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राजपथ-जनपथ : मंतूराम ने याद दिलाया- मैं हूँ न
29-Jun-2024 4:03 PM
 राजपथ-जनपथ : मंतूराम ने याद दिलाया- मैं हूँ न

मंतूराम ने याद दिलाया- मैं हूँ न

अंतागढ़ टेपकांड से सुर्खियों में रहे पूर्व विधायक मंतूराम पवार ने फेसबुक पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, और ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन मांझी की बीस साल पुरानी तस्वीर साझा की है। उस वक्त द्रौपदी मुर्मू और मोहन मांझी विधायक थे, और दोनों ही आदिवासी समाज से हैं।

मंतूराम पवार ने लिखा कि पार्टी के प्रति ऐसी सतत निष्ठा सिर्फ बीजेपी कार्यकर्ताओं में देखने को मिलती है। मंतूराम पवार लोकसभा चुनाव के ठीक पहले भाजपा में आए थे, और कांकेर सीट जीताने में उनकी भी भूमिका रही है।

पवार को उम्मीद है कि पार्टी टेपकांड को भुलाकर उन्हें कुछ दायित्व सौंप सकती है। देखना है आगे क्या होता है।

 यह क्या कह दिया राजेश तिवारी ने!!

वैसे तो कांग्रेस की वीरप्पा मोइली कमेटी लोकसभा चुनाव में हार की समीक्षा के लिए आई थी। लेकिन बैठक में बात विधानसभा चुनाव में हार पर भी हो गई। हालांकि प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी सचिन पायलट ने बैठक के पहले ही हिदायत दे रखी थी कि कोई नकारात्मक बातें नहीं होगी। कमेटी सुझाव लेने के लिए आई है, और इस पर बात होनी चाहिए।

राजीव भवन में हुई शुक्रवार को बैठक में पार्टी के चुनिंदा सीनियर लीडरों को बुलाया गया था। इनमें से कुछ हारे हुए प्रत्याशी भी थे। चर्चा के दौरान कवासी लखमा, और अन्य कुछ नेताओं की नाराजगी सामने आ गई। मगर सबसे सटीक बात भूपेश बघेल के सीएम रहते उनके संसदीय सलाहकार रहे राजेश तिवारी ने कही।

राजेश तिवारी एआईसीसी के सचिव हैं, और यूपी कांग्रेस के भी प्रभारी सचिव हैं। उन्होंने साफ तौर पर कह दिया कि कांग्रेस सरकार के पांच साल में कार्यकर्ताओं की उपेक्षा हुई है। इसका नतीजा यह रहा कि कार्यकर्ता दूर हो गए, और विधानसभा व लोकसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। तिवारी ने खुद को इसके लिए जिम्मेदार मान लिया।

राजेश तिवारी ने आगे यह भी कहा कि प्रदेश कांग्रेस नेतृत्व में बदलाव की जरूरत नहीं है, बल्कि मौजूदा संगठन को मजबूत बनाने की है। ये सब कह रहे थे तब पूर्व सीएम भूपेश बघेल मंच पर ही थे। राजेश तिवारी, भूपेश बघेल के करीबी माने जाते हैं। और उनकी इस कथन की पार्टी हलकों में खूब चर्चा रही। जाहिर है कि तिवारी की टिप्पणी भूपेश बघेल को पसंद नहीं आई होगी।

एआई और एचआई

            

 

इंटरनेट के इस जमाने में मोबाइल फोन और कम्प्यूटर पर टाईप की गई चीजों में उनकी अपनी डिक्शनरी कई शब्दों को या तो बदल ही देती है, या फिर उनके दूसरे विकल्प सुझाती है। अब कल ही एक लेख में हिज्जों की जांच करते हुए गूगल के जीमेल पर लड़ाईयां की जगह लड़कियां सुझाया जा रहा था, चालाकी की जगह चालू सुझाया जा रहा था, खोखली की जगह खुजली सुझाया जा रहा था। इसी तरह बहुत सारे ऑटोकरेक्ट तो ऐसी भयानक गलतियां करते हैं कि लोग टाईप करने के बाद ऑटोकरेक्ट के करेक्शन परखे बिना अगर संदेश आगे बढ़ा दें, तो हो सकता है कि रिश्ते ही खराब हो जाएं। अभी वॉट्सऐप के एक संदेश में साइकिलिंग टाईप करने पर बदलकर उससे मिलता-जुलता एक ऐसा शब्द वहां कर दिया गया जो कि अंग्रेजी में एक गंदा और अश्लील शब्द माना जाता है। इसलिए कम्प्यूटर या मोबाइल के किसी भी एप्लीकेशन या सॉफ्टवेयर पर ऑटोकरेक्ट पर भरोसा न करें, उसका इस्तेमाल करके अपनी चूक को देख जरूर लें, लेकिन यह याद रखें कि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का नेचुरल ह्यूमन इंटेलीजेंस से कोई मुकाबला नहीं है।

प्रदीप चौबे ने याद दिलाया 

आपातकाल के मसले पर संसद से लेकर देश भर में भाजपा ने कांग्रेस को आड़े हाथों लिया। इन सबके बीच पूर्व मंत्री रविन्द्र चौबे के बड़े भाई प्रदीप चौबे की एक पोस्ट की काफी चर्चा रही। हालांकि कांग्रेस ने इसको लेकर कोई बात नहीं की है।

प्रदीप चौबे ने एक्स पर लिखा कि 25 जून को लोकसभा में जब अध्यक्ष ओम बिरला आपातकाल लगाने के काले अध्याय का प्रस्ताव पढ़ रहे थे, तब क्या किसी भी कांग्रेस के वरिष्ठ सदस्य को यह याद नहीं रहा कि तत्कालीन संघ के प्रमुख बाला साहब देवरस ने आपातकाल का लिखित समर्थन किया था।

यह अलग बात है कि आपातकाल के मसले पर कांग्रेस के नेता बैकफुट पर आ जाते हैं, और कड़ी प्रतिक्रिया देने से बचते हैं।

धंधा ज़मीनों का

नवा रायपुर में प्रस्तावित बिजनेस कॉरीडोर के मसले पर सरकार में एक राय नहीं बन पा रही है। यह योजना तो काफी अच्छी है, और चेम्बर अध्यक्ष अमर पारवानी ने कॉरीडोर की मंजूरी के लिए पूरा दम लगा दिया है। हालांकि व्यापारियों का एक धड़ा इससे सहमत नहीं हैं।

दूसरी तरफ, सरकार में भी इस मसले पर एक राय नहीं बन पा रही है। चर्चा है कि सरकार के एक मंत्री इस योजना के खिलाफ बताए जा रहे हैं। वजह यह है कि पिछली सरकार में प्रभावशाली रहे कुछ लोगों ने आसपास काफी जमीनें खरीदी है। आवास एवं पर्यावरण मंत्री ओ.पी.चौधरी इस योजना का अध्ययन कर रहे हैं। कैबिनेट में प्रस्ताव आने पर सब कुछ साफ होने की उम्मीद है।

नैनो यूरिया पर भरोसा नहीं हो रहा

खरीफ की बोनी का सीजन शुरू होते ही खाद-बीज के उठाव के लिए सहकारी समितियों में किसान पहुंचने लगे हैं। अभी शुरुआत है, इसलिये यूरिया और डीएपी की मांग और भंडारण के अंतर का तत्काल पता नहीं चल रहा है लेकिन संकट हर साल की बात है। इसके विकल्प के रूप में अब सोसायटियों में नैनो यूरिया और नैनो डीएपी आने लगा है। मगर, इसे लेने में किसान दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं। सन् 2021 में जब इसे लांच किया तो इफको ने इसका खूब प्रचार किया था लेकिन किसानों का भरोसा इस पर जम ही नहीं पा रहा है। कुछ किसान कह रहे हैं कि इसके छिडक़ाव में दिक्कत है। इसे ड्रोन के जरिये ही सुरक्षित तरीके से छिडक़ा जा सकता है, जो उनके पास उपलब्ध नहीं है। कुछ किसानों का कहना है कि जो असर बैग की खाद का फसलों पर होता है वह इस लिक्विड नैनो यूरिया और डीएपी के छिडक़ाव से नहीं होता। पिछले साल कई सोसायटियों में खाद की किल्लत हुई, उसके बावजूद किसानों ने नैनो लिक्विड का इस्तेमाल नहीं किया। किसान खेती के अपने पारंपरिक तरीके को बहुत सोच-विचार करके बदलता है। पिछली सरकार के दौरान उनको गोबर खाद उपयोग में लाने की सलाह दी गई, कई सोसायटियों में खाद के बैग के साथ इसे जोर-जबरदस्ती कर थमाया भी गया। इसके बावजूद यह चलन में नहीं आ सका। अब तो सरकार बदलने के बाद उसका उत्पादन भी ठप हो गया है। राहत की बात यह है कि नैनो यूरिया खरीदने के लिए किसानों पर यहां दबाव नहीं है, जबकि कुछ दूसरे राज्यों से ऐसी शिकायतें आई हैं। ([email protected])

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