रायपुर
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 10 अप्रैल। कुम्हारी स्टाफ बस दुर्घटना के बाद सरकारी, गैर सरकारी व कंपनियों के स्टाफ बसों के मेंटेनेंस और ड्राइवरों के चाल चलन पर प्रश्न चिन्ह लग रहे हैं।
दुर्घटना स्थल पर मौजूद भीड़ में शामिल लोगों का कहना है कि दुर्ग और रायपुर जिले में रहने वाले कई कंपनियों के स्टाफ अपनी जान जोखिम में रखकर कंपनी के इन बसों में आना जाना करते है। ये बसे चलने लायक है या नहीं, सही मेंटेनेंस होता है या नहीं इसकी जांच न तो जिला, ट्रैफिक और परिवहन विभाग नहीं करता है ।
रायपुर के उरला, उरकुरा धरसींवा औद्योगिक क्षेत्र में सैकड़ों छोटे बड़े उद्योग हैं जहां के कार्मिकों के लिए प्रबंधन स्टाफ बसों की जान लेवा सुविधा देता है । ये सारी बसें ना ही स्टाफ बस है और ना ही सुरक्षा की दृष्टि से सही है। ये कंपनी अपने स्टाफ को लाने ले जाने के लिए दस से पंद्रह साल पुरानी स्कूल बस और लंबी दूरी पर चलने वाली कालातीत अन्य बसों का उपयोग कर रही है। जिसकी किसी भी प्रकार से कोई भी जांच प्रशासन नहीं करता।
मोटर व्हीकल एक्ट के तहत स्टाफ बसों के चलाने के लिए और स्टाफ की सुरक्षा के लिए अलग अलग नियम हैं। जिसे देखने वाला कोई नहीं है।जिस कारण कंपनियां 15 वर्ष तक पुरानी बसों का इस्तेमाल किया जा रहा है। जिसमे कई बसों में ना तो स्टाफ परमिट है, और ना ही कई बसों का फिटनेस है। कंपनी में चलने वाले बसों को शासन द्वारा स्टाफ परमिट ईशु किया जाता है जो की प्राइवेट सर्विस व्हीकल के नाम से रजिस्टर्ड होता है जिसका तिमाही टैक्स 450 से 600 तक प्रति सीट हर तिमाही में पटाया जाता है। एक कर्मचारी ने बताया कि इस परमिट शुल्क को बचाने के लिए निको इंडस्ट्रीज और रिलायंस ट्रेवल्स शासन की टैक्स चोरी करते हुए अपने स्टाफ की जान को जोखिम में डालते हुए ऐसे स्कूल बसों में 15 साल पुराने हो चुके हैं जिन्हें परिवहन विभाग कंडम मानता है ऐसे बसों से नीको, नूतन, मोनेट कंपनी अपने कर्मचारियों को लाना ले जाना करती हैं। कई बार ये बसे बीच रास्ते में ही खराब हो हफ्तों तक खड़ी रहतीं हैं।