संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : तेलंगाना की टैपिंग-हैकिंग से पूरा देश सबक ले...
28-May-2024 4:51 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : तेलंगाना की टैपिंग-हैकिंग से पूरा देश सबक ले...

तेलंगाना में पिछली बीआरएस सरकार के दौरान जो लोग मुख्यमंत्री के.चन्द्रशेखर राव के विरोधी या आलोचक लगते थे उसकी भारी खुफिया जासूसी करवाई जाती थी। और यह काम किसी निजी एजेंसी से करवाने के बजाय राज्य सरकार की खुफिया पुलिस ने ही किया था। अभी तेलंगाना के एक भूतपूर्व पुलिस अफसर ने पिछली सरकार के दौरान काम करते हुए की गई इस तरह की जासूसी की बहुत सी जानकारी जांच करने वालों को बताई है। यह जांच तेलंगाना में नई कांग्रेस सरकार आने के बाद शुरू हुई है क्योंकि पिछली सरकार के बारे में यह माना जा रहा था कि वह विरोधियों और विपक्षियों की जासूसी करवाती थी। पिछले साल भाजपा के एक नेता ने भी यह बयान दिया था, और अब कांग्रेस सरकार इसकी व्यापक जांच करवा रही है।

तेलंगाना के लोग जानते हैं कि मुख्यमंत्री केसीआर, और उनके मंत्री बेटे के.टी.रामाराव ने अपनी सत्ता के चलते हुए नेताओं, अफसरों के साथ-साथ उद्योगपतियों और फिल्मी सितारों तक के फोन टैप करवाए थे, या उनकी तरह-तरह से निगरानी करवाई थी। इन तमाम चीजों का राज्य की आंतरिक सुरक्षा से कोई लेना-देना नहीं था, और राजनीतिक हिसाब-किताब चुकता करने के साथ-साथ लोगों के कारोबारी राज जानकर उनसे वसूली और उगाही करने के लिए भी ऐसा किया गया था। यह भी चर्चा थी कि केसीआर ने जिन फिल्मी सितारों के फोन टैप करवाए थे, उनमें से कुछ के निजी जिंदगी के राज इस तत्कालीन मंत्री के हाथ लगे थे, और वहां से एक के जीवनसाथी तक यह बात पहुंची, और एक अभिनेत्री का तलाक भी इसी वजह से होने की चर्चा है। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव बांदी संजय कुमार ने कल यह मांग की है कि केसीआर और उनके बेटे को फोन टैपिंग में गिरफ्तार किया जाए, और उनकी विधानसभा की सदस्यता को खत्म किया जाए। उन्होंने साथ-साथ यह भी मांग की कि राज्य की कांग्रेस सरकार इस मामले को जांच के लिए सीबीआई को दे दे। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार इसमें पर्याप्त तेजी नहीं दिखा रही है, जबकि गिरफ्तार किए गए एक भूतपूर्व पुलिस डीसीपी ने पर्याप्त सुबूतों वाली गवाही दी है।

ऐसी शिकायत अलग-अलग कई राज्य सरकारों के कार्यकाल में उठती रही है। छत्तीसगढ़ में जोगी को तो कुल तीन साल का कार्यकाल मिला था, और उस वक्त राज्य में खुफिया विभाग का ढांचा भी बहुत अच्छी तरह नहीं बन पाया था। लेकिन रमन सिंह के समय से ऐसी चर्चाएं रहती थीं कि अवैध रूप से खरीदी गई करोड़ों की एक मोबाइल फोन टैपिंग मशीन का इस्तेमाल किया जाता है, और उसमें विरोधियों या विपक्षियों पर निगरानी रखी जाती है। यह बात कभी साबित नहीं हो पाई, लेकिन सत्ता के करीबी कुछ लोग ऐसी फोन टैपिंग से मिली जानकारी की ताकत का प्रदर्शन करते रहते थे। छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल की पिछली सरकार के समय तो हालत यह थी कि सत्ता में जो लोग जरा भी मायने रखते थे वे सिर्फ आईफोन के फेसटाईम पर बात करते थे, क्योंकि यह माना जाता था कि देश की खुफिया एजेंसियां भी उसमें घुसपैठ नहीं कर पाती हैं। जो लोग सैकड़ों-हजारों करोड़ रूपए के जुर्म में शामिल रहते थे, वे खुद, और अपने आसपास के लोगों के भी आईफोन हर महीने-दो महीने में बदलवाते चलते थे। अभी सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली के सीएम केजरीवाल की जमानत अर्जी के खिलाफ तर्क देते हुए ईडी ने बताया था कि शराब घोटाले के सुबूतों को छुपाने के लिए, नष्ट करने के लिए केजरीवाल और सत्ता के शराब से जुड़े 36 लोगों ने करीब 170 मोबाइल फोन नष्ट किए थे। छत्तीसगढ़ में भी भूपेश सरकार के किसी भी महत्वपूर्ण व्यक्ति से सिर्फ आईफोन पर ही बात हो पाती थी। राज्य के सत्तारूढ़ लोगों को केन्द्र की एजेंसियों से हैकिंग का खतरा रहता था, और राज्य के विपक्षी लोगों को भूपेश सरकार द्वारा फोन टैपिंग का डर रहता था। कुल मिलाकर ऐसा लगता है कि हिन्दुस्तान में केन्द्र और राज्य सरकारों को राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर फोन टैप करने के जो अधिकार मिले हैं, उनका बड़ा बेजा इस्तेमाल होता है, और लोगों की निजता और लोकतांत्रिक स्वतंत्रता खत्म होती है।

ऐसे में कोई हैरानी नहीं है कि भारत के लोगों को यह आशंका है कि केन्द्र की मोदी सरकार ने इजराइल के सबसे बदनाम, फौजी दर्जे के घुसपैठिया सॉफ्टवेयर पेगासस का इस्तेमाल अपने विपक्षी नेताओं, और चुनिंदा पत्रकारों पर कर रही है। यह अलग बात है कि सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई के बाद जब एक अदालत ने एक कमेटी बनाई, और उसे जांच की, तो उसे जिन 29 लोगों ने अपने मोबाइल फोन जांच के लिए दिए थे, उनमें से किसी पर भी पेगासस स्पाईवेयर नहीं मिला था, लेकिन उनमें से पांच पर कुछ और संदिग्ध घुसपैठ मिली थी। आज देश भर में अपने आपको जो भी महत्वपूर्ण समझते हैं, वे लोग मोबाइल फोन के सिमकार्ड पर कोई संवेदनशील बात करना नहीं चाहते। वे अलग-अलग किस्म के इंटरनेट-आधारित फोनकॉल, और मैसेंजर एप्लीकेशनों का इस्तेमाल करते हैं, और मानकर चलते हैं कि सरकार उन पर आसानी से निगरानी नहीं रख पाएगी। लेकिन किसी गाड़ी की आवाजाही को ट्रैक करने के छोटे से, सिक्के सरीखे, उपकरण इतने आम हैं कि किसी के भी बैग में, कार या दूसरे सामान में उसे आसानी से सरकाया जा सकता है, और फिर अपने मोबाइल फोन के रास्ते उस पर निगरानी रखी जा सकती है। इसके अलावा किसी के घर, दफ्तर, या किसी और जगह पर खुफिया कैमरे या माइक्रोफोन बड़ी आसानी से लगाए जा सकते हैं, और लोगों की निजता अब तकरीबन खत्म सरीखी है। लोग किसी से मिलने के लिए जा सकते हैं, और वहां से निकलने के पहले उनकी टेबिल के नीचे माइक्रोफोन चिपकाकर निकल सकते हैं, जिसे कुछ दूसरी से मोबाइल फोन से सुना जा सकता है, रिकॉर्ड किया जा सकता है।

सत्ता जब किसी की निगरानी पर उतारू हो जाती है, तो फिर उस देश के जज भी महफूज नहीं रह जाते। बहुत से देशों में यह माना जाता है कि सरकारें अपनी पसंद के फैसले पाने के लिए जजों पर निगरानी रखती हैं, और उनकी कमजोर नब्ज हाथ में आते ही उनसे मर्जी का काम करवाने लगती हैं। भारत के एक प्रदेश में सत्तारूढ़ पार्टी के बागी तेवरों वाले विधायकों पर नजर रखने के लिए उन्हें महंगे मोबाइल फोन का तोहफा दिया गया, और उसमें डाले गए स्पाईवेयर से उसकी बातचीत और उसके संदेश पहले से तय की गई किसी जगह पर पहुंचते रहे। चर्चा यह भी रहती है कि हिन्दुस्तान की कुछेक सरकारें जो खुद कई किस्म की हैकिंग नहीं कर पाती हैं, वे भी दुनिया के दूसरे बदनाम देशों के हैकरों को भाड़े पर लेकर उनसे अपने विरोधियों और आलोचकों की हैकिंग करवाती हैं, जो कि सरकार के काम तो आ जाती है, लेकिन उसकी तोहमत सरकार पर नहीं आती है।

आज जैसे-जैसे लोगों का इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का इस्तेमाल बढ़ रहा है, और इंटरनेट या सोशल मीडिया पर उनकी मौजूदगी बढ़ रही है, वैसे-वैसे वे नाजुक होते जा रहे हैं। डिजिटल उपकरण और इंटरनेट, ये दोनों मिलकर किसी का कुछ भी निजी नहीं रहने दे रहे हैं। ऐसे में भारत में सरकारों की निगरानी रखने की ताकत पर दुबारा गौर करने की जरूरत है। यह कानून बहुत पहले बना था, उस वक्त तारों से जुड़ा हुआ टेलीफोन ही रहता था। अब दुनिया बहुत बदल गई है, और अब लोग न चाहते हुए भी उपकरणों से घिरे रहते हैं। ऐसे में भारत में निगरानी रखने के कानून और उसके अमल को पारदर्शी बनाने की जरूरत है, ताकि विपक्ष, विरोधियों, और आलोचकों का शिकार करने के लिए इस कानून की बंदूक का इस्तेमाल न हो। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)   

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