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वैभव चाहे जितना हो मगर वह त्याग के सामने बौना है: राष्ट्रसंत ललितप्रभजी
30-Jul-2022 12:30 PM
वैभव चाहे जितना हो मगर वह त्याग के सामने बौना है: राष्ट्रसंत ललितप्रभजी

रायपुर, 30 जुलाई। ‘‘तपस्या तन की साधना है पर वह मन को साधे बिना नहीं हो सकती। लंबी-लंबी तपस्याएं केवल मन के बलबूते हुआ करती हैं। तपस्या ही व्यक्ति के कर्म को काटती है। नए कर्म न बंधें, इसके लिए व्यक्ति को तप चारित्र््य पालन करना पड़ता है पर पुराने कर्म अर्थात् पूर्व निकाचित कर्मों को काटने के लिए केवल तप ही एक मार्ग है।

 यह जिनशासन की धन्यता है कि इसमें सदियों पूर्व से त्याग-तपस्या की परम्परा रही है। त्यागी-तपस्वियों की जो सेवा-सुश्रुषा करता है वह भी पुण्य का भागी बन जाता है, उसकी सेवा कभी व्यर्थ नहीं जाती। वैभव को भोगने वाले भुला दिए जाते हैं मगर त्याग करने वाले हमेशा याद किए जाते हैं।’’

ये प्रेरक उद्गार राष्ट्रसंत महोपाध्याय श्रीललितप्रभ सागरजी महाराज ने आउटडोर स्टेडियम बूढ़ापारा में जारी दिव्य सत्संग ‘जीने की कला’ के अंतर्गत स्वास्थ्य सप्ताह के चतुर्थ दिवस गुरूवार को ‘तपस्या: मिटाएगी तन-मन की समस्या’ विषय पर व्यक्त किए।

जिंदगी में डरना है तो अशुभ कर्मों से डरो

विषयान्तर्गत संतप्रवर ने आगे कहा कि जिंदगी में डरना है तो अशुभ-अनिष्टकारी कर्मों से डरो क्योंकि कर्मों ने तो भगवान को भी नहीं छोड़ा, कर्म उनके पीछे भी पड़े रहते हैं। हमें हमारे देश की माटी पर गौरव है क्योंकि इस माटी ने जब-जब भी सम्मान-श्रद्धा दी है, तब-तब त्याग और तप को ही सम्मान-श्रद्धा दी है। सिकंदर के पास वैभव ज्यादा रहा और भगवान महावीर के पास त्याग ज्यादा है, यदि दोनों की मूर्ति आपके सामने है तो आगे आकर किसे प्रणाम करने का आपका मन करेगा?

वैभव कितना भी महान क्यों न हो पर त्याग के सामने वह हमेशा बौना होता है। इतिहास में वैभव-संपत्ति, सत्ता-सुंदरी के गर्व में जीने वाले हजारों राजा हुए जो काल के गाल में समा गए। लेकिन महावीर और बुद्ध जैसे त्याग-तप व संयम को जीने वालों की दुनिया में आज भी पूजा होती है।

दुनिया में आदमी चेहरे से नहीं चरित्र से महान हुआ करता है। महावीर की अहिंसा, बुद्ध की करूणा, राम की मर्यादा और कृष्ण के निष्काम कर्मयोग को जन्म देने का सौभाग्य इसी देश की माटी को है। हमारे देश में हीरे वे नहीं हैं जो जमीन से निकलकर आते हैं, हीरे वे हैं जो तप-त्याग, तपस्या-साधना के प्रताप से महान हुए हैं।

लोगों का दिल जीतने में चेहरे की भूमिका केवल 10 परसेंट होती है पर चरित्र ही उसमें 90 परसेंट भूमिका अदा करता है। चेहरे की अवस्था को बदलना हमारे वश में नहीं है पर हमारे जीने का ढंग कैसा हो यह तो हमारे हाथ में अवश्य है।

कर्मों को खपाती और रोगमुक्त करती है तपस्या

संतश्री ने कहा कि हर व्यक्ति को अपने जीवन में त्याग और तपस्या को जरूर जोड़ लेना चाहिए। तपस्या ही आपके पूर्व निकाचित कर्मों को काटती अर्थात् खपाती है और तपस्वी को रोगमुक्त भी करती है।

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