राजनांदगांव
राजनांदगांव, 7 नवंबर। राजनांदगांव जिला शिक्षा प्रकोष्ठ के संयोजक अशोक चौधरी ने जारी विज्ञप्ति में मोहारा मेला के इतिहास पर प्रकाश डालते बताया कि मोहारा मेला का इतिहास 150 वर्ष से भी ज्यादा पुराना है।
इसका प्रमाण रजवाड़े के समय के एक मीटिंग में मिलता है। वर्ष 1887 की मीटिंग में एक प्रस्ताव आया कि मोहरा मेला बंद कर देना चाहिए, क्योंकि इसमें आमदनी कम खर्चा ज्यादा होता है। जिससे नगरपालिका को नुकसान होता है, क्योंकि राजनांदगांव के राजा वैष्णव पंथ एवं कृष्ण भक्त थे और कृष्ण भक्ति में कार्तिक महीने का विशेष महत्व है, इसलिए राजा के प्रतिनिधि ने कहा कि कि मोहारा मेला बंद नहीं होना चाहिए, इसमें जो नगर पालिका को नुकसान होता है वह राशि राजकोष से दिया जाएगा। उसके बाद नगर पालिका ने निर्णय लिया कि मोहरा का पुन्नी मेला यथावत रहेगा।
वर्ष 1887 से पहले मोहारा मेला चल रहा है, इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कार्तिक पूर्णिमा का मेला लगभग डेढ़ सौ बरसों से चल रहा है।
पिछली सरकार के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने मोहारा मेला को महोत्सव का दर्जा देकर बढ़ाने का कार्य किया था, वह अभी वर्तमान में भी चल रहा है। मोहारा मेला गांव और शहर का गठजोड़ है।