग्रामीण वॉरेन के पास आए. उस बैलगाड़ी में कोलार इलाक़े की मिट्टी लगी हुई थी. गांववालों ने वॉरेन के सामने मिट्टी धोकर हटाई, तो उसमें सोने के अंश पाए गए.
वॉरेन ने इसकी फिर पड़ताल शुरू की. वॉरेन को पता चला कि कोलार के लोग जिस तरीक़े से हाथ से खोदकर सोना निकालते हैं, उससे 56 किलो मिट्टी से गुंजभर सोना निकाला जा सकता था.
वॉरेन ने कहा, "इन लोगों के ख़ास कौशल और तकनीक की मदद से और भी सोना निकाला जा सकता है."
वॉरेन की इस रिपोर्ट के बाद, 1804 से 1860 के बीच इस इलाक़े में काफ़ी रिसर्च और सर्वे हुए, लेकिन अंग्रेज़ी सरकार को उससे कुछ नहीं मिला. कोई फ़ायदा होने के बजाय इस शोध के चलते कइयों को अपनी जान भी गंवानी पड़ी. उसके बाद वहां होने वाली खुदाई पर प्रतिबंध लगा दिया गया.
बहरहाल, 1871 में वॉरेन की रिपोर्ट पढ़कर लेवेली के मन में कोलार को लेकर दिलचस्पी जगी.
लेवेली ने बैलगाड़ी में बैठकर बेंगलुरू से कोलार की 100 किलोमीटर की दूरी तय की. वहां पर क़रीब दो साल तक शोध करने के बाद 1873 में लेवेली ने मैसूर के महाराज से उस जगह पर खुदाई करने की इजाज़त मांगी.
लेवेली ने कोलार क्षेत्र में 20 साल तक खुदाई करने का लाइसेंस प्राप्त किया. उसके बाद 1875 में साइट पर काम करना शुरू किया.
पहले कुछ सालों तक लेवेली का ज़्यादातर समय पैसा जुटाने और लोगों को काम करने के लिए तैयार करने में गुज़रा. काफ़ी मुश्किलों के बाद केजीएफ़ से सोना निकालने का काम आख़िरकार शुरू हो गया.
केजीएफ़: बिजली वाला भारत का पहला शहर
केजीएफ़ की खानों में पहले रोशनी का इंतज़ाम मशालों और मिट्टी के तेल से जलने वाले लालटेन से होता था. लेकिन ये प्रयास नाकाफ़ी था. इसलिए वहां बिजली का उपयोग करने का निर्णय लिया गया.
इस तरह केजीएफ़ बिजली पाने वाला भारत का पहला शहर बन गया.
कोलार गोल्ड फ़ील्ड की बिजली की ज़रूरत पूरी करने के लिए वहां से 130 किलोमीटर दूर कावेरी बिजली केंद्र बनाया गया. जापान के बाद यह एशिया का दूसरा सबसे बड़ा प्लांट है. इसका निर्माण कर्नाटक के आज के मांड्या ज़िले के शिवनसमुद्र में किया गया.
केजीएफ़ भारत का सबसे पहला वो शहर था, जहां बिजली पूरी तरह से पहुंच गई. पानी से बिजली बनने के बाद वहां हर वक़्त बिजली मिलने लगी. सोने की खान के चलते बेंगलुरू और मैसूर के बजाय केजीएफ़ को प्राथमिकता मिलने लगी.
बिजली पहुंचने के बाद केजीएफ़ में सोने की खुदाई बढ़ा दी गई. वहां तेज़ी से खुदाई बढ़ाने के लिए प्रकाश का बंदोबस्त करके कई मशीनों को काम में लगाया गया.
इसका नतीजा यह हुआ कि 1902 आते-आते केजीएफ़ भारत का 95 फ़ीसदी सोना निकालने लगा. हाल यह हुआ कि 1905 में सोने की खुदाई के मामले में भारत दुनिया में छठे स्थान पर पहुंच गया.
केजीएफ़ बन गया छोटा इंग्लैंड
केजीएफ़ में सोना मिलने के बाद वहां की सूरत ही बदल गई. उस समय की ब्रिटिश सरकार के अधिकारी और इंजीनियर वहां अपने घर बनाने लगे.
लोगों को वहां का माहौल बहुत पसंद आने लगा, क्योंकि वो जगह ठंडी थी. वहां जिस तरह से ब्रिटिश अंदाज़ में घरों का निर्माण हुआ, उससे लगता था कि वो मानो इंग्लैंड ही है.
डेक्कन हेराल्ड के अनुसार, इसी चलते केजीएफ़ को छोटा इंग्लैंड कहा जाता था.
केजीएफ़ की पानी की ज़रूरत पूरा करने के लिए ब्रिटेन की सरकार ने पास में ही एक तालाब का निर्माण किया. वहां से केजीएफ़ तक पानी के पाइपलाइन का इंतज़ाम किया गया. आगे चलकर, वही तालाब वहां के आकर्षण का मुख्य केंद्र बन गया.
ब्रिटिश अधिकारी और वहां के स्थानीय नागरिक वहां पर्यटन के लिए जाने लगे. दूसरी तरफ़, सोने की खान के चलते आस-पास के राज्यों से वहां मज़दूरों की संख्या बढ़ने लगी.
साल 1930 के बाद इस जगह 30,000 मज़दूर काम करते थे. उन मज़दूरों के परिवार आस-पास ही रहते थे.
केजीएफ़ का राष्ट्रीयकरण
देश को जब आज़ादी मिली, तो भारत सरकार ने इस जगह को अपने क़ब्ज़े में ले लिया. उसके क़रीब एक दशक बाद 1956 में इस खान का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया.
1970 में भारत सरकार की भारत गोल्ड माइन्स लिमिटेड कंपनी ने वहां काम करना शुरू किया. शुरुआती सफलता मिलने के बाद कंपनी का फ़ायदा दिनोंदिन कम होता गया. 1979 के बाद तो ऐसी स्थिति हो गई कि कंपनी के पास अपने मज़दूरों को देने के लिए पैसे नहीं बचे.
भारत के 90 फ़ीसदी सोने की खुदाई करने वाली केजीएफ़ का प्रदर्शन 80 के दशक के दौरान ख़राब होता चला गया.
उसी वक़्त, कई कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. साथ ही कंपनी का नुक़सान भी बढ़ता जा रहा था. एक समय ऐसा आया जब वहां से सोना निकालने में जितना पैसा लग रहा था, वो हासिल सोने की क़ीमत से भी ज़्यादा हो गई थी.
इस चलते 2001 में भारत गोल्ड माइन्स लिमिटेड कंपनी ने वहां सोने की खुदाई बंद करने का निर्णय लिया. उसके बाद वो जगह एक खंडहर बन गई.
मोदी सरकार का काम फिर शुरू करने के संकेत
केजीएफ़ में खनन 121 सालों से भी अधिक समय तक चला. साल 2001 तक वहां खुदाई होती रही. एक रिपोर्ट के अनुसार, उन 121 सालों में वहां की खदान से 900 टन से भी अधिक सोना निकाला गया. खनन बंद होने के बाद के 15 सालों तक केजीएफ़ में सब कुछ ठप्प पड़ा रहा.
हालांकि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने 2016 में उस जगह फिर से काम शुरू करने का संकेत दिया. कहा जाता है कि केजीएफ़ की खानों में अभी भी काफ़ी सोना पड़ा है.
केंद्र सरकार ने 2016 में केजीएफ़ को फिर से ज़िंदा करने के लिए नीलामी की प्रक्रिया शुरू करने का एलान किया. हालांकि अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया कि घोषणा के आगे क्या होने जा रहा है.
'वॉयलेंस...वॉयलेंस.. वॉयलेंस! आई डोंट लाइक इट. आई अवॉइड..बट..वॉयलेंस लाइक्स मी' यह डायलॉग यह बता देता है कि यह किसी मार-धाड़ ऐक्शन से भरपूर फ़िल्म का संवाद हो सकता है. यह डायलॉग है 'केजीएफ़-2' का और यह फ़िल्म कई सितारों और अपने एक्शन की वजह से चर्चा में है और इसके साथ ही सुर्ख़ियों में हैं ऐक्टर यश.
यह मूल रूप से कन्नड़ फ़िल्म है. केजीएफ़ का पहला भाग 2018 में कन्नड़ और हिंदी समेत कई भाषाओं में रिलीज़ हुआ था और फ़िल्म हिट रही थी. केजीएफ़-2 में सुपरस्टार यश के साथ संजय दत्त, रवीना टंडन और प्रकाश राज मुख्य भूमिका में हैं.
यश की फ़िल्मी दुनिया में आने की यात्रा भी सपाट पटकथा वाली फ़िल्म नहीं है. इसमें कई पुट हैं-ड्रामा है, घर से भागने की कहानी है, बैक स्टेज से लेकर हीरो के पर्दे पर आने की कहानी है.
'फ़िल्म कॉम्पैनियन' को दिए एक इंटरव्यू में यश ने कहा था, ''जब मैं नया-नया इस इंडस्ट्री में आया था तो यही सोचता था कि इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि आप किस बैकग्राउंड से आ रहे हैं, कहां से आ रहे हैं. चीज़ें इस बात पर निर्भर करती हैं कि आपको अपना काम आता है या नहीं. दर्शक आपके साथ कनेक्ट कर पाते हैं या नहीं.''
यश की यात्रा नवीन कुमार गौड़ा के रूप में शुरू होती है, लेकिन 'बॉलीवुड हंगामा' के साथ रैपिड फ़ायर में इस नाम से बुलाए जाने के एक सवाल पर वह कहते हैं कि जब उन्हें कोई इस नाम से बुलाए तो उनका पहला रिऐक्शन होगा- 'कौन है ये?' क्योंकि ज़्यादातर लोग उन्हें इस नाम से नहीं जानते हैं.
'द न्यूज़ मिनट' के साथ साक्षात्कार में यश ने बताया था कि उनके पिता बीएमटीसी में बस चालक थे और वह चाहते थे कि उनका बेटा एक सरकारी अधिकारी बने. लेकिन उन्हें कुछ और पसंद था. वह नाटकों और डांस कॉम्पिटीशन में हिस्सा लेते थे और उस दौरान जो सीटियां बजतीं, वही उनके अंदर पल रहे एक कलाकार को ऊर्जा देती थी.
यश के मुताबिक़, वह बचपन से ही ऐक्टर बनना चाहते थे. नाटक और डांस में हिस्सा लेते थे. दर्शकों को ख़श होकर तालियां और सीटियां बजाते देखना उन्हें पसंद था और जब दर्शक ऐसा करते तो उन्हें लगता कि वह हीरो हैं.
इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि वह घर से भागकर हीरो बनने बेंगलुरु पहुंचे थे, लेकिन वहां क़दम रखते ही वह घबरा गए. उनकी जेब में सिर्फ़ 300 रुपये थे, लेकिन वापस जाने का ख़्याल कुछ ऐसा था कि अगर लौट गए तो फिर घरवाले वापस नहीं भेजेंगे.
वह कहते हैं कि उन्हें संघर्ष से डर नहीं लगा. बेंगलुरु में वह थियेटर के साथ बैकस्टेज काम करने लगे. फ़िल्म इंडस्ट्री का संघर्ष भी साथ-साथ चलता रहा.
यश ने फ़िल्मी दुनिया में अपने करियर की शुरुआत 2008 में बनी कन्नड़ फ़िल्म 'मोगिना मनासु' से की. इस फ़िल्म के लिए उन्हें 'बेस्ट सपोर्टिंग ऐक्टर' का फ़िल्म फ़ेयर अवॉर्ड भी मिला. इसके बाद वह 'राजधानी', 'गजकेसरी', 'मास्टरपीस', जैसी फ़िल्मों से लोकप्रिय होते गए.
अगर निजी जीवन की बात करें तो उनकी शादी अभिनेत्री राधिका पंडित से हुई है. राधिका और यश ने कई इंटरव्यू में यह बताया कि कई साल की डेटिंग के बाद उन्होंने शादी की क्योंकि उन्हें लगा कि वह एक-दूसरे के लिए ही बने हैं. दंपति के दो बच्चे हैं.
यश की ख़्वाहिश
बॉलीवुड में यश नवाज़ुद्दीन सिद्दिक़ी के साथ काम करना चाहते हैं क्योंकि उन्हें वो बेहतरीन अभिनेता मानते हैं.
शाहरुख ख़ान को वह अपना इंस्पीरेशन (प्रेरणास्रोत) मानते हैं. अमिताभ बच्चन को यश 'ट्रू जेंटलमैन' बताते हैं.
यश अपने पुराने इंटरव्यूज़ में ये कह चुके हैं कि दर्शक शायद उन्हें इसलिए भी पसंद करते हैं क्योंकि उनकी यात्रा गांव से आकर हीरो बनने की यात्रा है और यह बात दर्शकों को प्रेरित करती है. (bbc.com)
ऑस्कर समारोह के मंच पर क्रिस रॉक को थप्पड़ मारने के बाद विल स्मिथ माफी मांगते हुए कहा कि उनका व्यवहार "अस्वीकार्य और अक्षम्य" था.
इंस्टाग्राम पर एक पोस्ट शेयर करते हुए उऩ्होंने लिखा, ‘’मैं सार्वजनिक रूप से आपसे माफी मांगना चाहता हूं, क्रिस. मैंने सीमा लांघी और मैं ग़लत था.‘’
विल स्मिथ का ये माफ़ीनामा तब सामने आया है जबऑस्कर फ़िल्म एकेडमी ने उतनी बर्ताव की निंदा की और इस मामले में औपचारिक समीक्षा की घोषणा की.
विल स्मिथ ने मंच पर ही कॉमेडियन क्रिस रॉक को थप्पड़ जड़ दिया.
दरअसल, क्रिस रॉक ने कार्यक्रम के दौरान विल स्मिथ की पत्नी जेडा पिंकेट पर मज़ाक किया था.
मज़ाक सुनकर विल स्मिथ मंच पर गए और क्रिस रॉक को थप्पड़ जड़ दिया.
कॉमेडियन क्रिस रॉक ने दरअसल ज़ेडा पिंकेट के छोटे बालों पर टिप्पणी की थी.
उन्होंने कहा, "आई लव यू ज़ेड. मैं जीआई जेन 2 देखने को बेसब्र हूं."
जीआई जेन 1997 में आई हॉलीवुड फ़िल्म थी. इसमें मुख्य किरदार निभा रही अभिनेत्री डेमी मूर ने फ़िल्म के लिए अपना सिर मुंडवा लिया था. (bbc.com)
बेस्ट एक्टर का ऑस्कर पुरस्कार जीतने वाले विल स्मिथ ने मंच पर ही कॉमेडियन क्रिस रॉक को थप्पड़ जड़ दिया.
विल स्मिथ को किंग रिचर्ड फ़िल्म के लिए बेस्ट एक्टर का ऑस्कर दिया गया है.
हालाँकि, ये पूरा वाकया विल स्मिथ को अवॉर्ड मिलने से पहले का है.
दरअसल, क्रिस रॉक ने कार्यक्रम के दौरान विल स्मिथ की पत्नी जेडा पिंकेट पर मज़ाक किया था.
मज़ाक सुनकर विल स्मिथ मंच पर गए और क्रिस रॉक को थप्पड़ जड़ दिया.
उन्होंने कहा, "आई लव यू ज़ेड. मैं जीआई जेन 2 देखने को बेसब्र हूं."
जीआई जेन 1997 में आई हॉलीवुड फ़िल्म थी. इसमें मुख्य किरदार निभा रही अभिनेत्री डेमी मूर ने फ़िल्म के लिए अपना सिर मुंडवा लिया था.
थप्पड़ जड़ने के बाद विल स्मिथ अपनी सीट पर जाकर बैठे और वहीं से चिल्लाते हुए क्रिस रॉक से कहा कि वो उनकी पत्नी का नाम न लें.
हालाँकि, इसके बाद क्रिस रॉक मंच पर बने रहे और उन्होंने माहौल को सामान्य करने की कोशिश की. उन्होंने कहा, "ये टेलीविज़न इतिहास में सबसे बेहतरीन रात होगी."
जेडा पिंकेट कई इंटरव्यूज़ में ये बता चुकी हैं कि बाल झड़ने की समस्या गंभीर होने की वजह से उन्हें सिर मुंडवाना पड़ा.
इसके बाद विल स्मिथ को किंग रिचर्ड फ़िल्म के लिए बेस्ट एक्टर अवॉर्ड मिला.
अपने भाषण में विल स्मिथ रो पड़े और मंच पर क्रिस रॉक को मारने के लिए माफ़ी मांगी.
भाषण में उन्होंने अवॉर्ड सेरेमनी में हुई इस घटना पर खेद जताते हुए कहा,"मैं एकेडमी से माफ़ी मांगता हूं, मैं अपने सभी नॉमिनेटेड साथियों से माफ़ी मांगना चाहता हूं."
ज़ेडा ने पहली बार साल 2018 में अपने हेयर लॉस के बारे में एक फेसबुक चैट शो के दौरान बताया था.
उन्होंने कहा था, "मुझे बाल झड़ने की समस्या थी. जब ये शुरू हुआ तो डराने वाला था."
उन्होंने बताया कि वो नहाने जाती थीं तो भी मुट्ठी भर-भर बाल उनके हाथों में आ जाते थे.
ज़ेडा कहती हैं, "मैं डर गई. मुझे लगने लगा कि मैं गंजी हो जाऊंगी. ये मेरे जीवन का वो समय था जब मैं वाकई डर गई थी. इसलिए मैंने अपने बाल काटने और उन्हें काटना जारी रखा."
विल स्मिथ को बेस्ट एक्टर का अवॉर्ड
विल स्मिथ को किंग रिचर्ड फ़िल्म के लिए बेस्ट एक्टर का ऑस्कर दिया गया है.
फ़िल्म में उन्होंने टेनिस स्टार सेरेना और वीनस विलियम्स के पिता किंग रिचर्ड की भूमिका निभाई है.
ऑस्कर्स 2022: 'द आई ऑफ़ टैमी फ़ेय' के लिए जेसिका चेस्टिन को बेस्ट एक्ट्रेस का अवॉर्ड
फ़िल्म 'द आई ऑफ़ टैमी फ़ेय'में टैमी फ़े का किरदार निभाने वाली जेसिका चेस्टिन को बेस्ट एक्ट्रेस का ऑस्कर अवॉर्ड मिला है.
इस फिल्म में उन्होंने मशहूर अमेरिकन धर्म प्रचारक टैमी फ़ेय की असल ज़िदगी की कहानी को पर्दे पर दर्शाया है.
जेसिका ने अवॉर्ड लेने हुए मंच पर कहा, "मैं उनकी (फ़ेय की) करुणा से प्रेरित हूं. मैं उनकी सीख को एक मार्गदर्शक सिद्धांत के रूप में देखती हूं जो हमें आगे ले जाएगा, और हम जो हैं उसी तरह लोगों के बीच स्वीकृति देने वाला समाज बनाएगा, हिंसा या आतंक के डर के बिना जीवन जीने की ओर बढ़ाएगा.''
"आप में से कोई भी जो निराश है या अकेला महसूस करता है, मैं चाहती हूं कि आप यह जान लें कि आपको आपने अनोखे लोगों के लिए लोग बेइंतहा प्यार करते हैं. "
इस बार'द पावर ऑफ द डॉग'को लेकर काफ़ी चर्चा थी और कई सिनेमा के जानकार 'द पावर ऑफ द डॉग' को इस साल की बेस्ट फ़िल्म का मुख्य दावेदार मान रहे थे.
कोडा फ़िल्म एक ऐसे परिवार की कहानी है जिसमें ज़्यादातर लोग सुन नहीं सकते और वे मछलियों का छोटा सा व्यवसाय अपनी बेटी के ज़रिए चलाते हैं क्योंकि इस परिवार में एक बेटी ही सुन सकती है.
फिल्म के प्रोड्यूसर ने अवॉर्ड लेते हुए अपने भाषण में डायरेक्टर सियान हेडर का शुक्रिया अदा करते हुए कहा, '' इस बड़ी नाव को चलाने के लिए शुक्रिया. आप एक बेहतरीन कैप्टन रही जिसकी कोई भी प्रोड्यूसर चाहत रखता है. ''
ऑस्कर्स में कोडा को तीन नॉमिनेशन मिले थे. (bbc.com)
लॉस एंजिलिस (अमेरिका), 28 मार्च। एकेडमी ऑफ मोशन पिक्चर आर्ट्स एंड साइंसेज (एएमपीएएस) ने ऑस्कर समारोह के दौरान अभिनेता विल स्मिथ और क्रिस रॉक के बीच थप्पड़ मारने की घटना पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि अकादमी किसी भी तरह की हिंसा का समर्थन नहीं करता है।
स्मिथ ने ‘किंग रिचर्ड’ में रिचर्ड विलियम्स की भूमिका के लिए अपना पहला सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का ऑस्कर पुरस्कार जीता। पुरस्कार लेने के लिए जैसे ही स्मिथ मंच पर पहुंचे तो कॉमेडियन रॉक ने उनकी पत्नी जेडा पिंकेट-स्मिथ को लेकर चुटकुला सुनाया जिस पर स्मिथ भड़क गए और उन्होंने कॉमेडियन को थप्पड़ जड़ दिया।
समारोह के खत्म होने के बाद एएमपीएएस के आधिकारिक ट्विटर हैंडल ने एक संक्षिप्त बयान पोस्ट किया जिसमें कहा गया, ‘‘अकादमी किसी भी तरह की हिंसा का समर्थन नहीं करती है। आज रात हमें अपने 94वें अकादमी पुरस्कार विजेताओं के लिए जश्न मनाते हुए खुशी हो रही है, जो अपने साथियों और दुनिया भर के फिल्म प्रेमियों से सराहना मिलने के इस क्षण के पात्र हैं।’’
घटना तब हुई जब रॉक सर्वश्रेष्ठ वृत्तचित्र फीचर पुरस्कार के लिए विजेताओं की घोषणा करने के लिए मंच पर आए। विजेता का खुलासा करने से पहले, रॉक ने पिंकेट-स्मिथ पर मजाक करते हुए कहा कि वह ‘जी.आई.जेन’ के सीक्वल में अभिनय कर सकती हैं।
पिंकेट-स्मिथ ऑटोइम्युन डिसॉर्डर ‘एलोपेसिया’ के कारण अपना सिर मुड़ाया था और रॉक का यह मजाक उनके इसी रूप के संदर्भ में था। एलोपेसिया को स्पॉट बाल्डनेस भी कहते हैं। इससे ग्रसित व्यक्ति के बाल अचानक झड़ने लगते हैं।
हालांकि, स्मिथ को यह अच्छा नहीं लगा और उन्होंने रॉक को चांटा मार दिया, जिससे उपस्थित सभी लोग घटना से हैरान रह गए। अपनी सीट पर पहुंचने के बाद स्मिथ ने रॉक पर चिल्लाते हुए कहा, ‘‘मेरी पत्नी का नाम अपने गंदे मुंह से मत लो।’’
रॉक के बाद रैपर डिडी ने मंच को संभाला और संबोधित करते हुए कहा, ‘‘विल और क्रिस, हम इसे एक परिवार की तरह हल करने जा रहे हैं। अभी हम प्यार से आगे बढ़ रहे हैं। हर कोई कुछ धमाल करने वाला है।’’
इस बीच, लॉस एंजिलिस पुलिस विभाग ने एक बयान जारी कर खुलासा किया कि रॉक ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराने से इनकार कर दिया है।
स्मिथ ने अपने भावनात्मक संबोधन में इस घटना का उल्लेख किया और कहा, ‘‘प्यार आपको पागल कर देगा।’’
‘‘शुक्रिया डेनजेल (वाशिंगटन), जिन्होंने कुछ मिनट पहले मुझसे कहा... अपने बेहतरीन शीर्ष पलों में सावधान रहें क्योंकि तभी शैतान आपके लिए आता है।’’
53 वर्षीय अभिनेता ने अपने संबोधन में इस घटना के लिए अकादमी से माफी भी मांगी। स्मिथ की आंखों में आंसू थे, उन्होंने कहा, ‘‘मैं अकादमी से माफी मांगना चाहता हूं। मैं अपने सभी नामांकित साथियों से माफी मांगना चाहता हूं... कला जीवन का अनुकरण करती है। मैं एक जुनूनी पिता की तरह दिखता हूं जैसा कि रिचर्ड विलियम्स के बारे में कहा जाता है। लेकिन प्यार आपको पागल कर देगा।’’ (भाषा)
लॉस एंजिलिस (अमेरिका), 28 मार्च। सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर और सिनेमा जगत के प्रसिद्ध अभिनेता दिलीप कुमार 94वें अकादमी पुरस्कार के ‘इन मेमोरियम’ खंड से गायब दिखे।
खासकर ब्रिटिश अकादमी फिल्म और टेलीविजन पुरस्कार (बाफ्टा) द्वारा इस महीने की शुरुआत में दिवंगत लता मंगेशकर और दिलीप कुमार को याद करने तथा सम्मानित किए जाने के बाद 2022 के ऑस्कर समारोह से भारतीय सिनेमा के इन दो दिग्गजों की अनुपस्थिति चौंकाने वाली रही।
वर्ष 2021 में ऑस्कर ने अपने श्रद्धांजलि अनुभाग में अभिनेता इरफान खान, ऋषि कपूर, सुशांत सिंह राजपूत और ऑस्कर विजेता पोशाक डिजाइनर भानु अथैया को जगह दी थी।
सिडनी पोइटियर, बेट्टी व्हाइट, कारमाइन सेलिनास, ओलिविया डुकाकिस, विलियम हर्ट, नेड बीट्टी, पीटर बोगडानोविच, क्लेरेंस विलियम्स तृतीय, माइकल के विलियम्स, जीन-पॉल बेलमंडो, सैली केलरमैन, यवेटे मिमेक्स, सन्नी चिबा, सागिनॉ ग्रांट, डोरोथी जैसे अभिनेता उन नामों में शामिल थे, जिन्हें यहां डॉल्बी थिएटर में आयोजित कार्यक्रम में ‘इन मेमोरियम’ खंड में याद कर उन्हें श्रद्धांजलि दी गई।
‘वेस्ट साइड स्टोरी’ के प्रसिद्ध संगीतकार-गीतकार स्टीवन सोंडहाइम, छायाकार हेला हचिन्स, निर्माता जेरोम हेलमैन, डेविड एच डेपाटी, मार्था डी लॉरेंटिस, ब्रायन गोल्डनर, इरविन डब्ल्यू यंग, एलन लार्ड जूनियर, ‘सुपरमैन’ के निर्देशक रिचर्ड डोनर, ‘घोस्टबस्टर्स’ फिल्म के निर्माता इवान रीटमैन, पोशाक डिजाइनर ईएमआई वाडा, निर्देशक जीन-मार्क वैली, लीना वर्टमुल्लर, डगलस ट्रंबुल, फेलिप कजाल, विजुअल इफेक्ट्स सुपरवाइजर रॉबर्ट ब्लालैक, बिल टेलर समेत सिनेमा जगत की अन्य हस्तियों को भी याद किया गया। (भाषा)
बल्ला सतीश, शुभम प्रवीण कुमार और शंकर वादिसेट्टी
फ़िल्म RRR में अल्लुरी सीतारामा राजू और कुमारम भीम का किरदार अभिनेता राम चरण और एनटी रामा राव जूनियर ने निभाई है.
अब जबकि एसएस राजमौली की फ़िल्म RRR सिनेमाघरों में दिखाई जा रही है, तो सब जगह कुमारम भीम और अल्लुरी सीतारामा राजू की चर्चा है.
दर्शकों को फ़िल्म के इन दोनों प्रमुख किरदारों यानी, 'मनयम के नायक' और आंध्र प्रदेश के रहने वाले अल्लुरी सीतारामा राजू और तेलंगाना के कुमारम भीम के बारे में जानने में दिलचस्पी है.
इस जगहों के आदिवासी इन दोनों को ईश्वर के समान मानते हैं. कहा जाता है कि अल्लुरी ने मनयम इलाक़े के आदिवासियों को एकजुट किया, जिससे अंग्रेज़ों के बीच ख़ौफ़ पसर गया था. वहीं, कुमारम भीम ने गोंड आदिवासियों के अधिकारियों के लिए निज़ाम से मुक़ाबला किया था.
आरआरआर फ़िल्म में निर्देशक राजमौली ने दोनों को पक्के दोस्त के तौर पर दिखाया है. राजमौली ने इन दोनों ऐतिहासिक किरदारों की मदद से अपनी फ़िल्म के अन्य किरदारों का कद बढ़ाने की कोशिश की है.
लेकिन ये दोनों नेता कौन हैं? इनका क्या इतिहास रहा है? हमने इतिहास के पन्नों पर अपनी छाप छोड़ने वाले इन दोनों किरदारों की सच्ची कहानी का पता लगाने की कोशिश की है.
कुमारम भीम, 22 अक्टूबर 1902 को संकेपल्ली गांव के एक गोंड आदिवासी परिवार में पैदा हुए थे. उनके पिता का नाम कुमारम चिमना था.
18वीं और 19वीं सदी में आदिवासियों को नई तरह की मुसीबत का सामना करना पड़ रहा था. जंगलों के संरक्षण के क़ानून के नाम पर आदिवासियों की ज़मीनें और खेत उनसे छीने जा रहे थे.
उस वक़्त हैदराबाद रियासत में निज़ाम की हुकूमत कुछ इस तरह थी कि एक तरफ़ तो निज़ाम के रज़ाकार जनता का शोषण करते थे, और दूसरी तरफ़ लोगों को अंग्रेज़ों के दमन का भी शिकार होना पड़ता था.
ऐसी मुश्किलों का सामना करने वाले गोंड आदिवासियों में कुमारम भीम का परिवार भी शामिल था. जब भीम 15 बरस के थे, तो संकेपल्ली गांव में वन अधिकारियों और कारोबारियों की वजह से उनके परिवार को बहुत परेशानियां उठानी पड़ीं.
अल्लम राजैया और साहू ने अपनी क़िताब 'कोमुरम भीम' में लिखा है कि, "जब भीम के पिता गुज़र गए तो उनका परिवार शूद्रपुर चला गया और वहां उन्होंने खेती शुरू की. फ़सल तैयार हो गई, तो सादिक़ नाम के एक व्यक्ति ने उस ज़मीन पर अपना दावा किया जिस पर भीम का परिवार खेती कर रहा था. उसने दावा किया कि उसके पास ज़मीन के काग़ज़ात हैं. तब भीम ने सादिक़ के सिर पर वार किया. उसके बाद वहां हंगामा मच गया और भीम भागकर असम चले गए. वो वहां के चाय बाग़ान में मज़दूरी करने लगे. वहीं पर भीम ने पढ़ना-लिखना सीखा और राजनीति और बग़ावत के बारे में पढ़ा."
भीम ने असम के मज़दूरों की बग़ावत में भी शिरकत की. उन्हें असम पुलिस ने भी हिरासत में लिया था. मगर भीम, असम पुलिस को चकमा देकर भाग निकले और आसिफ़ाबाद के क़रीब कंकनघाट जा पहुंचे. वहां वो लच्छू पटेल की शागिर्दी में काम करने लगे. बाद में भीम ने सोम बाई से शादी कर ली.
जंगल के अधिकारों के लिए संघर्ष
इधर भीम के चाचाओं ने अन्य आदिवासियों के साथ मिलकर बाबेझारी के पास बारह गांवों के जंगल साफ़ किए और वहां खेती करने लगे. इसके बाद उन पर ज़ुल्म शुरू हो गए, पुलिस ने उनके गांवों को तहस-नहस कर दिया.
तब इन बारह गांवों की तरफ़ से प्रशासन से बात करने के लिए भीम को नेता चुना गया. भीम और बाक़ी आदिवासियों को रोज़-रोज़ सरकारी अधिकारियों के ज़ुल्म का शिकार होना पड़ता था. वो अपनी ही बोई हुई फ़सल नहीं काट पाते थे. उनका कहना था कि जंगलों पर उनके हक़ छीने जा रहे थे.
इन सबसे खीझकर भीम ने इन बारह गांवों के आदिवासियों को एकजुट करने का आंदोलन छेड़ दिया. सबसे अहम बात ये है कि भीम का कहना था कि जंगलों, वहां की ज़मीनों और नदियों के पानी पर आदिवासियों का हक़ होना चाहिए.
इसके लिए भीम ने, 'जल, जंगल और ज़मीन' का नारा दिया. आदिवासियों ने भीम के नेतृत्व में इन संसाधनों पर अपना हक़ हासिल करने के लिए आंदोलन शुरू कर दिया.
भीम ने नारा दिया- 'मावा नाते मावा राज', यानी 'हमारी ज़मीन पर हमारी सरकार'.
अल्लम राजैया कहते हैं, "जब निज़ाम की हुकूमत को लगा कि हालात उनके हाथ से बाहर जा रहे हैं, तो निज़ाम ने उप-ज़िलाधिकारी को आदिवासियों से बात करने के लिए भेजा. आंदोलन कर रहे बारह गांवों के आदिवासियों से वादा किया गया कि उन्हें ज़मीन पर मालिकाना हक़ के दस्तावेज़ दिए जाएंगे. उनके क़र्ज़ माफ़ कर दिए जाएंगे. हालांकि, भीम ने इन बारह गांवों आदिवासियों के स्वराज की मांग की. उप-ज़िलाधिकारी आदिवासियों की इस मांग पर सहमत नहीं हुए."
जब आदिवासियों के साथ प्रशासन की बातचीत नाकाम रही, तो आंदोलन ख़त्म करने के लिए निज़ाम ने पुलिस की एक ख़ास टुकड़ी भेजी. भीम के नेतृत्व में गोंड आदिवासी लगभग सात महीनों तक पुलिस से मुक़ाबला करते रहे. आख़िरकार, 1 सितंबर 1940 को पुलिस ने भीम की गोली मारकर उनकी हत्या कर दी.
उस दिन अश्वायुजु पूर्णिमा थी यानी अश्वायुजु महीने का आख़िरी दिन था. जिस जगह कुमारम भीम को गोली मारी गई, वो जगह आज के 'कुमारम भीम आसिफ़ाबाद ज़िले' का जोदेनघाट गांव था.
उस रोज़ निज़ाम की पुलिस के 300 से ज़्यादा लोग भारी गोलाबारूद और हथियारों के साथ गांव में दाख़िल हुए थे. पुलिस की ये कार्रवाई अचानक हुई थी, ताकि आदिवासियों को तैयार होने का मौक़ा न दिया जाए.
कुर्दू पटेल नाम के व्यक्ति की मुख़बिरी से मिली जानकारी के आधार पर पुलिस उस पहाड़ी की तरफ़ बढ़ी जिसे भीम और उसके साथियों ने अपना ठिकाना बनाया हुआ था.
पुलिस ने उन पर पीछे से हमला किया. भीम और उनके 15 साथियों को मौक़े पर ही गोली मार दी गई. जबकि बाक़ी लोगों को गिरफ़्तार कर लिया गया. उस दिन भीम के विद्रोह का अंत हो गया.
बद में भीम की मौत के ज़िम्मेदार कुर्दू पटेल को तेलंगाना के हथियारबंद किसान विद्रोहियों ने 1946 में संघर्ष के दौरान गोली मार दी.
नायक नहीं... वो आदिवासियों के लिए ईश्वर बन गए
हो सकता है कि बाक़ी दुनिया के लिए भीम एक क्रांतिकारी रहे हों. मगर गोंड आदिवासियों के लिए वो भगवान से कम नहीं हैं.
कुमारम भीम आसिफ़ाबाद ज़िले के गोंड आदिवासी आज भी हर साल अश्वायुजु पूर्णिमा पर उनकी याद में गीत गाते हैं.
वो उन्हें पूजते हैं. वो कहते हैं, "कुमारम के पास जादुई ताक़त थी. कोई भी पत्थर या गोली उनका बाल भी बांका नहीं कर सकती थी."
आज भी बहुत से गोंड इस बात पर यक़ीन करते हैं. सिदम अर्जू ने बीबीसी को बताया, "लोग मानते हैं कि सामान्य हालात में कोई भी गोली भीम के शरीर को भेदकर नहीं जा सकती थी. उन्हें डुबाया नहीं जा सकता था. चट्टानों से उन्हें चोट नहीं लगती थी. इसीलिए उनको मारने के लिए महिलाओं द्वारा मासिक धर्म के दौरान इस्तेमाल किए गए कपड़े को लपेटकर बंदूक इस्तेमाल करनी पड़ी थी. तभी कोई गोली उनके शरीर को भेद सकती थी."
सिदम अर्जू की इस व्याख्या से इस बात का पता चलता है कि गोंड आदिवासियों को किस क़दर भीम के भगवान होने का यक़ीन है.
अल्लुरी सीतारामा राजू
अल्लुरी सीतारामा राजू तेलुगू प्रदेश में अंग्रेज़ों के शासन के ख़िलाफ़ संघर्ष करने वाले एक स्वतंत्रता सेनानी थे. उन्होंने मनयम के आदिवासियों को एकजुट किया और अंग्रेज़ों से बग़ावत कर दी. उन्होंने कई बरस तक अंग्रेज़ों से हथियारबंद संघर्ष किया. आख़िर में अंग्रेज़ों ने उन्हें मार दिया था. महात्मा गांधी ने अपनी पत्रिका 'यंग इंडियन' में अल्लुरी सीतारामा राजू के बारे में तारीफ़ की थी.
अल्लुरी का जन्म 4 जुलाई 1897 को विशाखापत्तनम ज़िले के पांडरंगी गांव में हुआ था. उनका पुश्तैनी गांव वेस्ट गोदावरी ज़िले के मोगल्लू में था. उनके पिता का नाम वेंका रामा राजू था.
अल्लुरी के पिता एक फोटोग्राफ़र थे. उनकी मां का नाम सूर्या नारायाणम्मा था. वो निम्न मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुक़ रखते थे. अल्लुरी सीतारामा राजू ने अपनी पढ़ाई गोदावरी क्षेत्र के तमाम हिस्सों जैसे कि नरसापुरम, राजा महेंद्रवर्मन, रामचंदपुरम, टूनी, काकिनाडा और अन्य जगहों पर की थी.
जब अल्लुरी छठी कक्षा में पढ़ रहे थे तब गोदावरी पुष्कारुलु का दौर था. उस समय हैजे की महामारी फैली हुई थी. 1908 में अल्लुरी के पिता की हैजे की बीमारी से मौत हो गई थी. इसके बाद अल्लुरी बहुत आगे तक पढ़ाई नहीं कर सके.
उन्होंने 1916 में उत्तर भारत का दौरा शुरू किया ताकि ध्यान लगा सकें. अपना आध्यात्मिक सफ़र पूरा करके अल्लुरी 1918 में अपने गांव लौटे. 1919 के दौरान ही उन्हें अंदाज़ा होने लगा था कि मनयम इलाक़े के आदिवासियों के साथ नाइंसाफ़ी हो रही है.
वो आदिवासियों को इंसाफ़ दिलाने की लड़ाई में कूद पड़े. अल्लुरी सीतारामा राजू ने आदिवासियों की फ़सलों पर ज़बरन क़ब्ज़े, उनसे काम कराने की मज़दूरी न देने जैसे मुद्दों पर सरकार को घेरना शुरू कर दिया. अल्लुरी ने आदिवासियों को संगठित करके आंदोलन को आगे बढ़ाया.
मनयम एजेंसी में तीन साल तक हथियारबंद संघर्ष
अल्लुरी बमुश्किल बीस बरस के रहे होंगे जब उन्होंने अंग्रेज़ों के ज़ुल्मों के ख़िलाफ़ बग़ावत की थी. असल में मनयम इलाक़े में अंग्रेज़ स्थानीय ज़मींदारों जैसे कि मुताधार के साथ मिलकर आदिवासियों का शोषण कर रहे थे.
इस बात से अल्लुरी सीतारामा राजू का ग़ुस्सा बहुत भड़क उठा.
स्थानीय साहूकारों और ठेकेदारों द्वारा आदिवासियों पर ढाए जा रहे ज़ुल्म और हिंसा से परेशान होकर, अल्लुरी राजू ने बग़ावत का बिगुल फूंक दिया.
अल्लुरी सीतारामा राजू के नेतृत्व में मनयम एजेंसी के बाग़ियों ने पुलिस थानों पर हमला कर हथियार लूट लिए. अल्लुरी और उनके साथइयों ने राजावोम्मांगी अद्दाततीगाला, देवीपट्टनम, चिंतापल्ली, कृष्णा देवी पेटा और अन्य थानों पर हमला किया.
सैकड़ों किलोमीटर इलाक़े में फैले इन थानों पर एक ही दिन में एक साथ आदिवासियों के हमले से पूरे इलाक़े में सनसनी फैल गई. लोगों के बीच अल्लुरी बेहद लोकप्रिय और मशहूर हो गए. कुछ लोगों को लगने लगा कि अल्लुरी के पास जादुई शक्तियां हैं.
उस वक़्त की सरकार ने आदिवासियों की बग़ावत को 'मनयम पिथूरी' का नाम दिया. ये सशस्त्र विद्रोह लगभग तीन साल तक चलता रहा. अल्लुरी सीतारामा राजू के आंदोलन का मुक़ाबला करने के लिए पहले सरकार ने मालाबार स्पेशल पुलिस की टुकड़ी को भेजा. जब ये पुलिस बल आंदोलन पर क़ाबू पाने में नाकाम रहा, तो फिर इलाक़े में असम राइफ़ल्स की एंट्री हुई. उन्होंने अल्लुरी को पकड़ लिया.
सरकारी दस्तावेज़ों में दर्ज जानकारी के अनुसार जब एक मुठभेड़ में घायल अल्लुरी सीतारामा राजू, कोयुरू के क़रीब माम्पा में एक नदी में अपने घाव धो रहे थे, तब उन्हें पकड़ लिया गया. हालांकि इस गिरफ़्तारी के बाद अल्लुरी को ज़िंदा पुलिस थाने लाया जाना चाहिए था. लेकिन इतिहासकार कहते हैं कि जब अल्लुरी ने जवानों की गिरफ़्त से भागने की कोशिश की, तो उन्हें गोली मार दी गई.
मेजर गुडाल नाम के एक अधिकारी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि अल्लुरी सीतारामा राजू को 7 मई 1924 को उस वक़्त गोली मारी गई, जब वो जवानों से लड़ने लगे और जवानों के लिए जान का ख़तरा पैदा हो गया.
इसके बाद अल्लुरी का शव कृष्णा देवी पेट्टा लाया गया, जहां उनका अंतिम संस्कार किया गया. अब इस इलाक़े को अल्लुरी मेमोरियल पार्क के तौर पर विकसित किया गया है.
बहादुरी से अंग्रेज़ों का मुक़ाबला करने वाले अल्लुरी सीतारामा राजू की मौत महज़ 27 साल की उम्र में हो गई. उन्हें मनयम के क्रांतिकारी के तौर पर याद किया जाता है. साल भर सैकड़ों लोग उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए अल्लुरी मेमोरियल पार्क आते रहते हैं और उन्हें याद करते हैं.
अल्लुरी की मौत के बाद अंग्रेज़ सरकार ने उनके साथ बग़ावत करने वाले 17 लोगों को गिरफ़्तार किया था. उन्हें अंडमान समेत देश की की अलग-अलग जेलों में क़ैद में रखा गया. इस आंदोलन के दौरान अल्लुरी के कई साथियों ने भी अपनी जान गंवाई थी.
उनकी शहादत के साथ उनका विद्रोह भी ख़त्म हो गया. लेकिन वो जज़्बा आज भी ज़िंदा है और यहां के लोगों को हौसला देता है. (bbc.com)
अभिनेता आमिर ख़ान का कहना है कि उन्होंने कुल साल पहले फ़िल्मों में काम नहीं करने का फ़ैसला ले लिया था. उन्होंने ये तय भी कर लिया था कि अब वो किसी फ़िल्म में एक्टिंग या प्रोड्यूस नहीं करेंगे.
अभिनेता ने ये बात एक भारतीय न्यूज़ चैनल के कार्यक्रम में कही.
उन्होंने कहा, ''मुझे अहसास हुआ कि मैं कहीं न कहीं स्वार्थी था और मैं अपने बारे में सोच रहा था. बच्चों और परिवार की ज़िम्मेदारियां उस गहराई से नहीं निभा पाया था, जिस गहराई से मुझे निभाना चाहिए था. ऐसे में मैंने फ़िल्मों में काम करना छोड़ दिया था.''
इस कार्यक्रम में आमिर ख़ान बताते हैं कि उन्होंने फ़िल्मों को छोड़ने का सार्वजनिक एलान इसलिए नहीं किया क्योंकि लोगों को लग सकता था कि ये मार्केटिंग का तरीक़ा है.
आमिर ने कहा, ''मुझे लगा कि मुझे लोगों से बोलना भी चाहिए कि मैं अब एक्टिंग नहीं करूंगा. लेकिन फिर लगा कि कहीं लोगों को ये लगेगा कोई मार्केटिंग स्कीम है. लाल सिंह आ रही है तो ये एलान कर रहा है रिटायरमेंट.''
बच्चों और किरण ने मुझे समझाया- आमिर ख़ान
आमिर ख़ान ने बताया कि जब उनके फ़ैसले के बारे में परिवार को पता चला तो शुरुआत में उन्हें किसी ने कुछ नहीं कहा लेकिन बाद में उनके बच्चों और किरण राव ने उन्हें समझाया. उन्होंने कहा, ''बच्चों ने मुझे समझाया कि आप बहुत एक्सट्रीम इंसान हैं, आपको ज़िंदगी में संतुलन रखना चाहिए. किरण ने मुझे समझाया और कहा कि सिनेमा आपके अंदर बसा है.''
(राधिका शर्मा)
दुबई, 24 मार्च (भाषा)। फिल्मकार शेखर कपूर का कहना है कि अगर उनके पास 1987 की हिट फिल्म 'मिस्टर इंडिया' के अधिकार होते तो वह अब तक इसका सीक्वल बना चुके होते, जो मूल फिल्म से ही संबंधित होती, भले ही उसकी कहानी अलग होती।
अनिल कपूर, श्रीदेवी और अमरीश पुरी अभिनीत, "मिस्टर इंडिया" विज्ञान से संबंधित एक काल्पनिक एक्शन फिल्म थी। इसका निर्माण बोनी कपूर और सुरिंदर कपूर ने किया था, जबकि इसके निर्देशक शेखर कपूर थे।
दरअसल, 2011 में फिल्म के सीक्वल "मिस्टर इंडिया 2" के निर्माण की घोषणा की गयी थी। लेकिन, उसके बाद सब कुछ ठंडे बस्ते में चला गया।
प्रोडक्शन हाउस ज़ी स्टूडियोज ने 2020 में घोषणा की थी कि अली अब्बास ज़फर के निर्देशन में "मिस्टर इंडिया" श्रृंखला की तीन फिल्मों का निर्माण किया जाएगा। यह परियोजना भी संभवत: ठंडे बस्ते में चली गयी है।
शेखर कपूर ने कहा कि वह अपनी "एलिजाबेथ" श्रृंखला की फिल्मों के अलावा जानबूझकर आईपी (बौद्धिक संपदा) संचालित सामग्री (कहानी) पर मंथन करने से दूर नहीं रहे हैं, बल्कि वह किसी फिल्म का रीमेक नहीं बनाना चाहते हैं।
शेखर कपूर ने दुबई एक्सपो 2020 के दौरान इंडिया पवेलियन में मीडिया और मनोरंजन पखवाड़े से इतर पीटीआई-भाषा को दिए विशेष साक्षात्कार में कहा, "मेरे साथ समस्या यह है कि मैं हमेशा रोमांचक विषयों की तलाश में रहता हूं। जिस कहानी पर फिल्म बना ली है उस पर दोबारा फिल्म क्यों बनाएं?' मुझे हमेशा से ही अज्ञात रोमांचक विषय आकर्षित करते हैं और जब आप इनके बारे में सोचते हैं तो आपको इसकी एक तरह से लत लग जाती है और आप उन्हीं विषयों पर फिल्म बनाना चाहते हैं।"
शेखर (76) ने कहा, "मैं ऐसे ही विषयों पर फिल्म बनाता हूं, जिनके प्रति मेरा लगाव और आकर्षण होता है। मैं यों ही किसी विषय पर फिल्म नहीं बना सकता। अगर मेरे पास 'मिस्टर इंडिया' के अधिकार होते तो मैं अब तक इसका सीक्वल बना चुका होता। लेकिन, मेरे पास इसके अधिकार नहीं हैं।"
दिग्गज निर्देशक अब लेखक अमीश त्रिपाठी की भगवान शिव से संबंधित चर्चित पुस्तकों पर एक वेब सीरिज़ का निर्देशन करेंगे।
इसके अलावा शेखर कपूर "वॉट इज़ लव गोटा डू विद इट?" जैसी अंतरराष्ट्रीय फिल्म का भी निर्देशन कर रहे हैं। इस फिल्म में लिली जेम्स, एम्मा थॉम्पसन, सजल अली, शाज़ाद लतीफ़, रॉब ब्रायडन, शबाना आज़मी और असीम चौधरी जैसे कलाकार नजर आएंगे। यह फिल्म 2022 के मध्य में रिलीज होगी।
मुंबई, 23 मार्च। मुंबई की एक स्थानीय अदालत ने 2019 के एक विवाद के सिलसिले में एक पत्रकार द्वारा दायर की गई शिकायत पर अभिनेता सलमान खान और उनके अंगरक्षक नवाज शेख को समन जारी किया है।
मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट आर. आर. खान ने मंगलवार को अपने आदेश में कहा कि मामले के संबंध में दर्ज पुलिस शिकायत में उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 504 (शांति भंग करने के इरादे से अपमानित करना) और 506 (आपराधिक भयादोहन) के तहत आरोप लगाए गए हैं।
अदालत ने अभिनेता सलमान खान और उनके अंगरक्षक नवाज शेख को समन जारी किया और याचिका को पांच अप्रैल के लिए सूचीबद्ध कर दिया।
पत्रकार अशोक पांडे ने अपनी शिकायत में सलमान खान और शेख के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई शुरू करने की मांग की है। पांडे ने आरोप लगाया है कि अभिनेता ने मुंबई की सड़क पर साइकिल चलाते समय उनका मोबाइल फोन छीन लिया था, उस समय कुछ मीडियाकर्मियों उनकी तस्वीरें ले रहे थे।
पांडे ने शिकायत में कहा कि अभिनेता ने उनके साथ बहस की और उन्हें धमकी भी दी।
अदालत ने इससे पहले यहां डी. एन. नगर पुलिस को मामले की जांच करने और रिपोर्ट सौंपने का निर्देश भी दिया था।
अदालत ने मंगलवार को अपने आदेश में कहा कि मामले के सबूत और पुलिस की जांच रिपोर्ट आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू करने के लिए पर्याप्त है।
समन जारी करने से तात्पर्य, किसी व्यक्ति द्वारा दर्ज की गई शिकायत के आधार पर महानगर या न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष आपराधिक कार्यवाही की शुरुआत होना है। इसके बाद आरोपी व्यक्ति को अदालत के समक्ष पेश होना पड़ता है। (भाषा)
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
जगदलपुर, 21 मार्च। ‘बस्तर चो गीत’ वीडियो एल्बम सॉन्ग आरुग म्यूजिक के यूट्यूब चैनल पर लॉन्च किया गया है। इस गीत को रिलीज के पहले ही एक घण्टे में 7 हजार 7 सौ 27 लोग देख चुके हैं। इस वीडियो एल्बम में बस्तर की संस्कृति, परंपरा, कला, पर्यटन का फिल्मांकन किया गया है। इस गीत को एनएमडीसी के कॉर्पोरेट सोशल रेस्पोंसिबिलिटी (सीएसआर) विभाग और बस्तर जिला प्रशासन के सहयोग से फि़ल्माया गया है।
आरुग म्यूजिक पर लॉच इस वीडियो एल्बम में बस्तरिया संस्कृति को बेहतरीन ढंग फि़ल्माया और बस्तर की कला, लोकजीवनशैली को अच्छी तरह से प्रतिबिंबित किया गया है। इस सॉन्ग के माध्यम बस्तरिया कला और संस्कृति प्रतिनिधि रूप में लोगों तक पहुंच रही है। बस्तर चो गीत में यहां की कला, संस्कृति, रहन-सहन और जनजीवन के पहलुओं को दर्शाने की कोशिश की गई है।
इस गीत में बस्तर के प्रमुख एवं उभरते पर्यटन स्थलों को पर्यटन के दृष्टिकोण से आकर्षक ढंग से दिखाया गया है, विशेषकर बीजाकासा और चित्रकोट का सौंदर्य देखते ही बन रहा है। गीत के बोल क्षेत्रीय रुचि के साथ सुलभ और आसानी से समझ में आने वाले हैं। इस गीत में बस्तर के प्राकृतिक और ऐतिहासिक महत्व को भी दिखाया गया है। उल्लेखनीय है कि बस्तर अपनी प्रकृति और संस्कृति के कारण विश्वविख्यात है, लेकिन अतिवाद के लिए भी चर्चित है, मुख्यत: बस्तर अतिवाद प्रभावित इलाका नहीं है।
प्रकृति से परिपूर्ण होने के कारण यहां अनेक जल प्रपात, गुफाएं, घाटियां हैं जो पर्यटको का मन मोह लेती हैं।
यहां की डोकरा आर्ट, बेलमेटल आर्ट, तुम्बा आर्ट का इस गीत में विशेष चित्राकंन हैं। इस गीत को.को सागर बोस, भुनेश्वर यादव ने लिखा है, जिसे राकेश तिवारी ने अपनी आवाज़ दी है, जबकि अंकित तिवारी ने अपने रेप से गाने में जान डाल दी है।
इस एल्बम का निर्माण लाइमलाइट प्रोडक्शन हाउस के बैनर तले किया गया है, जिसमें छत्तीसगढ़ी के प्रतिभाशाली कलाकारों ने काम किया है, जो मॉडलिंग और अभिनय के क्षेत्र में देश में प्रदेश का नाम ऊंचा कर रही हैं। जिनमें अदिति तिवारी बिलासपुर, अलीशा चंद्राकर दुर्ग, कनिका ध्रुव बस्तर ने अभिनय किया है। इस गीत को आप सभी आरुग म्यूजिक के युट्यूब चैनल पर देख एवं सुन सकते हैं।
कोलकाता, 20 मार्च । ‘जॉय फिल्मफेयर अवॉर्ड्स बांग्ला 2021’ में बांग्ला फिल्मों ‘बोरुनबाबुर बंधु’ और ‘टॉनिक’ को ‘सर्वश्रेष्ठ फिल्म चुना गया। आयोजकों ने एक बयान में यह जानकारी दी।
निर्देशक अनिक दत्ता को शुक्रवार रात एक भव्य समारोह में सौमित्र चटर्जी अभिनीत फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक चुना गया। फिल्म निर्माता अतनु घोष की ‘बिनीसुतोय’ को सर्वश्रेष्ठ फिल्म (आलोचक) के पुरस्कार के लिए चुना गया, जबकि दिग्गज अभिनेता परन बंद्योपाध्याय को ‘टॉनिक’ में उनकी भूमिका के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार मिला। ‘बिनीसुतोय’ के लिए अहसान को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार दिया गया।
अर्पिता चटर्जी को ‘अब्यक्तो’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री (आलोचक) चुना गया, जबकि सर्वश्रेष्ठ अभिनेता (आलोचक) अर्जुन चक्रवर्ती को ‘अविजातिक’ के लिए और अनिर्बान भट्टाचार्य को ‘द्वितियो पुरुष’ के लिए चुना गया। फिल्म ‘प्रेम तामे’ के लिए सर्वश्रेष्ठ संगीत एल्बम का ताज शांतनु मोइत्रा, अनुपम रॉय, प्रसनजीत मुखर्जी और शिबब्रत बिस्वास के नाम रहा।
‘गोलपो होलेओ सोट्टी’ में ‘मायर कंगल’ गीत के लिए ईशान मित्रा को सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक, जबकि लगनजीता चक्रवर्ती को फिल्म ‘एकन्नोबोर्ति’ में उनके गाने ‘बेहया’ के लिए सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायिका के पुरस्कार के लिए चुना गया। युवा निर्देशक अर्जुन दत्ता को ‘अब्यक्तो’ के लिए सर्वश्रेष्ठ मूल कहानी का पुरस्कार मिला।
निर्देशक ध्रुबो बनर्जी और श्रीजीत मुखर्जी दोनों को क्रमशः ‘गोलोंदाज’ और ‘द्वितियो पुरुष’ के लिए सर्वश्रेष्ठ पटकथा लेखक के रूप में सम्मानित किया गया। युवा फिल्म निर्माता अविजीत सेन को ‘टॉनिक’ के लिए सर्वश्रेष्ठ नवोदित निर्देशक का पुरस्कार दिया गया, जबकि सुप्रियो सेन को ‘तंगरा ब्लूज’ के लिए पुरस्कृत किया गया।
वयोवृद्ध अभिनेता रंजीत मलिक को अपने पांच दशक लंबे करियर में 100 से अधिक फिल्मों में अभिनय करने के लिए ‘लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड’ दिया गया, जिन्होंने सत्यजीत रे और मृणाल सेन जैसे निर्देशकों के साथ काम किया था। (भाषा)
मुंबई, 19 मार्च । अभिनेता अक्षय कुमार की एक्शन कॉमेडी फिल्म 'बच्चन पांडे' ने रिलीज के पहले दिन 13.25 करोड़ रुपये की कमाई की है। फिल्म के निर्माताओं ने शनिवार को यह जानकारी दी।
फिल्मकार साजिद नाडियाडवाला की प्रोडक्शन कंपनी नाडियाडवाला ग्रैंडसन के बैनर तले बनी ‘बच्चन पांडे’ शुक्रवार को सिनेमाघरों में रिलीज़ हुई। फिल्म में अक्षय ने एक गैंगस्टर की भूमिका निभाई है।
नाडियाडवाला ग्रैंडसन के आधिकारिक ट्विटर अकाउंट ने एक पोस्टर साझा किया, जिसमें बॉक्स ऑफिस पर फिल्म के पहले दिन की कमाई का जिक्र था।
पोस्टर के साथ लिखा गया, ‘‘बॉक्स ऑफिस पर भौकाल। रिलीज के पहले दिन 13.25 करोड़ रुपये की कमाई।’’
‘‘बच्चन पांडे" का निर्देशन फरहाद सामजी ने किया है। फिल्म में अक्षय कुमार के अलावा कृति सैनन, जैकलीन फर्नांडीज और अरशद वारसी भी अहम भूमिका में हैं। (भाषा)
-रेहान फ़ज़ल
शशि कपूर के बारे में कहा जाता था कि वो अपने ज़माने में भारतीय फ़िल्म जगत के सबसे हैंडसम फ़िल्म अभिनेता थे.
शर्मिला टैगोर को अभी तक याद है जब शशि कपूर 'कश्मीर की कली' के सेट पर अपने भाई शम्मी कपूर से मिलने आए थे. वो कहती हैं, "मैं उस समय 18 साल की थी. मैंने अपने-आप से कहा था, 'ओ माई गॉड दिस इज़ शशि कपूर.' मैं उन्हें देखते ही रह गई थी. मैं काम नहीं कर पाई थी और निर्देशक शक्ति सामंत को मजबूर होकर शशि कपूर से सेट से चले जाने के लिए कहना पड़ा था."
शशि कपूर की सुंदरता पर एक बार मशहूर इटालियन अभिनेत्री जीना लोलोब्रिजीडा भी मोहित हो गई थीं.
मशहूर फ़िल्म निर्देशक इस्माइल मर्चेंट अपनी आत्मकथा 'पैसेज टू इंडिया' में लिखते हैं, "शशि कपूर की फ़िल्म 'शेक्सपियरवाला' बर्लिन फ़िल्म समारोह में दिखाई जा रही थी. शशि कपूर भी वहाँ पहुंचे हुए थे. एक शाम वो, उनकी हीरोइन मधुर जाफ़री और जीना लोलोब्रिजीडा इत्तेफ़ाक से एक ही लिफ़्ट में चढ़े और इस्माइल मर्चेंट के अनुसार जीना को शशि को देखते ही उनसे इश्क हो गया."
इस्माइल मर्चेंट लिखते हैं, "अगली सुबह उन्होंने शशि को गुलाब के फूलों का एक गुच्छा भेजा. लेकिन उन्हें ग़लतफ़हमी हो गई थी कि शशि का नाम मधुर है, इसलिए वो फूल मधुर जाफ़री के पास पहुंच गए. जीना को अपना प्रणय निवेदन ठुकराए जाने की आदत नहीं थी इसलिए समारोह के आख़िरी दिन उन्होंने शशि से पूछ ही डाला कि आपने मेरे फूलों का जवाब नहीं दिया. तब जाकर पता चला कि शशि तक जीना का बूके पहुँचा ही नहीं था. शशि कपूर को बहुत मायूसी हुई कि इस ग़लतफ़हमी की वजह से उनके हाथ से इतना अच्छा मौका निकल गया."
फ़ारुख़ इंजीनयर की वजह से चेहरा बचा
शशि कपूर और भारत के मशहूर विकेटकीपर रहे फ़ारुख़ इंजीनियर मुंबई के डॉन बॉस्को स्कूल में एक ही कक्षा में पढ़ा करते थे. एक बार वो उनकी बग़ल में बैठकर उनसे बातें कर रहे थे कि उनके टीचर ने लकड़ी का एक डस्टर खींचकर शशि कपूर के मुँह की तरफ़ मारा.
इंजीनियर बताते हैं, "वो डस्टर शशि की आँख में लगता, इससे पहले ही मैंने उसके चेहरे से एक इंच पहले उसे कैच कर लिया. शशि का चेहरा बहुत सुंदर था. मैं उससे मज़ाक किया करता था कि उस दिन अगर मैंने उसे वो डस्टर कैच नहीं किया होता तो तुम्हें सिर्फ़ डाकू के रोल ही मिलते."
शशि कपूर की साली फ़ेलिसिटी केंडल अपनी आत्मकथा 'वाइट कार्गो' में लिखती हैं, "शशि कपूर से ज़्यादा फ़्लर्ट करने वाला शख़्स मैंने अपनी ज़िंदगी में नहीं देखा. इस मामले में वो किसी को बख़्शते नहीं थे, लकड़ी के लट्ठे को भी नहीं. वो बहुत दुबले-पतले शख़्स थे लेकिन उनकी आँखें बहुत बड़ी-बड़ी थीं. उनके बड़े बाल सबको उनका दीवाना बना देते थे. उनके सफ़ेद दाँतो और डिंपल वाली मुस्कान का तो कहना ही क्या! उस पर सफलता की अकड़ तो उनमें थी ही."
शबाना आज़मी का मानना है कि शशि कपूर को उनकी अच्छी शक्ल की वजह से नुकसान हुआ.
वे कहती हैं, "दरअसल इस असाधारण आकर्षक शख़्स को देखकर लोग ये भूल जाते थे कि वो कितने बेहतरीन अभिनेता भी थे."
श्याम बेनेगल ने शशि कपूर को जुनून और कलयुग में निर्देशित किया था. वे कहते हैं, "शशि असाधारण अभिनेता थे लेकिन उन्हें अमिताभ बच्चन की तरह की फ़िल्में नहीं मिल पाईं जिनसे उन्हें स्टार और अभिनेता दोनों का तमग़ा मिल पाता. उनको हमेशा एक रोमांटिक स्टार के रूप में देखा गया. लोगों की नज़रें हमेशा उनके चेहरे की तरफ़ गईं. भारतीय फ़िल्म जगत में उन जैसा ख़ूबसूरत अभिनेता उस समय नहीं था. नतीजा ये हुआ कि उनका अभिनय बैकग्राउंड में चला गया और वो सुपर हीरो नहीं बन पाए."
मशहूर निर्देशक कुमार शाहनी ने भी कहा था, "भारतीय निर्देशकों ने शशि कपूर का पूरी तरह से फ़ायदा नहीं उठाया. शशि कपूर में भी वो 'किलर इंस्टिंक्ट' भी नहीं था जो किसी अभिनेता को चोटी पर पहुंचाता है."
जैनिफ़र से शादी
शशि कपूर ने 1953 से 1960 तक अपने पिता पृथ्वीराज कपूर के साथ पृथ्वी थियेटर में काम किया. इसी दौरान उनकी मुलाकात जैनिफ़र केंडल से हुई. वो उनसे चार साल बड़ी थीं. जैनिफ़र के पिता ज्योफ़री को ये रिश्ता पसंद नहीं था.
शशि के जैनिफ़र से विवाह में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई शशि कपूर की भाभी और शम्मी कपूर की पत्नी गीता बाली ने.
उन दिनों जैनिफ़र हैदराबाद में थीं और शशि कपूर बंबई में. शम्मी शशि का लटका हुआ मुँह देखकर कहते, क्यों मुँह लटका रहा है? याद आ रही है क्या? ये कहकर वो 100 रुपये का नोट निकाल कर उन्हें पकड़ा देते. उन दिनों हैदराबाद का हवाई टिकट 70 रुपये का मिलता था.
शशि तुरंत उन्हीं पैसों से हैदराबाद जाने का टिकट खरीदते. शम्मी कपूर और गीता बाली ने ही शशि को प्रोत्साहित किया कि वो जैनिफ़र को बंबई लाकर अपने माता-पिता से मिलवाएं.
शशि कपूर अपनी किताब 'पृथ्वीवालाज़' में लिखते हैं, "मैं जैनिफ़र को अपने माता-पिता के पास न ले जाकर शम्मी कपूर और गीता बाली के पास ले गया. वो हमें अपनी कार और कुछ पैसे दे देतीं ताकि हम ड्राइव पर जाएं और साथ कुछ खा-पी लें. बाद में मेरे कहने पर शम्मी ने हमारे बारे में हमारे माता-पिता से बात की. उनके मनाने पर ही वो बहुत मुश्किल से हमारे रिश्ते के लिए राज़ी हुए."
जिस दिन जैनिफ़र से शशि कपूर की शादी होनी थी उनके पिता पृथ्वीराज कपूर जयपुर में 'मुग़ल-ए-आज़म' के क्लाइमेक्स की शूटिंग कर रहे थे.
फ़िल्म के निर्देशक के. आसिफ़ ने उनके लिए एक चार्टर डकोटा विमान की व्यवस्था की. जैसे ही विवाह संपन्न हुआ पृथ्वीराज उसी विमान से जयपुर लौट गए. उस समय जयपुर में नाइट लैंडिंग सुविधा नहीं थी, जैसे ही भोर हुई विमान ने जयपुर में लैंड किया और पृथ्वीराज हवाई अड्डे से सीधे शूटिंग के लिए चले गए.
जैनिफ़र और शशि कपूर साथ-साथ रखते थे करवाचौथ का व्रत
जैनिफ़र कपूर नास्तिक थीं लेकिन वो अपने सास ससुर को खुश करने के लिए सभी तरह के व्रत रखा करती थीं. उनकी ये भी कोशिश होती थी कि उनके बच्चों में भारतीय संस्कार आएँ.
मधु जैन अपनी किताब 'द फ़र्स्ट फ़ैमिली ऑफ़ इंडियन सिनेमा, कपूर्स' में लिखती हैं, "जैनिफ़र अपनी सास की तरह करवाचौथ का व्रत रखा करती थीं. दिलचस्प बात ये है कि पृथ्वीराज कपूर और शशि कपूर भी अपनी पत्नी के साथ करवाचौथ का व्रत रखते थे. जैनिफ़र ने अपनी सास की ज़िंदगी तक ये व्रत रखना जारी रखा."
जैनिफ़र ने इस्माइल मर्चेंट की मदद की
शशि कपूर ने मशहूर फ़िल्म निर्देशक इस्माइल मर्चेंट के साथ कई फ़िल्मों में काम किया. बॉम्बे टाकीज़ की शूटिंग के दौरान मर्चेंट के पास पैसों की कमी पड़ गई. कई अभिनेताओं की फ़ीस दी जानी थी और मर्चेंट के पास उन्हें देने के लिए पैसे नहीं थे.
इस्माइल मर्चेंट अपनी आत्मकथा में लिखते हैं कि वो इस मुसीबत से किस तरह बाहर निकले.
वे लिखते हैं, "मेरे पास शशि कपूर को देने के लिए भी पैसे नहीं थे लेकिन उनकी पत्नी जैनिफ़र का मेरे लिए सॉफ़्ट कॉर्नर था. उन्होंने मुझे कुछ पैसे उधार दिए. इस तरह मैंने शशि कपूर के खुद के पैसे उन्हें देकर अपना उधार चुकता किया. बाद में जब मेरे पास पैसे आ गए तो मैंने वो पैसे जैनिफ़र को लौटा दिए लेकिन शशि कपूर को हम दोनों ने इस बारे में कानोकान ख़बर नहीं होने दी."
इसी तरह की घटना शशि के पिता पृथ्वीराज कपूर के साथ भी हुई थी. उन्होंने एक प्रोड्यूसर के साथ इसलिए काम करने से इनकार कर दिया था कि उसने पिछली फ़िल्म के पाँच हज़ार रुपये उन्हें नहीं चुकाए थे. वो प्रोड्यूसर चुपचाप उनकी पत्नी के पास गया और उनसे पाँच हज़ार रुपये उधार ले आया. उस शाम पृथ्वीराज कपूर हँसी-खुशी अपने घर लौटे और वो पाँच हज़ार रुपये अपनी पत्नी को दे दिए.
राज कपूर ने दिया 'टैक्सी' नाम
1977 में जब राज कपूर 'सत्यम शिवम सुंदरम' बना रहे थे तो भारतीय सिनेमा के कई बड़े अभिनेता उनकी फ़िल्म के हीरो बनना चाहते थे. राज कपूर की इच्छा थी कि ये रोल शशि कपूर करें.
हालाँकि उस ज़माने में शशि बहुत व्यस्त थे लेकिन उन्होंने अपने सचिव शक्तिलाल वैद से कहा कि वो राज कपूर के सामने उनकी डायरी लेकर जाएं और वो जितनी डेट्स चाहें उन्हें दे दें.
शशि कपूर ने दीपा गहलौत को दिए इंटरव्यू में बताया, "शक्ति मेरे पास रोते हुए आए कि राज साहब ने वो सारी डेट्स ले ली हैं जो उन्होंने दूसरे प्रोड्यूसरों को दे दी थी. राज जी से किए वादे को पूरा करने के लिए मुझे कई दिनों तक करीब-करीब 24 घंटे काम करना पड़ा.
उन दिनों मैं दिन में चार या पाँच शिफ़्ट करता था और अपनी कार में सोता था. जब राज कपूर को इसके बारे में पता चला तो उन्होंने मेरा नाम 'टैक्सी' रख दिया. वो कहा करते थे तुम स्टार नहीं टैक्सी हो. कोई तुम्हारा मीटर डाउन करे और तुम चलने के लिए तैयार हो जाओ."
लेकिन इतना व्यस्त होने के बावजूद शशि कपूर कभी भी सेट पर देर से नहीं पहुंचे.
दीवार में 'मेरे पास माँ है' वाला डायलॉग
शशि कपूर का बहुत नाम हुआ जब उन्होंने अमिताभ बच्चन के साथ दीवार फ़िल्म की.
राजीव विजयकर 'ब़ॉलीवुड हंगामा' में लिखते हैं, "जावेद अख़्तर ने मुझे बताया था. हालाँकि, शशि अमिताभ से उम्र में बड़े थे लेकिन हम चाहते थे कि वो दीवार फ़िल्म में उनके छोटे भाई की भूमिका निभाएं. हमें इसके लिए प्रोड्यूसर गुलशन राय को मनाने में काफ़ी जद्दोजहद करनी पड़ी."
बाद में 'दीवार' के निर्देशक रमेश सिप्पी ने मधु जैन को बताया, "मेरी फ़िल्म में शशि के रोल का तकाज़ा था कि वो इस रोल को अंडरप्ले करें. अगर 'वो मेरे पास माँ है' वाले डायलॉग को स्टार की तरह बोलने की कोशिश करते तो वो उसके साथ न्याय नहीं कर पाते."
कलात्मक फ़िल्में भी बनाई शशि कपूर ने
शशि कपूर के बेटे कुणाल कपूर कहते हैं कि उनके पिता ने अपने जीवन में एक बार भी नहीं कहा कि वो स्टार बनना चाहते हैं. फ़िल्मों के प्रति उनके मोह ने उन्हें कलात्मक फ़िल्में बनाने के लिए प्रेरित किया.
इस सिलसिले में पहली फ़िल्म थी रस्किन बॉन्ड की कहानी 'फ़्लाइट ऑफ़ द पिजंस' पर बनी फ़िल्म जुनून. इस फ़िल्म में उन्होंने शादीशुदा पठान जावेद ख़ाँ की भूमिका निभाई जिसे एक युवा एंग्लो इंडियन लड़की से प्यार हो जाता है और वो उसका अपहरण कर लेता है.
शशि कपूर की जीवनी 'शशि कपूर द हाउज़ होल्डर, द स्टार' में असीम छाबड़ा लिखते हैं, "जुनून की शूटिंग के दौरान शशि कपूर सबसे पहले सेट पर पहुंचते थे. वो अपने सारे सहकर्मियों का दिल से सम्मान करते थे. दो महीने तक चली शूटिंग के दौरान उन्होंने अपनी यूनिट के सभी लोगों के लिए लखनऊ में क्लार्क्स अवध होटल के कमरे बुक किए थे. 1979 में जुनून को सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला और 1980 में उसे फ़िल्मफ़ेयर का सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म, निर्देशक और डायलॉग का पुरस्कार मिला."
उनकी बनाई बाकी सभी फ़िल्मों कलयुग, 36 चौरंगी लेन, विजेता और उत्सव ने कला के ऊँचे मापदंडों को छुआ लेकिन बॉक्स ऑफ़िस पर ये फ़िल्में ज़्यादा नहीं चल पाईं.
70 और 80 के दशक में बनी अधिकतर समानांतर कला फ़िल्मों पर या तो फ़िल्म फ़ाइनेंस कॉरपोरेशन ने पैसा लगाया था या नैशनल फ़िल्म डेवेलपमेंट कॉरपोरेशन ने.
शशि कपूर शायद अकेले प्रोड्यूसर थे जो इन कला फ़िल्मों पर अपना या उधार लेकर पैसा लगा रहे थे.
अंतिम समय में बीमारियों ने घेरा
वर्ष 1984 में जैनिफ़र कपूर के निधन के बाद बाद शशि कपूर की जीने की इच्छा ही जैसे ख़त्म हो गई. इसके बाद उनका वज़न बढ़ना शुरू हुआ तो वो रुका ही नहीं.
कुछ सालों बाद वो सूमो पहलवान जैसे दिखाई देने लगे. उन्होंने घर से बाहर निकलना बंद कर दिया. अधिक वज़न के कारण उनके घुटनों ने जवाब दे दिया.
उन्ही दिनों जब उनकी भाभी नीला देवी ने उन्हें फ़ोन किया तो शशि कपूर ने उनसे पूछा 'अब वो किसके लिए जिएँ?'
उनके पुराने दोस्त और निर्देशक जेम्स आइवरी ने कहा, 'मोटे होना शशि कपूर के लिए शोक मनाने का एक तरीका था.'
अपने अंतिम दिनों में शशि की याददाश्त जाती रही. सिमी गरेवाल ने एक समारोह में उनको व्हील चेयर पर बैठे हुए देखा तो वो उनकी तरफ़ बढ़ीं. शशि की बेटी संजना ने उन्हें आगाह किया कि शशि को जिस्म के एक हिस्से में पक्षाघात हो चुका है. उनको दिल का दौरा भी पड़ चुका है. अगर वो आप को पहचानें नहीं तो बुरा मत मानिएगा.
सिमी इसके बावजूद उनके सामने गईं. वो झुकीं और उन्होंने उनके थके हुए चेहरे की तरफ़ देखा. शशि कपूर की आँखे उठीं और उन्होंने सिमी गरेवाल से कहा, 'हेलो सिमी.' सिमी ने भरी आँखों से शशि कपूर को गले लगा लिया. (bbc.com)
पॉपुलर कॉमेडी शो ‘भाभी जी घर पर हैं’ लोगों के फेवरेट शोज में से एक है. साल 2015 से प्रसारित हो रहे इस शो के लगभग सभी किरदारों को लोग खूब पसंद करते हैं. अंगूरी भाभी, विभूति नारायण मिश्रा, मनमोहन तिवारी और दरोगा हप्पू सिंह जैसे कैरेक्टर्स की अदाकारी लोगों को खूब हंसाती है. इन्हीं में से एक हप्पू सिंह का किरदार निभाने वाली योगेश त्रिपाठी अपने अभिनय से घर-घर अपनी पहचान बना चुके हैं. आज आपको इन्हीं से जुड़ी कुछ खास बातें बताते हैं-
कहा जाता है कि योगेश त्रिपाठीका परिवार उन्हें अभिनय की दुनिया में नहीं भेजना चाहता था, क्योंकि उनके घर में ज्यादातर लोग टीचिंग प्रोफेशन से जुड़े हुए हैं, लेकिन वह अपनी फैमिली की मर्जी के खिलाफ जाकर इस दुनिया में आए थे.
पहले कई ऐड कर चुके हैं योगेश त्रिपाठी
योगेश त्रिपाठी ने अपने एक इंटरव्यू में बताया था कि उनके करियर का सफर काफी संघर्ष भरा रहा. शुरुआत में उन्हें प्रोडक्शन हाउस के काफी चक्कर काटने पड़े. दो सालों की भागदौड़ के बाद उन्हें कई एडवर्टाइजमेंट में काम करने का मौका मिला, लेकिन इससे उन्हें कोई खास पहचान नहीं मिली.
एक्सपेरिमेंट के तौर पर जुड़े थे शो से
इसके बाद योगेश त्रिपाठी को चर्चित कॉमेडी शो FIR में काम करने का मौका मिला. इस शो में उनकी अभिनय क्षमता को देखते हुए डायरेक्टर शशांक बाली ने उन्हें ‘भाबी जी घर पर हैं’ का हिस्सा बनाया. कहा जाता है कि हप्पू सिंह को इस शो में एक एक्सपेरिमेंट के तौर पर जोड़ा गया था. इस शो के मेकर्स ने यह तय किया था कि अगर दर्शकों को हप्पू सिंह का किरदार पसंद आता है, तभी इसे जारी रखा जाएगा, नहीं तो इस किरदार को शो से हटा दिया जाएगा. लेकिन पहले ही दिन से हप्पू सिंह के किरदार को लोगों ने ऐसा पसंद किया कि यह किरदार इस शो का मुख्य हिस्सा बन गया.
एक एपिसोड की इतनी फीस लेते हैं हप्पू सिंह
अब तो योगेश त्रिपाठी की पहचान घर-घर में हप्पू सिंह के रूप में ही बन चुकी है. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो योगेश त्रिपाठी को हप्पू सिंह के रोल के लिए एक एपिसोड के करीब 35,000 रुपये मिलते हैं. हप्पू सिंह के कई डायलॉग्स जैसे ‘अरे दादा’ 9-9 ठईया बच्चे और प्रेग्नेंट बीवी’ और बात-बात पर रिश्वत मांगने का उनका स्टाइल दर्शकों को काफी पसंद आता है.
रियल लाइफ में ऐसे हैं ‘हप्पू सिंह’
शो में ‘गोरी मैम’ पर फिदा रहने वाले हप्पू सिंह अपनी रियल लाइफ में काफी सरल स्वभाव के इंसान कहे जाते हैं. वह अपनी मैरिड लाइफ को लेकर काफी ओपन हैं और अक्सर अपनी पत्नी के साथ तस्वीरें भी पोस्ट करते रहते हैं. योगेश त्रिपाठी की रियल लाइफ पार्टनर का नाम सपना त्रिपाठी है और दोनों की केमिस्ट्री कमाल की है. सपना त्रिपाठी योगेश को काफी सपोर्ट करती हैं. ‘भाबी जी घर पर हैं’ में तो हप्पू सिंह के 8-9 बच्चे हैं, लेकिन रियल लाइफ में उनका एक बेटा है. वह अपनी फैमिली के साथ खूब ट्रैवल करते हैं और अपनी लाइफ को एंजॉय करते रहते हैं.
-मोहित कंधारी
फिल्म निर्देशक विवेक रंजन अग्निहोत्री की फ़िल्म 'द कश्मीर फ़ाइल्स' के चर्चा में आने के बाद से नगरोटा के पास जगती टाउनशिप में रहने वाले कश्मीरी पंडित परिवारों ने एक बार फिर अपनी 'घर वापसी' का सपना देखना शुरू किया है.
जगती टाउनशिप का निर्माण 2011 में किया गया था जहां इस समय लगभग 4000 विस्थापित परिवार रहते हैं.
लेकिन बहुचर्चित फिल्म को लेकर हो रही तीखी बहस के बीच यहाँ रह रहे परिवारों को अब इस बात की भी चिंता सताने लगी है कि क्या इस फिल्म की वजह से उनका घर वापस लौटने का रास्ता आसान होगा या उसमें और अधिक अड़चनें पैदा होंगी.
तीन दशक बीत जाने के बाद भी केंद्र और राज्य सरकारें कश्मीरी हिन्दुओं की घर वापसी सुनिश्चित नहीं करा पाई.
जहाँ एक तरफ जगती टाउनशिप में रहने वाले विस्थापित फिल्म की प्रशंसा करते हैं तो वहीं दूसरी ओर वो यह कहने से भी नहीं चूकते कि 1990 से लेकर आज तक उनके नाम पर फिल्में तो बहुत बनीं लेकिन उनके जीवन में कुछ भी नहीं बदला है.
'फिल्में बहुत बनीं, लेकिन बदला कुछ नहीं'
जगती कैंप में रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता सुनील पंडिता ने बीबीसी हिंदी से अपने दिल की बात करते हुए कहा 1990 से लेकर आज तक हमारे नाम पर सिर्फ फिल्मे बनीं हैं और कुछ नहीं हुआ है.
"आज भी एक फिल्म चर्चा में है. लेकिन मेरा यह मानना है सिर्फ एक फिल्म बनने से हमारी घर वापसी नहीं हो सकती. हमें 1990 से अब तक हर जगह सिर्फ एक 'पोलिटिकल टिश्यू पेपर' की तरह इस्तेमाल किया गया है. आज भी वही हो रहा है.
"सरकारी अफसर से लेकर मीडिया और सियासतदानों ने हमें हर जगह बेचा है. यह कब तक होता रहेगा. हम स्थाई समाधान चाहते हैं, अपने घर लौटना चाहते हैं, और कुछ नहीं."
सुनील पंडिता अपने अनुभव के आधार पर कहते हैं कि '1990 से लेकर आज तक हमारे ओर कश्मीर के लोगों के बीच जो दूरियां थी उसे सिविल सोसाइटी के लोगों ने कड़ी मेहनत करके कम करने का काम किया था लेकिन इस फिल्म की वजह से वो दूरियां और बढ़ गयी हैं.'
पंडिता इस समय कश्मीर में रह रहे कश्मीरी पंडित परिवारों का हवाला देते हुए कहते हैं, 'कम से कम 5000 परिवार इस समय कश्मीर घाटी में रह रहे हैं और वे सब डरे हुए हैं, उन्हें इस बात का डर सता रहा है, कि कहीं कुछ अनहोनी घटना न हो जाये.'
उनका कहना था कि यहाँ जम्मू में उन्हें भी धमकियां मिल रही हैं.
वे कहते हैं, "मैं भारत सरकार से पूछना चाहता हूँ कि 1990 में जब हमारा पलायन हुआ तब उसकी जिम्मेदार भी सरकार थी. उस समय उन्होंने हमारी रक्षा क्यों नहीं की". उस समय कहाँ से हमारे गांव में 30,000 से लेकर 50,000 लोग आते थे. नारेबाजी होती थी, कश्मीर की आज़ादी के नारे बुलंद किये जाते थे, लेकिन सरकार कहीं नज़र नहीं आती थी. यह सिर्फ भारत सरकार की नाकामयाबी थी."
पंडिता सवाल पूछते हैं, "कैसे इतनी बड़ी मात्रा में सीमापार से हथियार भारत की सीमा के अंदर आये. सरकार कुछ भी कहे, 32 साल से हम जो अपने घोंसले को ढूंढ़ रहे हैं, वो इतनी जल्दी हमें नसीब नहीं होगा और अगर ऐसी फिल्में बनेंगी वो सिर्फ दोनों तरफ के लोगों के बीच दूरियां पैदा करेंगी ओर कुछ नहीं."
उम्मीद की किरण
12 साल की उम्र में अंजलि रैना अपने परिवार के साथ कश्मीर घाटी से जम्मू आयी थीं. उन्होंने एक टेंट में रहते हुए अपनी शुरुआती पढ़ाई पूरी की.
वे याद करते हुए कहती हैं कि उन्हें याद हैं कि कड़कती धूप में दिन के 2 बजे क्लास होती थी. मुझे नहीं पता आखिर हमें ऐसी जिंदगी क्यों जीने को मिली, हमने क्या कसूर किया था. 32 सालों के बाद अंजलि को आशा की किरण नज़र आ रही है.
अगर इस सरकार ने अनुच्छेद 370 हटा दिया है तो वह हमें अपने घर वापस भी भेज देगी. इसमें समय लग सकता है लेकिन अब उम्मीद है ऐसा होगा.
बीबीसी हिंदी को अंजलि ने बताया 'द कश्मीर फाइल्स' एक सच्ची कहानी पर आधारित फिल्म है. वे मानती हैं कि इस फिल्म में पंडितों के विस्थापन के सही कारणों और इसके बाद उनकी आवाज़ को किस तरह से दबाया गया, यह सब बताया गया है.
अंजलि कहती हैं , "उस समय हम लोगों के साथ जो हुआ उस पर तब की सरकार ने पर्दा डाला था. सच दुनिया के सामने नहीं आने दिया. हमारी आवाज़ को दबा दिया गया. जब तक कश्मीर के अंदर जमा किया गया, बारूद बाहर नहीं निकलेगा कश्मीरी पंडित की घर वापसी नहीं होगी. अगर सरकार हमें वापस भेजना चाहती है और ऐसे हालात पैदा करती है तो मैं सिर्फ अपने घर वापिस जाने के लिए तैयार हूँ लेकिन किसी ट्रांजिट कैंप में रहना मुझे मंजूर नहीं होगा."
अंजलि बताती हैं कि इतने वर्षों में वो सिर्फ एक बार अपने घर गयी थी लेकिन वहां उन्होंने देखा कि किसी और ने कब्ज़ा कर रखा है. मुझ से वो सब नहीं देखा गया. आज भी रोना आता हैं.
'अधूरी कहानी बयां करती है फ़िल्म'
प्यारे लाल पंडिता जो अपने परिवार के साथ 2011 से जगती टाउनशिप में रह रहे हैं, उन्होंने बीबीसी हिंदी को बताया कि इस फिल्म में कश्मीर की अधूरी कहानी बयान की गयी है.
कश्मीरी पंडितों के साथ-साथ कश्मीर के मुस्लिम और सिख समुदाय से जुड़े लोग भी विस्थापित हुए थे लेकिन इस कहानी में उनका कहीं ज़िक्र नहीं है.
उन्होंने सरकार से अपनी मांग दोहराते हुए अपील की कि इतना लम्बा समय बीत जाने के बाद अब सरकार को उनके परमानेंट सेटलमेंट के बारे में कड़ा फैसला लेना चाहिए ताकि दोबारा उन्हें भारत के नाम पर कश्मीर घाटी से नहीं भगाया जाये.
पंडिता कहते हैं कि सरकार कोई पॉलिसी बनाने से पहले दिल्ली में बैठकर फैसला न करें, बल्कि जो लोग विस्थापित कैंपों में, जगती टाउनशिप में रहते हैं, उनकी पीड़ा को देखते हुए उनके हक़ में फैसला करे न कि उन लोगों के साथ बैठकर फैसला करे, जो कभी कैंपों में रहे ही नहीं और दिल्ली में बैठकर उनकी रिप्रजेंटेशन करते हैं.
एक कश्मीरी विस्थापित शादी लाल पंडिता ने बीबीसी हिंदी को बताया कि कश्मीरी पंडितों के साथ ज़ुल्म हुआ जिसकी वजह से हमें वहां से निकलना पड़ा.
भाजपा सरकार से तीखा सवाल पूछते हुए पंडिता ने बीबीसी हिंदी से साफ़ लफ़्ज़ों में कहा, 'हम सरकार से पूछना चाहते हैं कि आप कहते थे, पहले की सरकारों ने कश्मीरी पंडितों को उजाड़ा लेकिन जब से केंद्र में आप की सरकार चल रही है आप ने भी कश्मीरी पंडितों की सुध नहीं ली है. कश्मीरी पंडितों का शोषण किया. हम रिलीफ मांग रहे हैं, जवानों के लिए नौकरियां मांग रहे और सुरक्षा की मांग कर रहे लेकिन हमारी कोई नहीं सुनता.'
फिल्म का हवाला देते हुए पंडिता ने कहा कि यह 2024 के चुनावों की तैयारी हो रही है. यह दुनिया को बताएँगे कि कश्मीरी पंडितों के साथ ज़ुल्म हुआ है.
पंडिता पूछते हैं, '1990 में पाकिस्तान ने हमें उजाड़ा, पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित दहशतगर्दों में हमें टारगेट बनाया न कि कश्मीर के रहने वाले मुसलमानों ने. बीजेपी वाले कुछ दिनों से सब को बता रहे हैं, यह सब कांग्रेस ने किया है लेकिन क्या किसी ने उनसे पूछा उस समय केंद्र में सरकार आप की थी. जनता दल को भाजपा ने बाहर से समर्थन दिया था और वी पी सिंह प्रधानमंत्री थे. उस समय की नेशनल फ्रंट की सरकार ने हमारी रक्षा क्यों नहीं की?' (bbc.com)