विशेष रिपोर्ट

भाजपा से लगातार तीसरी बार साहू, पंच से राजनीति शुरू करने वाले तोखन को सांसद की टिकट
03-Mar-2024 6:26 PM
भाजपा से लगातार तीसरी बार साहू, पंच से राजनीति शुरू करने वाले तोखन को सांसद की टिकट

  डिप्टी सीएम के इलाके से प्रत्याशी तय करना भाजपा की रणनीति का हिस्सा  

  अब कांग्रेस पर भी ओबीसी टिकट देने का दबाव

विशेष रिपोर्ट : राजेश अग्रवाल

बिलासपुर, 3 मार्च (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। भाजपा किसान मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष, पूर्व संसदीय सचिव तोखन साहू को लोकसभा टिकट देकर भाजपा ने न केवल सर्वाधिक आबादी वाले पिछड़ा वर्ग के साहू वोटों को सहेजने के लिए एक बड़ा दांव खेला है बल्कि मंत्रिमंडल में शामिल होने से वंचित रह गए क्षेत्र के अनेक वरिष्ठ भाजपा विधायकों के असंतोष को कम करने की कोशिश की है। बीते तीन दशकों से इस सीट से हार रही कांग्रेस पर भी दबाव बन गया है कि वह इस बार सिफारिशों पर नहीं बल्कि जनाधार और जातिगत समीकरण के आधार पर टिकट तय करे।

पिछले कुछ वर्षों से अन्य पिछड़ा वर्ग प्रदेश की राजनीति के केंद्र में है। सन् 2018 में कांग्रेस ने भूपेश बघेल को मुख्यमंत्री बनाया, जिन्होंने इस वर्ग को एकजुट करने की कोशिश की। ताम्रध्वज साहू ताकतवर मंत्री रहे। इस बात को समझते हुए भाजपा ने सन् 2023 में न केवल ओबीसी प्रत्याशियों को बड़ी संख्या में टिकट दी बल्कि मंत्रिमंडल में भी उनका प्रतिनिधित्व पहले के मुकाबले बढ़ाया। ओबीसी वर्ग से ही अरुण साव को उप-मुख्यमंत्री पद दिया गया। साव करीब 45 हजार वोटों से लोरमी विधानसभा क्षेत्र से जीते। उन्होंने कांग्रेस के थानेश्वर साहू को हराया। भारी अंतर की जीत और ओबीसी बाहुल्य मैदानी इलाकों में मिली सफलता से यह स्पष्ट हो गया कि ओबीसी वोटर और परंपरागत साहू वोटर उसकी ओर लौट चुके हैं। बिलासपुर संसदीय सीट से उसी लोरमी इलाके के तोखन साहू को टिकट देना इसी रणनीति का हिस्सा है।

तोखन साहू लोरमी के डिंडोरी गांव के रहने वाले हैं। शुरुआती शिक्षा उनकी डिंडौरी और लोरमी में हुई, उसके बाद स्नातकोत्तर की पढ़ाई के लिए रायपुर चले गए। उन्होंने वहां कम्प्यूटर चलाना सीखा और एक व्यापारी के यहां काम करने लगे। बाद में लौटकर गांव में पंच बने और अपने पैतृक व्यवसाय खेती को संभालने लगे। भाजपा की सदस्यता भी ले ली। इसी दौरान यहां वे सरपंच और जनपद सदस्य भी बने। सन् 2011 में उनकी पत्नी जनपद अध्यक्ष बनीं। फिर भाजपा का ध्यान उनके सहज- सरल व्यवहार और लोकप्रियता की ओर गया। सन् 2013 में भाजपा ने उन्हें विधानसभा टिकट दी। उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी धर्मजीत सिंह ठाकुर को 6241 वोटों से पराजित कर दिया। साहू को संसदीय सचिव भी बनाया गया। सन् 2018 में दोनों के बीच फिर मुकाबला हुआ। धर्मजीत सिंह ठाकुर जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ की टिकट पर लड़े। तोखन साहू 22 हजार 553 वोटों से हार गए। सन् 2023 में धर्मजीत सिंह ठाकुर भाजपा में शामिल हो गए। वे इस बार कांग्रेस की रश्मि सिंह को हराकर तखतपुर से विधायक हैं। क्षेत्र के लोगों से चर्चा करने पर मालूम होता है कि तोखन साहू विनम्र होने के बावजूद अपने कार्यकाल में सडक़ बिजली के खूब काम करा सके। कई बिजली सब-स्टेशन बने, ग्रामीण सडक़ें बनीं। लोरमी विधानसभा का आधे से ज्यादा हिस्सा पहुंच विहीन और वन क्षेत्र था, जहां विधायक रहते तोखन साहू की ओर से कराये गए कार्यों की चर्चा होती है। जिले के मतदान केंद्र क्रमांक एक झिरिया वन ग्राम में उनके दौर में बिजली पहुंच पाई। अचानकमार अभयारण्य के डिप्टी डायरेक्टर का कार्यालय बिलासपुर से हटाकर लोरमी में उनके कार्यकाल में ही ले जाया गया।

प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया के दौरान भाजपा कार्यकर्ताओं की थी कि हर बार मुंगेली जिले से प्रत्याशी तय किए जाते हैं, इस बार बिलासपुर जिले से टिकट दी जानी चाहिए। मगर संगठन ने फिर मुंगेली जिले से ही उम्मीदवार तय किया है। दिलचस्प यह भी है कि उप मुख्यमंत्री अरुण साव भी लोरमी से ही विधायक हैं। टिकट के लिए साहू समाज के इसी जिले से दो अन्य दावेदार भी थे। एक तो पूर्व सांसद लखन लाल साहू, जिन्होंने करुणा शुक्ला को सन् 2014 में रिकॉर्ड मतों से हराया था, दूसरा लोरमी से ही जिला पंचायत सदस्य शीलू साहू। बिल्हा विधायक धरमलाल कौशिक का नाम भी चर्चा में आया। क्षेत्र के नेताओं ने इनमें से तोखन साहू के नाम को ज्यादा महत्व देते हुए उनकी सिफारिश की। बताते हैं कि डिप्टी सीएम साव सहित विधायक व पूर्व मंत्री पुन्नूलाल मोहले, अमर अग्रवाल और धरमलाल कौशिक भी तोखन साहू के नाम से सहमत थे। विधायक धर्मजीत सिंह ठाकुर के साथ भी तोखन साहू के संबंध पिछले एक साल से अच्छे हो गए थे, जिनके साथ उनका दो बार विधानसभा चुनाव में आमना-सामना हो चुका है। अरुण साव को डिप्टी सीएम का पद देने के बाद इसी समाज से सांसद के लिए भी टिकट तय कर भाजपा ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह क्षेत्रीय संतुलन के बजाय केवल जीत की संभावना पर ध्यान देगी। डिप्टी सीएम इस बात से संतुष्ट बताये जा रहे हैं कि उपमुख्यमंत्री होने के कारण उनकी प्रदेशव्यापी व्यस्तता की लोरमी में भरपाई हो सकेगी।

सन् 1996 में डॉ. खेलन राम जांगड़े की जीत के बाद लगातार 6 चुनावों में कांग्रेस को हार मिलती रही है। सन् 2009 के पहले तक यह सुरक्षित सीट थी। तब 1998 में तान्या अनुरागी, 1999 में रामेश्वर कोसरिया और 2004 में डॉ. बसंत पहारे चुनाव हार चुके हैं। परिसीमन से दोबारा सामान्य सीट बन जाने के बाद तीन चुनाव सन् 2009, 2014 और 2019 में हुए हैं। 2009 में दिलीप सिंह जूदेव ने डॉ. रेणु जोगी को हराया। बाद के चुनावों में सामान्य वर्ग के प्रत्याशी क्रमश: करुणा शुक्ला और अटल श्रीवास्तव को कांग्रेस ने खड़ा किया और दोनों को हार मिली। इन दो चुनावों में भाजपा ने साहू उम्मीदवार लखन लाल साहू और अरुण साव को खड़ा किया और वे भारी अंतर से चुनाव जीते। लखन लाल साहू ने रिकॉर्ड एक लाख 85 हजार वोटों से करुणा शुक्ला को हराया था। उसके बाद करीब 1 लाख 41 हजार वोटों से अरुण साव जीते। सन् 2009 के चुनाव में स्व. अजीत जोगी की मौजूदगी के बावजूद दिलीप सिंह जूदेव ने अपने प्रभावशाली व्यक्तित्व के कारण जीत हासिल की थी, पर टिकट मिलने से पहले तक लखन लाल साहू और अरुण साव पार्टी के सामान्य कार्यकर्ता थे। मगर, उनकी रिकॉर्ड जीत रही। भारी अंतर की जीत ने ही भाजपा को फिर साहू उम्मीदवार देना ठीक लगा।

अब कांग्रेस को तय करना है कि इस बार भी वह पिछले दो चुनावों की तरह सामान्य वर्ग का उम्मीदवार खड़ा करेगी या ओबीसी के मुकाबले किसी ओबीसी को। वैसे लोरमी विधानसभा सीट पर ही ऐसा प्रयोग विफल हो चुका है। कांग्रेस ने यहां से समाज के बड़े नेता थानेश्वर साहू को खड़ा किया था, लेकिन वे 45 हजार वोटों से हारे। संभावना यह है कि ओबीसी की दूसरी जातियों के बीच से कांग्रेस उम्मीदवार तलाश करेगी, ताकि पिछली पराजयों का फासला कम हो सके या जीत की कोई संभावना बन सके।

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