राजपथ - जनपथ
400 नामांकन दाखिल होंगे तब..?
लोकसभा चुनाव में भाजपा को तगड़ी टक्कर देने के इरादे से कांग्रेस ने कई कद्दावर नेताओं को उनकी अनिच्छा जाहिर करने के बावजूद मैदान में उतार दिया है। इनमें छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह शामिल हैं। दिग्विजय सिंह पिछली बार भोपाल से लड़े थे और साध्वी प्रज्ञा से बड़े अंतर से हार गए थे। इस बार अपने इलाके राजगढ़ से खड़े हैं, जिस पर अभी भाजपा का कब्जा है।
बघेल, दिग्विजय सिंह सहित पूरी कांग्रेस ईवीएम से चुनाव कराने के खिलाफ है। राहुल गांधी इन दिनों कह रहे हैं कि राजा की आत्मा ईवीएम में कैद है। दूसरी ओर, भाजपा ईवीएम के पक्ष में डटकर खड़ी है। वह कहती है कि जिन राज्यों में कांग्रेस चुनाव जीत जाती है, वहां पर वह सवाल नहीं उठाती। सुप्रीम कोर्ट ने अभी एक याचिका पर सुनवाई करते हुए चुनाव आयोग से जवाब मांगा है। याचिका में मांग की है कि वीवी पैट से निकलने वाली सभी पर्चियों का ईवीएम की गिनती से मिलान किया जाए। अदालत क्या फैसला देगी, कब देगी, यह अभी नहीं मालूम। आसार तो यही दिख रहे हैं कि इस लोकसभा चुनाव के बीच में कोई प्रक्रिया बदली गई तो व्यवधान खड़ा होगा। नए सिरे से कोई तैयारी की गई तो चुनाव की तारीखों को भी आगे बढ़ाना पड़ सकता है। चुनाव आयोग के दो सदस्यों की नियुक्ति के मामले में शीर्ष कोर्ट ने इसी वजह से तत्काल कोई फैसला देने से इंकार कर दिया था।
विधानसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में बहुमत सुनिश्चित करने के उद्देश्य से भाजपा ने कई केंद्रीय मंत्रियों, सांसदों और बड़े कद के दूसरे नेताओं को विधानसभा में उतारा था। इन्होंने भाजपा का मकसद पूरा करने में बड़ी मदद की। अब कांग्रेस से उतारे गए बघेल और दिग्विजय सिंह तरह के नेताओं के सामने भी खुद को साबित करने की चुनौती है। इसके लिए उन्हें रास्ता दिखाई दे रहा है कि चुनाव बैलेट पेपर से हो जाए। पिछले सप्ताह पाटन की सभा में बघेल ने कहा कि इस बार हम लोकसभा चुनाव ईवीएम से नहीं होने देना चाहते, इसे हैक किया जा सकता है। बैलेट पेपर से चुनाव हुए तो भाजपा की असलियत सामने आ जाएगी। उन्होंने आह्वान किया कि कार्यकर्ता सभी लोकसभा सीटों से 375 से अधिक नामांकन दाखिल करें और नाम वापस भी न लें। ऐसा किया तो चुनाव आयोग बैलेट पेपर से चुनाव कराने को मजबूर हो जाएगा और कांग्रेस सभी जगहों से जीत दर्ज करेगी।
अब लगभग यही बात दिग्विजय सिंह ने राजगढ़ में वहां के कार्यकर्ताओं के बीच कही है। उन्होंने कहा कि हम प्रयास कर रहे हैं कि राजगढ़ से 400 लोग नामांकन दाखिल करें और सभी लड़ें ताकि चुनाव बैलेट पेपर से ही हो।
जानकारों के मुताबिक एक मतदान केंद्र में अधिकतम 24 ईवीएम मशीनें एक दूसरे से जोड़ी जा सकती हैं। ईवीएम की एक यूनिट में नोटा सहित 16 नाम दर्ज किये जा सकते हैं। इस तरह 383 उम्मीदवार और एक नोटा। लेकिन अंदाजा लगाएं कि एक साथ किसी सीट पर 400 उम्मीदवारों ने नामांकन दाखिल कर दिया तो उनकी जांच में ही कितने लोग और कितना वक्त लग जाएगा। कितनी मशीनें लगेंगी, उनका परिवहन कैसे होगा, बूथ में जगह कितनी लगेगी? कितने कर्मचारियों की जरूरत और पानी, बिजली, आवास की जरूरत पड़ेगी। एक मतदाता को अपनी पसंद के उम्मीदवार का नाम, चिन्ह, ढूंढने में कितना वक्त लगेगा? स्ट्रांग रूम के लिए कितने बड़े जगह की जरूरत होगी, गिनती में कितने लोग लगेंगे? चुनाव शायद 7 की जगह 70 चरणों में हो, और महीनों चले। इन सब की कल्पना भयावह है।
ईवीएम के खिलाफ शिकायतों और आंदोलनों के बाद कांग्रेस ने जो यह रणनीति अपनाई है, उसे अलोकतांत्रिक तो कह नहीं सकते। किसी को चुनाव लडऩे से नहीं रोका जा सकता। बस, प्रस्ताव समर्थक चाहिए और 20 हजार रुपये नामांकन पत्र खरीदने के लिए।
मगर, पहले चरण में नामांकन के दौरान बस्तर में आह्वान का असर देखा नहीं गया। दूसरे चरण में राजनांदगांव के लिए नामांकन होने जा रहा है। राजगढ़ में तीसरे चरण में नामांकन होगा। शायद आह्वान इस बार धरातल पर न उतरे। इस लोकसभा चुनाव के नतीजे यदि अप्रत्याशित आ जाएंगे तो जरूर संभावना बनती है कि या तो ईवीएम में सबके लिए स्वीकार्य फीचर जोड़ें, या फिर बैलेट पेपर की ओर ही लौटें।
भैंसालोटन होली
होली का समापन रंग पंचमी के दिन हो जाता है। तब तक यदि रंग गुलाल खत्म हो जाए तो? फिर ऐसे खेली जाती है। इसे हम छत्तीसगढिय़ा लोग भैंसालोटन होली कहते हैं। कोरबा जिले के सुदूर गढक़टरा गांव में स्कूल के बच्चों ने रविवार को मिट्टी में लोट-लोट कर होली खेली।
भय हुआ तो प्रीत भी हो गई
कहावत है कि भय बिन होत न प्रीत...। एक कॉलेज प्रोफेसर अपने मेडिकल बिल के भुगतान के लिए काफी परेशान थे। संचालनालय में फाईल धूल खाते पड़ी रही और जब प्रोफेसर ने धूल को झाडऩे की कोशिशें की, तो एक के बाद एक आपत्ति लगना शुरू हो गया।
प्रोफेसर भी नियम कानून के जानकार हैं। इन पर कई किताबें लिख चुके हैं। उन्होंने विभाग के उच्चाधिकारी का काला चि_ा निकाला और लोक आयोग में शिकायत के लिए अनुमति मांगी। प्रोफेसर का पत्र संचालनालय पहुंचा तो अफसरों में खलबली मच गई। फिर क्या था आनन-फानन में प्रोफेसर का मेडिकल बिल क्लीयर कर मामले को रफा-दफा किया गया।
विश्वविद्यालय परमात्मानंद
विश्वविद्यालयों में परीक्षा का सीजन चल रहा है। सरकार ने कुशाभाऊ ठाकरे और बिलासपुर विश्वविद्यालय में कुलसचिव की नियुक्ति की प्रक्रिया चुनाव आचार संहिता की वजह से अटक गई है। विभागीय मंत्री ने नाम प्रस्तावित कर आदेश जारी करने के लिए भेज भी दिया था।
चर्चा है कि विभाग के कुछ अफसर दोनों नाम को लेकर सहमत नहीं थे इस वजह से प्रक्रिया में विलंब हो गया और फिर आचार संहिता लग गई। मंत्री जी खुद चुनाव लड़ रहे हैं इसलिए फाइलों पर ज्यादा ध्यान नहीं है। हाल यह है कि दोनों जगह प्रभारी के भरोसे विश्वविद्यालय का प्रशासन चल रहा है।