रायपुर
![41 साल पहले खैरागढ़ संगीत विवि ने ‘लता दी’ को दिया था डॉक्टरेट 41 साल पहले खैरागढ़ संगीत विवि ने ‘लता दी’ को दिया था डॉक्टरेट](https://dailychhattisgarh.com/uploads/chhattisgarh_article/1644148884555.jpg)
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 6 फरवरी। भारत रत्न लता मंगेशकर हमारे बीच अब नहीं है। लता दी का छत्तीसगढ़ से भी नाता रहा है। लता दी को एशिया के एक मात्र इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ 41 साल पहले संगीत में उनका योगदान के लिए डॉक्टर ऑफ लिटरेचर (डी-लिट) से सम्मानित कर चुका है। उन्हें यह सम्मान 9 फरवरी 1980 को दिया गया था। उस वक्त विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. अरूण सेन हुआ करते थे। यह बहुत कम लोग जानते हैं कि लता दी के 50 हजार गानों के संसार में एक गाना छत्तीसगढ़ का भी है। यह गाना 22 फरवरी 2005 को लता दी ने मुंबई में रिकॉर्ड किया था। छत्तीसगढ़ी फिल्म भखला के लिए छत्तीसगढ़ी भाषा में ही स्वर दिया था। गीत के बोल हैं छूट जाही अंगना अटारी..छूटही बाबू के पिठइया...यह गीत बेटी के शादी के बाद विदाई के वक्त गाया जाता है। इस गीत की रचना मदन शर्मा ने और संगीत छत्तीसगढ़ के ही प्रसिद्ध संगीतकार कल्याण सेन ने दिया था। इस गीत को गवाने के लिए गीतकार मदन शर्मा को मुंबई के चार चक्कर लगाने पड़े थे। मदन शर्मा 2004 से 2005 तक चार बार मुंबई गए, और लता दी को मना लिया। ऐसा नहीं था कि लता दी गाना नहीं चाहती थी। वह उस दौरान दौरे पर थीं। मदन शर्मा पहली बार गए तो लता दी विदेश में थी, दूसरी बार पुना में थीं, चौथी बार वे उषा मंगेशकर के जरिए लता जी से मुलाकात हुई और उन्होंने हां कही। इस गीत के बदले लता दी ने 2 लाख रूपए की फीस मांगी थी, लेकिन गाने के बोल व छत्तीसगढ़ी में पहला गीत होने की उपलब्धि से इतनी प्रभावित हुई कि उन्होंने 50 हजार रूपए लौटा भी दिए।
मेरा सौभाग्य रहा कि एक छात्र के रूप में लताजी को देखा
मेरा सौभाग्य है, कि लता दीदी को मुझे देखने का अवसर प्राप्त हुआ, जब मैं खैरागढ़ विवि में अध्ययनरत था। विवि के दीक्षांत समारोह के लिए उन दिनों लताजी को खैरागढ़ लाना एक बड़ा टास्क था। आज जैसी सुविधाएं नहीं थी। तय कार्यक्रम के अनुसार लताजी अपनी बहन उषा मंगेशकर के साथ मुबंई से नागपुर पहुंची। जहां डॉ. अनिता सेन, उत्तमचंद जैन, प्रो. आरएस जायसवासल एवं श्री कसालकर ने उनकी अगुवानी कर कार से खैरागढ़ पहुंचा। लताजी के आने की खबर से खैरागढ़ में करीब 10 हजार से अधिक लोग जुटे थे। इस वजह से दीक्षांत समारोह भी विवि से लगे फतेह मैदान में करना पड़ा भीड़ देखकर खुश हुई लताजी ने एक मराठी गीत की दो लाइनें गुनगुनाई जिसमें उन्होंने विवि की प्रगति की कामना की। समारोह के बाद दोपहर भोज के लिए दो अलग-अलग व्यवस्थाएं की गई थी। यह देखकर लताजी ने पूछताछ की तो उन्हें बताया गया कि आपके लिए कम मिर्च-मसाले, और बिना खटाई के व्यंजन बनाए गए हैं। लताजी ने कहा कौन कहता है गायकों को खटाई नहीं खाना चाहिए। और फिर उन्होंने चाट-गुपचुप, दही बड़े, और कढ़ी खाया। - डा.एम. श्रीराम मूर्ती (प्राचार्य कमलादेवी संगीत महाविद्यालय)