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सात्विक आहार में छिपा है स्वस्थ परिवार का राज-राष्ट्रसंत ललितप्रभजी
27-Jul-2022 12:40 PM
सात्विक आहार में छिपा है स्वस्थ परिवार का राज-राष्ट्रसंत ललितप्रभजी

रायपुर, 27 जुलाई। ‘‘आहार में छिपा है स्वस्थ परिवार की खुशहाली का राज। जीवन निर्माण में जितनी माता-पिता की भूमिका होती है, उतनी ही भूमिका आहार की भी होती है। और हमारी सेहत और बीमारी का अगर कोई मूल आधार या कारण बनता है तो वह है हमारा आहार।’’

ये प्रेरक उद्गार राष्ट्रसंत महोपाध्याय श्रीललितप्रभ सागरजी महाराज ने आउटडोर स्टेडियम बूढ़ापारा में जारी दिव्य सत्संग ‘जीने की कला’ के अंतर्गत स्वास्थ्य सप्ताह के द्वितीय दिवस मंगलवार को ‘कैसा करें आहार कि स्वस्थ रहे परिवार’ विषय पर व्यक्त किए।

शरीर की तरह आहार शुद्धि के लिए भी रहें जागरूक

विषयान्तर्गत संतप्रवर ने आगे कहा कि जैसा आहार-वैसा व्यवहार और वैसा विचार। जैसा आदमी का विचार होता है, वैसा ही उसका व्यवहार होता है। जैसा आदमी का व्यवहार होता है, वैसा ही उसका वचन होता है और जैसा आदमी का वचन होता है, वैसा ही उसका जीवन होता है। इसीलिए पुरानी कहावत है- जैसा खाए अन्न-वैसा रहे मन।

स्वस्थ शरीर, स्वस्थ विचार और स्वस्थ मन के लिए, अच्छी सेहत और अच्छे परिवार के लिए सबसे पहले इंसान को किसी चीज की जरूरत है तो वह यह कि उसका भोजन हमेशा सात्विक, संतुलित व निर्मल हो। अगर धर्म मार्ग पर बढऩा है तो इसके लिए पहली जरूरत है वह स्वस्थ शरीर का मालिक हो।

हर व्यक्ति को अपने शरीर की शुद्धि की तरह अपने आहार की शुद्धि के लिए भी जागरूक रहना चाहिए। जीवन तो वीणा के तारों की तरह है, वीणा के तार संगीत तभी पैदा करते हैं जब उसके तारों को साध दिया जाता है। यदि वीणा के तारों को ज्यादा कस दिया जाए या ज्यादा ढीला छोड़ दिया जाए तो वह संगीत पैदा नहीं कर पाता, ऐसे ही जीवन का न तो ज्यादा कसो और न ही उसे ढीला छोड़ दो। कहते हैं- जिंदगी तो रेन-बो की तरह भी है, इंद्रधनुष सात रंगों से बनता है, ऐसे ही जीवन में जब सारे रंग मिलते हैं तब जिंदगी आनंद से भर जाती है।

सुकून भरी जिंदगी ही सबसे बड़ी दौलत

संतश्री ने कहा कि 60 साल पहले के सुख में और आज के कृत्रिम सुविधाओं के सुख में अंतर हो सकता है। आज आपके पास सुविधाएं ज्यादा हैं पर उस जमाने में सुविधाएं भले कम थी लेकिन लोगों को सुकून ज्यादा रहा करता था।

उस सुविधाहीन जिंदगी में हमारे पास बहुत बड़ी दौलत थी और वह थी सुकून भरी जिंदगी। यदि कोई मुझे पूछे कि सबसे सुखी आदमी कौन? तो मैं कहुंगा कि जिसे तीन मिनट में नींद आ जाए तो मानकर चलो वह दुनिया का सबसे सुखी आदमी है। ‘सो जाते हैं फुटपाथ पर अखबार बिछाकर, मजदूर कभी नींद की गोली खाया नहीं करते।

’कई बार अमीरों को यह लगता है कि आज जब वे घर पर आते हैं, तब पत्नी-बच्चे सब मोबाइल, लेपटॉप पर मस्त हैं।

कोई भी खिल-खिलाकर, हिल-मिलकर आगंतुक का अभिवादन तक नहीं करता, तो इससे ज्यादा बुरे दिन आप अपनी जिंदगी में और क्या देखना चाहते हैं। उन्होंने कहा- हो सकता है आज के जमाने में आप लोगों के लिए उन सातों सुखों का कोई महत्व न हो। क्योंकि आज लोगों ने सुख का आधार महंगे मोबाइल, महंगी कार, र्डयवर हो साथ, हर समय हवाई जहाज की टिकट हाथ हो, इन सबको जो मान रखा है। पहले लोग रात को सोते थे तो चैन की नींद सोया करते थे और घर पर प्रेम की रोटी खाया करते थे।

सात प्रकार के सुख कह गए बुुजुर्ग

संतश्री ने आगे कहा- पुराने जमाने में हमारे बड़े-बुजुर्ग सात प्रकार के सुख कह कर गए। तब के जमाने में पहला सुख कहा जाता था- निरोगी काया। निरोगी काया में सबसे बड़ी भूमिका हमारे संतुलित और शुद्ध आहार की होती है। दूसरा सुख- घर में माया। तीसरा सुख- सुलक्षणा नारी। चैथा सुख- पुत्र हो आज्ञाकारी। जवानी में संतान सुख तो सबको मिलता है पर वे किस्मत वाले होते हैं जिन्हें बुढ़ापे में संतान से सुख मिलता है। पांचवा सुख- स्वदेश में वासा। अपने गांव, अपने घर में रहने का जो आनंद है वह और कहीं नहीं। छठा सुख- राज का हो पासा। राजकाज में हमारी पहचान जरूर होनी चाहिए। एक डॉक्टर, एक वकील, एक पुलिस, एक प्रशासनिक व्यक्ति हमारा मित्र जरूर होना चाहिए। और सातवां सुख है-संतोषी जीवन। दुनिया में सबसे सुखी वही है जो संतोषी है। जीवन का निर्माण केवल स्कूली पढ़ाई से ही नहीं हुआ करता, पूर्वजों की पुण्याई और स्वयं के सत्कर्म से भी हुआ करता है।

संतश्री ने बताए नए सात सुख

बड़े-बुजुर्गों द्वारा बताए सात सुखों के अलावा संतश्री ने श्रद्धालुओं को स्वयं द्वारा रचित नए और सात सुखों की परिभाषा बताते कहा कि आठवा सुख है- सुख से चले व्यापार। नवां सुख- घर में सबका हो एक-दूजे से प्यार। दसवां सुख- शांत-निराकुल हो मन। ग्यारहवा सुख है- न बैर-विरोध हो स्वजन। बारहवां सुख है- मन लगे सबका धर्म में। तेरहवां सुख है- न फंसे कभी किसी कुकर्म में। और चैदहवां सुख है- सदा रहें शील व्रतधारी। और अंतिम पंद्रहवा सुख है- आओ हम बनते हैं अरिहंतों के पुजारी।

जीने के लिए खाना आराधना है

संतश्री ने बताया कि भोजन हम दो तरह के करते हैं एक साधु भोजन और एक स्वादु भोजन। एक होता है श्रेय भोजन और एक प्रेय भोजन। तो कौन सा भोजन हमारे शरीर स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है, जरा सोचें। जब आदमी यह तय करे कि उसका आहार, विहार, निहार, शयन, जागरण, संसार का उपभोग संयमित मात्रा में हो तो वह साधु आहार करने वाला हो जाता है। कहते हैं- जीने के लिए खाना आराधना है और खाने के लिए जीना विराधना है। संयम के लिए जीना-खाना, इसी का नाम साधना है। केवल खाना-पीना ही जिंदगी नहीं है। हमारी भारतीय संस्कृति, हमारा स्वास्थ्य खाने-पीने पर नहीं टिका है, स्वस्थ-संतुलित-व्यस्थित, सादगीपूर्ण और सात्विक भोजन पर टिका है। स्वस्थ शरीर का मालिक बनने के लिए रोज सात्विक भोजन करें।

इन गुणों को अपनाकर बनें स्वस्थ जीवन के मालिक

स्वस्थ जीवन का मालिक बनाने वाले गुणों को अपनाने की सीख देते हुए संतश्री ने कहा कि जहां तक हो सके हमें बाजार के भोजन से जरूर बचना चाहिए। स्वस्थ जीवन के लिए बच सकते हो तो इससे जरूर बचो कि मैं बाजारू खाने से बचुंगा। बीमारी को पैदा करने का पहला कारण- बाजार का खाना। दूसरा कारण- माल-मलिंदों का खाना। तीसरा कारण- जीमण बारियों को खाना। चौथा कारण- रसोइयों के हाथ का खाना निरंतर खाना।  स्वस्थ जीवन के लिए दूसरा नियम लें कि मैं हितकारी, सीमित, ऋतु अनुसार ही भोजन करूंगा। रासायनिक खाद्य पदार्थों, सुविधाभोगी स्वादु भोजन, ज्यादा नमक, तेल, तले पदार्थ, ज्यादा शक्कर, जंक, फॉस्ट फूड, नकली दूध, नकली घी लेने से बचें। और ज्यादा भागमभाग-माथाफोड़ी से भी बचिए, इससे ही टेंशन की बीमारी होती है। स्वस्थ काया के लिए तीसरा संकल्प लें कि मैं सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करूंगा। अर्थात् रात्रि भोजन का त्याग करें, यदि न हो सके तो रात्रि में केवल दूध, पानी, जूस ही लें। हम अपने आहार को जितना सात्विक, संयमित रखेंगे, उतना ही स्वस्थ रहेंगे। भोजन कभी भी जूते-चप्पल पहनकर न खाएं। जब भी थाली में भोजन आए तो किसान, भगवान और उसे बनाने वाली गृहिणी को धन्यवाद जरूर अदा करें।

भोजन कैसे करें इसके सूत्र देते हुए उन्होंने बताया कि सुबह नास्ते में तली चीजें, मिठाई, नमकीन न खाएं। उसके स्थान पर फल, गाय का दूध लें।यदि न हो सके तो तली हुईं चीजें सप्ताह में केवल एक बार ही खाएं। जब भी भोजन करें मौनपूर्वक करें। भोजन में मिर्च-मसाले, तेल कम से कम उपयोग करें। ज्यादा नमक, ज्यादा शक्कर और ज्यादा मैदे का उपयोग नुकसानदायी होता है। यह भी विवेक रखें कि स्वयं खाने से पहले किसी को खिलाने का भी आनंद लें। किसी भी सही आहार के लिए चार चरण होते हैं, नंबर एक- खेत में उगाना, नंबर दो चूल्हे पर पकाना, नंबर तीन- दांतों से चबाना और नंबर चार- आंतों में पचाना। यदि उगाना, पकाना, चबाना और पचाना सही हो तो वही सही आहार है। भोजन करते समय रखे जाने वाले विवेक की चर्चा करते हुए संतश्री ने बताया कि एक कौर को 32 बार चबाएं, भूख से थोड़ा कम खाएं, थाली में कभी भी जूठा न छोड़ें, मोबाइल पर बात करते हुए या टीवी देखते हुए भोजन न किया करें और भोजन करने के बाद अपनी थाली अपने हाथों से धोना शुरू कर दें। खाने के बाद थोड़ी देर वज्रासन कर लें अथवा पैदल टहलें।

हर व्यक्ति यदि गाय पालना शुरू कर दे तो गौहत्या पूरी तरह बंद हो जाएगी

संतश्री ने धर्मानुयायियों से आह्वान कर कहा कि आज घरों में चार-चार कारें तो पल रहीं हैं पर एक गाय नहीं पल रही है। यह हमारा दुर्भाग्य है कि हमने गायें पालनी हमने बंद कर दीं और कारें पालना शुरू कर दिया है। मैं आगाह करना चाहुंगा कि देश का हर जैन और हर हिन्दु एक काम कर ले कि अपने घर में एक गाय पालनी शुरू कर दे तो पूरे देश में गौहत्या अगले ही दिन से बंद हो जाएगी। अगर हर व्यक्ति अपने घर में गाय पालनी शुरू कर दे तो गाय बाहर मिलेगी कहां। पुराने जमाने में किसी परिवार के वैभव-संपत्ति का मूल्यांकन उसकी जमीन-जायजाद, हीरे-सोने से नहीं होता था, उस समय मूल्यांकन उसके घर में कितनी गायें और कितना गौधन है इससे किया जाता था।    

धर्मसभा के आरंभ में श्रद्धेय संतश्री ने मारवाड़ी भाव गीत ‘माटी री या काया आखिर, माटी में मिल जावे हेे, क्या रो गर्व करे रे मनवा, क्या पर तू इतरावै हे ...’ के गायन से श्रद्धालुओं को स्वस्थ सुखी जीवन जीने की प्रेरणा दी।

तन मन बुद्धि और हृदय हो स्वस्थ: डॉ. मुनि शांतिप्रियजी

दिव्य सत्संग के पूर्वार्ध में डॉ. मुनिश्री शांतिप्रिय सागरजी ने कहा कि हमारे चार महत्वपूर्ण अंग- तन, मन, बुद्धि और हृदय ये यदि स्वस्थ हैं तो ही मानकर चलिए कि हम स्वस्थ हैं। हम अपने खान-पान के साथ-साथ मेहनत करने और अपने विचारों को अच्छा रखने की आदत डालें। स्वस्थ बने रहने के लिए अपनी जीवन शैली को व्यवस्थित करें। जितना जरूरी खाना है उतना ही जरूरी पचाना भी होता है। नित्यप्रति योग, प्राणायाम व ध्यान करें। अपना खान-पान व्यस्थित रखिए। रोज कम से कम एक हजार कदम जरूर चलें। सुबह-सुबह दस मिनट के लिए दीर्घ श्वांस लेने की आदत डालें। अपने हृदय व दिमाग को स्वस्थ रखने के लिए प्रतिदिन दस मिनट योग निद्रा का अभ्यास अवश्य करें।

तपस्वियों का हुआ बहुमान

धर्मसभा में आज मासक्षमण तप कर रहे विजय संचेती के 19वें उपवास एवं राकेश बागरेचा के आज 15वें उपवास के प्रसंग पर उनका बहुमान किया गया। तपस्वियों का बहुमान मंदिर श्रीऋषभदेव मंदिर ट्र्स्ट के अध्यक्ष विजय कांकरिया, कार्यकारी अध्यक्ष अभय भंसाली, ट्र्स्टीगण तिलोकचंद बरडिय़ा, राजेंद्र गोलछा व उज्जवल झाबक के हाथों किया गया।

इन अतिथियों ने किया दीप प्रज्जवलित

सोमवार की दिव्य सत्संग सभा का शुभारंभ अतिथिगण श्यामसुंदर बैदमुथा, सुरेश बाघमार, पदम डाकलिया, पारसचंद मुणोत, संतोषचंद दुग्गड़, वैभव शाह, संतोष गोलछा, मुकेश चोपड़ा, विजय संचेती, संतोष उज्जवल झाबक ने दीप प्रज्जवलित कर किया। अतिथि सत्कार श्रीऋषभदेव मंदिर ट्र्स्ट के कार्यकारी अध्यक्ष अभय भंसाली द्वारा किया गया। सभी अतिथियों को श्रद्धेय संतश्री के हस्ते ज्ञानपुष्प स्वरूप धार्मिक साहित्य भेंट किये गये। सूचना सत्र का संचालन चातुर्मास समिति के महासचिव पारस पारख ने किया। 

आज प्रवचन ‘मन की शांति पाने के लिए क्या करें’ विषय पर

दिव्य चातुर्मास समिति के अध्यक्ष तिलोकचंद बरडिय़ा, महासचिव पारस पारख, प्रशांत तालेड़ा, कोषाध्यक्ष अमित मुणोत व स्वागताध्यक्ष कमल भंसाली ने संयुक्त जानकारी देते बताया कि स्वास्थ्य सप्ताह के तृतीय दिवस बुधवार 27 जुलाई को सुबह 8:45 बजे से ‘मन की शांति पाने के लिए क्या करें’ विषय पर प्रवचन होगा। श्रीऋषभदेव मंदिर ट्रस्ट एवं दिव्य चातुर्मास समिति ने श्रद्धालुओं को चातुर्मास के सभी कार्यक्रमों व प्रवचन माला में भाग लेने का अनुरोध किया है।

 

 

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