राजपथ - जनपथ
यहां भाजपा को मात मिली..
प्रदेश के कई नगरीय निकायों में भी सरकार बदलने के साथ-साथ सत्ता परिवर्तन का सिलसिला चल पड़ा है। जहां ठीक-ठाक बहुमत है, वहां भी कांग्रेस के अध्यक्ष उपाध्यक्ष की कुर्सी खिसक रही है। मगर इस सिलसिले को तोड़ा है गोबरा नवापारा के पार्षदों ने। यहां नगर पालिका अध्यक्ष धनराज मध्यानी के खिलाफ लाया गया अविश्वास प्रस्ताव ध्वस्त हो गया। संभवत राज्य में भाजपा की सरकार बनने के बाद किसी नगरीय निकाय में यह पार्टी की पहली पराजय है। अविश्वास प्रस्ताव पारित न होने के बाद भाजपा नेता एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं। दूसरी तरफ कांग्रेसी इतने उत्साहित दिख रहे हैं कि वे लोकसभा चुनाव में इलाके से बढ़त मिलने का दावा करने लगे हैं।
कलेक्टर पहुंचे पैदल आते छात्रों के पास
सरगुजा जिले के मैनपाट स्थित एकलव्य आवासीय विद्यालय के 400 छात्र अपने टीचर की प्रताडऩा से इतने अधिक त्रस्त हो गए कि उन्होंने कलेक्टर से शिकायत करने की ठानी। मगर कलेक्टर 60 किलोमीटर दूर अंबिकापुर में बैठते हैं। छात्रों के पास कोई साधन नहीं था कि वहां तक पहुंचें। आखिर उन्होंने पूरा रास्ता पैदल नापने का फैसला किया। 400 छात्र कतारबद्ध होकर पैदल सडक़ नापते हुए अंबिकापुर की ओर बढ़ गए। बिना इस बात की परवाह किए कि मुख्यालय पहुंचने में कितना समय लगेगा और रास्ते में कौन सी कठिनाइयां आएंगी। करीब तीन-चार घंटे में उन्होंने आधे से ज्यादा रास्ता तय कर लिया। इस बीच कलेक्टर भोस्कर विलास संदीपन तक इस बारे में खबर पहुंच गई। अपना कार्यक्रम टाल कर वे छात्रों से खुद ही मिलने निकल पड़े। 20 किलोमीटर की दूरी पर पैदल आते छात्रों से उनकी मुलाकात हो गई। छात्रों ने उन्हें ज्ञापन सौंपा और सारी समस्या बताई। छात्रों ने कहा कि उप प्राचार्य गाली गलौच और मारपीट करते हैं। विद्यालय की कुछ दूसरी समस्याएं भी थी। कलेक्टर ने जांच और कार्रवाई का भरोसा देकर छात्रों को बस से वापस भेजा।
इस घटना ने एक बार फिर आदिवासी इलाकों में संचालित आवासीय विद्यालयों की बदहाली की ओर ध्यान खींचा है। यहां निरीक्षण के लिए पहुंचने वाले शिक्षा विभाग के अधिकारी शायद अभी तक खानापूर्ति कर रहे थे। वरना छात्रों ने 60 किलोमीटर पैदल चलने का जोखिम उठाने का फैसला नहीं लेना पड़ता। कई बार ऐसा होता है कि दूर-दूर से जिला मुख्यालय पहुंचने वालों की कलेक्टर से भेंट नहीं हो पाती और निराश लौटते हैं। कलेक्टर संवेदनशील दिखे।
कलेक्टर डॉक्टर के घर पर..
इधर कांकेर के नए कलेक्टर अभिजीत सिंह ने भी सरगुजा कलेक्टर की ही तरह कुछ अलग तेवर दिखाए। सुबह-सुबह भानु प्रतापपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का निरीक्षण करने के लिए निकल गए। अस्पताल से डॉक्टर नदारत। कलेक्टर ने डॉक्टर के घर का पता पूछा और गाड़ी उधर ही घुमा दी। उन्होंने बीएमओ अखिलेश ध्रुव के घर का दरवाजा खटखटाया। बाहर निकलने पर डॉक्टर ध्रुव सामने कलेक्टर को देखकर हड़बड़ा गए। कलेक्टर ने समय पर अस्पताल नहीं पहुंचने का कारण पूछ लिया। डॉक्टर ने बताया कि अस्पताल में कल रात कुछ गंभीर मरीज थे, देर तक रुका था। इस बात की पुष्टि हो गई लेकिन अस्पताल के निरीक्षण के दौरान मरीज को मिलने वाली सुविधा और दवाओं को लेकर शिकायतें मिली। कलेक्टर बरसे और हिदायत देकर वापस लौटे।
इससे पता चलता है कि जिम्मेदार पदों पर बैठे अफसर अपने चैंबर से बाहर निकलें तो व्यवस्था ठीक करने में मदद ही मिलती है।
नेता नहीं कार्यकर्ता का पद चुना...
वैसे राजनीति को जनसेवा ही कहते हैं, मगर यही आर्थिक समृद्धि का भी प्रचलित रास्ता है। यदि गुर हो तो मामूली पद पर बैठा व्यक्ति भी कमाई का अच्छा खासा रास्ता तलाश लेता है, गुर न हो या तिकड़म बिठाने की कोशिश नहीं करे, तो उसे कुछ हासिल नहीं होता। वे पद मिल जाने के बावजूद भविष्य को लेकर चिंतित रहते हैं। कुछ ऐसा ही अनुभव हुआ होगा बतौली की कांग्रेस नेत्री सुगिया मिंज को। बतौली जनपद पंचायत की अध्यक्ष थीं। बड़ा पद है, मगर इस्तीफा दे दिया। उन्होंने पद छोडऩे का कारण मानसिक और पारिवारिक बताया। पर जैसी जानकारी सामने आई है, उनका चयन आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के पद पर हो गया है। उन्होंने यह पद ज्वाइन करना अधिक बेहतर समझा। वैसे आंगनबाड़ी कार्यकर्ता का पद भी बहुत महत्वपूर्ण है। जनपद अध्यक्ष की कुर्सी तो पांच साल बाद चली जाएगी, सदस्य नहीं सधे तो बीच में भी हटना पड़ सकता है, लेकिन आंगनबाड़ी में बच्चों और महिलाओं की देखभाल का मौका उन्हें वर्षों तक मिलेगा।
पिछले साल तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का मानदेय 6500 रुपये से बढ़ाकर 10 हजार रुपये किया था। इधर जनपद अध्यक्षों को भी 10 हजार रुपये ही मानदेय मिलता है। यह भी पहले 6 हजार था, जिसे 2022-23 के बजट में बढ़ाया गया। यह रकम मध्यप्रदेश के मुकाबले आधा है। वहां 19 हजार 500 रुपये मिलते हैं। जनपद अध्यक्षों के पास हर वर्ष 5 लाख रुपये का फंड भी होता है, जिससे वे विकास कार्य करा सकते हैं। पर मानदेय और फंड तभी तक है, जब तक पद है।
यह संयोग ही है कि सुगिया मिंज को पूर्व मंत्री अमरजीत भगत का समर्थक कहा जाता था। आजकल वे और उनके कथित कई करीबी जांच एजेंसियों की छापेमारी में उलझे हैं। एजेंसियों का आरोप है कि उन्होंने खूब संपत्ति बनाई। बतौली में नए जनपद अध्यक्ष का चुनाव निर्विरोध हो गया है। इस पद पर लीलावती पैकरा को मौका मिला है, भाजपा की हैं।
एक्शन में आईपीएस अफसर..
आईपीएस अधिकारियों के तबादले का असर दिखाई देने लगा है। प्रदेश के जिन दो बड़े आपराधिक मामलों की जांच केंद्र की एजेंसियां कर रही हैं-या करने जा रही हैं, उनमें राज्य पुलिस ने भी तेजी दिखाई है।
दुर्ग के आईजी रामगोपाल गर्ग और एसपी जितेंद्र शुक्ला ने महादेव सट्टा एप के सरगना सौरभ चंद्राकर के ठिकाने का सुराग देने पर अलग-अलग इनाम क्रमश: 25 हजार और 10 हजार रुपये की घोषणा कर दी है। महादेव एप पर जांच पड़ताल ईडी भी कर रही है, लेकिन जुआ एक्ट के तहत दुर्ग पुलिस ने भी कुछ एफआईआर दर्ज कर रखी है। एक वायरल वीडियो के आधार पर एजेंसियों ने चंद्राकर का पिछला पता ठिकाना दुबई बताया था, मगर ऐसा माना जा रहा है कि वह भारत में बैठे अपने सहयोगियों के संपर्क में है। इस समय चंद्राकर कहां है, देश में या बाहर यही पुलिस जानना चाहती है। इधर, विधानसभा चुनाव में दूसरे चरण के मतदान के पहले एक वीडियो जारी कर महादेव सट्टा एप का खुद को असली मालिक बताने वाले शुभम् सोनी का भी पता नहीं चला है। ईडी उसकी भी तलाश में है।
एंटी करप्शन ब्यूरो ने भी कल ही सीजी पीएससी भर्ती धांधली मामले में पूर्व चेयरमैन टामन सिंह सोनवानी, पूर्व सचिव सहित अन्य लोगों पर एफआईआर दर्ज कर ली। साय सरकार इस मामले की सीबीआई जांच की घोषणा कर चुकी है। अब तक यह बात सामने नहीं आई है कि सीबीआई ने जांच की हामी भरी या नहीं। मगर, एसीबी की एफआईआर से ऐसा लग रहा है कि सरकार इसकी जांच में ज्यादा देर नहीं करना चाहती। सीबीआई जब केस हाथ में लेगी तो एसीबी के जुटाए साक्ष्य उसके काम आसान कर देंगे। वैसे सीबीआई और एसीबी दोनों ही एजेंसियों की जांच की गति बहुत धीमी रहती है। यह पहले की पीएससी धांधली में भी देखा जा चुका है।
उज्ज्वल मुस्कान के पीछे का बोझ
ब्लैकबोर्ड के सामने विजयी मुद्रा में खड़ी अंबिकापुर के कार्मेल स्कूल की छठवीं की प्रतिभाशाली छात्रा अर्चिषा सिन्हा। इसने सुसाइड नोट लिखकर अपनी जान दे दी। जिस टीचर पर उसने प्रताडऩा का जिक्र किया है, उसे गिरफ्तार कर लिया गया है। जानकारी आई है कि टीचर ने उसके आई कार्ड जब्त कर लिए थे। इस घटना से जुड़े ढेर सारे सवाल हैं। कुछ समय से यह देखा जा रहा है कि उन निजी स्कूलों को बेहतर समझा जाता है, जहां बच्चों पर अनुशासन के नाम पर ज्यादा से ज्यादा कड़ाई की जाती है। होमवर्क न होने पर सजा, जूते साफ न होने पर, अंग्रेजी नहीं बोलने पर। यहां तक की क्लास रूम में हंसी मजाक करने पर भी। यह सजा जुर्माने के रूप में भी हो सकती है, और आई कार्ड जब्त कर लेने जैसी भी। सजा मिलने पर अपराध बोध से पीडि़त बच्चे अभिभावकों के सामने खुलकर बात करने से झिझकते हैं। अर्चिषा के मामले में भी पता चला है कि उसने टीचर से हो रही तकलीफ का अपने दोस्तों से तो जिक्र किया था लेकिन माता-पिता को इस घटना के बारे में पता नहीं था।
हाल के वर्षों में बोर्ड और प्रतियोगी परीक्षाओं में भाग लेने वाले विद्यार्थियों के अवसाद पर चिंता बढ़ी है। पर अंबिकापुर की घटना से तो यह लगता है कि सुसाइड का ख्याल पनपने की उम्र घटती जा रही है। बच्चों की काउंसलिंग तो उसी दिन शुरू कर देनी चाहिए जिस दिन से वे स्कूल जाना शुरू करते हैं।