राजनीति
बेंगलुरु, 11 मई। कर्नाटक में विधानसभा चुनाव में ज्यादातर एक्जिट पोल में कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बीच कड़ी टक्कर का अनुमान जताए जाने के बीच नतीजों को लेकर दोनों दलों के नेताओं की धड़कने तेज गई हैं जबकि जनता दल (सेक्युलर) त्रिशंकु जनादेश की उम्मीद कर रहा है ताकि वह सरकार गठन में अहम भूमिका निभा सके।
हालांकि, मतदान बाद आए अधिकांश सर्वेक्षणों में सत्तारूढ़ भाजपा पर कांग्रेस को बढ़त दिखाई गई है और राज्य में त्रिशंकु विधानसभा की संभावना जताई गई है।
राज्य की 224 सदस्यीय विधानसभा के लिए मतों की गिनती 13 मई को होगी।
राजनीतिक नेताओं को कई सप्ताह के प्रचार और बुधवार को हुए मतदान के बाद आखिरकार बृहस्पतिवार को कुछ आराम करने का मौका मिला।
दोनों राष्ट्रीय दलों के सूत्रों ने कहा कि उन्हें अपनी पार्टी के आसानी से जीतने का भरोसा है, लेकिन एग्जिट पोल ने निश्चित रूप से उन्हें एक हद तक चिंतित कर दिया है।
उन्होंने कहा कि कोई नहीं चाहता कि इस बार भी 2018 जैसी स्थिति सामने आए।
त्रिशंकु जनादेश की स्थिति में जद (एस) महत्वपूर्ण कारक होगा और 2018 की तरह वह ‘किंग’ या ‘किंगमेकर’ के रूप में उभर सकता है।
सूत्रों ने बताया कि खंडित जनादेश की स्थिति में गठबंधन सरकार के गठन की कुंजी रखने वाले पार्टी जद (एस) के नेता एच डी कुमारस्वामी स्वास्थ्य जांच के लिए सिंगापुर रवाना हो गए हैं और मतगणना के दिन वापस आ जाएंगे।
जद (एस) नेता को चुनाव प्रचार के दौरान थकावट और कमजोरी के कारण अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
जद (एस) के एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘‘निश्चित तौर पर त्रिशंकु जनादेश का परिदृश्य है और जद (एस) की सक्रिय भूमिका के साथ गठबंधन सरकार की प्रबल संभावना है। परिणामों को औपचारिक रूप से सामने आने दें। उसके बाद चीजें सामने आएंगी कि कौन क्या भूमिका निभाएगा।’’
साल 2018 के पिछले विधानसभा चुनावों में भाजपा 104 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी। इसके बाद कांग्रेस 80 सीटें और जद (एस) 37 सीटें जीतकर क्रमश: दूसरे और तीसरे स्थान पर रहीं। एक निर्दलीय सदस्य भी था, जबकि बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और कर्नाटक प्रज्ञावंत जनता पार्टी (केपीजेपी) के एक-एक सदस्य निर्वाचित हुए थे।
तब किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने और कांग्रेस तथा जद (एस) के गठबंधन करने की कोशिश के बीच सबसे बड़ी पार्टी भाजपा ने सरकार बनाने का दावा पेश किया और वरिष्ठ नेता बी एस येदियुरप्पा के नेतृत्व में सरकार बनी
हालांकि, विश्वास मत से पहले तीन दिनों के भीतर ही उनकी सरकार गिर गई। क्योंकि येदियुरप्पा आवश्यक संख्या नहीं जुटा सके थे।
इसके बाद, कांग्रेस-जद (एस) गठबंधन ने सरकार बनाई और कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बने। लेकिन 14 महीनों के भीतर ही यह सरकार भी गिर गई। क्योंकि 17 विधायकों ने इस्तीफा दे दिया और वे सत्तारूढ़ गठबंधन से बाहर आ गए। बाद में सभी भाजपा में शामिल हो गए और पार्टी की सत्ता में वापसी में मदद की।
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव और कर्नाटक के प्रभारी रणदीप सिंह सुरजेवाला ने बृहस्पतिवार को कांग्रेस विधायक दल के नेता सिद्धरमैया से यहां उनके आवास पर मुलाकात की और चर्चा की।
मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई एग्जिट पोल को खारिज करते हुए भाजपा की आसान जीत को लेकर आश्वस्त दिखे।
उन्होंने कहा, ‘‘पिछली बार कर्नाटक चुनाव के दौरान एग्जिट पोल में कांग्रेस को 107 और भाजपा को 80 सीटें मिलने का अनुमान जताया गया था, लेकिन वास्तव में यह उल्टा था। भाजपा को 104 और कांग्रेस को 80 सीटें मिली थीं। एग्जिट पोल के बारे में ऐसे कई उदाहरण हैं और यह एक बार फिर दोहराया जाएगा।’’
यह पूछे जाने पर कि क्या पार्टी 150 सीटें जीतने के अपने लक्ष्य को हासिल करेगी, बोम्मई ने कहा कि मोदी का प्रचार अभियान भाजपा के लिए एक बड़ा कारगर था और इसका युवाओं और महिला मतदाताओं के बीच व्यापक प्रभाव पड़ा।
उन्होंने कहा, ‘‘मैंने 150 नहीं कहा है, मैं कहता रहा हूं कि भाजपा को पूर्ण बहुमत मिलेगा और हमें यह मिलेगा।’’
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डी के शिवकुमार ने भी विश्वास जताया कि कांग्रेस 141 सीटें जीतेगी और पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाएगी। उन्होंने त्रिशंकु विधानसभा की संभावना से इनकार किया।
कनकपुरा विधानसभा क्षेत्र में अपने मतदाताओं को धन्यवाद देते हुए शिवकुमार ने कहा कि उन्होंने जो ताकत दी है, वह सिर्फ उनके लिए नहीं है, यह राज्य के लोगों के लिए है।
उन्होंने कहा, ‘‘यहां हर घर के लोग उम्मीदवार थे और उन्होंने चुनाव लड़ा।’’ (भाषा)
सुनील को सुनें : कर्नाटक एक्जिट पोल से सुप्रीम कोर्ट तक यह कैसी लहर!
कर्नाटक मतदान पूरा होते ही जो एक्जिट पोल आए, उनमें से तकरीबन तमाम सत्तारूढ़ भाजपा की पुख्ता हार बता रहे हैं, और कांग्रेस को सबसे आगे दिखा रहे हैं। आधे पोल कांग्रेस को अकेले सरकार बनाते दिखा रहे हैं। यह तो कल शाम की बात हुई, आज दोपहर तक सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने दो फैसले दिए जो केन्द्र सरकार और भाजपा को सदमा देने वाले हैं। एलजी के साथ लड़ाई में अदालत ने केजरीवाल के हक में फैसला दिया है, और महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की सरकार हटाने या गिराने में राज्यपाल और विधानसभाध्यक्ष दोनों के फैसले संविधान से परे बताए हैं। 18 घंटों में निराश करने वाली तीन इतनी बड़ी खबरें आई हैं कि वे मोदी-शाह के लिए आत्ममंथन का मौका लाई हैं। इस अखबार ‘छत्तीसगढ़’ के संपादक सुनील कुमार को न्यूजरूम से सुनें।
तिरुवनंतपुरम, 9 मई | केरल राज्य सचिवालय में मंगलवार सुबह मामूली आग लग गई। उद्योग मंत्री पी. राजीव के अतिरिक्त निजी सचिव विनोद के कार्यालय में लगी आग पर 15 मिनट के भीतर काबू पा लिया गया।
जिलाधिकारी व पुलिस के आला अधिकारी मौके पर पहुंचे। शार्ट सर्किट को आग लगने कारण बताया गया है।
हालांकि, कुछ लोगों के अनुसार, आग लगाई गई है।आग ऐसे समय में लगी है जब कथित एआई कैमरा घोटाले को लेकर कांग्रेस मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन और पी. राजीव पर हमलावर है।
राज्य के सार्वजनिक क्षेत्र केल्ट्रोन द्वारा इस मुद्दे को संभालने के तरीके पर विपक्ष सवाल उठा रहा है, जिस पर उनका आरोप है कि यह लगभग 100 करोड़ रुपये है।
संयोग से, केल्ट्रोन के कार्यालय में आयकर अधिकारियों के निरीक्षण के एक दिन बाद आग लग गई, जो परिवहन विभाग के लिए एआई कैमरे स्थापित करने की परियोजना में कार्यान्वयन एजेंसी थी।
हालांकि पुलिस ने आज सुबह की घटना पर मामला दर्ज कर लिया है।
सानू वी. जॉर्ज
तिरुवनंतपुरम, 2 अप्रैल| आगामी लोकसभा चुनाव भले ही अभी कई महीने दूर हैं, लेकिन अगर आंकड़ों का विश्लेषण करें तो फिलहाल यह कहा जा सकता है कि केरल भाजपा इकाई राज्य में पारंपरिक राजनीतिक मोचरें के लिए हर तरीके से तैयार है।
राज्य में 20 लोकसभा सीटें हैं और 2019 के संसदीय चुनावों में, केरल भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए ने 19 सीटों पर तीसरा स्थान हासिल किया और केवल 15.64 प्रतिशत वोट हासिल किए, जबकि कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ ने 19 सीटें जीतीं और 47.48 प्रतिशत वोट हासिल किया। तत्कालीन सत्तारूढ़ माकपा के नेतृत्व वाले वाम को 36.29 फीसदी वोट और सिर्फ एक सीट मिली।
एक और संकेतक आंकड़ा है कि भाजपा के लिए दरार डालना एक कठिन कार्य हो सकता है। 2019 के लोकसभा चुनावों में 140 विधानसभा क्षेत्रों में, भाजपा केवल एक सीट पर आगे रही और सात सीटों पर दूसरे स्थान पर रही।
संयोग से केरल में भाजपा 2021 में अपनी एकमात्र सीट बरकरार रखने में असमर्थ रही, जिसे उसने 2016 के विधानसभा चुनावों में पार्टी के इतिहास में पहली बार जीता था, जब वह नेमोम विधानसभा सीट हार गई।
2021 के विधानसभा चुनावों में, 2016 के चुनावों की तुलना में भाजपा का वोट शेयर 2.60 प्रतिशत से घटकर 12.36 प्रतिशत पर आ गया।
हाल की सभी चुनावी लड़ाइयों के परिणाम पूरी तरह से भाजपा के खिलाफ हैं, हालांकि राज्य और राष्ट्रीय नेतृत्व दोनों एक बड़ा चेहरा पेश करने और पहले दौर का अभियान शुरू करने की कोशिश कर रहे हैं। राज्य नेतृत्व ने तिरुवनंतपुरम, त्रिशूर, अत्तिंगल और पठानमथिट्टा को उन सीटों के रूप में चिन्हित किया है जहां पार्टी प्रभाव डाल सकती है।
पोल पंडितों का अनुमान है कि भाजपा के लिए यहां राह मुश्किल है। यह केवल तिरुवनंतपुरम लोकसभा सीट पर दूसरे स्थान पर रही। अन्य में जहां उसे 'उम्मीदें' थीं, वामपंथी उम्मीदवार और जीतने वाले कांग्रेस उम्मीदवार के पीछे उसके तीसरे स्थान के बीच का अंतर लगभग एक लाख वोटों का था। इसलिए, अगर कोई चमत्कार होता भी है तो इसकी बहुत कम संभावना है कि पार्टी अपना खाता खोल पाएगी। (आईएएनएस)
अफ्रीकी महाद्वीप में सबसे ज्यादा आबादी वाले देश नाइजीरिया ने अपना नया राष्ट्रपति चुन लिया है. पर्दे के पीछे से देश की राजनीति चलाने वाले बोला टिनुबू अब राष्ट्रपति के तौर पर कई समस्याओं का सामना करेंगे.
71 साल के बोला टिनुबू को अफ्रीका के सबसे बड़े शहर लागोस का गॉडफादर भी कहा जाता है. नाइजीरिया की राजधानी भले ही अबूजा हो, लेकिन देश, वित्तीय राजधानी लागोस के पैसे ही चलता है और इस रकम का बड़ा हिस्सा टिनुबू के इशारों पर घूमता रहा है. 2023 में नाइजीरिया में पहली बार सेना की छाया से आजाद होकर नए राष्ट्रपति के चुनाव हुए. फरवरी के आखिर में हुए इन चुनावों में सत्ताधारी पार्टी, ऑल प्रोग्रेसिव कॉन्ग्रेस के उम्मीदवार टिनुबू की जीत हुई. टिनुबू को 87.9 लाख वोट मिले. दूसरे और तीसरे नंबर पर रहे उम्मीदवारों के खाते में 69.8 और 61 लाख वोट आए.
नाइजीरिया के राष्ट्रपति चुनावों में सबसे ज्यादा वोट और कुल 36 में से 24 राज्यों व राजधानी अबूजा में 25 फीसदी वोट पाने वाला उम्मीदवार विजेता घोषित किया जाता है. टिनुबू ने इसमें सफलता पाई. चुनावी नतीजों के एलान के बाद राजधानी अबूजा में टिनुबू ने कहा, "मैं बहुत ही खुश हूं कि मुझे फेडरल रिपब्लिक ऑफ नाइजीरिया का राष्ट्रपति चुना गया है. यह एक जबरदस्त जनादेश है. मैं तहेदिल से इसे स्वीकार करता हूं."
पर्यवेक्षकों के मुताबिक, यह नाइजीरिया में अब तक हुए सबसे निष्पक्ष चुनाव हैं. हालांकि वोटिंग के दौरान कुछ जगहों पर नई तकनीक के कारण समस्याएं भी आईं. देश के इंडिपेंडेंट नेशनल इलेक्टोरल कमीशन (आईएनईसी) ने चुनाव से पहले हर पोलिंग यूनिट के नतीजे रियल टाइम में वेबसाट पर अपलोड करने का वादा किया था. लेकिन ज्यादातर यूनिटें ऐसा नहीं कर सकीं. परिणाम आने के बाद भी हजारों पोलिंग यूनिटों के रिजल्ट ऑनलाइन नहीं हो सके. इन तकनीकी खामियों के चलते मुख्य विपक्षी पार्टियों ने चुनाव में धांधली का आरोप लगाते हुए नतीजों को खारिज किया है.
टिनुबू के सामने चुनौतियां
नाइजीरिया के पूर्व राष्ट्रपति मुहम्मदू बुहारी के समर्थक रहे टिनुबू अब पर्दे के पीछे की राजनीति से बाहर निकल चुके हैं. नए राष्ट्रपति के सामने चुनौतियों की लंबी लिस्ट है. इनमें पूर्वोत्तर नाइजीरिया में इस्लामिक उग्रवाद, हत्याएं और सामूहिक अपहरण जैसी मुश्किलें भी हैं और ऊर्जा संकट और अथाह भ्रष्टाचार जैसी चुनौतियां भी.
इस्लामिक चरमपंथियों की बढ़ती ताकत एक अलग सिरदर्द है. अप्रैल 2014 में पूर्वोत्तर नाइजीरिया के बोर्नो प्रांत में इस्लामिक आतंकी संगठन बोको हराम ने चिबॉक के स्कूल से 276 छात्राओं का अपहरण कर लिया. अगवा की गई छात्राओं में ज्यादातर ईसाई थीं. इनमें से कई लड़कियां आज भी घर नहीं लौटी हैं. मानवाधिकारों का मुद्दा उठाने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल के मुताबिक 2015 में भी बोको हराम ने करीब 2000 महिलाओं को अगवा किया. इनमें से ज्यादातर को आतंकियों ने सेक्स स्लेव बनाया. देश में आज भी हर साल सैकड़ों महिलाओं का अपहरण होता है.
संसाधनों से समृद्ध होने के बावजूद बर्बादी
जलवायु परिवर्तन के चलते पशु पालकों और किसानों में हो रहा संघर्ष, कचरे की समस्या, मिट्टी की खराब होती क्वालिटी और जंगलों की कटाई भी नाइजीरिया के लिए बड़ी परेशानी हैं. 2005 में देश दुनिया में सबसे तेज रफ्तार से जंगल साफ करने के लिए बदनाम हो चुका है. 2010 में सोने की प्रोसेसिंग में इस्तेमाल होने वाले पारे की वजह से जामफारा राज्य में सैकड़ों बच्चों की मौत भी हुई.
पश्चिमी अफ्रीका में अटलांटिक महासागर के तट पर बसा नाइजीरिया आबादी के लिहाज से दुनिया का छठा बड़ा देश है. 22.5 करोड़ की आबादी वाले नाइजीरिया के पास दुनिया का 10वां बड़ा पेट्रोलियम भंडार है. आंकड़ों के मुताबिक मौजूदा खपत के लिहाज से नाइजीरिया का तेल भंडार 237 साल तक लगातार काम आ सकता है. लेकिन आईएमएफ की 2017 की रिपोर्ट के मुताबिक 32 फीसदी नाइजीरियाई नागरिक अति गरीबी का शिकार हैं.
लेकिन मुश्किल राजनीतिक स्थिरता बनाए रखने की है. एक जनवरी 1960 को ब्रिटेन से आजाद होने वाले नाइजीरिया का अब तक का इतिहास गृह युद्धों और सैन्य शासन से भरा रहा है. देश में 1960 से 1998 तक गृहयुद्ध और सैन्य तख्तापलट ही होते रहे हैं.
ओएसजे/सीके (एएफपी, एपी)
संतोष कुमार पाठक
नई दिल्ली, 30 जनवरी | मोदी सरकार के कई दिग्गज मंत्री 2024 में लोक सभा चुनाव लड़ने के लिए मजबूत और सुरक्षित लोकसभा सीट की तलाश कर रहे हैं। कुछ नेताओं की यह तलाश पूरी हो गई है, लेकिन कुछ नेताओं की तलाश अभी जारी है।
दरअसल, अब तक उच्च सदन राज्यसभा से चुनकर आने वाले मोदी सरकार के दिग्गज मंत्री 2024 में लोकसभा चुनाव लड़कर अपनी लोकप्रियता साबित करने के साथ ही अगली सरकार में भी मंत्रिपद के लिए अपनी दावेदारी पेश करने की कोशिश करते नजर आएंगे। इसकी एक बड़ी वजह भाजपा का एक अघोषित नियम भी है, जिसके तहत पार्टी अपने किसी भी नेता को लगातार तीसरी या चौथी बार राज्य सभा भेजने से परहेज करती है। कई नेताओं के मामले में एक-दो बार पहले पार्टी ने इस अघोषित नियम में छूट भी दी है, लेकिन मुख्तार अब्बास नकवी प्रकरण के बाद से राज्यसभा से आने वाले दिग्गज मंत्रियों ने लोकसभा चुनाव लड़ने का मन बनाना शुरू कर दिया। इसमें खासतौर से वो मंत्री शामिल हैं, जिन्हें पार्टी पहले दो या दो से ज्यादा बार राज्य सभा भेज चुकी है। आपको याद दिला दें कि मंत्री होने के बावजूद पार्टी ने नकवी को फिर से राज्य सभा नहीं भेजा और किसी भी सदन का सदस्य नहीं होने के कारण उन्हें मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ गया था।
आईएएनएस को मिली जानकारी के अनुसार, मोदी सरकार के धर्मेद्र प्रधान, भूपेंद्र यादव, मनसुख मंडाविया, परशोत्तम रूपाला, पीयूष गोयल और निर्मला सीतारमण जैसे कद्दावर मंत्री 2024 में लोकसभा के चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं। बताया यह भी जा रहा है कि हरदीप सिंह पुरी और ज्योतिरादित्य सिंधिया भी 2024 में लोकसभा का चुनाव लड़ सकते हैं। ये सभी नेता अपने-अपने लिए लोकसभा की मजबूत और सुरक्षित सीट की तलाश कर रहे हैं।
सबसे पहले बात केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेद्र प्रधान की करते हैं, जिन्हें भाजपा ने 2012 में पहली बार और 2018 में दूसरी बार राज्यसभा भेजा था। उनका दूसरा टर्म अप्रैल, 2024 में खत्म हो रहा है, यानी केंद्र में अगली सरकार के गठन के समय प्रधान की राज्यसभा सदस्यता समाप्त हो चुकी होगी।
आईएएनएस को मिली जानकारी के अनुसार, धर्मेद्र प्रधान अपने गृह राज्य ओडिशा की ढेंकानाल लोकसभा सीट से 2024 में लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। हाल ही में प्रधान स्वयं सार्वजनिक तौर पर चुनाव लड़ने की इच्छा भी जता चुके हैं। प्रधान के करीबी और उनके परिवार के सदस्य लगातार ढेंकानाल का दौरा भी कर रहे हैं।
केंद्र सरकार के एक और कद्दावर मंत्री भूपेंद्र यादव का भी राज्यसभा का कार्यकाल अप्रैल 2024 में ही खत्म हो रहा है। भाजपा उन्हें भी 2012 और 2018 में यानी दो बार राज्यसभा भेज चुकी है। बताया जा रहा है कि भूपेंद्र यादव राजस्थान की अलवर या हरियाणा की भिवानी-महेंद्रगढ़ सीट से लोकसभा चुनाव लड़ने का मन बना रहे हैं।
गुजरात से आने वाले दिग्गज नेता एवं केंद्रीय मंत्री मनसुख मंडाविया को भाजपा दो बार और केंद्रीय मंत्री परशोत्तम रूपाला को तीन बार राज्यसभा भेज चुकी है। मंडाविया और रूपाला, दोनों ही मंत्रियों का राज्य सभा कार्यकाल अप्रैल, 2024 में ही समाप्त हो रहा है और सूत्रों के मुताबिक, ये दोनों ही नेता अपने लिए लोक सभा की मजबूत सीट की तलाश कर चुके हैं।
बताया जा रहा है कि मनसुख मंडाविया, अपने गृह राज्य गुजरात के भावनगर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं, हालांकि इसके साथ ही उन्होंने गुजरात की सूरत और पोरबंदर लोकसभा सीट को भी विकल्प के तौर पर रखा हुआ है। केंद्रीय मंत्री परशोत्तम रूपाला भी अपने गृह राज्य गुजरात की दो लोकसभा सीटों का विकल्प लेकर चल रहे हैं। रूपाला राज्य की अमरेली और राजकोट लोकसभा सीट पर लड़ने की तैयारी कर रहे हैं।
राज्यसभा से आने वाले मोदी सरकार के कई अन्य दिग्गज मंत्री, जिनका राज्यसभा का कार्यकाल 2026 और 2028 में खत्म हो रहा है, वे भी लोकसभा की मजबूत सीट ढूंढ रहे हैं। इसमें पीयूष गोयल और निर्मला सीतारमण जैसे कद्दावर मंत्री शामिल हैं। दोनों ही मंत्रियों को अब तक भाजपा तीन-तीन बार राज्यसभा भेज चुकी है।
वैसे तो गोयल का राज्यसभा का कार्यकाल जुलाई 2028 में और सीतारमण का जून 2028 में समाप्त होगा, लेकिन सूत्रों की मानें तो ये दोनों दिग्गज मंत्री भी 2024 में लोकसभा चुनाव लड़ सकते हैं। पीयूष गोयल अपने गृह राज्य महाराष्ट्र के साथ-साथ उत्तर प्रदेश में भी अपने लिए लोक सभा की मजबूत सीट की तलाश में जुटे हुए हैं। वहीं, निर्मला सीतारमण भी अपने गृह राज्य तमिलनाडु से लोकसभा का चुनाव लड़ सकती हैं।
आपको याद दिला दें कि कुछ महीने पहले ही केंद्रीय वित्तमंत्री सीतारमण चेन्नई के बाजार में सब्जी खरीदती और स्थानीय लोगों से बातचीत करती हुई नजर आई थीं।
कांग्रेस से भाजपा में शामिल होकर मध्यप्रदेश में फिर से भाजपा की सरकार बनाने में मददगार ज्योतिरादित्य सिंधिया को भाजपा ने पहली बार जून 2020 में राज्यसभा भेजा था और उनका कार्यकाल जून 2026 में समाप्त होगा, लेकिन बताया जा रहा है कि सिंधिया भी 2024 में लोकसभा का चुनाव लड़ना चाहते हैं। केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी का राज्यसभा का दूसरा टर्म नवंबर 2026 में खत्म होगा, लेकिन बताया जा रहा है कि पार्टी के संकेतों को समझते हुए पुरी भी अपने लिए लोकसभा की मजबूत सीट की तलाश में जुटे हुए हैं। (आईएएनएस)
कोलकाता, 22 नवंबर | पश्चिम बंगाल में मिथुन चक्रवर्ती अब भाजपा की संगठनात्मक गतिविधियों में जमीनी स्तर पर बड़ी भूमिका निभाएंगे। मिथुन 2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हो गए थे, लेकिन उनकी गतिविधियां मुख्य रूप से पार्टी के लिए मेगा अभियान रैलियों में भाग लेने तक ही सीमित थीं।
हाल ही में, कोलकाता में मिथुन चक्रवर्ती ने कहा कि वह अब राज्य में पार्टी की गतिविधियों पर अधिक ध्यान देंगे। दरअसल, अगले दो वर्षों में होने वाले दो बड़े चुनाव, 2023 में पश्चिम बंगाल में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव और 2024 में लोकसभा चुनाव को लेकर भाजपा की राज्य इकाई को लगता है कि सुपरस्टार को पार्टी की संगठनात्मक गतिविधियों में बड़े पैमाने पर शामिल करने का यह सही समय है।
भाजपा की राज्य कमेटी के एक सदस्य ने कहा कि मिथुन चक्रवर्ती के लिए इस सिलसिले में अगले कुछ दिनों के लिए विस्तृत कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार की जा चुकी है। इसकी शुरूआत 23 नवंबर को होगी, जब चक्रवर्ती और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष व सांसद सुकांत मजूमदार, पश्चिम बंगाल के आदिवासी बहुल पुरुलिया जिले में पंचायत स्तर के भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ बैठक करेंगे।
24 नवंबर को, चक्रवर्ती और सुकांत मजूमदार दोनों एक अन्य आदिवासी बहुल जिले बांकुड़ा में होंगे, जहां उस दिन स्थानीय पार्टी नेताओं के साथ बैठक में भाग लेने के अलावा, वे 25 नवंबर को वहां एक रैली को भी संबोधित करेंगे। इसी तरह के कार्यक्रम पश्चिम बर्दवान के आसनसोल में 26 नवंबर और बीरभूम जिले में 27 नवंबर को निर्धारित किए गए हैं।
पार्टी नेतृत्व राज्य में आदिवासी बहुल क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, इसका कारण यह है कि भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनावों और 2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों में सबसे अच्छा प्रदर्शन किया है।
17 अक्टूबर को बीजेपी की राज्य इकाई ने कोर कमेटी में बड़े फेरबदल की घोषणा की और वहां मिथुन चक्रवर्ती को शामिल किया। कुल 24 नेताओं को कोर कमेटी में जगह दी गई है, इस तरह यह राज्य में पार्टी की अब तक की सबसे बड़ी कोर कमेटी बन गई है। 24 सदस्यीय समिति में पश्चिम बंगाल के लिए पार्टी के प्रभारी सुनील बंसल और राज्य के केंद्रीय पर्यवेक्षक मंगल पांडे, अमित मालवीय और आशा लाकड़ा के चार स्थायी सदस्य शामिल हैं। (आईएएनएस)|
विशाल गुलाटी
मंडी, 24 सितंबर | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शनिवार को 68 सदस्यीय हिमाचल प्रदेश विधानसभा के लिए भाजपा के प्रचार अभियान की शुरुआत करेंगे। वह 'छोटी काशी' यानी मंडी में करीब एक लाख युवाओं को संबोधित करेंगे।
वह युवा विजय संकल्प रैली को संबोधित करेंगे, जो चुनाव की घोषणा से पहले नियोजित तीन रैलियों में से पहली है। मंडी जिले में 10 विधानसभा क्षेत्र आते हैं। रैली में 40 साल से कम उम्र के एक लाख से अधिक युवाओं के जुटने की संभावना है।
मंडी के बाद मोदी बाद की तारीखों में बिलासपुर और चंबा शहर में जनसभाओं को संबोधित करेंगे। भाजपा नेता अमित शाह और जेपी नड्डा भी राज्य का अलग-अलग दौरा करेंगे।
भाजपा की राज्य इकाई के प्रमुख सुरेश कश्यप ने कहा कि प्रधानमंत्री का मंडी का दौरा लोगों के लिए गर्व की बात है।
कश्यप ने आईएएनएस से कहा, "हिमाचल के लोगों के प्रति नरेंद्र मोदी का स्नेह अद्भुत है और हिमाचल के लोग भी उनसे बहुत प्यार करते हैं। मोदी जी का हिमाचल से गहरा संबंध रहा है।"
उन्होंने कहा कि भारतीय जनता युवा मोर्चा द्वारा आयोजित युवा रैली एक बड़ी सफलता होगी और बड़ी संख्या में कार्यकर्ता मोदी को सुनने के लिए आ रहे हैं।
उन्होंने कहा, "इस रैली में एक लाख से अधिक युवा हिस्सा लेने जा रहे हैं, जिससे भाजपा में नई ऊर्जा का संचार होगा। इस रैली में हिमाचल प्रदेश के हर बूथ से 20 युवा हिस्सा लेंगे।"
मोदी की यात्रा से उत्साहित मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर, जो युवा विजय संकल्प रैली से संबंधित व्यवस्थाओं की व्यक्तिगत रूप से निगरानी कर रहे हैं, ने कहा कि प्रधानमंत्री की यात्रा राज्य और यहां के लोगों के प्रति उनकी उदारता को दर्शाती है।
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने अपने राज्य के दौरे से पहले ही राज्य के लिए एक बल्क ड्रग फार्मा पार्क को मंजूरी दे दी है।
उन्होंने आईएएनएस से कहा, "यह उन लोगों को करारा जवाब है, जिन्होंने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री ने राज्य को कुछ नहीं दिया।"
पार्टी ठाकुर के नेतृत्व में चुनाव में उतरेगी। उन्होंने कहा कि राज्य के लिए 10,000 करोड़ रुपये से अधिक की विकास परियोजनाओं को मंजूरी देने के अलावा, प्रधानमंत्री ने राज्य को 800 करोड़ रुपये की विशेष सहायता प्रदान की थी।
उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश को विकास के मामले में देश के अग्रणी राज्यों में से एक बनाने के लिए इन वर्षो में राज्य के लोगों को उनके योगदान पर धन्यवाद देने के लिए राज्य सरकार के 75 कार्यक्रमों का आयोजन करने के राज्य सरकार के फैसले से विपक्षी नेता परेशान थे।
उन्होंने कहा कि परंपरा बदलने को लेकर भाजपा सरकार का नारा भी कांग्रेस नेताओं को रास नहीं आ रहा है।
ठाकुर ने आईएएनएस को बताया, "यह परंपरा (लगातार एक और कार्यकाल के लिए कप्तान बनाए रखने की) पूरे देश में बदल गई है और अब ऐसा करने की हिमाचल प्रदेश की बारी है।"
मोदी ने पिछली बार 31 मई को अपनी सरकार की आठवीं वर्षगांठ को ऐतिहासिक रिज से चिह्न्ति करने के लिए केंद्र सरकार की योजनाओं के लाभार्थियों को संबोधित करने के लिए राज्य का दौरा किया था।
इससे पहले, उन्होंने राज्य सरकार की चौथी वर्षगांठ के अवसर पर 27 दिसंबर, 2021 को मंडी में एक रैली को संबोधित किया था।
वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री सुरेश भारद्वाज ने आईएएनएस को बताया कि पिछले पांच वर्षो में राज्य और केंद्र में डबल इंजन की सरकार है और विकास की गति और योजनाओं के क्रियान्वयन ने गति पकड़ी है। (आईएएनएस)|
नई दिल्ली, 6 सितंबर | बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने कहा है कि भारत रोहिंग्या शरणार्थियों के मुद्दे से निपटने में मदद करने के लिए बहुत कुछ कर सकता है। वह भारत की चार दिवसीय यात्रा पर हैं। इस दौरान दोनों देश कनेक्टिविटी और नदी जल-बंटवारे के मुद्दों पर चर्चा कर सकते हैं। हसीना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बातचीत करने के लिए तैयार हैं और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ से भी मुलाकात करेंगी।
भारत एक बड़ा देश है। यह बहुत कुछ कर सकता है, उन्होंने कहा।
हसीना ने अपने भारत दौरे की शुरूआत सोमवार को हजरत निजामुद्दीन की दरगाह से की। विदेश मंत्री एस जयशंकर और व्यवसायी गौतम अदाणी ने भी बांग्लादेशी प्रधानमंत्री से मुलाकात की।
भारत और बांग्लादेश के बीच समग्र रणनीतिक संबंध पिछले कुछ वर्षों में बढ़ रहे हैं, दोनों प्रधानमंत्रियों ने 2015 से 12 बार मुलाकात की है।
पिछले साल मार्च में, प्रधान मंत्री मोदी ने शेख मुजीबुर रहमान की जन्म शताब्दी और उस देश की मुक्ति के युद्ध के 50 वर्षों को चिह्न्ति करने के लिए आयोजित कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए बांग्लादेश की यात्रा की। भारत ने 1971 के युद्ध की 50वीं वर्षगांठ पर कई कार्यक्रमों की मेजबानी भी की थी, जिसके कारण बांग्लादेश की मुक्ति हुई थी।
हसीना मंगलवार को अपने भारतीय समकक्ष पीएम मोदी के साथ बातचीत करेंगी जिसमें दोनों पक्षों के बीच रक्षा, व्यापार और नदी जल बंटवारे सहित प्रमुख क्षेत्रों में समझौते की संभावना है। (आईएएनएस)|
चेन्नई, 11 जुलाई | एडप्पादी के. पलानीस्वामी (ईपीएस) तमिलनाडु की मुख्य विपक्षी पार्टी अन्नाद्रमुक के अंतरिम महासचिव होंगे। मद्रास हाईकोर्ट द्वारा मंजूरी मिलने के बाद जनरल काउंसिल की बैठक आयोजित हुई, जिसमें यह फैसला लिया गया। इस बैठक में समन्वयक और सह-समन्वयक के दोहरे नेतृत्व पदों को भी रद्द कर दिया गया, जो क्रमश: ओ. पनीरसेल्वम और पलानीस्वामी द्वारा आयोजित किए गए थे। साथ ही, बैठक में महासचिव पद को बहाल करने और पार्टी के प्राथमिक सदस्यों द्वारा पद के लिए एक व्यक्ति का चुनाव सुनिश्चित करने के प्रस्ताव को पारित किया।
अन्नाद्रमुक विधायक आर.बी. उदयकुमार ने संगठनात्मक चुनावों के माध्यम से पार्टी के विभिन्न पदों के लिए पार्टी पदाधिकारियों के चुनाव का प्रस्ताव पेश किया।
जे. जयललिता के निधन के बाद, अन्नाद्रमुक दोहरे नेतृत्व में काम कर रही है। जिसके चलते ओ पन्नीरसेल्वम (ओपीएस) और एडप्पादी के पलानीस्वामी (ईपीएस) के बीच कई महीनों से पार्टी के वर्किं ग फॉर्मेट को लेकर विवाद जारी है। 14 जून को हुई पदाधिकारियों की बैठक में पार्टी में एक ही नेतृत्व का आह्वान किया गया था।
(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 9 जुलाई | आतंकवाद के मसले पर देश के 22 जगहों पर कांग्रेस नेताओं के प्रेस कांफ्रेंस पर कटाक्ष करते हुए भाजपा ने कहा कि तुष्टिकरण के कारण से जिस प्रकार से कांग्रेस ने आतंकवाद का साथ दिया है, वह कांग्रेस आज इस मसले पर देश भर में प्रेस कांफ्रेंस कर रही है। भाजपा ने कहा कि आतंकवाद पर प्रेस कांफ्रेंस करने की बजाय , कांग्रेस को माफी मांगनी चाहिए। 'कांग्रेस का हाथ आतंकवाद के साथ' होने का आरोप लगाते हुए भाजपा ने कहा कि देश में हुई आतंकी घटनाओं में कांग्रेस ने जिस प्रकार से आतंकियों का साथ दिया है, वह सूची बहुत लंबी है।
भाजपा राष्ट्रीय मुख्यालय में मीडिया से बात करते हुए पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा कि यासीन मलिक के साथ कांग्रेस के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने तस्वीर खिंचवाई थी, यूपीए सरकार के दौरान इस आतंकवादी का महिमामंडन किया गया था। बुरहान वानी के संदर्भ में कांग्रेस ने गलत नैरेटिव फैलाया। हाफिज सईद जैसा आतंकी भी दुनिया में सिर्फ एक राजनीतिक दल कांग्रेस की तारीफ करता है।
पात्रा ने सोनिया गांधी पर सीधा निशाना साधते हुए आगे कहा कि लोगों के मन मस्तिष्क के अंदर देश के विरोध में धर्म को लेकर एक उन्माद पैदा करने वाले जाकिर नायक के साथ स्वयं सोनिया गांधी खड़ी थी,क्योंकि उनके पति राजीव गांधी जी के नाम पर डोनेशन लिया था। बाटला हाउस एनकाउंटर में आतंकवादियों की लाश को देखकर कांग्रेस की अध्यक्षा सोनिया गांधी फूट-फूट कर रोई थी, ऐसा बयान स्वयं उनके मंत्री सलमान खुर्शीद ने दिया था। राहुल गांधी जेएनयू जाकर अफजल से जुड़े बयानों का समर्थन करते हैं और ये सब भूलकर कांग्रेस आतंकवाद को लेकर देश भर में प्रेस कांफ्रेंस कर रही है।
भाजपा प्रवक्ता ने कहा कि कांग्रेस को आतंकवाद के मसले पर देश भर में प्रेस कांफ्रेंस करने की बजाय माफी मांगनी चाहिए, माफीनामा लिखना चाहिए कि उन्होंने किस प्रकार से आतंक और आतंकवादियों को बढ़ावा दिया। कांग्रेस को देश को बताना चाहिए कि उन्होंने चीन के साथ जिस एमओयू पर हस्ताक्षर किया था ,उसमें क्या था ?
भाजपा ने आरोप लगाया कि सत्ता में आने के लिए गांधी परिवार आतंकियों के साथ भी गठजोड़ कर सकती है, यही उनका इतिहास रहा है। (आईएएनएस)
संतोष कुमार पाठक
नई दिल्ली, 9 जुलाई । जांच एजेंसियों का दुरुपयोग, एक ऐसा मुद्दा रहा है जिस पर सत्ता पक्ष और विपक्ष में हमेशा ही टकराव की स्थिति देखने को मिली है। सत्ता में चाहे जो भी पार्टी या गठबंधन हो, उस समय विपक्ष की भूमिका निभाने वाला राजनीतिक दल उस पर जांच एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगाता नजर आता है। पिछले कुछ दशकों के दौरान, आरोप प्रत्यारोप की यह राजनीति बढ़ती ही जा रही है।
कांग्रेस के भ्रष्टाचार, घपले और घोटालों को मुद्दा बनाकर 2014 में लोक सभा चुनाव जीतने वाली भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार पर भी विपक्ष, जांच एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगा रहा है। कांग्रेस, टीएमसी, एनसीपी, आरजेडी और शिवसेना के अलावा अन्य कई विपक्षी दल केंद्र सरकार पर ईडी, सीबीआई और अन्य केंद्रीय जांच एजेंसियों के दुरुपयोग का लगातार आरोप लगा रहे हैं।
आईएएनएस से बात करते हुए भाजपा राष्ट्रीय प्रवक्ता एवं दार्जिलिंग से लोक सभा सांसद राजू बिष्ट ने कहा कि भाजपा कानूनी प्रक्रिया में कोई हस्तक्षेप नहीं करती है। उन्होंने कहा कि 'चोरी ऊपर से सीनाजोरी' नहीं चलेगी। जिन लोगों ने देश की दौलत चुराई है उन्हें कानून के सामने जवाब देना ही होगा, चाहे वो कोई भी हो।
हाल ही में, राहुल गांधी से ईडी की पूछताछ के विरोध में कांग्रेस ने अपने तमाम दिग्गज नेताओं, मुख्यमंत्रियों और कार्यकतार्ओं को सड़क पर उतार दिया था। सड़कों पर आंदोलन के दौरान कांग्रेस ने दिल्ली पुलिस पर दुर्व्यवहार करने का भी आरोप लगाया। कांग्रेस नेताओं के प्रतिनिधिमंडल ने जांच एजेंसियों के दुरुपयोग और दिल्ली पुलिस के दुर्व्यवहार के खिलाफ राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से भी शिकायत की।
भाजपा ने इसी महीने हैदराबाद में हुई अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में कांग्रेस के इन आरोपों का पुरजोर खंडन किया। बैठक में पारित राजनीतिक प्रस्ताव में कांग्रेसनीत विपक्ष पर नकारात्मक राजनीति करने का आरोप लगाते हुए कहा गया है कि, अपने राजनीतिक हित को साधने के लिए कांग्रेस एवं इसके सहयोगी दल झूठ और फरेब की राजनीति का सहारा ले रहे हैं। आज जब जांच एजेंसियों द्वारा कांग्रेस के अध्यक्ष एवं इसके पूर्व अध्यक्ष से पूछताछ की जाती है तो पूरी कांग्रेस सड़कों पर उतरकर इसका विरोध करती है।
प्रस्ताव में यह भी आरोप लगाया गया है कि, इन्हें न तो भारत के संविधान पर भरोसा है, न देश की जनता पर विश्वास है और न ही लोकतांत्रिक मूल्यों में इनकी आस्था है।
कांग्रेस के आरोपों और विरोध प्रदर्शन पर पलटवार करते हुए उसी समय केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा था कि गांधी परिवार द्वारा भ्रष्टाचार के जरिए अर्जित किए गए दो हजार करोड़ रुपये की संपत्ति को बचाने के लिए यह प्रयास किया जा रहा है। राहुल गांधी से ईडी की पूछताछ मामले में कांग्रेस द्वारा लगाए गए आरोपों का जवाब देते हुए भाजपा राष्ट्रीय प्रवक्ता एवं राज्य सभा सांसद सुधांशु त्रिवेदी ने मीडिया से बात करते हुए कहा था कि नेशनल हेराल्ड मामले का सरकार से कोई लेना-देना नहीं है। यह मामला यूपीए सरकार के दौरान ही 1 नवंबर 2012 को प्रारंभ हुआ था लेकिन इसमें सरकार की किसी एजेंसी द्वारा कार्रवाई नहीं हुई और अब हाइकोर्ट के निर्देश के ऊपर ही कार्रवाई हो रही है और हाइकोर्ट के निर्देश पर ही वो जमानत पर है।
हालांकि भाजपा सरकार पर केंद्रीय जांच एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगाने वाली कांग्रेस एकमात्र पार्टी नहीं है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल , एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार, शिवसेना नेता संजय राउत, आरजेडी नेता तेजस्वी यादव समेत देश के कई अन्य विपक्षी दल भी एनडीए सरकार पर इसी तरह का आरोप लगा रहे हैं।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के आरोपों पर तीखा पलटवार करते हुए भाजपा राष्ट्रीय प्रवक्ता एवं दार्जिलिंग से लोक सभा सांसद राजू बिष्ट ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा कि यह 'उल्टा चोर कोतवाल को डांटे' का सबसे बढ़िया उदाहरण है। पश्चिम बंगाल वह राज्य है, जहां पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी टीएमसी कैडर की तरह काम कर रहे हैं। सरकार ने मनगढ़ंत आरोप लगाकर सांसदों, विधायकों और भाजपा नेताओं के खिलाफ कई मुकदमे दर्ज किए हैं, राजनीतिक बदले की भावना से कार्रवाई की जा रही है और ममता बनर्जी उल्टा हम पर ( भाजपा सरकार ) आरोप लगा रही है।
भाजपा राष्ट्रीय प्रवक्ता ने आगे कहा , ईडी ने देश भर से हजारों करोड़ की संपत्ति जब्त की है। भाजपा कानूनी प्रक्रिया में कोई हस्तक्षेप नहीं करती है। कलकत्ता उच्च न्यायालय ने पश्चिम बंगाल पुलिस पर सवाल खड़ा करते हुए लगभग 25 मामलों की जांच करने का जिम्मा सीबीआई को सौंपा है।
बिष्ट ने कहा कि 'चोरी ऊपर से सीनाजोरी'नहीं चलेगी। जिन लोगों ने देश की दौलत चुराई है उन्हें कानून के सामने जवाब देना ही होगा, चाहे वो कोई भी हो।
दरअसल, जांच एजेंसियों के दुरुपयोग के कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों के आरोपों पर भाजपा का स्टैंड बिल्कुल साफ है कि इन मामलों से सरकार का कोई लेना देना नहीं है। मेरिट के आधार पर जांच एजेंसिया अपनी-अपनी कार्रवाई कर रही है और सरकार पर आरोप लगाने वाले नेताओं को भ्रष्टाचार के मामले में जवाब देना चाहिए और कानूनी प्रक्रिया ( पूछताछ, जांच और मुकदमा ) के मामले में सहयोग करना चाहिए।
भाजपा के नेता यूपीए सरकार के दौरान वर्तमान प्रधानमंत्री और गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से कई दिनों तक, एसआईटी द्वारा घंटों-घंटों तक की गई पूछताछ का हवाला देते हुए यह भी कहते हैं कि गलत और झूठे आरोपों के बावजूद मोदी ने बिना किसी हंगामें के अकेले जाकर एसआईटी के सवालों का सामना किया और जांच प्रक्रिया में पूरा सहयोग दिया लेकिन अब विपक्षी दल अपने भ्रष्टाचार को छुपाने के लिए जांच एजेंसियों के दुरुपयोग का झूठा आरोप लगा रहे हैं।
(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 9 जुलाई| पिछले महीने पार्टी के वरिष्ठ नेता एकनाथ शिंदे के बगावत के बाद शिवसेना एक बड़े राजनीतिक संकट का सामना कर रही है। इसके कारण महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार को सत्ता से बेदखल कर दिया गया। शिंदे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा समर्थित महाराष्ट्र के नए मुख्यमंत्री हैं। शिवसेना के 55 में से 40 विधायक शिंदे खेमे में शामिल हो गए।
ठाकरे को एक और झटका तब लगा, जब ठाणे नगर निगम में शिवसेना के 67 सदस्यों में से 66 शिंदे गुट में शामिल हो गये। वहीं, अब शिवसेना के दो सांसद राहुल शेवाले और राजेंद्र गावित ने ठाकरे को एक पत्र लिखकर मांग की है कि पार्टी को भाजपा की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का समर्थन करना चाहिए।
इससे पहले ठाकरे ने संयुक्त विपक्षी उम्मीदवार यशवंत सिन्हा की उम्मीदवारी का समर्थन किया था।
हालांकि बदले राजनीतिक परि²श्य में शिवसेना प्रमुख ने कहा है कि वह पार्टी के सभी सांसदों से बात करने के बाद राष्ट्रपति चुनाव के बारे में फैसला लेंगे।
सीवोटर-इंडियाट्रैकर ने आगामी राष्ट्रपति चुनावों के बारे में शिवसेना के रुख के बारे में लोगों के विचार जानने के लिए आईएएनएस के लिए एक राष्ट्रव्यापी सर्वे किया।
सर्वे से पता चला कि उत्तरदाताओं के एक बड़े अनुपात के साथ इस मुद्दे पर लोगों के विचार विभाजित थे। 57 प्रतिशत ने सुझाव दिया कि ठाकरे को मुर्मू का समर्थन करना चाहिए। वहीं 43 प्रतिशत इस भावना से असहमत थे और कहा कि शिवसेना प्रमुख को संयुक्त विपक्षी उम्मीदवार यशवंत सिन्हा का समर्थन करना चाहिए।
सर्वे के दौरान, जबकि एनडीए के 64 प्रतिशत मतदाताओं ने जोर देकर कहा कि ठाकरे की पार्टी को भाजपा के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को वोट देना चाहिए, इस मुद्दे पर विपक्षी समर्थकों के विचार विभाजित थे।
सर्वे के आंकड़ों के अनुसार, जहां विपक्षी समर्थकों का एक बड़ा हिस्सा- 51 प्रतिशत ने कहा कि ठाकरे को मुर्मू का समर्थन करना चाहिए, वहीं 49 प्रतिशत ने सुझाव दिया कि पार्टी को यशवंत सिन्हा को वोट देना चाहिए।
सर्वे में इस मुद्दे पर विभिन्न सामाजिक समूहों की राय में अंतर पर प्रकाश डाला गया।
जबकि अधिकांश उच्च जाति हिंदुओं (यूसीएच), 68 प्रतिशत, अनुसूचित जाति 66 प्रतिशत और अन्य पिछड़ा वर्ग 63 प्रतिशत ने सुझाव दिया कि ठाकरे को मुर्मू का समर्थन करना चाहिए, जबकि अधिकांश मुसलमानों ने यशवंत सिन्हा के समर्थन में पार्टी के पक्ष में बात की।
इस मुद्दे पर अनुसूचित जनजातियों के विचार विभाजित थे। एक बड़े अनुपात के साथ, 56 प्रतिशत ने यशवंत सिन्हा को शिवसेना के समर्थन का सुझाव दिया।
(आईएएनएस)
पटना, 9 जुलाई | भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारी के मद्देनजर पटना में पार्टी के बिहार विंग के पदाधिकारियों के साथ एक महत्वपूर्ण बैठक करेंगे। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने शुक्रवार देर रात नड्डा के दौरे की योजना बनाने और तैयारियों की रिपोर्ट लेने के लिए एक बैठक की।
जायसवाल ने कहा, "राष्ट्रीय अध्यक्ष की बैठक जिलाध्यक्षों और अन्य अधिकारियों के अलावा संगठन के हर विंग के प्रभारी के साथ होगी।"
जायसवाल ने कहा, "हम प्रत्येक कार्यकर्ता, विभिन्न विंग के अध्यक्षों, जिलाध्यक्षों और राज्य के अन्य अधिकारियों के लिए 14, 15 और 16 जुलाई को तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करेंगे। हम उस कार्यक्रम में 300 नेताओं के भाग लेने की उम्मीद कर रहे हैं।"
जायसवाल ने आगे कहा, "नेता आगे 'सप्तऋषि' और 'पन्ना प्रमुख' जैसे जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं से संवाद करेंगे। पार्टी को जमीनी स्तर पर मजबूत किया जाएगा। तीन दिवसीय कार्यक्रम के बाद वे 31 जुलाई को नड्डा के दौरे के कार्यक्रम में हिस्सा लेंगे।"
(आईएएनएस)
उपचुनाव विशेष रिपोर्ट-6
आसनसोल से बिकास के शर्मा
आसनसोल संसदीय इलाके में हिंदी भाषी मतदाताओं का प्रतिशत करीब 55 है। मुख्य रूप से जिन दो दलों में टक्कर संसदीय उपचुनाव में देखी जा रही है वैसी भाजपा एवं तृणमूल ने हिंदी भाषी मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए एडी से लेकर चोटी तक एक करने वाला प्रचार अभियान शुरू कर दिया है। जहां एक और राज्य की सत्ताशीन तृणमूल के प्रत्याशी शत्रुघ्न सिन्हा स्वयं एक हिंदी भाषी हैं और प्रचार के दौरान ज्यादातर हिंदी का ही इस्तेमाल कर रहे हैं, वहीं उनके काम चलाऊ बांग्ला भाषा का ज्ञान उनको बांग्ला भाषी मतदाताओं के बीच भी कहीं-न-कहीं स्थापित कर रहा है।
साथ ही भाजपा ने एक बांग्ला भाषी आसनसोल दक्षिण की विधायक अग्निमित्रा पॉल को टिकट देकर अपने पारंपरिक रूप से माने जाने वाले हिंदी वोटरों के साथ-साथ बंगाली समुदाय को भी यह संदेश दिया है कि पार्टी गैर बंगालियों की नहीं बल्कि आपकी अपनी ही है। हालांकि श्रीमती पॉल के समर्थन में दिखाई देने वाले विधायक अजय कुमार पोद्दार, पूर्व मेयर जितेंद्र तिवारी, राजेश सिंहा आदि नेता हिंदी भाषी ही हैं। भाषाई संतुलन में तृणमूल और भाजपा दोनों ही एक दूसरे को मात देने में जुटी हुईं हैं।
पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में तृणमूल को बांग्ला भाषियों का प्रचुर समर्थन मिला था, जिसकी बदौलत वे बहुमत से जीतकर मुख्यमंत्री बनीं। लगातार भाजपा की तरफ खिसकते गैर बांग्ला भाषियों को साधने के लिए ही तृणमूल नेत्री ने एक समय भाजपा के संग रहे केंद्रीय मंत्री एवं अपने जमाने के लोकप्रिय फिल्म अभिनेता शत्रुघ्न सिंहा को लोकसभा उपचुनाव में आसनसोल सीट से उतारा है।
राजनीतिक विश्लेषक दिनेश पांडे की मानें तो भाजपा द्वारा अग्निमित्रा को यूं ही टिकट नहीं दिया गया है अपितु उसके पीछे भगवा दल की सोची समझी रणनीति यह है कि गैर बांग्ला भाषियों के वोट तो भाजपा के संग होते ही हैं और बंगाली महिला को खड़ा करके कुछ प्रतिशत वोट भी ले लिए जाएं तो जीत निश्चित होगी।
श्री पांडेय ने आगे कहा कि तृणमूल द्वारा हिंदी भाषी को और भाजपा द्वारा बांग्ला भाषी नेता को टिकट देना ही आसनसोल सीट को सबसे रोचक बना देता है। लेकिन देश के क्षेत्रीय दलों को अपनी राष्ट्रवादी रणनीति में फंसाने वाली विश्व की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा और देश में विपक्ष की मजबूत आवाज बन चुकीं नेत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस के उपचुनाव प्रचार को देखकर कबीर की उलट बांसी याद आती है।
आसनसोल के पिछले दो लोकसभा चुनावों में भाजपा ने जहां हिंदी भाषियों के बीच जमकर काम किया था और तृणमूल केवल बंगाली समुदाय और मुस्लिमों के बीच ही फंसी रह गई इस बार भाजपा का बांग्ला भाषी उम्मीदवार को टिकट देना और प्रचार के लहजे में 'आसनसोल घोरेर मेेयेके चाय' (आसनसोल घर की बेटी को चाहता है) यह मानकर किया जा रहा है कि दो चुनाव में आए हिंदी भाषियों के वोटों के साथ इस बार बंगाली वोट भी भाजपा के साथ रहेगा।
वहीं तृणमूल सुप्रीमो के बंगाल की जमीन का होने के दावे के बीच हिंदी भाषी शत्रुघ्न सिन्हा को टिकट देकर दोनों वोटों का संतुलन बनाया जा रहा है। किंतु राजनीतिक विश्लेषक सह वरिष्ठ पत्रकार डॉ प्रदीप कुमार सुमन का मानना है कि इस बार यह भी स्पष्ट है कि श्री सिन्हा के पक्ष में हिंदी भाषियों का एक बड़ा वर्ग मैदान में उतारा हुआ है और जहां भी वे जा रहे हैं लोगों का हुजूम लग जा रहा है जो कि विगत दो चुनावों में तृणमूल प्रार्थियों के साथ नहीं देखा गया है। उन्होंने कहा कि लगातार बंगाल के सभी चुनावों में जीत से भी राज्य की सत्ताशीन पार्टी का आत्मबल मजबूत है और सभी नेताओं ने सीट को भाजपा से छीनने में पूरी ताकत लगा दी है। वाममोर्चा समर्थिक सीपीआईएम और कांग्रेस के जनाधार के कम होने का लाभ भी इस बार तृणमूल के पक्ष में ही जाता दिखाई दे रहा है।
प्रयागराज में रेलवे भर्ती में नए नियम लागू करने और अन्य भर्तियों में देरी को लेकर आंदोलन कर रहे छात्रों पर पुलिस ने लाठी चार्ज किया और फिर घरों में घुसकर तलाशी ली गई, पीटा गया और कई छात्रों को हिरासत में भी लिया गया.
डॉयचे वैले पर समीरात्मज मिश्र की रिपोर्ट-
प्रयागराज के वरिष्ठ पुलिस अजय कुमार ने बताया, "मंगलवार को थाना कर्नलगंज के प्रयाग स्टेशन पर हजार की संख्या में छात्रों ने हंगामा किया और रेलवे ट्रैक को जाम कर दिया. सूचना मिलने पर पुलिस वहां पहुंची काफी कोशिश के बाद हंगामा कर रहे छात्रों को वहां भगाया गया. इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर पथराव किया था. पुलिस द्वारा हटाए जाने के बाद वो आस-पास के लॉज में छिप गए और वहां से पत्थरबाजी भी कर रहे थे.”
छात्रों पर बलप्रयोग
एसएसपी का कहना था कि इसके बाद कुछ पुलिसकर्मी भी लॉज में घुसे और बल प्रयोग किया. उनके मुताबिक, "इस तरह के वीडियो भी संज्ञान में आए हैं. पूरे घटनाक्रम की जांच की जा रही है. जो उपद्रवी छात्र हैं उनके खिलाफ गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज किया जा रहा है और जिन पुलिसकर्मियों ने अनावश्यक बल प्रयोग किया है उनके खिलाफ भी निलंबन की कार्रवाई की जा रही है. किसी भी दोषी को बख्शा नहीं जाएगा.”
प्रदर्शनकारी छात्रों के मुताबिक पुलिस ने छात्रों पर लाठीचार्ज किया और दर्जनों छात्रों को उनके हॉस्टलों और घरों से हिरासत में ले लिया. लाठी चार्ज होने पर प्रदर्शनकारी छात्र आस-पास के हॉस्टलों और घरों में छिप गए लेकिन पुलिस ने हॉस्टलों और लॉज में रह रहे छात्रों को वहां से जबरन निकाला, मारा-पीटा और कमरों के दरवाजे भी तोड़ दिए.
छोटा बघाड़ा में प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे एक छात्र दीपक मौर्य ने डीडब्ल्यू को बताया, "मेरे लॉज में करीब तीस छात्र रहते हैं. हम सिविल सर्विस की तैयारी कर रहे हैं और हममें से कोई प्रदर्शन में शामिल भी नहीं था. फिर भी हमारे लॉज से पुलिस वाले छात्रों को पीटते हुए बाहर ले गए. कमरों में घुसकर किताबें तक फाड़ दीं. हम लोग हाथ जोड़ कर अपने बारे में बताते रहे लेकिन उनके सिर पर जैसे जुनून सवार था. यह सुनिश्चित होने के बाद कि हम लोग प्रदर्शन में नहीं थे, हमें छोड़ दिया गया.”
किस बात का विरोध
वहीं प्रदर्शन में शामिल कई छात्र अभी भी लापता बताए गए हैं. पुलिस ने कुछ छात्रों को हिरासत में लिया है लेकिन उनका विवरण नहीं दिया गया है. यहां रह रहे तमाम प्रतियोगी छात्र डर के मारे मीडिया से भी बात नहीं कर रहे हैं. प्रतियोगी छात्र रेलवे की एनटीपीसी यानी नॉनटेक्निकल पॉपुलर कैटेगरी की ग्रुप डी परीक्षा को दो चरणों में कराए जाने का विरोध कर रहे थे. शुरुआत में जब इस परीक्षा का नोटिफिकेशन आया था तब यह एक ही चरण में होनी थी और उसके बाद फिजिकल टेस्ट होना था.
एक प्रतियोगी छात्र देवेश के मुताबिक, "आरआरबी एनटीपीसी यानी नॉन टेक्निकल पॉपुलर कैटेगरी ग्रुप टी की वेकेंसी 2019 में निकली थी. काफी दबाव के बाद अगले महीने फरवरी में परीक्षा की तारीख आई. ग्रुप डी की परीक्षा में अब तक एक चरण की परीक्षा होती थी और उसके बाद फिजिकल होता था. परीक्षा से ठीक पहले रेलवे ने एक नया नोटिफिकेशन जारी कर बताया कि अब परीक्षा दो चरणों में होगी, उसके बाद फिजिकल होगा.”
हालांकि छात्रों के विरोध के बाद अब रेलवे ने इस परीक्षा को स्थगित कर दिया है और छात्रों की शिकायतों की जांच के लिए एक कमेटी बना दी है. इससे पहले, इसी रेलवे की एनटीपीसी में ही ग्रुप सी की परीक्षा के परिणाम में धांधली के आरोपों को लेकर भी छात्रों ने आंदोलन किया था. उस समय भी सैकड़ों की संख्या में छात्रों को हिरासत में लिया गया था.
गड़बड़ी के आरोप
प्रयागराज में छात्र नेता पंकज पांडेय कहते हैं, "एनटीपीसी के ग्रुप सी के रिजल्ट में एक ही छात्र को 4 से अधिक पदों पर पहली बार की परीक्षा में ही क्वालीफाई कराया जा रहा है. इसलिए छात्रों की मांग है कि जो रिजल्ट जारी किया जाए, वो 20 गुना हो और प्रत्येक पद का 20 गुना होना चाहिए. रेलवे मंत्रालय ने अलग-अलग तरीके से स्पष्टीकरण देकर के यह प्रदर्शित करने का प्रयास किया है कि उसने जो रिजल्ट जारी किया है वह सही है, लेकिन वह यह नहीं बता पा रहा है कि एक छात्र को एक से ज्यादा पदों पर कैसे क्वालीफाई कराया गया है.”
पंकज पांडेय बताते हैं, "देश भर के विभिन्न रेलवे जोन में नॉन-टेक्निकल पापुलर कटेगरी (NTPC) में 35 हजार से अधिक ग्रुप सी पदों पर भर्ती के लिए सात चरणों में रेलवे भर्ती बोर्ड द्वारा आयोजित पहले चरण यानि CBT1 (कंप्यूटर बेस्ड टेस्ट1) के नतीजों की घोषणा 14 जनवरी 2022 को की गई थी. इसके बाद से कई उम्मीदवार एनटीपीसी परीक्षा परिणाम में कथित गड़बड़ी का आरोप लगाते हुए सोशल मीडिया पर आवाज उठा रहे हैं. इस बारे में अब तक 30 लाख से अधिक ट्वीट किए जा चुके हैं. वहीं ग्रुप डी नौकरी के लिए पहले एक चरण में परीक्षा कराने का नोटिफिकेशन आया लेकिन अब कह रहे हैं कि दो चरण में परीक्षा होगी.”
मंगलवार को प्रतियोगी छात्रों के खिलाफ हुई पुलिस कार्रवाई के वीडियो देखते ही देखते वायरल होने लगे तो इसकी गूंज राजनीतिक स्तर पर भी होने लगी. कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने पुलिस की कार्रवाई के वीडियो पोस्ट करते हुए ट्विटर पर लिखा है, "प्रयागराज में पुलिस द्वारा छात्रों के लॉज में और हॉस्टलों में जाकर तोड़-फोड़ करना एवं उनको पीटना बेहद निंदनीय है. प्रशासन इस दमनकारी कार्रवाई पर तुरंत रोक लगाए. युवाओं को रोजगार की बात कहने का पूरा हक है और मैं इस लड़ाई में पूरी तरह से उनके साथ हूं.”
बिहार में भी भड़के छात्र
प्रतियोगी छात्र बिहार में भी आंदोलनरत हैं और मंगलवार को उनके प्रदर्शन का दूसरा दिन था. ये छात्र भी रेलवे रिक्रूटमेंट बोर्ड द्वारा नॉन टेक्निकल पॉपुलर कैटेगरी में अलग-अलग पदों पर निकली भर्तियों में धांधली और लापरवाही को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं. मंगलवार को इन छात्रों का प्रदर्शन भी काफी उग्र हो गया.
पुलिस ने छात्रों पर डंडे बरसाए तो छात्रों ने भी पुलिस टीम पर पत्थरबाजी की. छात्रों के साथ कई पुलिसकर्मी भी घायल हुए हैं. आंदोलन ना सिर्फ पटना में बल्कि आरा, नवादा जैसे कई अन्य जिलों से सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाए जाने संबंधी तस्वीरें भी आई हैं. कुछ जगहों पर रेल कोच जलाए जाने की भी घटनाएं हुई हैं.
रेलवे की चेतावनी
प्रयागराज में पिछले कई दिन से छात्र रेलवे की भर्ती परीक्षा यानी आरआरबी एनटीपीसी के रिजल्ट में व्यापक पैमाने पर धांधली का आरोप लगाते हुए आंदोलन कर रहे हैं. पिछले दिनों भी आंदोलन कर रहे कई छात्रों को हिरासत में लिया गया था.
इससे पहले छात्रों के विरोध और उनके तमाम आरोपों को खारिज करते हुए मंगलवार को रेलवे ने एक धमकी भरा नोटिफिकेशन जारी किया था. इस में कहा गया है कि विरोध करने वाले छात्रों को भविष्य में रेलवे की किसी भी परीक्षा में बैठने से वंचित किया जा सकता है.
रेलवे के नोटिफिकेशन में लिखा था, "संज्ञान में ये बात आई है कि रेलवे की नौकरी के आकांक्षी उम्मीदवार गैरकानूनी गतिविधियों जैसे कि रेल की पटरी पर विरोध प्रदर्शन, ट्रेन संचालन में व्यवधान उत्पन्न करने और रेल की संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने की गतिविधियों में शामिल हैं. ऐसी गतिविधियां अनुशासनहीनता का उच्चतम स्तर है. विशेष एजेंसियों की सहायता से ऐसी गतिविधियों से संबंधित वीडियो की जांच की जाएगी. गैर-कानूनी गतिविधियों में शामिल उम्मीदवारों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई की जाएगी, साथ ही उन्हें रेलवे की नौकरी प्राप्त करने के संबंध में आजीवन प्रतिबंधित भी किया जा सकता है.”
प्रतियोगी छात्रों की समस्या
प्रयागराज, दिल्ली, पटना जैसी जगहों पर लाखों की संख्या में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्र रहते हैं. इनमें कुछ सिविल सेवाओं की और कुछ ग्रुप सी और डी की नौकरियों की तैयारी करते हैं. जब रेलवे और बैंकिंग जैसी बड़ी संख्या में नौकरी देने वाली संस्थाओं की वैकेंसी नहीं आती तो छात्रों के कई साल परीक्षा के इंतजार में ही चले जाते हैं. छात्र जिस परीक्षा को लेकर आंदोलन कर रहे हैं, उसका विज्ञापन साल 2019 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले आया था.
छात्रों की समस्याओं और परीक्षाओं में होने वाली धांधली के खिलाफ आवाज मुखर करने वाली संस्था युवा हल्ला बोल से जुड़े गोविंद मिश्र कहते हैं, "सरकार की प्राथमिकताओं में रोजगार देना है ही नहीं. चुनावी एजेंडे में ही रहता है यह. छात्र परीक्षाओं का इंतजार ही करता रहता है. उसे लगता है कि परीक्षा देंगे तब पता चलेगा कि वो योग्य है या नहीं लेकिन यहां तो परीक्षा ही कई-कई साल नहीं हो रही है.
पांच साल तो उसे परीक्षा देने में लग जा रहे हैं, उसमें भी यदि एक बार असफल हो गया तो अगली परीक्षा के लिए फिर कई साल का इंतजार करना पड़ता है. बड़े शहरों में हजारों कोचिंग और तमाम लोगों के रोजगार इन्हीं छात्रों की बदौलत फल-फूल रहे हैं लेकिन सरकारी नौकरी की चाहत में छात्र और उनके अभिभावक आखिरकार खुद को ठगे हुए ही पाते हैं.” (dw.com)
रामपुर, 26 सितंबर | रामपुर के बिलासपुर क्षेत्र में एक अजनबी से बात करने पर एक 35 वर्षीय महिला को एक पेड़ से बांधकर उसके ससुराल वालों ने पीटा। घटना 17 सितंबर को रामपुर के बिलासपुर थाना क्षेत्र में हुई, लेकिन यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद शनिवार को मामला दर्ज किया गया।
कथित वीडियो में एक महिला को पेड़ से लटकते हुए देखा जा सकता है, उसके ससुराल वालों द्वारा पिटाई की जा रही है, वह दर्द में रो रही है और दया की गुहार लगा रही है।
रामपुर पुलिस ने बताया, जिस व्यक्ति से महिला बात कर रही थी, उसकी शिकायत के आधार पर चार नामजद और 19 अज्ञात लोगों के खिलाफ आईपीसी की धारा 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाने की सजा), 355 (अपराधी का इस्तेमाल) के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई है। दूसरों में 498-ए (पति के रिश्तेदार ने उसके साथ क्रूरता की)।
शिकायतकर्ता के अनुसार, वह घर से बिलासपुर लौट रहा था कि रास्ते में महिला को देखा और बातचीत करने लगा।
एक स्थानीय ग्रामीण ने दोनों को देखा और महिला के ससुराल वालों को सूचित किया। इसके बाद ससुराल वाले वहां आए। वह आदमी मौके से भागने में सफल रहा, लेकिन महिला को एक पेड़ से बांध दिया गया और उसकी पिटाई कर दी गई।
रामपुर के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक संसार सिंह ने कहा, शिकायतकर्ता जो मूल रूप से उत्तराखंड के रुद्रपुर का रहने वाला है, रामपुर का दौरा करता है, क्योंकि उसका यहां कुछ संपत्ति है। वह आदमी उस महिला से बात कर रहा था जिसे वह जानने का दावा करता है।
हालांकि दोनों को आपस में बात करते देख ससुराल वालों ने उन पर हमला कर दिया। बाद में उन्होंने यह मानकर महिला की पिटाई कर दी कि उसका परपुरुष के साथ प्रेम प्रसंग चल रहा है।(आईएएनएस)
पटना, 3 अगस्त| बिहार में सत्तारूढ़ सहयोगी जद (यू) और भाजपा के बीच विवाद के बीच जदयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने सोमवार को कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को उनके पद से हटाने की क्षमता किसी में नहीं है। बेगूसराय में पार्टी समर्थकों से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार बिहार में एनडीए के इकलौते नेता हैं और पांच साल का कार्यकाल पूरा करेंगे।
कुशवाहा ने कहा, "विभिन्न दलों के इतने नेता विचार कर रहे हैं कि नीतीश कुमार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकते हैं। मेरा मानना है कि देश में कोई ताकत नहीं है, जो उन्हें अगले पांच वर्षों तक बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में सरकार चलाने से रोक सकती है। उनका कार्यकाल समाप्त होने से एक घंटे पहले भी उन्हें हटाया भी नहीं जा सकता।"
कुशवाहा का यह बयान ऐसे समय आया है जब भाजपा के कई नेताओं ने दावा किया कि उनकी पार्टी ने 'राजनीतिक मजबूरियों' के चलते नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाया है।
बीजेपी के मंत्री सम्राट चौधरी ने खुलकर कहा है कि उनकी पार्टी के पास 74 और जेडीयू के पास 43 सीटें हैं, फिर भी बीजेपी ने नीतीश कुमार को शीर्ष पद दिया है।
कुशवाहा ने रविवार को नीतीश कुमार को 'पीएम मटेरियल' घोषित किया था, जिससे भाजपा नेताओं ने मुंहतोड़ जवाब दिया था। (आईएएनएस)
चेन्नई, 8 जुलाई | तमिलनाडु भाजपा अध्यक्ष एल. मुरुगन के केंद्रीय मंत्रिपरिषद में पदोन्नत होने से उनके द्वारा खाली किए गए पार्टी पद के लिए तीव्र पैरवी शुरू हो गई है। हालांकि, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने के. अन्नामलाई को तमिलनाडु इकाई के नए अध्यक्ष के रूप में नामित करने के लिए तेजी से कदम बढ़ाया है। कर्नाटक कैडर के एक पूर्व आईपीएस अधिकारी, अन्नामलाई ने अपने पैतृक करूर जिले में एक धर्मार्थ फाउंडेशन शुरू करने के लिए सिविल सेवा छोड़ दी। वह पिछले साल भाजपा में शामिल हुए और हाल ही में अरुवाकुरिची निर्वाचन क्षेत्र से विधानसभा चुनाव लड़ा।
अन्नामलाई के मार्च, 2020 में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद मुरुगन ने यह सुनिश्चित किया कि हाल के चुनावों के बाद पार्टी राज्य विधानसभा में शून्य से चार तक पहुंचने में सक्षम थी।
वह एक जमीनी नेता भी साबित हुए और भाजपा की कमजोर उपस्थिति के बावजूद भगवान सुब्रमण्यम को बदनाम करने वाले करुप्पु कुट्टम से संबंधित नास्तिक समूहों का विरोध करने के लिए राज्य भर में वेत्रिवेल यात्रा निकालने में सक्षम रहे थे।
भाजपा की कमजोरियों के कारण वेत्रिवेल यात्रा जन आंदोलन नहीं बन सकी, लेकिन मुरुगन ने अपनी संगठनात्मक क्षमता को साबित किया और उन्हें पुरस्कृत किया गया। जब पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष का पद हथियाने के लिए था, तो संभावितों के कई नामों पर चर्चा हो रही थी। एक थे राज्य इकाई के महासचिव के.टी. राघवन।
पेशे से वकील और राज्य भाजपा के पूर्णकालिक सक्रिय नेता राघवन को मुरुगन का समर्थन प्राप्त था। भाजपा और आरएसएस के साथ उनके मजबूत संगठनात्मक संबंधों और उनके सौम्य व्यवहार के लिए धन्यवाद, उन्हें एक प्रमुख दावेदार माना जाता था।(आईएएनएस)
संदीप पौराणिक
भोपाल, 5 जुलाई | मध्य प्रदेश के देवास जिले के नेमावर में पिछले दिनों एक ही परिवार के पांच सदस्यों की हत्या के मामले ने सियासत को गर्मा दिया है। इस हत्याकांड को लेकर आदिवासी समाज से लेकर कांग्रेस तक शिवराज सरकार पर हमलावर है, तो वहीं सरकार आरोपियों को सख्त सजा दिलाने की बात कह रही है।
नेमावर में प्रेम प्रसंग के चलते एक ही परिवार के पांच लोगों की नृषंस हत्या कर शवों को गहरे गड्ढे में दफना दिया गया था। लगभग दो माह बाद राज खुला तब पुलिस शवों को बरामद करने के साथ आरोपियों को गिरफ्तार करने में सफल हुई। उसके बाद से सामूहिक हत्याकांड को लेकर सियासी घमासान मचा हुआ है। अब तो राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि नेमावर तक पहुंचने लगे हैं।
कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ ने पहले मामले की जांच के लिए एक समिति बनाई है, तो वहीं सोमवार को खुद कुछ कांग्रेस के नेताओं के साथ पीड़ित परिवार तक जा पहुंचे। उन्होंने पीड़ित परिवार को 25 लाख रुपये की आर्थिक सहायता देने का ऐलान करते हुए पूरे मामले की सीबीआई से जांच कराने की मांग की। साथ ही आरोपियों को राजनीतिक संरक्षण और पुलिस पर हीला-हवाली का आरोप भी लगाया।
पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ के साथ नेमावर पहुंचे पूर्व प्रदेशाध्यक्ष व पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव ने कहा कि, "मप्र में आपराधिक घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं, क्योंकि अपराधियों को भाजपा का संरक्षण हासिल है। महिलाओं पर अत्याचार हो रहे हैं, राज्य की कानून व्यवस्था पूरी तरह चौपट हो चुकी है।"
वहीं भाजपा ने कांग्रेस पर शवों पर राजनीति करने का आरोप लगाया है। राज्य के गृहमंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा का कहना है कि कांग्रेस के मुखिया एवं पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ अलगाववादी राजनीति कर समाज में भय फैलाने की कोशिश कर रहे हैं। नेमावर हत्याकांड का खुलासा पुलिस ने ही किया है। सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है।
डॉ. मिश्रा ने आगे कहा कि आरोपियों को फास्ट ट्रैक कोर्ट के माध्यम से फांसी के फंदे तक पहुंचाया जाएगा। सरकार ने इस मामले में पूरी संवेदनशीलता दिखाते हुए पीड़ित परिवार को तत्काल मुआवजा भी दिया है।
वहीं आदिवासियों के जय आदिवासी युवा शक्ति संगठन (जयस) ने हत्याकांड पर विरोध दर्ज कराया। जयस प्रमुख डॉ हीरालाल ने हत्याकांड की सीबीआई जांच के साथ पीड़ित परिवार को एक-एक करोड़ रुपए का मुआवजा और एक सदस्य को सरकारी नौकरी दिए जाने की मांग की और चेतावनी दी कि अगर मांगें नहीं मानी गईं तो विधानसभा का घेराव किया जाएगा।
नेमावर के सामूहिक हत्याकांड ने सियासत को गर्मा दिया है। सियासी अखाड़ा मालवा निमांड अंचल बनने के आसार बनने लगे हैं क्योंकि इस इलाके के आदिवासी बाहुल्य विधानसभा क्षेत्र जोबट और खंडवा लोकसभा क्षेत्र में उपचुनाव होने वाले हैं। कुल मिलाकर आने वाले दिनों में इस हत्याकांड को लेकर निमांड-मालवा इलाके की सियासत और तेज हो तो अचरज नहीं होना चाहिए। (आईएएनएस)
लखनऊ, 2 जुलाई| लोकसभा चुनाव 2019 में सपा के साथ गठबंधन करने वाली बसपा मुखिया मायावती अब सपा पर लगातार हमलावर हैं। उन्होंने कहा कि विधानसभा चुनाव में सपा का छोटे दलों के साथ चुनाव लड़ना महालाचरी है। बसपा मुखिया मायावती ने शुक्रवार को अपने निशाने पर समाजवादी पार्टी को रखा है। बसपा मुखिया ने कहा कि समाजवादी पार्टी की घोर स्वार्थी, संकीर्ण व खासकर दलित विरोधी सोच एवं कार्यशैली आदि के कड़वे अनुभवों तथा इसकी भुक्तभोगी होने के कारण देश की अधिकतर बड़ी व प्रमुख पार्टियां चुनाव में इनसे किनारा करना ही ज्यादा बेहतर समझती हैं। यह तो सर्वविदित है।
मायावती ने कहा कि इसी कारण उत्तर प्रदेश के होने वाले विधानसभा के आमचुनाव अब यह पार्टी किसी भी बड़ी पार्टी के साथ नहीं बल्कि छोटी पार्टियों के गठबंधन के सहारे ही लड़ेगी। कहा कि समाजवादी पार्टी का ऐसा कहना व करना महालाचारी नहीं है तो और क्या है।
ज्ञात हो कि इंटरनेट मीडिया पर बेहद एक्टिव मायावती लगातार ट्विटर पर भाजपा, कांग्रेस तथा सपा पर हमला बोलती रहती हैं। पंजाब में विधानसभा चुनाव में शिरोमणि अकाली दल के साथ गठबंधन कर उतरने वाली मायावती ने उत्तर प्रदेश तथा उत्तराखंड में अकेले ही विधानसभा चुनाव लडने का एलान किया है। (आईएएनएस)
कोलकाता, 29 जून| पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा राज्यपाल जगदीप धनखड़ पर 'भ्रष्ट' होने का आरोप लगाने के कुछ घंटों बाद, राज्यपाल ने सोमवार को राज्य की तृणमूल कांग्रेस सरकार पर पलटवार करते हुए आरोप लगाया कि वह कई भ्रष्ट गतिविधियों में शामिल है। एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए धनखड़ ने कहा, मैं सरकार से पूछना चाहता हूं कि 2,000 करोड़ रुपये के महामारी खरीद घोटाले की रिपोर्ट का क्या हुआ? मुख्यमंत्री ने खुद स्वीकार किया था कि इसमें अनियमितताएं थीं और उन्होंने एक जांच का आदेश भी दिया था। तत्कालीन मुख्य सचिव अलपन बंद्योपाध्याय को उस रिपोर्ट को पेश करना था, उसका क्या हुआ?
धनखड़ ने कहा, मैंने बंद्योपाध्याय से कई बार पूछा था कि वह मेरे पास कब आए थे। लेकिन कोई रिपोर्ट नहीं थी। मैंने उन्हें (बनर्जी) को कई बार लिखा है, लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। मैं पूछना चाहता हूं कि पूछताछ का क्या हुआ जो उन्होंने खुद किया था। जांच का आदेश देना सब कुछ का अंत है। लोगों को यह जानने की जरूरत है कि वे लोग कौन थे जिन्होंने अनुचित लाभ लिया।
धनखड़ ने यह भी कहा कि गोरखालैंड प्रादेशिक प्रशासन (जीटीए) में न तो कोई चुनाव हुआ है और न ही कोई ऑडिट।
राज्यपाल ने कहा, हजारों करोड़ मंजूर किए गए हैं लेकिन कोई ऑडिट नहीं हुआ है। क्यों? यह लोगों का पैसा है और लोगों को पता होना चाहिए कि उनके पैसे का क्या हुआ। मैं सीएजी ऑडिट करूंगा क्योंकि यह मेरे संवैधानिक दायरे में आता है।
राज्यपाल ने अंडाल हवाई अड्डे के लिए ऋण देने की सरकार की नीति पर भी सवाल उठाया।
धनखड़ ने आरोप लगाया, मैंने उनसे (बनर्जी) पूछा है कि सरकार अंडाल हवाई अड्डे में अपनी इक्विटी क्यों बढ़ा रही है? वे ऐसे लोगों को कर्ज क्यों दे रहे हैं जबकि वे भुगतान नहीं कर रहे हैं? जब वे ब्याज का भुगतान नहीं कर रहे हैं तो ऋण क्यों दिया गया है? मैंने वही पूछा था अलापन बंद्योपाध्याय से सवाल किया, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।"
राज्यपाल ने बंगाल में चुनाव के बाद हुई हिंसा को लेकर राज्य सरकार पर गंभीर आरोप भी लगाए।
उन्होंने कहा, पांच राज्यों में चुनाव हुए, लेकिन किसी अन्य राज्य में ऐसी हिंसा नहीं देखी गई, जैसी बंगाल में देखी गई। पूरी दुनिया इसका गवाह है। वे (तृणमूल कांग्रेस) इतने बड़े जनादेश के साथ आए हैं, लेकिन वे जनता के लोकतांत्रिक अधिकारों का गला घोंट रहे हैं।
हालांकि, राज्यपाल ने कसम खाई कि वह हार नहीं मानेंगे।
धनखड़ ने कहा, मैं किसी के बहकावे में नहीं आऊंगा, चाहे जो भी हो। मैं केवल भारत के संविधान के सामने झुकूंगा। संविधान ने मुझे सशक्त बनाया है और मैं पश्चिम बंगाल के लोगों के लिए हर संभव प्रयास करूंगा। (आईएएनएस)
सैयद मोजिज इमाम जैदी
नई दिल्ली, 27 जून | पिछले साल कांग्रेस पार्टी के अनुभवी नेता अहमद पटेल के निधन के बाद, गांधी परिवार को उनकी जगह भर पाने में मुश्किल हो रही है। अहमद पटेल को राजनीतिक पैंतरेबाजी से लेकर गठबंधन सहयोगियों से समर्थन हासिल करने तक हर चीज में कुशलता हासिल थी। संकट में, पटेल को पार्टी के मामलों पर अंतिम शब्द माना जाता था। जब से राहुल गांधी ने कमान हाथ में लेनी शुरू की तो वह हाशिए पर चले गए। अपने अंतिम दिनों में उन्हें कांग्रेस का कोषाध्यक्ष बनाया गया था।
एआईसीसी में फेरबदल की चर्चा जल्द ही हो सकती है, क्योंकि एक नई टीम ने पार्टी मामलों का कामकाज संभाला है और कई लोग उत्तर प्रदेश के बाहर प्रियंका गांधी वाड्रा के लिए एक उन्नत रोल की उम्मीद कर रहे हैं। फिर भी, पार्टी के लोग यह देखने के लिए इंतजार कर रहे हैं कि गांधी परिवार तक पहुंचने के लिए नया सूत्रधार कौन होगा।
एक समय में, वी. जॉर्ज ऐसे ही एक पॉइंटमैन थे। उन्होंने राजीव गांधी के साथ निजी सचिव के रूप में और बाद में सोनिया गांधी के साथ काम किया, लेकिन पटेल के उदय के बाद उन्हें दरकिनार कर दिया गया था।
जॉर्ज ने अर्जुन सिंह के साथ, एम.एल. फोतेदार, शीला दीक्षित और नटवर सिंह ने सोनिया गांधी को सीताराम केसरी के स्थान पर पार्टी अध्यक्ष बनने के लिए राजी करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो उस समय पार्टी प्रमुख थे।
पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि पार्टी में मौजूदा असहमति महत्वपूर्ण मुद्दों पर संचार और परामर्श प्रक्रिया की कमी के कारण है। देर से, सोनिया गांधी ने तंत्र को पुनर्जीवित किया और हाल ही में जम्मू और कश्मीर पर बैठक की अध्यक्षता की।
कांग्रेस नेताओं का कहना है कि जॉर्ज की वापसी पार्टी और गांधी परिवार के लिए फायदेमंद हो सकती है, क्योंकि वह पार्टी के अंदरूनी साजि़शों के बारे में सब जानते हैं और पार्टी के मामलों को चलाने के लिए उत्प्रेरक हो सकते हैं। वह राजीव गांधी के दिनों से पार्टी के वरिष्ठ नेतृत्व को भी जानते हैं और खासतौर पर ऐसे लोगों को जो पार्टी के कामकाज से नाखुश हैं।
वह उन तक पहुंचने में मदद कर सकते हैं और गांधी परिवार को पार्टी और बाहर के नए घटनाक्रमों के बारे में सूचित कर सकते हैं - ऐसे मामले जो सार्वजनिक डोमेन में नहीं हैं।
जवाहरलाल नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी तक, जिनके पास यशपाल कपूर और आर.के. धवन, राजीव गांधी, वी. जॉर्ज और बाद में सोनिया गांधी थे, कांग्रेस अध्यक्षों का निजी कर्मचारियों के माध्यम से काम करने का इतिहास रहा है, लेकिन वे दिन थे जब पार्टी एक मजबूत ताकत थी। यह अब बदली हुई स्थिति है।
राहुल गांधी के लिए काम करने वाले लोग अक्सर सार्वजनिक व्यवहार और नौकरशाहों की तरह काम करने में सूक्ष्म ²ष्टिकोण अपनाने की क्षमता दिखाते हैं। बीच का रास्ता अपनाना जरूरी है। वर्तमान राजनीतिक परि²श्य में, कांग्रेसियों को लगता है कि वे पार्टी की योजनाओं से बाहर हो गए हैं। तथाकथित जी -23 द्वारा उठाए गए मुद्दे, जो अब 22 हो गए हैं, प्रासंगिक हैं और उसे कई लोगों की मौन स्वीकृति है। यह टीम राहुल की कमजोरी है जिसे मामलों को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझाने और नेतृत्व को समय पर सलाह देने की जरूरत है।
राहुल गांधी कोविड के मोर्चे पर सक्रिय रहे हैं और सरकार को सलाह दे रहे हैं लेकिन राजनीतिक रूप से परिणाम व्यर्थ थे क्योंकि हाल के चुनाव परिणाम पार्टी के लिए उत्साहजनक नहीं थे।
राहुल पंजाब के मोर्चे पर भी सक्रिय रहे हैं और लोगों से मिलते रहे हैं। लेकिन मुख्यमंत्री के साथ बैठक से परहेज करना गलत सोच और रणनीति माना गया। यह सच है कि पंजाब के नेताओं से बात करना एक अच्छी पहल थी, लेकिन राजस्थान को छोड़ना सचिन पायलट के समर्थकों के साथ अच्छा नहीं रहा। अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि वी. जॉर्ज की वापसी, अगर ऐसा होती है, तो पार्टी में कम्युनिकेशन गैप से जुड़ी कुछ समस्याओं का अंत हो सकता है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 23 जून | पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने मंगलवार को राष्ट्रीय राजधानी में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी से मुलाकात की। इसके बाद, राहुल ने राज्य इकाई में तनाव को कम करने के लिए कदम बढ़ाया। सूत्रों ने कहा कि राहुल गांधी ने राज्य को अत्यधिक महत्व दिया है, वह उन हितधारकों से मिलते रहते हैं, जो उनसे समय मांगते हैं।
राहुल गांधी से मिले कुछ विधायकों ने कहा कि उन्होंने राज्य के मुद्दों पर बात की है। मुख्यमंत्री की आलोचना करने वाले उन विधायकों में शामिल परगट सिंह ने कहा, अगर सीएम मेरे द्वारा उठाए गए मुद्दों को हल करने के लिए तैयार हैं, तो मामला सुलझ जाएगा।
सूत्रों ने कहा कि इस बीच, अमरिंदर सिंह ने निशाना बनाए जाने पर नाराजगी व्यक्त की और कहा कि कुछ व्यक्तियों के कारण अनुचित दबाव बनाया जाता है।
हालांकि, पार्टी के वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे, जो तीन सदस्यीय पैनल के प्रमुख हैं, जिन्हें राज्य पार्टी इकाई में गुटबाजी को हल करने के अलावा चुनाव की तैयारी के लिए बड़ा आदेश मिला है, ने कहा : सभी ने कहा है कि वे एक साथ चुनाव लड़ेंगे और पार्टी सोनिया गांधी और राहुल गांधी के नेतृत्व में एकजुट है।
सूत्रों का कहना है कि पैनल ने राज्य में राजनीतिक स्थिति और नवजोत सिंह सिद्धू से जुड़े मुद्दों और इस मुद्दे को हल करने के संभावित तरीके पर भी चर्चा की।
हालांकि सिद्धू मुख्यमंत्री पर हमले से बाज नहीं आ रहे हैं, उन्होंने मुद्दों के जल्द समाधान पर जोर दिया है। प्रदेश प्रभारी हरीश रावत ने कहा है कि मामला सोनिया गांधी के पास है और उन्होंने सिद्धू के बयानों पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।
खड़गे के अलावा केंद्रीय पैनल में रावत और जेपी अग्रवाल शामिल हैं। (आईएएनएस)
मुंबई/नई दिल्ली, 21 जून | राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के अध्यक्ष शरद पवार एक बड़ी पहल के तहत मंगलवार से 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी एकता के लिए कदम उठाएंगे। पार्टी के एक शीर्ष अधिकारी ने सोमवार को यह जानकारी दी। राकांपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता और महाराष्ट्र के मंत्री नवाब मलिक ने कहा कि पहले दौर में पवार मंगलवार शाम नई दिल्ली स्थित अपने आवास पर कुछ राजनीतिक दलों के नेताओं और विभिन्न क्षेत्रों के अन्य प्रमुख विशेषज्ञों से मुलाकात करेंगे।
राजनीतिक नेताओं में तृणमूल कांग्रेस के यशवंत सिन्हा, जद-यू के पूर्व नेता पवन वर्मा, आम आदमी पार्टी (आप) के संजय सिंह, नेशनल कांफ्रेंस (नेकां) के फारूक अब्दुल्ला, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के डी. राजा और अन्य शामिल हो सकते हैं।
इसके अलावा, न्यायमूर्ति ए. पी. सिंह (सेवानिवृत्त), जावेद अख्तर, के.टी.एस. तुलसी, करण थापर, आशुतोष, ए. मजीद मेमन, वंदना चव्हाण, एस.वाई. कुरैशी, के.सी. सिंह, संजय झा, सुधींद्र कुलकर्णी, कॉलिन गोंसाल्वेस, घनश्याम तिवारी और प्रीतिश नंदी सहित अन्य भी शामिल हो सकते हैं।
इससे पहले शरद पवार ने चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर से दस दिनों में दूसरी बार मुलाकात की। चर्चा यह है कि किशोर-पवार की मुलाकात अगले आम चुनावों के मद्देनजर और समान विचारधारा वाली पार्टियों को एकजुट करने के उद्देश्य से बड़ी योजना का हिस्सा हो सकती है।
हालांकि विपक्षी दलों की बैठक का एजेंडा स्पष्ट नहीं है, लेकिन यह जम्मू-कश्मीर पर प्रधानमंत्री की बैठक की पृष्ठभूमि में है। 15 विपक्षी दलों को निमंत्रण दिया गया है, लेकिन उनमें से कुछ ने अब तक भागीदारी की पुष्टि की है। कांग्रेस ने अभी तक बैठक के लिए हां नहीं कहा है।
यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस बैठक में शामिल होगी या नहीं। सोमवार दोपहर तक कांग्रेस की ओर से कोई पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन 7 दलों ने बैठक में शामिल होने की पुष्टि की है।
विपक्षी दलों की बैठक से पहले राकांपा ने मंगलवार सुबह अपने राष्ट्रीय पदाधिकारियों की बैठक बुलाई थी।(आईएएनएस)
-अजय कुमार
पटना, 20 जून| बिहार में चिराग पासवान ने जून के तीसरे सप्ताह में ही अपनी ही पार्टी के भीतर अपनी राजनीतिक स्थिति खो दी थी। उनके चाचा पशुपति कुमार पारस ने स्वर्गीय रामविलास पासवान द्वारा स्थापित पार्टी के अध्यक्ष के तौर पर तख्तापलट में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
घटनाओं की समग्र श्रृंखला अन्य राजनीतिक दलों और व्यक्तिगत नेताओं के लिए एक सबक हो सकती है, जो नकारात्मक राजनीति के जरिये अपना नफा-नुकसान देखने की कोशिश करते हैं।
चिराग पासवान की राजनीति में नकारात्मकता पहली बार बिहार विधानसभा चुनाव 2020 के दौरान सामने आई जब उन्होंने अपने दम पर चुनाव लड़ने का फैसला किया। इससे उनकी कोशिश जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) को अधिकतम नुकसान पहुंचाने की कोशिश थी । उस वक्त उन्होंने खुले तौर पर भाजपा का समर्थन करने के साथ ही खुद को पीएम नरेंद्र मोदी का हनुमान बताया था।
चिराग पासवान को जदयू को नुकसान पहुंचाने के अपने एक सूत्रीय एजेंडे के कारण एनडीए छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। हालांकि बीजेपी और जदयू दोनों एनडीए का हिस्सा हैं। चिराग की लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) ने 143 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें से ज्यादातर जदयू के खिलाफ थे।
लोजपा ने अपने गेमप्लान के मुताबिक साल 2020 के विधानसभा चुनाव में जदयू को सिर्फ 43 सीटें मिलीं, जबकि 2015 के चुनावों में इसके सीटों की संख्या 69 थीं। इस तरह के ²ष्टिकोण ने चिराग पासवान को और अधिक आहत किया क्योंकि साल 2020 के चुनावों में उनकी पार्टी ने सिर्फ एक ही सीट पर जीत हासिल की थी। सिर्फ एक सीट जीतने का प्रबंधन किया। बाद में मटिहानी निर्वाचन क्षेत्र से जीते लोजपा के इकलौते विधायक राज कुमार सिंह ने जदयू अध्यक्ष नीतीश कुमार से हाथ मिला लिया था।
पशुपति कुमार पारस ने विधानसभा चुनाव के दौरान चिराग पासवान की नकारात्मक राजनीति की ओर इशारा करते हुए कहा, "2020 में बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान हम संसदीय चुनाव की तरह एनडीए के तहत चुनाव लड़ना चाहते थे। चिराग ने इसका विरोध किया और विधानसभा चुनाव में अकेले जाने का फैसला किया और सिर्फ एक ही सीट जीत सके। पार्टी का राजनीतिक रूप से सफाया हो गया है। पार्टी कार्यकर्ता और नेता उनके फैसले से नाराज हैं।"
लोजपा में राजनीतिक अशांति के बीच चिराग पासवान ने खुले तौर पर आरोप लगाया कि जदयू नेता उनके खिलाफ काम कर रहे हैं और पार्टी को तोड़ रहे हैं। राजद ने भी जदयू पर इसी तरह के आरोप लगाए थे। राजद के राष्ट्रीय महासचिव श्याम रजक ने कहा, "चिराग पासवान और पशुपति कुमार पारस के बीच विभाजन के पीछे नीतीश कुमार हैं।"
इसका जवाब देते हुए जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष आर.सी.पी. सिंह ने कहा कि चिराग पासवान वही काट रहे हैं जो उन्होंने बोया है।
सिंह ने कहा, "चिराग पासवान ने हाल के दिनों में बहुत सारी गलतियां की हैं। बिहार के लोग और उनकी अपनी पार्टी के कार्यकर्ता और नेता बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान जो कुछ भी उन्होंने किया उससे खुश नहीं थे। अब पार्टी में दरार इसका परिणाम है।" (आईएएनएस)