संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : सडक़ों से जानवर हटाना इंसानों को बचाने जैसा..
26-May-2024 4:24 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय :  सडक़ों से जानवर हटाना इंसानों को बचाने जैसा..

तस्वीर / ‘छत्तीसगढ़’

छत्तीसगढ़ में विष्णु देव साय की सरकार सडक़ों पर खुले घूमते गाय, सांड, और बछड़े-बछिया के लिए गौवंश अभ्यारण्य बनाने जा रही है। मुख्यमंत्री की तरफ से इसकी घोषणा हुई है, और कहा गया है कि इससे सडक़ों पर भूखे-प्यासे भटकते, और घूरों पर कचरा या प्लास्टिक खाते गौवंशी मवेशियों की हालत सुधर सकेगी। सरकार अगर तय कर लेगी, तो वह अपनी गाय-समर्थक राजनीतिक नीति के मुताबिक भी इस काम को अच्छे से कर सकती है। और यह काम आज की एक बहुत बड़ी जरूरत भी है। आज देश भर में बहुत से, या अधिकतर प्रदेशों में गौवंश को मारने पर कानूनी रोक लगी हुई है। भाजपा और उसके समर्थक हिन्दूवादी संगठनों के बीच गाय को बूचडख़ाने जाने से रोकना इतना बड़ा मुद्दा है कि इस चक्कर में देश भर में जगह-जगह पर बेकसूर मवेशी-व्यापारी भी मारे गए हैं कि वे गायों को बूचडख़ाने ले जा रहे हैं। बहुत से प्रदेशों ने मवेशियों को लाने ले जाने के खिलाफ कड़े कानून बना लिए हैं, और इन्हें लागू करने के नाम पर सडक़ों पर अराजकता और गुंडागर्दी करने वाले संगठन भी सत्ता की मेहरबानी से लैस रहते हैं। देश भर से कई इतनी हिंसक घटनाएं सामने आई हैं कि उनसे हिन्दुस्तान की एक बड़ी खराब तस्वीर दुनिया भर में बनी है। दूसरी तरफ गाय से जुड़ी हुई कोई भी बात देश के अधिकतर हिस्से में आनन-फानन हिन्दू-मुस्लिम तनाव का सामान भी बन जाती है, इसलिए गायों को संभालकर रखना अपने प्रदेश की शांति को संभालकर रखने सरीखा है। 

जब से देश भर में गायों और गौवंश के बाकी जानवरों को काटने पर कानूनी और गैरकानूनी दोनों किस्म की रोक बढ़ी है, तब से ये जानवर तरह-तरह की सामाजिक और आर्थिक समस्या भी बनते जा रहे हैं। भारत एक कृषि प्रधान देश है, और अधिकतर खेत बिना किसी बाढ़ के होते हैं, और ऐसे में अगर गांव-शहर में ये जानवर बढ़ते ही चले जाएंगे, तो कहीं न कहीं, कुछ न कुछ तो खाएंगे। नतीजा यह हो रहा है कि उत्तर भारत के बहुत से प्रदेशों में खेतों को चर जाने वाले जानवर एक बहुत बड़ा आर्थिक नुकसान खड़ा कर रहे हैं, और इनकी वजह से बहुत किस्म के लड़ाई-झगड़े भी बढ़ते चल रहे हैं। उत्तरप्रदेश ऐसी घटनाओं को लगातार दर्ज कर रहा है। महाराष्ट्र की खबरें हैं कि वहां पर किसान पुराने बैलों को बेचकर उस दाम से एक नया बैल ले लेता था, लेकिन अब यह जुर्म हो चुका है, इसलिए बूढ़े बैल किसान पर बोझ बने बैठे हैं, और किसान न तो उन्हें भूखे मरने दे पा रहा है, न ही उसके पास उन्हें खिलाने को कुछ है। नतीजा यह हो रहा है कि परंपरागत कृषि अर्थव्यवस्था में बूढ़े जानवरों से मुक्ति पा लेने का जो तरीका था, वह नए जानवर पाने में भी काम आता था, लेकिन अब वह सब एक जुर्म में गिनाने लगा है, इसलिए किसान पर दिक्कत और खतरा दोनों बढ़ गए हैं। 

छत्तीसगढ़ में ऐसे अनगिनत मामले हुए हैं जब तेज रफ्तार हाईवे पर, या शहरों के भीतर भी सडक़ों पर जानवर रहते हैं, और बारिश में या रात-बिरात वे दिखते नहीं हैं, और उनसे टकराकर बहुत से इंसानों की भी मौत होती है। प्रदेश की पिछली भूपेश बघेल सरकार ने गांवों में गौठान खोलकर इन जानवरों को दिन भर वहां रखने की योजना बनाई थी, लेकिन उसका गांवों पर चाहे जो भी असर हुआ हो, उसका शहरों तक विस्तार नहीं हुआ था, और शहर ऐसे नामालिक जानवरों से बहुत बुरी तरह परेशान हैं। इसलिए अगर सडक़ों और शहरों से इन जानवरों को स्थाई रूप से हटाकर किसी छायादार, पानी वाले इलाके में इनके लिए कोई डेरा बनाया जा सके, तो उससे ही सरकार की गौरक्षा की नीयत पूरी हो पाएगी, और इन जानवरों के साथ-साथ इंसानों को भी राहत मिलेगी। आज जानवरों की वजह से ट्रैफिक में जितनी बाधा आती है, उससे भी कुल मिलाकर तो रफ्तार घटती है, प्रदूषण बढ़ता है, और लोगों का वक्त भी जाया होता है, हादसों में बहुत सी जिंदगियां भी जाती हैं। इसलिए यह फैसला जानवर और इंसान, सडक़ का ट्रैफिक, और शहरों में सुरक्षित जिंदगी सबके हित का है। लेकिन जैसा कि किसी भी सरकारी योजना में होता है, योजना की कामयाबी उसके अमल में होती है। देखते हैं इस पर अमल में कितनी कामयाबी मिलती है।  (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)   

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