संपादकीय
देश की राजधानी की खबर है कि एक महिला एक मोबाइल ऐप का इस्तेमाल करके अपनी आवाज पुरूष की आवाज में बदल लेती थी, और फिर एक दूसरे मोबाइल ऐप का इस्तेमाल करके अपने फोन से की गई कॉल को किसी और नंबर से आई हुई कॉल दिखा देती थी। नतीजा यह होता था कि फोन पाने वाले लोगों को अपने स्क्रीन पर कोई और नंबर दिखता था। यह दूसरा एप्लीकेशन बरसों से बाजार में है जिसमें फोन लगाने वाले अपनी मर्जी से कोई नंबर डाल सकते हैं, और पाने वालों को कॉल उस डाले गए नंबर से आई हुई दिखेगी। इसके अलावा एआई के इस्तेमाल से अब यह भी हो गया है कि किसी व्यक्ति की आवाज की रिकॉर्डिंग एआई में डालकर उसे कुछ मिनटों में ही प्रशिक्षित किया जा सकता है, और उसके बाद वह एआई उस व्यक्ति की आवाज में ही किसी से फोन पर बात भी करवा सकता है। दुनिया भर में ऐसे हजारों लोगों को हर दिन फोन मिल रहे हैं, जिनमें उनके बच्चों की आवाजों में उन्हें यह सुनने मिलता है कि उनका अपहरण हो गया है। और एआई की मदद से सामने से घरवालों के सवालों के जवाब भी उनके बच्चों की आवाज में मिलने लगते हैं जो कि अपहरणकर्ता बोलते रहते हैं। जिन लोगों के बच्चे टेलीफोन की पहुंच से दूर रहते हैं, उनके मां-बाप को इस तरह झांसा देना, और उगाही करना आसान रहता है। पिछले बरस अमरीकी संसद में एआई के खतरों पर एक कमेटी की सुनवाई में एक महिला ने बताया कि किस तरह अपराधियों ने उसे उसकी बेटी की आवाज में ही बात की, और वह रोती-सुबकती अपनी बेटी की आवाज से हिल गई थी। दुनिया भर में एआई की मदद से जितने तरह के झांसे आज दिए जा रहे हैं, उनसे लगता है कि लोग अब अपने घर के लोगों के नंबरों से आने वाली कॉल पर भी उनकी चीखती-चिल्लाती आवाज सुनकर भी एकदम से भरोसा न करें, क्योंकि वह नंबर भी झूठा गढ़ा जा सकता है, और वह आवाज भी।
यह सिलसिला बढ़ते ही जाना है क्योंकि एआई की मदद से बनने वाले ऐसे एप्लीकेशन हर दिन मुजरिमों के लिए एक नया औजार लेकर आ रहे हैं। आज तो लोग इसी को सबसे बड़ी शिनाख्त मानते हैं कि किस नंबर से फोन आ रहा है। लोग अपने स्क्रीन पर किसी नंबर को देखकर लाखों रूपए भी किसी के हवाले कर देते हैं। लेकिन अब बिल्कुल आम लोगों के हाथ लग चुके ऐसे खतरनाक एआई हथियार जिंदगी को बड़ा मुश्किल बना रहे हैं। देश की राजधानी की जिस घटना से हमने आज की यह बात शुरू की है, उसमें यह जालसाज महिला बड़े-बड़े अफसरों का नाम लेकर धमकाती थी, और अपना काम निकालती थी। अभी तक छोटे पैमाने पर यह जालसाजी इतनी ही होती थी कि लोग अपने प्रोफाइल फोटो की जगह किसी और का प्रोफाइल फोटो लगा लेते थे, और अपने नंबर पर नाम उस फोटो वाले का डाल लेते थे, तो धोखाधड़ी बहुत हद तक कामयाब हो जाती थी। देश के एक बड़े उद्योगपति को धोखा देने के लिए अभी भारत में साइबर-ठगों ने सुप्रीम कोर्ट की एक नकली ऑनलाईन सुनवाई गढ़ दी, और इस बहुत बड़े उद्योगपति को दो दिन डिजिटल अरेस्ट में रखकर उसे सुप्रीम कोर्ट की ‘सुनवाई’ दिखाई कि किस तरह उसकी कंपनी ने नकली पासपोर्ट का काम किया है। इसके बाद इन ठगों ने ‘सुप्रीम कोर्ट’ मुख्य न्यायाधीश बनकर ऑनलाईन यह हुक्म दिया कि यह उद्योगपति न तो अपने मोबाइल का कैमरा बंद करेगा, और न ही किसी को संदेश भेजेगा, या फोन करेगा। उसे सोते समय भी मोबाइल-कैमरा अपने सामने चालू रखने के लिए मजबूर किया गया। इस बड़े कारोबारी ने इन दो दिनों में सात करोड़ रूपए ठगों को ट्रांसफर कर दिए। जब पद्मश्री से सम्मानित हजारों करोड़ के कारोबार के मुखिया को सुप्रीम कोर्ट बनकर ऐसा झांसा दिया गया, तो आम लोगों की क्या बिसात है?
हम बार-बार साइबर-सावधानी के मुद्दे पर लिखते हैं, लेकिन यह भी समझने की जरूरत है कि जनता की जागरूकता की एक सीमा रहती है। हर दिन बाजार में आते ठगी के नए-नए औजारों और हथियारों की खबर हर किसी को नहीं हो सकती। लेकिन किसी देश की सरकार इतनी क्षमता रखती है कि वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लगातार निगरानी रखकर, और अंतरराष्ट्रीय जांच एजेंसियों से ताजा जानकारी लेकर अपने देश के लोगों को सावधान कर सके, और अपने देश की साइबर ट्रैफिक पर की जा रही निगरानी से यह पता लगा सके कि ठगी के कौन-कौन से एप्लीकेशन और सॉफ्टवेयर कौन इस्तेमाल कर रहे हैं, और किन पर इस्तेमाल कर रहे हैं। लोगों की निजता भंग किए बिना भी सरकार ऐसा कर सकती है। साथ ही जनता से इस बात की इजाजत ली जा सकती है कि उनके नंबरों, और ईमेल एड्रेस या उनके सोशल मीडिया खातों पर सरकार धोखाधड़ी रोकने के लिए निगरानी रख सके। जिन लोगों को अपनी निजता की अधिक परवाह नहीं होगी, वे ऐसी इजाजत भी दे सकते हैं, और सरकार उन्हें धोखा देने की कोशिशों को कुछ अधिक आसानी से रोक सकती है।
ये तमाम कोशिशें इसलिए जरूरी हैं कि लोगों का फोन-इंटरनेट का इस्तेमाल लगातार बढऩा है, और उनके बैंक और दूसरे भुगतान के तरीके फोन-इंटरनेट पर ही रहने हैं, और ऐसे में उनको लूटना, ठगना, ब्लैकमेल करना, यह सब बढ़ते चलेगा। यह रक्तहीन-लूट लुटेरों को अपने घर, या किसी बगीचे में बैठे-बैठे एक फोन पर लाखों-करोड़ों कमा लेने का अनोखा मौका मुहैया करा रही है। हम लगातार देख रहे हैं कि अब रकम लूटने के लिए चाकू-पिस्तौल का इस्तेमाल पुरानी, और घटिया किस्म की तकनीक हो गई है। आधुनिक तकनीक लोगों को ऑनलाईन ठगना, और लूटना है। देश-प्रदेश की सरकारों को अपने नागरिकों को साइबर-हिफाजत दिलवानी चाहिए, वरना देशों को रोज की जिंदगी में साइबर तकनीक को बढ़ावा देने का कोई नैतिक अधिकार नहीं रह जाता। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)