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स्वतंत्रता के बाद से आम सहमति से चुने जाते रहे हैं लोकसभा अध्यक्ष
18-Jun-2024 8:31 AM
स्वतंत्रता के बाद से आम सहमति से चुने जाते रहे हैं लोकसभा अध्यक्ष

नयी दिल्ली, 17 जून। विपक्ष अगले सप्ताह लोकसभा अध्यक्ष के पद के लिए उम्मीदवार उतारकर यदि चुनाव की स्थिति उत्पन्न करता है तो यह स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार होगा, क्योंकि पीठासीन अधिकारी का चयन हमेशा आम सहमति से होता रहा है।

स्वतंत्रता से पहले संसद को केंद्रीय विधानसभा कहा जाता था और इसके अध्यक्ष पद के लिये पहली बार चुनाव 24 अगस्त 1925 में हुआ था जब स्वराजवादी पार्टी के उम्मीदवार विट्ठलभाई जे. पटेल ने टी. रंगाचारियर के खिलाफ यह चुनाव जीता था।

अध्यक्ष के रूप में चुने जाने वाले पहले गैर-सरकारी सदस्य पटेल ने दो वोटों के मामूली अंतर से पहला चुनाव जीता। पटेल को 58 वोट मिले थे, जबकि रंगाचारियार को 56 वोट मिले थे।

लोकसभा में अपनी बढ़ी हुई ताकत से उत्साहित विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ अब आक्रामक तरीके से उपाध्यक्ष के पद की मांग कर रहा है, जो परंपरागत रूप से विपक्षी दल के सदस्य के पास होता है।

कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “यदि सरकार विपक्ष के नेता को उपाध्यक्ष बनाने पर सहमत नहीं होती है तो हम लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ेंगे।”

18वीं लोकसभा का पहला सत्र 24 जून को शुरू होगा, जिस दौरान निचले सदन के नए सदस्य शपथ लेंगे और अध्यक्ष का चुनाव होगा।

लोकसभा चुनाव में ‘इंडिया’ ने 234 सीटें जीतीं, जबकि भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले राजग ने 293 सीटें जीतकर लगातार तीसरी बार सत्ता बरकरार रखी। 16 सीटों के साथ तेलुगु देशम पार्टी (तेदेपा) और 12 सीटों के साथ जनता दल (यू) भाजपा की सबसे बड़ी सहयोगी हैं। भाजपा ने 240 सीटें जीती हैं।

विपक्षी गठबंधन भाजपा की सहयोगी तेदेपा पर भी लोकसभा अध्यक्ष के पद पर जोर देने या पार्टी में धीरे-धीरे विघटन का सामना करने के लिए कह रहा है।

शिवसेना नेता संजय राउत ने रविवार को मुंबई में कहा, “हमारा अनुभव है कि भाजपा उसे समर्थन देने वालों को धोखा देती है।”

जद(यू) ने लोकसभा अध्यक्ष के लिए भाजपा उम्मीदवार को समर्थन देने की घोषणा की है, जबकि तेदेपा ने इस प्रतिष्ठित पद के लिए सर्वसम्मत उम्मीदवार का समर्थन किया है।

केन्द्रीय विधान सभा के अध्यक्ष के पद के लिए 1925 से 1946 के बीच छह बार चुनाव हुए।

विट्ठलभाई पटेल अपना पहला कार्यकाल पूरा होने के बाद 20 जनवरी 1927 को सर्वसम्मति से पुनः इस पद पर निर्वाचित हुए। महात्मा गांधी द्वारा सविनय अवज्ञा के आह्वान के बाद पटेल ने 28 अप्रैल, 1930 को पद छोड़ दिया। सर मुहम्मद याकूब (78 वोट) ने नौ जुलाई, 1930 को नंद लाल (22 वोट) के खिलाफ अध्यक्ष का चुनाव जीता।

याकूब तीसरी विधानसभा के आखिरी सत्र के लिए इस पद पर रहे। चौथी विधानसभा में सर इब्राहिम रहीमतुल्ला (76 वोट) ने हरि सिंह गौर के खिलाफ अध्यक्ष का चुनाव जीता, जिन्हें 36 वोट मिले। स्वास्थ्य कारणों से 7 मार्च 1933 को रहीमतुल्ला ने इस्तीफा दे दिया और 14 मार्च 1933 को सर्वसम्मति से षणमुखम चेट्टी उनके स्थान पर नियुक्त हुए।

सर अब्दुर रहीम को 24 जनवरी 1935 को पांचवीं विधानसभा का अध्यक्ष चुना गया। रहीम को 70 वोट मिले थे, जबकि टी.ए.के. शेरवानी को 62 सदस्यों का समर्थन प्राप्त था।

रहीम ने 10 साल से अधिक समय तक उच्च पद संभाला क्योंकि पांचवीं विधानसभा का कार्यकाल समय-समय पर प्रस्तावित संवैधानिक परिवर्तनों और बाद में द्वितीय विश्व युद्ध के कारण बढ़ाया गया था। केंद्रीय विधानसभा के अध्यक्ष पद के लिए अंतिम मुकाबला 24 जनवरी, 1946 को हुआ था, जब कांग्रेस नेता जी.वी. मावलंकर ने कावसजी जहांगीर के खिलाफ तीन मतों के अंतर से चुनाव जीता था। मावलंकर को 66 मत मिले थे, जबकि जहांगीर को 63 मत मिले थे।

इसके बाद मावलंकर को संविधान सभा और अंतरिम संसद का अध्यक्ष नियुक्त किया गया, जो 26 जनवरी, 1950 को संविधान लागू होने के बाद अस्तित्व में आई। मावलंकर 17 अप्रैल, 1952 तक अंतरिम संसद के अध्यक्ष बने रहे, जब पहले आम चुनावों के बाद लोकसभा और राज्यसभा का गठन किया गया।

स्वतंत्रता के बाद से, लोकसभा अध्यक्षों का चयन सर्वसम्मति से किया जाता रहा है, तथा केवल एम ए अयंगर, जी एस ढिल्लों, बलराम जाखड़ और जी एम सी बालयोगी ही बाद की लोकसभाओं में प्रतिष्ठित पदों पर पुनः निर्वाचित हुए हैं।

लोकसभा के पहले उपाध्यक्ष अयंगर वर्ष 1956 में मावलंकर की मृत्यु के बाद अध्यक्ष चुने गये थे। उन्होंने 1957 के आम चुनावों में जीत हासिल की और उन्हें दूसरी लोकसभा का अध्यक्ष चुना गया था।

ढिल्लों को 1969 में वर्तमान अध्यक्ष एन संजीव रेड्डी के इस्तीफे के बाद चौथी लोकसभा का अध्यक्ष चुना गया था। ढिल्लों को 1971 में पांचवीं लोकसभा का अध्यक्ष भी चुना गया और वे 1 दिसंबर 1975 तक इस पद पर बने रहे। उन्होंने आपातकाल के दौरान यह पद छोड़ दिया था।

जाखड़ सातवीं और आठवीं लोकसभा के अध्यक्ष रहे और उन्हें दो पूर्ण कार्यकाल पूरा करने वाले एकमात्र पीठासीन अधिकारी होने का गौरव प्राप्त है। बालयोगी को 12वीं लोकसभा का अध्यक्ष चुना गया, जिसका कार्यकाल 19 महीने का था। उन्हें 22 अक्टूबर 1999 को 13वीं लोकसभा का अध्यक्ष भी चुना गया। बालयोगी की 3 मार्च 2002 को एक हेलिकॉप्टर दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। (भाषा)

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