धमतरी
महासमुंद में 17 प्रत्याशी मैदान में, मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
कुरुद, 23 अप्रैल। कभी कांग्रेस के लिए सुरक्षित सीट माने जाने वाली महासमुंद लोकसभा क्षेत्र में पिछले डेढ़ दशक से भाजपा काबिज है। पिछले तीन चुनावों में मोदी फैक्टर एवं साहू उम्मीदवार के दम पर सत्तारुढ़ पार्टी यहां लगातार भगवा लहराने में सफल रही। लेकिन इस बार अपनी परम्परागत सीट हथियाने कांग्रेस ने चतुराई दिखाते हुए साहू समाज से प्रत्याशी उतार चुनाव को दिलचस्प बना दिया है।
गौरतलब है कि धमतरी, महासमुंद और गरियाबंद जिले की आठ विधानसभा क्षेत्र को मिलाकर महासमुंद लोकसभा सीट बनी है। अतीत में झांकें तो यहां से सबसे ज्यादा बार पूर्व केन्द्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ला सांसद चुने गये। इसके अलावा पूर्व मुख्यमंत्री श्यामाचरण शुक्ला, अजीत जोगी, पवन दीवान जैसे दिग्गज नेताओं ने भी इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। पर पिछले तीन चुनाव से कांग्रेस के दबदबे वाली इस संसदीय क्षेत्र से लगातार भाजपा को जीत मिली है।
इस बार भाजपा ने इस सीट पर कब्जा बरकरार रखने का जिम्मा बसना की पूर्व विधायक रुपकुमारी चौधरी को सौंपा है। लोकसभा की प्रतिष्ठित सीट के वन आच्छादित क्षेत्रों में पंद्रह बरस से वनवास भोग रही कांग्रेस ने इस बार अपनी परंपरागत सीट को वापस हासिल करने, प्रतिद्वंदी पार्टी के दांव से ही उसे चित करने साहू प्रत्याशी के तौर पर पूर्व गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू को मैदान में उतारा है। क्षेत्र में राजनीतिक पकड़ की बात करें तो दोनों ही पार्टियां बराबरी में नजऱ आती है।
वर्तमान में इस संसदीय क्षेत्र की कुल आठ विधानसभा सीटों में चार सीट पर कांग्रेस तथा चार सीट पर भाजपा का कब्जा है। जिसमें गरियाबंद की एक-एक सीट, महासमुंद जिले की दो-दो तथा धमतरी की एक-एक सीट शामिल हैं।
2023 के विधानसभा चुनाव में दोनों पार्टियों को मिलें कुल मतों को जोड़ें तो यहां कांग्रेस आज भी 9 हजार मतों से आगे है। इस लिहाज से देखे तो मुकाबला कांटे का लगता है। जो पार्टी इस चुनाव में अच्छी मेहनत करेगी पलड़ा उसकी ओर झुक सकता है।
आम चुनाव के दूसरे चरण में 26 अप्रैल को महासमुंद लोकसभा क्षेत्र के 17 लाख 62 हजार 477 मतदाता जिसमें 8 लाख 95 हजार 773 महिला एवं 8 लाख 66 हजार 670 पुरुष मतदाता 2146 पोलिंग बूथों में मतदान कर 17 प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला करेंगे।
तीन जिलों से मिलकर बनी इस संसदीय सीट में धमतरी जिला की भूमिका की बात करें तो अब तक किसी भी पार्टी ने इस जिले से किसी भी नेता को चुनाव लडऩे का मौका नहीं दिया है। वैसे तो धमतरी जिले की पहचान आजादी के पहले से ही राजनीतिक सूचिता के नाम पर होती है। कंडेल नहर सत्याग्रह से प्रभावित होकर गांधी जी आए थे, यहां के जंगल सत्याग्रह ने पूरे देश का ध्यान खींचा था।
जिले के नेताओं की नेतृत्व क्षमता का लोहा सभी सियासी दल शुरु से मानते रहे है। पर जब टिकट देने की बारी आती है तो दोनों प्रमुख दल कन्नी काट लेते है। इसकी वजह धमतरी जिला का दो लोकसभा में बंटा होना है।
जिले की दो सीट धमतरी व कुरुद विधानसभा को महासमुंद लोकसभा में रखा गया है तथा सिहावा कांकेर लोकसभा में शामिल है। जबकि महासमुंद जिले की चारों सीट के करीब 9 लाख मतदाता हार-जीत में अहम भूमिका निभाते हैं। लेकिन धमतरी जिले की दो सीटों के साढ़े 4 लाख मतदाता जिले के किसी नेता को टिकट दिलाने में निर्णायक भूमिका अदा नहीं कर पाते।
चूंकि राजनीतिक दलों का मानना है कि यदि मतदाताओं ने अपने क्षेत्र के नेता को जिताने की भावना से वोटिंग की तो जिस जिले के मतदाता संख्या ज्यादा होगी, उनकी जीत की संभावना अधिक रहती है। शायद यही कारण है कि अब तक धमतरी जिला के किसी भी नेता को इस संसदीय सीट से प्रतिनिधित्व करने का मौका नहीं मिला है।
अबकी बार इस संसदीय सीट में जारी प्रचार प्रसार को देखें तो भाजपा मानव संसाधन से लेकर दूसरे साधन सुविधाओं में कांग्रेस से बेहद आगे दिख रही है। विधायक अजय चन्द्राकर के नेतृत्व में पार्टी की हरेक इकाई मोदी को तीसरी बार प्रधानमंत्री बनाने की मुहिम में जी-जान से जुटी है। पार्टी प्रत्याशी रूपकुमारी चौधरी की जीत सुनिश्चित करने आज प्रधानमंत्री मोदी स्वयं धमतरी आ रहें हैं। लेकिन यहां कांग्रेस के किसी बड़े नेता की अब-तक आमद नहीं हुई है।
जिले की दोनों विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस की चुनावी तैयारियों की बात करें तो सब कुछ ढीला-ढाला नजर आ रहा है। खासकर कुरुद क्षेत्र के कांग्रेसी नेता विधानसभा में मिली पराजय से अब-तक नहीं उबर पाए हैं। जिसके चलते प्रचार प्रसार में वो दम नजर नहीं आ रहा है। संगठन से जुड़े नेता साधन संसाधन की कमी का रोना रो रहे हैं। जिसे देख कर लगता है कि कांग्रेस प्रत्याशी की जीत का जिम्मा साहू समाज पर ही डाल दिया गया है। यहां पर यह बताना लाजिमी होगा कि कुरुद, धमतरी, राजिम विधानसभा में साहू समाज की संख्या हर बार निर्णायक भूमिका निभाती रही हैं।
कांग्रेस ने शायद इसी फैक्टर को ध्यान में रख अपना प्रत्याशी तय किया है। इस चुनाव में मुद्दों की बात करें तो किसी के पक्ष या विरोध में कोई लहर नजऱ नहीं आ रही है। राम मंदिर, 370, सीएए, जैसे राष्ट्रीय मुद्दों के साथ महतारी वंदन, धान खरीदी जैसे वादे को पूरा करने वाली भाजपा विकास और मोदी की गारंटी के सहारे चुनावी वैतरणी पार लगाने की जुगत में हैं। लेकिन राहुल की भारत जोड़ो न्याया यात्रा से उत्साहित कांग्रेसियों में पार्टी के घोषणा पत्र ने नई ऊर्जा का संचार किया है। वे अपने स्तर पर वें महंगाई, बेरोजगारी का नैरेटिव सेट कर देश में इंडिया गठबंधन के जीतने की कामना कर रहे हैं। लेकिन इस बार मतदाताओं ने बड़ी राहस्यमय खामोशी अख्तियार कर रखी है, जिसके चलते किसी की हार-जीत का दावा करना लगभग असम्भव लग रहा है।