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हमें इनकी कुर्सी नीलाम होना मंजूर है, पर आदिवासी और जंगल नहीं
29-Jun-2022 2:31 PM
हमें इनकी कुर्सी नीलाम होना मंजूर है, पर आदिवासी और जंगल नहीं

   हसदेव बचाओ आंदोलन को समर्थन देने पहुंची सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर   
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बिलासपुर, 28 जून।
नर्मदा बचाओ आंदोलन की संयोजक और प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने कहा है कि विकास के नाम पर विनाश, विस्थापन और विषमता को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। हमारी लड़ाई कारपोरेट के खिलाफ वैसी ही है जैसी लड़ाई अंग्रेजी शासन में ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ लड़ी गई थी।

बिलासपुर के कोन्हेर गार्डन में चल रहे अनिश्चितकालीन हसदेव बचाओ आंदोलन को समर्थन देने के लिए पहुंची मेधा पाटकर ने कहा कि हम आंदोलनजीवी हैं, यह हमारे जीवन का हिस्सा है। हम जनशक्ति के जरिये सत्याग्रह कर लोकतांत्रिक तरीके से मानवीय जीवन पर असर डालने वाले मुद्दों को उठाते हैं। हम मानव अधिकारों का दफन, दमन सहन नहीं कर सकते।

पाटकर ने कहा कि जब प्रधानमंत्री म्यूनिख, पेरिस और ग्लास्को जाते हैं तो वहां कहकर आते हैं कि ताप विद्युत परियोजनाओं से सन् 2070 तक कार्बन उत्सर्जन पूरी तरह खत्म कर देंगे और यहां आते ही कार्पोरेट को एक साथ 40 खदान बख्शीश में दे देते हैं। तमिलनाडु जैसे राज्य में 52त्न ऊर्जा उत्पादन रिन्यूएबल तरीके से हो रहा है, वह ऐसी क्षमता 80त्न तक विकसित भी कर चुका है। ऐसा दूसरे प्रदेशों में आगे क्यों नहीं बढ़ा जा सकता है। जब कार्बन उत्सर्जन घटाना है तो नई खदानों को मंजूरी क्यों?

पाटकर ने कहा कि हम कार्पोरेट का विरोध इसलिए करते हैं क्योंकि यह कंपनियां प्रॉफिट, प्रॉफिट और सिर्फ प्रॉफिट देखती हैं। ना इन्हें लोगों के जीवन से या आजीविका से मतलब है और न ही आदिवासी, दलित व किसानों मजदूरों और महिलाओं के हक से। यहां तक कि वे मानव जाति को जिंदा रखने के प्रति संवेदना भी नहीं दिखाते हैं।

पाटकर ने कहा कि ये कार्पोरेट करोड़ों रुपयों का मुनाफा कमा रहे हैं। अंबानी-अडानी की रोज की कमाई 1000 करोड़ रुपए से अधिक है और हमें सरकार यह बताती है कि तिजोरी भरने के लिए हमें शराब का व्यापार करना जरूरी है। विकास के बारे में सरकारों की जो मूर्खता है, वही मानव जाति को खत्म कर रही है। सुप्रीम कोर्ट के आदेशों से यह साफ हो चुका है कि सभी खनिज संपदा सार्वजनिक होती हैं, किसी व्यक्ति की नहीं। हमें इन (नेताओं) की कुर्सी नीलाम हो जाना मंजूर है, लेकिन आदिवासी और जंगल नहीं। इनके पास विकास की अवधारणा ही नहीं है। जब हम पर्यावरण संरक्षण की बात करते हैं, तो इनकी समझ में कुछ नहीं आता। यह तो सबको पता है कि एक बड़ी राजनैतिक पार्टी के पास इलेक्टोरल बॉन्ड से 4000 करोड़ रुपए आए हैं और दूसरे के पास सात सौ करोड़। लेकिन ये रुपये आए कैसे, इसके लिए उन्होंने कार्पोरेट से क्या-क्या समझौते किए, यह हमको मालूम नहीं हो पाता है।

उन्होंने कहा कि हसदेव अरण्य 1 लाख 70000 हेक्टेयर जमीन, जंगल और पानी कार्पोरेट के हाथों में दे दिए जाने से बर्बाद हो जाएगा। फिर आज जो हम बिलासपुर में बैठे हुए भारी उमस महसूस कर रहे हैं, वह आने वाले दिनों में और गंभीर स्थिति पैदा करेंगी। दुनिया में वैज्ञानिकों का यहां तक कहना है कि पर्यावरण का इसी तरह विनाश होता रहा तो सन 2050 तक मानव जाति के अस्तित्व पर ही संकट खड़ा हो जाएगा।

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का उल्लेख करते हुए पाटकर ने याद दिलाया कि राहुल गांधी ने ही हसदेव के लोगों को आश्वस्त किया था कि यहां का जंगल बचा रहेगा। उन्होंने कहा कि आपने गोबर खरीदी योजना शुरू की, ग्रामीण विकास के अनेक कार्यक्रम शुरू किए हैं। सबसे अधिक दाम पर किसानों से धान खरीदी कर रहे हैं। ये सब अच्छे काम हैं। वैसा ही एक अच्छा काम और करके हसदेव को बचा लीजिए। आपके मंत्री सिंहदेव, स्पीकर डॉ. महंत और सांसद ज्योत्सना जी भी तो इस आदिवासियों के साथ खड़े हैं। पाटकर ने कहा कि कांग्रेस ने ही वन अधिकार कानून 2006 बनाया था। ग्राम सभा को विधानसभा और लोकसभा से भी ज्यादा अधिकार संपन्न बनाया। फिर आज वह इस बात को कैसे भूल रही है। अफसोस की बात है कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी सब जानते हुए भी ग्राम सभा की मंशा के खिलाफ हसदेव को कार्पोरेट के हवाले करने का समर्थन कर रही हैं।

 

विभिन्न जन आंदोलनों में सक्रिय मध्य प्रदेश के पूर्व विधायक डॉ सुनीलम् ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि हमने सुना है कि हसदेव में कोयला उत्खनन के आगे की कार्रवाई को रोकने के कारण ही प्रवर्तन निदेशालय कांग्रेस नेता राहुल गांधी को परेशान कर रहा है। यह मेरे जैसे व्यक्ति के लिए सोचना बड़ा आश्चर्यजनक है कि जो अडानी कभी 5 लाख रुपये का आदमी नहीं था, आज 5 लाख करोड़ रुपये का कैसे हो गया? यह पैसा कहां से आया? कौन सी सरकार की पॉलिसी ऐसी है जिसमें इतने पैसे कमाए जा सकते हैं? इस पर खुलकर बात होनी चाहिए। हम देश भर में भूमि अधिकार आंदोलन चला रहे हैं और मोदी सरकार को चुनौती देते हैं। यहां भी 15 राज्यों के लोग अपना समर्थन व्यक्त करने के लिए आज मौजूद हैं। रायपुर में हमने कल जो सम्मेलन किया, उसमें उम्मीद से बहुत अधिक लोग आए। इसका संदेश छत्तीसगढ़ सरकार को समझना चाहिए और निचले स्तर पर कितना असंतोष है यह देखना चाहिए। केंद्र में बैठी सरकार के पास एक के बाद एक एपिसोड रहते हैं जो हमें आपस में बांट कर रखने का काम करते हैं, पर हमें मूल मुद्दे को ही ध्यान में रखना चाहिए। हमें कार्पोरेट लूट के खिलाफ आंदोलन कर जल-जंगल और जमीन को बचाना है।

विधायक धर्मजीत सिंह ठाकुर ने सभा में कहा कि कांग्रेस नेता राहुल गांधीर और मुख्यमंत्री ने मदनपुर पहुंचकर वहां के लोगों को आश्वस्त किया था कि जंगल को सुरक्षित रखा जाएगा, लोगों का विश्वास टूटना नहीं चाहिए।

इसके पूर्व छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला ने हसदेव बचाओ आंदोलन के बारे में अब तक की गतिविधि और प्रगति के बारे में जानकारी दी।

सभा में प्रथमेश मिश्रा, सुदीप श्रीवास्तव, डॉ रश्मि बुधिया सहित प्रदेश तथा अन्य राज्यों से आए अनेक एक्टिविस्ट उपस्थित थे।

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