राजपथ - जनपथ
कुलपति की रूचि
कुलाधिपति और शासन विश्वविद्यालयों में कुलपतियों को गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा व्यवस्था पर जोर देने कह रहे हैं। इसके लिए नवाचार अपनाने कहा गया है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति भी यही कहती है। इसके लिए कुलपतियों को विश्वविद्यालयों में पूंजीगत व्यय यानी निर्माण कार्यों से दूर रहने कहा गया है क्योंकि यह अनुभव रहा है कि बीते वर्षों में कुलपतियों ने निर्माणी ठेकों पर ज्यादा रूचि दिखाया न कि बच्चों के भविष्य निर्माण पर। इसके बावजूद यह बदस्तूर जारी है।
राजधानी से सवा सौ किमी दूरस्थ इस विश्वविद्यालय की कुलपति की बात कर रहे हैं। मैडम ने बिना वर्क आर्डर के शासन से डेढ़ करोड़ से अधिक रुपए हासिल कर लिए। इस रकम से न तो क्लास रूम बनना है, न तबला,ढोलक, मृदंग वायलिन बांसुरी खरीदना है। जो इस ऐतिहासिक विश्वविद्यालय के लिए ज्यादा जरूरी है। लेकिन इस पैसे से विश्वविद्यालय में फाइव स्टार डुप्लेक्स रेस्ट हाउस बनाना हैं। सही है जब मेहमान आएंगे तो उन्हें बेहतरीन लॉजिंग बोर्डिंग तो देनी होगी न। अब देखना यह है कि कुलपति शिलान्यास से लोकार्पण तक बनी रहती हैं या भूमिपूजन के बाद बदलाव होता है। वैसे भी कांग्रेस शासन काल में नियुक्त मैडम अपनी कुर्सी को लेकर नियम अधिनियम में उलझीं हुई हैं। वैसे भी कार्यकाल अगले वर्ष खत्म होने को है। उसके बाद इनकी कुर्सी पर एक पूर्व कुलपति की दूर लखनऊ से नजऱ है।
विपक्ष को नक्सली समर्थन?
हाल ही में नक्सलियों ने एक प्रेस नोट जारी कर केंद्र की भाजपा सरकार की नीतियों और केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई का विरोध किया। उन्होंने झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी की भर्त्सना की। कहा कि ईडी और एनआईए जैसी एजेंसियों का दुरुपयोग कर रही है। साथ ही, राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा हिंदू वोटों को लूटने के लिए तथा महतारी वंदन योजना महिला वोटरों को लुभाने के लिए लाया गया है। चुनाव के ठीक पहले सीएए लागू किया गया है ताकि हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण किया जा सके। इन सब कारणों का जिक्र करते हुए नक्सलियों ने लोगों से चुनाव बहिष्कार की अपील की है। उनका दावा है कि इस साल दुनिया के 70 देशों में विपक्ष ने चुनावों का बहिष्कार किया है।
माओवादियों को चुनाव की प्रक्रिया में विश्वास नहीं है। इसके बावजूद इसी प्रक्रिया से चुनी गई सरकारों के फैसले का वे विरोध कर रहे हैं। ऐसे में इस पर्चे के कई मायने हो सकते हैं। नक्सली हर चुनाव में चुनाव बहिष्कार का आह्वान करते हैं। पर किसी भी चुनाव में इस अपील ने व्यापक असर नहीं डाला। बल्कि बस्तर में तो हर चुनाव के बाद मतदान का प्रतिशत बढ़ते जाने का आंकड़ा सामने आ रहा है। ऐसे में उन मुद्दों का नाम लेकर जिनका संबंध केंद्र और राज्य की वर्तमान सरकारों से है, बहिष्कार की अपील का मतलब? बीते एक डेढ़ साल के भीतर करीब एक दर्जन राजनीतिक कार्यकर्ताओं को नक्सलियों ने मार डाला। इनमें ज्यादातर भाजपा से जुड़े जनप्रतिनिधि थे। पर इनमें प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस के भी लोग रहे हैं। झीरम घाटी में नक्सलियों ने कांग्रेस नेतृत्व की एक पूरी पीढ़ी को खत्म कर दिया था। तब केंद्र में यूपीए की सरकार थी। नक्सली संगठन हर बार सत्ता के खिलाफ असंतोष को उभारकर मतदाताओं को चुनाव बहिष्कार की ओर मोडऩा चाहते हैं। ताजा प्रेस रिलीज की वजह भी यही दिख रही है।
क्योंकि चुनाव चल रहा है..
चुनाव आचार संहिता लागू होने के बाद कई विभागों में अफसरों की मौज हो जाती है। वे हर काम को चुनाव का बहाना बताकर टालने लगते हैं। यहां तक जनप्रतिनिधि फोन करें तो कहते हैं चुनाव ड्यूटी में लगे हुए हैं। यह तस्वीर ग्वालियर की है, जहां पार्षद देवेंद्र राठौर को गटर में उतरना पड़ा है। पिछले 20 दिन से वे नगर-निगम के अधिकारियों को बताकर थक गए थे कि सीवर जाम होने के कारण पानी सडक़ पर आ रहा है। लोग बदबू और कीचड़ से परेशान हैं, बीमारी फैल रही है। पर सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी का पार्षद होने के बावजूद उनकी कोई सुनवाई नहीं हो रही थी। वे खुद ही सफाई में लग गए। उनका कहना है कि वार्ड के लोगों ने मुझे चुना है, उनकी समस्याओं को दूर करना मेरी जिम्मेदारी है। क्या हमें अपने आसपास ऐसे समर्पित पार्षद दिखते हैं?
चुनाव तक बुलडोजर शांत
राजधानी रायपुर सहित कोरबा, बिलासपुर, भिलाई-दुर्ग, जगदलपुर में प्रदेश में सरकार बदलने के बाद अतिक्रमण के खिलाफ अभियान तेजी से चला। यह केवल सडक़, फुटपाथ और झोपडिय़ों पर ही नहीं, बल्कि अवैध रूप से प्लाटिंग कर जमीन, मकान बनाने बेचने वालों पर भी चला। आचार संहिता लागू होने के बाद यह कार्रवाई चलती रही। होली के पहले इन शहरों में कई कब्जे हटाये गए। यदि किसी ने गैरकानून तरीके से प्लाटिंग की है, मकान, दुकान बना लिए या बेचने में लगा हो तो उस पर आचार संहिता का रोड़ा तो है नहीं, फिर भी अब अचानक यह कार्रवाई रुक सी गई है। ऐसा लगता है कि अतिक्रमण करने वालों को अब जून महीने तक मोहलत दे दी गई है। देखना यह है कि अफसरों की व्यस्तता का फायदा उठाकर लोग नई प्लाटिंग न करने लगें।
बाजार की भाषा
बाजार किस तरह लोगों के सामने गलत जानकारी रखकर सामान बेचता है इसकी एक मिसााल चमड़े के बैग बेचने वाली एक कंपनी की वेबसाईट है। इस पर चमड़े के एक बैग को प्री-हिस्टॉरिक यानी प्रागैतिहासिक बताया गया है। प्रागैतिहासिक का मतलब ईसा के 12सौ बरस से पहले से लेकर ढाई लाख बरस पहले तक का वक्त माना जाता है, जो कि कहीं इतिहास में दर्ज नहीं है। अब बढिय़ा बक्कल लगा हुआ यह बैग प्रागैतिहासिक बताकर बेचा जा रहा है।