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भगवान महावीर की समता, क्षमा, प्रेम और करुणा को जीवन में धारण करें-राष्ट्रसंत ललितप्रभजी
30-Aug-2022 1:51 PM
भगवान महावीर की समता, क्षमा, प्रेम और करुणा को जीवन में  धारण करें-राष्ट्रसंत ललितप्रभजी

रायपुर, 30 अगस्त। ‘‘एक बात हमेशा याद रखें कि महापुरुषों का जीवन केवल सुनने के लिए नहीं होता है, उनका जीवन चरित्र हमारे जीवन में चरित्र निर्माण के लिए होता है।

जब हम कल्पसूत्र में प्रवेश कर रहे हैं तो हमें ज्ञात होगा कि किस तरह भगवान श्रीमहावीर ने कान में कीले ठुकवा लिए उस प्रसंग को याद कर हमें यह संकल्प करना होगा कि जैसे मेरे भगवान ने कान में कीले ठुकवाए मैं कम से कम किसी के कड़वे शब्द तो जरूर सुन लुंगा।

चण्डकौशिक नामक जहरीले सर्प ने उनके अंगूठे पर डंक मारा, यदि भगवान जहरीले सर्प से अपने-आपको डसवा सकते हैं तो छोटे-मोटे मच्छर आदि कीड़े-मकोड़े से मैं अपने-आपको नहीं प्रभावित करुंगा।

जब-जब चंदनबाला का चरित्र सुनें तो मन को इस बात के लिए जरूर तैयार कीजिएगा कि चंदनबाला ने जीवन में आने वाली इतनी तकलीफों को सहन किया तब भी जीवन में कभी-भी उफ नहीं किया। छोटी-मोटी तकलीफें मेरे जीवन में भी आएंगी तो मैं अपने चित्त को प्रभावित नहीं करुंगा।

महापुरुषों का जीवन चरित्र हम अपने चरित्र का निर्माण करने के लिए सुनते हैं। ताकि हम भी वैसा ही निर्मल और पवित्र जीवन जी सकें। प्रभु महावीर के जीवन से हम समता, क्षमा, करुणा, प्रेम व करुणा को धारण करें।’’

आउटडोर स्टेडियम बूढ़ापारा में जारी सूत्र शिरोमणि कल्पसूत्र पर आधारित प्रवचन के अंतर्गत राष्ट्रसंत  श्रीललितप्रभ सागरजी महाराज ने पयुर्षण पर्व के छठवें दिन ‘महान तीर्थंकरों का महान जीवन-दर्शन’ विषय पर ये प्रेरक उद्गार व्यक्त किए।

भगवान महावीर स्वामी के जन्म प्रसंग का श्रवण कराते हुए संतश्री ने कहा कि भगवान का जन्म चराचर जगत के लिए कल्याणकारी हुआ।

कहते हैं नर्क में रहने वाले जीवों को कभी साता नहीं मिलती, जैसे ही भगवान श्रीमहावीर का जन्म हुआ चराचर जगत में इतनी खुशियां व आनंद छाया था कि नर्क में रहने वाले जीवों को भी साता मिली।

संतप्रवर ने आगे कहा कि केवल महावीर का अनुयायी बनने से बात नहीं बनेगी, हम सबको जिंदगी में एक दिन महावीर बनना है। केवल सिद्धों का अनुयायी नहीं बनना है>

 हमें अपना जीवन ऐसे जीना है कि हम भी सिद्ध बन जाएं। साधना करते-करते हमें भी एक दिन णमो अरिहंताणम् में प्रवेश करना है। भगवान श्रीमहावीर का जीवन हमें साधना और वैराग्य को अपनाकर मोक्ष मार्ग की ओर चलने प्रेरित करता है।

संतश्री ने आज श्रद्धालुओं को भगवान श्रीमहावीर के जन्म प्रसंग का श्रवण कराते हुए कहा कि मानवता का उत्थान व कल्याण करने के लिए और वैराग्य, प्रेम, शांति व अहिंसा की स्थापना के लिए भगवान का धरती पर जन्म हुआ था। कल्पसूत्र के अंतर्गत आज संतश्री द्वारा मेरू पर्व पर इंद्रों द्वारा भगवान का जन्माभिषेक करने, राजा सिद्धार्थ के राज्य क्षत्रियकुण्ड ग्राम में राजपरिवार व नगरवासियों द्वारा भगवान का जन्मोत्सव मनाने, उनके नामकरण संस्कार, भगवान के बाल्यकाल में उनकी शक्ति पर संशय करने वाले दुष्ट देव द्वारा उन्हें आकाश पर ले उडऩे वाले उस देव के सिर पर भगवान द्वारा एक मुष्ठीप्रहार करने से देव का आकाश से गिरकर धरती में कंधे तक धंस जाने और फिर देव द्वारा उनके चरणों में गिरकर क्षमा मांगने का दृश्य देख नगरवासियों द्वारा भगवान को वीरों का वीर महावीर कहने से उनका नाम महावीर हो जाने तक के कथानकों का श्रवण कराया गया। इसके अतिरिक्त श्रद्धालुओं को आज की धर्मसभा में भगवान श्रीमहावीर के गुरुकुल गमन, उनकी युवावस्था के कथा प्रसंगों में उनके विवाह, गृहस्थ जीवन, दीक्षा कल्याणक, साधना काल के विविध प्रसंगों उन्हें मिले उपसर्गों, चंदनबाला के उद्धार सहित कैवल्यज्ञान प्राप्ति और निर्वाण कल्याणक तक के प्रसंगों का श्रवणलाभ प्राप्त हुआ।

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