संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : मन, वचन, और कर्म से जो गांधी हैं, उनकी कहानी...
02-Oct-2024 2:27 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय :  मन, वचन, और कर्म से जो  गांधी हैं, उनकी कहानी...

अभी दिल्ली के एक पांच सितारा होटल में एक सम्मेलन में भाषण देने आए आईआईटी मुम्बई के एक प्रोफेसर की एक तस्वीर चारों तरफ फैल रही है। बड़े ऑलीशान होटल में बैठे वे लैपटॉप पर काम कर रहे हैं, और उनके मोजे बुरी तरह फटे हुए दिख रहे हैं। इस तस्वीर पर प्रो.चेतन सिंह सोलंकी की प्रतिक्रिया सामने आई है, उन्होंने कहा है-हाँ, मेरे मोजे फट गए हैं, उन्हें बदलने की जरूरत है, मैं ऐसा कर सकता हूं लेकिन प्रकृति ऐसा नहीं कर सकती, प्रकृति में सब कुछ सीमित है, प्रकृति अधिक बर्बादी बर्दाश्त नहीं कर सकती। उन्होंने आगे लिखा है- मैं जो भी खरीदता हूं उसका पूरा-पूरा इस्तेमाल करता हूं। अपनी प्रोडक्टिविटी बढ़ाने के लिए सबसे अच्छे गैजेट का उपयोग कर सकता हूं, लेकिन धरती पर कार्बन प्रदूषण कम से कम करने के लिए कम से कम चीजों का इस्तेमाल करता हूं। उन्होंने लिखा कि मोजे तो दूसरे आ सकते हैं मगर प्रकृति सीमित है। प्रो.सोलंकी को भारत के सोलर मैन या सोलर गांधी के रूप में जाना जाता है, और वे लगातार ऊर्जा और पर्यावरण बचाने की कोशिश में लगे दिखते हैं। वे आईआईटी मुम्बई में दो दशकों से पढ़ा रहे हैं, और सोशल मीडिया सहित दूसरी जगहों पर वे सामानों की कम खपत की वकालत करते हैं। 

हमारे नियमित पाठकों को याद होगा कि हम भी लगातार खपत घटाने की वकालत करते रहते हैं। कई बार हम इसी कॉलम में लिखते हैं कि लोगों को अपने पास गैरजरूरी बच गए सामानों को उन लोगों के बीच बांट देना चाहिए जिन्हें उनकी जरूरत हो। अभी कुछ हफ्ते पहले ही इसी जगह हमने लिखा था कि लोगों को अपने उत्साही परिचितों के छोटे-छोटे समूह बनाकर और लोगों से संपर्क करके उनके पास के जरूरत खो चुके सामानों को जुटाना चाहिए, और उन्हें सबसे अधिक जरूरतमंद लोगों तक पहुंचाने का एक संगठन बनाना चाहिए। इससे धरती पर अधिक चीजों का बनना रूकेगा, और चीजों के निर्माण में पैदा होने वाला कार्बन भी बढऩा थमेगा। दिलचस्प बात यह है कि आज आईआईटी के एक प्रोफेसर अपनी खुद की मिसाल से बिना कुछ कहे हुए जिस तरह एक सोच को बढ़ा रहे हैं, उस सोच को तो एक सदी के भी पहले से गांधी बढ़ाते आए ही हैं। सादगी और किफायत, गांधी के बुनियादी उसूल थे, और उन्होंने अपनी खुद की जिंदगी को इसकी सबसे बड़ी मिसाल बनाकर रखा हुआ था। उन्होंने लोगों के सामने मिसाल पेश करने के लिए यह काम नहीं किया था, उनके लिए यह जीने का एक तरीका ही था, और शायद यही एक तरीका उनके लिए था। गांधी शायद अपनी आखिरी की आधी जिंदगी और किसी भी तरह से नहीं गुजार सकते थे, बजाय अंतहीन सादगी के। 

हमने बीच-बीच में यह कोशिश भी की कि कोई मशहूर और लोकप्रिय खिलाड़ी या कलाकार इस बात के लिए तैयार हों कि वे एक-एक बच चुके दो अलग-अलग किस्म के मोजों को पहनना शुरू करें, तो उससे जो फैशन चलेगी, उससे लोगों के पास के इस तरह के कई सामान इस्तेमाल होने लगेंगे। धरती पर जींस और टी-शर्ट जैसे कपड़े पर्यावरण को बचाने में बहुत मददगार हैं क्योंकि टी-शर्ट को धोना आसान भी है, और जींस को रोज धोना भी नहीं पड़ता है। इन्हें इस्त्री भी नहीं करवाना पड़ता। ये घिस-घिसकर, रंग खोकर, और कहीं-कहीं से फटकर भी फैशन में बने रहने वाले कपड़े हैं, और बरस-दर-बरस इनका कुछ नहीं बिगड़ता। फेसबुक की कंपनी मेटा के मालिक मार्क जुकरबर्ग तकरीबन तमाम वक्त एक ही तरह की जींस, और एक ही रंग के टी-शर्ट पहने हुए दिखते हैं, और बड़े सीमित कपड़ों में काम चल जाता है। दुनिया का एक सबसे बड़ा कारोबारी इस तरह रहता है, और गरीबों के जनकल्याण के एक सबसे बड़े अर्थशास्त्री, भारत में बसे हुए यूरोपीय मूल के ज्यॉं द्रेज को भी बहुत साधारण सी जींस और बड़ी कम लंबाई के सूती कुर्ते में देखा जा सकता है, और वे बस एक जोड़ी अतिरिक्त कपड़ा लेकर सफर कर लेते हैं, कहीं सार्वजनिक नल पर भी नहा लेते हैं, और सडक़ किनारे बैठकर खा लेते हैं। होनहार वे इतने हैं कि नोबल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमत्र्य सेन ने ज्यॉं द्रेज के साथ मिलकर आधा दर्जन से अधिक किताबें लिखी हैं, और वे लिखने का सारा श्रेय ज्यॉं को ही देते हैं। प्रो.सोलंकी और ज्यॉं द्रेज दोनों ही विश्वविद्यालयों में पढ़ाने वाले लोग हैं, और सादगी से रहते हैं। 

हमारे पाठकों को याद होगा कि अभी कुछ हफ्ते पहले ही हमने या तो इसी जगह एडिटोरियल में, या हमारे अखबार के यूट्यूब चैनल, इंडिया-आजकल, के वीडिटोरियल में स्टारबक्स नाम की एक महंगी खानपान की चेन के बहिष्कार की बात कही थी। अभी इस अमरीकी कंपनी ने अपना नया मुखिया नियुक्त किया है जो अमरीका के कैलिफोर्निया में रहता है। कंपनी का मुख्यालय टेक्सास में है, और कंपनी की नीति के हिसाब से हफ्ते में कम से कम तीन दिन ऑफिस आकर काम करना जरूरी है। कंपनी ने अपने इस नए मुखिया से हुए अनुबंध में उसे घर से दफ्तर आने-जाने के लिए कंपनी का जेट विमान दिया है, और हर दिन 16 सौ किलोमीटर का सफर करके यह व्यक्ति ऑफिस पहुंचेगा, और फिर इतने ही सफर से घर लौटेगा। दुनिया में पर्यावरण की फिक्र करने वाले लोगों ने इस हत्यारे दर्जे की बर्बादी का विरोध किया है, और हमने भी कहा है कि हम इस ब्रांड का बहिष्कार करेंगे। यह एक अलग बात है कि वैसे भी इतनी महंगी जगह पर अपनी जेब के खर्च से जाना हमारे लिए आसान नहीं था। 

दुनिया में सबसे अधिक चर्चित, अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनल्ड ट्रंप, या कमला हैरिस के राष्ट्रपति बनने से पर्यावरण पर क्या फर्क पड़ेगा, इस पर भी अभी चर्चा चल रही है। इन दोनों की पर्यावरण नीतियां एकदम अलग-अलग हैं, और डोनल्ड ट्रंप की बददिमाग कारोबारी अक्ल का हाल यह है कि वह पर्यावरण बचाने की तमाम कोशिशों को ग्रीन-फ्रॉड कहता है। दूसरी तरफ मौजूदा अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडन और उनकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने पिछले करीब चार बरस में लगातार पर्यावरण बचाने, और जलवायु परिवर्तन को धीमा करने की कोशिशें की हैं। कल ही एक पॉडकास्ट की चर्चा में एक विशेषज्ञ ने यह बात गिनाई कि एक औसत अमरीकी की साल भर की सामानों की औसत खपत, चीनी के मुकाबले दो गुना है, और हिन्दुस्तानी के मुकाबले आठ गुना है। अब अमरीकियों से बहुत कम खपत वाले हिन्दुस्तानियों में भी सामानों की खपत और बर्बादी संपन्नता के अनुपात में साथ-साथ बढ़ती चलती हैं। लोग एक वक्त खदान मजदूरों के लिए बनाई गई जींस का इस्तेमाल तो करते हैं, लेकिन उसे भी भारी बर्बादी से बनने वाली बिजली की इस्त्री से ऐसा प्रेस करके पहनते हैं जिसका कुछ मिनट बाद ही पता नहीं चलता। 

इसलिए चाहे प्रो.सोलंकी से हो, चाहे ज्यॉं द्रेज जैसे लोगों से हो, कहीं न कहीं सादगी और किफायत पर चर्चा जारी रहनी चाहिए। इस बात को शुरू करते समय हमको याद भी नहीं था कि आज 2 अक्टूबर, गांधी जयंती है। और गांधी जयंती के दिन सादगी और किफायत से अधिक आज और किस मुद्दे पर चर्चा की जरूरत है? कहने के लिए तो भारत के कुछ धर्मों में भी लोगों को गैरजरूरी संग्रह के खिलाफ नसीहत दी गई है, कुछ धर्मों में दान की महिमा गिनाई गई है, लेकिन लोगों से अपने सामानों का मोह छूटता नहीं है, और गैरजरूरी खरीददारी की हसरत बाजार के हमलावर इश्तहारों की मेहरबानी से लगातार बनी रहती है, बढ़ती चली जाती है। लोगों के इलेक्ट्रॉनिक सामान अपनी जिंदगी जी नहीं पाते हैं, और नए मॉडल्स आ जाने से लोग सबसे नया सामान अपने पास रहने की चाह से नई खरीदी करते रहते हैं। आईआईटी जैसे विश्वविख्यात संस्थान की तनख्वाह में नया मोजा खरीदना कोई बड़ी बात नहीं होगी, लेकिन खरीदने की ताकत रहते हुए फटी जुराबों से काम चलाना बड़ी बात है। यह एक अलग बात है कि आज की भौतिकतावादी दुनिया में बड़प्पन की पहचान कोई रखना भी नहीं चाहते। 

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