संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : बड़ी फौजी ताकतों ने चक्रव्यूह में घुसना तो सीखा, निकलना नहीं
03-Jun-2024 4:34 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : बड़ी फौजी ताकतों ने चक्रव्यूह में घुसना तो सीखा, निकलना नहीं

एक फिलीस्तीनी आतंकी या फौजी संगठन हमास के हमले के बाद इजराइल ने पिछले कुछ महीनों में फिलीस्तीन के गाजा शहर पर हर किस्म के हमले करके अब तक 35 हजार से अधिक लोगों को मार डाला है, और जख्मियों की कोई गिनती नहीं है। लोगों के खाने-पीने का सामान नहीं है, अंतरराष्ट्रीय मदद गाजा में पहुंचने नहीं दी जा रही, और अमरीका जैसे बेईमान देश एक तरफ मदद भेजने का नाटक कर रहे हैं, और दूसरी तरफ इजराइल को बम दिए जा रहे हैं ताकि वह और अधिक फिलीस्तीनी मार सके। दुनिया का सबसे ताकतवर मवाली देश अमरीका अब लगातार यह नाटक कर रहा है कि वह युद्धविराम की कोशिश कर रहा है, और उसने इजराइल को कुछ किस्म के हथियारों की सप्लाई स्थगित की हुई है। ऐसा लगता है कि एक गिरोहबंदी के तहत अमरीका और इजराइल दुनिया के दिखावे के लिए एक नूराकुश्ती लड़ रहे हैं, और इतिहास में अमरीका फिलीस्तीनियों के जनसंहार से अपनी असहमति दर्ज करा रहा है, लेकिन नवंबर में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के पहले अमरीकी सरकार अमन के लिए काम करते दिखना चाहती है। ऐसा पाखंड दुनिया के कई मोर्चों पर भरा हुआ है, और इसे देखने-समझने की जरूरत है, और यह देखने के लिए अंतरराष्ट्रीय संबंधों के परंपरागत तौर-तरीकों से परे हटकर देखने की ताकत भी चाहिए। 

आज खुद इजराइल की सरकार के भीतर इस बात को लेकर बड़ी असहमति है कि गाजा पर किया गया यह हमला खत्म कैसे होगा? हिन्दुस्तान में एक कहानी कही जाती है कि किस तरह अभिमन्यु ने मां के पेट में रहते हुए चक्रव्यूह को भेदना सीख लिया था, लेकिन उसने चक्रव्यूह में से निकलना नहीं सीखा था, और असल जंग में वह उसी में फंसकर मारा गया था। अमरीका करीब 20 बरस तक वियतनाम पर हमला करके एक जंग चलाते रहा, और फिर इस बेनतीजा जंग को छोडक़र उसे निकलना पड़ा। इस जंग के दौरान करीब 9 बरसों में अमरीका ने वियतनाम पर करीब 26 करोड़ क्लस्टर बम दागे थे। हम इस जंग की पूरी कहानी पर यहां जाना नहीं चाहते हैं, लेकिन अमरीकियों ने वियतनामियों की एक पूरी पीढ़ी को खत्म कर दिया था। अमरीकी सैनिकों ने वियतनामी युवतियों से जितने बच्चे पैदा किए थे, वे अमरीका के सामने एक नई चुनौती पेश करते हुए खड़े थे। दूसरी तरफ अमरीका ने एक वक्त इराक पर हमला किया, बरसों तक वहां के शासन को अपने कब्जे में रखा, और वहां से बेनतीजा निकलना पड़ा। फिर अफगानिस्तान की बारी थी, वहां हमला करके अमरीका ने पूरा शासन अपने कब्जे में रखा, 20 बरस इस देश को हांकने के बाद अमरीका किसी तरह अपनी जान बचाकर वहां से भागा, और अफगानिस्तान को एक बार उन्हीं खूंखार तालिबानों के हवाले करके निकला, जिनसे अफगानिस्तान को आजाद कराने का दावा करते हुए वह वहां घुसा था। 

किसी देश की मौजूदा सरकार को हटाने के लिए उस पर हमला करना, सरकार को बेदखल करना तो कम मुश्किल काम रहता है। अधिक मुश्किल रहता है उस सरकार की जगह नई सरकार कायम करना। और सरकार को बेदखल करने की नीयत न भी हो, तो भी किसी देश में वहां की सरकार और जनता के कंधे पर बंदूक रखकर अपने दूसरे फौजी इरादों को पूरा करना यूक्रेन में देखने मिल रहा है, जहां रूसी हमले का सामना करने के लिए अमरीका और योरप के देश यूक्रेन की फौजी हथियारों से मदद कर रहे हैं, लेकिन यूक्रेन के हाथ उन्होंने पीछे बांध रखे हैं। अभी तक अमरीका और नाटो के बाकी देश जो हथियार यूक्रेन को दे रहे थे, उनके साथ यह शर्त लगा रखी थी कि उनका इस्तेमाल रूस के भीतरी ठिकानों पर वार करने के लिए नहीं किया जाएगा। ऐसा इसलिए रखा गया था कि रूस इससे भडक़कर कोई परमाणु युद्ध न छेड़ दे। लेकिन यूक्रेन को गले-गले तक इस जंग में धंसा देने के बाद नाटो देश यह नहीं समझ पा रहे हैं कि यह मदद कब तक जारी रखी जाएगी, कब तक रूस को खोखला करने की नीयत पूरी हो सकेगी, और रूसी हमलों के बाद यूक्रेन नाम के बचे हुए खंडहर को किस दाम पर खड़ा किया जा सकेगा। वियतनाम से लेकर इराक, अफगानिस्तान, यूक्रेन, और अब गाजा तक की फौजी कार्रवाईयां उस चक्रव्यूह की तरह हैं जिनमें घुसना तो अभिमन्यु को आता था, लेकिन जिससे निकलना नहीं आता था। यूक्रेन अमरीका और योरप के गले की हड्डी बन गया है, ठीक इसी तरह आज फिलीस्तीन का गाजा इजराइल और अमरीका सहित इस गिरोह के बाकी देशों के सामने आज की दुनिया का सबसे बड़ा सवाल बनकर खड़ा हो गया है कि यह दुनिया फिलीस्तीन का क्या करने जा रही है? इस नौबत का इजराइल के पास भी कोई समाधान नहीं है, और इजराइल आज एक ऐसा देश हो गया है जहां प्रधानमंत्री पर भ्रष्टाचार के मुकदमे तैयार खड़े हैं, और जिसने देश के सबसे कट्टरपंथी दलों की मदद लेकर इजराइल के इतिहास की सबसे संकीर्णतावादी सरकार बनाई है। और आज जब फिलीस्तीन के साथ इजराइल के किसी किस्म के युद्धविराम की बात हो रही है, तो ये कट्टरपंथी पार्टियां इजराइली प्रधानमंत्री की सरकार गिरा देने की धमकियां दे रही हैं। आज इजराइल के सामने यह लाख रूपए का सवाल खड़ा हुआ है कि वह फिलीस्तीन का क्या करेगा? जिसकी जमीन पर अवैध कब्जा करके इजराइलियों ने अपना देश बसा लिया है, और फिलीस्तीनियों को उनकी ही जमीन पर शरणार्थी और फौजी बंधक बनाकर रखा है, क्या उस पूरी आबादी के खत्म हो जाने तक फौजी हमले जारी रखने की इजाजत दुनिया उसे देगी, या इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस के हुक्म के मुताबिक, संयुक्त राष्ट्र संघ के मुताबिक इजराइल का अधिक बड़ा बहिष्कार दुनिया में होने लगेगा? इजराइल के पास फिलीस्तीन पर किए जा रहे जुल्म को खत्म करने का कोई जरिया नहीं है, क्योंकि बीते बरसों में लाखों फिलीस्तीनियों को मार डालने के बाद बचे हुए लाखों फिलीस्तीनियों के जख्म और उनकी नफरत से इजराइल कैसे महफूज रह सकेगा? 

दुनिया में जब कभी बड़े फौजी फैसले लिए जाते हैं, तो उनमें अक्सर ही नागरिक-समझ की कमी रहती है। फौजी फैसले यह नहीं बताते कि जब मोर्चे से फौज हट जाएगी, तो रोजाना का काम कैसे चलेगा? जिस फिलीस्तीन को दुनिया का सबसे बड़ा मलबा बना दिया गया है, जहां दुनिया के इतिहास के सबसे अधिक संख्या के आम नागरिकों को इतने कम वक्त में, संयुक्त राष्ट्र की रोक-टोक के बावजूद मारा गया है, उस फिलीस्तीन पर जंग रोककर इजराइल कैसे अपने आपको बचा सकेगा, यह बहुत बड़ा सवाल उसके सामने खड़ा है। दूसरी तरफ दो बरस से लगातार यूक्रेन की फौजी और दीगर किस्म की मदद करते हुए अमरीका और योरप थके हुए हैं, लेकिन रूस को खोखला करने की अपनी नीयत के चलते वे यूक्रेनी फौजियों और जनता की कुर्बानी दिए जा रहे हैं। अब यह बेनतीजा दिखती जंग यूक्रेन पर किस-किस तरह से भारी पड़ेगी, पड़ रही है, यह एक बहुत बड़ी समस्या है। लेकिन जंग को इतने ऊपर तक ले जाने के बाद अब उसे खत्म करके एक देश को फिर से कैसे बसाया जाए, यह इलाज किसी के पास नहीं है। 

दिक्कत यह है कि ऐसी नौबतों से जूझने के लिए, ऐसी बर्बादी को रोकने के लिए जिस संयुक्त राष्ट्र संघ का असर हो सकता था, उसे दुनिया की महाशक्तियों की वीटो-ताकत ने बेअसर कर रखा है। वरना यह आज के वक्त की एक बड़ी जरूरत की संस्था थी, जिसकी हेठी अमरीका ने इराक और अफगानिस्तान पर हमले वक्त भी की, और फिलीस्तीन के खिलाफ तो अमरीका ने संयुक्त राष्ट्र को कुछ समझा ही नहीं। आज की यह नौबत दुनिया के सीखने की है कि जंग छेडऩा आसान होता है, उसे खून-खराबा खत्म होने के बाद अमन में तब्दील करना नामुमकिन सरीखा होता है।  (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)   

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