राजनांदगांव
55 दिनों में 1300 किमी पैदल चलकर शहर में विहार कर रहे आचार्य ने कहा-संतों का काम हिंसा रोकना
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजनांदगांव, 11 फरवरी। जैनाचार्य भगवंत जिनमणि प्रभ सूरीश्वर जी का कहना है कि मानसिक और शारीरिक पीड़ा देना भी हिंसा की श्रेणी में आता है। हिंसा के दो रूप हैं। जिसमें किसी को प्रत्यक्ष रूप से मारना और दूसरा किसी को मानसिक और शारीरिक रूप से कष्ट देना। शुक्रवार को तीन दिनी शहर में विहार कर रहे आचार्य सूरीश्वर जी ने पत्रकारों से औपचारिक चर्चा में कहा कि संतों का काम हिंसा रोकना है।
राजनीति में धर्म के लिए जगह नहीं है, लेकिन धर्म में राजनीति को उचित महत्व मिलना चाहिए। उन्होंने कहा कि 55 दिनों में वह 1300 किमी चलकर जयपुर से राजनांदगांव पहुंचे हैं। वह मानते हैं कि स्कूल-कॉलेजों में संस्कार आधारित शिक्षा दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि संतों की वास के कारण भारत एक दैवीय भूमि है। यहां भाईचारे और आपसी प्रेम को लेकर एक अलग ही माहौल है।
उन्होंने कहा कि साधु-संतों का काम आपसी सौहार्द्र और सदभावना के प्रति लोगों को एकजुट करना है। 13 वर्ष की उम्र में दीक्षा लेकर आचार्य सूरीश्वर ने कोरोना जैसी घातक परिस्थितियों का भी सामना किया है। उन्होंने कहा कि कोरोनाकाल में हर माह दो हजार परिवार को जीवनयापन के लिए 5 हजार की व्यवस्था उनके अपील पर अनुयायियों ने की थी। जैन समाज हमेशा से उदार रहा है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि नक्सलियों को हिंसा से वापस लाने के लिए वह भी हस्तक्षेप के लिए प्रयास कर सकते हैं।
उन्होंने कहा कि जीवन में पाना और खोना ही एक प्रमुख व्यवहार है। जिसमें इंसान जो प्राप्त करते हैं, वह हमारे हाथ में नहीं है, लेकिन हम पुरूषार्थ की भावना से काम करें यह हमारे हाथ में है। उन्होंने कहा कि परिस्थितियां कैसे भी हो, हर समाज को अपना उत्तरदायित्व निभाना चाहिए। इसके लिए वह जैन समाज को हमेशा प्रेरित करते रहे हैं। पत्रकारवार्ता में मनोज बैद, ललित भंसाली, रितेश लोढ़ा, आकाश चोपड़ा समेत अन्य लोग उपस्थित थे।