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बस्तर की गोदना कला को संरक्षित करने प्रशिक्षण युवाओं को मिलेगा रोजगार के नए अवसर
05-Jun-2022 7:25 PM
 बस्तर की गोदना कला को संरक्षित करने प्रशिक्षण युवाओं को मिलेगा रोजगार के नए अवसर

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

जगदलपुर, 5 जून। बस्तर अपनी कला और संस्कृति के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। जहां के प्रत्येक क्षेत्र में अलग-अलग संस्कृति-कला देखने को मिलती है। गोदना कला भी बस्तर की संस्कृति की विशेष पहचान है। गोदना कला को संरक्षित करने की उद्देश्य से  बस्तर जिला प्रशासन की पहल पर गोदना कला प्रशिक्षण का आयोजन किया जा रहा है।

आसना स्थित बादल एकेडमी में गोदना विशेषज्ञ द्वारा युवाओं को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इस प्रशिक्षण का आयोजन 20 मई से 6 जून तक किया जा रहा है। बस्तर के अलग-अलग ब्लॉक से आकर युवक-युवती प्रशिक्षण का लाभ ले रहे है।

बस्तर की गोदना कला को संरक्षित करने की विशेष पहल

बस्तर की गोदना कला को पूरे देश में जाना जाता है। जहां आदिवासी समुदाय के लोग इसे अपने शरीर के विभिन्न अंगों में छपवाते है। समय के साथ इस कला को लोग भुलाते गए। इसी कला को संरक्षित करने प्रशिक्षण का आयोजन किया जा रहा है। इस प्रशिक्षण में 20 युवक-युवती भाग ले कर गोदना कला सिख रहे है। गोदना कला विशेषज्ञ शैली जी ने बताता कि बस्तर के विभिन्न हिस्सों में कई तरह की कलाएं विद्यमान है। इसी में एक विशेष कला है गोदना। आज यह कला विलुप्त होने के कगार में है, जिसे प्रशिक्षण के माध्यम से संरक्षित करने का प्रयास किया जा रहा है। इस प्रशिक्षण में कई तरह के डिजाइन बनाना भी सिखाया जा रहा है। इसके लिए कैटलॉग भी बनाया गया है।

गोदना कला से युवाओं को मिलेगा रोजगार के नए अवसर

बस्तर जिला प्रशासन की पहल पर शुरू किए गए गोदना कला प्रशिक्षण से युवाओं को रोजगार के अवसर भी मिल सकेगा। प्रशिक्षण के उपरांत युवा बस्तर ट्राइबल टैटू स्टाल लगा कर आमदनी प्राप्त कर सकेंगे। इसके लिए चित्रकोट में विशेष सेटअप भी तैयार किया जाएगा। शैली जी ने बताया कि प्रशिक्षण के दौरान ही काम मिलना शुरू हो गया है।

गोदना कला प्रशिक्षण पर बात करते हुए बस्तर कलेक्टर रजत बंसल के कहा कि बादल एकेडमी में गोदना प्रशिक्षण आयोजित की जा रही है। बस्तर के ऐसे कई पहलू है, जो दुनिया भर में बस्तर की अलग और अनोखी पहचान को जाहिर करते है। उसी पहलू में से एक है बस्तर की लोक कला और लोक संस्कृति। गोदना बस्तर की एक पारंपरिक कला है, जिसे संरक्षित करने के उद्देश्य से हमने यह पहल की है। ताकि पूरी दुनिया बस्तर की इस विशेष कला से रूबरू हो सके व बस्तर के युवाओं को इसका प्रत्यक्ष लाभ मिल सके।

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