राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : जेल से बाहर क्या निकलेगा?
01-Apr-2024 4:24 PM
राजपथ-जनपथ : जेल से बाहर क्या निकलेगा?

जेल से बाहर क्या निकलेगा?

शराब, कोयला और महादेव सट्टा एप में करोड़ों की रिश्वत, मनी लॉन्ड्रिंग और हवाला कारोबार पर एसीबी ने जांच आगे बढ़ा दी है। केंद्रीय जेल रायपुर में बंद आरोपियों से वह लगातार पूछताछ कर रही है। इस बीच अधिकारिक रूप से कुछ भी नहीं बताया गया है कि पूछताछ में आरोपी क्या उगल रहे हैं। पर न्यूज पोर्टल और सोशल मीडिया पर एक से एक खुलासे रोजाना हो रहे हैं। दावा किया जा रहा है कि किसी अधिकारी ने सब कुछ उगल दिया है। कुछ सरकारी गवाह बनना चाहते हैं। पोर्टल की खबरों के अनुसार कुछ जानकारी तो जांच अधिकारियों ने ऐसी भी जुटा ली है, जो अत्यंत निजी तथा संवेदनशील किस्म के हैं। ऐसा दावा करने वाली खबरों में यह भी नहीं बताया जा रहा है कि किसी अधिकारी ने या सूत्र ने उनको सूचना मुहैया कराई है। खबरें पुष्ट बिल्कुल नहीं है, मगर इन न्यूज पोर्टल्स की पहुंच वाट्स एप के जरिये लाखों लोगों तक है। इन खबरों में यह भी दावा किया गया है कि जैसे ईडी ने मतदान के एक दो दिन पहले एक सनसनीखेज विज्ञप्ति जारी की थी, इस बार भी वैसा कुछ हो सकता है।

महाराज की चिंता बढ़ी

चर्चा है कि सरगुजा में भाजपा प्रत्याशी चिंतामणि महाराज को अपनी ही पार्टी के कुछ नेताओं से अपेक्षित सहयोग नहीं मिल पा रहा है। टिकट के दावेदार पूर्व सांसद कमलभान सिंह, विजयनाथ सिंह, और अन्य नेता पूरी तरह सक्रिय नहीं दिख रहे हैं।

सरगुजा की पूर्व सांसद रेणुका सिंह ज्यादा समय अपने विधानसभा क्षेत्र भरतपुर-सोनहत में दे रही हैं, जो कि कोरबा संसदीय क्षेत्र में आता है। रेणुका सिंह, दो बार प्रेमनगर से विधायक रही हैं। उनका प्रेम नगर और आसपास के इलाके में अच्छा प्रभाव है। मगर चिंतामणि महाराज के साथ अब तक उनकी रूबरू मुलाकात नहीं हो पाई है।  हालांकि तमाम अंतर विरोधों के बावजूद चिंतामणि महाराज मजबूत स्थिति में दिख रहे हैं। वजह यह है कि कांग्रेस प्रत्याशी शशि सिंह के लिए पूर्व डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव अभी तक जुट नहीं पाए हैं।

सिंहदेव के 7 तारीख को अंबिकापुर पहुंचने की उम्मीद जताई जा रही है। इसके बाद ही प्रचार की रणनीति बनेगी। जिले के एक और बड़े नेता पूर्व मंत्री अमरजीत भगत भी ज्यादा सक्रिय नहीं है। वो ईडी-आईटी की जांच के घेरे में हैं, और इस वजह से अपना दमखम नहीं दिखा पा रहे हैं।

किसानों को अब फायदा कैसे?

लोकसभा चुनाव के दरमियान भाजपा सरकार ने मतदाताओं को नाखुश करने की आशंका वाले दो साहसिक फैसले लिए हैं। एक तो शराब की कीमत 10 रुपये से लेकर 300 रुपये तक बढ़ा दी गई है, दूसरा जमीन के भाव में मिल रही 30 प्रतिशत की छूट समाप्त हो गई है। महंगी शराब पर दाम 100 बढ़े या 500 रुपये, खरीदने वालों पर इसका फर्क नहीं पड़ता। पर जो लोग ज्यादा खर्च नहीं कर पाते उन लोगों का देशी पौव्वा भी महंगा कर दिया गया है, उन पर असर पड़ेगा।

मगर, यहां दूसरा मुद्दा कलेक्टर गाइडलाइन की दरों में रजिस्ट्री के वक्त मिलने वाली 30 प्रतिशत को छूट को समाप्त करने का है। 31 मार्च तक जो छूट थी, उसमें जमीन की कीमत में कोई बदलाव नहीं था। छूट की गणना स्टाम्प खरीदते समय की जाती थी। यदि किसी किसान जमीन की कीमत कलेक्टर गाइडलाइन में 10 लाख रुपये थी तो कीमत तो वही दर्ज होती थी, 30 प्रतिशत की छूट स्टाम्प पेपर की खरीदी के दौरान मिल रही थी। यानि 30 प्रतिशत कम का खर्च रजिस्ट्री में आ रहा था। वित्त मंत्री ओपी चौधरी ने छूट समाप्त करने के फैसले का बचाव करते हुए कहा है कि किसानों को नुकसान हो रहा था। उन्हें जमीन का दाम अब ठीक मिलेगा।

इस बयान को समझने में दिक्कत हो सकती है, क्योंकि इस फैसले किसानों के जमीन की कीमत नहीं बढ़ रही है, बढ़ा है तो रजिस्ट्री का खर्च। 10 लाख की जमीन तो अब भी वही है, 13 लाख नहीं। यह जरूर है कि रियल एस्टेट सेक्टर वाले 30 प्रतिशत छूट का कुछ फायदा ग्राहकों को भी दे देते थे। अब गुंजाइश कम है। मकान, फ्लैट आदि खरीदने पर खर्च बढ़ जाएगा। वैसे इस बार जमीन की दरों में कोई बढ़ोतरी नहीं कर सरकार ने राहत दी है। पहले की भाजपा सरकार के दौरान प्राय: हर साल नए दर घोषित हो जाते थे। इस बार भी बढऩे का अंदाजा लगा रहे लोगों की रजिस्ट्री ऑफिस में मार्च के आखिरी सप्ताह में भीड़ उमड़ी ही थी।

एटीआर की जर्जर सडक़

अचानकमार अभ्यारण की कोटा से केंवची को जोडऩे वाली सडक़ आम लोगों के लिए कई सालों से बंद है। पहले वन विभाग के बैरियर में कुछ शर्तों के साथ शुल्क देकर डेढ़ घंटे के भीतर जंगल को पार करने की छूट थी। इस सडक़ की मरम्मत यह नहीं कराई जाती थी, यह कहकर कि इससे लोगों का आना-जाना, शुल्क रखने के बावजूद बढ़ जाएगा। मगर पिछले दो साल से यह नियम भी समाप्त कर दिया गया है। शुल्क देकर भी लोग भीतर नहीं जा सकते। मगर, बुकिंग कर पहुंचने वाले पर्यटकों और भीतर बसे गांवों के आदिवासियों को इस सडक़ में सफर का बुरा अनुभव झेलना पड़ रहा है, जो छत्तीसगढ़ के शायद किसी दूसरे अभयारण्य में नहीं है। अच्छी सडक़ पर चलना वन विभाग की बदौलत उनकी किस्मत में भी नहीं है। ([email protected])

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