स्थायी स्तंभ
देवेन्द्र की उम्मीदवारी के मायने
राज्यसभा के लिए सरोज पांडेय की जगह भाजपा ने राजा देवेन्द्र प्रताप सिंह का नाम घोषित किया, तो हर कोई चौंक गए। खुद देवेन्द्र को भी इसका अंदाजा नहीं था। वो ओडिशा में थे।
भाजपा के प्रमुख नेता तो पूर्व संगठन मंत्री रामप्रताप सिंह का नाम फाइनल मानकर चल रहे थे। कुछ लोगों का अंदाजा था कि लक्ष्मी वर्मा अथवा रंजना साहू में से किसी को तय किया जा सकता है। मगर देवेन्द्र के नाम के ऐलान के बाद उनके बारे में जानकारी जुटाने की कोशिशें शुरू हुई।
पार्टी के अंदरखाने से यह खबर उड़ी कि देवेन्द्र उत्तरप्रदेश के पूर्व विधायक हैं। लेकिन कुछ देर बाद स्थिति साफ हुई कि देवेन्द्र प्रताप रायबरेली वाले नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ के ही हैं। रायगढ़ राजघराने के मुखिया देवेन्द्र प्रताप सिंह संघ परिवार और अनुसूचित जनजाति मोर्चा में ही सक्रिय रहे हैं। वो लैलूंगा से टिकट चाह रहे थे, लेकिन पार्टी ने उनकी जगह सुनीति राठिया को प्रत्याशी बना दिया।
वैसे देवेन्द्र प्रताप सिंह का परिवार कांग्रेस से जुड़ा रहा है। उनके पिता राजा सुरेन्द्र कुमार सिंह राज्यसभा के सदस्य रहे हैं, और दिवंगत पूर्व केन्द्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल के नजदीकी माने जाते थे। देवेन्द्र की बहन उर्वशी सिंह भी कांग्रेस संगठन में कई पदों पर रही हैं। देवेन्द्र खुद कांग्रेस में थे, बाद में वो भाजपा में चले गए। वो संघ परिवार और अनुसूचित जाति मोर्चा में काम करने लगे।
बताते हैं कि देवेन्द्र को प्रत्याशी बनाकर भाजपा ने एक बड़ा दांव खेला है। देवेन्द्र गोंड़ आदिवासी समाज से आते हैं, और समाज के भीतर उनका काफी सम्मान है। प्रदेश में आदिवासी समाज में सबसे ज्यादा गोड़ बिरादरी के हैं। पार्टी के रणनीतिकारों ने देवेन्द्र को प्रत्याशी बनाकर गोड़ आदिवासी समाज को साधने की कोशिश की है। इसका फायदा न सिर्फ रायगढ़ बल्कि कोरबा और सरगुजा लोकसभा में भी मिल सकता है।
कोरबा में पिछले लोकसभा चुनाव में पाली-तानाखार विधानसभा सीट में 60 हजार वोटों से पिछड़ गई थी, इस वजह से भाजपा प्रत्याशी चुनाव हार गए। विधानसभा चुनाव में गोंड़ बिरादरी पर पकड़ रखने वाली पार्टी गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के वोटों का प्रतिशत बढ़ा है। पाली-तानाखार सीट पर गोंगपा का कब्जा हो गया है। ऐसे में कहा जा रहा है कि देवेन्द्र को राज्यसभा में भेजने से गोड़ समाज के वोटों का रूख भाजपा की तरफ आ सकता है। क्या वाकई ऐसा होगा, यह तो लोकसभा चुनाव में पता चलेगा।
न्याय यात्रा की चर्चा सदन में भी
राहुल गांधी की न्याय यात्रा के छत्तीसगढ़ पड़ाव की चर्चा विधानसभा में भी हुई। इस पर भाजपा के विधायकों ने तंज कसे तो कांग्रेस के विधायक बचाव के मुद्रा में रहे। दरअसल, सोमवार को कांग्रेस के ज्यादातर सदस्य सदन से अनुपस्थित रहे। ऐसे में भाजपा विधायकों ने कांग्रेस पर जमकर तंज कसे। विधायक अजय चंद्राकर ने कहा पूरा विपक्ष न्याय यात्रा में जुटा है। सदन की चिंता करनी छोड़ पूरी पार्टी यात्रा पर निकली है। राजेश मूणत ने कहा, पूरी पार्टी युवराज के स्वागत में लगी है। भूपेश बघेल का नाम हटाकर अपना नाम लिखने की होड़ मची है। इस पर जब अजय चंद्राकर ने कहा कि यात्रा पर भी आप स्थगन ले आइए तो कांग्रेस के सदस्य लखेश्वर बघेल ने जवाब दिया कि सदन की कार्रवाई के लिए हम मौजूद हैं।
राजिम कुंभ में रहेगी रौनक
रामलला प्राण-प्रतिष्ठा समारोह से चारों शंकराचार्य दूर रहे, और कुछ विषयों को लेकर सार्वजनिक तौर पर मोदी सरकार की आलोचना भी करते रहे। मगर राजिम कुंभ में शंकराचार्यों के शामिल होने की उम्मीद है।
बताते हैं कि पर्यटन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने व्यक्तिगत तौर पर उनसे मिलकर राजिम कुंभ में शामिल होने का न्यौता दिया है। वे पहले भी राजिम कुंभ में शामिल होते रहे हैं। न सिर्फ शंकराचार्य बल्कि बागेश्वर धाम के पं. धीरेन्द्र शास्त्री, कथा वाचक पं. प्रदीप मिश्रा, साध्वी रितम्भरा सहित अन्य प्रतिष्ठित अखाड़ों के प्रमुख भी रहेंगे। बृजमोहन अग्रवाल ने पिछले दिनों ने अमरकंटक जाकर वहां संतों से मुलाकात कर राजिम कुंभ में शामिल होने का न्यौता दिया था जिसे उन्होंने मान लिया है। कुल मिलाकर पांच साल बाद होने वाले राजिम कुंभ में इस बार रौनक ज्यादा रहेगी।
- 12 फरवरी : महात्मा गांधी की अस्थियों को गंगा में प्रवाहित किया गया
- नयी दिल्ली, 12 फरवरी। इतिहास में 12 फरवरी के दिन बहुत सी घटनाएं दर्ज हैं। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 30 जनवरी, 1948 को हत्या की गई थी और उनकी मृत्यु के 13वें दिन 12 फरवरी, 1948 को उनकी अस्थियों को देश के विभिन्न भागों में अलग-अलग पवित्र सरोवरों में विसर्जित किया गया था। एक कलश को इलाहाबाद में गंगा नदी में प्रवाहित किया गया।
- देश-दुनिया के इतिहास में 12 फरवरी की तारीख पर दर्ज विभिन्न घटनाओं का सिलसिलेवार ब्योरा इस प्रकार है:-
- 1742 : महान मराठा दिग्गज नाना फडणवीस का जन्म।
- 1809 : ब्रिटिश वैज्ञानिक चार्ल्स डार्विन का जन्म।
- 1809 : अमेरिका के 16वें राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन का जन्म।
- 1818 : चिली ने स्पेन से आजादी की औपचारिक घोषणा की।
- 1922 : महात्मा गांधी ने कांग्रेस कार्यकारिणी समिति को असहयोग आन्दोलन को समाप्त करने के लिये राजी किया।
- 1948 : महात्मा गांधी की अस्थियों को इलाहाबाद में गंगा नदी सहित विभिन्न पवित्र स्थलों पर विसर्जित किया गया।
- 1975 : भारत को चेचक से मुक्त देश घोषित किया गया।
- 1996 : फलस्तीनी मुक्ति संगठन के नेता यासर अराफात को गाजा में फलस्तीन के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में शपथ दिलाई गई।
- 2002 : ईरान के एक विमान के ख़ुर्रमबाद हवाई अड्डे पर उतरते समय दुर्घटनाग्रस्त हो जाने से 119 लोगों की मौत।
- 2002 : पाकिस्तान के अधिकारियों ने अमेरिकी पत्रकार डेनियल पर्ल के अपहरण के संदेह में जैश-ए-मोहम्मद के आतंकवादी अहमद उमर शेख को गिरफ्तार किया।
- 2009 : प्रसिद्ध अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन को कैंम्ब्रिज विश्वविद्यालय ने डी लिट की उपाधि से सम्मानित करने की घोषणा की।
- 2010 : हरिद्वार महाकुंभ में लगभग 55 लाख श्रद्धालुओं ने पहले शाही स्नान पर गंगा में डुबकी लगाई।
- 2013 : उत्तर कोरिया ने तीसरा भूमिगत परमाणु परीक्षण किया। (भाषा)
राज्यसभा कागज तैयार
राज्य वनौषधि बोर्ड के पूर्व चेयरमैन रामप्रताप सिंह को राज्यसभा में भेजे जाने का भाजपा में हल्ला है। इसकी पर्याप्त वजह भी है। रामप्रताप जशपुर इलाके के रहने वाले हैं, और सीएम विष्णुदेव साय के करीबी भी माने जाते हैं। लेकिन उन्होंने पिछले दिनों राज्यसभा के नामांकन के लिए जरूरी कागजात तैयार कराए, तो पार्टी के भीतर कानाफूसी शुरू हो गई।
कुछ इसी तरह की तैयारी वर्ष 2018 में धरमलाल कौशिक ने भी कर रखी थी। उन्होंने तो अधिकृत घोषणा से पहले नामांकन फार्म मंगवा लिए थे। मीडिया में इसकी खबर लीक हो गई, और पार्टी ने आखिरी क्षणों में कौशिक की जगह सरोज पाण्डेय को प्रत्याशी बना दिया। रामप्रताप ने नामांकन तो नहीं खरीदे हैं, लेकिन आईटी रिटर्न आदि पेपर तैयार करने के बाद से पार्टी के भीतर राज्यसभा में जाने का हल्ला उड़ा है।
रामप्रताप सिंह की दावेदारी इसलिए भी मजबूत मानी जा रही है कि वो संगठन महामंत्री के रूप में काफी मेहनत करते रहे हैं। रामप्रताप सिंह पिछड़ा वर्ग से आते हैं। खास बात यह है कि राज्य बनने के बाद अब तक भाजपा से पिछड़ा वर्ग से एक भी नेता राज्यसभा में नहीं गए हैं। वैसे चिंतामणि महाराज, और पिछड़ा वर्ग से महिला नेत्रियों के नाम की भी चर्चा है। चिंतामणि को तो विधानसभा चुनाव से पहले आश्वासन भी दिया जा चुका है। देखना है आगे क्या होता है।
अपनों ने ही समझाईश दी विधानसभा में
विधानसभा में कुछ नए विधायक बेहतर परफार्मेंस दिखा रहे हैं। कुछ को नियम प्रक्रिया की जानकारी कम है। ऐसे ही विपक्ष के एक विधायक अटल श्रीवास्तव को नाराजगी का भी सामना करना पड़ा। अटल पर नाराजगी आसंदी ने नहीं बल्कि पूर्व सीएम भूपेश बघेल ने जताई थी।
हुआ यूं कि प्रश्नकाल में सदन की कार्रवाई चल रही थी, और इसी बीच अध्यक्षीय दीर्घा में अटल श्रीवास्तव के कोई परिचित बैठे हुए थे। अटल सदन की कार्रवाई के बीच उनके पास पहुंच गए, और उनसे बतियाने लगे। यह देखकर भूपेश बघेल गुस्से में आ गए, उन्होंने अटल पर नाराज हुए तब कहीं जाकर वो अपनी सीट पर जाकर बैठे।
दूसरी तरफ, बेलतरा के विधायक सुशांत शुक्ला पहली बार अपना नंबर आने के बाद खड़े हुए, और सवालों की बौछार लगा दी। तब स्पीकर डॉ. रमन सिंह उन्हें रोकते हुए कहा कि आप एक-एक कर तीन सवाल पूछ सकते हैं, और जरूरी होने पर मैं और भी अनुमति दूंगा। इससे परे कुछ नए विधायक रिकेश सेन, भावना वोहरा और अनुज शर्मा का परफार्मेंस भी बेहतर दिखा है।
वॉल पेंटिंग की लड़ाई
राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा छत्तीसगढ़ में प्रवेश करते ही जिस तरह से विवादों में घिर गई उसने कांग्रेस के लिए अच्छा संकेत नहीं दिया। रायगढ़ के रेंगालपाली सभा स्थल के आसपास की दीवारों में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और विधायक देवेंद्र यादव के नाम पर जिंदाबाद के नारे लिखे गए थे, जिन्हें रातों-रात मिटा दिया गया और उसकी जगह विधायक उमेश पटेल के नारे लिख दिए गए। अब जब इस समय रायगढ़ से आगे खरसिया की ओर राहुल गांधी आगे बढ़े होंगे तो उन्हें दीवारों पर पोती गई कालिख जरूर नजर आई होगी। इसके लिए क्या उमेश पटेल के समर्थक जिम्मेदार हैं, यह तो उनका बयान सामने आने पर ही मालूम होगा। इधर, बीते 8 फरवरी को जब छत्तीसगढ़ में यात्रा में प्रवेश किया तो जनसभा के वीआईपी गेट से एंट्री नहीं मिलने पर पूर्व विधायक प्रकाश नायक भी नाराज होकर धरना देने लग गए थे। उम्मीद के मुताबिक इसमें भीड़ भी नहीं पहुंची। विधानसभा चुनाव में भले ही परिणाम बहुत अच्छा नहीं रहा लेकिन कांग्रेस के असर वाले खरसिया, लैलूंगा, धर्मजयगढ़ से भी नहीं लाई जा सकी। अब जब कोरबा, सक्ती, कटघोरा होते हुए अंबिकापुर की ओर यात्रा बढ़ रही है तब प्रदेश के नेताओं ने कल आनन-फानन में सात पूर्व विधायकों सहित 11 पदाधिकारियों को स्थानीय नेताओं की मॉनिटरिंग पर लगा दिया है। प्रदेश कांग्रेस के नए प्रभारी महासचिव सचिन पायलट के लिए यह कोई नया अनुभव नहीं होगा। आखिर राजस्थान में भी पिछले 5 साल उनके और गहलोत के बीच इसी तरह की खींचतान मची हुई थी।
लग्जरी ट्रेन की बिरयानी
पिछले दिनों रानी कमलापति स्टेशन से जबलपुर जा रहे रेल यात्री को बुक की गई अपनी बिरयानी की थाली में मरा हुआ कॉकरोच मिला। उन्होंने अटेंडेंट से शिकायत की। कैटरिंग स्टाफ के लोग आकर माफी मांगने लगे। मगर यात्री ने इसे मामूली चूक नहीं माना और आईआरसीटीसी के सोशल मीडिया पेज पर तस्वीरों के साथ शिकायत कर दी। अब पता चला है कि आईआरसीटीसी ने सेवा देने वाले कैटरिंग कंपनी पर 20 हजार रुपए का जुर्माना लगाया गया है। रेलवे बोर्ड ने भी अलग से 25 हजार रुपए ठोक दिया है। यह वाकया महंगी टिकट वाले वंदे भारत एक्सप्रेस का है। इसलिए साफ कोच, शीशे, सीट खिड़कियां देखकर यह मान लेना ठीक नहीं है कि वीआईपी ट्रेनों में सारी सुविधाएं भी फर्स्ट क्लास होगी। कम से कम खाने पीने का सामान तो एक बार जरूर चेक कर लेना चाहिए, चाहे किसी भी क्लास में सफर कर रहे हों।
घरेलू गैस की परवाह नहीं
भाजपा ने विधानसभा चुनाव के समय महिलाओं से जुड़ी दो बड़ी घोषणाएं की थी। इनमें से एक महतारी वंदन योजना पर तेजी से काम हो रहा है और अब तक लाखों लोग फॉर्म भर चुके हैं। सिलसिला पूरे प्रदेश में चल रहा है। दूसरा वादा 500 रुपए में गैस सिलेंडर देने का था। विपक्ष की प्रतिक्रियाओं में इस दूसरी घोषणा को लेकर सरकार को कटघरे में लिया जा रहा है, लेकिन 1000 रुपए प्रतिमाह मिलने वाले लाभ ने रियायती घरेलू गैस के वादे की ओर लोगों का ध्यान ही हटा दिया है। इस वित्तीय वर्ष में इस पर अमल की गुंजाइश भी कम दिखाई दे रही है। सरकार की ओर से बार-बार यह कहा जा रहा है कि हम मोदी की गारंटी को 5 साल में पूरी करेंगे। सारी गारंटियां एक साथ पूरी हो जाने की उम्मीद करना शायद ज्यादती हो। वैसे घोषणाओं में एक यह भी था कि प्रतिवर्ष एक लाख युवाओं को नौकरी दी जाएगी। बजट में इसका भी कोई जिक्र नहीं है।
दिल्ली से घर वापिसी
रमन सरकार के तीसरे और भूपेश सरकार के पिछले कार्यकालों में एक ऐसा दौर था कि राज्य के अफसर खासकर आईएएस सेंट्रल डेपुटेशन पर जाने लगे थे। कुछ को सरकार में अफसरों की कमी बताकर रोकती रहीं। फिर भी बीते वर्षों में सेंट्रल डेपुटेशन में छत्तीसगढ़ का कोटा पैक हो गया। और अब वापस हो रहे,या कराए जा रहे। क्या प्रदेश में ब्यूरोक्रेसी के अच्छे दिन लौट रहे हैं। इन्हीं चर्चाओं के बीच केंद्र सरकार ने आईएएस सोनमणि बोरा प्रतिनियुक्ति से वापसी के आदेश जारी कर दिए हैं। 1999 बैच के अफसर बोरा प्रमुख सचिव स्तर के अफसर है। केंद्र से रिलीव होने के बाद नियमानुसार वें लंबी छुट्टी का लाभ लेते हैं या ज्वाइन करेंगे यह देखना होगा। इससे पहले इस माह के शुरू में केंद्र ने एसीएस स्तर की अफसर रिचा शर्मा को भी छत्तीसगढ़ के लिए रिलीव कर दिया है। उन्होंने भी अभी ज्वाइन नहीं किया है। समझा जा रहा है कि दोनों ही बजट सत्र के बाद महानदी भवन में ज्वाइन करेंगे। दोनों ही अफसर कांग्रेस शासन काल में केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर चले गए थे। उससे पहले बघेल सरकार बोरा को कम महत्व के विभाग का प्रभार देती रही है। और प्रतिनियुक्ति के लिए भी उन्हें काफी मशक्कत करनी पड़ी थी। अब राज्य में बदली परिस्थिति में बोरा को अच्छे अवसर मिलने के संकेत हैं। समझा जा रहा है कि उन्हें राजस्व विभाग में भू प्रबंधन से संबंधित जिम्मेदारी दी जा सकती है।
उमेश पटेल का इंतजाम कमजोर ?
कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा ओडिशा से होते हुए छत्तीसगढ़ पहुंची, तो रायगढ़ जिले के रेंगालपाली में पहला पड़ाव था। मगर यात्रा का स्वागत फीका रहा। जबकि रायगढ़ इलाके में राहुल के जोरदार स्वागत की रणनीति बनाई गई थी, और पूर्व मंत्री उमेश पटेल को जिम्मेदारी दी गई थी। सुनते हैं कि प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट ने उमेश पटेल पर जमकर नाराजगी जताई है।
बाद में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज, और उमेश पटेल ने अपना गुस्सा जिले और ब्लॉक के पदाधिकारियों पर निकाला। पहले रेंगालपाली में हजारों लोगों के जुटने की उम्मीद जताई जा रही थी। लेकिन राहुल पहुंचे, तो हजार लोग भी नहीं थे। दो दिन के ब्रेक के बाद यात्रा 11 तारीख से फिर आगे बढ़ेगी। इसमें पर्याप्त संख्या में लोग मौजूद रहे, इस दिशा में कोशिश चल रही है। देखना है आगे क्या होता है।
ओपी के तेवरों की चर्चा
पहली बार विधायक, और मंत्री बने अरुण साव, विजय शर्मा व वित्त मंत्री ओपी चौधरी का विधानसभा में अब तक का प्रदर्शन बेहतर रहा है। साव और विजय शर्मा तो सवालों से घिरे रहे, लेकिन उन्होंने अपने जवाब से सदस्यों को निरुत्तर कर दिया। स्वास्थ्य मंत्री श्यामलाल जायसवाल भी ठीक ठाक नजर आए।
दूसरी तरफ, वित्त मंत्री ओपी चौधरी ने बजट भाषण में पिछली सरकार पर हमला करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। बजट भाषण में उनके तेवर देखकर सत्तापक्ष के सदस्य भी खामोश रह गए। उन्होंने यहां तक कह दिया कि छत्तीसगढ़ के विकास को ग्रहण लग गया था। भ्रष्ट और स्वार्थपरक ताकतों ने छत्तीसगढ़ को दबोचकर रख दिया था। लेकिन लोकतंत्र की ताकत ने इन नकारात्मक शक्तियों को पराजित कर दिया। कुल मिलाकर चौधरी के तेवर की खूब चर्चा रही।
हेलमेट जब आदत बन जाए
कुछ दिन पहले दुर्ग जिला प्रशासन और पुलिस ने दोपहिया वाहन चालकों के लिए हेलमेट पहनना अनिवार्य कर दिया। अनिवार्य तो पहले से है, पर नहीं पहनने वालों पर कार्रवाई नहीं हो रही थी। अब जगह-जगह चेकिंग की जा रही है, विशेषकर रायपुर हाईवे पर। नियम नहीं मानने पर जुर्माना लग रहा है। इस अभियान का असर दिखाई दे रहा है। इस चेकिंग प्वाइंट पर कार्रवाई के लिए पुलिस तैनात हैं लेकिन अधिकांश बाइक सवार हेलमेट पहने हुए मिले। जिला पुलिस का तो दावा है कि 80 प्रतिशत दोपहिया चालक अब हेलमेट पहन रहे हैं। हो सकता है कि ऐसा कार्रवाई के डर से हो। जब पुलिस की अपील के बिना खुद की हिफाजत के खयाल से लोग हेलमेट को अपनी आदत बना लें, तो मुहिम सफल होगी।
डीएमएफ रकम किसने बहाई..
कोविड काल के दौरान शिक्षा विभाग में हुई बिना टेंडर खरीदी और आत्मानंद स्कूलों के उन्नयन के नाम पर भारी भरकम रकम खर्च कर देने का मामला विधानसभा में उठा। स्कूल शिक्षा मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने चार जिला शिक्षा अधिकारियों को निलंबित करने की घोषणा की। आशाराम नेताम जैसे कुछ विधायकों ने सवाल उठाया कि क्या डीईओ को पॉवर था कि इतनी रकम खर्च कर डालते। फिर बताया गया कि जिलों के कलेक्टर के निर्देश पर हुई। नेताम का सवाल था कि फिर कलेक्टरों पर कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है? एक मामला कांकेर जिले का था जहां समग्र शिक्षा और डीएमएफ से 5 करोड़ 36 लाख रुपये खर्च कर दिए गए। मंत्री ने स्पीकर के सुझाव पर अगले सत्र में श्वेत पत्र प्रस्तुत करने की बात कही है।
सारी बातें तो जांच से साफ हो जाएगी, लेकिन शिक्षा विभाग के कुछ अधिकारी बता रहे हैं कि बिना टेंडर खरीदी के अलावा जैम के जरिये की गई खरीदी में भी इसी तरह की गड़बड़ी की गई। जिला प्रमुख के रूप में कलेक्टर ने आदेश दिया तो स्वाभाविक रूप से उनके ऊपर कार्रवाई की मांग हो रही है, मगर खेल इससे बड़ा था। गहराई से जांच यदि हुई तो यह भी सामने आएगा कि किसी जिले में किस मंत्री का प्रभार था, उनके किस करीबी को सप्लाई का काम मिला। जानकारी के मुताबिक विभाग के मंत्री के बंगले से भी दबाव आता था। कलेक्टरों के पास फोन आते रहे, आर्डर निकलते रहे।
सन् 2018 में जब कांग्रेस की सरकार आई तो डीएमएफ की जिला समितियों के अध्यक्ष जिलों के प्रभारी मंत्री बना दिये गए थे। तब केंद्र ने आपत्ति की। यह कहा कि इससे राशि के वितरण में राजनीति और भ्रष्टाचार की गुंजाइश बढ़ जाएगी। कलेक्टर को समिति का अध्यक्ष बनाने का निर्देश आया। मगर, इसके बाद भी दुरुपयोग नहीं रुका। कांग्रेस शासनकाल के दौरान कोरबा में हुई खरीदी की पोल खुद तत्कालीन मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने खोली थी। अब सरकार बदलने के बाद तो अन्य जिलों से भी ऐसी खबरें बाहर आ रही हैं।
केलो का उद्घाटन तो हो चुका..
सरकारी रकम का लापरवाही से खर्च का मामला किसी एक सरकार के दौरान नहीं होता है। केलो परियोजना को ही लीजिए। 17 साल पुरानी इस योजना में अब तक 900 करोड़ रुपये से अधिक फूंके जा चुके हैं। सन् 2007 में छत्तीसगढ़ के दिग्गज नेता स्व. दिलीप सिंह जूदेव के नाम पर इसका भूमिपूजन किया गया था। खर्च होते रहे लेकिन आउटपुट खर्च के मुकाबले आज तक जीरो है। रायगढ़ की धरती से आने वाले वित्त मंत्री ओपी चौधरी को इसका दर्द रहा होगा, इसलिये बजट में करीब 10 साल बाद इसके लिए प्राथमिकता से राशि मंजूर की गई। बस एक जानकारी और दे दें, कि सन् 2014 में चुनाव के ठीक पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने योजना को पूरी बताकर डैम का उद्घाटन कर दिया था। किसी आधी-अधूरी योजना का चुनाव के पहले फीता काटना कोई नई बात नहीं है। इसलिए, पीछे न जाकर उम्मीद रखें कि इस बार यह परियोजना पूरी होगी और रायगढ़ जिले के 167 और सक्ती जिले के 8 गांवों को दशकों से लंबित सिंचाई सुविधा इसी सरकार के कार्यकाल में मिल जाएगी।
चर्चित अफसर निशाने पर
विधानसभा के पहले बजट सत्र में दो बड़े अफसर डीजीपी अशोक जुनेजा, और हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स वी.श्रीनिवास राव विधायकों के निशाने पर रहे। महादेव सट्टा ऐप पर चर्चा के दौरान पूर्व मंत्री राजेश मूणत ने पुलिस अफसरों की सटोरियों से मिलीभगत का आरोप लगा दिया।
वो यहीं नहीं रूके, उन्होंने सट्टेबाजी की सीबीआई अथवा विधायकों की कमेटी से जांच पर जोर देते रहे। मूणत तो यहां तक कह गए, कि पीएचक्यू में बैठे लोग सट्टेबाजी में संलिप्त रहे हैं। ऐसे में जांच कौन करेगा? मूणत के साथ-साथ वैशाली नगर के विधायक रिकेश सेन भी काफी मुखर थे। दोनों ही विधायक आग उगल रहे थे तब अफसर दीर्घा में डीजीपी जुनेजा सिर झुकाए सब कुछ सुन रहे थे।
जुनेजा इसलिए भी निशाने पर रहे हैं कि महादेव ऐप के विज्ञापन अखबारों में छपते रहे, और तब उस समय उन्होंने महकमे को टाइट करने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया। और जब घर घुसकर सट्टे की रकम की वसूली के लिए मारपीट के मामले आने लगे तब कहीं जाकर पुलिस ने दिखावे की थोड़ी-बहुत कार्रवाई की। भाजपा ने विधानसभा चुनाव के बीच में जुनेजा को हटाने के लिए चुनाव आयोग से गुजारिश भी की थी। मगर उनका बाल बांका नहीं हो पाया। ऐसे में उनसे नाराज चल रहे भाजपा के विधायक रह रहकर उन पर निशाना साध रहे हैं।
कुछ इसी तरह का हाल हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स वी.श्रीनिवास राव का भी रहा है। श्रीनिवास राव ने तो साय सरकार के गठन से पहले हसदेव पेड़ कटाई की अनुमति दे दी थी। नेता प्रतिपक्ष डॉ.चरण दास महंत ने श्रीनिवास का नाम लिए बिना उन्हें कटघरे पर लिया। पहले भी राव के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला सुर्खियों में रहा है लेकिन वो भी अपने अपार संपर्कों की वजह से बचते रहे हैं। अब जब सदन में दोनों अफसर निशाने पर हैं, तो सरकार क्या कुछ करती है, यह देखना है।
मुंबई का रुख रायपुर में दिखा था
मुम्बई के कांग्रेस विधायक और रायपुर लोकसभा के प्रभारी बाबा सिद्दीकी ने पार्टी छोड़ी तो कई नेताओं को आश्चर्य नहीं हुआ। सिद्दीकी मुम्बई के बड़े बिल्डर हैं, और उनके हाव-भाव कुछ ऐसे थे कि जिससे लग रहा था कि वो पार्टी छोड़ सकते हैं।
सिद्दीकी एआईसीसी अधिवेशन में शामिल होने पिछले साल रायपुर आए थे और अधिवेशन खत्म होने के एक दिन पहले ही वापस मुंबई निकल गए। और जब मुंबई जाने के लिए रायपुर में फ्लाइट का इंतजार कर रहे थे तब उस समय एयरपोर्ट पर केन्द्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर भी दिल्ली जाने के लिए वीआईपी लाउंज में बैठकर फ्लाइट का इंतजार कर रहे थे।
बताते हैं कि उस वक्त सिद्दीकी ने अपने कुछ परिचित भाजपा नेताओं से चर्चा कर अनुराग ठाकुर से मिलने की इच्छा जताई। ठाकुर तक यह बात पहुंची भी, लेकिन वो जल्दी में थे, इसलिए बाबा सिद्दीकी से नहीं मिल पाए। ठाकुर ने भाजपा नेताओं से कहा बताते हैं कि वो दिल्ली में मुलाकात करेंगे। अब बाबा की अनुराग से मुलाकात हुई या नहीं, यह तो पता नहीं लेकिन हाव भाव से अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर संकेत दे दिया था।
सरकार क्या मॉडल स्कूलों को चला ही नहीं पाती?
सन् 2020 में स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट अंग्रेजी माध्यम स्कूलों की घोषणा तत्कालीन सरकार ने की थी। इन स्कूलों में 8वीं तक नि:शुल्क उसके बाद 12वीं तक मामूली फीस में उत्कृष्ट सुविधाओं के साथ शिक्षा देना लक्ष्य था। प्राइवेट पब्लिक स्कूलों की तरह क्लास रूम, लैब, खेल मैदान आदि का सेटअप आर्थिक रूप से कमजोर माता-पिता और बच्चों को आकर्षित करता है। पिछले साल बोर्ड परीक्षाओं में इसका रिजल्ट भी अच्छा रहा। पिछले साल दसवीं बोर्ड की परीक्षा में 98.83 प्रतिशत नंबर लेकर टॉपर रहे राहुल यादव जशपुर की आत्मानंद स्कूल से ही थे। दसवीं-12वीं की टॉपर लिस्ट में कुल 15 छात्रों ने जगह बनाई थी।
शुरुआत में प्रत्येक जिले में कम से कम एक स्कूल खोली गई। पर इनमें प्रवेश के लिए आवेदनों की बाढ़ आ गई। जितनी सीटें थीं, उससे 8-10 गुना आवेदन आने लगे। तब फिर इनकी संख्या बढ़ती गई। चुनावी साल में तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भेंट-मुलाकात के लिए जहां भी जा रहे थे इन स्कूलों की मांग हो रही थी। स्थिति यह थी कि एक साल के भीतर 400 से अधिक स्कूल खोलने की घोषणा हो गई। यह भी कहा गया कि प्रत्येक स्कूल को स्वामी आत्मानंद की तरह सुविधाएं देने की योजना अगली सरकार बनने के बाद लाई जाएगी।
जनप्रतिनिधियों की मांग पर एक के बाद नई स्कूलों की घोषणा, फिर हिंदी माध्यम स्कूलों का शुरू किया जाना, अंग्रेजी माध्यम कॉलेज भी खोल देना, कुछ ऐसे फैसले थे जिसके चलते इस योजना की विशिष्ट स्थिति कायम नहीं रह पाई। जिला खनिज न्यास कोष (डीएमएफ) से स्कूलों की साज-सज्जा और शिक्षकों की नियुक्ति के लिए राशि आवंटित कराई गई। यह फंड कलेक्टर के पास होता है। इन स्कूलों के संचालन के लिए उन्हीं के नियंत्रण वाली समितियां बना दी गईं। व्यावहारिक रूप से इसका काम खनिज, नगर निगम, खाद्य और शिक्षा विभाग के अधिकारी देखने लगे। फिर शुरू हुई एक के बाद एक भ्रष्टाचार की शिकायतें। स्कूलों में संविदा पर नियुक्ति में गड़बड़ी, उपकरणों की खरीदी, स्कूलों के निर्माण कार्य में गड़बड़ी सब सामने आने लगे। फर्नीचर और लैब कबाड़ हो गए। सरकार बदलने के बाद कई जिलों में इनकी जांच शुरू हो गई है। भाजपा के मुताबिक यह घोटाला 800 करोड़ रुपये का है। इधर, कई स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हो पाई। उत्कृष्ट पढ़ाई की उम्मीद में इस बार भी छात्रों का आधे से ज्यादा सत्र बिना शिक्षकों के बीत चुका है।
यह गौर करना होगा कि इसी तरह के उत्कृष्ट 72 स्कूलों का एक चेन मुख्यमंत्री आदर्श विद्यालय के रूप में डॉ. रमन सिंह के कार्यकाल में शुरू किया गया था। अलग से बजट का प्रावधान कर इन स्कूलों में बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर बनाए गए थे। पर शिक्षा विभाग इन स्कूलों को चला नहीं पाया। बिल्डिंग, फर्नीचर, लैब के साथ करोड़ों रुपयों का सजा-सजाया सेटअप डीएवी पब्लिक स्कूल प्रबंधन को सौंप दिया गया। जाहिर है कि कोई निजी शिक्षण संस्थान घाटे में क्यों किसी स्कूल को चलाएगा। जब तक सरकार के प्रबंधन में थी, फीस सरकारी स्कूलों की तरह थी, पर अब वहां ऐसी स्थिति नहीं है। पिछले दो तीन सत्रों का रिजल्ट देखें तो वह भी अन्य आम स्कूलों की तरह ही हैं।
इधर विधानसभा में आत्मानंद स्कूलों के संबंध में बड़ी घोषणाएं की गई हैं। अब कलेक्टरों की समितियां भंग कर दी जाएंगी और ये स्कूल शिक्षा विभाग के अंतर्गत आ जाएंगे। स्वामी आत्मानंद ज्यादातर पुराने स्थापित स्कूल भवनों में शुरू किए गए थे। इन स्कूलों को उस क्षेत्र के समाजसेवी, स्वतंत्रता सेनानी या दानदाताओं के नाम पर रखा गया था, जो लुप्त हो गया। स्कूलों का नाम बदलने और उनके क्लास रूम पर कब्जा करने के खिलाफ जगह-जगह बच्चों ने आंदोलन भी किया था। इन्हें फिर से पुराना नाम देने की घोषणा की गई है।
अभी यह साफ होना बाकी है कि इन स्कूलों के संचालन के लिए सरकार नियमित बजट में कितनी राशि का प्रावधान करेगी? छत्तीसगढ़ सरकार का विश्व बैंक से साथ भी एक अनुबंध होना है, जिसमें पांच साल तक प्रत्येक वर्ष के लिए 400 करोड़ रुपये की व्यवस्था विशिष्ट शिक्षा के लिए देने की बात है। इधर करीब 5600 शिक्षक संविदा पर भर्ती किए गए हैं। उनका भविष्य क्या होगा? राष्ट्रीय स्तर की कई सर्वे रिपोर्ट इन वर्षों में सामने आ चुकी हैं। इनमें स्कूली शिक्षा के स्तर में छत्तीसगढ़ की स्थिति दयनीय बताई गई है। इसलिये बदलाव की बात तो ठीक है, पर इसके परिणाम बेहतर मिले वह असल चुनौती है।
राज्यसभा के लिए अमित का नाम
राज्यसभा सदस्य सरोज पांडेय का कार्यकाल अप्रैल माह में समाप्त हो रहा है। अगली बार भी यह सीट भाजपा के पास ही रहने वाली है। इन दिनों यह चर्चा जोरों पर है कि पांडेय रिपीट की जाएंगी, या उनकी जगह किसी और को मौका मिलेगा। इनमें से एक चौंकाने वाला नाम भी चल रहा है, अमित जोगी का। इन चर्चाओं का सार यह है कि जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ का विलय भाजपा में इसी महीने हो जाएगा। इसके एवज में अमित जोगी को राज्यसभा की सीट देकर सरोज पांडेय को लोकसभा में उतारा जाएगा।
छत्तीसगढ़ का चुनाव परिणाम आने के बाद से अमित जोगी की भाजपा से करीबी लगातार बढ़ी है। उन्होंने पिछले महीने दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात भी की थी। हाल ही में एक अखबार में उन्होंने भाजपा की प्रशंसा में लेख भी लिखा। यह सब कई लोगों को प्रवेश करने के पहले का माहौल दिखता है। वैसे भी भाजपा नेताओं का बयान आ चुका है कि पार्टी में जो आना चाहते हैं, उनका स्वागत किया जाएगा और स्वागत का सिलसिला शुरू भी हो चुका है।
- 9 फरवरी : आजादी के बाद पहली जनगणना की तैयारी
- नयी दिल्ली, 9 फरवरी। जनगणना हर दस वर्ष में मनाया जाने वाला एक ऐसा राष्ट्रीय उत्सव है, जिसमें देश के हर हिस्से में रहने वाले हर नागरिक को शामिल किया जाता है। देश में 1871 के बाद से हर दसवें बरस जनगणना होती थी। इस लिहाज से 1947 में विभाजन और देश आजाद होने के बाद 1951 में हुई जनगणना कहने को तो अपने आप में नौवीं जनगणना थी, लेकिन यह आजादी के बाद की पहली जनगणना थी और बंटवारे के कारण इसमें बहुत से बदलाव आए। इससे भारत का नक्शा बदलने के साथ ही हिंदु मुस्लिम आबादी का अनुपात भी बदल गया। आजाद भारत की जनगणना के इतिहास में नौ फरवरी का खास महत्व है क्योंकि इसी दिन जनगणना के लिए सूची बनाने का काम शुरू किया गया था।
- देश दुनिया के इतिहास में नौ फरवरी की तारीख पर दर्ज अन्य महत्वपूर्ण घटनाओं का सिलसिलेवार ब्यौरा इस प्रकार है:-
- 1757 : राबर्ट क्लाइव ने अलीनगर संधि के जरिए कलकत्ता (अब कोलकाता) को सिराजुदौला से लेकर ब्रिटिश नियंत्रण वाले इलाके में शामिल कर लिया।
- 1951 : स्वतंत्र भारत में पहली जनगणना के लिये सूची बनाने का कार्य शुरू।
- 1969 : देश के छह राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की कांग्रेस पार्टी का प्रदर्शन बहुत खराब रहा।
- 1971 : अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा द्वारा चांद पर भेजा गया अपोलो 14 अंतरिक्ष यान अपनी कार्य अवधि पूरी कर धरती पर वापस लौटा।
- 1975 : रूसी अंतरिक्ष यान सोयूज 17 अंतरिक्ष में 29 दिन बिताने के बाद धरती पर लौटा।
- 1992 : पर्यटकों को लेकर सेनेगल की राजधानी डकार जा रहा विमान दुर्घटनाग्रस्त। रात के अंधेरे में पायलट ने गंतव्य से कुछ पहले एक होटल के बगीचे में लगी कतारबद्ध लाइटों को विमान तल की हवाई पट्टी समझकर उसपर विमान उतार दिया। विमान में सवार 59 लोगों में से 31 की मौत हो गई।
- 2006 : शिया मुसलमानों के पवित्र दिन ‘‘आशूरा’’ पर पाकिस्तान के हांगू में फिदायीन हमले में 23 लोगों की मौत। बाद में शिया और सुन्नी मुसलमानों में दंगे भड़कने से मरने वालों की तादाद 31 तक पहुंची।
- 2008 : अपना पूरा जीवन कुष्ठ रोगियों के कल्याण पर लगाने वाले बाबा आमटे का निधन।
- 2010 : हैती में आए भीषण भूकंप में मरने वालों की संख्या 2,30,000 होने का आधिकारिक ऐलान किया गया। (भाषा)
यहां भाजपा को मात मिली..
प्रदेश के कई नगरीय निकायों में भी सरकार बदलने के साथ-साथ सत्ता परिवर्तन का सिलसिला चल पड़ा है। जहां ठीक-ठाक बहुमत है, वहां भी कांग्रेस के अध्यक्ष उपाध्यक्ष की कुर्सी खिसक रही है। मगर इस सिलसिले को तोड़ा है गोबरा नवापारा के पार्षदों ने। यहां नगर पालिका अध्यक्ष धनराज मध्यानी के खिलाफ लाया गया अविश्वास प्रस्ताव ध्वस्त हो गया। संभवत राज्य में भाजपा की सरकार बनने के बाद किसी नगरीय निकाय में यह पार्टी की पहली पराजय है। अविश्वास प्रस्ताव पारित न होने के बाद भाजपा नेता एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं। दूसरी तरफ कांग्रेसी इतने उत्साहित दिख रहे हैं कि वे लोकसभा चुनाव में इलाके से बढ़त मिलने का दावा करने लगे हैं।
कलेक्टर पहुंचे पैदल आते छात्रों के पास
सरगुजा जिले के मैनपाट स्थित एकलव्य आवासीय विद्यालय के 400 छात्र अपने टीचर की प्रताडऩा से इतने अधिक त्रस्त हो गए कि उन्होंने कलेक्टर से शिकायत करने की ठानी। मगर कलेक्टर 60 किलोमीटर दूर अंबिकापुर में बैठते हैं। छात्रों के पास कोई साधन नहीं था कि वहां तक पहुंचें। आखिर उन्होंने पूरा रास्ता पैदल नापने का फैसला किया। 400 छात्र कतारबद्ध होकर पैदल सडक़ नापते हुए अंबिकापुर की ओर बढ़ गए। बिना इस बात की परवाह किए कि मुख्यालय पहुंचने में कितना समय लगेगा और रास्ते में कौन सी कठिनाइयां आएंगी। करीब तीन-चार घंटे में उन्होंने आधे से ज्यादा रास्ता तय कर लिया। इस बीच कलेक्टर भोस्कर विलास संदीपन तक इस बारे में खबर पहुंच गई। अपना कार्यक्रम टाल कर वे छात्रों से खुद ही मिलने निकल पड़े। 20 किलोमीटर की दूरी पर पैदल आते छात्रों से उनकी मुलाकात हो गई। छात्रों ने उन्हें ज्ञापन सौंपा और सारी समस्या बताई। छात्रों ने कहा कि उप प्राचार्य गाली गलौच और मारपीट करते हैं। विद्यालय की कुछ दूसरी समस्याएं भी थी। कलेक्टर ने जांच और कार्रवाई का भरोसा देकर छात्रों को बस से वापस भेजा।
इस घटना ने एक बार फिर आदिवासी इलाकों में संचालित आवासीय विद्यालयों की बदहाली की ओर ध्यान खींचा है। यहां निरीक्षण के लिए पहुंचने वाले शिक्षा विभाग के अधिकारी शायद अभी तक खानापूर्ति कर रहे थे। वरना छात्रों ने 60 किलोमीटर पैदल चलने का जोखिम उठाने का फैसला नहीं लेना पड़ता। कई बार ऐसा होता है कि दूर-दूर से जिला मुख्यालय पहुंचने वालों की कलेक्टर से भेंट नहीं हो पाती और निराश लौटते हैं। कलेक्टर संवेदनशील दिखे।
कलेक्टर डॉक्टर के घर पर..
इधर कांकेर के नए कलेक्टर अभिजीत सिंह ने भी सरगुजा कलेक्टर की ही तरह कुछ अलग तेवर दिखाए। सुबह-सुबह भानु प्रतापपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का निरीक्षण करने के लिए निकल गए। अस्पताल से डॉक्टर नदारत। कलेक्टर ने डॉक्टर के घर का पता पूछा और गाड़ी उधर ही घुमा दी। उन्होंने बीएमओ अखिलेश ध्रुव के घर का दरवाजा खटखटाया। बाहर निकलने पर डॉक्टर ध्रुव सामने कलेक्टर को देखकर हड़बड़ा गए। कलेक्टर ने समय पर अस्पताल नहीं पहुंचने का कारण पूछ लिया। डॉक्टर ने बताया कि अस्पताल में कल रात कुछ गंभीर मरीज थे, देर तक रुका था। इस बात की पुष्टि हो गई लेकिन अस्पताल के निरीक्षण के दौरान मरीज को मिलने वाली सुविधा और दवाओं को लेकर शिकायतें मिली। कलेक्टर बरसे और हिदायत देकर वापस लौटे।
इससे पता चलता है कि जिम्मेदार पदों पर बैठे अफसर अपने चैंबर से बाहर निकलें तो व्यवस्था ठीक करने में मदद ही मिलती है।
नेता नहीं कार्यकर्ता का पद चुना...
वैसे राजनीति को जनसेवा ही कहते हैं, मगर यही आर्थिक समृद्धि का भी प्रचलित रास्ता है। यदि गुर हो तो मामूली पद पर बैठा व्यक्ति भी कमाई का अच्छा खासा रास्ता तलाश लेता है, गुर न हो या तिकड़म बिठाने की कोशिश नहीं करे, तो उसे कुछ हासिल नहीं होता। वे पद मिल जाने के बावजूद भविष्य को लेकर चिंतित रहते हैं। कुछ ऐसा ही अनुभव हुआ होगा बतौली की कांग्रेस नेत्री सुगिया मिंज को। बतौली जनपद पंचायत की अध्यक्ष थीं। बड़ा पद है, मगर इस्तीफा दे दिया। उन्होंने पद छोडऩे का कारण मानसिक और पारिवारिक बताया। पर जैसी जानकारी सामने आई है, उनका चयन आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के पद पर हो गया है। उन्होंने यह पद ज्वाइन करना अधिक बेहतर समझा। वैसे आंगनबाड़ी कार्यकर्ता का पद भी बहुत महत्वपूर्ण है। जनपद अध्यक्ष की कुर्सी तो पांच साल बाद चली जाएगी, सदस्य नहीं सधे तो बीच में भी हटना पड़ सकता है, लेकिन आंगनबाड़ी में बच्चों और महिलाओं की देखभाल का मौका उन्हें वर्षों तक मिलेगा।
पिछले साल तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का मानदेय 6500 रुपये से बढ़ाकर 10 हजार रुपये किया था। इधर जनपद अध्यक्षों को भी 10 हजार रुपये ही मानदेय मिलता है। यह भी पहले 6 हजार था, जिसे 2022-23 के बजट में बढ़ाया गया। यह रकम मध्यप्रदेश के मुकाबले आधा है। वहां 19 हजार 500 रुपये मिलते हैं। जनपद अध्यक्षों के पास हर वर्ष 5 लाख रुपये का फंड भी होता है, जिससे वे विकास कार्य करा सकते हैं। पर मानदेय और फंड तभी तक है, जब तक पद है।
यह संयोग ही है कि सुगिया मिंज को पूर्व मंत्री अमरजीत भगत का समर्थक कहा जाता था। आजकल वे और उनके कथित कई करीबी जांच एजेंसियों की छापेमारी में उलझे हैं। एजेंसियों का आरोप है कि उन्होंने खूब संपत्ति बनाई। बतौली में नए जनपद अध्यक्ष का चुनाव निर्विरोध हो गया है। इस पद पर लीलावती पैकरा को मौका मिला है, भाजपा की हैं।
एक्शन में आईपीएस अफसर..
आईपीएस अधिकारियों के तबादले का असर दिखाई देने लगा है। प्रदेश के जिन दो बड़े आपराधिक मामलों की जांच केंद्र की एजेंसियां कर रही हैं-या करने जा रही हैं, उनमें राज्य पुलिस ने भी तेजी दिखाई है।
दुर्ग के आईजी रामगोपाल गर्ग और एसपी जितेंद्र शुक्ला ने महादेव सट्टा एप के सरगना सौरभ चंद्राकर के ठिकाने का सुराग देने पर अलग-अलग इनाम क्रमश: 25 हजार और 10 हजार रुपये की घोषणा कर दी है। महादेव एप पर जांच पड़ताल ईडी भी कर रही है, लेकिन जुआ एक्ट के तहत दुर्ग पुलिस ने भी कुछ एफआईआर दर्ज कर रखी है। एक वायरल वीडियो के आधार पर एजेंसियों ने चंद्राकर का पिछला पता ठिकाना दुबई बताया था, मगर ऐसा माना जा रहा है कि वह भारत में बैठे अपने सहयोगियों के संपर्क में है। इस समय चंद्राकर कहां है, देश में या बाहर यही पुलिस जानना चाहती है। इधर, विधानसभा चुनाव में दूसरे चरण के मतदान के पहले एक वीडियो जारी कर महादेव सट्टा एप का खुद को असली मालिक बताने वाले शुभम् सोनी का भी पता नहीं चला है। ईडी उसकी भी तलाश में है।
एंटी करप्शन ब्यूरो ने भी कल ही सीजी पीएससी भर्ती धांधली मामले में पूर्व चेयरमैन टामन सिंह सोनवानी, पूर्व सचिव सहित अन्य लोगों पर एफआईआर दर्ज कर ली। साय सरकार इस मामले की सीबीआई जांच की घोषणा कर चुकी है। अब तक यह बात सामने नहीं आई है कि सीबीआई ने जांच की हामी भरी या नहीं। मगर, एसीबी की एफआईआर से ऐसा लग रहा है कि सरकार इसकी जांच में ज्यादा देर नहीं करना चाहती। सीबीआई जब केस हाथ में लेगी तो एसीबी के जुटाए साक्ष्य उसके काम आसान कर देंगे। वैसे सीबीआई और एसीबी दोनों ही एजेंसियों की जांच की गति बहुत धीमी रहती है। यह पहले की पीएससी धांधली में भी देखा जा चुका है।
उज्ज्वल मुस्कान के पीछे का बोझ
ब्लैकबोर्ड के सामने विजयी मुद्रा में खड़ी अंबिकापुर के कार्मेल स्कूल की छठवीं की प्रतिभाशाली छात्रा अर्चिषा सिन्हा। इसने सुसाइड नोट लिखकर अपनी जान दे दी। जिस टीचर पर उसने प्रताडऩा का जिक्र किया है, उसे गिरफ्तार कर लिया गया है। जानकारी आई है कि टीचर ने उसके आई कार्ड जब्त कर लिए थे। इस घटना से जुड़े ढेर सारे सवाल हैं। कुछ समय से यह देखा जा रहा है कि उन निजी स्कूलों को बेहतर समझा जाता है, जहां बच्चों पर अनुशासन के नाम पर ज्यादा से ज्यादा कड़ाई की जाती है। होमवर्क न होने पर सजा, जूते साफ न होने पर, अंग्रेजी नहीं बोलने पर। यहां तक की क्लास रूम में हंसी मजाक करने पर भी। यह सजा जुर्माने के रूप में भी हो सकती है, और आई कार्ड जब्त कर लेने जैसी भी। सजा मिलने पर अपराध बोध से पीडि़त बच्चे अभिभावकों के सामने खुलकर बात करने से झिझकते हैं। अर्चिषा के मामले में भी पता चला है कि उसने टीचर से हो रही तकलीफ का अपने दोस्तों से तो जिक्र किया था लेकिन माता-पिता को इस घटना के बारे में पता नहीं था।
हाल के वर्षों में बोर्ड और प्रतियोगी परीक्षाओं में भाग लेने वाले विद्यार्थियों के अवसाद पर चिंता बढ़ी है। पर अंबिकापुर की घटना से तो यह लगता है कि सुसाइड का ख्याल पनपने की उम्र घटती जा रही है। बच्चों की काउंसलिंग तो उसी दिन शुरू कर देनी चाहिए जिस दिन से वे स्कूल जाना शुरू करते हैं।
- 8 फरवरी : दुनिया के पहले इलेक्ट्रानिक शेयर बाजार नासडैक की शुरूआत
- नयी दिल्ली, 8 फरवरी। यदि इतिहास के पन्नों को पलटते हुए आठ फरवरी की तारीख पर जाएं तो पायेंगे कि यही वह दिन है, जब अमेरिका में दुनिया के पहले इलेक्ट्रॉनिक शेयर बाजार नासडैक की शुरूआत हुई। अमेरिका के वॉल स्ट्रीट में करीब पांच दशक से नासडैक वित्तीय बाजार का केन्द्र बना हुआ है।
- नासडैक शुरू होने से पहले शेयर बाजार में निवेश के लिए 'ओवर द काउंटर' तरीका चलता था। इसी इंडेक्स ने उभरती हुई कंपनियों में निवेश के लिए आईपीओ का प्रचलन भी शुरू किया। नासडैक का मकसद ऐसे बाजार का निर्माण था, जहां निवेशक शेयरों को तेज और पारदर्शी तरीके से कंप्यूटर की मदद से खरीद बेच सकें। नासडैक दुनिया भर के लिए शेयरों को इलेक्ट्रॉनिक रूप में खरीदने और बेचने का एक वैश्विक बाजार बना।
- देश दुनिया के इतिहास में आठ फरवरी की तारीख पर दर्ज अन्य महत्वपूर्ण घटनाओं का सिलसिलेवार ब्योरा इस प्रकार है :-
- 1705 : औरंगजेब ने अपना अंतिम सैनिक अभियान चलाया।
- 1785 : वॉरेन हेस्टिंग्स भारत से रवाना।
- 1872: अंडमान में कालापानी की सजा काट रहे शेर अली ने सेल्यूलर जेल में भारत के वायसराय लार्ड मेयो पर हमला करके उनकी हत्या की।
- 1897 : जाकिर हुसैन का आंध्र प्रदेश के हैदराबाद में जन्म। वह देश के तीसरे राष्ट्रपति बने।
- 1941: गजलों को सरल शब्दों और सुरीले संगीत के साथ अपनी मखमली आवाज से सजाने वाले जगजीत सिंह का जन्म।
- 1943: स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस जर्मनी से एक नौका के जरिये जापान रवाना।
- 1971: दुनिया के पहले इलेक्ट्रॉनिक शेयर बाजार नासडैक की शुरुआत। अमेरिका के वॉल स्ट्रीट पर करीब पांच दशकों से नासडैक वित्तीय बाजार का केन्द्र बना हुआ है।
- 1986: दिल्ली हवाई अड्डे पर पहली बार प्रीपेड टैक्सी सेवा शुरु।
- 1994: भारत के महान क्रिकेटर कपिल देव ने टेस्ट मैचों में 432 विकेट लेकर रिचर्ड हेडली का सर्वाधिक विकेट का विश्व रिकार्ड तोड़ा।
- 2005: इजराइल और फ़लस्तीन के बीच संघर्ष विराम पर सहमति।
- 2007 : भूटान नरेश पहली बार भारत यात्रा पर आए
- 2008 : अमेरिका का अंतरिक्ष यान अटलांटिस फ़्लोरिडा के केप केनेवरल से अंतरिक्ष के लिये रवाना ।
- 2009: हज़ारों पूर्व सैनिकों ने सरकार की बेरुखी से क्षुब्ध होकर अपने पदक राष्ट्रपति को लौटाए।
- 2010 : श्रीनगर के पास खिलनमर्ग क्षेत्र में हिमस्खलन होने से सेना के जवान बर्फ़ के नीचे दब गए। 11 सैनिकों की मौत
- 2014 : सऊदी अरब के मदीना शहर में एक होटल में आग लगने से 15 लोगों की मौत, जबकि 130 लोग घायल हुए। (भाषा)
रमन सिंह तुरंत ही रम गए
पन्द्रह साल सीएम रहने के बाद डॉ. रमन सिंह नई भूमिका में भी प्रभावी दिख रहे हैं। स्पीकर के रूप में पहली बार सदन का संचालन कर रहे रमन सिंह पहले दिन ही अपनी अलग छाप छोड़ी है। वो बेहतरीन माने जाने वाले तीन स्पीकर दिवंगत राजेन्द्र प्रसाद शुक्ला, प्रेमप्रकाश पांडेय, और डॉ.चरणदास महंत से कमतर नहीं दिख रहे हैं।
रमन सिंह स्पाईन से जुड़ी तकलीफों की वजह से वाकर के सहारे सदन में पहुंचते हैं। लेकिन आसंदी संभालते ही उनका अंदाज बदला नजर आया। लग नहीं रहा था कि वो किसी शारीरिक तकलीफ से गुजर रहे हैं। बतौर सीएम डॉ. रमन सिंह 15 साल तक विपक्ष के सवालों का जवाब देते रहे हैं। मगर अब दोनों के बीच संतुलन बनाकर सवालों का जवाब लेते नजर आए। कुल मिलाकर सदन के संचालन में उनका अनुभव काम आता दिख रहा है।
गज़़ब का तोहफ़ा, खुश कर गया
विधानसभा में इस बार 50 नए विधायक चुनकर आए हैं। और ये सभी लाइमलाइट में आने कुछ न कुछ नया कर रहे हैं । ऐसी ही एक विधायक ने कल किया। मैडम ने नए पुराने विधायकों को उनके नाम वाली डायरी, पेन ड्राइव और मोबाइल चार्जर, पॉवर बैंक भेंट स्वरूप दिया। मैडम का ड्राइवर, पीएसओ इन्हें एक-एक कर विधायकों को ससम्मान भेंट कर रहे थे।
इन तोहफों से भरी गाड़ी विधानसभा परिसर में चर्चा में रही। हर किसी की नजर सहसा उस पर जाती रही। वैसे विधायकों को हर वर्ष बजट पारित होने के बाद सत्रांत में सौजन्य भेंट देने की शुरूआत जोगी कार्यकाल से हुई थी । बाद के शासन काल में इसे सार्वजनिक रूप से देने की परंपरा बंद कर निवास भेजा जाने लगा। इतना ही नहीं इस गोपनीय तरीके की वजह से सौजन्य भेंट की साइज,भी बढ़ती रही। कई बारगी तो वनोपज का हैम्पर भी दिया जाने लगा। लेकिन किसी विधायक द्वारा स्वयं के व्यय पर सत्र के प्रारंभ में ही भेंट पहली बार देखने को मिला।
खानापूरी की बैठक
भारत सरकार की कृषि लागत एवं मूल्य आयोग के अध्यक्ष ,सचिव कल रायपुर में थे। उनका यह दौरा फाइव स्टार सुविधाओं के साथ निपट गया। यही आयोग धान- गेंहू, दलहन तिलहन गन्ने जैसे जिन्सों या एममएसपी तय करता है। कहा गया कि आयोग नई दरें तय करने से पहले कुछ राज्यों का दौरा कर किसानों और कृषि विशेषग्यों से राय मशविरा करता है। कल भी किया लेकिन बंद कमरे में कुछ बड़े किसानों, सूटबूट वाले अफसरों से बात कर इतिश्री कर ली। इनमें दो करोड़ देकर पद पर बैठे एक शिक्षा विद भी रहे। न तो ये खेतों तक गए, न किसानी के जानकार चंद्रशेखर साहू, धनेंद्र साहू और न ही कृषि मंत्री रामविचार नेताम से मिले,चर्चा की। ऐसे में समझा जा सकता है कि नई दरें उत्तर भारत की खेती किसानी और दिल्ली के मंत्री अफसरों के कहने पर ही तय कर ली जाएगी। छोटे राज्यों के किसानों की डिमांड से कोई लेना देना नहीं बस वे सप्लाई करते जाएंगे।
आईएएस पर भारी प्रोफेसर
स्कूल शिक्षा विभाग में इन दिनों एक ही चर्चा है कि कॉलेज का एक प्रोफेसर आईएएस से बड़ा कैसे हो गया। यह प्रोफेसर डेढ़ दशक से माशिमं में पहले उप सचिव और फिर सचिव बन कर पदस्थ है । नई सरकार ने अब अध्यक्ष के साथ साथ सचिव भी आईएएस को बना दिया है। अफसर ने माशिमं जाकर अपनी ज्वाइनिंग भी दे दी है। लेकिन प्रोफेसर ने अब तक अपनी कुर्सी नहीं छोड़ी है। नए सचिव की लाचारी देखिए कि प्रोफेसर पदभार क्यों नहीं दे रहे इसका कारण उन्हीं से पूछने कह रही हैं। प्रोफेसर, नियमों के हर लिहाज से प्रतिनियुक्ति खत्म कर कॉलेज लौटने फिट हैं। लेकिन वे आईएएस पर ही भारी पड़ रहे हैं?। अब चूंकि माशिमं अध्यक्ष स्वयं आईएएस एसोसिएशन के अध्यक्ष भी हैं इसलिए वे ही कुछ कर सकते हैं।
अब राजधानी में निजात अभियान
आईएएस तबादला सूची की तरह आईपीएस अफसरों की भी एक बड़ी सूची निकली है। राजधानी में पदस्थ किए गए संतोष सिंह इस समय बिलासपुर जिले की जिम्मेदारी संभाल रहे थे। कुछ दिन पहले ही उन्हें वरिष्ठता श्रेणी प्रदान की गई थी और अब वे एसपी की जगह एसएसपी कहलाने लगे। जिस दिन तबादला आदेश जारी हुआ, पुलिस बिलासपुर में निजात अभियान के एक साल का जश्न मना रही थी। निजात एक ऐसा अभियान है, जिसमें न केवल नशे का अवैध कारोबार करने वालों पर कार्रवाई होती है बल्कि नशे से बाहर निकालने के लिए काउंसलिंग भी कराई जाती है। अनेक शोधों और आंकड़ों से यह स्थापित है कि हत्या, लूट, चाकूबाजी, प्रताडऩा जैसे अपराध नशे की वजह से पनपते हैं। बिलासपुर पुलिस ने पिछले फरवरी से लेकर इस जनवरी तक लगभग हर माह आंकड़े जारी करके बताया कि निजात अभियान के दौरान आपराधिक घटनाओं में किस तरह से कमी देखी गई। आम लोगों ने इस मुहिम को सराहा ।कई संस्थाएं और नागरिक खुद से इसमें जुड़े। गणतंत्र दिवस के मौके पर उसकी झांकी को पहला पुरस्कार भी मिला। कोरबा और बिलासपुर के मुकाबले रायपुर बहुत फैला हुआ क्षेत्र है। राजधानी में कानून व्यवस्था और वीआईपी मूवमेंट की अलग व्यस्तता होती है, फिर भी मुमकिन है कि अब यहां भी निजात अभियान चलाया जाए।
दिक्कत यह है कि किसी पुलिस कप्तान का तबादला हो जाने के बाद पुराने जिले में अभियान की निरंतरता नहीं रह जाती। कुछ पुलिस अफसरों ने अपने रहते जिस जिले में नशे के खिलाफ, यातायात सुधारने अथवा युवाओं के लिए कोचिंग जैसे काम किए, पर उनके जाने के बाद पदस्थ नए अधिकारी ने उसमें रूचि नहीं ली, बल्कि अपनी पसंद का कोई और कैंपेन शुरू कर दिया।
कोयले में गड़बड़ी, बहुत बड़ी
हाल ही में कोरबा से कोयला मामले में 6 की गिरफ्तारी हुई। इन दिनों कोयला से जुड़े अपराध की बात हो तो सिर्फ पिछली सरकार के दौरान हुई लेवी वसूली और उसमें फंसे अफसरों और कारोबारियों की ओर लोगों का ध्यान जाता है। मगर, लेवी वसूली तो इस उद्योग में होने वाली गड़बड़ी का एक मामूली सा ही हिस्सा है। खदानों की भारी-भरकम मशीनों से रोजाना डीजल टंकियों में पार हो जाती हैं। कोयला लोड ट्रेनों से चोरी का पूरा संगठित गिरोह है। अभी मानिकपुर इलाके से कोरबा पुलिस ने 6 लोगों को गिरफ्तार किया, वह मामला तो नायाब है। यहां साइडिंग के बगल में ही एक अवैध साइडिंग चल रही थी। ओवरलोड कोयला खदान से निकलता रहा और अतिरिक्त माल अवैध साइडिंग में डंप होता रहा। इस कोयले की लोडिंग अनलोडिंग करने वाली डेढ़ करोड़ की महंगी मशीन भी पुलिस ने जब्त की है। अवैध साइडिंग एसईसीएल के अफसरों और केंद्रीय सुरक्षाबलों की निगरानी के बीच चलता रहा। एसईसीएल के पास अपना एक भारी-भरकम विजिलेंस विभाग भी है। अतिरिक्त कोयले का हिसाब एसईसीएल को रखना चाहिए, पर वह तो इसे अपना कोयला मानने के लिए भी तैयार नहीं हो रहा है।
रेलवे की दरियादिली
पिछले साल की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि रेलवे में 2 लाख 50 हजार से अधिक पद खाली हैं। इनमें से 2.48 लाख पद तो ग्रुप सी के हैं, जिसमें आम तौर पर 12वीं या ग्रेजुएट पास युवाओं को मौका मिल सकता है। चर्चा यह भी चल रही थी कि इन पदों को रेलवे भरने के मूड में नहीं है। लोको पायलट कब से आवाज उठा रहे हैं कि ट्रेनों की संख्या बढ़ रही है लेकिन उनके खाली होते पदों पर नई नियुक्तियां नहीं की जा रही है। ज्यादा काम लेने के विरोध में वे आंदोलन भी करते रहते हैं। अब रेल मंत्रालय ने संभवत: पहली बार ‘भर्ती कैलेंडर’ जारी किया है। इसके पहले याद नहीं पड़ता कि इस तरह का कोई कैलेंडर रेलवे ने निकाला हो। इसके मुताबिक फरवरी में सहायक लोको पायलट की, अप्रैल से जून तक तकनीशियन की, जुलाई से सितंबर के दौरान गैर तकनीकी वर्ग, स्नातक स्तरीय 4, 5, 6 तथा गैर तकनीकी वर्ग, स्नातक स्तरीय 2 और 3 जूनियर इंजीनियर तथा पैरा मेडिकल केटेगरी के पद तथा अक्टूबर से दिसंबर के दौरान लेवल एक तथा कार्यालयीन तथा अन्य वर्ग के उम्मीदवारों कि भर्ती होगी।
सवाल उठ रहा है कि एकाएक रेलवे को पूरे साल भर की जाने वाली भर्तियों की घोषणा करने की जरूरत क्यों पड़ी। इसका एक जवाब समझ में यही आ रहा है कि लोकसभा चुनाव नजदीक है। अलग-अलग वर्ग की रेलवे भर्ती परीक्षाओं की तैयारी करके बैठे या कर रहे लाखों युवाओं को आश्वस्त करने के लिए ऐसा करना पड़ा। इस कैलेंडर के मुताबिक सिर्फ सहायक लोको पायलट की भर्ती प्रक्रिया चुनाव से पहले होने जा रही है। बाकी भर्तियों पर फैसला अगली सरकार लेगी। कितने पदों की भर्ती होगी, प्रक्रिया क्या होगी, आदि ब्यौरा अभी नहीं दिया गया है।