रायपुर

एक गृहस्थ भी ब्रहम्चर्य का पालन कर सकता हैं
12-Feb-2021 6:42 PM
 एक गृहस्थ भी ब्रहम्चर्य का पालन कर सकता हैं

रायपुर, 12 फरवरी। जैन समाज का मर्यादा महोत्सव  के प्रसंग गृहस्थ जीवन में भी ब्रह्मचर्य का पालन करने की महत्ता को बताया गया हैद्य ब्रह्मचर्याणुव्रत - अपनी पत्नी/अपने पति के सिवाय अन्य स्त्री/पुरुष के साथ काम सेवन नहीं करना, ब्रह्मचर्य अणुव्रत अथवा शीलव्रत कहलाता है। यह व्रत सभी व्रतों में अधिक महिमाशाली है। इसके पालन करने वाले को मनुष्य तो क्या देवता भी नमस्कार करते हैं।

इस प्रसंग में एक बात विशेष है कि ब्रह्मचर्याणुव्रत के धारी स्व-स्त्री/स्व-पुरुष का भी त्यागी हो ये नियम नहीं है। अपने पति या पत्नी के अतिरिक्त किसी अन्य से शारारिक सम्बन्ध नहीं बनाना, अपने पारिवारिक दायित्व से बाहर के लोगों के शादी विवाह कराने में रूचि नहीं लेना पराई स्त्री का परित्याग करना और काम भावना से मुक्त रहने वाले ही ब्रह्मचर्य अणुव्रत अथवा शीलव्रत का पालन करते है।

उदाहरण-मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचन्द्र की पत्नी सीता वनवास के समय पतिसेवा करना अपना कर्त्तव्य समझकर महलों के सुखों को छोडक़र पति के साथ वन-वन में घूमी थीं। उस वनवास के प्रसंग में रावण ने सीता के रूप पर मुग्ध होकर उसका हरण किया था। किन्तु पतिव्रता सीता ने रामचन्द्र के समाचार न मिलने तक अन्न-जल ग्रहण नहीं किया था। रावण के अनेक प्रलोभनों तथा उपसर्गों से भी वे विचलित नहीं हुई थीं। महासती सीता का नाम जैन परंपरा में 16 महासतियों में आता है।

परस्त्री/ परपुरुष सेवन को सबसे निंद्य कार्य माना गया है। जैसे जल का स्वभाव पूर्ण निर्मल है , परन्तु फिर भी चंदनादि सुगंधित पदार्थ के संपर्क में आने पर शोभनीय और कीचड़-गंदगी आदि के संपर्क में आने पर अशोभनीय संज्ञा पाता है। उसी प्रकार दासी और धर्मपत्नी के साथ एक जैसी क्रिया होने पर भी जीव के परिणामों में अंतर आता है, जिससे कर्म बंधन में भी अंतर आता है। परस्त्री/ परपुरुष सेवन नरकादि गतियों में गमन का साक्षात कारण है

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