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एमपी के रीवां की खबर है कि एक गांव में तीन महीने पहले 9 बरस की एक बच्ची से रेप के बाद उसका कत्ल करने वाला उसका 13 बरस का सगा भाई ही था। जांच के बाद, डीएनए टेस्ट के बाद पुलिस ने अभी इस लडक़े को उसकी मां और दो बहनों के साथ गिरफ्तार किया है। नाबालिग भाई-बहन को सुधारगृह भेजा गया है, और मां और एक बालिग बहन को जेल भेजा गया है। पुलिस ने जांच के नतीजे बताए हैं कि 13 बरस का यह लडक़ा मोबाइल पर पोर्न वीडियो देखा करता था। एक रात उसने पोर्न वीडियो देखने के बाद अपने पास सो रही छोटी बहन के साथ बलात्कार किया। जब बहन ने यह बात पिता को बताने की धमकी दी, तो उसने 9 बरस की बहन को गला घोंटकर मार डाला। इसके बाद उसने मां को जगाकर सब बताया, फिर मां और दो बहनों ने मिलकर सारे सुबूत खत्म किए, और पुलिस को कहा कि कोई अनजान व्यक्ति ऐसा कर गया है। लेकिन लडक़ी के बदन से मिले डीएनए सेम्पल की जांच से मुजरिम भाई के ही होने के सुबूत मिले, और पुलिस ने एक परिवार के ही इन चार लोगों को गिरफ्तार किया, दो लोग सुधारगृह और दो लोग जेल भेजे गए। छोटी सी बेकसूर लडक़ी बलात्कार और कत्ल से गुजर ही गई। किसी परिवार के साथ इससे बड़ी तबाही और क्या हो सकती है? और सोचने की बात यह है कि यह सिलसिला शुरू कहां से हुआ?
हिन्दुस्तान में किशोरावस्था में पहुंचे लडक़े-लड़कियों के लिए सेक्स की जानकारी पाने का अकेला जरिया पोर्न वीडियो ही रहते हैं। इन दिनों दस बरस के बच्चों को भी ऐसे वीडियो कहीं न कहीं मिल जाते हैं, और जिनके हाथ मोबाइल फोन, लैपटॉप या कम्प्यूटर लग जाते हैं, उनकी पहुंच तो दुनिया के सबसे हिंसक वयस्क वीडियो तक हो जाती है। हालत यह है कि लोग छोटे बच्चों के सेक्स के वीडियो भी एक-दूसरे को भेजते रहते हैं, सोशल मीडिया पर पोस्ट करते रहते हैं, और हर हफ्ते हम अपने आसपास ऐसी गिरफ्तारियां देखते हैं जो कि अंतरराष्ट्रीय निगरानी एजेंसियों की भेजी जानकारी के आधार पर होती हैं, वहां से जानकारी भारत सरकार को आती है, और यहां पर सरकार उसे प्रदेशों में भेजकर बच्चों के पोर्न अपलोड या पोस्ट करने वाले लोगों को गिरफ्तार करती हैं। जो लोग बालिग हो चुके हैं, उन्हें भी नाबालिग लोगों के पोर्न वीडियो पोस्ट न करने की जिम्मेदारी समझ में नहीं आती, क्योंकि उन्हें देह और सेक्स की जानकारी कभी वैज्ञानिक तरीके से दी नहीं गई, और वे सिर्फ पोर्न वीडियो के रास्ते ग्रेजुएशन हासिल करने वाले लोग रहते हैं। उन्हें यह भी समझ नहीं पड़ता कि नाबालिगों के सेक्स की फोटो या उसका वीडियो आगे बढ़ाना जुर्म के दायरे में आता है।
आज 13 बरस का एक लडक़ा घर के भीतर 9 बरस की सगी बहन से बलात्कार कर रहा है, और उसे बलात्कार की जानकारी और उसकी प्रेरणा पोर्न वीडियो से मिल रही है। जबकि उसकी उम्र इतनी हो चुकी थी कि स्कूल में उसकी देह और सेक्स की जिज्ञासा का जवाब वैज्ञानिक जानकारियों के साथ शिक्षकों द्वारा सरल तरीके से दिया जाना चाहिए था, लेकिन वैसा हो नहीं पा रहा है। लोग भारत की एक काल्पनिक ऐतिहासिक परंपरा और संस्कृति का हवाला देते हुए प्रेम और सेक्स के इतने खिलाफ हो गए हैं कि आज कृष्ण के लिए भी गोपियों के साथ रास रचाना मुमकिन नहीं हो पाता। कहीं नदी किनारे, तो कहीं पेड़ों के नीचे कृष्ण की रासलीला की जो तस्वीरें भारत में सैकड़ों बरस से प्रचलित हैं, जिनका बड़ा बखान संस्कृत से लेकर लोकभाषाओं और बोलियों तक में मिलता है, वह आज लाठी खाने लायक काम मान लिया जाता।
एक काल्पनिक और पूरी तरह से झूठी तस्वीर भारत की पुरानी संस्कृति की बनाई गई है जिसका हकीकत से कोई लेना-देना नहीं रहा, और नई पीढ़ी को अपनी देह को समझने से पूरी तरह दूर रखा जाता है। यही वजह है कि बच्चे अपनी जानकारी ऐसे हिंसक और क्रूर पोर्न वीडियो से पाते हैं, जो कि असल जिंदगी का सेक्स भी नहीं बताता। वह सेक्स के मामले में गब्बर सिंह सरीखे एक काल्पनिक किरदार को खड़ा करता है, और न सिर्फ बच्चों, बल्कि हिन्दुस्तानी बालिग लोगों के दिमाग में भी सेक्स की ऐसी कल्पना भर देता है जो कि असल जिंदगी में कभी पूरी नहीं होती। पोर्न फिल्मों के कैमरों के सामने पेशेवर चुनिंदा किस्म के वयस्क कलाकार, कई किस्म की दवाईयों की मदद से सेक्स की जो शक्ल सामने रखते हैं, वहीं से उसके दर्शकों के दिमाग में सेक्स का एक बहुत ही हिंसक रूप बैठ जाता है। और नाबालिग लोगों या छोटे बच्चों के दिमाग में तो यह हिंसक किस्म का प्रायोजित और नाटकीय सेक्स तूफान ही ला देता है।
कुछ बरस ही हुए हैं जब छत्तीसगढ़ के एक परिवार में एक छोटी लडक़ी से, उसी के तीन-चार भाईयों ने गैंगरेप किया था, और परिवार इस दुविधा में पड़ गया था कि सच्ची रिपोर्ट लिखाने से घर के सारे बच्चे सुधारगृह चले जाएंगे, तो रिपोर्ट लिखाई जाए, या नहीं?
फिलहाल इस घटना की चर्चा इसलिए जरूरी है कि तथाकथित भारतीय संस्कृति के फतवों से नौजवान पीढ़ी का दिल-दिमाग विकसित नहीं होता, उसके लिए उन्हें अपनी उम्र के मुताबिक जानकारी दी जानी चाहिए। सत्तारूढ़ पार्टी के लिए यह एक अलोकप्रिय बात हो सकती है कि स्कूलों में सेक्स-शिक्षा या देह-शिक्षा देने का फैसला उसके नाम संग जोड़ा जाए। राजनीतिक दल इससे कतराते रहेंगे। दूसरी तरफ आज के वक्त की बच्चों की पीढ़ी की शारीरिक और मानसिक, भावनात्मक, और सामाजिक जरूरतों को देखते हुए स्कूलों का पाठ्यक्रम बनाने का जिम्मा जिन जानकार विशेषज्ञों पर होना चाहिए, उनकी बजाय वोटों के गलाकाट मुकाबले में लगे हुए नेता यह फैसला लेने लगे हैं। बच्चों की शिक्षा-दीक्षा एक बहुत ही विशेषज्ञता वाला काम है, और उसे हिन्दुस्तान में एक लुभावनी राजनीतिक घोषणा का सामान बना लिया गया है, नेता आमसभाओं के मंच से माईक पर पाठ्यक्रम तय करते हैं, और यह अंदाज देखकर दुनिया के विकसित देश हक्का-बक्का रह सकते हैं, जहां पढ़ाई में नेताओं की कोई दखल नहीं होती। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)