गरियाबंद

यह भक्तों की नगरी, जहां संत उन्हें खोजते हुए स्वयं पहुंच जाते हैं-प्रसन्न सागरजी महाराज
24-Apr-2023 7:51 PM
 यह भक्तों की नगरी, जहां संत उन्हें खोजते हुए स्वयं पहुंच जाते हैं-प्रसन्न सागरजी महाराज

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

नवापारा-राजिम, 24 अप्रैल। जहां भक्तों की संतों के प्रति आस्था प्रबल है तो संत उन्हें खोजते हुए स्वयं पहुंच जाते हैं। संतों का जाना कहीं और रहता है मगर वे भक्तों की ओर मुड़ जाते हैं। नगर प्रवेश के बाद उन्होंने देखा कि हर श्रावक साधु संतों का सम्मान करने सडक़ पर उतर आया है जो आ नहीं सकते वे अपने दरवाजे पर खड़े होकर हाथ जोडक़र सम्मान कर रहे हैं। यहां आने पर ऐसा लगा यह नगरी भक्तों की नगरी है। जहां साधु संत के और मुड़ जाते हैं चाहे वह किसी भी समुदाय का क्यों ना हो।

राजिम का नाम पहली बार सुना था जैसा सोचा राजिम गांव होगा मगर यहां आकर देखा यह तो बहुत बड़ा शहर है। साधु संतों का जो सम्मान यहां के नगरवासियों ने किया ऐसा सम्मान कहीं भी देखने को नहीं मिला।

जानकारी मिली है कि यहां हर संप्रदाय के बड़े-बड़े संत साधु महात्मा पहुंच चुके हैं धन्य है यह नगरी। उन्होंने महावीर चौक के पास बने श्वेतंाबर जैन भवन मेें अपने प्रवचन में कहा कि जलने से पहले जलना छोड़ो मौत तो निश्चित है, जितनी जरूरत हो उतना ही कमाओ, जितना जोड़ोगे सब छोडक़र जाओगे, जो जैसा करेगा वैसा भरेगा।

उन्होंने आगे कहा कि पाप करो, प्रतिदिन करो मगर उस पाप को दुहराओ नहीं, मगर दिन मे ऐसा कृत्य न करो कि रात की नींद हराम हो जाय और रात मे ऐसा काम न करो कि दिन भर पश्चाताप करना पड़े।

उन्होंने मोबाईल को लेकर कहा कि तीन जगह कभी मोबाइल न ले जाएं मंदिर, टॉयलेट और श्मशानघाट मे, उन्होंने धर्म को लेकर कहा कि जो कर्म से मिलेगा यही छूट जायेगा और  जो धर्म से मिलेगा वो पुण्य साथ जाएगा। साथ ही माता-पिता गुरु और परमात्मा जो इनकी नजरों से दूर रहता है वह परेशान रहता है, कर्म को छोड़ोगे तो वह कभी छोड़ता उन्होंने मानव के जीवन शैली को लेकर कहा कि परमात्मा जैसे भेजता है वैसा ही बुला लेता है, जैसे दिगंबर साधु का जीवन। मनुष्य को तीन प्रकार से जीवन व्यतीत करना चाहिए प्राकृतिक जीवन, सांस्कृतिक जीवन एवं प्रायोगिक जीवन। मुनि अपना प्राकृतिक जीवन व्यतीत करते हैं, जैसा तन वैसा उनका मन रहता है, प्राकृतिक जीवन के अनुसार ही साधु अपना पूरा जीवन यापन करते हैं जैसे दिगंबर संत कभी थाली में खाना नहीं खाते, कभी स्नान नहीं करते कभी ब्रश मंजन नहीं करते कभी कपड़ा नहीं पहनते उसके बाद भी उनका जीवन स्वच्छ और साफ  रहता है, यदि यही जीवन मानव करे तो उसके शरीर से बदबू आने लगती है।

उन्होंने कहा कि साधु प्रकृति के अनुसार जीता है, जैसे पेड़ पौधे, नदी-समुद्र, वायु-जमीन-आकाश ये कभी वस्त्र नहीं पहनते और साधु अपने आपको उनके अनुसार ढाल लेते हैं। सांस्कृतिक जीवन के बारे में उन्होंने कहा कि ऐसे वस्त्र पहने जो देखने कहने से अच्छा लगे वस्त्र ऐसा ना हो कि वस्त्र पहनने से अपने परिवार वालों या समाज को देखने में शर्म आए।

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news