विशेष रिपोर्ट

ऐसी लोकसभा सीट का आंखों देखा हाल, जहां भाजपा के एक भी विधायक नहीं
03-May-2024 4:50 PM
ऐसी लोकसभा सीट का आंखों देखा हाल,  जहां भाजपा के एक भी विधायक नहीं

 ‘छत्तीसगढ़’  एक्सक्लूजिव  
चुनावी दौरा कर लौटे शशांक तिवारी की विशेष रिपोर्ट

रायपुर, 3 मई (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। जांजगीर-चाम्पा लोकसभा के सक्ती में वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खरगे के भगवान शिव और राम पर विवादित बयान से भले ही भाजपा और कांग्रेस में वाकयुद्ध चल रहा है लेकिन इससे मतदाता बेपरवाह हैं। यहां तकरीबन हर जगह महतारी वंदन और कहीं-कहीं नारी न्याय योजना का शोर है। इससे परे अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित इस लोकसभा सीट पर ‘हाथी’ की धीमी चाल से चुनावी समीकरण गड़बड़ाने के आसार दिख रहे हैं। 

सक्ती की जनसभा में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष खरगे ने कांग्रेस प्रत्याशी डॉ.शिवकुमार डहरिया का नाम लेकर कहा था, इनका नाम भी शिव है, ये बराबर में राम का मुकाबला कर सकते हैं क्योंकि ये शिव हैं। मेरा नाम भी मल्लिकार्जुन है यानी मैं भी शिव हूं। 

मल्लिकार्जुन खरगे के बयान से सियासी तापमान बढ़ गया है। भाजपा हमलावर है, और सभाओं में खरगे का जिक्र कर भाजपा नेता यह कहने से नहीं चूक रहे हैं कि कांग्रेसी प्रभु राम को अपना शत्रु मानते हंै। खरगे का बयान भले ही राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में है लेकिन जांजगीर लोकसभा के मतदाताओं के बीच इस पर ज्यादा कोई चर्चा नहीं हो रही है। 

करीब 20 लाख मतदाताओं वाली जांजगीर लोकसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित होने के बाद से भाजपा के पास है। यह सीट राज्य बनने के बाद से कांग्रेस अब तक नहीं जीत पाई है। जबकि इससे पहले कांग्रेस के कद्दावर नेता डॉ.चरण दास महंत यहां से लगातार दो बार सांसद रहे हैं। कांग्रेस ने पूर्व नगरीय प्रशासन मंत्री डॉ.शिवकुमार डहरिया को टिकट दी है। उनके मुकाबले भाजपा ने सक्ती की महिला नेत्री श्रीमती कमलेश जांगड़े को प्रत्याशी बनाया है। इन सबके बीच बसपा से डॉ.रोहित डहरिया चुनाव मैदान में हैं। वैसे तो कुल डेढ़ दर्जन प्रत्याशी चुनाव मैदान में हंै लेकिन मुकाबला कांग्रेस, भाजपा और बसपा में ही है। 

जांजगीर-चाम्पा सीट ऐसी है जहां बसपा का अच्छा-खासा आधार है। यहां दो सीट पामगढ़ और जैजैपुर से बसपा के विधायक रहे हैं। लेकिन हाल के विधानसभा चुनाव में भाजपा, और बसपा का सूपड़ा साफ हो गया, और लोकसभा की सभी 8 सीटें जांजगीर-चाम्पा, सक्ती, अकलतरा, पामगढ़, जैजैपुर, चन्द्रपुर, बिलाईगढ़, और कसडोल कांग्रेस की झोली में चली गई है। वह भी तब जब प्रदेश में कांग्रेस बुरी तरह चुनाव हार गई, और सरकार से बाहर हो गई। 

दूसरी तरफ, इस चुनाव में बसपा की कोई बड़ी सभा नहीं हुई है। विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती का प्रवास हुआ था। इस लोकसभा में बसपा को डेढ़ लाख तक वोट मिलते रहे हैं। विधानसभा चुनाव में पार्टी का जनाधार गिरा है, और बसपा के परम्परागत वोटर कांग्रेस की तरफ शिफ्ट हुए हैं। इसका सीधा फायदा कांग्रेस को मिला। कांग्रेस, विधानसभा चुनाव का प्रदर्शन लोकसभा में दोहराने के लिए भरसक कोशिश कर रही है। जबकि भाजपा इस सीट पर कब्जा बरकरार रखने के लिए ऐड़ी चोटी का जोर लगा रही है। बसपा की दमदार मौजूदगी के चलते इस लोकसभा में भाजपा की राह आसान होती रही है। वजह यह है कि कांग्रेस के परंपरागत सतनामी समाज के वोट पर बसपा ने सेंधमारी की थी, मगर इस बार बसपा ज्यादा प्रभावी नहीं दिख रही है। इसको भांपकर भाजपा ने रणनीति के तहत मौजूदा सांसद गुहाराम अजगले की टिकट काटी, और महिला वोटरों को अपने पाले में करने के लिए कमलेश जांगड़े को चुनाव मैदान में उतारा है। 

इस संवाददाता ने जांजगीर-चांपा लोकसभा का दौरा कर मतदाताओं को टटोलने की कोशिश की। इस लोकसभा के अकलतरा विधानसभा का माहौल कुछ अलग तरह का ही था। अकलतरा के तिलई गांव, जहां करीब साढ़े 7 हजार मतदाता हैं, यहां मतदाताओं की राय काफी बटी हुई है। यहां सबसे ज्यादा कुर्मी (कौशिक), सतनामी, और यादव व अन्य समाज के लोग ज्यादा हैं। कभी इस गांव से बसपा को अच्छे खासे वोट मिलते थे। मगर इस बार उनका रूख बदला दिख रहा है। 

पान ठेला चलाने वाले मनहर का कहना है कि बसपा हमारी पार्टी है, लेकिन वोट देकर थक चुके हैं। बसपा यहां से जीत नहीं पाई है। उनका  गुस्सा पूर्व विधायक डॉ. सौरभ सिंह को लेकर भी है। सौरभ सिंह एक बार बसपा से विधायक रहे हैं। फिर भाजपा में चले गए, और भाजपा से भी विधायक बने। मगर इस विधानसभा चुनाव में अपने ही भतीजे राघवेन्द्र सिंह से बुरी तरह हार गए। 

सौरभ सिंह को लेकर शिकायत रही है कि जीतने के बाद उनका रूख एकदम बदल गया था। जबकि राघवेन्द्र को वो भला व्यक्ति मानते हैं। कई और स्थानीय लोगों की नाराजगी सौरभ सिंह के प्रति देखने को मिली है। हालांकि भाजपा ने चुनाव के ठीक पहले पूर्व विधायक चुन्नीलाल साहू को अपने पाले में कर यहां से बढ़त बनाने की कोशिश की है। अकलतरा में साहू वोटरों की आबादी अच्छी खासी है। चुन्नीलाल की अपने समाज को वोटरों पर पकड़ भी है। इन सबके बावजूद अकलतरा नगरीय इलाके में भाजपा का प्रभाव दिख रहा है। 

कांग्रेस प्रत्याशी डॉ. शिवकुमार डहरिया से अकलतरा के लोग परिचित हैं। वो एक बार जांजगीर-चाम्पा लोकसभा से चुनाव भी लड़ चुके हैं। बसपा वोटों में सेंधमारी, और राघवेन्द्र की सक्रियता से कांग्रेस यहां बराबरी का टक्कर देती दिख रही है। इससे परे अकलतरा से सटे जांजगीर-चांपा विधानसभा का नजारा थोड़ा अलग है। जांजगीर-चांपा शहरी इलाके में भाजपा का साफ असर दिखता है। लोग अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए पीएम नरेन्द्र मोदी की तारीफ करते नहीं थक रहे हैं। 

कांग्रेस यहां जांजगीर-चांपा में अंदरूनी कलह से जूझ रही है। यहां व्यास कश्यप कांग्रेस के विधायक हैं। उन्होंने विधानसभा चुनाव में नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल को हराया था। मगर यहां कांग्रेस के दूसरे प्रभावशाली नेता मोतीलाल देवांगन सक्रिय नहीं दिख रहे हैं। मोतीलाल देवांगन दो बार विधायक रह चुके हैं। उन्होंने व्यास कश्यप के अधीनस्थ काम करने से मना कर दिया। इससे कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ सकता है। नगरीय इलाकों से परे गांवों में कांग्रेस की पकड़ दिखती है। कुल मिलाकर भाजपा यहां बेहतर स्थिति में है। 

जांजगीर-चांपा से ठीक उलट जैजैपुर विधानसभा का हाल है। यह विधानसभा सीट अब तक भाजपा नहीं जीत पाई है। यहां कांग्रेस से बालेश्वर साहू विधायक हैं। इससे पहले दो बार बसपा के केशव चंद्रा विधायक रहे हैं। यहां चंद्रा, और साहू के साथ-साथ सतनामी समाज के वोटर निर्णायक भूमिका में हैं। 

केशव चंद्रा हाल में भाजपा में आ गए हैं। इससे बसपा के परम्परागत वोटर खफा हैं। यहां बसपा के परम्परागत वोटबैंक पर कांग्रेस सेंधमारी करते दिख रही है। जैजैपुर के तकरीबन 10 हजार आबादी वाले बम्हनीडीह पंचायत में लोगों से चर्चा में कांग्रेस के प्रति रूझान साफ दिखा। ऐसे लोग भी थे जिन्होंने नारी न्याय योजना का फार्म महिलाओं को भरवाया था, और उन्हें उम्मीद है कि कांग्रेस की जीत के बाद हर महीने 8333 रूपए मिलेंगे। हालांकि महतारी वंदन योजना से संतुष्ट भी दिखे। 

जैजैपुर में पूर्व विधायक केशव चंद्रा अपने समर्थकों के साथ भाजपा का प्रचार करते नजर आए। उन्होंने ‘छत्तीसगढ़’ से चर्चा में दावा किया कि जैजैपुर से भाजपा को बढ़त मिलेगी। 

जैजैपुर से परे सक्ती में कांग्रेस के लिए थोड़ी अलग तरह की समस्या है। यहां के बड़े नेता और विधायक डॉ. चरणदास महंत कोरबा लोकसभा क्षेत्र में सक्रिय हैं। कोरबा में उनकी पत्नी ज्योत्सना महंत चुनाव लड़ रही हैं। इससे परे सक्ति में पीएम नरेन्द्र मोदी, और चाम्पा में मल्लिाकार्जुन खरगे की सभा हो चुकी है। यहां महंत की गैर मौजूदगी से कांग्रेस थोड़ी पिछड़ती दिख रही है। यही नहीं, पूर्व विधायक सरोजा और उनके पति मनहर राठौर कांग्रेस छोडक़र भाजपा में चले गए हैं। इससे भाजपा को फायदा मिलता दिख रहा है। यहां आदिवासी इलाकों में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का भी प्रभाव है। फिर भी कांग्रेस प्रत्याशी डॉ. शिवकुमार डहरिया ने यहां ऐड़ी चोटी का जोर लगाया है। 

पामगढ़ का नजारा इस बार बदला हुआ है। यह सीट पहले बसपा के पास रही है, लेकिन वर्तमान में कांग्रेस की शेषराज हरवंश यहां से विधायक हैं। बसपा से यहां के बड़े और लोकप्रिय नेता पूर्व विधायक दुजराम बौद्ध कोरबा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। इस वजह से यहां बसपा थोड़ी कमजोर दिख रही है। शिवरीनारायण की धार्मिक पहचान है और यहां भाजपा का दबदबा दिखता है। इन सबके बावजूद इस विधानसभा में कांग्रेस, भाजपा और बसपा एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ में दिख रहे हैं। 

बाकी छह विधानसभा से अलग बिलाईगढ़, और कसडोल में दोनों ही दल कांग्रेस और भाजपा अपनी ज्यादा ताकत झोंक रहे हैं। बिलाईगढ़ अजा आरक्षित सीट है। यह कांग्रेस के पास है। खास बात यह है कि बिलाईगढ़ से 2009 में डॉ. शिवकुमार डहरिया विधायक रहे हैं। भाजपा के चुनाव संचालक, और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल बिलाईगढ़ के ही रहने वाले हैं। वो कसडोल से दो बार विधायक रहे हैं। इस इलाके में उनकी पैठ है। विधानसभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें कसडोल से  टिकट नहीं दी थी। और यह सीट बुरी तरह हार गई। दिलचस्प बात यह है कि लोकसभा के कुल वोटरों में से 37 फीसदी वोटर कसडोल और बिलाईगढ़ विधानसभा में हैं। कसडोल प्रदेश की सबसे बड़ी विधानसभा सीट है। 

खास बात यह है कि विलोपित हो चुकी पलारी विधानसभा सीट का ज्यादातर हिस्सा कसडोल विधानसभा में चला गया है। पलारी से डॉ. शिवकुमार डहरिया विधायक रह चुके हैं। ऐसे में इन दोनों जगहों पर उन्हें पहचान का संकट नहीं है। कांग्रेस के रणनीतिकार दोनों सीटों से बढ़त की उम्मीद पाले हैं। जबकि भाजपा ने इन दोनों सीटों पर अपनी बढ़त बनाने के लिए ताकत झोंक दी है। सीएम विष्णुदेव साय, डिप्टी सीएम  अरूण साव की सभाएं हो चुकी है। अगले दो दिन भाजपा की यहां सारे संसाधन झोंककर बढ़त बनाने की कोशिश है। बहरहाल, कांग्रेस और भाजपा का मुकाबला नजदीकी हो चला है। और हार-जीत का अंतर कम मतों से होने का अनुमान है। 

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