सारंगढ़-बिलाईगढ़
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
सारंगढ़-बिलाईगढ़, 6 मार्च। सारंगढ़ बिलाईगढ़ के राजमहल प्रांगण में राजपरिवार द्वारा संकल्पित विष्णु महापुराण ज्ञानयज्ञ के चतुर्थ दिवस पर व्यास पीठ से पं अनिल शुक्ला द्वारा भगवान के विविध अवतारों की कथाओं का विस्तार पूर्वक वर्णन सुनाया गया।
महाराज प्रिय व्रत के पावन चरित्र का गुण गान करते हुए उन्होंने बताया कि महाराज प्रियव्रत परम प्रतापी राजा हुए जिन्होंने पृथ्वी को सात भागों में विभक्त कर सात द्वीपों का एवं सात सागरों का निर्माण किया, उन्ही के कुल में भगवान का ऋषभ नारायण के रूप में अवतरण हुआ। भगवान ऋषभदेव सांसारिक जीवों की मुक्ति के लिए एक दिव्य सूत्र बताए कि अहिंसा परमो धर्म, कोई भी मन, वचन और कर्म से अहिंसा व्रतधारी बन जाए तो उसी के द्वारा उसकी मुक्ति संभव है। भगवान ऋषभदेव के सुपुत्र हुए महाराज भरत, परम प्रतापी राजा भरत के कारण ही यह पावन भूमि भारत वर्ष के नाम से सुशोभित हुई, लेकिन महाराज भरत को मुक्ति पाने तीन जन्म लग गये, अंतिम जन्म में जड़भरत बनकर अंत समय में नारायण का ध्यान लगाकर मुक्त हुए।
कर्मों का फल अवश्य भोगना पड़ता है, बिना भोगे किसी भी जीव की मुक्ति संभव नहीं है। जीवों का यही कर्मफल भोग का स्थान ही स्वर्ग और नरक है। राजमहल प्रांगण में चल रही विष्णु महापुराण की कथा श्रवण हेतु नगर के श्रोताओं की नित्य उपस्थिति हो रही है।
संकल्प कर्ता बिलाईगढ़ स्टेट राजा साहब परम श्रद्धेय ओंकारेश्वर शरण सिंह द्वारा आगंतुक भक्तों के लिए भोजन प्रसाद भंडारा की नित्य व्यवस्था की गई है तथा कथा श्रवण हेतु भक्तों से आग्रह किया गया है।