संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : आग से धुआं उठना जारी है, और मंत्री द्वारा कांग्रेस पर साजिश की तोहमत!
12-Jun-2024 5:05 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय :  आग से धुआं उठना जारी है, और मंत्री द्वारा कांग्रेस पर  साजिश की तोहमत!

छत्तीसगढ़ के बलौदाबाजार-भाटापारा जिले में सतनामी समाज के एक आंदोलन का विस्तार कलेक्ट्रेट में पहुंचे जुलूस की शक्ल में हुआ, और इस जुलूस के लोगों ने एसपी और कलेक्टर के दफ्तरों सहित दर्जनों गाडिय़ां भी जला डाली, और यह एक अभूतपूर्व दर्जे का तनाव था, जैसा छत्तीसगढ़ के इतिहास में तो कभी हुआ ही नहीं था, देश के इतिहास में भी ऐसी कोई घटना याद नहीं पड़ रही है। इस बीच अब सरकार ने कैमरों की रिकॉर्डिंग देखकर आगजनी, और हिंसा करने वाले लोगों को गिरफ्तार करना शुरू किया है, और अब तक शायद दो सौ लोगों को पकड़ा जा चुका है। कलेक्टर-एसपी को जिले से हटा दिया गया है, और अब सत्ता और विपक्ष दोनों के लोग बलौदाबाजार पहुंच रहे हैं। लेकिन आज की खबरों में बड़ी बात यह है कि सतनामी समाज से ही आए प्रदेश के एक मंत्री दयालदास बघेल ने आरोप लगाया है कि यह घटना कांग्रेस की साजिश का नतीजा है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के विधायक देवेन्द्र यादव, कविता प्राण लहरे, और पूर्व मंत्री गुरू रूद्र कुमार ने भडक़ाऊ भाषण देकर लोगों से उग्र प्रदर्शन करवाया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस चुनावों में हार बर्दाश्त नहीं कर पा रही है, इसलिए सरकार के खिलाफ ऐसी साजिश कर रही है। बलौदाबाजार की इस हिंसा के पीछे सतनामी समाज के उपासना स्थल, जैतखंभ को नुकसान पहुंचाने की न्यायिक जांच की घोषणा की जा चुकी है। और पुलिस भी यह जांच कर रही है कि हजारों लोगों की यह भीड़ क्या आग लगाने की तैयारी से पेट्रोल और दूसरे सामान लेकर आई थी? 

अब जब जैतखंभ-मामले की न्यायिक जांच होनी है, उस वक्त सरकार के एक मंत्री अगर विपक्ष कांग्रेस पर साजिश की तोहमत लगाते हैं, तो यह बात पुलिस की जांच को तो प्रभावित करती ही है, न्यायिक जांच के महत्व को अनदेखा भी करती है। यह बात सत्तारूढ़ भाजपा के किसी नेता की तरफ से राजनीतिक बयान की तरह सामने आती, तो भी ठीक रहता, सरकार के मंत्री की तरफ से ऐसा कहने का मतलब सरकार का कहना होता है। एक मंत्री जब इतनी बड़ी घटना को कांग्रेस की साजिश बता रहे हैं, तो सरकार की यह जिम्मेदारी हो जाती है कि इस बात को साबित भी करे। आज जब इतना बड़ा तनाव आया है, और इसके पीछे की वजहें अभी बाकी ही हैं, ऐसे ऐतिहासिक तनाव और नुकसान की भरपाई होनी बाकी ही है, इसके बीच में अगर सरकार के एक जिम्मेदार मंत्री जांच को कांग्रेस की तरफ मोड़ रहे हैं, तो सरकार को कांग्रेस के ‘गुनाह’ साबित भी करने चाहिए। जहां अभी-अभी प्रदेश का अनुसूचित जाति का सबसे बड़ा तबका अपने धर्मस्थल को लेकर इतने बड़े तनाव से गुजरा है वहां पर बिना सुबूतों के इतनी बड़ी तोहमत नहीं लगानी चाहिए, जिसमें दो नाम तो विधायकों के ही हैं। ऐसा नहीं है कि हम विधायकों को साजिश या जुर्म करने से परे का मानते हैं। अब देश में यह साबित हो चुका है कि सांसद और विधायक कत्ल से लेकर बलात्कार तक तमाम किस्म के जुर्म कर सकते हैं। लेकिन छत्तीसगढ़ के एक संवेदनशील तबके में जब धर्मस्थल के अपमान का आरोप लगाते हुए बेचैनी इतनी बड़ी है कि वह प्रदेश की अपने किस्म की हिंसा में भी तब्दील हो रही है, तब आगजनी की राख से उठते हुए धुएं के बीच शासन के मंत्री का विपक्ष के नेताओं का नाम लेकर साजिश का आरोप आज तनाव को कम करने की कोशिश में नहीं गिनाएगा। किसी भी सरकार को ऐसे व्यापक और गंभीर तनाव के बीच राजनीति नहीं करनी चाहिए, और अगर राजनीतिक बयानबाजी करनी ही है, तो फिर उसे एक तर्कसंगत और न्यायसंगत अंत तक पहुंचाना भी चाहिए, सरकार की ताकत तो अपार रहती है, उसे सामुदायिक हिंसा भडक़ाने के सुबूतों के साथ विपक्ष के ऐसे नेताओं को गिरफ्तार भी करना चाहिए। 

हिंसा चाहे किसी भी तबके की तरफ से हो, अगर सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाया जा रहा है, लोगों की जिंदगी खतरे में डाली जा रही है, तो ऐसे लोगों से उनकी संपत्ति बेचकर भी भरपाई करवानी चाहिए। अब तक पुलिस के पास सैकड़ों ऐसे वीडियो जुट गए होंगे जो कि बहुत से चेहरे दिखाते होंगे। इसके अलावा किसी जगह पर किसी एक खास वक्त पर कौन-कौन से मोबाइल इकट्ठा थे, यह निकालना भी पुलिस के लिए बड़ा आसान है। इस रास्ते से भी जांच करके ऐसे हिंसक प्रदर्शन करने वाले, आग लगाने वाले लोगों को पकडऩा चाहिए। एक धर्मस्थल के अपमान का आरोप लगाते हुए यह हिंसा की गई है, और हम इस बारे में कल ही खुलासे से लिख चुके हैं कि हर धर्मस्थल की हिफाजत का काम वहां के भक्तों को खुद करना चाहिए, क्योंकि देश भर में कदम-कदम पर, हर बड़े पेड़ के नीचे कोई न कोई मंदिर है, कोई न कोई प्रतिमा स्थापित है, और इसकी रखवाली सरकार नहीं कर सकती। 

कल जिस वक्त यह सब बवाल चल ही रहा था उसी वक्त सरगुजा के मैनपाट की कमलेश्वर में एक शिव मंदिर में प्रतिमा को तोड़ दिया गया है। अब अगर बलौदाबाजार जिले को एक मिसाल माना जाए, तो सरगुजा में भी ऐसा ही तनाव शुरू हो सकता है। सरकार कब तक यही सब करते रहेगी? और अगर पुलिस के मत्थे इस तरह के हिंसक प्रदर्शनों से जूझना, उनकी जांच और कार्रवाई करना डाला जाएगा, तो समाज में दूसरे तरह के जुर्म की जांच होना भी मुमकिन नहीं रह जाएगा। हम अपनी इस बात को दुहरा रहे हैं कि धार्मिक तनाव को कम करने के लिए तमाम असुरक्षित धर्मस्थलों की हिफाजत का काम उन भक्तों को ही करना चाहिए। कुछ संप्रदायों में ऐसा होता भी है कि भाड़े के चौकीदारों के बजाय समाज के ही लोग चौकीदारी भी करते हैं, और बाकी काम भी। राधास्वामी सत्संग व्यास के सैकड़ों एकड़ के अहाते में कोई भी तनख्वाह वाले कर्मचारी नहीं रखे जाते, और हर काम भक्त ही बारी-बारी से करते हैं। अपने ईश्वर या गुरू की सेवा करना किसी भी भक्त के लिए एक महत्वपूर्ण काम हो सकता है, और धर्मस्थलों की चौकीदारी करना भी भक्ति का ही एक हिस्सा रहेगा। इसलिए सरकार को सभी धर्मस्थलों की हिफाजत का काम वहां के स्थानीय भक्तजनों को देना चाहिए। 

फिलहाल छत्तीसगढ़ के बारे में हमारा यही कहना है कि अगर इतने संवेदनशील मामले की ऐसी विस्फोटक स्थिति में भी अगर मंत्री कांग्रेस पर साजिश का आरोप लगाते हैं, तो सरकार को उसे साबित जरूर करना चाहिए, और सुबूत जुटाकर ऐसे नेताओं को गिरफ्तार करना भी सरकार की ही जिम्मेदारी होगी। ऐसे सुबूत न मिलने पर सत्तारूढ़ नेताओं को ऐसे आरोप वापिस लेना चाहिए। साथ-साथ राजनीतिक दलों को यह भी तौलना चाहिए कि कौन सा नेता प्रदेश मंत्रिमंडल में जगह पाना चाहता है, और कौन सा नेता आगे राज्यसभा में जाना चाहता है।  

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