रायपुर

अंधविश्वास नहीं, वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं- डॉ. दिनेश मिश्र
14-Feb-2022 5:16 PM
अंधविश्वास नहीं, वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं- डॉ. दिनेश मिश्र

शासकीय गुण्डाधुर कॉलेज कोंडागांव में व्याख्यान

रायपुर,14 फरवरी। अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष व नेत्र विशेषज्ञ डॉ. दिनेश मिश्र ने शासकीय गुण्डाधुर स्नातकोत्तर महाविद्यालय कोंडागांव द्वारा वैज्ञानिक दृष्टिकोण और अंधविश्वास विषय पर व्याख्यान देते हुए कहा देश में अंधविश्वास और सामाजिक कुरीतियों  के कारण अक्सर अनेक निर्दोष लोगों को प्रताडऩा का शिकार होना पड़ता है,जिससे निदान के लिए आम जन में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास की अत्यंत आवश्यकता है।

डॉ. दिनेश मिश्र ने कहा  कुछ लोग अंधविश्वास के कारण हमेंशा शुभ-अशुभ के फेर में पड़े रहते है। यह सब हमारे मन का भ्रम है। शुभ-अशुभ सब हमारे मन के अंदर ही है। किसी भी काम को यदि सही ढंग से किया जाये, मेहनत, ईमानदारी से किया जाए तो सफलता जरूर मिलती है। उन्होंने कहा कि 18वीं सदी की मान्यताएं व कुरीतियां अभी भी जड़े जमायी हुई है जिसके कारण जादू-टोना, डायन, टोनही, बलि व बाल विवाह जैसी परंपराएं व अंधविश्वास आज भी वजूद में है। जिससे प्रतिवर्ष अनेक मासूम जिन्दगियां तबाह हो रही है। उन्होंने कहा कि ऐसे में वैज्ञानिक जागरूकता को बढ़ाने और तार्किक  सोच को अपनाने की आवश्यकता है। उन्होंने आगे कहा कि अंधविश्वास को कुरीतियों के विरूद्ध समाज के साथ विद्यार्थियों  को भी एकजुट होकर आगे आना चाहिए।

डॉ. मिश्र ने कहा प्राकृतिक आपदायें हर गांव में आती है, मौसम परिवर्तन व संक्रामक बीमारियां भी गांव को चपेट में लेती है, वायरल बुखार, मलेरिया, दस्त जैसे संक्रमण भी सामूहिक रूप से अपने पैर पसारते है। ऐसे में ग्रामीण अंचल में लोग कई बार  बैगा-गुनिया के परामर्श के अनुसार विभिन्न टोटकों, झाड़-फूंक के उपाय अपनाते है। जबकि प्रत्येक बीमारी व समस्या का कारण व उसका समाधान अलग-अलग होता है, जिसे विचारपूर्ण तरीके से ढूंढा जा सकता है। उन्होंने कहा कि बिजली का बल्ब फ्यूज होने पर उसे झाड़-फूंक कर पुन: प्रकाश नहीं प्राप्त किया जा सकता न ही मोटर सायकल, ट्रांजिस्टर बिगडऩे पर उसे ताबीज पहिनाकर नहीं सुधारा जा सकता। रेडियो, मोटर सायकल, टी.वी., ट्रेक्टर की तरह हमारा शरीर भी एक मशीन है जिसमें बीमारी आने पर उसके विशेषज्ञ के पास ही जांच व उपचार होना चहिए। डॉ. मिश्र ने विभिन्न सामाजिक कुरीतियों एवं अंधविश्वासों की चर्चा करते हुए कहा कि बच्चों को भूत-प्रेत, जादू-टोने के नाम से नहीं डराएं क्योंकि इससे उनके मन में काल्पनिक डर बैठ जाता है जो उनके मन में ताउम्र बसा होता है। बल्कि उन्हें आत्मविश्वास, निडरता के किस्से कहानियां सुनानी चाहिए। जिनके मन में आत्मविश्वास व निर्भयता होती है उन्हें न ही नजर लगती है और न कथित भूत-प्रेत बाधा लगती है। यदि व्यक्ति कड़ी मेहनत, पक्का इरादा का काम करें तो कोई भी ग्रह, शनि, मंगल, गुरू उसके रास्ता में बाधा नहीं बनता।

डॉ. मिश्र ने कहा कि देश में जादू-टोना, तंत्र-मंत्र, झाड़-फूँक की मान्यताओं एवं डायन (टोनही )के संदेह में प्रताडऩा तथा सामाजिक बहिष्कार के मामलों की भरमार है। डायन के सन्देह में  प्रताडऩा के मामलों में अंधविश्वास व सुनी-सुनाई बातों के आधार पर किसी निर्दोष महिला को डायन घोषित कर दिया जाता है तथा उस पर जादू-टोना कर बच्चों को बीमार करने, फसल खराब होने, व्यापार-धंधे में नुकसान होने के कथित आरोप लगाकर उसे तरह-तरह की शारीरिक व मानसिक प्रताडऩा दी जाती है। कई मामलों में आरोपी महिला को गाँव से बाहर निकाल दिया जाता है।

बदनामी व शारीरिक प्रताडऩा के चलते कई बार पूरा पीडि़त परिवार स्वयं गाँव से पलायन कर देता है। कुछ मामलों में महिलाओं की हत्याएँ भी हुई है अथवा वे स्वयं आत्महत्या करने को मजबूर हो जाती है। जबकि जादू-टोना के नाम पर किसी भी व्यक्ति को प्रताडि़त करना गलत तथा अमानवीय है। वास्तव में किसी भी व्यक्ति के पास ऐसी जादुई शक्ति नहीं होती कि वह दूसरे व्यक्ति को जादू से बीमार कर सके या किसी भी प्रकार का आर्थिक नुकसान पहुँचा सके। जादू-टोना, तंत्र-मंत्र, टोनही, नरबलि के मामले सब अंधविश्वास के ही उदाहरण हैं। महाराष्ट्र छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश ओडीसा, झारखण्ड, बिहार, आसाम  सहित अनेक प्रदेशों में प्रतिवर्ष टोनही, डायन के संदेह में निर्दोष महिलाओं की हत्याएँ हो रही है जो सभ्य समाज के लिये शर्मनाक है। नेशनल क्राईम रिकॉर्ड ब्यूरो ने सन् 2001 से 2015 तक 2604 महिलाओं की मृत्यु डायन प्रताडऩा के कारण होना माना है। जबकि वास्तविक संख्या इनसे बहुत अधिक है  अधिकतर मामलों में पुलिस रिपोर्ट ही नहीं हो पातीं। हमने जब आर टी आई से जानकारी प्राप्त की तब हमें बहुत ही अलग आंकड़े प्राप्त हुए. झारखंड में 7000  ,बिहार में 1679 छत्तीसगढ़ में 1357,ओडिशा 388 में, राजस्थान 95 में,आसाम में  75 मामलों की प्रमाणिक जानकारी है।

डॉ. मिश्र ने कहा आम लोग चमत्कार की खबरों के प्रभाव में आ जाते हैं। हम चमत्कार के रूप में प्रचारित होने वाले अनेक मामलों का परीक्षण व उस स्थल पर जाँच भी समय-समय पर करते रहे हैं। चमत्कारों के रूप में प्रचारित की जाने वाली घटनाएँ या तो सरल वैज्ञानिक प्रक्रियाओं के कारण होती है तथा कुछ में हाथ की सफाई, चतुराई होती है जिनके संबंध में आम आदमी को मालूम नहीं होता। कई स्थानों पर स्वार्थी तत्वों द्वारा साधुओं को वेश धारण चमत्कारिक घटनाएँ दिखाकर ठगी करने के मामलों में वैज्ञानिक प्रयोग व हाथ की सफाई के ही करिश्में थे।

 डॉ. मिश्र ने कहा अंधविश्वास, पाखंड एवं सामाजिक कुरीतियों का निर्मूलन एक श्रेष्ठ सामाजिक कार्य है जिसमें हाथ बंटाने हर नागरिक को आगे आना चाहिए।

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