रायपुर
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 13 फरवरी। रायपुर हम आज एक ऐसी 13 वर्षीय बच्ची के केस के बारे में चर्चा कर रहे हैं, जो हमें पेरिफेरल कैंप में मिली । जितना कि बच्ची को याद था उसे बीते कुछ वर्षों से भागने, साइकिल चलाने, यहां तक कि तेज चलने और भारी काम करते वक्त सांस लेने में तकलीफ थी।
जांच करने पर पाया गया कि उसे लार्ज पीडीए की समस्या है और उसकी रीढ़ की हड्डी भी ऊपर से और दांये ओर से मुड़ी हुई थी। मेडिकल भाषा में इसे काइफोस्कोलियोसिस कहते हैं। और रीढ़ की इस विकृति के कारण छाती के आकार में भी विकृति आ गई थी।
डॉ. किंजल बक्शी, (बाल्य हृदय रोग विशेषज्ञ, एनएच एमएमआई नारायणा सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल) द्वारा आगे की जांच में यह पुष्टि हो गई कि उसे लार्ज पीडीए की समस्या है और इकोकार्डिओग्राम के जरिये एक और विकृति सामने आई, जिसके तहत मुख्य नसें जो शरीर के निचले हिस्से से रक्त को निकालती हैं और हृदय के दायें हिस्से में पहुंचाती हैं (इन्कीरियर वेना कावा)। डॉ. बक्शी ने समझाया कि जहां आम लोगों में एक सामान्य आकार की नस हृदय के दायें हिस्से में खुलती है, वहीं इस बच्ची में सिर्फ एक छोटा सा चैनल नजर आया और यह अंदेशा लगाया गया कि नस सीधे हृदय के दायें हिस्से में रक्त नहीं निकाल रहीं, बल्कि एक दूसरी नस में खुल रही है, जो शरीर के ऊपरी हिस्से के रक्त को हृदय तक पहुंचा रही है।
पीडीए को डिवाइस धेरैपी के जरिये बंद करने के लिए इस नस की अहम भूमिका होती है, क्योंकि यहीं सही तरीका है और एक मुख्य रास्ता है हृदय के भीतर डिवाइस के साथ पहुंचने का।
डिवाइस क्लोजर से पहले एन्जियोग्राम होने पर यह सुनिश्चित हुआ कि इस नस में एक दुर्लभ प्रकार की विकृति थी जिसमें यह नस का एक दूसरा प्रकार नजर आ रहा था जो बहुत जगह से मुड़ा हुआ था जिसकी वजह से रुकावट की स्थिति बन रही थीं। साथ ही यह सीधे हृदय के दायें हिस्से में नहीं खुल रही थी, जिसकी वजह से कोई तरीका नहीं रह गया था कि पीडीए इस रास्ते से की जा सके। यह पहली चुनौती थी।
अब हम गर्दन की एक नस ( जीसे राईट इंटरनल जगलर वेन कहते हैं ) के जरिये हृदय तक पहुंचे, फिर उसके बाद दूसरी चुनौती आई । क्योंकि बच्ची की रीढ़ में इतनी गंभीर विकृति थी, छाती के अंग भी अपने सामान्य स्थान पर नहीं थे। यहां तक की हृदय भी घुमा हुआ था। सामान्य तौर पर हम दावी नस से होते हुए पीडीए के जरिये हृदय तक पहुंचते हैं लेकिन हृदय के घुमे हुए होने के कारण यह संभव नहीं था। इसलिए हमने प्रेरिंग तकनीक के ज़रिये पीडीए के विपरीत हिस्से से एक रास्ता तैयार किया।
डॉ. सुमंत शेखर पाढ़ी (हृदय रोग विशेषज्ञ, एनएच एमएमआई नारायणा सुपरस्पैशलिटी हॉस्पिटल) कहते हैं कि गंभीर रीढ़ की विकृति जो सर्जरी को एक बड़े जोखिम का प्रोसीजर बना देती है, उसकी वजह से यह जरूरी था कि वाहिका को डिवाइस थेरेपी के जरिये बंद किया जाए। खासकर इस तरह के मामले में जहा इंटरनल जगलर वेन के जारिये प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाता है, बेहद सावधानी और इतने बड़े ट्यूब को सम्हालने के लिए अनुभव की जरूरत होती है।