राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : दिल्ली से घर वापिसी
10-Feb-2024 3:53 PM
 राजपथ-जनपथ : दिल्ली से घर वापिसी

दिल्ली से घर वापिसी 

रमन सरकार के तीसरे और भूपेश सरकार के पिछले कार्यकालों में एक ऐसा दौर था कि राज्य के अफसर खासकर आईएएस सेंट्रल डेपुटेशन पर जाने लगे थे। कुछ को सरकार में अफसरों की कमी बताकर रोकती रहीं। फिर भी बीते वर्षों में सेंट्रल डेपुटेशन में छत्तीसगढ़ का कोटा पैक हो गया। और अब वापस हो रहे,या कराए जा रहे। क्या प्रदेश में ब्यूरोक्रेसी के अच्छे दिन लौट रहे हैं। इन्हीं चर्चाओं के बीच केंद्र सरकार ने आईएएस सोनमणि बोरा प्रतिनियुक्ति से वापसी के आदेश जारी कर दिए हैं। 1999 बैच के अफसर बोरा  प्रमुख सचिव स्तर के अफसर है। केंद्र से रिलीव होने के बाद नियमानुसार वें लंबी छुट्टी का लाभ लेते हैं या ज्वाइन करेंगे यह देखना होगा। इससे पहले इस माह के शुरू में केंद्र ने एसीएस स्तर की अफसर रिचा शर्मा को भी छत्तीसगढ़ के लिए रिलीव कर दिया है। उन्होंने भी अभी ज्वाइन नहीं किया है। समझा जा रहा है कि दोनों ही बजट सत्र के बाद महानदी भवन में ज्वाइन करेंगे। दोनों ही अफसर कांग्रेस शासन काल में केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर चले गए थे। उससे पहले बघेल सरकार बोरा को कम महत्व के  विभाग का प्रभार देती रही है। और प्रतिनियुक्ति के लिए भी उन्हें काफी मशक्कत करनी पड़ी थी। अब राज्य में बदली परिस्थिति में बोरा को अच्छे अवसर मिलने के संकेत हैं। समझा जा रहा है कि उन्हें राजस्व विभाग में भू प्रबंधन से संबंधित जिम्मेदारी दी जा सकती है।

उमेश पटेल का इंतजाम कमजोर ?

कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा  ओडिशा से होते हुए छत्तीसगढ़ पहुंची, तो रायगढ़ जिले के रेंगालपाली में पहला पड़ाव था। मगर यात्रा का स्वागत फीका रहा। जबकि रायगढ़ इलाके में राहुल के जोरदार स्वागत की रणनीति बनाई गई थी, और पूर्व मंत्री उमेश पटेल को जिम्मेदारी दी गई थी। सुनते हैं कि प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट ने उमेश पटेल पर जमकर नाराजगी जताई है। 

बाद में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज, और उमेश पटेल ने अपना गुस्सा जिले और ब्लॉक के पदाधिकारियों पर निकाला। पहले रेंगालपाली में हजारों लोगों के जुटने की उम्मीद जताई जा रही थी। लेकिन राहुल पहुंचे, तो हजार लोग भी नहीं थे। दो दिन के ब्रेक के बाद यात्रा 11 तारीख से फिर आगे बढ़ेगी। इसमें पर्याप्त संख्या में लोग मौजूद रहे, इस दिशा में कोशिश चल रही है। देखना है आगे क्या होता है। 

ओपी के तेवरों की चर्चा  

पहली बार विधायक, और मंत्री बने अरुण साव, विजय शर्मा व वित्त मंत्री ओपी चौधरी का विधानसभा में अब तक का प्रदर्शन बेहतर रहा है। साव और विजय शर्मा तो सवालों से घिरे रहे, लेकिन उन्होंने अपने जवाब से सदस्यों को निरुत्तर कर दिया। स्वास्थ्य मंत्री श्यामलाल जायसवाल भी ठीक ठाक नजर आए। 

दूसरी तरफ, वित्त मंत्री ओपी चौधरी ने बजट भाषण में पिछली सरकार पर हमला करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। बजट भाषण में उनके तेवर देखकर सत्तापक्ष के सदस्य भी खामोश रह गए। उन्होंने यहां तक कह दिया कि छत्तीसगढ़ के विकास को ग्रहण लग गया था। भ्रष्ट और स्वार्थपरक ताकतों ने छत्तीसगढ़ को दबोचकर रख दिया था। लेकिन लोकतंत्र की ताकत ने इन नकारात्मक शक्तियों को पराजित कर दिया। कुल मिलाकर चौधरी के तेवर की खूब चर्चा रही।

हेलमेट जब आदत बन जाए

कुछ दिन पहले दुर्ग जिला प्रशासन और पुलिस ने दोपहिया वाहन चालकों के लिए हेलमेट पहनना अनिवार्य कर दिया। अनिवार्य तो पहले से है, पर नहीं पहनने वालों पर कार्रवाई नहीं हो रही थी। अब जगह-जगह चेकिंग की जा रही है, विशेषकर रायपुर हाईवे पर। नियम नहीं मानने पर जुर्माना लग रहा है। इस अभियान का असर दिखाई दे रहा है। इस चेकिंग प्वाइंट पर कार्रवाई के लिए पुलिस तैनात हैं लेकिन अधिकांश बाइक सवार हेलमेट पहने हुए मिले। जिला पुलिस का तो दावा है कि 80 प्रतिशत दोपहिया चालक अब हेलमेट पहन रहे हैं। हो सकता है कि ऐसा कार्रवाई के डर से हो। जब पुलिस की अपील के बिना खुद की हिफाजत के खयाल से लोग हेलमेट को अपनी आदत बना लें, तो मुहिम सफल होगी।  

डीएमएफ रकम किसने बहाई..

कोविड काल के दौरान शिक्षा विभाग में हुई बिना टेंडर खरीदी और आत्मानंद स्कूलों के उन्नयन के नाम पर भारी भरकम रकम खर्च कर देने का मामला विधानसभा में उठा। स्कूल शिक्षा मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने चार जिला शिक्षा अधिकारियों को निलंबित करने की घोषणा की। आशाराम नेताम जैसे कुछ विधायकों ने सवाल उठाया कि क्या डीईओ को पॉवर था कि इतनी रकम खर्च कर डालते। फिर बताया गया कि जिलों के कलेक्टर के निर्देश पर हुई। नेताम का सवाल था कि फिर कलेक्टरों पर कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है? एक मामला कांकेर जिले का था जहां समग्र शिक्षा और डीएमएफ से 5 करोड़ 36 लाख रुपये खर्च कर दिए गए। मंत्री ने स्पीकर के सुझाव पर अगले सत्र में श्वेत पत्र प्रस्तुत करने की बात कही है।

सारी बातें तो जांच से साफ हो जाएगी, लेकिन शिक्षा विभाग के कुछ अधिकारी बता रहे हैं कि बिना टेंडर खरीदी के अलावा जैम के जरिये की गई खरीदी में भी इसी तरह की गड़बड़ी की गई। जिला प्रमुख के रूप में कलेक्टर ने आदेश दिया तो स्वाभाविक रूप से उनके ऊपर कार्रवाई की मांग हो रही है, मगर खेल इससे बड़ा था। गहराई से जांच यदि हुई तो यह भी सामने आएगा कि किसी जिले में किस मंत्री का प्रभार था, उनके किस करीबी को सप्लाई का काम मिला। जानकारी के मुताबिक विभाग के मंत्री के बंगले से भी दबाव आता था। कलेक्टरों के पास फोन आते रहे, आर्डर निकलते रहे।

सन् 2018 में जब कांग्रेस की सरकार आई तो डीएमएफ की जिला समितियों के अध्यक्ष जिलों के प्रभारी मंत्री बना दिये गए थे। तब केंद्र ने आपत्ति की। यह कहा कि इससे राशि के वितरण में राजनीति और भ्रष्टाचार की गुंजाइश बढ़ जाएगी। कलेक्टर को समिति का अध्यक्ष बनाने का निर्देश आया। मगर, इसके बाद भी दुरुपयोग नहीं रुका। कांग्रेस शासनकाल के दौरान कोरबा में हुई खरीदी की पोल खुद तत्कालीन मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने खोली थी। अब सरकार बदलने के बाद तो अन्य जिलों से भी ऐसी खबरें बाहर आ रही हैं।

केलो का उद्घाटन तो हो चुका..

सरकारी रकम का लापरवाही से खर्च का मामला किसी एक सरकार के दौरान नहीं होता है। केलो परियोजना को ही लीजिए। 17 साल पुरानी इस योजना में अब तक 900 करोड़ रुपये से अधिक फूंके जा चुके हैं। सन् 2007 में छत्तीसगढ़ के दिग्गज नेता स्व. दिलीप सिंह जूदेव के नाम पर इसका भूमिपूजन किया गया था। खर्च होते रहे लेकिन आउटपुट खर्च के मुकाबले आज तक जीरो है। रायगढ़ की धरती से आने वाले वित्त मंत्री ओपी चौधरी को इसका दर्द रहा होगा, इसलिये बजट में करीब 10 साल बाद इसके लिए प्राथमिकता से राशि मंजूर की गई। बस एक जानकारी और दे दें, कि सन् 2014 में चुनाव के ठीक पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने योजना को पूरी बताकर डैम का उद्घाटन कर दिया था। किसी आधी-अधूरी योजना का चुनाव के पहले फीता काटना कोई नई बात नहीं है। इसलिए, पीछे न जाकर उम्मीद रखें कि इस बार यह परियोजना पूरी होगी और रायगढ़ जिले के 167 और सक्ती जिले के 8 गांवों को दशकों से लंबित सिंचाई सुविधा इसी सरकार के कार्यकाल में मिल जाएगी।

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