संपादकीय
पुणे में एक अरबपति बिल्डर के नाबालिग बेटे ने नशे में धुत्त, करोड़ों की कार को देर रात अंधाधुंध रफ्तार से चलाते हुए दो लोगों को मौके पर ही मार डाला था, उसे बचाने के लिए पूरी दुनिया जुट गई है। मौके पर पहुंचे पुलिस कर्मचारियों ने किसी बड़े अफसर को इसकी खबर नहीं की। मौके पर भीड़ ने इस रईसजादे को पकड़ लिया था इसलिए उसे थाने तो ले जाना पड़ा लेकिन वहां उसकी पसंद का पीजा बुलाकर उसकी खातिरदारी की गई, दूसरी तरफ दूसरे प्रदेशों के जो दो लोग मारे गए थे उनकी तरफ से मौके के जो गवाह थाने पहुंचे थे, उनके साथ पुलिस ने बदसलूकी की थी। फिर जब किशोर न्यायालय में इस रईसजादे को पेश किया गया तो पल भर में जज ने जमानत दे दी, और सजा दी निबंध लिखने की। इसके अलावा इस लडक़े के नशे में होने की जांच के लिए पुणे के जिस मशहूर सरकारी अस्पताल में इसे ले जाया गया वहां इसके खून की जांच होनी थी, और उसमें यह नशे में नहीं पाया गया। अब पुलिस ने इस अस्पताल के फोरेंसिक विभाग के एचओडी सहित दो डॉक्टरों को गिरफ्तार किया है कि उन्होंने इस लडक़े को बचाने के लिए इसके खून का नमूना कचरे में फेंक दिया, और किसी दूसरे मरीज के खून को इस लडक़े के नाम से लगा दिया। पुलिस का यह बदला यह रूख इस बात के बाद में हुआ है कि इस एक्सीडेंट को लेकर देश भर में भारी हंगामा चल रहा है, और पुलिस कार्रवाई पर जमकर सवाल उठाए जा रहे हैं। यह इस बात के बाद भी हुआ है कि किशोर न्यायालय के जज की दी गई जमानत अगले दिन खारिज करके इस लडक़े को सुधारगृह भेजा गया है। फिर मानो यह सब काफी न हो, यह खबर फैलाई गई कि कार की मोटरसाइकिल सवारों को मारी गई टक्कर के वक्त कार ड्राइवर चला रहा था, और यह नाबालिग लडक़ा साथ बैठा हुआ था। बाद में इस ड्राइवर ने पुलिस को बताया कि किस तरह इस अरबपति परिवार में लडक़े का दादा ड्राइवर पर दबाव बना रहा था कि वह ऐसा झूठा बयान दे। नाबालिग बेटे को कार देने, दारू पीने के लिए क्रेडिट कार्ड देने, और बिना नंबर प्लेट की कार रखने पर इस लडक़े का बिल्डर-बाप भी गिरफ्तार हो चुका है। और अब ड्राइवर का अपहरण करके कैद करने, और उसे धमकाने और सुबूत नष्ट करने के आरोप में दादा भी गिरफ्तार हो गया है। यह तो मामला इतनी खबरों में आ गया है कि पुलिस को उन शराबखानों की वीडियो रिकॉर्डिंग भी जब्त करनी पड़ी जिनमें यह नाबालिग रईसजादा अपने दोस्तों के साथ शराब पीते घूमते दिख रहा है।
इस पूरे सिलसिले को देखें तो साफ दिखता है कि एक पैसे वाले मुजरिम को बचाने के लिए हिन्दुस्तानी लोकतंत्र पूरे का पूरा टूट पड़ता है। अभी तो पर्दे के पीछे की कोशिशें सामने नहीं आई हैं, और हम तो सिर्फ जो कार्रवाई हो चुकी है उसके आधार पर यह फेहरिस्त सामने रख रहे हैं। अब देखा जाए तो पुलिस से लेकर अस्पताल के डॉक्टरों तक, और किशोर न्यायालय के जज तक जो रूख सामने आया है, उसमें मारे गए बेकसूर लोगों को कोई इंसाफ मिलने की गुंजाइश कहां दिखती है? यह तो मामला आगे चलेगा तो पता लगेगा कि जिन लोगों ने मौके पर इस लडक़े को गाड़ी चलाते पकड़ा था, उनमें से कुछ लोगों के बयान बदल जाएंगे, या फिर वे गायब भी हो जाएंगे, या कर दिए जाएंगे। हिन्दुस्तानी लोकतंत्र इस बुरी तरह भ्रष्ट है कि इस पर मुजरिमों को बच जाने का पूरा भरोसा हो सकता है, बेकसूरों के बचने की या इंसाफ पाने की गुंजाइश बड़ी कम रहती है। अभी तो सडक़ों पर इन मौतों को चार दिन ही गुजरे हैं, और इतने में ही इतने किस्म की साजिशें सामने आ गई हैं। अब जब आगे यह घटना खबरों से परे हो जाएगी, तब पता लगेगा कि एक-एक सुबूत को कैसे खरीदा जाएगा, डॉक्टर से पुलिस और अदालत तक की कार्रवाई में कौन-कौन से गड्ढे खड़े किए जाएंगे ताकि यह अरबपति मुजरिम निकल सके। और अभी तो एक-एक पेशी के दसियों लाख रूपए लेने वाले महंगे वकीलों का काम तो शुरू ही नहीं हुआ है, उनमें से तो इतने काबिल निकल सकते हैं कि वे अदालत में साबित कर दें कि महंगी कार को नुकसान पहुंचाने के एवज में, और इस नाबालिग लडक़े को बदनाम करने के जुर्म में दो मरने वाले लोगों के पंचतत्व को कैद सुनानी चाहिए। पता लगेगा कि महंगे वकील की मांग पर इन दोनों की अस्थियां विसर्जित करने के बजाय उन्हें दो घड़ों में उम्रकैद सुना दी जाएगी। शुरू से ही मुजरिम को बचाने की जो कोशिशें चालू हुई हैं, वे आगे चलकर उसे सजा से बचाने में कामयाब भी हो सकती हैं। इस मामले का आखिरी फैसला होने तक यह समझ पड़ेगा कि इसके रास्ते में कितने ईमानदार और कितने बेईमान लोग आए थे। देश में कानून की पढ़ाई करने वाले छात्र-छात्राओं को भी ऐसे मामले पढ़ाने चाहिए, और आईपीएस के लिए चुने गए लोगों को भी। और खोजी पत्रकारिता में अगर अब भी कुछ लोग दिलचस्पी रखते हैं जिनके अखबार या टीवी चैनल को ऐसे बिल्डरों के इश्तहारों की परवाह न हो, तो वे भी ऐसे मामलों से ये सीख सकते हैं कि रईसजादों की रिपोर्टिंग करने में कहां-कहां पर साजिश परखने का काम करना चाहिए।
ऐसा लगता है कि किसी मामले का एकदम से खबरों में आ जाना ही उस मामले में कुछ हद तक इंसाफ की गुंजाइश पैदा करता है। जहां कहीं भी अखबारनवीसी थोड़ी सी बाकी हो, वहां पर इसे जिंदा रखने की कोशिश करनी चाहिए, क्योंकि खबरों ने ही इस मामले को पटरी से उतारने की अनगिनत साजिशों को अब तक नाकामयाब किया है। इस मामले से परे भी जहां-जहां बड़े लोग शामिल होते हैं, मोटी रकम का खेल रहता है, वहां पर मुजरिमों को बेगुनाह साबित करने के लिए कई बार तो किसी बेकसूर को भी फंसा दिया जाता है, ताकि लोगों का ध्यान पैसे वाले असल मुजरिमों की तरफ से हट जाए। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)