संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : मोहब्बत से बलात्कार और कत्ल तक पहुंचते रिश्ते...
29-May-2024 6:55 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : मोहब्बत से बलात्कार और  कत्ल तक पहुंचते रिश्ते...

मोबाइल फोन के कैमरों की मेहरबानी से सोशल मीडिया पर बनने वाले रिश्ते मरने और मारने तक पहुंच रहे हैं। कल एक महिला ने फांसी लगा ली क्योंकि उसकी नाबालिग बेटी का एक नग्न वीडियो एक नाबालिग लडक़े ने बना लिया था, और उसे चारों तरफ फैला दिया था। अपनी 13 बरस की बेटी का ऐसा वीडियो फैलने से तकलीफ पाती हुई मां ने खुदकुशी कर ली। कल की ही बिल्कुल आसपास की खबरें यह हैं कि एक नौजवान ने अपनी नाबालिग प्रेमिका को मिलने बुलाया था, और वहां पर उसकी सहमति से या उसकी मर्जी के खिलाफ उसके साथियों ने उस नाबालिग लडक़ी से बलात्कार किया। ऐसे 6 लोगों ने उससे बलात्कार करके वीडियो बनाया, बलात्कारियों में तीन नाबालिग भी हैं, और सभी पकड़े जा चुके हैं। पड़ोस के एक दूसरे शहर की खबर है कि एक ज्योतिषी मुकुंज त्रिपाठी ने पड़ोस की प्रेमिका के पति से छुटकारा पाने के लिए उसे मारा, लाश को पॉलीथीन की परतों में लपेटा, और अपने मकान की रसोई में पांच फीट गड्ढा खोदकर दफन कर दिया, अब पांच महीने बाद जाकर इस मामले का भांडाफोड़ हुआ है। इस प्रेमसंबंध की जानकारी पति को लग गई थी, और वह मिलने से मना करता था। चारों तरफ नाबालिगों के प्रेमसंबंध, देहसंबंध, शादीशुदा लोगों के तरह-तरह के जायज और नाजायज संबंध इतने खून-खराबे तक पहुंच रहे हैं कि हैरानी यह होती है कि अगर किसी के मन में सचमुच ही प्रेम है, तो क्या वे इतनी रफ्तार से ब्लैकमेलर और हत्यारे, या बलात्कारी हो सकते हैं? 

दरअसल समाज इन मामलों से पूरी तरह बेफिक्र है। लोग इसे पुलिस और अदालत का मामला मानकर अनदेखा कर देते हैं, कि बाकी लोगों को भला इससे क्या लेना-देना? लेकिन जब समाज में ऐसी घटनाएं बढ़ती चलती हैं, तो यह भी समझने की जरूरत रहती है कि बलात्कार, कत्ल, और खुदकुशी से नीचे भी कई ऐसे किस्म की हिंसा रहती है जो कि पुलिस रिकॉर्ड और खबरों में नहीं आ पातीं। जिन परिवारों में जायज और नाजायज संबंधों को लेकर तनाव चलते रहता है, वहां पर बच्चों पर इसका कैसा असर पड़ता है, जिन लोगों को इसकी जानकारी रहती है, उन पर कैसा असर पड़ता है? ये मामले पुलिस का सामान बनने के पहले ही समाजशास्त्रीय अध्ययन का मुद्दा रहना चाहिए, लेकिन ऐसा हो नहीं पाता। और आज मोबाइल फोन और सोशल मीडिया की मेहरबानी से किशोर-किशोरियां भी तरह-तरह के रिश्तों में उलझ रहे हैं, और तात्कालिक भरोसे के चलते कई तरह के फोटो-वीडियो में शामिल हो जाते हैं, जो कि बाद में ब्लैकमेलिंग या बदला लेने के लिए फैला दिए जाते हैं, और बहुत सी जिंदगियां खत्म करते हैं। 

हर दिन इस छोटे से राज्य छत्तीसगढ़ में दर्जन भर ऐसे मामले सामने आ रहे हैं जिनमें किसी नाबालिग को शादी का झांसा देकर उससे बलात्कार का जुर्म दर्ज हुआ है, या गिरफ्तारी हुई है। अब नाबालिग लड़कियों को शादी की उम्मीद में किसी से देहसंबंध बनाने की ऐसी कितनी जरूरत होनी चाहिए? शादी की ऐसी हड़बड़ी भी क्यों होनी चाहिए? बहुत से मामलों में ऐसा भी लगता है कि नाबालिग लडक़ी अपनी मर्जी से ऐसे संबंध बनाती है, लेकिन कानूनी रूप से उसकी सहमति की कोई कीमत नहीं रहती है, और बाद में शादी न होते दिखने पर बलात्कार की रिपोर्ट लिखाई जाती है। सवाल यह भी उठता है कि एक नाबालिग लडक़ी की शादी हो कैसे सकती थी? लडक़े-लड़कियों को उनके बदन, सेक्स, वीडियो के खतरे, और शादी की उम्मीद के बहुत ही कमजोर होने की हकीकत का पता क्यों नहीं होता? सच तो यह है कि हिन्दुस्तान में मां-बाप, स्कूल-कॉलेज, या समाज लडक़े-लड़कियों के प्रेम और देहसंबंध की उम्र आ जाने के बाद भी उनसे जिंदगी की हकीकत की कोई चर्चा करना नहीं चाहते। नतीजा यह होता है कि वे सेक्स से होने वाली बीमारियों के खतरों से भी नावाकिफ रहते हैं, गर्भ का खतरा भी समझ नहीं पड़ता है, और अपने सेक्स-वीडियो बनवाते हुए उन्हें प्रेमी से अंतरंगता के अलावा कुछ नहीं दिखता है। नतीजा यह होता है कि अपनी कोई भी उम्मीद पूरी न होने पर शादी का वायदा करके बलात्कार करने की रिपोर्ट लिखा दी जाती है, जिसके तहत सामाजिक दबाव बनाना, या सजा दिलवाना कुछ आसान रहता है। 

हिन्दुस्तान में शादीशुदा लोगों के विवाहेत्तर संबंधों को कई बार हिंसा तक पहुंचते देखा जाता है। शादी को एक किस्म से पूरी जिंदगी का रिश्ता मान लिया जाता है, और तलाक को एक सामाजिक धब्बा। नतीजा यह होता है कि लोग अनचाहे या नापसंद हो चुके रिश्तों को ढोते हैं, और अपने तन-मन की तसल्ली के लिए कहीं और रिश्ता बना लेते हैं। इसके मुकाबले उन देशों में हिंसा कम होती है जहां पर लोग आसानी से बिना शादी साथ रहते हैं, बिना शादी बच्चे पैदा कर लेते हैं, शादी के बाद तलाक भी कोई बड़ा मुद्दा नहीं रहता है, और तलाकशुदा लोग दूसरी शादियां आसानी से कर लेते हैं। हिन्दुस्तान में इनमें से किसी भी चीज के लिए सामाजिक बर्दाश्त नहीं है, और लोग ऐसे घोषित विकल्पों के बजाय अघोषित नाजायज विकल्प ढूंढते रहते हैं, जिसकी वजह से हिंसा कुछ अधिक होती है। 

यह सिलसिला खत्म करने के लिए किशोरावस्था से पहले ही लडक़े-लड़कियों को प्रेम और देहसंबंधों के बारे में बतलाना होगा। कैसे रिश्ते कैसी जटिलता लेकर आते हैं, यह चर्चा भी करनी होगी। उन्हें दिमागी रूप से तैयार करना होगा कि वे किस सीमा से अधिक भरोसा किसी पर न करें। इसी तरह शादीशुदा जोड़ों के बीच अगर भरोसा खत्म हो चुका है, और बाहर रिश्ते बनाए जा रहे हैं, तो इसे या तो बर्दाश्त करना आना चाहिए, या फिर ऐसे रिश्ते से बाहर निकलना। किसी भी तरह का खून-खराबा रिश्तों को खत्म नहीं करता है, वह आजादी खत्म करता है जो कि जेल में रहते हुए नसीब नहीं रहती है। दुनिया में कोई भी रिश्ते इंसान की सामाजिक आजादी खत्म करके जेल जाने लायक नहीं होते हैं। जब किसी को मारकर जेल जाना जरूरी लगे, तो ऐसे इंसान से मौजूदा रिश्तों को मारकर खुली दुनिया में ही आजादी पा लेनी चाहिए, और अपनी-अपनी मर्जी के रास्तों पर निकल पडऩा चाहिए। लगता है कि हिन्दुस्तानी समाज के अधिकतर हिस्से में किशोरावस्था से लेकर शादीशुदा लोगों तक में समझदारी की बहुत कमी है, और हिंसा की बड़ी अधिकता है, चाहे अपने बारे में, चाहे दूसरों के बारे में। और इसके साथ-साथ एक बात और, यहां के लोग सबसे अधिक भरोसे के रिश्तों में सबसे अधिक दगाबाज भी हैं, यही वजह है कि धोखा देने के साथ-साथ बदला लेने के लिए अच्छे दिनों के वीडियो इस तरह फैलाते हैं कि लोगों को शर्मिंदगी में जान दे देनी पड़े।  (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)   

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