राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : रमन सिंह तुरंत ही रम गए
07-Feb-2024 4:56 PM
राजपथ-जनपथ : रमन सिंह तुरंत ही रम गए

रमन सिंह तुरंत ही रम गए  

पन्द्रह साल सीएम रहने के बाद डॉ. रमन सिंह नई भूमिका में भी प्रभावी दिख रहे हैं। स्पीकर के रूप में पहली बार सदन का संचालन कर रहे रमन सिंह पहले दिन ही अपनी अलग छाप छोड़ी है। वो बेहतरीन माने जाने वाले तीन स्पीकर दिवंगत राजेन्द्र प्रसाद शुक्ला, प्रेमप्रकाश पांडेय, और डॉ.चरणदास महंत से कमतर नहीं दिख रहे हैं।

रमन सिंह स्पाईन से जुड़ी तकलीफों की वजह से वाकर के सहारे सदन में पहुंचते हैं। लेकिन आसंदी संभालते ही उनका अंदाज  बदला नजर आया। लग नहीं रहा था कि वो किसी शारीरिक तकलीफ से गुजर रहे हैं। बतौर सीएम डॉ. रमन सिंह 15 साल तक विपक्ष के सवालों का जवाब देते रहे हैं। मगर अब दोनों के बीच संतुलन बनाकर सवालों का जवाब लेते नजर आए। कुल मिलाकर सदन के संचालन में उनका अनुभव काम आता दिख रहा है। 

गज़़ब का तोहफ़ा, खुश कर गया 

विधानसभा में इस बार 50 नए विधायक चुनकर आए हैं।  और ये सभी लाइमलाइट में आने कुछ न कुछ नया कर रहे हैं । ऐसी ही एक विधायक ने कल किया। मैडम ने नए पुराने विधायकों को उनके नाम वाली डायरी, पेन ड्राइव और मोबाइल चार्जर, पॉवर बैंक भेंट स्वरूप दिया। मैडम का ड्राइवर, पीएसओ इन्हें एक-एक कर विधायकों को ससम्मान भेंट कर रहे थे।
इन तोहफों से भरी गाड़ी विधानसभा परिसर में चर्चा में रही। हर किसी की नजर सहसा उस पर जाती रही। वैसे विधायकों को हर वर्ष बजट पारित होने के बाद सत्रांत में  सौजन्य भेंट  देने की शुरूआत जोगी कार्यकाल से हुई थी । बाद के शासन काल में इसे सार्वजनिक रूप से देने की परंपरा बंद कर निवास भेजा जाने लगा। इतना ही नहीं इस गोपनीय तरीके की वजह से सौजन्य भेंट की साइज,भी बढ़ती रही। कई बारगी तो वनोपज का हैम्पर भी दिया जाने लगा। लेकिन किसी विधायक द्वारा स्वयं के व्यय पर सत्र के प्रारंभ में ही भेंट पहली बार देखने को मिला।

खानापूरी की बैठक 

भारत सरकार की कृषि लागत एवं मूल्य आयोग के अध्यक्ष ,सचिव कल रायपुर में थे। उनका यह दौरा फाइव स्टार सुविधाओं के साथ निपट गया। यही आयोग धान- गेंहू, दलहन तिलहन गन्ने जैसे जिन्सों या एममएसपी तय करता है। कहा गया कि आयोग नई दरें तय करने से पहले कुछ राज्यों का दौरा कर किसानों और कृषि विशेषग्यों से राय मशविरा करता है। कल भी किया लेकिन बंद कमरे में कुछ बड़े किसानों, सूटबूट वाले अफसरों से बात कर इतिश्री कर ली। इनमें दो करोड़ देकर पद पर बैठे  एक शिक्षा विद भी रहे। न तो ये खेतों तक गए, न किसानी के जानकार चंद्रशेखर साहू, धनेंद्र साहू और न ही  कृषि मंत्री रामविचार नेताम से मिले,चर्चा की। ऐसे में समझा जा सकता है कि नई दरें उत्तर भारत की खेती किसानी और दिल्ली के मंत्री अफसरों के कहने पर ही तय कर ली जाएगी। छोटे राज्यों के किसानों की डिमांड से कोई लेना देना नहीं बस वे सप्लाई करते जाएंगे।

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