बस्तर
मेकॉज को प्लेटलेट्स निकालने वाली एफेरेसिस मशीन की दरकार
जगदलपुर, 25 जुलाई। जगदलपुर क्षेत्र में डेंगू बुखार से पीडि़त मरीजों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है। डेंगू पीडि़त मरीजों से शासकीय व निजी अस्पताल भरे हुए है। डेंगू बुखार के कारण मरीजों में तेजी से प्लेटलेट्स घटने लगते हैं जिसके कारण समय पर मरीजों के परिजनों को रक्तदाता तो मिल जाते हैं किन्तु प्लेटलेट्स हेतु व्यवस्था नहीं हो पाती है। बस्तर के आसपास के जिलों में भी एसडीपी (सिंगल डोनर प्लेटलेट्स) मशीन की व्यवस्था नहीं होने के कारण मरीजों के परिजन केवल मेकॉज और जिला अस्पतालों में स्थापित आरडीपी (रेंडर डोनर प्लेटलेट्स) पर निर्भर हैं।
वर्तमान व्यवस्था में बड़ी संख्या में प्लेटलेट्स की मांग बढ़ रही है, पर मेकॉज में एसडीपी प्रक्रिया की व्यवस्था न होने के कारण रक्तदाताओं के रक्त से प्लेटलेट्स अलग कर रक्त को ब्लड बैंक में रखा जा रहा है। इस प्रक्रिया का नुकसान यह है कि एक रक्तदाता एक बार रक्त देने के बाद आगामी 3 महीने के बाद ही दोबारा रक्त दे सकता है, ऐसी स्थिति में जबकि जिले में डेंगू एक गंभीर महामारी के रूप में पैर पसार रही है। रक्तदाताओं की संख्या मरीजों की तुलना में कम है।
यदि मेडिकल कॉलेज प्रशासन एसडीपी प्रक्रिया को अपनाता है तो जिले में प्लेटलेट्स की समस्या का निराकरण संभव है, क्योंकि इस प्रक्रिया में रक्त दाताओं का रक्त नहीं निकाला जाता अपितु उनके रक्त से केवल प्लेटलेट्स ही अलग किए जाते हैं।
राज्यपाल पुरस्कार से सम्मानित रक्त वीर ब्रिजेश भी कर चुके हैं मांग
नगर के युवा रक्त वीर ब्रिजेश(वीरू) शर्मा जिन्हें हाल ही में राज्यपाल द्वारा सम्मानित किया गया था। उन्होंने भी जिले में बढ़ती प्लेटलेट्स की मांग और रक्त दाताओं की कमी के कारण जिला कलेक्टर से आग्रह किया है, कि मेडिकल कॉलेज डीमरापाल में एसडीपी प्रक्रिया अपनाई जाए, जिसके लिए जो आवश्यक मशीन है उसका क्रय किया जाए।
वीरू शर्मा ने बताया कि एसडीपी प्रक्रिया में रक्त दाताओं के रक्त से केवल प्लेटलेट्स ही लिए जाते हैं और शेष रखता है ,रक्त दाताओं के शरीर में वापस डाल दिया जाता है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में एफरेसिस मशीन की बस्तर जिले को बहुत आवश्यकता है। आशा है कि बस्तर कलेक्टर इस पर संज्ञान लेते हुए कार्रवाई करेंगे।
क्या है एसडीपी प्रक्रिया
एफेरेसिस नामक प्रक्रिया द्वारा दाता से केवल प्लेटलेट्स प्राप्त करना संभव है, नियमित रक्तदान की तरह 350 मिली रक्तदाता से लिया जाता है। इसे एक विशेष ब्लड बैग में भेजा जाता है, जिसे एफेरेसिस मशीन के अंदर रखा जाता है। मशीन स्पिन करती है, प्लेटलेट्स को अलग करती है और शेष रक्त घटकों को दाता के शरीर में वापस भेजती है।
यह चक्र 6-8 बार दोहराया जाता है और पूरी प्रक्रिया में लगभग 60 से 90 मिनट का समय लगता है। लगभग 300 मिली प्लेटलेट्स इस तरह से सिर्फ एक डोनर से प्लेटलेट्स प्राप्त किए जाते हैं। इस प्रकार एकत्रित प्लेटलेट्स को सिंगल डोनर प्लेटलेट्स (एसडीपी) कहा जाता है।
इस संदर्भ में ‘छत्तीसगढ़’ ने मेडिकल कॉलेज के अधीक्षक डॉ. टिकू सिन्हा से बात की तो उन्होंने बताया कि वर्तमान में हम आरसीपी (रेंडम डोनर प्लेटलेट्स ) का उपयोग करते हुए रक्तदाताओं के रक्त से प्लेटलेट्स अलग कर रहे हैं। क्योंकि मेडिकल कॉलेज में है एफरेसिस मशीन उपलब्ध नहीं है, इसलिए एसडीपी प्रक्रिया का उपयोग संभव नहीं है इस मशीन के लिए हम जल्दी बस्तर कलेक्टर से निवेदन करेंगे। एफरेसिस मशीन मेडिकल कॉलेज में स्थापित हो जाने से बस्तर जिले की एक गंभीर समस्या का समाधान हो जाएगा।
मेडिकल कॉलेज के ब्लड बैंक प्रभारी डॉ. सचिन का कहना है कि रेंडम डोनर प्लेटलेट्स की प्रक्रिया में 2 से ढाई घंटे लगते हैं और रक्त दाताओं का रक्त एक बैग में लिया जाता है एक यूनिट ब्लड से लगभग 50,000 प्लेटलेट्स प्राप्त होते हैं।
चूंकि डेंगू के मरीजों को केवल प्लेटलेट्स की आवश्यकता होती है इसलिए शेष रास्ता ब्लड बैंक बैंक में जमा करा दिया जाता है, एसडीपी प्रक्रिया में है रक्त दाताओं के रक्त से केवल प्लेटलेट सिले जाते हैं और श्वेत रक्त वापस रक्तदाता के शरीर में डाल दिया जाता है संपूर्ण प्रक्रिया एक मशीन एफरेसिस के जरिए की जाती है जो कि इस समय रायपुर के अंबेडकर मेडिकल कॉलेज में ही उपलब्ध है। यदि एफरेसिस मशीन मेडिकल कॉलेज में स्थापित की जाती है तो इससे बस्तर जिले को बहुत लाभ होगा।