संपादकीय

दैनिक ‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : ...साइबर-ठगी तो इंसानों की कमजोरी को दुह रही
20-Jun-2024 4:30 PM
दैनिक ‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय :  ...साइबर-ठगी तो इंसानों  की कमजोरी को दुह रही

एक अंतरराष्ट्रीय अनुमान यह है कि अगर साइबर क्राइम एक देश रहता, तो वह दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था रहता। दुनिया के दो ही देशों में इससे अधिक जीडीपी होता। और उस साइबर क्राइम के शिकार हम हर दिन अपने आसपास के लोगों को देख रहे हैं। किसी को यूट्यूब वीडियो लाइक करने पर मेहनताने का वायदा करके उनसे लाखों रूपए ठग लिए जा रहे हैं, तो किसी को विदेशों से सामान मंगाकर देने के नाम पर ठगा जा रहा है, और फिर उनके पास फोन आता है कि उनके सामान में ड्रग्स निकली है, और पुलिस को पैसा न दिया तो गिरफ्तारी हो जाएगी। झारखंड के जामताड़ा नाम के एक गांव या कस्बे में बैठे हुए अनपढ़ लोग किस तरह पूरे देश के लोगों को टेलीफोन पर ठग रहे हैं, और किस तरह यह वहां का कुटीर उद्योग बन गया है इस पर किसी ओटीटी प्लेटफॉर्म पर एक फिल्म या सिरीज भी बन चुकी है। हम छत्तीसगढ़ को अधिक करीब से देखते हैं तो पाते हैं कि पिछले दस बरस में इस राज्य में अनगिनत चिटफंड कंपनियां खुलीं, और लाखों लोगों के हजारों करोड़ रूपए लूटकर गायब हो गईं। उनमें से कुछ के लोगों को पकड़ा गया, और दस-बीस करोड़ रूपए वसूली करके लोगों में थोड़ी सी रकम बांटी गई, लेकिन कुल मिलाकर लोगों का पैसा हमेशा के लिए डूब ही गया। अब छत्तीसगढ़ की एक ग्राम पंचायत रायकोना के एक नौजवान ठग को गिरफ्तार किया गया है जो लोगों से शेयर मार्केट और क्रिप्टोकरंसी में पैसा लगाने पर 8 महीने में दोगुना करने का झांसा देकर उनसे दसियों करोड़ रूपए ठग लिए। इस नौजवान छत्तीसगढ़ी ठग के बैंक खातों से 6 करोड़ 40 लाख रूपए मिले, करोड़ों की जमीन, करोड़ों की महंगी कारें बरामद की गईं। छत्तीसगढ़ के ही एक कम्पाउंडर ने शेयर मार्केट में पूंजीनिवेश के फर्जी मोबाइल ऐप बनवाए और उसने लोगों से सैकड़ों करोड़ ठग लिए, ऐसी खबर आई है। 

यहां लोग रोज जालसाजी का शिकार हो रहे हैं, रोजाना खबरें छप रही हैं, इसके बाद भी पढ़े-लिखे नए लोग फंसते चले जा रहे हैं। अखबारों और टीवी पर, समाचार वेबसाइटों पर साइबर-ठगी की हर दिन आती दर्जनों खबरों से किसी भी तरह का सबक न लेने की मानो लोगों ने कसम खा रखी है। खासे पढ़े-लिखे लोग, और बैंक कर्मचारी तक साइबर-ठगी का शिकार हो रहे हैं। इनमें से कई लोग किसी वीडियो कॉल पर किसी महिला का बदन देखकर अपने कपड़े उतारने लगते हैं, और इसके बाद वे अंतहीन ब्लैकमेलिंग का शिकार हो जाते हैं। शर्मिंदगी में ऐसे बहुत से लोग खुदकुशी भी कर रहे हैं, लेकिन इनसे किसी को सबक नहीं मिल रहा है। दरअसल लोग आनन-फानन कमाई के, किसी महिला के बदन की झलक के इतने प्यासे बैठे हैं कि वे हर कीमत पर इन्हें हासिल करना चाहते हंै। 

दरअसल देश में जब ईमानदारी के पूंजीनिवेश से कमाई सीमित हो, और लोग गलत तरीकों से अंधाधुंध कमाई की मिसाल पेश करते हों, तो बहुत से साधारण लोग भी अपने सीमित पैसों को दुगुना करने के चक्कर में फंस जाते हैं। अभी किसी मोबाइल गेम पर 25 हजार रूपए हारने पर 12-13 बरस के किशोर ने खुदकुशी कर ली। ऐसा और भी बहुत से लोगों के साथ हो रहा है। बहुत से चीनी मोबाइल ऐप इस देश में चल रहे थे जिनसे आसानी से कर्ज मिल जाता था, और मोबाइल एप्लीकेशन कर्जदार के मोबाइल की पूरी जानकारी निकाल लेता था, और फिर कर्ज वसूली के लिए उन्हें बुरी तरह ब्लैकमेल करके आत्महत्या के लिए मजबूर भी कर देता था। ऐसे बहुत से एप्लीकेशन भारत सरकार ने बंद किए हैं, लेकिन जितने बंद होते हैं, उससे ज्यादा ऐसे मोबाइल ऐप हर दिन बाजार में आ जाते हैं। हर किसी के मोबाइल पर बहुत किस्म की निजी बातें रहती हैं जिन पर कब्जा कर लेने के बाद साहूकार कंपनियां उन्हें फोनबुक के तमाम लोगों तक पहुंचा देने की धमकी देकर कर्ज से कई गुना रकम वसूली करती हैं। 

हिन्दुस्तान जैसे देश में केन्द्र सरकार के दबाव में देश में डिजिटल लेन-देन अंधाधुंध बढ़ाया गया है। एक खोजी रिपोर्ट में कल ही यह सामने आया है कि सरकार ने किस तरह डिजिटल लेन-देन के आंकड़े बढ़ाने के लिए बैंकों पर दबाव डालकर फर्जी आंकड़े तैयार किए। लेकिन बैंकों के काम के दिन घटाकर, मोबाइल बैंकिंग, ऑनलाईन बैंकिंग, डिजिटल भुगतान बढ़ाकर, इन सब चीजों को आधार कार्ड, और पैनकार्ड से जोडक़र सरकार ने लोगों को बहुत नाजुक हालत में डाल दिया है, और इन दिनों जो ठग टेलीफोन कर रहे हैं, उनके पास लोगों की ये निजी जानकारियां भी हैं। जानकारी और कामकाज ऑनलाईन करने के साथ-साथ अगर साइबर-सुरक्षा भी नहीं बढ़ रही है, तो लोग खतरे में पड़ते जा रहे हैं। लोगों के पास कोई एक ओटीपी आता है, और फिर कोई एक फोन आता है जो अपने को बैंक का या सरकार के किसी विभाग का व्यक्ति बताकर ओटीपी पूछता है, और फिर ओटीपी बताते ही लोगों का बैंक खाता खाली हो जाता है। मतलब यह कि जालसाजों की पहुंच कई किस्म के सरकारी रिकॉर्ड तक है, अब वे किस तरह ये जानकारियां हासिल करते हैं, इसे पकडऩे की सबसे अधिक क्षमता खुद सरकार में हैं। 

हमने कुछ दिन पहले इसी कॉलम में सुझाया था कि देश में साइबर-जुर्म और जालसाजी में लोगों के डूबने वाले पैसों का बीमा होना चाहिए। इन्हें सरकार और बैंक मिलकर या अलग-अलग कर सकते हैं। जब लोगों के खुद कुछ किए बिना जालसाज उनसे सिर्फ ओटीपी पूछकर उनका बैंक अकाउंट खाली कर सकते हैं, तो इसमें सरकार और बैंक के इंतजाम की कमजोरी साफ नजर आती है। सरकार को मोबाइल फोन और इंटरनेट पर होने वाली साइबर-ठगी रोकने के लिए कम्प्यूटर और अपराध विशेषज्ञों को लगातार लगाकर रखना चाहिए, और जरूरत रहे तो इसके लिए अंतरराष्ट्रीय हैकरों से भी सलाह लेकर निगरानी बढ़ाना चाहिए। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)  

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