बस्तर
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
जगदलपुर 16 जुलाई। कमिश्नर श्याम धावड़े ने कहा कि संभाग के सभी जिलों के दौरा में महसूस किया कि वन अधिकार मान्यता पत्र के प्रति लोगों में जागरूकता की कमी है। वनों पर आश्रित वनवासी को एफआरए क़ानून के प्रावधानों के तहत लाभ दिया जाना आवश्यक है। इस योजना लाभ पात्र हितग्राही को मिलना चाहिए। साथ ही सामुदायिक वन संसाधन अधिकारों की मान्यता और प्रबंधन के संबंध में सीमा विवाद की स्थिति का निराकरण राजस्व, वन और पंचायत विभाग के मैदानी अमलों के द्वारा किया जाए।
श्री धावड़े ने जिला कार्यालय जगदलपुर के प्रेरणा हाल में आयोजित सामुदायिक वन संसाधन अधिकारों की मान्यता और प्रबंधन की संभाग स्तरीय परिचर्चा में आगे कहा कि इस कार्यशाला में पहुँचे सभी समाज प्रमुख, वन ग्राम समिति के सदस्य कार्यशाला में सीखकर समाज के अंतिम व्यक्ति तक लाभ दिलाने का प्रयास करें।
कलेक्टर चंदन कुमार ने कहा कि वनों को संरक्षित करना हम सबका दायित्व है। सीएफआरआर के लिए ग्रामीणों से माँग आनी चाहिए किंतु जागरूकता की कमी से ग्रामीण इस क़ानून का लाभ नहीं ले पा रहे है। साथ ही कुछ मामले अधिकारों का दुरूपयोग का भी आया। जंगल में सामुदायिक अधिकार है जंगल के सभी वनोंत्पाद सभी का हक़ है इसलिए वनों को संरक्षित करना भी ज़रूरी है। वन अधिकार मान्यता पत्र के प्रावधानों के तहत हितग्राही को देने के मामले में वन अधिकार समिति को सजग होना ज़रूरी है।
मुख्य वन संरक्षक मोहम्मद शाहिद ने कहा कि जंगल में निवास करने वाले नागरिकों को सामुदायिक प्रबंधन का दायित्व दिया जाना चाहिए। समुदाय से आवेदन ग्रामसभा के माध्यम से आए इसके लिए लोंगों में जागरूकता ज़रूरी है। प्रबंधन योजना में वन उत्पाद तथा वनों को बचाव पर सहभागिता आवश्यक है, लघुवनोपज वाले फलदार पेड़-पौधे का संरक्षण भी ज़रूरी है। वन संसाधन में सीमा विवाद की स्थिति बनती है इसके लिए आपस में मिलकर समस्या का निराकरण करें।
इस परिचर्चा का आयोजन जिला प्रशासन बस्तर और एटीईईई बेंगलुरु के द्वारा किया गया था जिसमें बस्तर संभाग और जिले में सामुदायिक वन संसाधन अधिकारों का अमल की स्थिति- चुनौतियां, सीएफआरआर के सुचारु क्रियान्वयन के लिए प्रशिक्षण और क्षमतावर्धन, सीएफआरआर दावा निर्माण और अनुमोदन की प्रकिया में वेबजीआईएस और मोबिलऐप की उपयोगिता,सीमा विवाद, क्षेत्र का प्रबंधन, आजीविका विकास के लिए लघु वनोपज और सीएफआरआर के क्रियान्वयन पर परिचर्चा किया गया।कार्यशाला में एटीईईई बेंगलुरु डॉ. शरतचंद्र लेले, डॉ. श्रुति मोकाशी, डॉ. वेंकट रामानुजम सहित अन्य प्रशिक्षक उपस्थित थे।