संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : तीन ने दो मोबाइल के लिए एक को मार डाला
01-Oct-2024 6:38 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय :  तीन ने दो मोबाइल के  लिए एक को मार डाला

उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ से एक दिल दहलाने वाली खबर आई है कि मोबाइल फोन पाने के लिए तीन नौजवानों ने ऑनलाईन ऑर्डर किया, और कैश ऑन डिलीवरी से पहुंचे मोबाइल को मुफ्त में पाने के लिए कुरियर कंपनी के डिलीवरी मैन को मार डाला, उसकी लाश उसी के सामानों के बैग में भरकर एक नहर में फेंक दी गई। उसके सामानों से दो मोबाइल मिले, और कुछ नगद रकम भी। मारने वाले दो लोग पकड़ा गए हैं, और एक की तलाश जारी है। यह मामला भयानक इसलिए है कि आज इस्तेमाल हो रहे या सील पैक मोबाइल को भी उनके हैंडसेट सीरियल नंबरों से तलाशा जा सकता है। इसके बाद भी मोबाइल लूटने और उसके लिए कत्ल करने का खतरा इन तीन नौजवानों को समझ नहीं आया। अब जेल के भीतर उम्र गुजारते हुए मोबाइल किसी काम का भी नहीं रहेगा। एक बड़े शहर में रहने वाले नौजवान जो कि ऑनलाईन खरीदी जानते हैं, वे न तो मारे गए नौजवान के मोबाइल फोन से अपने पकड़े जाने का खतरा समझ पाए, न ही लूटे गए मोबाइल फोन के संभावित उपयोग का खतरा उन्हें दिखा। यह तो लखनऊ पुलिस ने बात की बात में डिलीवरी मैन के फोन की आखिरी लोकेशन, उससे किए गए आखिरी कॉल, और इस टेलीफोन नंबर की आखिरी लोकेशन को देखकर ही लाश तलाश ली थी। टेक्नॉलॉजी की मेहरबानी से अब सब कुछ इतना आसान हो गया है कि पुलिस पुख्ता सुबूतों के साथ कुछ घंटों या एक-दो दिनों में ही इस किस्म के अधिकतर जुर्म सुलझा लेती है।

अब एक सवाल यह उठता है कि महंगे मोबाइल का इस किस्म का शौक लोगों को किस तरह मुजरिम बना रहा है। हम लगातार देख रहे हैं कि समाज में एक-दूसरे के देखादेखी, या इश्तहार देख-देखकर लोगों को महंगे गैजेट्स की चाह इतनी हो रही है कि कोई मां-बाप के पैसे चुराकर शौक पूरा कर रहे हैं, कोई मां-बाप से सामान न मिलने पर खुदकुशी कर रहे हैं, और कुछ लोग ब्लैकमेलिंग जैसे कई तरह के जुर्म करते हुए मर्जी के सामान जुटा रहे हैं। कई मामलों में यह भी सुनाई देता है कि नौजवान पीढ़ी किस तरह सामानों के मोह में तन बेचने को भी तैयार हो जाती है। ऐसा लगता है कि अपनी असल हैसियत को याद रखने के बजाय लोग दूसरों की नकल करने पर अपने को बेबस पाते हैं। बहुत से किशोर-किशोरियां अपने आसपास के बच्चों के महंगे सामान देखकर हीनभावना के शिकार होने लगते हैं, और ऐसे में आसपास के कुछ चालाक लोग उन्हें कुछ तोहफे देकर उनका शोषण करना बड़ा आसान पाते हैं। न सिर्फ महंगे सामान, बल्कि महंगी जीवनशैली लोगों की समझ छीन ले रही है, और लोग सोशल मीडिया पर अपनी एक बड़ी चकाचौंध और चमकीली दिखने वाली तस्वीर को गढऩे में लग जाते हैं। टीन एज बच्चों से लेकर किसी भी बड़ी उम्र के लोगों तक अब यह दबाव बने रहता है कि वे अपने आसपास के ऑनलाईन दोस्तों की बराबरी करते हुए अपने महंगे सामानों की नुमाइश करते चलें, ताकि किसी भी तरह से पीछे न रह जाएं। आज ऑनलाईन और दूसरे किस्म के बहुत से जुर्म शान-शौकत की चाह या उसके दिखावे की वजह से भी हो रहे हैं, और लोग दूसरों के फैशन के सामान, दूसरों के फोन जैसे गैजेट्स देख-देखकर हीनभावना में जा रहे हैं, और फिर उससे उबरने के लिए या तो अपने मां-बाप को ब्लैकमेल करते हैं, या फिर खुली दुनिया में किसी और को ब्लैकमेल करके जुर्म की कमाई से खर्च करना चाहते हैं।

आज की न सिर्फ नौजवान, बल्कि किसी भी तरह की पीढ़ी की इस दिक्कत का कोई आसान इलाज नहीं है। बाजार लोगों को खरीदी के लिए उकसाने में लगे रहता है, और इस उकसावे से बच पाना खासा मुश्किल काम रहता है। नई पीढ़ी तो क्या, अब तो पुरानी पीढ़ी को भी सादा जीवन-उच्च विचार की नसीहत देना आसान काम नहीं रह गया है। जब एक-दूसरे के देखादेखी हर किस्म के खर्चीले काम करने का एक दबाव बने रहता है, तो फिर आसपास के समझदार लोगों की नसीहत बहुत काम नहीं आती है। सादा जीवन एक किस्म की हीनभावना भरने लगता है, और आसपास के अपने से अधिक संपन्न लोगों का जीवन एक दबाव बनाने लगता है कि कुछ भी करके उनकी नकल की जाए।

देखादेखी का दबाव, और दिखावे की चाह मिलकर लोगों से कई तरह के गलत काम करवाते हैं। इसमें लोग दूसरों को मारने को भी तैयार हो जाते हैं, जैसा कि अभी लखनऊ की इस वारदात में हुआ है, या अपने आपको खत्म करने को भी तैयार हो जाते हैं जैसा कि देश में हर दिन कहीं न कहीं से आता है कि मनपसंद मोबाइल न मिलने पर किसी बच्चे ने अपने को खत्म कर लिया। अब ऐसी एक-एक खबर हजारों दूसरे लोगों पर एक दबाव पैदा करती है कि वे चाहे कर्ज लेकर ही सही, अपने बच्चों की फरमाइश पूरी करें, क्योंकि ऐसा न करने पर उनकी जिंदगी पर एक खतरा मंडरा सकता है। बहुत कम मां-बाप ऐसे होंगे जो कर्ज लेकर भी अपने बच्चों की नाजायज मांगों को भी पूरा न करें। यह सिलसिला बच्चों और नई पीढ़ी को यह भी सिखा देता है कि वे जिद करके क्या-क्या हासिल कर सकते हैं।

इसका एक ही आंशिक इलाज हमें दिखता है कि बच्चों के सामने सादगी को एक मिसाल की तरह पेश किया जाए। मां-बाप खुद भी अगर सादगी बरतेंगे, उपकरणों, और फैशन पर सीमित खर्च करेंगे, अपने बच्चों को स्कूल-कॉलेज में, और दोस्तों के बीच सादगी से रहना सिखाएंगे, तो हो सकता है धीरे-धीरे उन पर भी असर हो, और उनके आसपास के दायरे पर भी। लेकिन कुछ अतिसंपन्न और गैरजिम्मेदार लोग ऐसे भी रहते हैं जो अपने बच्चों को अपनी संपन्नता का एक टुकड़ा देने को ही अपनी मोहब्बत मान लेते हैं। नतीजा यह होता है कि संपन्नता की ताकत इन बच्चों को औरों के लिए एक बुरी मिसाल तो बना ही देती है, इसके साथ-साथ यह ताकत उन्हें कुछ और किस्म के जुर्म में भी फंसा देती है, जो कि एक अलग मुद्दा है, और उसे हम आज यहां जोडऩा नहीं चाहते हैं। बच्चों को विरासत में अगर सादगी सिखाएंगे, तो वे जिंदगी में कई किस्म की दिक्कतों से बच जाएंगे। सादगी सिर्फ गरीबों के लिए जरूरी नहीं है, अमीर लोग भी अगली पीढ़ी को सादगी सिखा सकते हैं।  (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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