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आबादी में 32 फीसदी थे हिंदू, आज बचे केवल 8 फीसदी, आखिर क्यों?
17-Oct-2021 9:57 PM
आबादी में 32 फीसदी थे हिंदू, आज बचे केवल 8 फीसदी, आखिर क्यों?

-संतोष कुमार

Bangladesh Me Hindu population: बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय के खिलाफ बीते कुछ दिनों से हो रही हिंसा के बाद पड़ोसी देश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को लेकर फिर से सवाल खड़े हो गए हैं. इस ताजा हिंसा में अब तक 10 से अधिक लोगों की मौत हो गई है और सैकड़ों घर तबाह हो गए हैं. दुर्गा पूजा के दौरान यह ताजा हिंसा कथित तौर पर कुरान को अपमानित करने के कारण भड़की. लेकिन आज हम चर्चा इस मुद्दे पर करेंगे कि आखिर क्यों बांग्लादेश में हिंदुओं को दोयम दर्जे की जिंदगी गुजारनी पड़ती है और उनकी संख्या लगातार क्यों कम हो रही है. कुछ रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि अगले तीन दशक में बांग्लादेश में हिंदुओं का नामोनिशान मिट जाएगा.

बांग्लादेश का इतिहास और हिंदू
1971 में पाकिस्तान से अलग एक नए देश के रूप में जन्म लेने वाले बांग्लादेश का इतिहास रक्तरंजित रहा है. 4 नवंबर 1972 को स्वीकार किए गए नए संविधान में बांग्लादेश ने खुद को एक धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी, लोकतांत्रित देश घोषित किया था. लेकिन बांग्लादेश ज्यादा दिनों तक एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र नहीं रहा और 7 जून 1988 को उसने खुद को एक इस्लामिक राष्ट्र घोषित कर दिया.

बांग्लादेश में हिंदू 
संयुक्त भारत की जनगणना रिपोर्ट यानी वर्ष 1901 से लेकर अब तक बांग्लादेश में हिंदुओं की भागीदारी ऐसी है.

इन आंकड़ों से पता चलता है कि संयुक्त भारत के एक प्रांत के रूप में तत्कालीन पूर्वी बंगाल (मौजूदा बांग्लादेश) में हिंदुओं की संख्या 30 फीसदी से अधिक थी लेकिन 1947 में देश के बंटवारे और फिर 1971 में पाकिस्तान से बांग्लादेश के बंटवारे के वक्त वहां के हिंदुओं को सबसे अधिक पीड़ा झेलनी पड़ी. इस दौरान बड़ी संख्या में हिंदुओं का कत्लेआम किया गया और काफी हिंदू सीमा पार कर भारत में शरण लेने को मजबूर भी हुए. एक बड़ी संख्या में हिंदुओं का धर्म परिवर्तन करवाया गया.

बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा 
1947 में देश के बंटवारे के वक्त से ही बांग्लादेश (तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान) में हिंदुओं के खिलाफ बेइंतहा जुर्म होने लगा. उस वक्त लाखों हिंदुओं की मौत हुई और कई लाख भारत में शरण लेने को मजबूर हुए. उस दौरान बांग्लादेश की आबादी में हिंदुओं की भागीदारी प्रतिशत में सबसे अधिक कमी आई. बंटवारे के वक्त के एक दशक के भीतर इनकी आबादी प्रतिशत सीधे 28 फीसदी से घटकर 22 फीसदी पर आ गई.


1971 में सबसे ज्यादा हिंदुओं पर हुआ जुर्म 
बांग्लादेश के इतिहास में हिंदुओं पर सबसे ज्यादा जुर्म 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान हुआ. इस दौरान पाकिस्तानी सेना ने हिंदुओं के गांव के गांव का सफाया कर दिया. एक रिपोर्ट के मुताबिक इस दौरान 30 लाख से अधिक हिंदुओं का नरसंहार किया गया. इसके साथ ही बड़ी संख्या में हिंदू सीमा पार कर भारत में शरण लेने को मजबूर हुए. इस दौरान बांग्लादेश की आबादी में हिंदुओं का प्रतिशत 18.5 फीसदी से घटकर 13.5 फीसदी पर आ गया.

लगातार जारी है हिंदू विरोधी हिंसा
वर्ष 1971 में एक नए राष्ट्र के रूप में बांग्लादेश के अस्तित्व में आने के बावजूद वहां हिंदुओं के खिलाफ हिंसा में कमी नहीं आई. बीते 50 सालों में बांग्लादेश में हिंदुओं की आबादी प्रतिशत 13.5 फीसदी से घटकर करीब 8 फीसदी पर आ गया है.

क्या है हिंसा की मुख्य वजह
रिपोर्ट के मुताबिक बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा की मुख्य वजह उनकी जमीन हड़पने की कोशिश है. ढाका टाइम्स की कई रिपोर्ट में इस तथ्य की ओर इशारा किया गया है. दरअसल, यहां के हिंसा के पैटर्न में देखा गया है कि बहुसंख्यक आबादी गरीब हिंदुओं के घर जला देती है. घर जलने से ये हिंदू परिवार पलायन करने को मजबूर होते हैं और जब वे पलायन कर जाते हैं तो उनकी जमीन पर ये लोग कब्जा कर लेते हैं.

Vested Property कानून
वर्ष 2001 तक बांग्लादेश में The Vested Property Act प्रभावी था. इस कानून के तहत सरकार के पास यह अधिकार था कि वह दुश्मन (मुख्य रूप से हिंदू) की संपत्ति अपने कब्जे में ले ले. इस कानून के तहत बांग्लादेश की सरकार ने करीब 26 लाख एकड़ जमीन अपने कब्जे में ले ली. इस कानून के कारण बांग्लादेश का करीब-करीब हर हिंदू परिवार प्रभावित हुआ. एक बार जब सरकार जमीन अपने कब्जे में ले लेती थी तब प्रभावी और राजनीतिक लोग अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर उस जमीन को अपने अधीन कर लेते थे. हालांकि बाद में इस कानून मे बदलाव किया गया, लेकिन इसे पुरजोर तरीके लागू नहीं किया गया.

2050 तक बांग्लादेश में खत्म हो जाएंगे हिंदू 
वर्ष 2016 में बांग्लादेश में हिंदुओं की स्थिति पर एक किताब आई थी. उस किताब में दावा किया गया था कि अगले करीब तीन दशक में बांग्लादेश से हिंदुओं का नामोनिशान मिट जाएगा. दरअसल, यह किताब ढाका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ. अबुल बरकत की शोध पर आधारित है. बरकत के मुताबिक हर दिन अल्पसंख्यक समुदाय के औसतन 632 लोग बांग्लादेश छोड़कर जा रहे हैं. देश छोड़ने की यह दर बीते 49 सालों से चल रहा है. और यदि यही दर आगे भी जारी रही तो अगले 30 सालों में देश से करीब-करीब सभी हिंदू चले जाएंगे.

कभी नहीं हुआ स्थित में सुधार
डॉ. बरकत की शोध के मुताबिक 1971 के मुक्ति संग्राम से पहले हर रोज औसतन 705 हिंदुओं ने देश छोड़ा. इसके 1971 से 1981 के दौरान हर रोज औसतन 513 हिंदुओं ने देश छोड़ा. वर्ष 1981 से 1991 के बीच हर रोज 438 हिंदुओं ने देश छोड़ा. फिर 1991 से 2001 के बीच औसतन 767 लोगों ने देश छोड़ा, जबकि 2001 से 2012 के बीच हर रोज औसतन 774 लोगों ने देश छोड़ा. कहने का मतलब है कि बांग्लादेश के इतिहास में ऐसा कोई कालखंड नहीं रहा जिसमें अल्पसंख्यक हिंदू छोड़कर जाने को मजबूर नहीं हुए.

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