बस्तर

प्रवीर चंद्र भंजदेव की पुण्यतिथि 25 को, प्रार्थना सभा व विचार गोष्ठी
23-Mar-2022 4:55 PM
प्रवीर चंद्र भंजदेव की पुण्यतिथि 25 को, प्रार्थना सभा व विचार गोष्ठी

जगदलपुर, 23 मार्च। 25 मार्च को अमर शहीद स्व. महाराजा प्रवीर चन्द्र भंजदेव की 56 वीं पुण्यतिथि है। प्रति वर्ष अनुसार इस वर्ष भी स्व. महाराजा साहब के प्रतिमा स्थल एवं राजा रूद्र प्रताप देव टाउन क्लब प्रांगण, दंतेश्वरी मन्दिर के समक्ष 11 बजे प्रात: बलिदान दिवस के रूप में महाराजा प्रवीर बस्तर विकास वाहिनी, प्रवीर सेना एवं महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव शहादत आयोजन समिति द्वारा श्रद्धांजली, प्रार्थना सभा एवं विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया है। तथा असंख्य बस्तर वासियों ने महाराजा प्रवीर चन्द्र जी के साथ बस्तर के हितों में संघर्ष करते हुए शहादत् दी थी, उन्हें भी श्रद्धांजली अर्पित की जावेगी।

सर्वविदित है कि बस्तर के हित संरक्षण और आदिवासी समुदाय के लिए सदैव करबद्ध रहे लोकप्रिय महाराजा प्रवीर चन्द्र भंजदेव  25 मार्च 1966 को तत्कालीन शासन से संघर्ष करते हुए शहीद हो गये थे, महाराजा साहब के साथ असंख्य बस्तर हितैषी तत्कालीन शासन के कुटील षडयंत्र का शिकार हुए थे। जब तक महाराजा प्रवीर जीवित थे, तब तक सजग प्रहरी के रूप में बस्तरवासियों को अपनी सेवायें प्रदान करते रहे, जीवन पर्यन्त आदिवासी हितों के लिए संघर्ष किया। यही कारण है कि बस्तर के लिए समर्पित महाराजा को समूचे बस्तर में आज भी बहुत श्रद्धा से स्मरण किया जाता है। महाराजा प्रवीर जनविरोधी नीतियों के प्रबल प्रखर विरोधी थे, उन्होंनें अपने कार्यकाल में बस्तर की उपेक्षा करने वाले से कभी समझौता नहीं किया। मालिक मकबूजा की आड़ में आदिवासियों के शोषण का जमकर विरोध किया, बैलाडिला लौह पर्वत श्रृंखला को आन्ध्र के निज़ाम के हाथों से बचाकर खरबों की सम्पदा को बस्तर के नक्शे में लाना महाराजा साहब का बस्तर हित में उल्लेखनीय कार्य था। साथ ही उनकी माताश्री एकमात्र महिला शासक महारानी प्रफुल्ल कुमारी देवी द्वारा आधार रखे गये समूचे बस्तर हेतु जीवनदायिनी महारानी अस्पताल को मूर्त रूप प्रदान करना महाराजा का उल्लेखनीय कार्य था जो बैलाडिला पहाड़  भौतिक रूप से और महारानी अस्पताल  जीवनदायिनी के रूप में बस्तर के हर आदमी से आज भी जुड़ा है और कई पीढिय़ों तक जुड़ा रहेगा और बस्तरवासियों को महाराजा प्रवीर की याद दिलाता रहेगा।

महाराजा प्रवीर को अच्छे घुड़सवार, कुशल क्रिकेट खिलाड़ी, साहित्यकार, मर्मज्ञ ज्योतिष, योगी पुरूष, दानवीर एवं पारदर्शी व्यक्तित्व के रूप विश्व भर में अपार ख्याति प्राप्त थी। आराध्य देवी मांई दंतेश्वरी के अनन्त भक्त थे, प्रकाण्ड विद्वान होने के साथ-साथ उच्च स्तरीय लेखक भी थे, उन्होंने बस्तर के जनजीवन, परम्पराओं, विकास संभावनाओं को केन्द्रित कर कई महत्वपूर्ण किताबें लिखी हैं, जो अब ऐतिहासिक धरोहर है। राजपुरूष होते हुए भी जीवन भर एक सिद्ध योग पुरूष की भांति अपने कम जीवन में बस्तरवासी के हितों में बलिदान दे दिया। इस शहादत को बस्तरवासी कभी भूला नहीं सकते। ना ही इस क्षति की पूर्ति की जा सकती है।

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